- Home
- विशेष रिपोर्ट
-
द न्यूज़ इंडिया समाचार सेवा
डॉ. दानेश्वरी संभाकरसहायक संचालकरायपुर : भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी कहते हैं कि,हम सबके जीवन मां का दर्जा सबसे ऊंचा होता है, मां हर दुःख सहकर भी अपने बच्चों का पालन पोषण करती है, हर मां अपने बच्चों पर हर स्नेह लुटाती जन्मदात्री मां का यह प्यार हम सब पर एक कर्ज की तरह होता है जिसे कोई चुका नहीं सकता। प्रधानमंत्री श्री मोदी का सोचना है कि अब हम मां को कुछ दे तो सकते नहीं लेकिन और कुछ कर सकते हैं। इसी सोच में इस वर्ष विश्व पर्यावरण दिवस पर एक विशेष अभियान शुरू किया गया है इस अभियान का नाम है ‘‘एक पेड़ मां के नाम’’।
विश्व पर्यावरण दिवस के मौके पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने (5 जून) को बुद्ध जयंती पार्क, नई दिल्ली में पीपल का पौधा लगाकर ‘एक पेड़ माँ के नाम’ अभियान की शुरुआत की। प्रकृति के पोषण के लिए धरती माता और मानव जीवन के पोषण के लिए हमारी माताओं के बीच समानता दर्शाते हुए पीएम मोदी ने दुनिया भर के लोगों से अपनी माँ के प्रति प्रेम, आदर और सम्मान के प्रतीक के रूप में एक पेड़ लगाने और धरती माता की रक्षा करने का संकल्प लेने का आह्वान किया।
केंद्र और राज्य सरकार के विभाग भी ‘एक पेड़ माँ के नाम’ अभियान के लिए सार्वजनिक स्थानों की पहचान करेंगे। गौरतलब है कि इस बार विश्व पर्यावरण दिवस की थीम भूमि क्षरण को रोकना और उलटना, सूखे से निपटने की क्षमता विकसित करना और मरुस्थलीकरण को रोकना का मुख्य उद्देश्य है।
मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय ने नवा रायपुर के अटल नगर स्थित जैव विविधता पार्क में ‘एक पेड़ मां के नाम’ अभियान का शुभारंभ पीपल के पौधे का रोपण कर किया। इस अभियान के तहत वन विभाग द्वारा छत्तीसगढ़ में 4 करोड़ वृक्ष लगाये जाएंगे। इस अभियान में स्कूली बच्चे, आम नागरिक और जनप्रतिनिधि भी उत्साह के साथ हिस्सा ले रहे हैं। शासकीय, अशासकीय संस्थाओं और समितियों द्वारा पौधारोपण जोर-शोर से किया जा रहा है।
पेड़ का महत्व
पेड़ लंबे समय तक प्रदूषण मुक्त वातावरण की कुंजी हैं क्योंकि वे ऑक्सीजन प्रदान करने, हवा की गुणवत्ता में सुधार, जलवायु सुधार, जल संरक्षण, मिट्टी संरक्षण और वन्य जीवन का समर्थन करने के लिए जिम्मेदार हैं। इन सभी कारणों से वर्तमान परिदृश्य में वृक्षारोपण आवश्यक हो गया है क्योंकि प्रदूषण चरम पर है। कुछ हद तक प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए वृक्षारोपण ही एकमात्र उपाय है। पेड़ों के बिना, पृथ्वी पर जीवन नहीं होता। पेड़-पौधे कई तरह से पर्यावरण को स्वस्थ रखने में बहुत योगदान देते हैं।
मार्च 2025 तक 140 करोड़ पेड़ लगाने की योजना
एक पेड़ माँ के नाम अभियान के साथ इस साल सितंबर तक 80 करोड़ और मार्च, 2025 तक 140 करोड़ पेड़ लगाने की योजना बनाई गई है। इसके लिए “संपूर्ण सरकार” और “संपूर्ण समाज” नीति का पालन किया जाएगा। ये पेड़ पूरे देश में व्यक्तियों, संस्थाओं, समुदाय आधारित संगठनों, केंद्र और राज्य सरकार के विभागों और स्थानीय निकायों द्वारा लगाए जाएंगे। -
द न्यूज़ इंडिया समाचार सेवा
