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द न्यूज़ इंडिया समाचार सेवा
प्रयागराज का महाकुंभ सामाजिक समरसता और एकता का महासूत्र - सुरेश सिंह बैस "शाश्वत"
विभिन्न धर्मों और संप्रदायों में विश्वास करने वाला हमारा यह देश है। यहां अनेक पर्व, उत्सव और मेले आयोजित होते हैं, इसलिए यह कहावत है "सात वार और नौ त्यौहार' ! धार्मिक पर्वो और उत्सवों से त्याग, तप, साधना, परोपकार, धार्मिक जागृति और आध्यात्मिक चेतना के दर्शन होते हैं। ऐसे ही सनातनधर्मियों का, हिन्दुओं का सबसे बड़ा धार्मिक पर्व है कुंभ, या कह सकते हैं महाकुम्भ,जो विश्व का सबसे बड़ा मेला कहा जा सकता है। यह महापर्व कब, क्यों और कहां मनाया जाता है, इसके आधार को पुराणों में उल्लेखित निम्न पंक्तियों से समझा जा सकता है।
"कुशस्थली तीर्थवर, देवानामपि, दुर्लभ्य।माधवे, धवले पक्षे सिंह जीवे इनोश्चगे।तुलाराशौ क्षपानाथे स्वातिथे पूर्णिमा तिथौ।व्यतिपाते तु सम्प्राप्ते चंद्रवासर संयुते ।।एजेनशत महायोगः स्थानान्मुक्ति फलप्रदा।।
उक्त संदर्भ समुद्र मंथन से है। जब देव दानवों द्वारा समुद्र मंथन किया गया, मंथन से अमृत सहित चौदह दिव्य रत्नों की प्राप्ति, अमृत पर अधिकार के लिये देव- दानवों में संघर्ष और संघर्ष में भारत के चार प्रमुख तीर्थों में अमृत बिन्दु का छलक पड़ना। अमृत बिन्दु पतन से चारों तीर्थ स्थान अमर और पवित्र हो गये। यहां की पवित्र नदियां भी अमृतमयी हो गई है।
"विष्णु द्वारे तीर्थराजेवन्त्यां गोदावरी तटे।सुधा बिन्दु विनिक्षेपात्कुम्भपर्वेति-विश्रुतम" ।।
अर्थात् अमृत बिंदु पतन से पृथ्वी पर चार कुंभ पर्व हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन और नासिक में आयोजित होते हैं। जिसमें हरिद्वार का कुंभ पर्व कुंभ राशि के गुरु, मेष के सूर्व में वैशाख मास में आयोजित होता है। वहीं प्रयाग (इलाहाबाद) का कुंभ महापर्व मेष वा वृषभ का गुरु, मकर का सूर्य और माध मास में सम्पन्न होता है। नासिक में सिंह राशि का गुरु, सिंह का सूर्य तथा श्रावण मास के संयोग से पर्व होता है। इसी प्रकार उज्जैन का कुंभ सिंह राशि का गुरु, वैशाख मास के मेष के सूर्य में कुंभ पर्व होता है। कुंभ भारतीय जनजीवन, संत महात्माओं के आध्यात्मिक चिंतन, जीवन दर्शन और प्राचीन संस्कृति का पुंजीभूत है। इसकी मांगलिक विचारधाराएं सरिताओं के पावन जलप्रवाह के माध्यम से जन जागृति और नवचेतना का शंखनाद सदियों से करती आई है। बारह वर्ष बाद यह पुनः पुनः आ जाता है।प्रयागराज का अमृत महाकुंभ, जो विश्व का सबसे बड़ा मेला पुनीत पावनक गंगा जमुना, और अदृश्य सरस्वती के संगम पर उभरता एक लघु भारत। प्रयाग की धरती से एक बार फिर गूंज रहा है "हम एक हैं" का अमृत घोष। अजस्र वाहिनी गंगा जमुना-सरस्वती का संगम-स्थल।भूमंडल के पूर्व यानी नासिकाग्र (प्रयाग) पर होता है राशि चक्र में कुंभ राशि पर गुरुदेव बृहस्पति के परिभ्रमण पर यह अमृत योग आता है।यह भी गौर करने की बात है कि सभ्यता एवं संस्कृति के विकासमान जीवन और जगत को प्राचीन समय में ही नहीं आज के वैज्ञानिक तकनीकी समय में भी महाकुंभ से संबंधित शहरों एवं निकटवर्ती क्षेत्रों के व्यापार, व्यवसाय,विपणन, वाणिज्य को बल मिलता है।यहां वस्तुओं का राष्ट्रव्यापी विनियम होता है। इन विराट कुंभ मेलों में शास्त्रज्ञों, ज्योतिषियों, विद्वानों, कलाकारों, कवियों का समागम सम्मान होता है, तो दूसरी ओर नाम दान द्वारा अपरिग्रह की भावना को सुंपष्टि दी जाती है। पर्यटन एवं पर्यावरण के महत्व को आत्मसात करने वाले मानव समाज को यात्रा की प्रवृत्ति, उसे एकरस जीवन से हटाकर पाप विमुक्ति तथा ग्रहचक्र एवं दुर्देव से सुरक्षा के भाव जगाता है। इस पावन - महापर्व का आकर्षण ही ऐसा है कि भारत के कोने-कोने से और तो और विश्व के अनेक देशों के लोग भी कुंभ नगरी में सिमटने लगे हैं। कुंभ महापर्व की यह पराकाष्ठा ही है की उत्तरप्रदेश की सरकार ने 12 जनवरी 2025 से आयोजित गंगा किनारे कुंभ स्थल क्षेत्र को कुंभ जिला घोषित कर दिया है ।यद्यपि इनकी भाषा, वेशभूषा, रंगढंग सभी एक दूसरे से भिन्न होते हैं, परंतु इनका लक्ष्य एक होता है, मंजिल एक होती है सभी में एक ही भावना और समरसता के दर्शन किये जा सकते हैं और यह हैं अनेकता में एकता का संगम । आज का मनुष्य क्या स्त्री, पुरुष, बाल-अबाल, साधू महात्मा, धन्वान-गरीब, गृहस्थ, संन्यासी , साक्षर असाक्षर हर तरह के लोग और समुदाय, कष्टों समस्याओं की चिंता नहीं करते हुये भी अमृत कुंभ के अमृतपान के लिये सहज एवं प्रसन्नता के साथ प्रत्येक स्थिति में भी उद्यत रहते हैं, यही तो है इस महापर्व का महात्म्य ।भारतीय लोक जीवन में मेलों का अपना एक विशेष स्थान रहा है। इस दृष्टि से यदि देखा जाय तो हम पाते हैं कि हमारे देश के लगभग प्रत्येक क्षेत्र में समय - समय पर मेलों का आयोजन होता रहता है। चूंकि ऐसे प्रत्येक आयोजन के लिये कोई कारण होना जरुरी होता है। इसलिए भारत में लगने वाले अधिकांश मेले किसी उत्सव, पर्व या धार्मिक महत्व वाले दिन के अवसर पर आयोजित होते हैं।वैसे इन सभी मेलों का धार्मिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और समाज शास्त्रीय भी महत्व रहता है। लेकिन आधुनिक युग में इनके आयोजन के साथ आर्थिक पक्ष अधिक महत्वपूर्ण होते जा रहे हैं, क्योंकि जहां एक तरफ इनके आयोजन में आयोजक को, सरकार हो या अन्य कोई संस्था, उसे काफी पैसा खर्च करना ही रहता है। दूसरी तरफ इन मेलों में आने वाले भी भारी खर्च करते हैं, और जो व्यापारी, उद्योगपति वा दुकानदार इनमें आते हैं वे अच्छी कमाई के साथ अपने उत्पादन या अपनी वस्तु का अच्छा प्रचार करके भविष्य में बिक्री बढ़ाने का प्रयास भी करते हैं।भारतीय मेलों का एक लम्बा इतिहास रहा है। इनमें अन्य मेलों की अपेक्षा प्रयागराज, हरिद्वार, और नासिक उज्जैन, के महाकुंभ का अपना इतिहास है। साथ ही ये आयोजन देश के विभिन्न भागों में होने वाले मेलो की तुलना में विशाल और लंबे समय तक चलने वाले होते हैं। इस तरह के मेले या महापर्व इन स्थानों पर - प्रतिवर्ष न होकर बारह वर्ष में एक बार आयोजित होते हैं। इस कारण भी ये अधिक बड़े और अधिक महत्वपूर्ण बन गए हैं।सामान्यतः इन चारों मेलों का धार्मिक और ज्योतिष शास्त्रीय महत्व अधिक माना गया है, लेकिन इनके सामाजिक महत्व को भी कम नहीं कहा जा सकता है। वैसे इन चारों कुंभों में साधु-महात्मा बड़ी मात्रा में आते हैं, और अपने अपने मतों का प्रचार प्रसार भी करते हैं। इस तरह कुंभ महापर्व सामाजिक जीवन के परिवर्तन और नियंत्रण की स्थितियों को समझने और उनके संबंध में आवश्यक दिशा निर्देश प्रदान करने के लिए अत्यंत ही उपयोगी सिद्ध होते हैं। -
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आलेख- पवन गुप्ता, संयुक्त संचालक जनसंपर्क
रायपुर : छत्तीसगढ़ के नीति निर्धारकों को दो कारकों पर विशेष ध्यान रखना पड़ता है एक तो यहां की आदिवासी बहुल आबादी और दूसरी यहां की कृषि प्रधान अर्थव्यस्था। राज्य की नीतियां तय करते समय इन दोनांे की अनदेखी नहीं की जा सकती, दोनों को ही बराबर महत्व देना पड़ता है। हाल ही में केन्द्रीय गृह मंत्री श्री अमित शाह ने छत्तीसगढ़ सहित देश में माओवादी आतंक के खात्मे के प्रति केन्द्र सरकार की प्रतिबद्धता को दोहराया है। केन्द्र के इस फैसले ने राज्य को समृद्धि के रास्ते में आगे जाने के संकल्प को और मजबूती दी है।
छत्तीसगढ़ में डबल इंजन की सरकार बनते ही यहां मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय के नेतृत्व में राज्य सरकार ने विकसित भारत और विकसित छत्तीसगढ़ के संकल्प को लेकर काम करना शुरू कर दिया है। लगभग तीन करोड़ की आबादी वाला यह राज्य आत्मनिर्भर और विकसित भारत के निर्माण में योगदान दे रहा है। साय सरकार ने छत्तीसगढ़ की बागडोर संभालते ही राज्य के विकास की दिशा को तय करने वाले दो प्रमुख कारकों आदिवासी समुदाय और किसान दोनों पर शुरू से ही ध्यान दिया है। राज्य में लोगों को स्वच्छ और पारदर्शी प्रशासन के वायदे को लेकर आयी साय सरकार आई.टी. और ए.आई आधारित प्रणाली को पूरी प्रतिबद्धता के साथ अपनाना शुरू कर दिया है।
राज्य में कृषक उन्नति योजना खेती-किसानी के लिए एक नया संबल बनी है। इसके चलते कृषि समृद्ध और किसान खुशहाल हुए हैं। राज्य में खेती-किसानी को नई ऊर्जा मिली है। राज्य में उन्नत खेती को बढ़ावा मिल रहा है। राज्य सरकार के किसान हितैषी फसलों का असर अब खेती-किसानी में साफ दिखाई देने लगा है। उन्नत कृषि यंत्रों का उपयोग खेती-किसानी में बढ़ा है। बीते खरीफ विपणन वर्ष में किसानों से 145 लाख मीट्रिक टन धान समर्थन मूल्य पर खरीदा गया है, जिसके एवज में 32 हजार करोड़ रूपए भुगतान किया गया है। छत्तीसगढ़ सरकार ने अपने संकल्प के अनुरूप राज्य के किसानों को दो साल के धान की बकाया बोनस राशि 3716 करोड़ रूपए का भुगतान किया। कृषक उन्नति योजना के अंतर्गत किसानों को धान की मूल्य की अंतर राशि के रूप में 13 हजार 320 करोड़ रूपए का भुगतान किया गया है। इस तरह किसानों को कुल मिलाकर 49 हजार करोड़ रूपए सीधे उनके बैंक खातों में अंतरित किए गए।
छत्तीसगढ़ में किसानों से धान खरीदी शुरू से ही चुनौतीपूर्ण रही है। मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय की सरकार ने समर्थन मूल्य पर 14 नवम्बर से धान खरीदी करने जा रही है। धान उपार्जन केन्द्रों में छत्तीसगढ़ सरकार के दिशा-निर्देश के मुताबिक सभी तैयारियां की जा रही है। इस साल राज्य में बेहतर बारिश एवं अनुकूल मौसम के चलते धान के विपुल उत्पादन की उम्मीद है। इसको देखते हुए राज्य में समर्थन मूल्य पर 160 लाख मीटरिक टन धान उपार्जन अनुमानित है। राज्य में किसानों से 31 जनवरी 2025 तक धान की खरीदी की जाएगी।
