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द न्यूज़ इंडिया समाचार सेवा
धान की खेती से हटकर किसान अपने खेतों में उगा रहे हैं दूसरी फसलें
सरगुजा संभाग के प्रतापपुर में युवा किसान ने नवाचार कर शुरू की सेव की खेती
100 से ज्यादा पौधे,1 साल में ही कई पौधों में फल आने हुए शुरू
रायपुर : छत्तीसगढ़ को धान का कटोरा कहा जाता है। कुछ समय पहले तक छत्तीसगढ़ के किसान धान की फसल के अलावा दूसरी फसलों के बारे में सोचते भी नहीं थे। लेकिन मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल के द्वारा किसानों के लिए शुरू की गयी जनहितकारी योजनाओं के चलते किसान अब नवाचार कर रहे हैं। धान के बदले दूसरी फसलें लेने के लिए शासन द्वारा शुरू की गयी योजना का लाभ लेकर किसान छत्तीसगढ़ जैसे गर्म प्रदेश में सेव की खेती कर रहे हैं।सेव की खेती ठंडे प्रदेशों में हो सकती है,इस मिथ्या को तोड़ने की कोशिश प्रतापपुर के एक युवा कृषक ने की है। मुकेश गर्ग नाम के कृषक ने सूरजपुर जिले के प्रतापपुर जैसी गर्म जगह में अलग-अलग किस्म के सेव के सौ से ज्यादा पौधे लगाए हैं और कुछ में तो फल भी आने शुरू हो गए हैं।कुछ हप्तों में ये पूरी तरह से तैयार होकर खाने लायक हो जायंगे। कहा जा रहा है कि छत्तीसगढ़ में कहीं भी सेव की खेती हो सकती है और ये किसानों के लिए फायदेमंद साबित हो सकती है।
आमतौर पर सेव का फल हिमाचल प्रदेश,जम्मू कश्मीर, उत्तराखंड जैसे कम तापमान वाले राज्यों में होते हैं क्योंकि वहां का मौसम सेव की खेती के लिए अनुकूल है। छत्तीसगढ़ का मौसम गर्म है उन्हें सेव के अनुकूल नहीं माना जाता और इसकी खेती सपने जैसी है।लेकिन अब गर्म स्थानों में भी सेव की खेती हो सकती है।
कृषि एवं उद्यानिकी विभाग से मिली फसल के रखरखाव की जानकारीमुकेश गर्ग से मिली जानकारी के अनुसार खेती से उनका जुड़ाव शुरू से है,वे हमेशा कुछ अलग करने का प्रयास करते हैं। इस बीच उन्हें जानकारी मिली कि हिमाचल प्रदेश में सेव की ऐसी किस्म विकसित हुई है जो गर्म प्रदेशों में भी उग सकते हैं । मुकेश ने इसके लिए कृषि एवं उद्यानिकी विभाग से सम्पर्क किया और प्रतापपुर में सेव की नई किस्म के पौधे लगाए। उन्होंने इनके रोपण और रखवाली को लेकर उनसे और तरीके समझे तथा पौधे ऑर्डर किये इनका रोपण कराया। एक वर्ष की अवधि में ये पौधे चार से छह फीट के हो चुके हैं,कई में फल भी आ चुके हैं।
पौधों की रखवाली और रोपण में तरीकों को लेकर उन्होंने बताया कि इसका मुख्य समय नवम्बर से फरवरी के बीच होता है।इसके लिए उन्होंने पहले से ही दो बाय दो फीट गड्ढे तैयार करके रखे थे और गड्ढों को दीमक रोधी दवा(रीजेंट) से उपचारित किया गया था। गड्ढों में गोबर,मिट्टी और थोड़ा सा डीएपी डालकर पानी से भरकर रखे गए थे।इसका फायदा यह होता है कि गड्ढों को जितना बैठना होता है बैठ जाता है और पौधे लगने के बाद इनके रेशे टूटने का डर नहीं होता है। इसके बाद 1-2 दिन में पौधे रोपित कर दिए थे।इनके लिए ज्यादा पानी की आवश्यकता नहीं होती है केवल गर्मियों में दो से तीन दिन में पानी देना होता है। इस बात का ध्यान रखना होता है कि पौधों में बारिश के पानी का रुकाव नहीं हो क्योंकि जड़ों के सड़ने का डर होता है।
सेव की इस किस्म के लिए 50 डिग्री तक का तापमान है अनुकूल
मुकेश गर्ग बताते हैं कि आमतौर पर सेव की फसल ठंडे प्रदेशों में होती है लेकिन सेव की फसल ‘हरमन 99’ के लिए अधिकतम 50 डिग्री तक का तापमान अनुकूल है। हरमन के साथ ‘अन्ना’ और ‘डोरसेट’ किस्म भी यहां के तापमान के अनुकूल है। -
द न्यूज़ इंडिया समाचार सेवा
प्राथमिकता, अन्त्योदय, एकल निराश्रित, निःशक्जन श्रेणी के राशनकार्डधारियों को 01 अप्रैल से मिलेगा फोर्टिफाइड चावल
राज्य सरकार ने पोषण सुरक्षा को बढ़ावा देने कोण्डागांव जिले से शुरू की थी फोर्टिफाइड चावल वितरण अभियान
सूक्ष्म पोषक तत्वों विटामिन बी-12, फोलिक एसिड और आयरन से भरपूर है फोर्टिफाइड चावल डॉ. ओम प्रकाश डहरिया
रायपुर : छत्तीसगढ़ में महिलाओं और बच्चों में कुपोषण और एनीमिया की स्थिति को दूर करने के मद्देनजर मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल के नेतृत्व में राज्य सरकार ने प्रदेश के सभी जिलों में शासकीय उचित मूल्य दुकानों के माध्यम से प्राथमिकता वाले परिवारों को फोर्टिफाइड चावल वितरण का महत्वपूर्ण निर्णय लिया है। अब प्रदेश के सभी जिलों में आगामी माह के एक अप्रैल से फोर्टिफाइड चावल का वितरण होगा। जिला प्रशासन द्वारा इसकी तैयारी की जा रही है। फोर्टिफाइड चावल प्राथमिकता, अन्त्योदय, एकल निराश्रित, निःशक्जन, श्रेणी के राशनकार्डधारियों को वर्तमान में दिए जा रहे सामान्य चावल के स्थान पर मिलेगा।गौरतलब है कि राज्य सरकार सार्वभौम पीडीएस के तहत खाद्यान्न सुरक्षा के साथ-साथ पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करने तथा एनीमिया एवं अन्य पोषक तत्वों की कमी को दूर करने नवम्बर 2020 से कोण्डागांव जिले में फोर्टिफाइड चावल वितरण प्रारंभ किया गया है। वर्तमान में मध्यान्ह भोजन योजना तथा पूरक पोषण आहार योजना में प्रदेश के सभी जिलों में फोर्टिफाइड चावल का वितरण किया जा रहा है। इसके अतिरिक्त सार्वजनिक वितरण प्रणाली के अंतर्गत राज्य के 10 आकांक्षी जिले (कोरबा, राजनांदगांव, महासमुंद, कांकेर, नारायणपुर, दंतेवाडा, बीजोपुर, बस्तर, कोण्डागांव, सुकमा) तथा 02 हाई बर्डन जिले (कबीरधाम एवं रायगढ़) में फोटिफाइड चावल का भी वितरण किया जा रहा है।
आयरन और विटामिन से भरपूर है फोर्टिफाइड चावल
फोर्टिफाइड चावल पोषक एवं स्वास्थ्यवर्धक है। यह आयरन, फोलिक एसिड, विटामिन बी-12 से युक्त होता है। इसमें मौजूद आयरन, फोलिक एसिड, विटामिन बी-12 जैसे पोषक तत्व बड़ो एवं बच्चों में खून की कमी नहीं होने देता है तथा खून निर्माण एवं तंत्रिका तंत्र के सही ढंग से कार्य में सहायक होता है। प्रदेश के कई स्थानों पर फोर्टिफाइड चावल को लेकर प्लास्टिक चावल होने का भ्रम भी सामने आई है। दरअसल फोर्टिफाइड चावल सामान्य चावल से अधिक चिकना और अलग दिखता है, लेकिन वह प्लास्टिक नहीं है। लेकिन बेहतर गुणवत्ता वाला चावल है। खाद्य विभाग द्वारा लोगों में भ्रम की स्थिति को दूर करने राशनकार्डधारियों को आंगनबाडी कार्यकर्ता, मितानीन, एवं उचित मूल्य दुकानों में बैनर, पोस्टर आदि के माध्यम से फोर्टिफाइड चावल को पकाने के तरीके एवं उपयोग के संबंध में समय-समय पर जागरूक किया जा रहा है।
फूड या खाद्य पदार्थों के फोर्टीफिकेशन का क्या मतलब होता है
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक फूड फोर्टीफिकेशन का मतलब होता है टेक्नोलॉजी के माध्यम से खाने में विटामिन और मिनरल के स्तर को बढ़ाना। ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि आहार में पोषक तत्वों की कमी को दूर किया जा सके और इससे लोगों के स्वास्थ्य को भी लाभ मिले। आम तौर पर चावल की मिलिंग और पॉलिशिंग के समय फैट और सूक्ष्म पोषक तत्वों से भरपूर चोकर की परतें हट जाती है। चावल की पॉलिश करने से 75-90 प्रतिशत विटामिन भी निकल जाते है जिसके वजह से चावल के अपने पोषक तत्व खत्म हो जाते है। इसलिए चावल को फोर्टिफाई करने से उनमें सूक्ष्म पोषक तत्व न सिर्फ फिर से जुड़ जाते है बल्कि और ज्यादा मात्रा में मिलाये जाते है जिससे चावल और अधिक पौष्टिकयुक्त हो जाता है।
बता दे कि चावल को फोर्टीफाई करने के लिए सबसे पहले सामान्य चावल का पाउडर बनाया जाता है और उसमे सूक्ष्म पोषक तत्व जैसे विटामिन बी-12, फोलिक एसिड और आयरन, एफएसएसएआई ;थ्ैै।प्द्ध के मानकों के अनुसार मिलाये जाते है। चावल के पाउडर और विटामिन/मिनरल के मिश्रण को मशीनों द्वारा गूंथा जाता है और एक्सट्रूजन नामक मशीन से चावल के दानों फोर्टिफाइड राइस कर्नेल एफआरके ;थ्त्ज्ञद्ध को निकाला जाता है। इस एफआरके ;थ्त्ज्ञद्ध के एक दाने (ग्राम) को सामान्य चावल के 100 दानों (ग्राम) के अनुपात में मिलाया जाता है जिसे फोर्टीफाइड चावल कहते है।
ऐसे पकाया जाता है फोर्टीफाइड चावल-
अधिकतम पौष्टिक लाभ के लिए फोर्टीफाइड चावल को पर्याप्त पानी में पकाना चाहिए और बचे हुए पानी को फेंकना नहीं चाहिए। अगर चावल को बनाने से पहले पानी में भिगोया गया हो तो चावल को उसी पानी में पकाना चाहिए। फोर्टीफाइड चावल अत्यधिक पानी में धोने और पकाने के बाद भी अपने पोषक तत्वों को बरकरार रखता है। फोर्टीफाइड चावल को हर बार इस्तेमाल करने के बाद साफ और सूखे हवा-बंद डब्बे में रखना चाहिए। -
द न्यूज़ इंडिया समाचार सेवा
रायपुर : मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल द्वारा प्रस्तुत वर्ष 2023-24 के बजट में महिलाओं, बच्चों एवं बुजुर्गों के कल्याण के लिए संवेदनशील पहल की गई है। इसके साथ ही उन्होंने निराश्रितों, दिव्यांगों एवं विधवा तथा परित्यक्ता महिलाओं के साथ उभयलिंगी समुदाय का भी विशेष ध्यान रखा है।आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं, सहायिकाओं और मिनी आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं का बढ़ाया मानदेय
आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं की मांगों को पूरा करते हुए मुख्यमंत्री श्री बघेल ने महिलाओं तथा बच्चों के पोषण एवं टीकाकरण हेतु प्रदेश भर में संचालित 46 हजार 660 आंगनबाड़ी केन्द्रों में कार्यरत आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को दी जाने वाली मासिक मानदेय की राशि 6 हजार 500 रूपए प्रति माह से बढ़ाकर 10 हजार रूपए की है। इसी तरह आंगनबाड़ी सहायिकाओं का मानदेय 3 हजार 250 रूपए से बढ़ाकर 5 हजार और मिनी आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं का मानदेय 4 हजार 500 रूपए से बढ़ाकर 7 हजार 500 रूपए प्रति माह करने का प्रावधान बजट में किया है। बजट के इस प्रावधान से आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं तथा मिनी आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं का होली का उल्लास दोगुना हो गया है। प्रदेश भर की आंगनबाड़ी से जुड़ी महिलाओं में हर्ष की लहर है।
मुख्यमंत्री कन्या विवाह योजना की राशि बढ़ाकर 50 हजार की गई
मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने संवेदनशील पहल करते हुए आर्थिक रूप से कमजोर परिवार की बेटियों के विवाह के लिए संचालित मुख्यमंत्री कन्या विवाह योजना अंतर्गत दी जाने वाली सहायता राशि को 25 हजार से बढ़ाकर 50 हजार करने की घोषणा बजट में की है। इसके लिए बजट में 38 करोड़ रूपए का प्रावधान किया गया है।
महिलाओं के रोजगार उपलब्ध कराने शुरू होगी कौशल्या समृद्धि योजना
बजट में महिलाओं के आर्थिक समृद्धि और स्व-रोजगार के लिए नई योजनाओं का प्रावधान भी किया है। महिलाओं को रोजगार उपलब्ध कराने के लिए कौशल्या समृद्धि योजना प्रारंभ करने की घोषणा की है। इसके लिए नवीन मद में 25 करोड़ रूपए का प्रावधान किया गया है।
बाल संप्रेक्षण गृह से बाहर जाने वाले बच्चों के पुनर्वास के लिए शुरू होगी मुख्यमंत्री बाल उदय योजना