रायपुर : बारिश के मौसम में बीमारियों से बचाव के लिए स्वच्छता का विशेष ध्यान रखना आवश्यक होता है। साफ पानी का सेवन, संतुलित आहार और उचित सावधानियों के माध्यम से हम इन बीमारियों से बच सकते हैं। स्वस्थ रहें और बारिश के मौसम का आनंद लें। बारिश का मौसम अपने साथ खुशहाली और ताजगी लाता है, लेकिन इसके साथ ही यह कई बीमारियों का खतरा भी बढ़ा देता है। बारिश के मौसम में नमी और पानी का जमाव बीमारियों के लिए अनुकूल वातावरण पैदा करता है। बारिश के मौसम में होने वाली प्रमुख बीमारियों और उनकी रोकथाम के उपायों के बारे में सावधानियों की आवश्यकता है।मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय ने आम नागरिकों से अपील की है कि जलजनित बीमारियों से बचने जागरूक रहें और अपने आसपास पानी का जमाव होने न दें, ताकि मच्छर पनप न पाए। उन्होंने लोगों से अपील की है कि जलजनित बीमारी फैलने पर तुरंत स्वास्थ्य विभाग के मैदानी अमला को जानकारी दें और त्वरित उपचार के लिए जीवन रक्षक दवाओं का उपायोग करें। मुख्यमंत्री श्री साय ने स्वास्थ्य अमलों को काम्बेट टीम के गठन के निर्देश दिए हैं। साथ ही राजस्व अमले को भी मौसमी बीमारी फैलने पर तत्काल स्वास्थ्य शिविर लगाने निर्देश दिए हैं।बरसात के मौसम में फैलने वाली प्रमुख मौसमी बीमारियों के लक्षण और बचाव के तरीके निम्नानुसार है -डेंगू और मलेरियाः- डेंगू और मलेरिया दोनों बीमारियाँ मच्छरों के कारण होती हैं। बारिश के मौसम में जगह-जगह पानी जमा होने से मच्छरों की संख्या बढ़ जाती है।लक्षणः- डेंगूः- तेज बुखार, सिरदर्द, जोड़ों और मांसपेशियों में दर्द, त्वचा पर लाल चकत्ते का होना।मलेरियाः- ठंड लगना, तेज बुखार, पसीना आना, सिरदर्द।डेंगू और मलेरिया दोनों बीमारियाँ मच्छरों के काटने से फैलती हैं, लेकिन दोनों बीमारियाँ अलग-अलग प्रकार के मच्छरों के काटने से फैलती हैं और इनके मच्छरों में कुछ महत्वपूर्ण अंतर होते हैं। इन दोनों मच्छरों के बीच के अंतर इस प्रकार है -डेंगू मच्छरः-प्रजातिः- एडीज़ एजिप्टी (Aedes aegypti) ये मच्छर मुख्य रूप से दिन में काटते हैं, विशेषकर सुबह और शाम के समय। ये मच्छर साफ पानी में प्रजनन करते हैं। कूलर, गमले, टायर और अन्य स्थिर पानी के स्रोतों में पनपते हैं।मलेरिया मच्छरः- एनोफिलीस (Anopheles)-ये मच्छर मुख्य रूप से रात में काटते हैं। ये मच्छर गंदे पानी, धान के खेतों, और तालाबों में प्रजनन करते हैं। इनके लार्वा को समाप्त करने के लिए जमे हुए पानी में मिट्टी तेल छिड़काव करना चाहिए।रोकथामः- मच्छरों के काटने से बचने के लिए मच्छरदानी का उपयोग करें। पानी को जमा न होने दें और घर के आसपास सफाई रखें। मच्छर भगाने वाले क्रीम और स्प्रे का उपयोग करें। घर में नीम पत्ती जलाकर धुंआ करने से मच्छर से बचा जा सकता है।टाइफाइडः- टाइफाइड एक बैक्टीरियल संक्रमण है, जो प्रदूषित पानी और भोजन के सेवन से फैलता है।लक्षणः- तेज बुखार, पेट में दर्द, सिरदर्द, कमजोरी, भूख में कमी।रोकथामः- साफ और स्वच्छ पानी पीएं। खाने से पहले और बाद में हाथ को साफ धोएं। बाहर के खाने से बचें, विशेषकर सड़क किनारे के खाने में मक्खियां बैठी रहती है, इसलिए ऐसे खाद्य पदार्थाें का उपयोग करने से, सड़े-गले खाद्य पदार्थाें के उपयोग से बचें।कॉलराः- कॉलरा एक बैक्टीरियल संक्रमण है, जो दूषित पानी और भोजन से फैलता है।लक्षणः- उल्टी, दस्त, पेट दर्द, अत्यधिक प्यास, कमजोरी।रोकथामः- साफ पानी पीएं और खाना बनाते समय स्वच्छता का विशेष ध्यान रखें। पानी को उबाल कर पीएं और खाने की सामग्री को ढक कर रखें।