राज्य के किसानों को खेती-किसानी के लिए वर्तमान खरीफ सीजन में 6500 करोड़ रूपए के अल्पकालीन ऋण बिना ब्याज के दिए जा चुके हैं। अधिक से अधिक किसानों को किसान क्रेडिट कार्ड की सुविधा उपलब्ध कराई जा रही है। यहां के किसान अब ई-नाम पोर्टल (कृषि बाजार) के माध्यम से अपने उपज का अधिकतम मूल्य प्राप्त कर सकेंगे। किसानों के हित में छत्तीसगढ़ सरकार ने एक महत्वपूर्ण फैसला लेते हुए छत्तीसगढ़ कृषि उपज मंडी अधिनियम में संशोधन किया है। इसके तहत अन्य प्रदेश के मंडी बोर्ड अथवा समिति के एकल पंजीयन अथवा अनुज्ञप्तिधारी व्यापारी एवं प्रसंस्करणकर्ता, राज्य के किसानों से उनकी उपज खरीद सकेंगे, इससे उत्पादक किसानों को लाभ होगा। किसानों को उन्हें पंजीयन की जरूरत नहीं होगी।राज्य के बस्तर और अन्य हिस्सों में माओवादी आतंक को समाप्त करने के लिए सख्ती से कदम उठाए गए हैं। इसमें केन्द्र और राज्य सरकार आपसी तालमेल बनाए हुए हैं। माओवादी आतंक भी अब कुछ ही क्षेत्रों में सिमट कर रह गया है। यहां नियद नेल्लानार जैसी नवाचारी योजना से लोगों का सरकार के प्रति फिर से विश्वास लौट रहा है।
माओवादी आतंक से प्रभावित क्षेत्रों में सुरक्षा कैम्प के आस-पास के दायरे में लोगों की मूलभूत सुविधाओं के साथ-साथ केन्द्र और राज्य सरकार के शासकीय योजनाओं का लाभ दिलाया जा रहा हैं। माओवादी आतंक से प्रभावित जिलों में युवाओं को तकनीकी व्यवासायिक पाठ्यक्रम में पढ़ाई के लिए ब्याज मुक्त ऋण की सुविधा दी जा रही हैं। इस पहल से आदिवासी समुदाय की युवाओं को आगे बढ़ने का अवसर मिलेगा।
वनवासियों की आय बढ़ाने के लिए वनोपज के संग्रहण और प्रसंस्करण पर सरकार विशेष ध्यान दे रही हैं। लघु वनोपज की खरीदी समर्थन मूल्य पर हो रही है। इन लघु वनोपजों का वनधन केन्द्रों में प्रसंस्करण भी किया जा रहा है। वनवासियों को तेन्दूपत्ता पारिश्रमिक भी बढ़ाकर 5500 रूपए प्रति मानक बोरा किया गया है। महिलाओं के सशक्तीकरण के लिए महतारी वंदन योजना में 70 लाख महिलाओं को हर महीने एक-एक हजार रूपए की राशि उनके बैंक खाते में सीधे अंतरित की जा रही है। अब तक इसकी नौ किस्त जारी की जा चुकी है।
प्रदेश में नई शिक्षा नीति भी लागू कर दी गई है। राज्य में मातृभाषा में बच्चों को शिक्षा देने के लिए नए पाठ्यक्रम तैयार किए जा रहे हैं। जनजातीय समुदाय के बच्चों के लिए बेेहतर शिक्षा उपलब्ध कराने के लिए 75 एकलव्य आदर्श आवासीय विद्यालय संचालित किए जा रहे हैं। माओवादी प्रभावित क्षेत्र के बच्चों के लिए 15 प्रयास आवासीय विद्यालय का संचालन किया जा रहा है। इन विद्यालयों में मेधावी विद्यार्थियों को अखिल भारतीय मेडिकल और इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा की तैयारी कराई जा रही हैं। नई दिल्ली में संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा की तैयारी के लिए संचालित यूथ हॉस्टल में सीटों की संख्या 50 से बढ़ाकर 185 कर दी गई है। -
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रायपुर : अपने घर की परछी में मक्के का बीज निकालती रामबाई खुश है कि इस बार दशहरा-दीपावली के त्यौहार के समय बहुत ज्यादा आर्थिक समस्याओं से नहीं जूझना पड़ेगा। कोरबा शहर से लगभग सौ किलोमीटर दूर जंगल और पहाड़ी इलाकों में रहने वाली रामबाई के लिए जीवनयापन किसी जद्दोजहद से कम नहीं है। वह बताती है कि जब से मुख्यमंत्री श्री विष्णुदेव साय ने महतारी वंदन योजना शुरू की है तब से उन्हें अपने खाते में हर माह एक हजार रुपए आने की गारण्टी मिल गई है। उनका कहना है कि वह आने वाले दशहरा-दीपावली को बीते बरसो की तुलना में बहुत बेहतर तरीके से मनाएगी।
कोरबा जिले के पोड़ी उपरोड़ा ब्लॉक में दूरस्थ क्षेत्र ग्राम जजगी में रहने वाली रामबाई आयाम बताती है कि इस बार बरसात ठीक-ठाक हुई है लेकिन पहाड़ी इलाकों में पानी का ठहराव कुछ देर तक नहीं रहता। इन इलाकों में मक्के की फसल लेनी होती है। उन्होंने अपनी बाड़ी में मक्के की फसल ली थी, अब मौसम के साथ ही मक्के को तोड़कर बीज अलग कर रही है। रामबाई ने बताया कि उनके क्षेत्र में धान का फसल लेना बहुत बड़ी चुनौती है। कई बार मौसम दगा दे जाता है।बारिश नहीं होने पर भी खेत में ही फसल सूख जाते हैं। ऐसे में ज्यादातर ग्रामीण मक्के सहित कम पानी में पैदा होने वाले फसलों पर ध्यान देते हैं और जीविकोपार्जन के लिए बकरी सहित अन्य पशुओं का पालन करते हैं। रामबाई ने बताया कि उनके गाँव में अधिकांश गरीब परिवार निवास करते हैं। गांव की ज्यादातर महिलाएं जीवकोपार्जन के लिए बहुत जद्दोजहद करती हुई घर चलाती है, उन्हें दिन भर कुछ न कुछ परिश्रम करना पड़ता है। ऐसे में जब महतारी वंदन योजना की शुरूआत हुई तो कुछ महिलाओं को भरोसा नहीं था कि हर माह उनके खाते में एक हजार आएगा।अब जबकि 7 महीने हो गए हैं और एक हजार रुपये निरंतर खाते में आ रहा है तो उनका भरोसा और विश्वास छत्तीसगढ़ सरकार के प्रति बढ़ता ही जा रहा है। रामबाई ने बताया कि आने वाले समय में दशहरा-दीपावली है। इस दौरान माह में मिलने वाली एक हजार की राशि उनके जैसी अनेक जरूरतमंद महिलाओं के लिए खुशियों के साथ त्यौहार मनाने में मददगार साबित होगी। इस राशि से वे कुछ कपड़े, मिठाई सहित अन्य जरूरी सामग्री अवश्य खरीद पाएंगी। -
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ईट का व्यापार से प्रतिदिन 10 हजार का शुद्ध लाभ
रायपुर : मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय की पहल पर जिले में महिलाओं को सशक्त और आत्मनिर्भर बनाने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। इसी कड़ी में जशपुर कलेक्टर डॉ. रवि मित्तल के मार्गदर्शन में स्थानीय महिलाओं को स्वरोजगार के अवसर प्रदान किए जा रहे हैं। महिलाएं आर्थिक रूप से सशक्त हो इसके लिए स्व सहायता समूह गठित कर विविध गतिविधियों से जोड़कर नए नए रोजगार के अवसर उपलब्ध कराए जा रहे हैं। और जिले के महिला आर्थिक रूप से मजबूत बनकर लखपति दीदी के रूप में जाने जा रहे है।यह कहानी एक ऐसी महिला की है जो करोड़पति बनने की राह पर अग्रसर है जिसने एक मिसाल कायम किया है और न जाने कितनों को प्रेरित कर रही है। अनिता साहू जशपुर जिले के काँसाबेल विकासखण्ड की नरियाड़ाँढ ग्राम पंचायत प्रगति महिला ग्राम संगठन में नारी शक्ति स्व सहायता समूह की सदस्य है और कल्पना संकुल संगठन चेतना के अंतर्गत एफएलसीआरपी के पद पर बिहान कार्यक्रम से जुड़ी हुई है। आज उद्यमिता विकास के क्षेत्र में इनका नाम सबसे आगे है, अपनी सोच की बदौलत इस मुकाम में पहुंची है। 2016 के सी आरपी राउंड मे समूह से जुड़ी और 2017 मे एफएलसीआरपी बनी।शिक्षक पति अपने अध्यापन कार्य मे वयस्त रहते थे अनीता ने सोचा क्यों नहीं छोटा-मोटा कार्य कर अपनी आय में वृद्धि की जाए, उसने यू ट्यूब देखा और फ्लाई एश ब्रिक्स बनाने का कार्य शुरू करने की सोची । 2017 में बैंक लिंगकिज के माध्यम से 1 लाख रुपये का लोन लिया एवं सीआइएफ से 60 हजार की राशि लेकर करीब डेढ़ लाख में फ्लाई एश ब्रिक्स बनाने का छोटा मशीन खरीदा और बिजनस शुरू किया। आस पास से मांग आने लगी और धीरे धीरे पहचान बनने लगी और लाभ होने लगा। समूह की अन्य 3 दीदियों को कार्य से जोड़ मांग की अधिकता एवं लाभ कमाने लगी और व्यापार मे इनकी सोंच बढ़ने लगी की और ज्यादा उत्पादन किया जाने लगासकारात्मक सोच से अनिता की दशा दिशा बदल गई उसने 15 लाख का लोन लिया। 13 लाख का हीपकों फ्लाई एश ब्रिकक्स मशीन खरीदा 1.5 लाख मे 20 केवी का ट्रांसफार्मर लगाया और उत्पादन शुरू कर दिया। आज के दिनों मे 8 समूह सदस्य 3 पुरुष काम कर रहे हैं हैं और प्रतिदिन 10000 ईट का उत्पादन कर प्रतिदिन खर्च काट कर 10000 रु प्रतिदिन शुद्ध लाभ कमा रह है। महीने में 22-25 दिनों के कार्य से 2.2 लाख से लेकर 2.5 लाख की मासिक आमदनी हो रही है। शुद्ध करीब 10000 का मासिक विद्युत खर्च भी वहन कर रही है। राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन की टीम उनसे हिसाब किताब के बारे में जानकारी लेने गई थी।शासकीय मांग के अनुसार प्रधानमंत्री आवास निर्माण में 8 इंच एवं 9 इंच ईट की आपूर्ति प्रतिदिन की जा रही है। कच्चा माल (एश) खरसिया रायगढ़ से आता है, हाइवा मे करीब 30 टन, 650 रु प्रति टन के हिसाब से खरीदा जाता है, जो मात्र ढुलाई खर्च होता है एश मुफ़्त मे मिलता है । इसके अतिरिक्त रेत एवं सिमेन्ट भी लगता है और केमिकल भी इस्तेमाल होता है। 1 ईट तैयार करने मे 3.20रु लगता है जो 4 रु से 4.25 रु तक बिकता है और भी तकनीकी पहलू हैं। परंतु यह ईट लोकप्रिय है, इसकी मांग पूर्ति पूरी नहीं हो पा रही है इसलिए प्रतिदिन उत्पादन बढ़ाने की सोंच अनीता साहू ने अपने जहन मे रखा है ।अनीता साहू की बातों मे मेहनत और आत्मविश्वास की मुस्कान झलक रही थी, बहुत ही शालीनता से अपनी बात मनोरा से भ्रमण करने वाली समूह की दीदियों को बता रही थी । मनोरा की दीदियां भी उत्साहित है और फ्लाई एश ब्रिकक्स का व्यापार करने हेतु उद्योग विभाग से मिलने जा रही है, राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन जिला दल उनका सहयोग कर रहें हैं। अनीता साहू ने जिस तरह की मिसाल प्रस्तुत किया है उस से सभी बहुत प्रेरित है। -
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गांवों में लौटी रौनक: सुरक्षा और विकास ने भरे खुशहाली के रंग