बजट में बाल संप्रेक्षण गृह से बाहर जाने की आयु 18 वर्ष से बढ़ाकर 21 वर्ष करने की घोषणा करने के साथ ही वहां से बाहर जाने वाले युवक-युवतियों के पुनर्वास के लिए मुख्यमंत्री बाल उदय योजना शुरू करने का प्रावधान किया है। इसके लिए बजट में एक करोड़ रूपए का प्रावधान किया गया है। इसके अलावा यूनिफाईड डिजिटल एप्लीकेशन योजना शुरू करने के लिए 5 करोड़ का प्रावधान किया गया है।
पोषण, बाल विकास के साथ अधोसंरचना विकास के लिए प्रावधान
बजट में मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने पुनर्वास और रोजगार के साथ पोषण, बाल विकास और अधोसंरचना विकास के लिए प्रावधान किया गया है। नगरीय क्षेत्रों में 100 आंगनबाड़ियों के लिए 12 करोड़ रूपए, मुख्यमंत्री सुपोषण योजना के लिए 160 करोड़ रूपए, बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ योजना के लिए 8 करोड़ रूपए, एकीकृत बाल विकास सेवा योजना के लिए 844 करोड़ रूपए, एकीकृत बाल संरक्षण योजना के लिए 124 करोड़ रूपए का प्रावधान किया गया है।
सामाजिक सुरक्षा पेंशन राशि बढ़ाकर 500 रूपए प्रति माह की गई
मुख्यमंत्री श्री बघेल ने निराश्रितों, बुजुर्गाे, दिव्यांगों एवं विधवा तथा परित्यक्ता महिलाओं के लिए बड़ी घोषणा करते हुए उनको सामाजिक सुरक्षा पेंशन योजना के अंतर्गत दी जाने वाली मासिक पेंशन की राशि 350 रूपए से बढ़ाकर 500 रूपए प्रति माह की है। इससे इन वर्गों को जीवन-यापन के लिए सहारा मिल सकेगा।
उभयलिंगी व्यक्तियों के लिए नवा पिल्हर योजना होगी शुरू
मुख्यमंत्री ने बजट में उभयलिंगी व्यक्तियों को मुख्यधारा में शामिल करने के लिए नई पहल करते हुए नवा पिल्हर योजना शुरू करने की घोषणा की है। इसके अंतर्गत उभयलिंगी व्यक्तियों के शिक्षण-प्रशिक्षण तथा रोजगार हेतु प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में सहायता की जायेगी। इसके लिए बजट में 25 लाख रूपए का प्रावधान किया गया है।
सियान हेल्पलाईन सेंटर की स्थापना की जाएगी
वरिष्ठ नागरिकों, उभयलिंगी व्यक्तियों, विधवा परित्यक्ता महिलाओं एवं दिव्यांगजनों की समस्याओं के ऑनलाईन समाधान हेतु सियान हेल्पलाईन सेंटर एवं टोल फ्री नंबर की स्थापना के लिए एक करोड़ रूपए का प्रावधान किया गया है। छत्तीसगढ़ राज्य केश शिल्पी कल्याण बोर्ड के संचालन हेतु नवीन सेटअप का प्रावधान भी बजट में किया गया है।
मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने इस ऐतिहासिक बजट में महिला एवं बाल विकास विभाग हेतु 2 हजार 675 करोड़ रूपए और समाज कल्याण विभाग हेतु 1 हजार 125 करोड़ रूपए का प्रावधान किया गया है। इसमें बच्चों से लेकर बुजुर्गों, महिलाओं सहित जरूरतमंद, कमजोर वर्गों के लिए भी मुख्यमंत्री श्री बघेल ने व्यापक प्रावधान किया है। मुख्यमंत्री ने इसके माध्यम से ’गढ़बो नवा छत्तीसगढ़’ की परिकल्पना को साकार रूप देने की ओर एक और बड़ा कदम बढ़ाया है और लोक आकांक्षाओं पर खरा उतरते हुए भरोसे का बजट प्रस्तुत किया है। -
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राज्य में गोबर से पेंट उत्पादन की 13 इकाईयां स्थापित, 29 ईकाइयां प्रक्रियाधीन
पर्यावरण के अनुकूल और पेंट निर्माण की आजीविका से ग्रामीण महिलाओं को हो रहा लाभ
एक उत्पादन इकाई से 15 दिनों के अंदर ही 60 हजार तक के गोबर पेंट का विक्रयरायपुर : मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल की पहल पर प्रदेश सरकार की महत्वाकांक्षी नरवा, गरुवा, घुरवा और बाड़ी व गोधन न्याय योजना के तहत गौठानों में गोबर से वर्मी कम्पोस्ट के साथ ही अन्य सामग्रियों का निर्माण महिला स्व सहायता समूहों के द्वारा किया जा रहा हैं। गौमूत्र से फसल कीटनाशक और जीवामृत तैयार किये जा रहे हैं। महात्मा गांधी ग्रामीण औद्योगिक पार्क योजना (रीपा) आत्मनिर्भरता और सफलता की नई इबारत लिख रही है। इन सबके साथ अब गोबर से प्राकृतिक पेंट बनाने का काम भी पूरे प्रदेश में शुरू हो चुका है महिलाएं प्रशिक्षण लेकर स्व सहायता समूहों के माध्यम से पेंट का निर्माण कर रही हैं।
गोबर से प्राकृतिक पेंट का निर्माण, सभी शासकीय भवनों में अनिवार्य रूप से इस्तेमाल करने के निर्देश
मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल के निर्देशानुसार गोबर से प्राकृतिक पेंट के निर्माण के लिए राज्य में 42 उत्पादन इकाइयों को स्वीकृती दी गयी है। इनमें से 13 उत्पादन इकाइयों की की स्थापना हो चुकी है जबकि 21 जिलों में 29 इकाइयां स्थापना के लिए प्रक्रियाधीन हैं। शासन का निर्देश है कि सभी शासकीय भवनों में अनिवार्य रूप से गोबर से निर्मित प्राकृतिक पेंट का इस्तेमाल हो।
15 दिनों के अंदर ही 60 हजार रूपए तक के गोबर पेंट का विक्रय
कोरिया जिले के ग्राम मझगंवा में महात्मा गांधी ग्रामीण औद्योगिक पार्क योजना के तहत यहां गोबर से प्राकृतिक पेंट बनाने की इकाई शुरू हो गयी है। यहां प्रगति स्व सहायता समूह की महिलाओं को प्रशिक्षित कर पेंट बनाने का कार्य शुरू किया गया है। 15 दिनों के अंदर ही समूह ने 800 लीटर पेंट बनाया है जिसमें से 500 लीटर पेंट का विक्रय किया जा चुका है। पेंट की कीमत लगभग 60 हजार रुपये है। गोबर से बने प्राकृतिक पेंट को सी-मार्ट के माध्यम से खुले बाजार में बेचने के लिए रखा जा रहा है।
पर्यावरण के अनुकूल है प्राकृतिक पेंट
गोबर से निर्मित प्राकृतिक पेंट में एंटी बैक्टीरियल, एंटी फंगल, पर्यावरण अनुकूल, प्राकृतिक ऊष्मा रोधक, किफायती, भारी धातु मुक्त, अविषाक्त एवं गंध रहित गुण पाये जाते हैं। गुणों को देखते हुये छत्तीसगढ़ शासन द्वारा समस्त शासकीय भवनों की रंगाई हेतु गोबर से प्रकृतिक पेंट के उपयोग के निर्देश दिये गए हैं।
पेंट निर्माण से ग्रामीण महिलाओं को हो रहा लाभ
गोबर से पेंट बनाने की प्रक्रिया में पहले गोबर और पानी के मिश्रण को मशीन में डालकर अच्छी तरह से मिलाया जाता है और फिर बारीक जाली से छानकर अघुलनशील पदार्थ हटा लिया जाता है। फिर कुछ रसायनों का उपयोग करके उसे ब्लीच किया जाता है तथा स्टीम की प्रक्रिया से गुजारा जाता है। उसके बाद सी.एम.एस. नामक पदार्थ प्राप्त होता है। इससे डिस्टेम्पर और इमल्सन के रूप में उत्पाद बनाए जा रहे हैं। महात्मा गांधी ग्रामीण औद्योगिक पार्क के अंतर्गत महिला स्व सहायता समूहों द्वारा प्राकृतिक पेंट का उत्पादन उन्हें आर्थिक रूप से मजबूत करने का काम कर रहा है, प्राकृतिक पेंट की मांग को देखते हुए इसका उत्पादन भी दिन ब दिन बढ़ाया जा रहा है। -
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छत्तीसगढ़ की ग्रामीण महिलाएं बढ़ा रही हैं स्वावलंबन की दिशा में बड़ा कदम
पालक, लालभाजी, हल्दी, जड़ी- बुटी व फूलों से हो रहा है हर्बल गुलाल बनाने का कार्य
रायपुर : एक वक्त था कि बाजार में केमिकल युक्त रंग गुलाल के अलावा कुछ उपलब्ध नहीं था। हर बार होली के त्यौहार पर त्वचा संबंधी बीमारियों को लेकर लोग परेशान रहते थे। लेकिन मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल के द्वारा गोधन न्याय योजना की शुरूआत के बाद केमिकल युक्त गुलाल अब लोगों के जीवन से दूर हो चले हैं। गोधन न्याय योजना से जुड़ी महिलाएं स्व सहायता समूहों के माध्यम से न सिर्फ वर्मी कंपोस्ट तैयार कर रही हैं बल्कि हर्बल गुलाल के उत्पादन में भी अग्रसर होकर स्वावलंबन की दिशा में कदम बढ़ा रही हैं।
समूह की महिलाएं पालक, लालभाजी, हल्दी, जड़ी- बुटी व फूलों से हर्बल गुलाल बनाने का कार्य कर रही हैं और इसमें किसी भी तरह का केमिकल नहीं मिलाया जाता है। इसके अलावा मंदिरों एवं फूलों के बाजार से निकलने वाले पुराने फूलों की पत्तियों को सुखाकर प्रोसेसिंग यूनिट में पीसकर गुलाल तैयार किया जा रहा है। फूलों के साथ ही चुकंदर, हल्दी, आम और अमरूद की हरी पत्तियां को भी प्रोसेस कर इसमें मिलाया जाता है।
गत वर्ष हर्बल गुलाल की मांग को देखते हुए इस बार होली पर्व को लेकर बिहान समूह से जुड़ी महिलाएँ हर्बल गुलाल की तैयारी में दिन रात जुटी हुयी हैं। हर्बल गुलाल की खासियत ये है कि ये पूरी तरह से केमिकल रहित होता है और इसके इस्तेमाल से कोई साइड इफेक्ट भी नहीं होता है। हर्बल गुलाल में रंग और महक के लिए प्राकृतिक फूलों का ही इस्तेमाल किया जाता है। बिहान समूह की महिलाओं के द्वारा स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए हर्बल गुलाल का निर्माण किया जा रहा है और इसकी मांग पूरे प्रदेश में है। महिला स्व सहायता समूह के सदस्यों की इस मेहनत से उन्हें स्वरोजगार के अवसर उपलब्ध हो रहे हैं और वे आर्थिक स्वावलंबन की तरफ अग्रसर हो रही हैं।महासमुंद जिले के ग्राम पंचायत डोगरपाली की जयमाता दी समूह की सदस्य श्रीमती अम्बिका साहू का कहना है कि उन्होंने गत वर्ष होली में 50 किलो हर्बल गुलाल बनाया था और ये पूरा हर्बल गुलाल बिक गया था। पिछली बार की मांग को देखते हुए इस बार ज्यादा हर्बल गुलाल का उत्पादन करने का लक्ष्य है। इस गुलाल के प्रयोग से त्वचा को किसी तरह का नुकसान नहीं होता है। विहान समूह की महिलाओं का कहना है कि उनका ये भी प्रयास है कि वो लोगों को हर्बल गुलाल के फायदे को समझाएं ताकि लोग इन्हें ज्यादा से ज्यादा अपनाएं और खुशी के साथ होली का पर्व मनाएं । -
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रायपुर : कई पीढ़ियों से भारतीय खान-पान का अहम हिस्सा रहे मिलेट्स कब थाली से गायब हो गए पता ही नहीं चला। मिलेट्स की पौष्टिकता और उसके फायदों को देखते हुए फिर से उसका महत्व लोगों तक पहुंचाने की कोशिश सरकारों द्वारा की जा रही है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वर्ष 2023 को अंतर्राष्ट्रीय मिलेट ईयर के रूप में मनाया जा रहा है। सामान्यतः मोटे अनाज वाली फसलों जैसे ज्वार, बाजरा, रागी, सावां, कोदो, कुटकी और कुट्टू को मिलेट क्रॉप कहा जाता है। मिलेट्स को सुपर फूड भी माना जाता है, क्योंकि इनमें पोषक तत्व अपेक्षाकृत अधिक मात्रा में होते हैं।
छत्तीसगढ़ की बात करें तो मिलेट्स यहां के आदिवासी समुदाय के दैनिक आहार का पारंपरिक रूप से अहम हिस्सा रहे हैं। आज भी बस्तर में रागी का माड़िया पेज बचे चाव से पिया जाता है। छत्तीसगढ़ के वनांचलों में मिलेट्स की खेती भी भरपूर होती है। इसे देखते हुए मोटे अनाजों के उत्पादन और उपभोग को प्रोत्साहित करने के लिए मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल की पहल पर मिलेट मिशन चलाया जा रहा है।छत्तीसगढ़ देश का पहला राज्य है, जहां मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल के नेतृत्व में मिलेट्स को लगातार बढ़ावा दिया जा रहा है। छत्तीसगढ़ में कोदो, कुटकी और रागी का ना सिर्फ समर्थन मूल्य घोषित किया गया, अपितु समर्थन मूल्य पर खरीदी भी की जा रही है। छत्तीसगढ़ राज्य लघु वनोपज संघ के माध्यम से प्रदेश में कोदो, कुटकी एंव रागी का न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारित कर उपार्जन किया जा रहा है। इस पहल से छत्तीसगढ़ में मिलेट्स का रकबा डेढ़ गुना बढ़ा है और उत्पादन भी बढ़ा है।
छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले के नथिया-नवागांव में मिलेट्स का सबसे बड़ा प्रोसेसिंग प्लांट भी स्थापित किया जा चुका है, जो कि एशिया की सबसे बड़ी मिलेट्स प्रसंस्करण इकाई है। अब तक राज्य के 10 जिलों में 12 लघु मिलेट प्रसंस्करण केन्द्र स्थापित किए जा चुके हैैं। गौठानों में विकसित किए जा रहे रूरल इंडस्ट्रियल पार्क में मिलेट्स प्रोसेसिंग प्लांट लगाए जा रहे हैं।
मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल की पहल पर छत्तीसगढ़ विधानसभा में मिलेट्स से बने व्यंजनों को बढ़ावा देने के लिए दोपहर भोज का भी आयोजन किया जा चुका है। रायगढ़ जिले के खरसिया में बीते दिनों प्रदेश के पहले मोबाईल मिलेट कैफे ’मिलेट ऑन व्हील्स का शुभारंभ भी किया है। मोबाइल कैफे का संचालन करने वाली महिला समूह ने महज 8 महीनों में कैफे की मासिक आमदनी 3 लाख रूपये को पार कर गयी है। इस चलते फिरते मिलेट कैफे में रागी का चीला, डोसा, मिलेट्स पराठा, इडली, मिलेट्स मंचूरियन, पिज्जा, कोदो की बिरयानी और कुकीज जैसे लजीज व्यंजन परोसे जा रहे हैं। स्वास्थ्य के प्रति जागरूक लोगों, फूड ब्लॉगर्स और युवाओं की यह पहली पसंद बन गए हैं।
छत्तीसगढ़ में शुरू हुए मिलेट मिशन का मुख्य उद्देश्य जिसका प्रमुख उद्देश्य प्रदेश में मिलेट (कोदो, कुटकी, रागी, ज्वार इत्यादि) की खेती के साथ-साथ मिलेट के प्रसंस्करण को बढ़ावा देना है। इसके अतिरिक्त दैनिक आहार में मिलेट्स के उपयोग को प्रोत्साहित कर कुपोषण दूर करना है। प्रदेश में आंगनबाड़ी और मिड-डे मील में भी मिलेट्स को शामिल किया गया है। स्कूलों में बच्चों को मिड-डे मील में मिलेट्स से बनने वाले व्यंजन परोसे जा रहे है। इनमें मिलेट्स से बनी कुकीज, लड्डू और सोया चिक्की जैसे व्यंजनों को शामिल किया गया है।
छत्तीसगढ़ में मिलेट्स की खेती के लिए राज्य को राष्ट्रीय स्तर का पोषक अनाज अवार्ड 2022 सम्मान भी मिल चुका है। मिलेट मिशन के चलते राज्य में कोदो, कुटकी और रागी (मिलेट्स) की खेती को लेकर किसानों का रूझान बहुत तेजी से बढ़ा है। पहले औने-पौने दाम में बिकने वाला मिलेट्स अब छत्तीसगढ़ राज्य में अच्छे दामों में बिकने लगा है। बीते एक सालों में प्रमाणित बीज उत्पादक किसानों की संख्या में लगभग 5 गुना और इससे होने वाली आय में चार गुना की वृद्धि हुई है।
प्रदेश में कोदो, कुटकी और रागी की खेती का रकबा 69 हजार हेक्टेयर से बढ़कर एक लाख 88 हजार हेक्टेयर तक पहुंच गया है। मिलेट उत्पादक किसानों को राजीव गांधी किसान न्याय योजना का लाभ भी दिया जा रहा है। इस किसानों को भी 9000 रूपए प्रति एकड़ की मान से आदान सहायता दी जा रही है।
आईआईएमआर हैदराबाद के साथ छत्तीसगढ़ राज्य लघु वनोपज संघ के प्रयास से मिलेट मिशन के अंतर्गत त्रिपक्षीय एमओयू भी हो चुका है। छत्तीसगढ़ मिलेट मिशन के तहत मिलेट की उत्पादकता को दोगुना किए जाने का भी लक्ष्य रखा गया है। सीएसआईडीसी ने मिलेट आधारित उद्योगों को प्रोत्साहित करने के लिए कुछ चुंनिदा ब्लॉक में भूमि, संयंत्र एवं उपकरण पर 50 प्रतिशत सब्सिडी की योजना पेश की है। उम्मीद है कि पीढ़ियों से हमारे स्वाद और सेहत का खजाना रहे मिलेट्स का स्वस्थ जीवन शैली के लिए महत्व को लोग समझेंगे और एक बार फिर यह हमारी दैनिक जीवन का हिस्सा होगा। -
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नक्सल पीड़ित क्षेत्रों में 900 से अधिक परिवारों को दिलाई जा चुकी है मुकदमों से मुक्ति
बीते वर्ष 555 नक्सलवादियों को आत्मसमर्पण के लिए प्रेरित करने में मिली बड़ी सफलता, इस दौरान 46 नक्सली हुए धराशायी
छत्तीसगढ़ के डीजीपी ने लिखा एनआईए के महानिदेशक को पत्र
बस्तर में हुई तीन जनप्रतिनिधि की हत्या की जांच का किया अनुरोध
रायपुर : मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने कहा कि छत्तीसगढ़ में सरकार भयमुक्त एवं विधिसम्मत शासन व्यवस्था प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध है। मुख्यमंत्री ने अपराध पर लगाम लगाए जाने और नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में पुलिस के संवेदनशील रवैये के साथ नक्सलवादियों के आत्मसमर्पण के लिए छत्तीसगढ़ पुलिस की तारीफ की है। उन्होंने कहा है कि विकास,विश्वास और सुरक्षा की रणनीति के कारण ही प्रदेश में नक्सली हिंसा की घटनाओं पर प्रभावी रोक लगी है।
प्रदेश के गृहमंत्री श्री ताम्रध्वज साहू ने कहा है कि छत्तीसगढ़ राज्य में पिछले चार वर्षों में नक्सली उन्मूलन को लेकर लगातार कार्य किए जा रहे हैं। राज्य सरकार द्वारा पुलिस आधुनिकीकरण के कार्य किए जा रहे हैं। छत्तीसगढ़ शासन नक्सलियों के खिलाफ पुलिस को आधुनिक हथियार, सुरक्षा उपकरण, आवश्यक प्रशिक्षण एवं वाहन उपलब्ध करा रही है।
बीते वर्ष सरकार के द्वारा जनहित में किए जा रहे कार्यों से प्रभावित होकर और छत्तीसगढ़ पुलिस के संवेदनशील व्यवहार के कारण 555 नक्सलवादियों ने आत्मसमर्पण किया है जो एक बड़ी सफलता है। इसी दौरान 46 नक्सलवादियों की पुलिस मुठभेड़ में मौत भी हुई है। बीते चार वर्षों में नक्सल पीड़ित क्षेत्रों में 900 से अधिक परिवारों को मुकदमों से मुक्ति दिलाई जा चुकी है जो सरकार की आदिवासियों के हित में दूरदर्शी सोच और पुलिस की संवेदनशीलता से संभव हो पाया है।
बस्तर को लेकर चार वर्ष पहले तक देश में कई भ्रांतियां थीं। लेकिन इन चार वर्षों में सरकार ने सुरक्षा और विश्वास को लेकर कार्य किया है। इस दौरान बस्तर क्षेत्र में विकास के कार्य हुए हैं। इस दौरान नक्सल प्रभावित क्षेत्रों के बंद पड़े स्कूलों को फिर से प्रारंभ किया गया, नए अस्पताल खोले गए, ग्रामीणों के लिए पानी और बिजली जैसी बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराई गयीं। प्रत्येक गांव में राशन दुकान खोले गए हैं। नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में किसानों को वन अधिकार पट्टों का वितरण किया गया है और आदिवासियों को उनकी जमीनें वापस कराई गई है।
गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ के पुलिस महानिदेशक श्री अशोक जुनेजा ने एनआईए के महानिदेशक को पत्र लिखकर बस्तर में हुई तीन जनप्रतिनिधि की हत्या की जांच की मांग की है। श्री जुनेजा ने कहा है कि माओवादियों का इलाका लगातार सिकुड़ रहा है, केंद्रीय सुरक्षा बल और राज्य पुलिस के प्रयास से विगत वर्षों में नक्सली उन्मूलन में सफलता मिली है और इससे नक्सली बौखलाहट में जनप्रतिनिधियों, आम नागरिकों को निशाना बना रहे हैं। -
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ईंटों से बना हुआ प्राचीन लक्ष्मण मंदिर आज भी यहाँ का दर्शनीय स्थान
उत्खनन में यहाँ पर पाए गए हैं प्राचीन बौद्ध मठ
सिरपुर महोत्सव में दिखती है कला व संस्कृति की अनोखी झलक
महासमुंद : सिरपुर छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिले में महानदी के तट स्थित एक पुरातात्विक स्थल है। इस स्थान का प्राचीन नाम श्रीपुर है यह एक विशाल नगर हुआ करता था तथा यह दक्षिण कोशल की राजधानी थी। सोमवंशी नरेशों ने यहाँ पर राम मंदिर और लक्ष्मण मंदिर का निर्माण करवाया था। ईंटों से बना हुआ प्राचीन लक्ष्मण मंदिर आज भी यहाँ का दर्शनीय स्थान है। उत्खनन में यहाँ पर प्राचीन बौद्ध मठ भी पाये गये हैं।
अंतराष्ट्रीय पर्यटन मानचित्र पर सिरपुर अपनी ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक महत्ता के कारण आकर्षण का केंद्र हैं। यह पांचवी से आठवीं शताब्दी के मध्य दक्षिण कोसल की राजधानी थी। सिरपुर में सांस्कृतिक एंव वास्तुकौशल की कला का अनुपम संग्रह हैं। भारतीय इतिहास में सिरपुर अपने धार्मिक मान्यताओ और वैज्ञानिक दृष्टिकोण के कारण आकर्षण का केन्द्र था और वर्तमान में भी ये देश विदेश के पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है।सिरपुर महोत्सव का आयोजन
सिरपुर के एतिहासिक महत्व को देखते हुए छत्तीसगढ़ शासन की तरफ से प्रत्येक वर्ष यहां पर सिरपुर महोत्सव का आयोजन किया जाता है। छत्तीसगढ़ के विश्व प्रसिद्ध ऐतिहासिक स्थल सिरपुर में माघ पूर्णिमा के अवसर पर होने वाले तीन दिवसीय सिरपुर महोत्सव का हर किसी को इंतजार रहता है। रविवार को खाद्य एवं संस्कृति मंत्री श्री अमरजीत भगत ने तीन दिवसीय सिरपुर महोत्सव का शुभारंभ करते हुए सभी प्रदेश वासियों को माघी पूर्णिमा सिरपुर महोत्सव की शुभकामनाएं दी हैं।
गंधेश्वर महादेव का मंदिरसिरपुर का एक अन्य मंदिर गंधेश्वर महादेव का है। यह महानदी के तट पर स्थित है। इसके दो स्तम्भों पर अभिलेख उत्कीर्ण हैं। कहा जाता है कि चिमणाजी भौंसले ने इस मन्दिर का जीर्णोद्वार करवाया था। सिरपुर से बौद्धकालीन अनेक मूर्तियाँ भी मिली हैं। जिनमें तारा की मूर्ति सर्वाधिक सुन्दर है। सिरपुर का तीवरदेव के राजिम-ताम्रपट्ट लेख में उल्लेख है। 14वीं शती के प्रारम्भ में, यह नगर वारंगल के ककातीय नरेशों के राज्य की सीमा पर स्थित था। 310 ई. में अलाउद्दीन खलिजी के सेनापति मलिक काफूर ने वारंगल की ओर कूच करते समय सिरपुर पर भी धावा किया था, जिसका वृत्तान्त अमीर खुसरो ने लिखा है।
आधुनिकता के दौर में बौद्ध विरासत, लोककला एवं संस्कृति का केंद्रसिरपुर महोत्सव आधुनिकता के दौर में भी अपनी प्राचीन संस्कृति और भव्यता को बनाये हुए है। युवा पीढ़ी को यहाँ की बौद्ध विरासत तथा लोककला एवं संस्कृति को जानने का अवसर मिलता है। सिरपुर लोगों की आस्था और श्रद्धा का केन्द्र है जिसे देखने और महसूस करने के लिए देश विदेश से लोग यहां पहुंचते हैं। गौरतलब है कि मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल के नेतृत्व में राज्य में हर तरफ विकास के काम हो रहे हैं। मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने राज्य के लोक कलाकारों को प्रोत्साहित करने के लिए योजना बनायी है जिससे स्थानीय कलाकारों को प्रोत्साहन मिल रहा है। -
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आस्था, आध्यात्म और संस्कृति का त्रिवेणी संगम