सर्दी और फ्लूः- बारिश के मौसम में तापमान में अचानक बदलाव और नमी के कारण सर्दी और फ्लू का खतरा बढ़ जाता है।लक्षणः- खांसी, जुकाम, बुखार, गले में खराश, बदन दर्द।रोकथामः- मौसम के अनुसार कपड़े पहनें और भीगने से बचें और गीले कपड़े का इस्तेमाल न करें। विटामिन सी युक्त फलों का सेवन करें। भीड़-भाड़ वाले स्थानों से बचें।त्वचा संबंधी बीमारियाँः-नमी और गंदगी के कारण त्वचा संबंधी संक्रमण, जैसे फंगल इंफेक्शन, बढ़ जाते हैं।लक्षणः- त्वचा पर लाल चकत्ते, खुजली, जलन।रोकथामः- त्वचा को सूखा और साफ रखें। गीले कपड़े जल्द से जल्द बदलें। एंटीफंगल पाउडर या क्रीम का उपयोग करें।कंजेक्टिवाइटिस (आँख आना) :-कारणः- बैक्टीरियल या वायरल संक्रमण एलर्जी, गंदे हाथों से आँखों को छूनालक्षणः- आँखों में लाली, खुजली और जलन, पानी निकलना, सूजन का होनारोकथामः- साफ और स्वच्छ हाथों से आँखों को छुएं। व्यक्तिगत तौलिए और रुमाल का उपयोग करें। संक्रमित व्यक्ति के संपर्क से बचें और काले चश्में का उपयोग करें। - द न्यूज़ इंडिया समाचार सेवा
बाजार में रौनक,महिलाओं में उत्साह और घर परिवार में खुशियां बिखेर रही है यह योजना
लेख-कमलज्योति-सहायक संचालक
रायपुर : यह महतारी वंदन योजना है। एक ऐसी योजना ,जिसमें सुनहरे भविष्य की उम्मीद और बेबस, लाचार महिलाओं के साथ-साथ अपने जरूरी खर्चों के लिए पैसों की मोहताज महिलाओं की खुशियां ही नहीं छिपी है, इन खुशियों के पीछे आर्थिक सशक्तिकरण का वह आधार भी है, जो कि महतारी वंदन जैसी योजना के बलबूते छत्तीसगढ़ की गरीब महिलाओं में आत्मनिर्भरता की नींव को शनैः-शनैः मजबूत करती जा रही है। महज चार महीनों में ही विष्णु सरकार की इस महतारी वंदन योजना ने छत्तीसगढ़ की न सिर्फ महिलाओं में अपितु घर-परिवार में भी खुशियों की वह मिठास घोल दी है, जिसका परिवर्तन उनके जीवनशैली में भी बखूबी नजर आने लगा है। आर्थिक रूप से सशक्तिकरण ने परिवार के बीच रिश्तों की गाँठ को और भी मजबूती से बाँधना शुरू कर दिया है। इस योजना से महिलाओं का सम्मान भी बढ़ा है।
छत्तीसगढ़ में इस साल के 10 मार्च से महिलाओं के खाते में भेजी गई पहली किश्त एक हजार रुपए से आरंभ हुई छत्तीसगढ़ महतारी वंदन योजना का लाभ प्रदेश की लगभग 70 लाख 12 हजार से अधिक महिलाओं को मिल रहा है। साल में 12 हजार रुपये कोई छोटी रकम नहीं है..यह जरूरतमंद गरीब महिलाओं के लिए आर्थिक आधार भी है। मुख्यमंत्री श्री विष्णुदेव साय विगत चार महीनों से लगातार हर महीने के पहले सप्ताह में महिलाओं के बैंक खाते में इस योजना अंतर्गत एक हजार की राशि ऑनलाइन माध्यम से अंतरित करते हैं। मुख्यमंत्री के बटन दबाते ही महिलाओं के खाते में पहुँचने वाली यह राशि प्रदेश की लाखों महिलाओं की खुशियों का पर्याय बन जाती है। पहले कुछ रुपयों के लिए मोहताज महिलाओं को एक हजार की राशि मिलने पर उनकी अपनी छोटी-छोटी जरूरतों का सपना भी पूरा होता है।