रायपुर : प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर बस्तर के लोग अपनी संस्कृति और विशेष परंपराओं के निर्वहन के लिए जाने जाते हैं। कठिन परिस्थितियों में भी उन्होंने खुशहाल जीवन जीने के लिए स्वयं को प्रकृति के अनुकूल बनाए रखा, अपने को संभाले रखा, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में उनके खुशहाल जीवन को माओवादियों की नजर लग गई थी, नाच-गाना बंद हो गए, मांदर की थाप मंद पड़ गई, सड़कें सुनी हो गई और स्कूल बंद होने लगे। स्थानीय हाट बाजार भी बंद हो गये, जहां से स्थानीय लोग अपनी छोटी-छोटी जरूरतों की खरीदी करते थे। हर हाल में अपनी जीवन में खुशियों के रंग सहेजकर रखने वाले बस्तर के वनवासियों की जिंदगी धीरे धीरे बेरंग हो गई।
माओवादी गतिविधियों के कारण शासन-प्रशासन द्वारा संचालित योजनाओं का समुचित लाभ भी अंदरुनी इलाकों में स्थानीय लोगों को नहीं मिल रहा था। इस सब समस्याओं से मुक्ति दिलाने के लिए मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय की सरकार द्वारा ‘‘नियद नेल्ला नार‘‘ (अपका अच्छा गांव) संचालित की जा रही है। जिसमें सुरक्षा कैम्पों के पांच किलोमीटर के दायरे वाले गांवों में केन्द्र और राज्य सरकार की योजनाओं का लाभ शतप्रतिशत हितग्राहियों तक पहुंचाने की मुहिम चलायी जा रही है। इसका असर भी देखने को मिल रहा है। स्थानीय हाट बाजार अब गुलजार होने लगे हैं। बंद पड़े हाट बाजार और स्कूल अब फिर से शुरू हो रहे हैं। जिससे बस्तर की तस्वीर बदलती जा रही है और बस्तर में पुनः रौनक लौटी है।
आदिवासी क्षेत्रों में वामपंथी उग्रवाद को रोकने के लिए राज्य सरकार ने सुरक्षा और विकास की नीति को मूल मंत्र बनाया है, इसके सार्थक परिणाम दिख रहे हैं। इन इलाकों में रहने वाले लोगों को शासकीय योजनाओं का लाभ दिलाने के साथ-साथ उन्हें सभी जरूरी सुविधाएं भी दी जा रही है। बीते 9 महीनों के दौरान मुठभेड़ों में 156 माओवादियंों को ढेर किया गया। पिछले 6 महीने में 32 फारवर्ड सुरक्षा कैम्पों की स्थापना की गई। निकट भविष्य में दक्षिण बस्तर एवं माड़ में रि-डिप्लायमेंट द्वारा 29 नए कैम्पों की स्थापना भी प्रस्तावित है।
नियद नेल्ला नार (आपका अच्छा गांव) योजना नक्सल प्रभावित इलाकों में गेम चेन्जर्स साबित हो रही है। माओवाद प्रभावित क्षेत्रों में स्थापित नए कैम्पों के आसपास के 5 किलोमीटर के दायरे में आने वाले गांवों एवं ग्रामीणों को 17 विभागों की 59 हितग्राहीमूलक योजनाओं और 28 सामुदायिक सुविधाओं के तहत आवास, अस्पताल, पानी, बिजली, पुल-पुलिया, स्कूल इत्यादि मूलभूत संसाधन उपलब्ध कराए जा रहे हैं। मुख्यमंत्री की पहल पर छत्तीसगढ़ के माओवादी आतंक प्रभावित जिलों के विद्यार्थियों को तकनीकी एवं व्यावसायिक शिक्षा के लिए ब्याज रहित ऋण मिलेगा।
आदिवासी समुदाय की बसाहट ज्यादातर वनांचल क्षेत्रों में है। इन क्षेत्रों में सड़क नेटवर्क बढ़ाया जा रहा है। कई ऐसे हाट बाजार जो वीरान हो गए थे, वे अब पुनः गुलजार होने लगे हैं। माओवादी क्षेत्रों में बारहमासी सड़कें और पुल-पुलियों का निर्माण किया जा रहा है, जो दिलों को जोड़ने का काम कर रही है। अतिसंवेदनशील क्षेत्रों में पक्की सड़कों के निर्माण, स्कूलों के नियमित रुप से खुलने, उचित मूल्य दुकानों के बेहतर संचालन से बस्तर की तस्वीर बदलने लगी है। केन्द्र सरकार द्वारा नगरनार में देश का सबसे बड़ा इस्पात संयंत्र भी शुरू किया गया है, इससे बस्तर अंचल के विकास को नई गति मिली है और लोगों के लिए रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे।
बस्तर जिले के दरभा विकासखण्ड अंतर्गत ग्राम कलेपाल में बारहमासी सड़क का निर्माण किया गया है, बिजली पहुंच गयी है। यहां का साप्ताहिक बाजार जो बंद हो गया था, वह फिर से शुरु हो गया है। दंतेवाड़ा जिले के कटेकल्याण से बस्तर जिले के कलेपाल गांव तक पक्की सड़क का निर्माण तेजी से किया जा रहा है। दरभा ब्लाक के अंतर्गत आने वाले ग्राम कोलेंग में बारहमासी सड़क का निर्माण हुआ है, बिजली पहुंची है, आंगनबाड़ी केन्द्र प्रारंभ हुआ है। लोहंडीगुड़ा विकासखण्ड के ग्राम बोदली में उचित मूल्य दुकान खोली गयी है तथा पहुंच मार्ग का निर्माण किया जा रहा है।
सुकमा जिले के कोंटा विकासखंड अंतर्गत आने वाले गांव पूवर्ती में बनी राशन दुकान जल्द ही शुरू होगी। इस गांव में राशन दुकान नहीं होने के कारण यहां के लोगों को कई किलोमीटर दूर पैदल चल कर दूसरे गांव में राशन लेने जाना पड़ता है। अब गांव में ही राशन दुकान खुलने से ग्रामीणों को उनके ही गांव में राशन मिलने लगेगा। शासन-प्रशासन की पहुंच से कोंसो दूर बसा, यह गांव दशकों से मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रहा था, लेकिन अब यहां शासन की योजनाएं पहुंचने लगी है।
आखिर क्यों खास है पूवर्ती गांव
सुकमा जिले के अंदरूनी व अतिसंवेदनशील क्षेत्र में बसा हुआ पूवर्ती गांव एक वक्त नक्सलियों का सबसे सुरक्षित ठिकाना हुआ करता था। एक करोड़ रूपए का ईनामी नक्सली हिड़मा तथा टेकलगुड़ा कैंप निर्माण के दौरान नक्सली हमले की घटना का मास्टरमाइंड देवा का यह पैतृक गांव होने के कारण हमेंशा चर्चा में रहा है। माओवादियों का प्रभाव में होने के कारण पूवर्ती गांव में शासन की योजनाएं नहीं पहुंच पा रही थी, लेकिन अब इस गांव में सुरक्षा कैम्प खुलने से यहां के लोगों को तेजी से मूलभूत सुविधाएं सुलभ होने लगी है।
नियद नेल्ला नार योजना का ही यह परिणाम है कि सुकमा जिले के अंदरूनी क्षेत्र के गांव नवापारा एल्मागुंडा में डीटीएच का इंस्टालेशन किया गया है, जिसका लाभ बच्चों के साथ-साथ ग्रामीण भी उठा रहे हैं। मनोरंजन के साथ ही वे देश-प्रदेश की खबरों से भी रूबरू हो रहे हैं। मोबाइल टॉवर लगने से ग्रामीण अब शासकीय योजनाओं की जानकारी प्राप्त कर रहे हैं।
नियद नेल्ला नार योजना के चलते ही नारायणपुर जिले के ओरछा विकासखण्ड के गांवों में प्रधानमंत्री एवं मुख्यमंत्री आवास योजना के तहत् 12 हितग्राहियों के मकान बनाने का काम पूर्ण हो चुका है। आंगनबाड़ी केन्द्रों में यहां के बच्चों को पूरक-पोषण आहार के साथ ही स्कूल पूर्व प्राथमिक शिक्षा मिलेगी। ग्राम मसपुर में नया उचित मूल्य दुकान भी स्थापित किया गया है, जिससे यहां के ग्रामीणों को अब अपने गांव में ही राशन सामग्री प्राप्त होगी। गांव में शुद्ध पेजयल उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए हैण्डपंप के स्थापना भी तेजी से की जा रही है। कोहकामेटा से कानागांव तक और आकाबेड़ा से कलमानार तक सड़क का निर्माण किया जाएगा।
बीजापुर जिले के चिक्कापल्ली में नियद नेल्ला नार योजना के तहत प्राथमिक शाला भवन और आंगन बाड़ी भवन का निर्माण प्रक्रियाधीन है। उचित मूल्य दुकान खोलने के लिए गांव में भवन बनाया जा रहा है। पेयजल सुविधा के लिए सोलर ड्यूल पंप स्थापित किया गया है। इसी प्रकार उड़तामल्ला पंचायत के ग्राम यमपुर में ग्रामीणों के लिए 08 नग बोर खनन, सोलर हाई मास्ट की स्थापना की गई है। गांव में प्राथमिक शाला भवन, आंगनबाड़ी भवन, उचित मूल्य की दुकान का भी निर्माण किया जा रहा है। अतिसंवेदनशील इलाके के इन गांवों की यह बदलती तस्वीर, बदलते बस्तर की बानगी है। -
आलेख - श्री लक्ष्मीकांत कोसरिया, उप संचालक, जनसंपर्क
रायपुर : मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय के मार्गदर्शन में राज्य सरकार द्वारा मानव हाथी द्वंद को रोकने लगातार जन जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है। सरगुजा से ‘‘हमर हाथी हमर गोठ’’ रेडियो कार्यक्रम का प्रसारण कर हाथियों के विचरण की जानकारी स्थानीय लोगों को दी जा रही है। मुख्यमंत्री श्री साय के निर्देश पर राज्य सरकार द्वारा स्थानीयजनों को अपनी ओर हाथियों की सुरक्षा के प्रति संवेदनशील बनाने गज यात्रा अभियान चलाई जा रही है। साथ ही ‘‘गज संकेत एवं सजग एप’’ के माध्यम से भी हाथी विचरण की जानकारी दी जा रही है।
तमोर पिंगला अभयारण्य की विस्तृत सीमाओं के पास स्थित घुई वन रेंज के रामकोला हाथी राहत और पुनर्वास केंद्र वन्यजीव संरक्षण और प्रबंधन के लिए छत्तीसगढ़ वन विभाग की प्रतिबद्धता का उदाहरण है। केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण (सीजेडए), नई दिल्ली से सैद्धांतिक मंजूरी के साथ 2018 में यह केन्द्र आधिकारिक तौर पर स्थापित किया गया। यह 4.8 हेक्टेयर क्षेत्र में फैला है जो हाथियों की विशेष देखभाल और प्रबंधन के लिए समर्पित है। यह छत्तीसगढ़ का एकमात्र हाथी राहत और पुनर्वास केंद्र है, जो सीजेडए के दिशा-निर्देशों के तहत संचालित होता है।
उल्लेखनीय है कि राज्य में हाथी के संवर्धन के लिए यहां के वन अनुकूल है। राज्य का 44 प्रतिशत क्षेत्र वनों से आच्छदित है, जिसमें हाथियों के संरक्षण और संवर्धन के लिए वातावरण उपयुक्त है। यहां के अनुकूल वातावरण के कारण हाथियों की संख्या में वृद्धि हो रही है। राज्य में वनों के संवर्धन के लिए ‘‘एक पेड़ मां के नाम’’ अभियान के तहत वृक्षारोपण किया जा रहा है तथा विभाग द्वारा 3 करोड़ 80 लाख पौधे लगाने का लक्ष्य रखा गया था। महतारी वंदन योजना के तहत लाभान्वित महिलाओं को भी इस अभियान से जोड़ा गया है।हाथी रिजर्व सरगुजा के प्रबंधन के तहत इस केन्द्र में नौ हाथियों का एक संपन्न समुदाय है, जिसमें तीन उत्साही शावक भी शामिल हैं। वर्ष 2018 के प्रारंभ में, मानव-हाथी संघर्ष व्यवहार को देखते हुए महासमुंद वन प्रभाग के पासीद रेंज में एक अस्थायी शिविर में कर्नाटक से पांच कुमकी हाथियों को लाया गया था। एक साल बाद, इन हाथियों को रामकोला स्थानांतरित कर दिया गया, जहाँ उन्हें विशेष देखभाल हाथी रिजर्व सरगुजा के उप निदेशक श्री व्ही. श्रीनिवास राव के मार्ग दर्शन में सहायक पशु चिकित्सा अधिकारी डॉ अजीत पांडे द्वारा की जाती है। कर्नाटक के दुबारे हाथी शिविर में प्रशिक्षित कुशल महावत यह सुनिश्चित करते हैं कि हाथियों को उचित देखभाल मिले।