रायपुर : छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले में स्थित पवित्र धार्मिक नगरी राजिम में प्रतिवर्ष माघ पूर्णिमा से महाशिवरात्रि तक पंद्रह दिनों का मेला लगता है। राजिम में तीन नदियों का संगम है इसलिए इसे त्रिवेणी संगम भी कहा जाता है, यहाँ मुख्य रूप से तीन नदियां बहती हैं, जिनके नाम क्रमशः महानदी, पैरी नदी तथा सोंढूर है। संगम स्थल पर कुलेश्वर महादेव जी विराजमान है। राज्य शासन द्वारा वर्ष 2001 से राजिम मेले को राजीव लोचन महोत्सव के रूप में मनाया जाता था, वर्ष 2005 से इसे कुम्भ के रूप में मनाया जाता रहा था, और अब 2019 से राजिम माघी पुन्नी मेला के रूप में मनाया जा रहा है।यह आयोजन छत्तीसगढ़ शासन धर्मस्व एवं पर्यटन विभाग एवं स्थानीय आयोजन समिति के तत्वाधान में होता है। मेला की शुरुआत कल्पवास से होती है। पखवाड़े भर पहले से श्रद्धालु पंचकोशी यात्रा प्रारंभ कर देते हैं पंचकोशी यात्रा में श्रद्धालु पटेश्वर, फिंगेश्वर, ब्रम्हनेश्वर, कोपेश्वर तथा चम्पेश्वर नाथ के पैदल भ्रमण कर दर्शन करते हैं तथा धुनी रमाते हैं। 101 कि॰मी॰ की यात्रा का समापन होता है और माघ पूर्णिमा से मेला का आगाज होता है। इस वर्ष 5 फरवरी माद्य पूर्णिमा से 18 फरवरी 2023 महाशिवरात्रि तक राजिम माद्यी पुन्नी मेला आयोजित किया गया है। राजिम माघी पुन्नी मेला में विभिन्न जगहों से हजारांे साधू संतों का आगमन होता है, प्रतिवर्ष हजारो की संख्या में नागा साधू, संत आदि आते हैं, तथा विशेष पर्व स्नान तथा संत समागम में भाग लेते हैं, प्रतिवर्ष होने वाले इस माघी पुन्नी मेला में विभिन्न राज्यों से लाखों की संख्या में लोग आते हैं और भगवान श्री राजीव लोचन तथा श्री कुलेश्वर नाथ महादेव जी के दर्शन करते हैं और अपना जीवन धन्य मानते हैं। लोगो में मान्यता है कि भगवान जगन्नाथपुरी जी की यात्रा तब तक पूरी नही मानी जाती, जब तक भगवान श्री राजीव लोचन तथा श्री कुलेश्वर नाथ के दर्शन नहीं कर लिए जाते, राजिम माघी पुन्नी मेला का अंचल में अपना एक विशेष महत्व है।
राजिम अपने आप में एक विशेष महत्व रखने वाला एक छोटा सा शहर है। राजिम गरियाबंद जिले का एक तहसील है। प्राचीन समय से राजिम अपने पुरातत्वों और प्राचीन सभ्यताओं के लिए प्रसिद्ध है। राजिम मुख्य रूप से भगवान श्री राजीव लोचन जी के मंदिर के कारण प्रसिद्ध है। राजिम का यह मंदिर आठवीं शताब्दी का है। यहाँ कुलेश्वर महादेव जी का भी मंदिर है। जो संगम स्थल पर विराजमान है। राजिम माघी पुन्नी मेला प्रतिवर्ष माघ पूर्णिमा से महाशिवरात्रि तक चलता है। इस दौरान प्रशासन द्वारा विविध सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजन होते हैं। - द न्यूज़ इंडिया समाचार सेवारायपुर : छत्तीसगढ़ की माटी में खुशबू में समाहित लोक कला एवं संस्कृति को आगे लाने के साथ राज्य सरकार छत्तीसगढ़िया खेलों को भी आगे बढ़ाने का काम किया जा रहा है। छत्तीसगढ़िया ओलंपिक का आयोजन पहली बार इसी मंशा से किया गया, जिसे भारी जनसमर्थन देखने को मिला। मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल द्वारा 6 अक्टूबर को इसका शुभारंभ किया गया, जो अब अंतिम चरणों में है। 10 जनवरी को इसका समापन हो जाएगा। छह चरणों में आयोजित छत्तीसगढ़िया आलंपिक प्रतिस्पर्धा में लोगों का शामिल होने का जुनून देखते ही बनता है। इस ओलंपिक की खास बात यह रही कि महिलाओं ने इसमें बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। इनमें ऐसी महिलाएं भी शामिल है, जो शादी के बाद ससुराल चली गई थी, उन्हें भी अपनी जड़ों से जुड़ने का मौका इस ओलंपिक ने दिया है। ये महिलाएं विभिन्न स्तरों पर आयोजित प्रतियोगिताओं में अप्रत्याशित रूप से विजेता बनकर उभरीं।
छत्तीसगढ़िया ओलंपिक में बच्चे और युवाओं के साथ खेल मैदान से नाता तोड़ चुके बुजुर्गों ने भी पूरे जोशो-खरोश के साथ भाग लिया और अपनी खेल प्रतिभा और खेल कौशल का प्रदर्शन कर लोगों को दांतों तले अंगुलियां दबाने को मजबूर कर दिया। इस ओलंपिक में छह साल की बच्ची से लेकर 65 साल के बुजुर्ग भी शामिल हो रहे हैं। ये खिलाड़ी ग्रामीण स्तर से अपनी प्रतिभा को साबित करते हुए संभाग स्तर पर विजेता बनकर उभरे और अब राज्य स्तरीय स्पर्धाओं में अपनी प्रतिभा का जौहर दिखा रहे हैं।
उभर कर आये कई प्रतिभावान खिलाड़ी-
छत्तीसगढ़िया ओलंपिक प्रतियोगिता के माध्यम से रायपुर की नबोनीता बैरा को बिलासपुर खेल अकादमी में प्रशिक्षण का सुनहरा मौका मिला है। बुजुर्गों ने भी इन खेलों में अपना दम-खम दिखाया। फुगड़ी में हरदी ग्राम पंचायत की 65 वर्षीय श्रीमती आशोबाई ने 01 घण्टा 31 मिनट 58 सेकेण्ड तक फुगड़ी खेलकर अपने जज्बे से 40 वर्ष अधिक आयुवर्ग में जीत हासिल की। दूसरे स्थान पर रही कोरबा जिले के पाली विकासखंड की साहिन बाई ने आशोबाई को 01 घण्टा 31 मिनट 53 सेकण्ड तक कड़ी टक्कर दी और दूसरा स्थान प्राप्त किया। वहां मौजूद दर्शकों ने इस आयु वर्ग के खिलाड़ियों को पूरे जोशो-खरोश के साथ खेलते देखकर उनका खूब उत्साहवर्धन किया। दर्शकों ने कहा कि इस आय वर्ग के खिलाड़ियों को देखना एक सुखद अनुभव कराता है और अपनी खेल और परंपराओं के प्रति उनका समर्पण को भी दिखाता है। यहां आये लोगों ने छत्तीसगढ़ सरकार की इस कदम की सराहना करते हुए इसे आगे भी जारी रखने की बात कही।
इस ओलंपिक में कई खिलाड़ी अपनी शारीरिक कमियों और विपरीत परिस्थितियों के बावजूद अपने पूरे दमखम के साथ शामिल होकर अपने आप को साबित भी किया। ऐसी ही एक कहानी है बस्तर केे बकावंड ब्लाक के ग्राम सरगीपाल की रहने वाली गुरबारी की है। उनकी बाएं हाथ की हथेली नहीं है, लेकिन बावजूद उन्होंने राजीव युवा मितान क्लब स्तर पर कई खेलों में भाग लिया और सामूहिक खेल कबड्डी और खो-खो में जीत भी दर्ज की।
ग्रामीण क्षेत्रों में 25 लाख और नगरों में 1.30 लाख लोगों की रही भागीदारी-
छत्तीसगढ़िया ओलंपिक की राज्य स्तरीय आयोजन में प्रदेश के विभिन्न जिलों के लगभग 1900 प्रतिभागी शामिल हो रहे हैं। इस खेल आयोजन में ग्रामीण क्षेत्रों के 25 लाख से ज्यादा और नगरीय क्षेत्रों में एक लाख 30 हजार से ज्यादा लोगों की भागीदारी रही। राज्य स्तरीय स्पर्धाएं राजधानी रायपुर के चार स्थानों पर आयोजित हो रही हैं। बलबीर सिंह जुनेजा इनडोर स्टेडियम में फुगड़ी, बिल्लस, भंवरा, बाटी और कबड्डी, छत्रपति शिवाजी महाराज आउटडोर स्टेडियम में संखली, रस्साकशी, लंगडी, पिट्ठुल, गेंडी दौड़, माधव राव सप्रे उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में खो-खो और गिल्ली डंडा और स्वामी विवेकानंद स्टेडियम कोटा में लंबी कूद और 100 मीटर दौड़ खेलों की प्रतिस्पर्धाएं आयोजित की गई।
छत्तीसगढ़िया ओलंपिक में रही प्रदेश के 14 पारंपरिक खेलों की धूम-
मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल की पहल पर छत्तीसगढ़ में पारंपरिक खेलों को बढ़ावा देेने के उद्देश्य के छत्तीसगढ़िया ओलंपिक का आयोजन हो रहा है। पारंपरिक खेलों में शामिल होने को लेकर लोगों का उत्साह देखते ही बनता है। घरेलू महिलाएं, बच्चे और बुजुर्ग भी इस ओलंपिक में बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं। छत्तीसगढ़िया ओलंपिक में 14 खेलों को शामिल किया गया है। इसके तहत दलीय खेल में गिल्ली डंडा, पिट्टुल, संखली, लंगड़ी दौड़, कबड्डी, खो-खो, रस्साकसी, बाटी (कंचा) और एकल खेल में बिल्लस, फुगड़ी, गेड़ी दौड़, भंवरा, 100 मी. दौड़ तथा लंबी कूद की प्रतिस्पर्धाएं आयोजित की जा रही हैं। छह चरणों में आयोजित किए जा रहे छत्तीसगढ़िया ओलंपिक में लेवल-01 राजीव युवा मितान क्लब, लेवल- 02 जोन स्तर, लेवल-03 विकासखंड एवं नगरीय क्लस्टर स्तर, लेवल-04 जिला स्तर, लेवल-05 संभाग स्तर पर आयोजित होने के बाद लेवल-06 में राज्य स्तर पर प्रतियोगिताएं हो रही है।
छत्तीसगढ़िया ओलंपिक के आयोजन से गांव, नगर, कस्बों में खेलों को लेकर उत्साहजनक वातावरण तैयार हुआ। छत्तीसगढ़ में राज्य सरकार जिस तरह से छत्तीसगढ़ी परंपरा विरासत और संस्कृति के संरक्षण का प्रयास कर रही है। उसी तरह हमारे ग्रामीण अंचलों की गलियों में खेले जाने वाले पारंपरिक खेलों को भी सहेज रही हैं। प्रतिभागियों का उत्साह और हौसला बढ़ाने के लिए खासी भीड़ भी जुटी। लोग अपने पुराने दिनों की यादों को ताजा कर रहे हैं। राज्य सरकार ने इस आयोजन के माध्यम से ऐसे लोगों को अपना खेल हुनर दिखाने का अवसर दिया है, जो खुद की खेल प्रतिभा से अंजान थे। - द न्यूज़ इंडिया समाचार सेवा
रायपुर : छेरछेरा पर्व पौष पूर्णिमा के दिन छत्तीसगढ़ में बड़े ही धूमधाम, हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है। इसे छेरछेरा पुन्नी या छेरछेरा तिहार भी कहते हैं। इसे दान लेने-देने पर्व माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन दान करने से घरों में धन धान्य की कोई कमी नहीं रहती। इस दिन छत्तीसगढ़ में बच्चे और बड़े, सभी घर-घर जाकर अन्न का दान ग्रहण करते हैं। युवा डंडा नृत्य करते हैं।
छत्तीसगढ़ की संस्कृति के संरक्षण और संवर्धन के लिए शासन द्वारा बीते चार वर्षों के दौरान उठाए गए महत्वपूर्ण कदमों के क्रम में स्थानीय तीज-त्यौहारों पर भी अब सार्वजनिक अवकाश दिए जाते हैं। इनमें छेरछेरा (मां शाकंभरी जयंती) तिहार भी शामिल है। जिन अन्य लोक पर्वों पर सार्वजनिक अवकाश दिए जाते हैं वे हैं हरेली, तीजा, मां कर्मा जयंती, विश्व आदिवासी दिवस और छठ। अब राज्य में इन तीज-त्यौहारों को व्यापक स्तर पर मनाया जाता है, जिसमें शासन की भी भागीदारी होती है। इन पर्वों के दौरान महत्वपूर्ण शासकीय आयोजन होते है तथा महत्वपूर्ण शासकीय घोषणाएं भी की जाती है। छेरछेरा पुन्नी के दिन स्वयं मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल भी परम्परा का निर्वाह करते हुए छेरछेरा मांगते हैं।छत्तीसगढ़ का लोक जीवन प्राचीन काल से ही दान परम्परा का पोषक रहा है। कृषि यहाँ का जीवनाधार है और धान मुख्य फसल। किसान धान की बोनी से लेकर कटाई और मिंजाई के बाद कोठी में रखते तक दान परम्परा का निर्वाह करता है। छेर छेरा के दिन शाकंभरी देवी की जयंती मनाई जाती है। ऐसी लोक मान्यता है कि प्राचीन काल में छत्तीसगढ़ में सर्वत्र घोर अकाल पड़ने के कारण हाकाकार मच गया। लोग भूख और प्यास से अकाल मौत के मुँह में समाने लगे। काले बादल भी निष्ठुर हो गए। नभ मंडल में छाते जरूर पर बरसते नहीं। तब दुखीजनों की पूजा-प्रार्थना से प्रसन्न होकर अन्न, फूल-फल व औषधि की देवी शाकम्भरी प्रकट हुई और अकाल को सुकाल में बदल दिया। सर्वत्र खुशी का माहौल निर्मित हो गया। छेरछेरा पुन्नी के दिन इन्हीं शाकंभरी देवी की पूजा-अर्चना की जाती है। यह भी लोक मान्यता है कि भगवान शंकर ने इसी दिन नट का रूप धारण कर पार्वती (अन्नपूर्णा) से अन्नदान प्राप्त किया था। छेरछेरा पर्व इतिहास की ओर भी इंगित करता है।
माई कोठी के धान ला हेर हेरा
छेरछेरा पर बच्चे गली-मोहल्लों, घरों में जाकर छेरछेरा (दान) मांगते हैं। दान लेते समय बच्चे ‘छेर छेरा माई कोठी के धान ला हेर हेरा’ कहते हैं और जब तक गृहस्वामिनी अन्न दान नहीं देंगी तब तक वे कहते रहेंगे- ‘अरन बरन कोदो दरन, जब्भे देबे तब्भे टरन’। इसका मतलब ये होता है कि बच्चे कह रहे हैं, मां दान दो, जब तक दान नहीं दोगे तब तक हम नहीं जाएंगे।
छेरछेरा पर्व में अमीर गरीब के बीच दूरी कम करने और आर्थिक विषमता को दूर करने का संदेश छिपा है। इस पर्व में अहंकार के त्याग की भावना है, जो हमारी परम्परा से जुड़ी है। सामाजिक समरसता सुदृढ़ करने में भी इस लोक पर्व को छत्तीसगढ़ के गांव और शहरों में लोग उत्साह से मनाते हैं। -
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कोदो-कुटकी उगाने वाले किसान समृद्धि की ओर
किसानों को कोदो से होने लगी करोड़ों की आय
बीज विक्रय से आमदनी में चार गुना इजाफा