इस राशि का उपयोग वह सिर्फ अपने ही लिए नहीं करती...घर के राशन से लेकर अचानक से पति को कुछ रुपयों की पड़ी आवश्यकता, बच्चों के लिए कुछ जरूरी सामान, नाती-नतनी की खुशियों के ख़ातिर स्नेहपूर्वक उन्हें उनकी जरूरतों का उपहार देने में भी करती हैं। महिलाओं को हर महीने इस राशि का बेसब्री से इंतजार रहता है। ऐसी ही इस योजना की हितग्राही मीरा बाई हैं। पति शारिरिक रूप से असमर्थ है। किसी तरह मजदूरी कर घर के खर्चों को पूरा करती है। तीन बच्चे हैं और वे स्कूलों में पढ़ाई करते हैं। स्कूल खुलते ही अपने बच्चों के लिए आई जरूरतों को पूरा करने के साथ घर की जरूरतों में भी महतारी वंदन योजना की राशि का उपयोग करती हैं। उन्होंने बताया कि घर के प्रति उनकी जिम्मेदारी है और हर महीने मिलने वाली एक हजार रुपये की राशि उनके लिए एक बहुत बड़ा योगदान है। इस राशि से ऐन वक्त पर बच्चों और पति को आई जरूरतों को भी पूरा कर पाती हैं।
गाँव में रहने वाली सविता बाई के पति खेतों में काम करते हैं। बारिश में चाय की चुस्कियां लेती सविता बाई ने महतारी वंदन न्याय योजना का नाम आते ही चेहरे पर मुस्कान लाकर इस योजना से मिल रही खुशियों को प्रकट किया। उन्होंने कहा कि गाँव की महिलाओं के लिए एक हजार की राशि एक बड़ी राशि होती है। उन्होंने बताया कि महिलाओं की आदत होती है कि दो-चार-पाँच रुपए बचा कर सौ-दो सौ जोड़ लें। यहां तो एक हजार रुपए मिल रहे हैं ऐसे में उनकी जरूरतों के लिए यह रकम कठिन समय में संजीवनी की तरह साबित हो रही है। बच्चों के लिए भी वह इस राशि को खर्च कर पाती है। उन्होंने बताया कि पैसा खाते में आने के बाद छोटी जरूरतों के लिए पति से अनावश्यक पैसा मांगना भी नहीं पड़ता।
वनांचल में रहने वाली श्रीमती बुधवारों बाई राठिया गाँव के हाट बाजार पहुँची थीं। अपने नाती आशीष को लेकर आईं बुधवारो बाई ने बाजार में नाती को न सिर्फ उनके पसंद का मिष्ठान खिलाया अपितु अन्य नाती-नतनिनों के लिए बाजार से मिष्ठान लिया और उनका नाती आशीष बारिश में नंगे पैर न घूमे इसे ध्यान रखते हुए महतारी वंदन योजना की राशि से स्नेहपूर्वक चप्पलें भी खरीदी। उन्होंने बताया कि उनका जो कुछ है उनके बेटे और नाती-नतनी ही हैं और बहुत ही खुशी मिलती है कि वृद्धावस्था में वह अपने नाती-नतनियों की कुछ जरूरतों को पूरा कर पाती हैं। यह सब मुख्यमंत्री श्री विष्णुदेव साय और उनकी सरकार की बदौलत ही हो पाया है। उन्होंने हमारे संघर्षमय जीवन में खुशियों की मिठास घोल दी है।।। - द न्यूज़ इंडिया समाचार सेवा
एल.डी.मानिकपुरी, सहायक जनसंपर्क अधिकारी
मुख्यमंत्री श्री साय
रायपुर : लोकतंत्र में जहां जनता अपने नेतृत्व को वायदे पूरे करने के लिए पांच साल का जनादेश प्रदान करती है। ऐसे में किसी प्रदेश के मुखिया से महज छह माह के समय में इन वायदों को पूरा करने की आशा आमतौर पर बेमानी होती है। लेकिन मन में जज्बा, कुछ करने की लालसा, संवेदनशील प्रयास और समन्वित रणनीति के तहत कार्य किया जाए तो छह माह में भी इतिहास गढ़ा जा सकता है। महज़ छह माह में किसी भी सरकार के कामकाज का मूल्यांकन नहीं किया जा सकता इसके बावजूद विष्णु देव साय सरकार जिस तेजी के साथ काम को आगे बढ़ा रही है, निश्चित ही यह एक मिसाल है।
समर्थन मूल्य की राशि का भुगतान किसानों के खाते में किया गया
मुख्यमंत्री श्री साय ने विधानसभा चुनाव के दौरान किए गए अधिकांश वायदों को पूरा करने के लिए जरा भी वक्त जाया नहीं किया। इसे कुछ इस तरह से समझा जा सकता है। शपथ ग्रहण 13 दिसम्बर 2023 के बाद 15 अप्रैल 2024 यानी 4 माह 02 दिन। 16 मार्च 2024 से 6 जून 2024 यानी 2 माह 21 दिन लोकसभा निर्वाचन की वजह से आदर्श आचार संहिता पूरे प्रदेश में प्रभावशील रही। ऐसे में विष्णु देव सरकार को मुख्यमंत्री बने छह माह जरूर हो चुके हैं लेकिन निर्णय, योजनाओं का क्रियान्वयन, भावी रणनीति को मूर्तरूप देने के लिए उन्हें 4 माह का ही समय मिला है।