श्री राव ने केंद्र की महत्वपूर्ण भूमिका पर कहा कि जंगली हाथियों द्वारा उत्पन्न चुनौतियों से निपटने के लिए वन विभाग द्वारा इस द्वंद को कम करने पूरी लगन से कार्य किया जा रहा है। हाथी राहत एवं पुनर्वास केंद्र इन प्रयासों का केंद्र है, जो विशेष रणनीतियों को नियोजित करता है और स्थानीय समुदायों और वन्यजीवों के बीच सह-अस्तित्व को बढ़ावा देता है।” इस केंद्र में हाथियों में प्रमुख हैं कुमकी नर तीर्थराम, दुर्याेधन और परशुराम, साथ ही मादा गंगा और योगलक्ष्मी, जिन्होंने हाल ही में क्रमशः एक नर और मादा बच्चे को जन्म दिया है। इसके अतिरिक्त यह केंद्र जशपुर वन प्रभाग से बचाए गए मादा बच्चे जगदंबा की देखभाल भी करता है, जिसे वन विभाग द्वारा उसके झुंड के साथ फिर से मिलाने के असफल प्रयासों के लिए जाना जाता है।वर्ष 2018 में अपनी स्थापना के बाद से यह हाथी राहत और पुनर्वास केन्द्र राज्य में बाघों, तेंदुओं और जंगली हाथियों सहित वन्यजीवों के प्रबंधन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। केन्द्र के प्रशिक्षित कुमकी हाथी मानव-वन्यजीवन संघर्षों को कम करने और वन्यजीवों की आवाजाही को निदेर्शित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जिससे स्थानीय समुदायों के लिए हताहत होने और वित्तीय नुकसान में काफी कमी आयी है। उनके प्रयासों में आक्रामक जंगली हाथियों को जंगल में वापस खदेड़ना और वन विभाग और भारतीय वन्यजीव संस्थान के सहयोग से उनके रेडियो-कॉलर लगाने में सहायता करना शामिल है, जिससे वन्यजीव आबादी स्थिर होती है और संरक्षण प्रयासों को बढ़ावा मिलता है।इन कुमकी हाथियों के प्रभाव को कई उल्लेखनीय बचाव अभियानों द्वारा चिह्नित किया जा चुका है। कोरबा वन प्रभाग से गणेश और प्रथम जैसे जंगली हाथियों के साथ-साथ सरगुजा वन मंडल से प्यारे, महान, मैत्री, कर्मा, मोहनी, गौतमी और बेहरादेव जैसे अन्य हाथियों को इन प्रयासों के माध्यम से प्रभावी ढंग से प्रबंधन किया गया है। इसके अतिरिक्त, उन्होंने मनेंद्रगढ़ वन प्रभाग के जनकपुर रेंज से एक तेंदुए और सूरजपुर वन प्रभाग के ओढगी रेंज से एक गंभीर रूप से घायल बाघिन को बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। बचाव के बाद, बाघिन को चिकित्सा उपचार के लिए रायपुर में जंगल सफारी और उसके बाद पुनर्वास के लिए अचानकमार टाइगर रिजर्व में स्थानांतरित कर दिया गया। बाघिन अब स्वस्थ है और अच्छी तरह से अनुकूलित हो गई है। ये ऑपरेशन पेशेवर देखभाल और ध्यान के साथ जटिल वन्यजीव आपात स्थितियों के प्रबंधन में केंद्र की विशेषज्ञता को उजागर करते हैं।केंद्र में चिकित्सा देखभाल और आवास प्रबंधन उच्चतम पशु चिकित्सा मानकों का पालन करता है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि हाथियों के साथ कभी भी कोई दुर्व्यवहार न किया जाए। सभी हाथियों को नियमित टीकाकरण, परजीवी-रोधी उपचार मिलते हैं, और उन्हें एक स्थिर, रोग-मुक्त वातावरण प्रदान करने के लिए अनुरूप पोषण योजनाएं दी जाती हैं। महावतों, चारा काटने वालों और पशु चिकित्सकों द्वारा नियमित देखभाल, साथ ही दैनिक जंगल की सैर, यह सुनिश्चित करती है कि हाथी स्वस्थ और प्राकृतिक व्यवहार बनाए रखें तथा हर कदम पर उनकी भलाई को प्राथमिकता दी जाए।केंद्र की असाधारण देखभाल का एक मार्मिक उदाहरण एक जंगली हाथी सोनू है जिसे अचानकमार टाइगर रिजर्व से पकड़ा गया था और बाद में सिहावल सागर हाथी शिविर में स्थानांतरित कर दिया गया था। थोड़े समय रहने के बाद, सोनू को इस केंद्र में ले जाया गया, जहाँ उसे नियमित स्वास्थ्य जाँच और सावधानीपूर्वक तैयार की गई पोषण योजना सहित विशेष देखभाल मिल रही है, जिससे उसकी सेहत और उसके नए वातावरण को सहज अनुकूलन सुनिश्चित हो रहा है।
वरिष्ठ आई.एफ.एस. अधिकारी श्री प्रेम कुमार और श्री के.आर. बरहाई ने बताया कि इस केंद्र में हाथियों की सर्वाेत्तम देखभाल सुनिश्चित की जाती है, साथ ही नियमों और विनियमों के अनुसार सुविधाओं में और सुधार के लिए गंभीर प्रयास किए जा रहे हैं। केंद्र में सभी हाथी अपने नए वातावरण में पनप रहे हैं। उनका बेहतर स्वास्थ्य पूरे स्टाफ द्वारा की गई समर्पण और देखभाल का प्रमाण है। छत्तीसगढ़ में वन्यजीव संरक्षण प्रयासों को आगे बढ़ाने और मानव-पशु संघर्षों के प्रभावी प्रबंधन में हाथी राहत और पुनर्वास केंद्र की महत्वपूर्ण भूमिका है। -
द न्यूज़ इंडिया समाचार सेवा
साय सरकार की दूरदर्शी सोच से मजबूत हुई ईज ऑफ़ लिविंग की अवधारणा
शासकीय विभागों और जनसरोकार से जुड़े कार्यों के डिजिटलाइजेशन से आई पारदर्शितारायपुर : डबल इंजन की सरकार में छत्तीसगढ़ के विकास की रफ़्तार नये कीर्तिमान भी स्थापित कर रही है जो राष्ट्रीय स्तर पर भी छत्तीसगढ़ की पहचान एक अलग मुकाम तक पहुंचा रही है| छत्तीसगढ़ के सड़क, शिक्षा, इंफ्रास्ट्रक्चर और स्वास्थ्य के लिए केंद्र से छत्तीसगढ़ को 1171 करोड़ रूपए मिले हैं| छत्तीसगढ़ केंद्र सरकार की पूंजीगत व्यय यानी कैपेक्स के लिए राज्यों को विशेष सहायता योजना के तहत टॉप-5 पर पहुँच गया है| छत्तीसगढ़ असम, गुजरात, हिमाचल, त्रिपुरा, गोवा और सिक्किम जैसे राज्यों की तुलना में आगे है|
ईज ऑफ़ लिविंग की अवधारणा को मजबूत करने और लोगों के जीवन स्तर में सुधार लाने की दिशा में छत्तीसगढ़ सरकार लगातार कदम बढ़ा रही है| बस्तर से लेकर सरगुजा तक हर वर्ग के लोगों की समस्याओं को समझकर उनके हित में कार्य और त्वरित निर्णय से जनता और सरकार के बीच का रिश्ता मजबूत हुआ है| यही कारण है कि केंद्र सरकार के कैपेक्स में पूरे देश में छत्तीसगढ़ टॉप-5 में है|
मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय के नेतृत्व में छत्तीसगढ़ सरकार ने एक नया विभाग भी बनाया है| सुशासन एवं अभिसरण (गुड गवर्नेंस एवं कन्वर्जेंस) विभाग अन्य शासकीय विभागों में जनता को आने वाली समस्याओं को समझकर उनके समाधान पर कार्य करेगी| हितग्राहियों को सरकार की योजनाओं का सौ फीसदी लाभ सुनिश्चित करने के लिए कलेक्टर स्तर पर परफॉरमेंस रिपोर्ट भी तैयार की जाएगी| शासकीय विभागों और जनसरोकार से जुड़े कार्यों के डिजिटलाइजेशन से न केवल कार्यों में पारदर्शिता आ रही है बल्कि विभागों का परफोरर्मेंस भी बेहतर हो रहा है| सरकार के प्रति लोगों का विश्वास बढ़ रहा है|
शासकीय विभागों को समय के अनुरूप अपडेट करने के लिए भी छत्तीसगढ़ सरकार अहम् कदम उठा रही है, जिसमें लोक सेवा गारंटी अधिनियम के तहत जनता से जुड़ी 90 सुविधाओं का डिजिटलीकरण, शासकीय खरीदी में पारदर्शिता लाने के लिए जैम पोर्टल की शुरुआत| सभी शासकीय विभाग के लिए अलग-अलग पोर्टल का निर्माण और ई-ऑफिस की दिशा में बढ़ने की पहल, शासकीय विभागों से सम्बंधित विभिन्न व्यापारिक और औद्योगिक इकाईयों के एनओसी की प्रक्रिया के सरलीकरण जैसे निर्णय ईज ऑफ़ लिविंग की अवधारणा को मजबूती देने के लिए मुख्यमंत्री श्री साय की दूरदर्शी सोच को दर्शाती है| मुख्यमंत्री के नेतृत्व में छत्तीसगढ़ में डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढांचे के स्वरुप पर आधारित केंद्र सरकार की नीतियों से आमजनों के जीवन को बेहतर बनाने के मिशन पर भी तेजी से कार्य हो रहा है|
प्रदेश के युवाओ को उद्यम से जोड़ने की बात हो या किसानों को अल्पकालीन कृषि ऋण वितरित करने की छत्तीसगढ़ सरकार दोनों स्तर पर परिवर्तनकारी कदम उठा रही है जिसका परिणाम दिखने लगा है| यही कारण है कि खर्च और निवेश की सम्भावनाओं वाले देश के 788 जिलों में छत्तीसगढ़ का डीपीआई स्कोर 37.0 है जो दिल्ली 68.2, पश्चिम बंगाल 42.9, उत्तराखंड 41.0 के मुकाबले बेहतर है| दूसरे राज्यों की तुलना में छत्तीसगढ़ में लगातार विकास कार्य हो रहे हैं, इन कार्यों को आमजनों की जरूरतों के अनुकूल किया जा रहा है| -
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नक्सल प्रभावित क्षेत्रों, विशेष पिछड़ी जनजाति वर्ग के लिए वरदान साबित हो रही नियद नेल्लानार योजना
रायपुर : मुख्यमंत्री श्री विष्णुदेव साय की पहल पर नक्सल प्रभावित क्षेत्रों के विकास के लिए नियद नंेल्लानार योजना चलाई जा रही है। इससे क्षेत्रों के विकास में तेजी आई है। मूलभूत सुविधाओं का विस्तार हो रहा है। नियद नेल्लानार योजना के तहत स्थानीय लोगों को सुरक्षा उपलब्ध कराने के लिए सुरक्षा कैंप खोले गए हैं और इन सुरक्षा कैंपों की पांच किमी की परिधि में आने वाले गांवों में सरकार की 12कल्याणकारी एवं विकास योकजनाओं के अंतर्गत मूलभूत संसाधन जैसे आवास, पानी बिजली,सड़क, स्कूल आदि सेवाएं उपलब्ध कराई जा रही हैं।
मुख्यमंत्री की इस योजना के माध्यम से विशेष पिछड़ी जनजाति वर्ग और नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में रहने वालों को सार्वभैम सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत सस्ते में खाद्यान्न और प्रधानमंत्री उज्जवला योजना के तहत बस्तर संभाग के 1335 पकरवरों को घरेलू गैस सिलेंडर मिल गया है, जिससे उनका जीवन सहज और खुशहाल हुआ है। नक्सल प्रभावित बस्तर संभाग में 10हजार154 परिवारों का राशनकार्ड बनवाया गया है, जिससे उन्हें सस्ता खाद्यान्न मिलने लगा है।
मुख्यमंत्री श्री विष्णुदेव साय ने नक्सल प्रभावित क्षेत्रों के बच्चों के भविष्य की चिंता करते हुए बस्तर संभाग में नक्सल आतंक से बंद हुए42 प्राथमिक शालाओं को ॅिफर से खुलवाया है। मुख्यमंत्री श्री विश्णुदेव साय की पहल पर विशेष पिछड़ी जनजाति वर्ग के लोगों और नक्सल प्रभावित क्षेत्र के लोगों को स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराने के लिए पानी टंकी का निर्माण कराकर सोलर मोटरपंप के माध्यम से स्वच्छजल उपलब्ध कराया जा रहा है। इस तरह राज्य सरकार की नियद नेल्लानार योजना नक्सल प्रभावित क्षेत्रों और विशेष पिछड़ी जनजाति वर्ग क लोगों के जीवन स्तर को उठाने के साथ ही वरदान साबित हो रही है। -