रायपुर : मिलेट को बढ़ावा देने के मामले में छत्तीसगढ़ को मिल चुका है देश के सर्वश्रेष्ठ उदीयमान राज्य का सम्मानछत्तीसगढ़ मिलेट मिशन के चलते राज्य में कोदो, कुटकी और रागी (मिलेट्स) की खेती को लेकर किसानों का रूझान बहुत तेजी से बढ़ा है। पहले औने-पौने दाम में बिकने वाला मिलेट्स अब छत्तीसगढ़ राज्य में अच्छे दामों में बिकने लगा है। मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल की विशेष पहल के चलते राज्य में मिलेट्स की समर्थन मूल्य पर खरीदी होने से किसानों को करोड़ों रूपए की आय होने लगी है। बीते सीजन में किसानों ने समर्थन मूल्य पर 34298 क्विंटल मिलेट्स 10 करोड़ 45 लाख रूपए में बेचा था। छत्तीसगढ़ देश का इकलौता राज्य है, जहां कोदो, कुटकी और रागी की समर्थन मूल्य पर खरीदी और इसके वैल्यू एडिशन का काम भी किया जा रहा है। कोदो-कुटकी की समर्थन मूल्य पर 3000 प्रति क्विंटल की दर से तथा रागी की खरीदी 3377 रूपए प्रति क्विंटल की दर से खरीदी की जा रही है।
शासन की महत्वाकांक्षी योजना राजीव गांधी किसान न्याय योजना एवं मिलेट मिशन किसानों के लिए वरदान साबित हो रही है। छत्तीसगढ़ राज्य लघु वनोपज संघ द्वारा वर्ष 2021-22 में 5,273 टन मिलेट जिसका मूल्य रू. 16.03 करोड़ का समर्थन मूल्य पर क्रय किया गया है। वर्ष 2022-23 में 13,005 टन मिलेट जिसका मूल्य रू. 39.60 करोड़ का समर्थन मूल्य पर क्रय करने का लक्ष्य है।
देश के कई आदिवासी इलाकों में मोटे अनाज का काफी समय से प्रयोग किया जाता रहा है। यह स्वास्थ्य की दृष्टि से बहुत फायदेमंद है, इसलिए अब दूसरे इलाकों में भी इन अनाज का काफी इस्तेमाल किया जा रहा है। एक्सपर्ट के मुताबिक कोदो कुटकी को प्रोटीन व विटामिन युक्त अनाज माना गया है। इसके सेवन से शुगर बीपी जैसे रोग में लाभ मिलता है. कोदो एक मोटा अनाज है, जिसे अंग्रेजी में कोदो मिलेट या काउ ग्रास के नाम से जाना जाता है। कोदो के दानों को चावल के रूप में खाया जाता है और स्थानीय बोली में भगर के चावल के नाम पर इसे उपवास में भी खाया जाता है। बस्तर के आदिवासी संस्कृति व खानपान में कोदो कुटकी रागी जैसे फसलों का महत्वपूर्ण स्थान है।
छत्तीसगढ़ राज्य बीज प्रमाणीकरण संस्था के सहयोग एवं मार्गदर्शन से किसान कोदो के प्रमाणित बीज का उत्पादन कर अच्छा खासा मुनाफा अर्जित करने लगे हैं। बीते एक सालों में प्रमाणित बीज उत्पादक किसानों की संख्या में लगभग 5 गुना और इससे होने वाली आय में चार गुना की वृद्धि हुई है। वर्ष 2021-22 में राज्य के 11 जिलों के 171 कृषकों द्वारा 3089 क्विंटल प्रमाणित बीज का उत्पादन किया गया, जिसे बीज निगम ने 4150 रूपए प्रति क्विंटल की दर से किसानों से क्रय कर उन्हें एक करोड़ 28 लाख 18 हजार रूपए से अधिक की राशि भुगतान किया है। राज्य के किसानों द्वारा उत्पादित प्रमाणित बीज, सहकारी समितियों के माध्यम से बोआई के लिए प्रदाय किया जा रहा है।
बीज प्रमाणीकरण संस्था के अधिकारियों ने बताया कि वर्ष 2020-21 में राज्य में 7 जिलों के 36 किसानों द्वारा मात्र 716 क्विंटल प्रमाणित बीज का उत्पादन किया गया था। इससे उत्पादक किसानों को 32 लाख 88 हजार रूपए की आमदनी हुई थी, जबकि 2021-22 में कोदो बीज उत्पादक किसानों की संख्या और बीज विक्रय से होने वाला लाभ कई गुना बढ़ गया है। बीते तीन वर्षो में कोदो प्रमाणित बीज उत्पादक किसानों ने एक करोड़ 65 लाख 18 हजार 633 रूपए का बीज, छत्तीसगढ़ बीज एवं विकास निगम को विक्रय किया है।
अधिकारियों ने बताया कि ऐसी कृषि भूमि जहां धान का उत्पादन नाममात्र उत्पादन होता है, वहां कोदो की खेती किया जाना ज्यादा लाभकारी है। कोदो की खेती की कम पानी और कम खाद की जरूरत पड़ती है। जिसके फलस्वरूप इसकी खेती में लागत बेहद कम आती है और उत्पादक कृषकों को लाभ ज्यादा होता है। उन्होंने बताया कि वर्ष 2019-20 में राज्य में मात्र 103 क्विंटल प्रमाणित बीज उत्पादन हुआ था। मिलेट्स मिशन लागू होने के बाद से छत्तीसगढ़ राज्य बीज प्रमाणीकरण संस्था द्वारा अन्य शासकीय संस्थानों से समन्वय कर कोदो बीज उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए निरंतर प्रयासरत है, जिससे बीज उत्पादन में लगातार वृद्धि हो रही है।
गौरतलब है कि मिलेट्स की खेती को बढ़ावा देने के मामले में छत्तीसगढ़ राज्य को राष्ट्रीय स्तर का पोषक अनाज अवार्ड 2022 सम्मान भी मिल चुका है। राज्य में मिलेट्स उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए इसको राजीव गांधी किसान न्याय योजना में शामिल किया गया है। मिलेट्स उत्पादक कृषकों को प्रोत्साहन स्वरूप प्रति एकड़ के मान से 9 हजार रूपए की आदान सहायता भी दी जा रही है।
राज्य में कोदो, कुटकी और रागी की खेती को राज्य में लगातार विस्तारित किया जा रहा है, जिसके चलते राज्य में इसकी खेती का रकबा 69 हजार हेक्टेयर से बढ़कर एक लाख 88 हजार हेक्टेयर हो गया है। मिलेट की खेती को प्रोत्साहन, किसानों को प्रशिक्षण, उच्च क्वालिटी के बीज की उपलब्धता तथा उत्पादकता में वृद्धि को ध्यान में रखते हुए राज्य में मिलेट मिशन संचालित है। 14 जिलों ने आईआईएमआर हैदराबाद के साथ छत्तीसगढ़ राज्य लघु वनोपज संघ के प्रयास से मिलेट मिशन के अंतर्गत त्रिपक्षीय एमओयू भी हो चुका है। छत्तीसगढ़ मिलेट मिशन के तहत मिलेट की उत्पादकता को प्रति एकड़ 4.5 क्विंटल से बढ़ाकर 9 क्विंटल यानि दोगुना किए जाने का भी लक्ष्य रखा गया है।
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किसानों के लिए चाय-कॉफी की खेती बन रही बेहतर आय का जरिया
रायपुर : छत्तीसगढ़ राज्य अपनी धान की दुर्लभ प्रजातियों के लिए विश्व में प्रसिद्ध है। बड़़े पैमाने पर धान की खेती होने के कारण राज्य को धान का कटोरा कहा जाता है। प्राकृतिक संपदा से भरपूर प्रदेश में नदियां, जंगल, पहाड़ और पठार भी काफी भू-भाग में हैं। इनमें पठारी भूमि में धान का उत्पादन नहीं हो पाने के कारण अर्थव्यवस्था में उनका योगदान सीमित हो गया था। इन सबके बावजूद जशपुर जिले के पठारी क्षेत्र में चाय और बस्तर में कॉफी की खेती ने संभावानाओं के नए द्वार खोले हैं। कृषि वैज्ञानिकों ने यहां की जलवायु के अध्ययन के आधार पर संभावनाओं को नई दिशा दी है।मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल की पहल से छत्तीसगढ़ शासन की तरफ से टी-कॉफी बोर्ड गठन का फैसला इसी दिशा में अहम कदम है। जिसके तहत राज्य में 10-10 हजार एकड़ में चाय और कॉफी की खेती कराने का लक्ष्य तय किया गया है। जशपुर जिला में चाय की खेती सफलतापूर्वक की जा रही हैं। यहां शासन ने जिला खनिज न्यास, वन विभाग, डेयरी विकास योजना और मनरेगा की योजनाओं के बीच समन्वय स्थापित करते हुए कांटाबेल, बालाछापर, सारुडीह के 80 एकड़़ भूमि में चाय बागान विकसित हो रहे हैं।
कुछ साल बाद जब बागानों से चाय का उत्पादन शुरू होगा तो प्रति एकड़़ 2 लाख रुपये सालाना तक का किसान लाभ कमा सकेंगे। यह धान की खेती से कहीं अधिक लाभकारी साबित होगा। इसी तरह बस्तर के दरभा, ककालगुर और डिलमिली में कॉफी की खेती विकसित हो चुकी है। यहां कॉफी की दो प्रजातियां अरेबिका और रूबस्टा कॉफी लगाए गए हैं। बस्तर की कॉफी की गुणवत्ता ओडिसा और आंध्रप्रदेश के अरकू वैली में उत्पादित किए जा रहे कॉफी के समान है। कॉफी उत्पादन के लिए समुद्र तल से 500 मीटर की ऊंचाई जरूरी है। बस्तर के कई इलाकों की ऊंचाई समुद्र तल से 600 मीटर से ज्यादा है जहां ढलान पर खेती के लिए जगह उपलब्ध है।
100 एकड़ जमीन में कॉफी उत्पादन का प्रयोग सफल रहा है तथा बस्तर कॉफी नाम से इसकी ब्रांडिंग भी हो रही है। उद्यानिकी विभाग किसानों को काफी उत्पादन का प्रशिक्षण भी दे रहा है। चाय-कॉफी की खेती की विशेषता यह है कि इसके लिए हर साल बीज नहीं डालना पड़़ता किसान कॉफी की खेती से हर साल 50 हजार से 80 हजार प्रति एकड़ आमदनी कमा सकते है। धान की तरह बहुत अधिक पानी की भी आवश्यकता नहीं पड़ती। केवल देखभाल करने की आवश्यकता रहती है।वनोपजों के मामले में प्रदेश काफी आगे है तथा पठारी क्षेत्रों में चाय-कॉफी के उत्पादन से ग्रामीणों के लिए रोजगार और अर्थाेपार्जन के नए अवसर सृजित हो रहे हैं। सरकार की ओर से टी-कॉफी बोर्ड बनाने पहल को सही दिशा में उठाया गया कदम माना जा सकता है। उम्मीद की जानी चाहिए कि कृषि वैज्ञानिकों के अध्ययन के आधार पर सरकार की तरफ से हुई इस पहल के सार्थक परिणाम सामने आएंगे और राज्य के किसानों और उद्यमियों की संपन्नता में चाय-कॉफी ताजगी लाने का काम करेगी। - तारण प्रकाश सिन्हा जी के फेसबुक वॉल सेबगिया के फूल ल सबो भौंरा जुठारे हे साहेब।खुद भीतर उतर जाओ, सत्य वहीं पर बसताकहां ले आरुग फूल लान के चढावंव साहेब।।गाय के गोरस ल बछरू जुठारे हे ।कहां के आरूग गोरस लानव साहेब।।कोठी के अन्न ल सुरही जुठारे हे।कहां के आरुग चाउर के तस्मई बनानंव साहेब।।नदिया के पानी ल मछरी जुठारे हे ।कहा के आरुग जल मय लानव साहेब ।।आरूग हवे हमर हिरदय के भाव साहेब ।ओही ल सरधा से तोर चरन म चढावंव साहेब ।।
फूलों को भौरे ने झूठा कर दिया है, दूध को बछड़े ने, अनाज को कीटों ने, नदी के पानी को मछलियों ने...। तो ऐसा क्या है जिसे कोई जूठा न कर सका ? जो पवित्र है ?वह हृदय के भाव ही हैं, उसे ही गुरु के चरणों में चढ़ाना ठीक होगा।ये पंथी-गीत के बोल हैं, उसी के भाव हैं।
गुरु की अर्चना का यह तरीका बाबा गुरु घासीदास जी द्वारा बताए गए धर्म के मार्ग जितना ही सरल है। उन्हीं के उपदेशों से हृदय में उत्पन्न होने वाले भावों को उन्हीं को अर्पित कर देने से अच्छा और क्या हो सकता है ? उन्होंने जिन भावों से हृदय को ओत-प्रोत कर दिया है, वे दया, करुणा, ममता, प्रेम, परस्परता के भाव हैं।
बिरले ही संत होंगे जिन्होंने इतनी सहजता के साथ लोगों को बता दिया कि वास्तव में धर्म क्या है। गुरु घासीदास ने कहा- मनखे-मनखे एक समान। इस एक वाक्य में न कोई अलंकार है, न कोई चमत्कार। सीधी-साधी भाषा है, और सीधे-साधे शब्द। लेकिन यह सदियों के आध्यात्मिक अनुभवों का निचोड़ है। जिस बात को वसुधैव कुटुंबकम् कहकर नहीं समझाया जा सका, उसे गुरु घासीदास ने लोक को उसी की बोली में समझा दिया। उन्होंने धर्म के आचारण के बहुत सरल सूत्र दिए, सत्य पर भरोसा कीजिए, सत्य का आचरण कीजिए, प्राणियों के साथ हिंसा मत कीजिए, नशा-व्याभिचार मत कीजिए।
गुरु घासीदास जी ने उपदेश दिया कि जाति-पाति के प्रपंच में मत पड़ो। जिसने इस सृष्टि को बनाया है, वही सतनाम है, उसी को पूजो, उसी की आराधना करो। वे जो कह रहे थे, वह इतना आसान और ग्राह्य था कि देखते ही देखते लाखों लोग उनके अनुयायी हो गए। उनके संदेशों की खुशबू न केवल छत्तीसगढ़ की बल्कि देश की सीमाओं को भी लांघकर बिखर गई। गुरु घासीदास ऐसे समय में हुए, जब उनकी सबसे ज्यादा जरूरत थी। उन्होंने मोक्ष का कोई मंत्र नहीं बताया, स्वर्ग की सीढ़ियां नहीं दिखाई, कहा कि खुद से खुद को मुक्त कर लो, फिर खुद भीतर उतर जाओ, सत्य वहीं पर बसता है। वहीं पर सतनाम है।बाबा गुरु घासीदास जी को उनकी जयंती पर शत-शत वंदन -