समर्थन मूल्य की राशि का भुगतान किसानों के खाते में किया गया
मुख्यमंत्री श्री साय ने इन सब के बावजूद अपने सटीक निर्णयों से प्रदेश में एक अलग छाप छोड़ने में सफल हुए हैं। जब हम आधी आबादी की बात करते हैं तब उनकी स्वास्थ्य, शिक्षा, स्वावलम्बन और सशक्तीकरण के लिए ठोस व दूरगामी रणनीति बनानी पड़ती है। प्रदेश के 70 लाख विवाहित महिलाओं के जीवन में एक नई उम्मीद की किरण महतारी वन्दन योजना से मिली है। ईब से इंद्रावती तक यानी प्रदेश के चारों तरफ विवाहित महिलाओं को हर माह एक हजार रूपए दिए जा रहे हैं और इस तरह चार किश्ते दी जा चुकी हैं। राज्य सरकार द्वारा विवाहित माताओं-बहनों के खाते में राशि देने के पीछे आर्थिक सशक्तीकरण करना, उनके आर्थिक हालात को बेहतर करना प्रमुख उद्देश्य है।
दावे और वादे के पक्के मुख्यमंत्री श्री साय ने प्रदेश के लाखों किसानों से 3100 रुपये प्रति क्विंटल की दर से और 21 क्विंटल प्रति एकड़ के मान से धान खरीदने की गारंटी को पूरा करते हुए 32 हजार करोड़ रुपए के समर्थन मूल्य की राशि का भुगतान किसानों के खाते में किया गया, वहीं 24 लाख 75 हजार किसानों को कृषक उन्नति योजना के तहत अंतर की राशि 13 हजार 320 करोड़ रुपए अन्तरित की गई। खरीफ सीजन में रिकॉर्ड 145 लाख मीट्रिक टन धान की खरीदी की गई। इसके अलावा किसानों को दो साल के धान के बकाया बोनस राशि 3 हजार 716 करोड़ रुपए देने जैसे साहसिक निर्णय लिए है।
मुख्यमंत्री श्री साय संवेदनशील सरकार और किसानों के सरकार के रूप में महज छह माह में ही पहचान बनाने में सफल हुए। आदिवासियों की पीड़ा, संघर्ष, सम्मान और जरूरत को उनसे बेहतर कौन समझ पाएगा! सरकार बनाते ही तेन्दूपत्ता प्रति मानक बोरा 5 हजार 500 रूपए की गई, जिससे 12 लाख 50 हजार से अधिक तेंदूपत्ता संग्राहकों को लाभ मिल रहा है। कौन नहीं चाहता कि घर के बुजुर्ग तीर्थ यात्रा करें लेकिन आर्थिक अभाव, सुरक्षा और मार्गदर्शन आड़े आते हैं। ऐसे में विष्णु सरकार की मानवीय पहल यानी रामलला मंदिर दर्शन योजना से मन की मुराद पूरी हो रही है।
कोई न सोए भूखे पेट, इस तरह के विचार को अपनी कार्य योजना में शामिल करें तो वह निश्चित ही मानवीय संवेदना ही है प्रदेश के 68 लाख़ से अधिक गरीब परिवारों को पांच वर्षों तक मुफ्त अनाज देने जैसे निर्णय साबित कर रहे हैं कि सरकार गरीबों के कल्याण को प्राथमिकता दे रही है। खुद का घर, पक्का मकान यह सब सुनने में एक गरीब परिवार के लिए दिन में देखने वाले स्वप्न की तरह होता है। लेकिन इस सपने को सच करने के लिए, 18 लाख प्रधानमंत्री आवास योजना के निर्माण की दिशा में प्रदेश जोरशोर से आगे बढ़ चुका है। ऐसे में गरीब के सिर में पक्का छत होना यानी सशक्त परिवार और खुशहाल समाज का प्रतीक बनेगा।
सरकार में आते ही युवाओं की तकलीफ को समझा और पीएससी परीक्षा घोटाले को लेकर युवाओं के गुस्से और हताशा को समझते हुए मुख्यमंत्री श्री साय ने सीबीआई जांच की अनुशंसा की। शासकीय भर्ती आयु सीमा में 5 वर्ष की छूट देने से युवाओं के मन में खुशियां देखने को मिली है। जिस बस्तर अंचल की पहचान सुंदर प्राकृतिक परिवेश और अकूत संसाधनों से है तथा यहां के भोलेभाले आदिवासियों की कला संस्कृति ने देश और दुनिया को अपनी ओर खींचा है। इस स्वर्ग को दूषित करने का काम कुछ माओवादी कर रहे हैं। मुख्यमंत्री श्री साय के अडिग निर्णय, बेहतर रणनीति का ही परिणाम है कि महज छह माह में 129 माओवादियों को सुरक्षा बलों के जवानों ने ढेर किया है, 488 गिरफ्तार हुए हैं 431 आत्मसमर्पण किया और इस तरह बस्तर की उम्मीद की नई रौशनी देखने को मिलने लगी है। - द न्यूज़ इंडिया समाचार सेवा