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साय सरकार की नीतियों से निखर रहा आदिवासी समुदायों का जीवन
सड़क, स्कूल, स्वास्थ्य जैसी मूलभूत सुविधाओं का तेजी से हो रहा विकास
सरकार के ठोस कदम से आदिवासी युवाओं के अच्छे भविष्य की नींव भी मजबूत
रायपुर : छत्तीसगढ़ सरकार आदिवासियों के हित में ठोस कदम उठा रही है| दूरस्थ और पिछड़े वनांचल इलाकों में मूलभूत सुविधाएं शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार के अलावा बुनियादी जरूरतों को पूरा करने का काम तेजी से हो रहा है| छत्तीसगढ़ सरकार ने ऐसी कई योजनाएं शुरू की हैं जिनके जमीनी स्तर पर व्यापक प्रभाव से जन-जीवन जीवन बदल रहा है| मुख्यमंत्री की पहल पर नियद नेल्लानार योजना से आज आदिवासी परिवारों के जीवन में आशा की नई किरण आई है| इस योजना में माओवाद प्रभावित क्षेत्रों में स्थापित नए कैम्पों के आसपास के गांवों का चयन कर शासन के 12 विभागों की 32 कल्याणकारी योजनाओं के तहत आवास, अस्पताल, पानी, बिजली, पुल-पुलिया, स्कूल इत्यादि मूलभूत संसाधनों का विकास किया जा रहा|
दूरस्थ आदिवासी इलाकों से अयोध्या धाम तक सीधी कनेक्टिविटी बढ़ाने के लिए मुख्यमंत्री श्री साय की पहल पर भारत सरकार ने हरी झंडी दे दी है| सडकों के विकास को लेकर भी लगातार कार्य किया जा रहा है, जिससे आदिवासी अंचलों तक आवाजाही आसान हुई है| छत्तीसगढ़ सरकार ने 68 लाख गरीब परिवारों को 05 साल तक मुफ्त राशन देने का निर्णय भी लिया, जिसका लाभ बड़ी मात्रा में आदिवासी अंचलों के जरूरतमंद रहवासियों को मिल रहा है|
तेंदूपत्ता वनवासियों की आजीविका का मजबूत स्रोत है, इससे होने वाली आमदनी को बढ़ाते हुए सरकार ने तेंदूपत्ता संग्रहण पारिश्रमिक दर 4000 रुपए प्रति मानक बोरा से 5500 रुपए प्रति मानक बोरा किया, जिसका लाभ चालू तेंदूपत्ता सीजन से ही 12 लाख 50 हजार से अधिक संग्राहकों को मिल रहा है। तेंदूपत्ता संग्राहकों के लिए छत्तीसगढ़ सरकार जल्द ही चरण पादुका योजना भी शुरू करने जा रही है, इसके साथ ही उन्हें बोनस का लाभ भी दिया जाएगा|
सुरक्षा और विकास के दोहरे मोर्चे पर काम करते हुए छत्तीसगढ़ सरकार ने बड़ी उपलब्धि हासिल की है| इन्हीं प्रयासों का परिणाम है कि आज अनुपात के हिसाब से छत्तीसगढ़ का बस्तर देश में सबसे सैन्य संवेदनशील क्षेत्र बन चुका है, बस्तर डिवीजन में प्रत्येक 9 नागरिकों के पीछे एक पैरामिलिट्री का जवान है| जल्द ही इन क्षेत्रों में सुरक्षाबलों के 250 से ज्यादा कैम्प और नियद नेल्लानार से 58 नए कैम्प स्थापित होंगे ताकि सड़क, स्कूल, स्वास्थ्य जैसी मूलभूत सुविधाओं का दायरा बढ़ सके| मुख्यमंत्री श्री साय के नेतृत्व में आदिवासी संस्कृति और परम्पराओं को आगे बढ़ाने के लिए बस्तर में प्राचीन काल से चले आ रहे अनेक ऐतिहासिक मेलों को भी शासकीय संरक्षण और आर्थिक सहायता दी जा रही है।दूरस्थ आदिवासी इलाकों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित करने के सरकार के मजबूत प्रयास से देश के दूसरे सबसे कम साक्षर जिले बीजापुर में नए भविष्य की बुनियाद गढ़ी जा रही है| बीजापुर जिले में माओवादियों द्वारा बंद 28 स्कूल अब मुख्यमंत्री श्री साय की पहल से खुल गए हैं| स्थानीय बोलियों को सहेजने के उद्देश्य से छत्तीसगढ़ सरकार ने आदिवासी अंचलों में स्थानीय बोलियों में प्रारंभिक शिक्षा प्रदान करने का निर्णय नई शिक्षा नीति के तहत आदिवासी समुदायों में शिक्षा की पहुंच बढ़ाने में महत्वपूर्ण कदम साबित होगा, जिसमें 18 स्थानीय भाषा-बोलियों में स्कूली बच्चों की पुस्तकें तैयार की जा रही हैं। प्रथम चरण में छत्तीसगढ़ी, सरगुजिहा, हल्बी, सादरी, गोंड़ी और कुडुख में पाठ्यपुस्तक तैयार होंगे।
छत्तीसगढ़ सरकार आदिवासी युवाओं के सुनहरे भविष्य की नींव भी मजबूत कर रही है, इसी क्रम में नई दिल्ली के ट्रायबल यूथ हॉस्टल में सीटों की संख्या 50 से बढ़ाकर अब 185 कर दी गई है। इस निर्णय से देश राजधानी में रहकर संघ लोक सेवा आयोग की सिविल सेवा की तैयारी करने के इच्छुक अनुसूचित जनजाति, अनुसूचित जाति तथा अन्य पिछड़ा वर्ग के अभ्यर्थियों के लिए अब इस हॉस्टल में तीन गुने से भी अधिक सीटें उपलब्ध होंगी| इसी तरह आईआईटी की तर्ज पर राज्य के जशपुर, बस्तर, कबीरधाम, रायपुर और रायगढ़ में प्रौद्योगिकी संस्थानों का निर्माण भी किया जाएगा|
मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय की पहल पर छत्तीसगढ़ के माओवादी आतंक प्रभावित जिलों के विद्यार्थियों को तकनीकी एवं व्यावसायिक शिक्षा के लिए ब्याज रहित ऋण मिलेगा| शेष जिलों के विद्यार्थियों को एक प्रतिशत ब्याज दर पर ऋण प्रदान किया जाएगा, जिससे स्वरोजगार की ओर बढ़कर अपनी आर्थिक स्थिति मजबूत कर सकेंगे I -
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प्रदेश को स्वच्छ रखने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली सफ़ाई दीदियों से जब मुख्यमंत्री जी ने राखी बँधवाई तो उनकी आँखें भर आईं
प्रदेश को साफ़ सुथरा रखने में सफ़ाई दीदियों के सेवा और समर्पण भाव की मुख्यमंत्री श्री साय ने सराहना की
सफ़ाई दीदियों ने महतारी वंदन योजना के लिए जताया मुख्यमंत्री का आभार
रायपुर : रक्षाबंधन का पर्व बहनों के लिए हमेशा ख़ुशियाँ लेकर आता है लेकिन आज यह पर्व नगर पालिक निगम रायपुर में सफ़ाई मित्र के रूप में कार्य करने वाली हेमा दीदी,सती बाई दीदी,नीलू दीदी और बाहरीन दीदी के लिए बहुत ख़ास बन गया जब मुख्यमंत्री श्री विष्णुदेव साय ने उनसे बड़े स्नेह से राखी रखिए बँधवाई।मुख्यमंत्री जी ने महिलाओं की सराहना करते हुए कहा कि आप सभी हमारे शहर को साफ़ रखती हैं। श्री साय ने महिलाओं के सेवा भाव के लिए उनका आभार भी जताया।
महिलाओं ने अपनी भावनाएँ व्यक्त करते हुए कहा कि उन्हें मुख्यमंत्री निवास में बहुत आदर सम्मान मिला। मुख्यमंत्री जी ने बड़े स्नेह से उनसे बात की और उनका हालचाल जाना। नीलू दीदी की ख़ुशी देखते बन रही थी उन्होंने बताया कि मुख्यमंत्री जी ने उनसे राखी बँधवाई उनके हाथ से मिठाई खाई और बहुत स्नेह से बात की तो उन्हें बहुत अच्छा लगा ।
महिलाओं को यक़ीन नहीं हो रहा कि उन्हें रक्षाबंधन के त्योहार के दिन मुख्यमंत्री जी को राखी बांधने का मौक़ा मिलेगा। सभी महिलाओं ने बताया कि उन्हें महतारी वंदन योजना का लाभ मिल रहा है जिससे उनकी आर्थिक स्थिति में काफ़ी सुधार हुआ है। इस योजना के लिए महिलाओं ने मुख्यमंत्री जी का आभार जताया। -
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रायपुर : छत्तीसगढ़ में हरेली त्यौहार का विशेष महत्व है। हरेली छत्तीसगढ़ का पहला त्यौहार है। इस त्यौहार से ही राज्य में खेती-किसानी की शुरूआत होती है। ग्रामीण क्षेत्रों में यह त्यौहार परंपरागत् रूप से उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस दिन किसान खेती-किसानी में उपयोग आने वाले कृषि यंत्रों की पूजा करते हैं और घरों में माटी पूजन होता है। गांव में बच्चे और युवा गेड़ी का आनंद लेते हैं। इस त्यौहार से छत्तीसगढ़ की संस्कृति और लोक पर्वों की महत्ता भी बढ़ गई है। ग्रामीण क्षेत्रों में गेड़ी के बिना हरेली तिहार अधूरा है।
परंपरा के अनुसार वर्षों से छत्तीसगढ़ के गांव में अक्सर हरेली तिहार के पहले बढ़ई के घर में गेड़ी का ऑर्डर रहता था और बच्चों की जिद पर अभिभावक जैसे-तैसे गेड़ी भी बनाया करते थे। हरेली तिहार के दिन सुबह से तालाब के पनघट में किसान परिवार, बड़े बजुर्ग बच्चे सभी अपने गाय, बैल, बछड़े को नहलाते हैं और खेती-किसानी, औजार, हल (नांगर), कुदाली, फावड़ा, गैंती को साफ कर घर के आंगन में मुरूम बिछाकर पूजा के लिए सजाते हैं। माताएं गुड़ का चीला बनाती हैं। कृषि औजारों को धूप-दीप से पूजा के बाद नारियल, गुड़ के चीला का भोग लगाया जाता है। अपने-अपने घरों में अराध्य देवी-देवताओं के साथ पूजा करते हैं। गांवों के ठाकुरदेव की पूजा की जाती है।
हरेली पर्व के दिन पशुधन के स्वास्थ्य की रक्षा के लिए औषधियुक्त आटे की लोंदी खिलाई जाती है। गांव में यादव समाज के लोग वनांचल जाकर कंदमूल लाकर हरेली के दिन किसानों को पशुओं के लिए वनौषधि उपलब्ध कराते हैं। गांव के सहाड़ादेव अथवा ठाकुरदेव के पास यादव समाज के लोग जंगल से लाई गई जड़ी-बूटी उबाल कर किसानों को देते हैं। इसके बदले किसानों द्वारा चावल, दाल आदि उपहार में देने की परंपरा रही हैं।
सावन माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को हरेली पर्व मनाया जाता है। हरेली का आशय हरियाली ही है। वर्षा ऋतु में धरती हरा चादर ओड़ लेती है। वातावरण चारों ओर हरा-भरा नजर आने लगता है। हरेली पर्व आते तक खरीफ फसल आदि की खेती-किसानी का कार्य लगभग हो जाता है। माताएं गुड़ का चीला बनाती हैं। कृषि औजारों को धोकर, धूप-दीप से पूजा के बाद नारियल, गुड़ का चीला भोग लगाया जाता है। गांव के ठाकुर देव की पूजा की जाती है और उनको नारियल अर्पण किया जाता है।
हरेली तिहार के साथ गेड़ी चढ़ने की परंपरा अभिन्न रूप से जुड़ी हुई है। ग्रामीण क्षेत्रों में लगभग सभी परिवारों द्वारा गेड़ी का निर्माण किया जाता है। परिवार के बच्चे और युवा गेड़ी का जमकर आनंद लेते है। गेड़ी बांस से बनाई जाती है। दो बांस में बराबर दूरी पर कील लगाई जाती है। एक और बांस के टुकड़ों को बीच से फाड़कर उन्हें दो भागों में बांटा जाता है। उसे नारियल रस्सी से बांध़कर दो पउआ बनाया जाता है। यह पउआ असल में पैर दान होता है जिसे लंबाई में पहले कांटे गए दो बांसों में लगाई गई कील के ऊपर बांध दिया जाता है। गेड़ी पर चलते समय रच-रच की ध्वनि निकलती हैं, जो वातावरण को औैर आनंददायक बना देती है। इसलिए किसान भाई इस दिन पशुधन आदि को नहला-धुला कर पूजा करते हैं। गेहूं आटे को गंूथ कर गोल-गोल बनाकर अरंडी या खम्हार पेड़ के पत्ते में लपेटकर गोधन को औषधि खिलाते हैं। ताकि गोधन को विभिन्न रोगों से बचाया जा सके। गांव में पौनी-पसारी जैसे राऊत व बैगा हर घर के दरवाजे पर नीम की डाली खोंचते हैं। गांव में लोहार अनिष्ट की आशंका को दूर करने के लिए चौखट में कील लगाते हैं। यह परम्परा आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में विद्यमान है।