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सहकारी शक्कर कारखानों इथेनॉल प्लांट की स्थापनागन्ना किसानों के लिए न्याय योजनाप्राथमिक कृषि साख सहकारी समितियों का पुनर्गठनसहकारी अधिनियम का संशोधन एवं सरलीकरणनवगठित प्राथमिक साख सहकारी समितियों में गोदाम-सह-कार्यालय निर्माणबस्तर एवं सरगुजा संभाग के दूरस्थ अंचलों में बैकिंग सुविधा का विस्तार
रायपुर : मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने सरकार गठन के एक घंटे के भीतर प्रदेश के किसानों के ऋण माफी की घोषणा की। मुख्यमंत्री की घोषणा से ऐसे कृषक जो वर्षों से डिफाल्टर हो जाने के कारण ऋण नहीं ले पा रहे थे, उन्हें ऋण की पात्रता मिल गई। प्रदेश में सहकारी समितियों के माध्यम से 13 लाख 46 हजार 569 किसानों का 5261.43 करोड़ रूपए का ऋण माफ कर उन्हें आर्थिक रूप से सुदृढ़ बनाने की दिशा में पहला कदम बढ़ाया।
मुख्यमंत्री की पहल पर सहकारिता के क्षेत्र में पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) मोड से इथेनॉल प्लांट की स्थापना, सम्पूर्ण देश में प्रथम उदाहरण है। इसके लिए सभी प्रक्रिया लॉक डाउन अवधि में सम्पादित की गई। प्रदेश के सहकारी शक्कर कारखाना कवर्धा में प्रथम इथेनॉल प्लांट की स्थापना पीपीपी मोड में करने के लिए इन्वेस्टर्स मीट आयोजित कर इच्छुक निवेशकों के पक्ष को चुना गया। इसके बाद आरएफक्यू, आरएफपी की प्रक्रिया पूर्ण कर निवेशक का चयन किया गया। चयनित निवेशक द्वारा 80 किलो लीटर प्रति दिन क्षमता (केएलपीडी) की क्षमता से कारखाना लगाया जा रहा है, जिससे कारखाने को प्रतिवर्ष 9.22 करोड़ रूपए लायसेंस फीस के रूप में प्राप्त होगा। चयनित संस्था और कारखाने के मध्य 29 दिसम्बर 2022 को अनुबंध निष्पादित किया गया। पीपीपी मॉडल इथेनॉल प्लांट की स्थापना देश में पहला उदाहरण है। इथेनॉल संयंत्र की स्थापना से क्षेत्र में प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रोजगार के अवसर उत्पन्न होंगे और क्षेत्र में आर्थिक समृद्धि का आधार मजबूत होगा।मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल के कुशल नेतृत्व में राज्य बनने के बाद प्रदेश के चारों कारखानों से शक्कर के निर्यात के लिए प्रथम बार कार्रवाई की गई। चारों शक्कर कारखानों से 30.18 करोड़ रूपए की 14 हजार 302 मीट्रिक टन शक्कर का निर्यात भारत सरकार से प्राप्त निर्यात कोटे के अनुसार किया गया। इस निर्यात के फलस्वरूप भारत सरकार से राज्य को 10448 रूपए प्रति मीट्रिक टन की मान से 14.95 करोड़ रूपए की सब्सिडी स्वीकृत हुई।मुख्यमंत्री द्वारा प्रदेश में शुरू की गई किसान न्याय योजना से गन्ना किसानों को भी जोड़ा गया। प्रदेश के गन्ना किसानों के लिए न्याय योजना के अंतर्गत 93.75 रूपए प्रति क्विंटल की मान से 34,292 किसानों को 74.24 करोड़ रूपए भुगतान किया गया। इस प्रकार प्रदेश में गन्ना किसानों को गन्ना पेराई सीजन 2019-20 में 355 रूपए प्रति क्विंटल के मान से गन्ना का मूल्य प्राप्त हुआ। वर्ष 2020-21 में 79.50 रूपए प्रति क्विंटल की मान से 84.85 करोड़ रूपए की राशि का भुगतान किया गया।
राज्य गठन के समय कुल 1333 प्राथमिक कृषि साख सहकारी समितियां संचालित थी। राज्य में प्राथमिक सहकारी समितियों के माध्यम से किसानों को ऋण वितरण, खाद-बीज, दवाईयां आदि का वितरण किया जाता है। इन सोसायटियों का गठन 1971-72 के मध्य हुआ था। इनके गठन के समय राज्य की जनसंख्या एवं भौगोलिक स्थिति भिन्न थी। राज्य बनने के 20 वर्षों के बाद जनसंख्या में वृद्धि होने के साथ-साथ कृषि रकबे में वृद्धि होने से मांग एवं किसानों की सुलभता को देखते हुए सरकार ने इन समितियों के पुनर्गठन का निर्णय लिया। लॉक डाउन अवधि में जैसी विषम परिस्थितियों में 1333 समितियों का पुनर्गठन कर 725 नवीन समितियों का गठन, पंजीयन किया गया। नवगठित 725 प्राथमिक साख सहकारी समितियों के के माध्यम से किसानों को खाद, बीज एवं ऋण की उपलब्धता सुगमता से की जा रही है। वर्तमान में प्रदेश में 2058 प्राथमिक कृषि साख सहकारी समितियां संचालित हैं।मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल की सरकार द्वारा सहकारी अधिनियम का संशोधन एवं सरलीकरण किया गया है। सहकारी सदस्यों के हित में प्रावधान संशोधित किए गए हैं। सहकारी समितियों के पंजीयन के लिए न्यूनतम आवश्यक सदस्यों की संख्या 20 से घटाकर 10 की गई है। सहकारी समितियों के पंजीयन की अवधि 90 दिवस से घटाकर 45 दिवस किया गया है। सहकारी समितियों की उपविधियों में संशोधन की अवधि 60 दिवस से घटाकर 45 दिवस कर दिया गया है। न्यायालयीन प्रकरणों के त्वरित निराकरण के लिए संभागीय संयुक्त पंजीयकों को प्रथम अपील के अधिकार दिए गए हैं। अधिनियम संशोधन के पूर्व सम्पूर्ण राज्य के प्रथम अपील के प्रकरण पंजीयक द्वारा सुने जाते थे, जिससे दूरस्थ अंचल के संस्थाओं के जुड़े कृषक सदस्यों को कठिनाई होती थी। संशोधन से किसानों को उनके नजदीक सुलभ न्याय दिलाया जाना सुनिश्चित कराया गया है।
छत्तीसगढ़ में ग्रामीण अधोसंरचना विकास निधि (आरआईडीएफ) योजनांतर्गत नवगठित 725 नवीन समितियों में आधारभूत संरचना प्रदाय किए जाने के उद्देश्य से गोदाम सह कार्यालय निर्माण की योजना तैयार की गई। इस योजना में प्रत्येक सोसायटी में 25.56 लाख रूपए की दर से 725 समितियों में 185.31 करोड़ रूपए की लागत से गोदाम सह कार्यालय का निर्माण किया जाएगा। सभी समितियों के लिए जमीन आबंटन का कार्य पूर्ण कर लिया गया है। टेण्डर आदि प्रक्रिया होने के बाद 514 समितियों में कार्यादेश जारी किया जा चुका है और 55 समितियों में कार्य प्रारंभ हो चुका है। माह मार्च 2023 तक सभी समितियों में गोदाम सह कार्यालय पूर्ण किए जाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। गोदाम सह कार्यालय के निर्माण से नवगठित समितियों में सुचारू रूप से खाद, बीज, ऋण वितरण, धान खरीदी का कार्य सुगमता से किया जा सकेगा।
मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल द्वारा बस्तर और सरगुजा संभाग में दूरस्थ अंचल के ग्रामीणों पर सुलभ बैंकिंग सुविधा उपलब्ध कराने के उद्देश्य से निर्देश दिए गए हैं। निर्देश के पालन में बस्तर और सरगुजा संभाग में कार्ययोजना बनाकर सहकारी बैंकिंग की सुविधा का विस्तार किया जा रहा है। बस्तर संभाग में 7 स्थानों- नानगुर, बजावण्ड, दहीकोंगा, धनोरा, बडे राजपुर, जेपरा-हल्बा, अमोड़ा और सरगुजा संभाग में तीन स्थानों-लुण्ड्रा, देवनगर एवं पटना में नवीन शाखा खोले जाने की स्वीकृति प्रदान की जा चुकी है। साथ ही बस्तर संभाग में प्रथम चरण में 6 स्थानों-बड़े किलेपाल, मर्दापाल, अमरावती, बड़े डोंगर, कोयलीबेड़ा एवं मद्देड़ में एटीएम और तीन स्थानों-नदीसागर, कुटरू एवं बेनूर में मोबाइल बेन लगाई जा रही है। इसी प्रकार सरगुजा संभाग के 5 स्थानों- राजापुर, गोविंदपुर, पोंड़ी, राजौली, केल्हारी में एटीएम लगाए जा रहे हैं। -
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स्वदेशी की ताकत से शुरू हुआ स्वरोजगार का सफर
रायपुर : देशभर में महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए चल रह प्रयासों के साथ कदम मिलते हुए छत्तीसगढ़ ने परंपरागत दृष्टिकोण से हटकर एक नयी दृष्टि से काम किया है, जिसमें महिलाओं को प्रकृति द्वारा प्रदत्त रचनात्मक क्षमता के उन्नयन के साथ-साथ उनकी सृजन-शक्ति को स्थानीय संसाधनों के साथ जोड़ा गया है। महिलाओं की सामाजिक और आर्थिक स्थिति के अंतरसंबंधों पर आधारित यह दृष्टिकोण उनके आर्थिक सशक्तिकरण के लिए नये क्षेत्रों के अनुसंधान पर जोर देता है। छत्तीसगढ़ सरकार ने इस ओर कदम बढ़ाते हुए सुराजी गांव योजना के तहत गौठानों में महिलाओं के स्वावलंबन की नई राहें तैयार की वहीं वनांचल आदिवासी क्षेत्रों में वनोपज संग्रहण और उसके प्रसंस्करण से महिलाओं को जोड़ा है। इसका परिणाम है कि गौठानों में राज्य के 11,187 स्व-सहायता समूहों की 83,874 महिलाओं को रोजगार मिला है। लघु वनोपज के संग्रहण से लगभग 4 लाख 50 हजार महिला समूह जुड़ी हैं। इससे आदिवासी और ग्रामीण महिलाओं को आर्थिक आजादी के साथ समाज में एक नई पहचान भी मिली है।
राज्य के कुल उत्पादन में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाते हुए उत्पादों के लिए नये बाजारों की तलाश करना, और बाजार में पहले से मौजूद संभावनाओं का विस्तार करना रणनीति का अहम हिस्सा रहा है, इसी के अंतर्गत बाजार में उपलब्ध विदेशी अथवा बहुराष्ट्रीय कंपनियों के उत्पादों के मूल्य और गुणवत्ता से प्रतिस्पर्धा कर सकने में सक्षम स्थानीय उत्पादों का उत्पादन ग्रामीण स्तर पर महिला स्व सहायता समूहों के माध्यम से किया जा रहा है। उत्पादों की ब्रांडिंग से लेकर मार्केटिंग तक की पूरी प्रक्रिया में राज्य शासन सहयोगी है। यह दृष्टिकोण महिला सशक्तिकरण के लिए महात्मागांधी के खादी और स्वदेशी के विचारों से ताकत लेता है।
असल भारत गांवों में बसता है, इसे ध्यान में रखते हुए महात्मा गांधी ने ग्रामीण व्यवस्था और लोगों को सुदृढ़ बनाकर सुराजी गांव की परिकल्पना की थी। गांधी जी के इसी सपने को साकार करने छत्तीसगढ़ में सुराजी गांव योजना की शुरूआत की गई। इसके तहत नरवा, गरवा, घुरवा, बारी जैसे संसाधनों के पुनर्जीवन के साथ ग्रामीण अर्थव्यवस्था का नया अध्याय शुरू हुआ।
असल भारत गांवों में बसता है, इसे ध्यान में रखते हुए महात्मा गांधी ने ग्रामीण व्यवस्था और लोगों को सुदृढ़ बनाकर सुराजी गांव की परिकल्पना की थी। गांधी जी के इसी सपने को साकार करने छत्तीसगढ़ में सुराजी गांव योजना की शुरूआत की गई। इसके तहत नरवा, गरवा, घुरवा, बारी जैसे संसाधनों के पुनर्जीवन के साथ ग्रामीण अर्थव्यवस्था का नया अध्याय शुरू हुआ।
आज गोबर और गौमूत्र की खरीदी कर जैविक खाद तथा कीटनाशकों के निर्माण से लेकर बिजली उत्पादन, प्राकृतिक पेंट, गुलाल, पूजन सामग्री आदि का निर्माण महिलाएं कर रही हैं। गौठानों को ग्रामीण औद्योगिक पार्कों के रूप में विकसित करते हुए वहां दाल मिल, तेल मिल, आटा मिल, मिनी राइस मिल जैसी प्रसंस्करण इकाइयां भी स्थापित की जा रही हैं। राज्य सरकार ने समूहों द्वारा नई आर्थिक गतिविधियां शुरू करने के लिए महिला कोष से संबंधित महिला समूहों के 12.77 करोड़ रूपए के ऋण माफ करने के साथ ही ऋण लेने की सीमा को भी दो से चार गुना तक बढ़ा दिया है। इन औद्योगिक पार्कों में उत्पादित वस्तुओं के विक्रय के लिए सभी जिलों में सी-मार्ट की स्थापना की गई है। इसके अलावा इन्हें ऑन लाइन और ऑफ लाइन प्लेटफार्मों पर भी बेचा जा रहा है। सच कहे तो स्वदेशी की ताकत से छत्तीसगढ़ के गांवों में स्वरोजगार का नया युग शुरू हो गया है। -