नसीम अहमद खान, उप संचालक
रायपुर : देश की जीडीपी में कृषि का बड़ा योगदान है। छत्तीसगढ़ की अर्थव्यवस्था का मूल आधार भी कृषि ही है और यह धान का कटोरा कहलाता है। मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय के नेतृत्व में प्रदेश सरकार ने अल्पावधि में राज्य के किसानों के हित में कई फैसले लिए हैं, इससे राज्य में खेती-किसानी को नया सम्बल मिला है। किसान बेहद खुश है। उनके मन में एक नई उम्मीद जगी है।
छत्तीसगढ़ की नई सरकार ने प्रति एकड़ 21 क्विंटल धान की समर्थन मूल्य पर खरीदी तथा दो साल के बकाया धान बोनस की राशि 3716 करोड़ रूपए का भुगतान करके एक ओर जहां अपना संकल्प पूरा किया है, वहीं दूसरी ओर किसानों से बीते खरीफ विपणन वर्ष में 144.92 लाख मेट्रिक टन धान की रिकार्ड खरीदी की है। किसानों को समर्थन मूल्य के रूप में 31,914 करोड़ रूपए का भुगतान एवं किसान समृद्धि योजना के माध्यम से मूल्य की अंतर की राशि 13,320 करोड़ का भुगतान करके यह बता दिया है कि छत्तीसगढ़ की खुशहाली और अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करने का रास्ता खेती-किसानी से ही निकलेगा।
किसानों का मानना है कि राज्य सरकार के अब तक के फैसलों से यह स्पष्ट हो गया है कि यह सरकार किसानों की हितैषी है। खेती-किसानी ही छत्तीसगढ़ की अर्थव्यवस्था का प्रमुख आधार है। कृषि के क्षेत्र में सम्पन्नता से ही छत्तीसगढ़ की अर्थव्यवस्था सुदृढ़ होगी और विकसित राज्य बनाने का सपना साकार होगा। इस बात को ध्यान में रखते हुए छत्तीेसगढ़ सरकार ने इस साल कृषि के बजट में 33 प्रतिशत की वृद्धि की है।
छत्तीसगढ़ सरकार ने अपने संकल्प के मुताबिक समर्थन मूल्य पर खरीदे गए धान में प्रति क्विंटल 917 रूपए के मान से अंतर की राशि भी दे दी है। किसानों को प्रति क्विंटल के मान से 3100 रूपए के भुगतान की यह राशि देश में सर्वाधिक है। छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा इस साल के बजट में कृषक उन्नति योजना के अंतर्गत 10 हजार करोड़ की व्यवस्था की गई है।
छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा राज्य में कृषि को बढ़ावा देने के लिए कई अभिनव पहल की जा रही है। जशपुर जिले के कुनकुरी में कृषि व्यवसाय प्रबंधन महाविद्यालय एवं अनुसंधान केन्द्र तथा बलरामपुर जिले के रामचंद्रपुर में पोस्ट हार्वेस्ट मैनेजमेंट एवं प्रोसेसिंग टेक्नोलॉजी महाविद्यालय, सूरजपुर जिले के सिलफिली एवं रायगढ़ में शासकीय उद्यानिकी एवं वानिकी महाविद्यालय, तथा मनेन्द्रगढ़-चिरमिरी-भरतपुर जिले के खडगंवा में कृषि महाविद्यालय खोलने की व्यवस्था बजट में की है।
कृषि में आधुनिक उपकरणों के प्रयोग को बढ़ावा देने के लिए कृषि अभियांत्रिकी संचालनालय की स्थापना एवं राज्य स्तरीय नवीन कृषि यंत्र परीक्षण प्रयोगशाला के भवन का निर्माण, दुर्ग एवं सरगुजा जिले में कृषि यंत्री कार्यालय तथा रासायनिक उर्वरकों की जांच के लिए सरगुजा जिले में गुणवत्ता नियंत्रण प्रयोगशाला की स्थापना की जाएगी।