हरेली के दिन बच्चे बांस से बनी गेड़ी का आनंद लेते हैं। पहले के दशक में गांव में बारिश के समय कीचड़ आदि हो जाता था उस समय गेड़ी से गली का भ्रमण करने का अपना अलग ही आनंद होता है। गांव-गांव में गली कांक्रीटीकरण से अब कीचड़ की समस्या काफी हद तक दूर हो गई है। हरेली के दिन गृहणियां अपने चूल्हे-चौके में कई प्रकार के छत्तीसगढ़ी व्यंजन बनाती है। किसान अपने खेती-किसानी के उपयोग में आने वाले औजार नांगर, कोपर, दतारी, टंगिया, बसुला, कुदारी, सब्बल, गैती आदि की पूजा कर छत्तीसगढ़ी व्यंजन गुलगुल भजिया व गुड़हा चीला का भोग लगाते हैं। इसके अलावा गेड़ी की पूजा भी की जाती है। शाम को युवा वर्ग, बच्चे गांव के गली में नारियल फेंक और गांव के मैदान में कबड्डी आदि कई तरह के खेल खेलते हैं। बहु-बेटियां नए वस्त्र धारण कर सावन झूला, बिल्लस, खो-खो, फुगड़ी आदि खेल का आनंद लेती हैं। -
द न्यूज़ इंडिया समाचार सेवा
धनंजय राठौर,संयुक्त संचालक, जनसंपर्क
रायपुर : छत्तीसगढ़ में महतारी वंदन योजना के लागू होने के साथ ही महिलाओं में नया आत्मविश्वास दिख रहा है। मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय द्वारा शुरू की गई महतारी वंदन योजना की लोकप्रियता शहरों के साथ-साथ गांवों में भी दिख रही है। राज्य में नई सरकार के गठन के साथ ही महिलाओं को सशक्त और आत्मनिर्भर बनाने के लिए शुरू की गई इस योजना से राज्य के 70 लाख विवाहित महिलाओं को इसका लाभ छह माह से मिल रहा है।छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा शुरू किए गए इस महत्वाकांक्षी योजना में 21 वर्ष से अधिक उम्र की विवाहित महिलाओं को प्रति माह एक-एक हजार रूपए की राशि सीधे उनके बैंक खातों में दी जाती है। ग्रामीण और शहरी क्षेत्र की महिलाओं के मोबाइल में मेसेज आते ही परिवार के बच्चे खुशी से कह उठते हैं कि हमर मोबाइल में सांय-सांय पईसा आवत हेे। राज्य सरकार द्वारा इस योजना के क्रियान्वयन को सटीक और बेहतर बनाने के लिए महतारी वंदन योजना एप्प जारी किया गया है।महतारी वंदना योजना का उद्देश्य महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देना है। महिला सशक्तिकरण का अर्थ है महिलाओं के सामाजिक और आर्थिक स्थिति में सुधार लाना है, ताकि उन्हें रोजगार, शिक्षा, आर्थिक तरक्की के बराबरी का मौके मिल सके, जिससे वह सामाजिक स्वतंत्रता और तरक्की प्राप्त कर सके। यह वह तरीका है, जिसके द्वारा महिलाएँ भी पुरुषों की तरह अपनी हर आकंक्षाओं को पूरा कर सके।महतारी वंदन योजना में हर माह राशि आने का असर अब दिखने लगा है। महिलाओं ने हर कार्य में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेना शुरू कर दिया है। महिलाएँ अपना फैसले खुद ले रही हैं। महिलाओं में आत्मनिर्भरता का भाव जगाने में यह योजना सफल हुई है। इस योजना से महिलाओं को उनके रोजमर्रा की आर्थिक जरूरतों को पूरा करने के लिए काफी मदद मिल रही है। इस राशि से गर्भवती एवं धात्री महिलाओं के पोषण स्तर में सुधार हो रहा है। महिलाओं को मिले इस आर्थिक सा्रेत से परिवार की जरूरतों को पूरा करने, बच्चों के अध्यापन कार्य तथा उनके लिए पौष्टिक भोजन की व्यवस्था करने में कर रही हैं।महतारी वंदना योजना से महिलाओं को आगे बढने के लिए रास्ता मिल रहा है। महिलाओं को आर्थिक रूप से सक्षम बनाने में छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा लखपति दीदी, ड्रोन दीदी जैसी नवाचारी योजनाएं क्रियान्वित की जा रही है। महिला समूहों को आर्थिक क्रियाकलपों से जोड़कर आत्मनिर्भर बनाने के लिए बिहान योजना भी संचालित की जा रही है। मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय ने अपने जगदलपुर प्रवास के दौरान लगभग 3100 स्व-सहायता समूहों को 100 करोड़ रूपए की राशि का ऋण वितरित किया है। इससे महिलाओं में स्वावलंबन और आर्थिक रूप से निर्भरता आएगी। -
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डॉ. दानेश्वरी संभाकरसहायक संचालकरायपुर : भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी कहते हैं कि,हम सबके जीवन मां का दर्जा सबसे ऊंचा होता है, मां हर दुःख सहकर भी अपने बच्चों का पालन पोषण करती है, हर मां अपने बच्चों पर हर स्नेह लुटाती जन्मदात्री मां का यह प्यार हम सब पर एक कर्ज की तरह होता है जिसे कोई चुका नहीं सकता। प्रधानमंत्री श्री मोदी का सोचना है कि अब हम मां को कुछ दे तो सकते नहीं लेकिन और कुछ कर सकते हैं। इसी सोच में इस वर्ष विश्व पर्यावरण दिवस पर एक विशेष अभियान शुरू किया गया है इस अभियान का नाम है ‘‘एक पेड़ मां के नाम’’।
विश्व पर्यावरण दिवस के मौके पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने (5 जून) को बुद्ध जयंती पार्क, नई दिल्ली में पीपल का पौधा लगाकर ‘एक पेड़ माँ के नाम’ अभियान की शुरुआत की। प्रकृति के पोषण के लिए धरती माता और मानव जीवन के पोषण के लिए हमारी माताओं के बीच समानता दर्शाते हुए पीएम मोदी ने दुनिया भर के लोगों से अपनी माँ के प्रति प्रेम, आदर और सम्मान के प्रतीक के रूप में एक पेड़ लगाने और धरती माता की रक्षा करने का संकल्प लेने का आह्वान किया।
केंद्र और राज्य सरकार के विभाग भी ‘एक पेड़ माँ के नाम’ अभियान के लिए सार्वजनिक स्थानों की पहचान करेंगे। गौरतलब है कि इस बार विश्व पर्यावरण दिवस की थीम भूमि क्षरण को रोकना और उलटना, सूखे से निपटने की क्षमता विकसित करना और मरुस्थलीकरण को रोकना का मुख्य उद्देश्य है।
मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय ने नवा रायपुर के अटल नगर स्थित जैव विविधता पार्क में ‘एक पेड़ मां के नाम’ अभियान का शुभारंभ पीपल के पौधे का रोपण कर किया। इस अभियान के तहत वन विभाग द्वारा छत्तीसगढ़ में 4 करोड़ वृक्ष लगाये जाएंगे। इस अभियान में स्कूली बच्चे, आम नागरिक और जनप्रतिनिधि भी उत्साह के साथ हिस्सा ले रहे हैं। शासकीय, अशासकीय संस्थाओं और समितियों द्वारा पौधारोपण जोर-शोर से किया जा रहा है।
पेड़ का महत्व
पेड़ लंबे समय तक प्रदूषण मुक्त वातावरण की कुंजी हैं क्योंकि वे ऑक्सीजन प्रदान करने, हवा की गुणवत्ता में सुधार, जलवायु सुधार, जल संरक्षण, मिट्टी संरक्षण और वन्य जीवन का समर्थन करने के लिए जिम्मेदार हैं। इन सभी कारणों से वर्तमान परिदृश्य में वृक्षारोपण आवश्यक हो गया है क्योंकि प्रदूषण चरम पर है। कुछ हद तक प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए वृक्षारोपण ही एकमात्र उपाय है। पेड़ों के बिना, पृथ्वी पर जीवन नहीं होता। पेड़-पौधे कई तरह से पर्यावरण को स्वस्थ रखने में बहुत योगदान देते हैं।
मार्च 2025 तक 140 करोड़ पेड़ लगाने की योजना
एक पेड़ माँ के नाम अभियान के साथ इस साल सितंबर तक 80 करोड़ और मार्च, 2025 तक 140 करोड़ पेड़ लगाने की योजना बनाई गई है। इसके लिए “संपूर्ण सरकार” और “संपूर्ण समाज” नीति का पालन किया जाएगा। ये पेड़ पूरे देश में व्यक्तियों, संस्थाओं, समुदाय आधारित संगठनों, केंद्र और राज्य सरकार के विभागों और स्थानीय निकायों द्वारा लगाए जाएंगे। -
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रायपुर : बारिश के मौसम में बीमारियों से बचाव के लिए स्वच्छता का विशेष ध्यान रखना आवश्यक होता है। साफ पानी का सेवन, संतुलित आहार और उचित सावधानियों के माध्यम से हम इन बीमारियों से बच सकते हैं। स्वस्थ रहें और बारिश के मौसम का आनंद लें। बारिश का मौसम अपने साथ खुशहाली और ताजगी लाता है, लेकिन इसके साथ ही यह कई बीमारियों का खतरा भी बढ़ा देता है। बारिश के मौसम में नमी और पानी का जमाव बीमारियों के लिए अनुकूल वातावरण पैदा करता है। बारिश के मौसम में होने वाली प्रमुख बीमारियों और उनकी रोकथाम के उपायों के बारे में सावधानियों की आवश्यकता है।मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय ने आम नागरिकों से अपील की है कि जलजनित बीमारियों से बचने जागरूक रहें और अपने आसपास पानी का जमाव होने न दें, ताकि मच्छर पनप न पाए। उन्होंने लोगों से अपील की है कि जलजनित बीमारी फैलने पर तुरंत स्वास्थ्य विभाग के मैदानी अमला को जानकारी दें और त्वरित उपचार के लिए जीवन रक्षक दवाओं का उपायोग करें। मुख्यमंत्री श्री साय ने स्वास्थ्य अमलों को काम्बेट टीम के गठन के निर्देश दिए हैं। साथ ही राजस्व अमले को भी मौसमी बीमारी फैलने पर तत्काल स्वास्थ्य शिविर लगाने निर्देश दिए हैं।बरसात के मौसम में फैलने वाली प्रमुख मौसमी बीमारियों के लक्षण और बचाव के तरीके निम्नानुसार है -डेंगू और मलेरियाः- डेंगू और मलेरिया दोनों बीमारियाँ मच्छरों के कारण होती हैं। बारिश के मौसम में जगह-जगह पानी जमा होने से मच्छरों की संख्या बढ़ जाती है।लक्षणः- डेंगूः- तेज बुखार, सिरदर्द, जोड़ों और मांसपेशियों में दर्द, त्वचा पर लाल चकत्ते का होना।मलेरियाः- ठंड लगना, तेज बुखार, पसीना आना, सिरदर्द।डेंगू और मलेरिया दोनों बीमारियाँ मच्छरों के काटने से फैलती हैं, लेकिन दोनों बीमारियाँ अलग-अलग प्रकार के मच्छरों के काटने से फैलती हैं और इनके मच्छरों में कुछ महत्वपूर्ण अंतर होते हैं। इन दोनों मच्छरों के बीच के अंतर इस प्रकार है -डेंगू मच्छरः-प्रजातिः- एडीज़ एजिप्टी (Aedes aegypti) ये मच्छर मुख्य रूप से दिन में काटते हैं, विशेषकर सुबह और शाम के समय। ये मच्छर साफ पानी में प्रजनन करते हैं। कूलर, गमले, टायर और अन्य स्थिर पानी के स्रोतों में पनपते हैं।