ब्रेकिंग न्यूज़

बेमेतरा : कृषि महाविद्यालय बेमेतरा द्वारा तैयार किये जा रहे इमली के पौधे

  द न्यूज़ इंडिया समाचार सेवा


बेमेतरा : इमली एक उष्ण कटिबंधीय (Tropical) फल है यह भारत में प्राचीन काल से उगायी जाती रही है। इसमंे सूखा एवं विषम परिस्थितियों को सहन करने कि असीम क्षमता होती है।
No description available.
 
इमली एक बहुत ही लाभकारी फल है। इसमें टारटारिक एसिड, पेक्टिन, विटामिन सी, ई, बी, कैल्शियम, आयरन, फाॅस्फोरस, पोटेशियम, मैंगनीज और फाइबर प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं साथ ही इसमें एंटीआॅक्सीडेंट्स भी शामिल है।
No description available.

इमली के फूलों को भी स्वादिष्ट पकवान बनाने के उपयोग में लिया जाता है। इमली के पत्ते शरीर को शीतलता प्रदान करते हैं और पेट के कीड़ों को नष्ट करने में मदद करते हैं। यह पाचन विकार को दूर करने, स्कर्वी (Scurvy) डायबिटीज, इम्यून सिस्टम को ठीक करने में भी मददगार है। इसमें इसकी लकड़ी बहुत ही उपयोगी है।

         कृषि महाविद्यालय ढोलिया बेमेतरा में छत्तीसगढ़ की सर्वश्रेष्ठ मानी जाने वाली जगदलपुर के इमली के पौध हजारों की तादाद में तैयार किए जा रहें हैं जिन्हें कृषकों, पंचायतों, गोठानों, सड़क के किनारों पर रोपण करने के लिए मुफ्त में वितरित किये जायेगें। जिससे इन जगहों में जंगली फूल वाले पौधे जैसे-गुलमोहर, शोबबूल, पेंटाफोरम, कंटीले पौधे नहीं उगेंगे जिनसे न तो मजबूत लकड़ी मिलती न ही खाने योग्य फल मिलता है।

         भारत में इमली की आवश्यकता वर्ष भर रहती है क्योंकि दक्षिण भारतीय पकवान तथा चटपटे व्यंजन बिना इमली के अधूरे एवं स्वादहीन है। जिसके कारण इसका मूल्य (भाव) अच्छा बना रहता है जो कि 30 से 150 रूपये प्रति किलो ग्राम तक है और प्रति पेड़ 5 से 6 क्विंटल उपज की प्राप्ति होती है (शुरूआती फलन में 1.5 क्विंटल से लेकर साल दर साल उपज 16,500 रूपये तक शुद्ध लाभ प्राप्त किया जा सकता है। प्रति हेक्टेयर 50 से 60 पौधे लगाये जा सकते हैं, जिससे 20 से 25 वर्षों तक 180,000 से लेकर 10,00,000 रूपये से ज्यादा प्रति वर्ष शुद्ध लाभ प्राप्त किया जा सकता है।

         इमली के उपयोग को देखते हुए छत्तीसगढ़ में इमली की खेती आसानी से की जा सकती है और इसकी फसल कई वर्षों तक ली जा सकती है। इसमें फल आने में 8-10 वर्ष लगते हैं, फलने के बाद साल दर साल उपज मिलती रहती है इसलिए भारतवर्ष में पूर्वजों ने कहा है कि ”इमली का पेड़ एक पीढ़ी लगायें तो सात पीढ़ी खाए“।

इसके लाभ को  ध्यान में रखते हुए कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केन्द्र, ढोलिया बेमेतरा के अधिष्ठाता डाॅ. के.पी. वर्मा का मानना है कि जहाँ भी सरकारी पौध रोपण एवं किसानों की बेकार जमीन पड़ी है वहाँ पर इमली के पौधों का रोपण किया जा सकता है और जहाँ छायादार वृक्षों की आवश्यकता है वहाँ पर भी इसके पौधों को लगाया जा सकता है।

छाया के साथ-साथ उन पौधों से कृषकों को आर्थिक लाभ भी प्राप्त होगा और बंदर तथा पक्षियों के लिए भोजन की व्यवस्था भी हो जायेगी इसलिए हमारे पूर्वज सड़कों के किनारे फलदार पौधों का समावेश करते थे, जैसे-इमली, आम, महुआ, कैथ, बेल आदि का उपयोग करते थे जिससे वर्ष भर ये फल प्राप्त होते रहते थे।

Related Post

Leave A Comment

छत्तीसगढ़

Facebook