राज्य के किसानों को सहकारी एवं ग्रामीण बैंकों से ब्याज मुक्त कृषि ऋण उपलब्ध कराने के लिए 8 हजार 500 करोड़ का लक्ष्य तथा भूमिहीन कृषि मजदूरों की सहायता हेतु दीनदयाल उपाध्याय भूमिहीन कृषि मजदूर योजना के तहत भूमिहीन परिवारों को प्रतिवर्ष 10 हजार रूपये की आर्थिक सहायता देने के लिए बजट में 500 करोड़ रुपए का प्रावधान है।
छत्तीसगढ़ में किसानों को सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराने के लिए प्रधानमंत्री सिंचाई योजना, सौर सुजला योेजना के माध्यम से सिंचित रकबे में बढ़ोत्तरी का प्रयास किया जा रहा है। नवीन सिंचाई योजना के लिए 300 करोड़ रूपए, लघु सिंचाई की चालू परियोजनाओं के लिए 692 करोड़ रूपए, नाबार्ड पोषित सिंचाई परियोजनाओं के लिए 433 करोड़ रूपए एवं एनीकट तथा स्टाप डेम निर्माण के लिए 262 करोड़ रूपए का बजट प्रावधान छत्तीसगढ़ सरकार ने किया है।छत्तीसगढ़ में किसानों एवं भूमिहीन मजदूरों की स्थिति में सुधार, कृषि एवं सहायक गतिविधियां के लिए समन्वित प्रयास पर राज्य सरकार का फोकस है। चालू वित्तीय वर्ष कृषि बजट 33 प्रतिशत की वृद्धि करते हुए 13 हजार 435 करोड़ रूपए का प्रावधान किया गया है। किसानों को सहकारी एवं ग्रामीण बैंकों से ब्याज मुक्त कृषि ऋण उपलब्ध कराने के लिए 8500 करोड़ रूपए की साख सीमा छत्तीसगढ़़ सरकार ने तय की है।
मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय ने वर्तमान खरीफ सीजन को देखते हुए राज्यभर की सहकारी समितियों में सोसायटियो में गुणवत्तापूर्ण खाद-बीज भंडारण एवं उठाव की स्थिति पर निरंतर निगरानी रखने को कहा है। मुख्यमंत्री ने कहा है कि किसानों को खाद-बीज के लिए किसी भी तरह की दिक्कत का सामना न करना पड़े, इसलिए पर्याप्त व्यवस्था की जानी चाहिए।
मुख्यमंत्री ने अपने खेती-किसानी के दीर्घ अनुभव के आधार पर कहा है कि खरीफ सीजन में किसान भाईयों द्वारा डी.ए.पी. खाद की मांग ज्यादा की जाती है। इसको ध्यान में रखते हुए डी.ए.पी. खाद की मांग और सप्लाई पर विशेष निगरानी रखी जानी चाहिए। खाद-बीज की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए सेंम्पलिंग एवं प्रयोगशाला के माध्यम से जांच का विशेष अभियान संचालित किया जाए।
खरीफ सीजन 2024-25 के लिए राज्य में 13.68 लाख मैट्रिक टन उर्वरकों की मांग के विरूद्ध अब तक 9.13 लाख मैट्रिक टन उर्वरक की उपलब्धता सुनिश्चित कर ली गयी है, जो मांग का 67 प्रतिशत है। सोसायटियों में विभिन्न खरीफ फसलों के बीज पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हैं। खरीफ सीजन 2024-25 में 5 लाख 59 हजार 203 क्ंिवटल बीज की मांग के विरूद्ध 6 लाख 39 हजार 4 क्विंटल बीज उपलब्ध है, जो कि मांग का 114 प्रतिशत है। सोसायटियों से किसान लगातार बीज का उठाव कर रहे है। अब तक 03 लाख 75 हजार क्विंटल बीज का उठाव किसानों ने किया है, जो कि बीज की डिमांड का 67 प्रतिशत है। - द न्यूज़ इंडिया समाचार सेवा
आइए जल-जगार मनाएं, गंगरेल बचाएं
धमतरी जिला प्रशासन द्वारा जल संरक्षण एवं संवर्धन के लिए सार्थक पहल की गई है नवाचार के माध्यम से पीकू और गंगरेल की कहानी को आकर्षक रूप से दर्शाया गया है आइए जल-जगार मनाएं, गंगरेल बचाएं के तहत लोगों से अपील की जा रही है कि पानी को व्यर्थ खर्च न करें पानी को सहेज कर रखें “जल है तो कल है” किसान भाईयों को गर्मी के सीजन में धान का फसल न लेकर दलहन और तिलहन की फसल लेने और मिट्टी उर्वरता शक्ति को बना कर रखने का आग्रह किया गया है।