मलेरिया मच्छरः- एनोफिलीस (Anopheles)-ये मच्छर मुख्य रूप से रात में काटते हैं। ये मच्छर गंदे पानी, धान के खेतों, और तालाबों में प्रजनन करते हैं। इनके लार्वा को समाप्त करने के लिए जमे हुए पानी में मिट्टी तेल छिड़काव करना चाहिए।रोकथामः- मच्छरों के काटने से बचने के लिए मच्छरदानी का उपयोग करें। पानी को जमा न होने दें और घर के आसपास सफाई रखें। मच्छर भगाने वाले क्रीम और स्प्रे का उपयोग करें। घर में नीम पत्ती जलाकर धुंआ करने से मच्छर से बचा जा सकता है।टाइफाइडः- टाइफाइड एक बैक्टीरियल संक्रमण है, जो प्रदूषित पानी और भोजन के सेवन से फैलता है।लक्षणः- तेज बुखार, पेट में दर्द, सिरदर्द, कमजोरी, भूख में कमी।रोकथामः- साफ और स्वच्छ पानी पीएं। खाने से पहले और बाद में हाथ को साफ धोएं। बाहर के खाने से बचें, विशेषकर सड़क किनारे के खाने में मक्खियां बैठी रहती है, इसलिए ऐसे खाद्य पदार्थाें का उपयोग करने से, सड़े-गले खाद्य पदार्थाें के उपयोग से बचें।कॉलराः- कॉलरा एक बैक्टीरियल संक्रमण है, जो दूषित पानी और भोजन से फैलता है।लक्षणः- उल्टी, दस्त, पेट दर्द, अत्यधिक प्यास, कमजोरी।रोकथामः- साफ पानी पीएं और खाना बनाते समय स्वच्छता का विशेष ध्यान रखें। पानी को उबाल कर पीएं और खाने की सामग्री को ढक कर रखें।सर्दी और फ्लूः- बारिश के मौसम में तापमान में अचानक बदलाव और नमी के कारण सर्दी और फ्लू का खतरा बढ़ जाता है।लक्षणः- खांसी, जुकाम, बुखार, गले में खराश, बदन दर्द।रोकथामः- मौसम के अनुसार कपड़े पहनें और भीगने से बचें और गीले कपड़े का इस्तेमाल न करें। विटामिन सी युक्त फलों का सेवन करें। भीड़-भाड़ वाले स्थानों से बचें।त्वचा संबंधी बीमारियाँः-नमी और गंदगी के कारण त्वचा संबंधी संक्रमण, जैसे फंगल इंफेक्शन, बढ़ जाते हैं।लक्षणः- त्वचा पर लाल चकत्ते, खुजली, जलन।रोकथामः- त्वचा को सूखा और साफ रखें। गीले कपड़े जल्द से जल्द बदलें। एंटीफंगल पाउडर या क्रीम का उपयोग करें।कंजेक्टिवाइटिस (आँख आना) :-कारणः- बैक्टीरियल या वायरल संक्रमण एलर्जी, गंदे हाथों से आँखों को छूनालक्षणः- आँखों में लाली, खुजली और जलन, पानी निकलना, सूजन का होनारोकथामः- साफ और स्वच्छ हाथों से आँखों को छुएं। व्यक्तिगत तौलिए और रुमाल का उपयोग करें। संक्रमित व्यक्ति के संपर्क से बचें और काले चश्में का उपयोग करें। -
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बाजार में रौनक,महिलाओं में उत्साह और घर परिवार में खुशियां बिखेर रही है यह योजना
लेख-कमलज्योति-सहायक संचालक
रायपुर : यह महतारी वंदन योजना है। एक ऐसी योजना ,जिसमें सुनहरे भविष्य की उम्मीद और बेबस, लाचार महिलाओं के साथ-साथ अपने जरूरी खर्चों के लिए पैसों की मोहताज महिलाओं की खुशियां ही नहीं छिपी है, इन खुशियों के पीछे आर्थिक सशक्तिकरण का वह आधार भी है, जो कि महतारी वंदन जैसी योजना के बलबूते छत्तीसगढ़ की गरीब महिलाओं में आत्मनिर्भरता की नींव को शनैः-शनैः मजबूत करती जा रही है। महज चार महीनों में ही विष्णु सरकार की इस महतारी वंदन योजना ने छत्तीसगढ़ की न सिर्फ महिलाओं में अपितु घर-परिवार में भी खुशियों की वह मिठास घोल दी है, जिसका परिवर्तन उनके जीवनशैली में भी बखूबी नजर आने लगा है। आर्थिक रूप से सशक्तिकरण ने परिवार के बीच रिश्तों की गाँठ को और भी मजबूती से बाँधना शुरू कर दिया है। इस योजना से महिलाओं का सम्मान भी बढ़ा है।
छत्तीसगढ़ में इस साल के 10 मार्च से महिलाओं के खाते में भेजी गई पहली किश्त एक हजार रुपए से आरंभ हुई छत्तीसगढ़ महतारी वंदन योजना का लाभ प्रदेश की लगभग 70 लाख 12 हजार से अधिक महिलाओं को मिल रहा है। साल में 12 हजार रुपये कोई छोटी रकम नहीं है..यह जरूरतमंद गरीब महिलाओं के लिए आर्थिक आधार भी है। मुख्यमंत्री श्री विष्णुदेव साय विगत चार महीनों से लगातार हर महीने के पहले सप्ताह में महिलाओं के बैंक खाते में इस योजना अंतर्गत एक हजार की राशि ऑनलाइन माध्यम से अंतरित करते हैं। मुख्यमंत्री के बटन दबाते ही महिलाओं के खाते में पहुँचने वाली यह राशि प्रदेश की लाखों महिलाओं की खुशियों का पर्याय बन जाती है। पहले कुछ रुपयों के लिए मोहताज महिलाओं को एक हजार की राशि मिलने पर उनकी अपनी छोटी-छोटी जरूरतों का सपना भी पूरा होता है।
इस राशि का उपयोग वह सिर्फ अपने ही लिए नहीं करती...घर के राशन से लेकर अचानक से पति को कुछ रुपयों की पड़ी आवश्यकता, बच्चों के लिए कुछ जरूरी सामान, नाती-नतनी की खुशियों के ख़ातिर स्नेहपूर्वक उन्हें उनकी जरूरतों का उपहार देने में भी करती हैं। महिलाओं को हर महीने इस राशि का बेसब्री से इंतजार रहता है। ऐसी ही इस योजना की हितग्राही मीरा बाई हैं। पति शारिरिक रूप से असमर्थ है। किसी तरह मजदूरी कर घर के खर्चों को पूरा करती है। तीन बच्चे हैं और वे स्कूलों में पढ़ाई करते हैं। स्कूल खुलते ही अपने बच्चों के लिए आई जरूरतों को पूरा करने के साथ घर की जरूरतों में भी महतारी वंदन योजना की राशि का उपयोग करती हैं। उन्होंने बताया कि घर के प्रति उनकी जिम्मेदारी है और हर महीने मिलने वाली एक हजार रुपये की राशि उनके लिए एक बहुत बड़ा योगदान है। इस राशि से ऐन वक्त पर बच्चों और पति को आई जरूरतों को भी पूरा कर पाती हैं।
गाँव में रहने वाली सविता बाई के पति खेतों में काम करते हैं। बारिश में चाय की चुस्कियां लेती सविता बाई ने महतारी वंदन न्याय योजना का नाम आते ही चेहरे पर मुस्कान लाकर इस योजना से मिल रही खुशियों को प्रकट किया। उन्होंने कहा कि गाँव की महिलाओं के लिए एक हजार की राशि एक बड़ी राशि होती है। उन्होंने बताया कि महिलाओं की आदत होती है कि दो-चार-पाँच रुपए बचा कर सौ-दो सौ जोड़ लें। यहां तो एक हजार रुपए मिल रहे हैं ऐसे में उनकी जरूरतों के लिए यह रकम कठिन समय में संजीवनी की तरह साबित हो रही है। बच्चों के लिए भी वह इस राशि को खर्च कर पाती है। उन्होंने बताया कि पैसा खाते में आने के बाद छोटी जरूरतों के लिए पति से अनावश्यक पैसा मांगना भी नहीं पड़ता।
वनांचल में रहने वाली श्रीमती बुधवारों बाई राठिया गाँव के हाट बाजार पहुँची थीं। अपने नाती आशीष को लेकर आईं बुधवारो बाई ने बाजार में नाती को न सिर्फ उनके पसंद का मिष्ठान खिलाया अपितु अन्य नाती-नतनिनों के लिए बाजार से मिष्ठान लिया और उनका नाती आशीष बारिश में नंगे पैर न घूमे इसे ध्यान रखते हुए महतारी वंदन योजना की राशि से स्नेहपूर्वक चप्पलें भी खरीदी। उन्होंने बताया कि उनका जो कुछ है उनके बेटे और नाती-नतनी ही हैं और बहुत ही खुशी मिलती है कि वृद्धावस्था में वह अपने नाती-नतनियों की कुछ जरूरतों को पूरा कर पाती हैं। यह सब मुख्यमंत्री श्री विष्णुदेव साय और उनकी सरकार की बदौलत ही हो पाया है। उन्होंने हमारे संघर्षमय जीवन में खुशियों की मिठास घोल दी है।।। -
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एल.डी.मानिकपुरी, सहायक जनसंपर्क अधिकारी
मुख्यमंत्री श्री साय
रायपुर : लोकतंत्र में जहां जनता अपने नेतृत्व को वायदे पूरे करने के लिए पांच साल का जनादेश प्रदान करती है। ऐसे में किसी प्रदेश के मुखिया से महज छह माह के समय में इन वायदों को पूरा करने की आशा आमतौर पर बेमानी होती है। लेकिन मन में जज्बा, कुछ करने की लालसा, संवेदनशील प्रयास और समन्वित रणनीति के तहत कार्य किया जाए तो छह माह में भी इतिहास गढ़ा जा सकता है। महज़ छह माह में किसी भी सरकार के कामकाज का मूल्यांकन नहीं किया जा सकता इसके बावजूद विष्णु देव साय सरकार जिस तेजी के साथ काम को आगे बढ़ा रही है, निश्चित ही यह एक मिसाल है।
समर्थन मूल्य की राशि का भुगतान किसानों के खाते में किया गया
मुख्यमंत्री श्री साय ने विधानसभा चुनाव के दौरान किए गए अधिकांश वायदों को पूरा करने के लिए जरा भी वक्त जाया नहीं किया। इसे कुछ इस तरह से समझा जा सकता है। शपथ ग्रहण 13 दिसम्बर 2023 के बाद 15 अप्रैल 2024 यानी 4 माह 02 दिन। 16 मार्च 2024 से 6 जून 2024 यानी 2 माह 21 दिन लोकसभा निर्वाचन की वजह से आदर्श आचार संहिता पूरे प्रदेश में प्रभावशील रही। ऐसे में विष्णु देव सरकार को मुख्यमंत्री बने छह माह जरूर हो चुके हैं लेकिन निर्णय, योजनाओं का क्रियान्वयन, भावी रणनीति को मूर्तरूप देने के लिए उन्हें 4 माह का ही समय मिला है।
समर्थन मूल्य की राशि का भुगतान किसानों के खाते में किया गया
मुख्यमंत्री श्री साय ने इन सब के बावजूद अपने सटीक निर्णयों से प्रदेश में एक अलग छाप छोड़ने में सफल हुए हैं। जब हम आधी आबादी की बात करते हैं तब उनकी स्वास्थ्य, शिक्षा, स्वावलम्बन और सशक्तीकरण के लिए ठोस व दूरगामी रणनीति बनानी पड़ती है। प्रदेश के 70 लाख विवाहित महिलाओं के जीवन में एक नई उम्मीद की किरण महतारी वन्दन योजना से मिली है। ईब से इंद्रावती तक यानी प्रदेश के चारों तरफ विवाहित महिलाओं को हर माह एक हजार रूपए दिए जा रहे हैं और इस तरह चार किश्ते दी जा चुकी हैं। राज्य सरकार द्वारा विवाहित माताओं-बहनों के खाते में राशि देने के पीछे आर्थिक सशक्तीकरण करना, उनके आर्थिक हालात को बेहतर करना प्रमुख उद्देश्य है।
दावे और वादे के पक्के मुख्यमंत्री श्री साय ने प्रदेश के लाखों किसानों से 3100 रुपये प्रति क्विंटल की दर से और 21 क्विंटल प्रति एकड़ के मान से धान खरीदने की गारंटी को पूरा करते हुए 32 हजार करोड़ रुपए के समर्थन मूल्य की राशि का भुगतान किसानों के खाते में किया गया, वहीं 24 लाख 75 हजार किसानों को कृषक उन्नति योजना के तहत अंतर की राशि 13 हजार 320 करोड़ रुपए अन्तरित की गई। खरीफ सीजन में रिकॉर्ड 145 लाख मीट्रिक टन धान की खरीदी की गई। इसके अलावा किसानों को दो साल के धान के बकाया बोनस राशि 3 हजार 716 करोड़ रुपए देने जैसे साहसिक निर्णय लिए है।