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रायपुर : किसानों की आमदनी बढ़ाने में सौर ऊर्जा के उपयोग में छत्तीसगढ़ देश के अग्रणी राज्यों में शुमार है। कृषि के साथ अन्य क्षेत्रों में सोलर एनर्जी के इस्तेमाल का दायरा राज्य में लागतार बढ़ता जा रहा है। सौर ऊर्जा का उपयोग पेयजल और सुदूर अंचलों के गांवों, अस्पतालों, स्कूलों, छात्रावासों में विद्युत व्यवस्था में भी हो रहा है, इससे मूलभूत सुविधाओं को मजबूती मिल रही है। मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल द्वारा ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने के प्रयासों के तहत किसानों की आमदनी बढ़ाने के उद्देश्य से सोलर सिंचाई पम्प लगाने के काम को सर्वोच्च प्राथमिकता दी गई है। इस दिशा में तेजी से काम हुआ और हाल ही में देश में सर्वाधिक सोलर पम्प स्थापित करने और ऊर्जा संरक्षण के लिए छत्तीसगढ़ राज्य अक्षय ऊर्जा विकास अभिकरण को राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।
छत्तीसगढ़ में ग्लोबल वार्मिंग की चुनौतियों से निपटने के लिए सुराजी गांव योजना के साथ सौर ऊर्जा के इस्तेमाल को प्रोत्साहित किया जा रहा है। सौर ऊर्जा के उपयोग के लिए आधुनिक तकनीक के उपयोग को बढ़ावा दिया जा रहा है। नई उद्योग नीति में भी सौर ऊर्जा से विद्युत उत्पादन से जुड़ी इकाईयों की स्थापना को प्राथमिकता की श्रेणी में रखा गया है। राज्य के सुदूर वनांचल क्षेत्रों में रहने वाले किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार के लिए सौर ऊर्जा खासी मददगार साबित हो रही है। राज्य में ऐसे कई हिस्से हैं जहां परम्परागत तरीके से विद्युत की व्यवस्था नहीं हो सकी है, उन क्षेत्रों के किसानों को सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराने में सोलर पम्प गेम चेंजर साबित हो रहे हैं। सौर सुजला योजना के तहत प्रदेश में स्थापित किए गए सोलर सिंचाई पंप के उपयोग से पिछले पांच वर्षों में 6.55 लाख टन कार्बन उत्सर्जन में कमी का अनुमान है।
छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा सोलर एनर्जी से कृषि के क्षेत्र में बड़े बदलाव लाने के प्रयासों के साथ क्रेड़ा द्वारा सोलर विद्युत केन्द्र, सोलर लाइट, वनांचलों के गांवों में पेयजल उपलब्ध कराने में भी सोलर पम्पों का उपयोग किया जा रहा है, जल जीवन मिशन सहित राज्य शासन की योजना के तहत प्रदेश में 10 हजार 629 सोलर पम्प स्थापित कर 4 लाख 80 हजार से अधिक परिवारों को शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराया जा रहा है। राज्य के 1480 स्वास्थ्य केन्द्रों में प्रकाश की व्यवस्था के लिए 4.70 मेगावाट के ऑफ ग्रिड सोलर पॉवर प्लांटों की स्थापना की गई है। जिससे शासकीय स्वास्थ्य केन्द्रों अस्पतालों में प्रकाश की व्यवस्था के साथ साथ जीवन रक्षक मशीनें और वैक्सिन को सुरक्षित रखने के लिए फ्रीजर के लिए विद्युत की आपूर्ति की जा रही है। इस उपलब्धि के लिए क्रेडा को अंतर्राष्ट्रीय अवार्ड से सम्मानित किया जा चुका है।
सौर सुजला योजना में 1.17 लाख से अधिक सोलर सिंचाई पंप स्थापितक्रेडा द्वारा राज्य में पिछले चार वर्षो में प्रदेश में 71 हजार 753 सोलर कृषि पम्पों की स्थापना की गई। सोलर सिंचाई पम्पों से लगभग 86,104 हेक्टयेर रकबा सिंचित हुआ है। इन्हें मिलाकर प्रदेश में अब तक 3 एवं 5 हार्स पॉवर के एक लाख 17 हजार से अधिक सोलर सिंचाई पम्पों की स्थापना हो चुकी है। जिससे लगभग एक लाख 17 हजार हेक्टेयर से अधिक की भूमि सिंचित हुई हो रही है। इस योजना से 1 लाख 26 हजार से अधिक किसान लाभान्वित हो रहे हैं।लघु और सीमांत किसानों को सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराने के लिए सौर सिंचाई सामुदायिक परियोजना सतही जल स्त्रोत के निकट बनायी जा रही है। सतही जल के उपयोग से भू-जल का दोहन में भी कमी आएगी। पिछले चार वर्षों में 16 सौर सामुदायिक सिंचाई परियोजनाओं की स्थापना की गई, जिसके माध्यम से लगभग 911 किसानों की 976.17 हेक्टेयर भूमि में सिचाई सुविधा का लाभ मिल रहा है। इन परियोजनाओं में 59 सोलर सिंचाई पम्पों की स्थापना की गई है। इन्हें मिलाकर प्रदेश में अब तक 228 सौर सामुदायिक सिंचाई परियोजना में 334 सोलर सिंचाई पम्प स्थापित किये गए हैं, इसके माध्यम से 2639 किसानों की 2749 हेक्टेयर भूमि में सिंचाई हो रही है।
सौर सुजला में अधिकतम 2 लाख रूपए का अनुदानसौर सुजला योजना में किसानों को तीन एवं पांच हॉर्स पावर क्षमता के सोलर सिंचाई पंपों की स्थापना के लिए राज्य शासन द्वारा अनुदान अधिकतम 2 लाख रूपए तक का अनुदान दिया जा रहा है। तीन एचपी के पंप की स्थापना के लिए अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजातियों के लिए हितग्राहियों को 7 हजार रूपए, अन्य पिछड़ा वर्ग के हितग्राही को 12 हजार रूपए तथा सामान्य वर्ग के हितग्राही को 18 हजार रूपए अंशदान देना होता है। इसी तरह 5 हॉर्स पावर तक के सिंचाई पंप के स्थापना के अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के हितग्राही को 10 हजार रूपए, अन्य पिछड़ा वर्ग के हितग्राही को 15 हजार रूपए तथा सामान्य वर्ग के हितग्राही को 20 हजार रूपए अंशदान देना होता है। शेष राशि राज्य शासन द्वारा अनुदान के रूप में दी जाती है। अकेले प्रदेश में स्थापित सोलर पंपों से पिछले 5 वर्षों में 6.55 लाख टन कार्बन उत्सर्जन में कमी हुई है। सौर समुदायिक सिंचाई योजना के लिए लघु एवं सीमांत किसानों के ऐसे समूह जिनके पास कम से कम 10 हेक्टेयर कृषि भूमि है। प्रति हेक्टेयर 1 लाख 80 हजार रूपए का अनुदान दिया जा रहा है। इसी तरह 4 किलोवॉट मॉड्यूल सहित 5 टन स्टोरेज क्षमता के सोलर कोल्ड स्टोरेज की स्थापना के लिए 4 लाख रूपए प्रति यूनिट अनुदान दिया जा रहा है।
चार हजार 970 गौठानों में सोलर सिंचाई पंप स्थापित
पिछले चार वर्षों में सिंचाई सुविधा के विस्तार के लिए नदी नालों के निकट स्थित खेतोें को सिंचित करने के लिए 59 वृहद सोलर पम्प स्थापित किये गए हैं। जिनके माध्यम से 976 हेक्टेयर सामुदायिक कृषि रकबा सिंचित हो रहा है। इसके अलावा सुराजी गांव योजना नरवा, गरवा, घुरवा, बाड़ी के तहत 4970 गौठानों में सोलर पम्प स्थापित कर पशुओं के लिए पेयजल और चारागाहों में सिंचाई सुविधा की व्यवस्था की गई है। सोलर पेयजल योजना के अंतर्गत पिछले चार वर्षों में पहुंच विहीन गांवों में 6093 सोलर ड्यूल पम्प स्थापित कर 3 लाख से अधिक परिवारों को 24 घंटे शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराया जा रहा है। इसके अलावा जल जीवन मिशन के अंतर्गत 4536 ड्यूल पम्प स्थापित कर ग्रामीण अंचलों के घरों में नल कनेक्शन के माध्यम से शुद्ध पेयजल की आपूर्ति की व्यवस्था की गई है। इस योजना में 12 मीटर एवं 9 मीटर ऊंचाई पर 10 लीटर क्षमता की पानी टंकी स्थापित कर घरों में पेयजल की आपूर्ति की जा रही है। इस योजना के अंतर्गत एक लाख 80 हजार परिवार लाभान्वित हो रहे हैं।
एक लाख 38 हजार से अधिक घरों का सोलर विद्युतीकरण
पिछले चार वर्षों में गांवों और कस्बों के चौक-चौराहों, हाट बाजारों में 3155 सोलर हाईमास्ट लाईट स्थापित की गई हैं। इन्हें मिलाकर राज्य में 3924 सोलर हाई मास्ट की स्थापना हो चुकी है। इसी तरह दूरस्थ पहुंच विहीन क्षेत्रों में जहां बिजली का तार खींचकर बिजली नहीं पहुंचाई जा सकती, वहां के गांवों और मजरे टोलों के 80 हजार 859 घरों में सोलर लाईट के माध्यम से प्रकाश की व्यस्था की गई है। इन्हें मिलाकर सोलर संयंत्रों के माध्यम से 920 गांवों के एक लाख 38 हजार से अधिक घरों का सोलर विद्युतीकरण किया जा चुका है।
भवनों की छत पर 2232 सौर संयंत्र स्थापित
वर्ष 2022-23 में सोलर पंप के माध्यम से नदी, एनीकटों में उपलब्ध जल से तालाबों को भरने की योजना को इंदिरा गांव गंगा योजना के रुप में लागू किया गया है। इस योजना में चार वर्षों में 21 गांवों के 33 तालाबों को भरने का काम पूरा किया गया। प्रदेश में 326 सौर ऊर्जा आधारित जल शुद्धिकरण संयंत्र की स्थापना की गयी है। राज्य के शासकीय एवं निजी भवनों की छत में ग्रिड कनेक्टेड 196 तथा ऑफ ग्रिड कनेक्टेड 2232 सौर संयंत्रों की स्थापना की जा चुकी है। इनके अलावा 433 मेगावॉट क्षमता के 37 वृहद स्तर पर ग्रिड कनेक्टेड सोलर पावर प्लांट स्थापित किए गये हैं। राज्य के ऐसे स्थानों में जहां नियमित बिजली आपूर्ति संभव नहीं हो पाती या जहां वोल्टेज फ्ल्कचुएशन की स्थिति बनी रहती है, वहां सब्जियों, फल-फूलों के सुरक्षित भंडारण के लिए 270 किलोवॉट क्षमता के 65 सोलर कोल्ड स्टोरेज स्थापित किए गए हैं।राज्य शासन के प्रोत्साहन से प्रदेश में सौर ऊर्जा का उपयोग बढ़ रहा है। सौर सुजला योजना किसानों के मध्य काफी लोकप्रिय हो रही है। सोलर ऊर्जा के उपयोग के लिए राज्य शासन द्वारा विभिन्न योजनाओं में अनुदान दिया जा रहा है। आने वाले समय में छत्तीसगढ़ इस क्षेत्र में नए कीर्तिमान स्थापित करेगा। -
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रायपुर : छत्तीसगढ़ की नवीन औद्योगिक नीति 2019-2024 में फूड, एथेनॉल, इलेक्ट्रॉनिक्स, डिफेंस, दवा, सोलर जैसे नए उद्योगों को प्राथमिकता दी गई हैं। सेवा क्षेत्र को भी प्रोत्साहन दिया जा रहा है। रोजगार के अवसर बढ़ाने के लिए सरकार द्वारा कृषि, लघु वनोपज, वनौषधियों, उद्यानिकी फसलों पर आधारित उद्द्योगो को प्राथमिकता दी जा रही हैं। मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल के नेतृत्व में उद्योग और व्यापार जगत के लोगों से विस्तृत विचार विर्मश के बाद तैयार की गई नई औद्योगिक नीति में किए गए इन प्रावधानों से छत्तीसगढ़ औद्योगिक नवाचार की संभावनाओं से भरपूर राज्य के रूप में तेजी से उभर रहा है।
छत्तीसगढ़ राज्य औद्योगिक नीति के अंतर्गत स्टार्टअप इकाईयों को प्रोत्साहित करने के लिए छत्तीसगढ़ राज्य स्टार्टअप पैकेज लागू किया गया है। मान्यता प्राप्त 688 स्टार्टअप इकाईयों में से 508 इकाईयों को बीते चार वर्षो में पंजीकृत कर विशेष प्रोत्साहन पैकेज का लाभ दिया जा रहा है। एम.एस.एम.ई सेवा श्रेणी उद्यमों में इलेक्ट्रिक वाहन चार्जिग स्टेशन, सेवा केन्द्र, बी.पी.ओ. 3-डी प्रिंटिंग, बीज ग्रेडिंग इत्यादि 16 सेवाओं को सामान्य श्रेणी के उद्योगों की भांति औद्योगिक निवेश प्रोत्साहन दिए जाने का प्रावधान किया गया है। मेडिकल उपकरण तथा अन्य सामग्री निर्माण के लिए उद्योगों की भांति औद्योगिक निवेश प्रोत्साहन देने का प्रावधान भी किया गया है।
राज्य सरकार द्वारा प्रदेश में 10 नवीन फूड पार्क की स्थापना की स्वीकृति दी गई है। सुकमा में 5.9 हेक्टेयर भूमि पर फूड पार्क की स्थापना के लिए आवश्यक अधोसंरचना निर्माण कार्य पूर्ण कर लिया गया है। राज्य में 200 फूड पार्क की स्थापना का लक्ष्य रखा गया है। प्रदेश के 146 विकासखण्डों में से 112 विकासखण्डों में फूड पार्क के लिए जमीन चिन्हांकित कर ली गई है। इसमें से 52 विकासखण्डों में 620 हेक्टेयर भूमि का अधिपत्य उद्योग विभाग को दिया गया है।
उद्योगों को दी जा रही अनेक रियायतेंअनुसूचित जाति, जनजाति एवं महिला वर्ग के उद्यमियों द्वारा 5 करोड़ के पूंजी लागत तक के नवीन उद्योग की स्थापना पर 25 प्रतिशत अधिकतम सीमा 50 लाख मार्जिन मनी अनुदान देने का प्रावधान। औधोगिक नीति 2019-24 में वनांचल उद्योग पैकेज के अंतर्गत स्थापित होने वाली इकाईयों को कुल निवेश का 50 प्रतिशत, 5 वर्षो में अधिकतम 50 लाख प्रति वर्ष अनुदान देने का प्रावधान। औद्योगिक क्षेत्रों में भूमि आबंटन नियमों का सरलीकरण किया गया था, जिसके अनुसार औद्योगिक क्षेत्रों में भूमि आबंटन भू-प्रब्याजी में 30 प्रतिशत की कमी की गई है। औद्योगिक क्षेत्रों में भू-भाटक में 33 प्रतिशत की कमी की गई है। राज्य सरकार द्वारा औद्योगिक इकाईयों को 423 करोड़ रूपए स्थाई पूंजी निवेश अनुदान और 141 करोड़ ब्याज अनुदान दिया गया है।
ऐसे अनेकों प्रयासों के कारण छत्तीसगढ़ में नये उद्योगों की स्थापना हो रही है। राज्य में 10 साल या उससे अधिक समय से उत्पादनरत् औधोगिक इकाईयों को लीज पर आबंटित भूमि को फ्री-होल्ड कर निवेशकों को मालिकाना हक दिया जा रहा है, ऐसा करने वाला छत्तीसगढ़ देश का दूसरा राज्य है। उद्योग विभाग द्वारा एकल खिड़की प्रणाली से 56 सेवाएं ऑनलाइन दी जा रही हैं। ई-डिस्ट्रिक्ट के अंतर्गत 82 सेवाएं ऑनलाइन की गई हैं, जिसमें दुकान पंजीयन से लेकर कारोबार के लायसेंस तक शामिल हैं।
छत्तीसगढ़ सरकार की नई औद्योगिक नीति में उद्योगों की स्थापना के नियमों का सरलीकरण किया गया है। उद्यमियों को अनेक रियायतें दी जा रही है। स्वीकृति की प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाया गया है, इससे प्रदेश में उद्योग के लिए अनुकूल माहौल बना है और पूंजी निवेश को बढ़ावा मिल रहा है। सरकार द्वारा नई औद्योगिक नीति में ऐसे अनेक प्रावधान किये गए हैं, जिनसे नवीन उद्योगों की स्थापना के लिए उद्यमियों को प्रोत्साहन मिल रहा है और नए उद्योग स्थापित हो रहे हैं। इससे प्रदेश में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार की संभावनाएं भी बढ़ रही है।इज ऑफ डूइंग बिजनेस के मामले में छत्तीसगढ़ देश के प्रथम 6 राज्यों में शामिल है। राज्य सरकार ने नई औद्योगिक नीति 2021-2024 में उद्योगों की स्थापना से जुड़े नियमों को सरल बनाया है। पहले उद्योगों को स्थापना से पूर्व की प्रक्रियाओं में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता था। विभागीय स्वीकृति, कागजी कार्यवाही एवं अन्य कठिनाईयों के कारण उद्योग की स्थापना की प्रक्रिया में विलंब होता था। नई औद्योगिक नीति में इन सभी समस्याओं को दूर करने के लिए उद्योगों को विभिन्न स्वीकृतियां प्रदान करने के लिए एकल खिड़की प्रणाली लागू की गई है एवं कठिन प्रक्रियाओं का सरलीकरण किया गया है।प्रदेश में 21 हजार करोड़ रूपए से अधिक का पूंजी निवेश, 2218 नए उद्योग स्थापितछत्तीसगढ़ सरकार द्वारा औद्योगिक विकास को गति देने के लिए गए निर्णय के परिणाम स्वरूप राज्य में पिछले 4 वर्षो में 2218 नए उद्योग स्थापित हुए, जिसमें 21 हजार 457 करोड़ रूपए से अधिक का निवेश हुआ तथा 40 हजार 324 लोगों को रोजगार मिला है। प्रदेश में नए उद्योगों की स्थापना के लिए 167 एमओयू किये गए हैं। जिसमें 78 हजार करोड़ रूपए का पूंजी निवेश प्रस्तावित हैं। इससे 90 हजार से अधिक लोगों को रोजगार मिलेगा। इन्हे मिलाकर वर्तमान स्थिति में उद्योगों की स्थापना के लिए 177 एम.ओ.यू. प्रभावशील हैं, जिसमें 89 हजार 597 करोड़ रूपए का पूंजी निवेश और 1 लाख 9 हजार 910 लोगों को रोजगार दिया जाना प्रस्तावित है। 90 से अधिक इकाईयों द्वारा उद्योग स्थापना की प्रक्रिया में 4 हजार 126 करोड़ से अधिक का पूंजी निवेश पर 11 इकाईयों ने व्यवसायिक उत्पादन शुरू कर दिया है।कृषि एवं खाद्य प्रसंस्करण आधारित 486 इकाइयां स्थापितराज्य में साढ़े 3 सालों में कृषि एवं खाद्य प्रसंस्करण पर आधारित 486 इकाइयां स्थापित हुई हैं जिसमें 9 सौ 31 करोड़ रूपए का पूंजी का निवेश हुआ है। इसी तरह से छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा प्रदेश में नई औद्योगिक नीति के क्रियान्वयन से रोजगार, स्वरोजगार के अवसर बढ़ाने की दिशा में कार्य किया जा रहा है। बीते चार सालों में राज्य के निर्यात में तीन गुना वृद्धि आई है। वर्ष 2019-20 में 9067.29 करोड़, वर्ष 2020-21 में 17199.97 करोड़ तथा वर्ष 20121-22 में 25241.13 करोड़ रूपए का चावल, आयरन एवं स्टील एल्यूमिनियम एवं एल्यूमिनियम उत्पादों का निर्यात हुआ है।उद्योगों की स्थापना के नियमों के सरलीकरण और उद्यमियों को दी जा रही रियायतों से प्रदेश में उद्योग के लिए अनुकूल माहौल बना है। -
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निराशा के अंधेरों में आशा की किरण बनी मुख्यमंत्री विशेष स्वास्थ्य योजनामुख्यमंत्री विशेष स्वास्थ्य योजना एवं स्वेच्छानुदान से नेहल को ब्रेन कैंसर के ईलाज हेतु मिली 25 लाख रूपए की सहायता राशिरायपुर : अक्सर गंभीर बीमारियां होने पर ये बीमारियां इंसान को शारीरिक रूप से परेशान करने के साथ व्यक्ति एवं उसके परिवार को ईलाज में होने वाले आर्थिक परेशानियों में भी डाल जाती है। ऐसी संकट की घड़ी में अपने भी जहां आंख चुराने लगते है, ऐसे में व्यक्ति निराश हो जाता है। कहीं भी उसे सहायता प्राप्त नहीं होती। ऐसी परिस्थितियों से लोगों को राहत पहुंचाने के लिए मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल की मंशा के अनुरूप राज्य सरकार द्वारा 01 जनवरी 2020 को मुख्यमंत्री विशेष स्वास्थ्य सहायता योजना प्रारंभ की गयी थी। जिससे गंभीर बीमारियों से पीड़ित लोगों को आर्थिक समस्या से बचा कर उनको बेहतर उपचार प्रदान किया जा सके।ऐसी ही एक कहानी विकासखण्ड कोण्डागांव के सम्बलपुर निवासी छोटे से किसान गिरजानंद पटेल की है। जहां उनकी 09 वर्षीय बेटी नन्ही नेहल पटेल जब वर्ष 2019 में चौथी कक्षा में अपने नाना-नानी के साथ रह कर जगदलपुर में पढ़ रही थी, तब अचानक उसकी तबियत खराब रहने लगी। उसे कक्षा में उल्टियां होने के साथ तीव्र बुखार आया करता था। जिसे शिक्षक सामान्य बुखार समझकर दवाईयां दे दिया करते थे। जिससे उसे तात्कालिक आराम तो प्राप्त हो जाता था परन्तु बहुत दिनों तक यह क्रम चलने पर 17 जून 2019 को विशाखापटनम घूमने जा रहे उनके नाना-नानी द्वारा वहां उसकी स्वास्थ्य जांच निजी अस्पताल में करवाई। जहां डॉक्टरों द्वारा दिमाग में ट्यूमर होने की बात कहते हुए प्रारंभिक जांच कर उसका इलाज किया गया। जिसके पश्चात नेहल को कुछ दिनों बाद पुनः परेशानियां होने लगी। वह दर्द के कारण पढ़ नहीं पाती थी एवं दिन-रात दर्द से चिल्लाया करती थी। धीरे-धीरे वह चलने फिरने में भी असमर्थ हो गयी। नेहल की ऐसी दशा देख पिता द्वारा डॉक्टरों की सलाह पर वर्ष 2020 में नेहल की जांच अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) रायपुर में कराई गई।एम्स के चिकित्सकों द्वारा जांच उपरांत दिमाग में ट्यूमर के स्थान पर ब्रेन कैंसर की पुष्टि करते हुए यह बात परिजनों को बताई। जिसपर परिजनों द्वारा पूछे जाने पर डॉक्टरों ने बताया कि नेहल कैंसर के चौथे स्टेज में है और कैंसर सिर से होते हुए मेरूरज्जू तक फैल रहा है। एम्स में डेढ़ साल तक नेहल का उपचार चलता रहा परंतु नेहल की हालत ना सुधरता देख डॉक्टरों ने चेन्नई स्थित एक निजी अस्पताल में इसका इलाज संभव होने की जानकारी परिजनों को दी। इलाज में बहुत अधिक खर्च होने की बात जानकर परिजनों ने नेहल को बचा पाने की अपनी उम्मीद भी खो दी थी।ऐसे में स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों द्वारा उन्हें मुख्यमंत्री विशेष स्वास्थ्य सहायता योजना अंतर्गत 20 लाख रूपये तक स्वास्थ्य उपचार हेतु सहायता प्राप्त होने के संबंध में जानकारी प्रदान की गयी। जिससे उनमें निराशा के अंधेरे में उम्मीद की एक नई किरण दिखाई दी। जिस पर मार्च 2022 में ग्राम के जनप्रतिनिधि बुधराम नेताम द्वारा उन्हें योजना का लाभ लेने हेतु सहायता करते हुए जगदलपुर में मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल के भेंट मुलाकात कार्यक्रम में जाने के संबंध में जानकारी देते हुए मुख्यमंत्री से सहायता हेतु अपील करने को कहा। जिस पर 26 मई 2022 को जगदलपुर में नेहल के पिता द्वारा मुख्यमंत्री से सहायता की अपील की।जहां मुख्यमंत्री द्वारा संवेदनशीलता पूर्वक जल्द से जल्द नेहल की सहायता हेतु स्वास्थ्य अधिकारियों को निर्देशित किया। जिस पर तत्परता दिखाते हुए अगले ही दिन स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों के दल द्वारा नेहल के घर पहुंच स्वास्थ्य रिपोर्ट तैयार की गयी। जहां 04 जून को लिमदरहा में अपने कार्यक्रम के दौरान कोण्डागांव विधायक मोहन मरकाम के द्वारा नेहल की चर्चा पर मुख्यमंत्री ने तुंरत राशि जारी कर नेहल का उपचार प्रारंभ करवाने के निर्देश दिये। जिस पर त्वरित कार्यवाही करते हुए 06 जून को अधिकारियों द्वारा विभागीय कार्यवाही पूर्ण कर 20 लाख रूपये नेहल के पिता के खाते में अंतरित कर दिये गये।राशि प्राप्त होते ही नेहल के पिता उसे लेकर चेन्नई पहुंचे। जहां प्रारंभिक जांच के उपरांत डॉक्टरों द्वारा 28 लाख रूपयों के खर्च होने की बात बतायी, जिस पर पुनः नेहल के परिजन 08 लाख रूपयों की कमी को लेकर चिन्तित हो गये। परिजनों ने जैसे-तैसे कर कुछ रूपये जोड़े जो फिर भी पूरे नहीं थे। तब उन्होने प्रतिनिधि के माध्यम से पुनः मुख्यमंत्री से सहायता की गुहार लगायी। जिस पर मुख्यमंत्री द्वारा स्वेच्छानुदान से नेहल की सहायता हेतु 05 लाख रूपयों की अतिरिक्त सहायता परिजनों को दी। जिससे परिजनों की चिन्ता दूर हुई। जिसके पश्चात 35 दिन लम्बे चले उपचार के उपरांत नेहल ने अंततः तीन वर्षों बाद कैंसर को हरा दिया और अब पूरी तरह स्वस्थ हो गयी है। जहां स्कूल प्रबंधन एवं शिक्षकों द्वारा नेहल के लिए ऑनलाइन कक्षाओं का प्रबंध कर दिया गया। जिससे नेहल अब घर में रहकर अपनी पढ़ाई जारी रख पा रही है।नेहल एवं उसके परिजनों ने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को इलाज हेतु सहायता के लिए तहे दिल से धन्यवाद देते हुए पिता गिरजानंद ने नम आंखों से कहा कि अगर मुख्यमंत्री से सहायता राशि न मिलती तो आज शायद आज नेहल इस दुनिया में न होती। उन्होंने मुख्यमंत्री का आभार जताते हुए बताया कि नेहल को जब से मुख्यमंत्री द्वारा प्राप्त सहायता के बारे में जानकारी मिली है, वह स्वयं मिलकर उनका आभार व्यक्त करना चाहती है। -
सुधीर तम्बोली
दिव्यांगो के लिए एक प्रेरणा है शशि निर्मलकर
एक दशक से दिव्यांग विद्यार्थियों के जीवन को दिशा देने का कर रही कार्य
रायपुर : "दिव्यांग होने के बावजूद यदि जुनून व हौसला हो तो दिव्यांगता को भी प्रेरणा में बदला जा सकता है जिससे स्वयं के साथ अन्य दिव्यांग का जीवन संवर सकता है और यही साबित कर रही है छत्तीसगढ़ प्रदेश की एक समर्पित समाजसेवी युवती जो करीब एक दशक से दिव्यांगों के लिए निस्वार्थ निःशुल्क कार्य कर रही है। कोरोना काल के दौरान भी विपरीत परिस्थितियों के बावजूद संस्था को सफलता पूर्वक आगे बढ़ाने में डटे रही जिसके फलस्वरूप संस्था के दो दिव्यांग बच्चों ने एवरेस्ट बेस कैंप में भी तिरंगा लहराया है।"