मुख्यमंत्री श्री साय संवेदनशील सरकार और किसानों के सरकार के रूप में महज छह माह में ही पहचान बनाने में सफल हुए। आदिवासियों की पीड़ा, संघर्ष, सम्मान और जरूरत को उनसे बेहतर कौन समझ पाएगा! सरकार बनाते ही तेन्दूपत्ता प्रति मानक बोरा 5 हजार 500 रूपए की गई, जिससे 12 लाख 50 हजार से अधिक तेंदूपत्ता संग्राहकों को लाभ मिल रहा है। कौन नहीं चाहता कि घर के बुजुर्ग तीर्थ यात्रा करें लेकिन आर्थिक अभाव, सुरक्षा और मार्गदर्शन आड़े आते हैं। ऐसे में विष्णु सरकार की मानवीय पहल यानी रामलला मंदिर दर्शन योजना से मन की मुराद पूरी हो रही है।
कोई न सोए भूखे पेट, इस तरह के विचार को अपनी कार्य योजना में शामिल करें तो वह निश्चित ही मानवीय संवेदना ही है प्रदेश के 68 लाख़ से अधिक गरीब परिवारों को पांच वर्षों तक मुफ्त अनाज देने जैसे निर्णय साबित कर रहे हैं कि सरकार गरीबों के कल्याण को प्राथमिकता दे रही है। खुद का घर, पक्का मकान यह सब सुनने में एक गरीब परिवार के लिए दिन में देखने वाले स्वप्न की तरह होता है। लेकिन इस सपने को सच करने के लिए, 18 लाख प्रधानमंत्री आवास योजना के निर्माण की दिशा में प्रदेश जोरशोर से आगे बढ़ चुका है। ऐसे में गरीब के सिर में पक्का छत होना यानी सशक्त परिवार और खुशहाल समाज का प्रतीक बनेगा।
सरकार में आते ही युवाओं की तकलीफ को समझा और पीएससी परीक्षा घोटाले को लेकर युवाओं के गुस्से और हताशा को समझते हुए मुख्यमंत्री श्री साय ने सीबीआई जांच की अनुशंसा की। शासकीय भर्ती आयु सीमा में 5 वर्ष की छूट देने से युवाओं के मन में खुशियां देखने को मिली है। जिस बस्तर अंचल की पहचान सुंदर प्राकृतिक परिवेश और अकूत संसाधनों से है तथा यहां के भोलेभाले आदिवासियों की कला संस्कृति ने देश और दुनिया को अपनी ओर खींचा है। इस स्वर्ग को दूषित करने का काम कुछ माओवादी कर रहे हैं। मुख्यमंत्री श्री साय के अडिग निर्णय, बेहतर रणनीति का ही परिणाम है कि महज छह माह में 129 माओवादियों को सुरक्षा बलों के जवानों ने ढेर किया है, 488 गिरफ्तार हुए हैं 431 आत्मसमर्पण किया और इस तरह बस्तर की उम्मीद की नई रौशनी देखने को मिलने लगी है। -
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नसीम अहमद खान, उप संचालक
रायपुर : देश की जीडीपी में कृषि का बड़ा योगदान है। छत्तीसगढ़ की अर्थव्यवस्था का मूल आधार भी कृषि ही है और यह धान का कटोरा कहलाता है। मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय के नेतृत्व में प्रदेश सरकार ने अल्पावधि में राज्य के किसानों के हित में कई फैसले लिए हैं, इससे राज्य में खेती-किसानी को नया सम्बल मिला है। किसान बेहद खुश है। उनके मन में एक नई उम्मीद जगी है।
छत्तीसगढ़ की नई सरकार ने प्रति एकड़ 21 क्विंटल धान की समर्थन मूल्य पर खरीदी तथा दो साल के बकाया धान बोनस की राशि 3716 करोड़ रूपए का भुगतान करके एक ओर जहां अपना संकल्प पूरा किया है, वहीं दूसरी ओर किसानों से बीते खरीफ विपणन वर्ष में 144.92 लाख मेट्रिक टन धान की रिकार्ड खरीदी की है। किसानों को समर्थन मूल्य के रूप में 31,914 करोड़ रूपए का भुगतान एवं किसान समृद्धि योजना के माध्यम से मूल्य की अंतर की राशि 13,320 करोड़ का भुगतान करके यह बता दिया है कि छत्तीसगढ़ की खुशहाली और अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करने का रास्ता खेती-किसानी से ही निकलेगा।
किसानों का मानना है कि राज्य सरकार के अब तक के फैसलों से यह स्पष्ट हो गया है कि यह सरकार किसानों की हितैषी है। खेती-किसानी ही छत्तीसगढ़ की अर्थव्यवस्था का प्रमुख आधार है। कृषि के क्षेत्र में सम्पन्नता से ही छत्तीसगढ़ की अर्थव्यवस्था सुदृढ़ होगी और विकसित राज्य बनाने का सपना साकार होगा। इस बात को ध्यान में रखते हुए छत्तीेसगढ़ सरकार ने इस साल कृषि के बजट में 33 प्रतिशत की वृद्धि की है।
छत्तीसगढ़ सरकार ने अपने संकल्प के मुताबिक समर्थन मूल्य पर खरीदे गए धान में प्रति क्विंटल 917 रूपए के मान से अंतर की राशि भी दे दी है। किसानों को प्रति क्विंटल के मान से 3100 रूपए के भुगतान की यह राशि देश में सर्वाधिक है। छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा इस साल के बजट में कृषक उन्नति योजना के अंतर्गत 10 हजार करोड़ की व्यवस्था की गई है।
छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा राज्य में कृषि को बढ़ावा देने के लिए कई अभिनव पहल की जा रही है। जशपुर जिले के कुनकुरी में कृषि व्यवसाय प्रबंधन महाविद्यालय एवं अनुसंधान केन्द्र तथा बलरामपुर जिले के रामचंद्रपुर में पोस्ट हार्वेस्ट मैनेजमेंट एवं प्रोसेसिंग टेक्नोलॉजी महाविद्यालय, सूरजपुर जिले के सिलफिली एवं रायगढ़ में शासकीय उद्यानिकी एवं वानिकी महाविद्यालय, तथा मनेन्द्रगढ़-चिरमिरी-भरतपुर जिले के खडगंवा में कृषि महाविद्यालय खोलने की व्यवस्था बजट में की है।
कृषि में आधुनिक उपकरणों के प्रयोग को बढ़ावा देने के लिए कृषि अभियांत्रिकी संचालनालय की स्थापना एवं राज्य स्तरीय नवीन कृषि यंत्र परीक्षण प्रयोगशाला के भवन का निर्माण, दुर्ग एवं सरगुजा जिले में कृषि यंत्री कार्यालय तथा रासायनिक उर्वरकों की जांच के लिए सरगुजा जिले में गुणवत्ता नियंत्रण प्रयोगशाला की स्थापना की जाएगी।
राज्य के किसानों को सहकारी एवं ग्रामीण बैंकों से ब्याज मुक्त कृषि ऋण उपलब्ध कराने के लिए 8 हजार 500 करोड़ का लक्ष्य तथा भूमिहीन कृषि मजदूरों की सहायता हेतु दीनदयाल उपाध्याय भूमिहीन कृषि मजदूर योजना के तहत भूमिहीन परिवारों को प्रतिवर्ष 10 हजार रूपये की आर्थिक सहायता देने के लिए बजट में 500 करोड़ रुपए का प्रावधान है।
छत्तीसगढ़ में किसानों को सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराने के लिए प्रधानमंत्री सिंचाई योजना, सौर सुजला योेजना के माध्यम से सिंचित रकबे में बढ़ोत्तरी का प्रयास किया जा रहा है। नवीन सिंचाई योजना के लिए 300 करोड़ रूपए, लघु सिंचाई की चालू परियोजनाओं के लिए 692 करोड़ रूपए, नाबार्ड पोषित सिंचाई परियोजनाओं के लिए 433 करोड़ रूपए एवं एनीकट तथा स्टाप डेम निर्माण के लिए 262 करोड़ रूपए का बजट प्रावधान छत्तीसगढ़ सरकार ने किया है।छत्तीसगढ़ में किसानों एवं भूमिहीन मजदूरों की स्थिति में सुधार, कृषि एवं सहायक गतिविधियां के लिए समन्वित प्रयास पर राज्य सरकार का फोकस है। चालू वित्तीय वर्ष कृषि बजट 33 प्रतिशत की वृद्धि करते हुए 13 हजार 435 करोड़ रूपए का प्रावधान किया गया है। किसानों को सहकारी एवं ग्रामीण बैंकों से ब्याज मुक्त कृषि ऋण उपलब्ध कराने के लिए 8500 करोड़ रूपए की साख सीमा छत्तीसगढ़़ सरकार ने तय की है।
मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय ने वर्तमान खरीफ सीजन को देखते हुए राज्यभर की सहकारी समितियों में सोसायटियो में गुणवत्तापूर्ण खाद-बीज भंडारण एवं उठाव की स्थिति पर निरंतर निगरानी रखने को कहा है। मुख्यमंत्री ने कहा है कि किसानों को खाद-बीज के लिए किसी भी तरह की दिक्कत का सामना न करना पड़े, इसलिए पर्याप्त व्यवस्था की जानी चाहिए।
मुख्यमंत्री ने अपने खेती-किसानी के दीर्घ अनुभव के आधार पर कहा है कि खरीफ सीजन में किसान भाईयों द्वारा डी.ए.पी. खाद की मांग ज्यादा की जाती है। इसको ध्यान में रखते हुए डी.ए.पी. खाद की मांग और सप्लाई पर विशेष निगरानी रखी जानी चाहिए। खाद-बीज की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए सेंम्पलिंग एवं प्रयोगशाला के माध्यम से जांच का विशेष अभियान संचालित किया जाए।
खरीफ सीजन 2024-25 के लिए राज्य में 13.68 लाख मैट्रिक टन उर्वरकों की मांग के विरूद्ध अब तक 9.13 लाख मैट्रिक टन उर्वरक की उपलब्धता सुनिश्चित कर ली गयी है, जो मांग का 67 प्रतिशत है। सोसायटियों में विभिन्न खरीफ फसलों के बीज पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हैं। खरीफ सीजन 2024-25 में 5 लाख 59 हजार 203 क्ंिवटल बीज की मांग के विरूद्ध 6 लाख 39 हजार 4 क्विंटल बीज उपलब्ध है, जो कि मांग का 114 प्रतिशत है। सोसायटियों से किसान लगातार बीज का उठाव कर रहे है। अब तक 03 लाख 75 हजार क्विंटल बीज का उठाव किसानों ने किया है, जो कि बीज की डिमांड का 67 प्रतिशत है। -
द न्यूज़ इंडिया समाचार सेवा
आइए जल-जगार मनाएं, गंगरेल बचाएं
धमतरी जिला प्रशासन द्वारा जल संरक्षण एवं संवर्धन के लिए सार्थक पहल की गई है नवाचार के माध्यम से पीकू और गंगरेल की कहानी को आकर्षक रूप से दर्शाया गया है आइए जल-जगार मनाएं, गंगरेल बचाएं के तहत लोगों से अपील की जा रही है कि पानी को व्यर्थ खर्च न करें पानी को सहेज कर रखें “जल है तो कल है” किसान भाईयों को गर्मी के सीजन में धान का फसल न लेकर दलहन और तिलहन की फसल लेने और मिट्टी उर्वरता शक्ति को बना कर रखने का आग्रह किया गया है।
पीकू - आप कौन है आप दुःखी क्यों है।
गंगरेल - मैं......मैं गंगरेल हूं, लाखों लोगों की प्यास बुझाने वाला, लाखों खेतों में हरियाली लाने वाला, अब मैं पल-पल सूख रहा हूं अपने अस्तित्व के लिए जूझ रहा हूं।पीकू - ये तो बहुत बड़ी समस्या है।गंगरेल- मुझे अपनी नहीं धमतरी वालों की चिंता है, मेरे बाद न जाने उनका क्या होगा, खेतों को पानी कहां से मिलेगा, लोगों की प्यास कैसे बुझेगी।पीकू- ऐसा क्यों हो रहा है।गंगरेल- लोगों की नादानी मुझ पर पड़ रही भारी, लोग ट्यूबवेल चलाकर छोड़ देते है जितना उपयोग करते है उससे ज्यादा बहा देते है हजारों लीटर पानी बर्बाद हो रहा है।पीकू- आप चिंता न करें हम जल जगार मनाएंगे, गांव वालों को बताएंगे, मिलकर पानी बचाएंगे।आइए जल जगार मनाएंगंगरेल बचाएं........