पीकू - आप कौन है आप दुःखी क्यों है।
गंगरेल - मैं......मैं गंगरेल हूं, लाखों लोगों की प्यास बुझाने वाला, लाखों खेतों में हरियाली लाने वाला, अब मैं पल-पल सूख रहा हूं अपने अस्तित्व के लिए जूझ रहा हूं।पीकू - ये तो बहुत बड़ी समस्या है।गंगरेल- मुझे अपनी नहीं धमतरी वालों की चिंता है, मेरे बाद न जाने उनका क्या होगा, खेतों को पानी कहां से मिलेगा, लोगों की प्यास कैसे बुझेगी।पीकू- ऐसा क्यों हो रहा है।गंगरेल- लोगों की नादानी मुझ पर पड़ रही भारी, लोग ट्यूबवेल चलाकर छोड़ देते है जितना उपयोग करते है उससे ज्यादा बहा देते है हजारों लीटर पानी बर्बाद हो रहा है।पीकू- आप चिंता न करें हम जल जगार मनाएंगे, गांव वालों को बताएंगे, मिलकर पानी बचाएंगे।आइए जल जगार मनाएंगंगरेल बचाएं........ -
धनंजय राठौर, संयुक्त संचालक
जी.एस. केशरवानी, उप संचालक
रायपुर : छत्तीसगढ़ में डबल इंजन की सरकार का असर अब दिखने लगा है। राज्य के किसानों के बैंक खातों में इस महीने की 12 तारीख को धन वर्षा होने जा रही है। कृषक उन्नति योजना में लगभग 24.72 लाख किसानों के बैंक खातों में सीधे राशि पहुंचेगी। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा राज्य के किसानों को दी गई गारंटी के अनुरूप मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय ने कृषक उन्नति योजना में समर्थन मूल्य और राज्य सरकार द्वारा घोषित किए गए उपार्जन मूल्य की अंतर की राशि किसानों को देने का निर्णय लिया है।
कृषक उन्नति योजना में राज्य के किसानों को समर्थन मूल्य पर खरीदे गए धान में प्रति क्विंटल 917 रूपए के मान से अंतर की राशि दी जाएगी। अंतर की राशि भुगतान के बाद किसानों को धान की प्रति क्विंटल 3100 रूपए की कीमत मिलेगी। किसानों को धान के प्रति क्विंटल के मान से भुगतान की जा रही यह राशि देश में सर्वाधिक है। छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा इस साल के बजट में 10 हजार करोड़ और पिछले साल के अनुपूरक बजट में 3 हजार करोड़ इस प्रकार कुल 13 हजार करोड़ रूपए का प्रावधान रखा गया है।
छत्तीसगढ़ की अर्थ व्यवस्था में कृषि का महत्वपूर्ण योगदान है, इसलिए राज्य के बजट में भी कृषि के साथ-साथ ग्रामीण विकास को फोकस किया गया है। यहां धान और किसान एक-दूसरे के पर्याय हैं। राज्य में लगभग 32 लाख हेक्टेयर में धान की बोनी होती है और 24 लाख से अधिक किसान समर्थन मूल्य पर धान का विक्रय किया है। इस वर्ष 144.92 लाख मीट्रिक टन की समर्थन मूल्य पर धान की खरीदी किसानों से की गई है। किसानों से समर्थन मूल्य पर की गई धान खरीदी के एवज में 31,913 करोड़ की राशि भुगतान की गई है।
छत्तीसगढ़ के किसानों को धान की कीमत प्रति क्विंटल 3100 रूपए की राशि मिलने से राज्य की अर्थव्यवस्था भी गतिमान होगी। ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक समृद्धि के द्वार खुलेंगे। खेती-किसानी को मजबूती मिलेगी। किसान खेती के आधुनिक तौर तरीको की ओर अग्रसर होंगे। राज्य में व्यापार और वाणिज्य में तेजी आएगी। राज्य सरकार के राजस्व में बढ़ोत्तरी होगी, जिसका लाभ यहां के लोगों को मिलेगा। किसानों के साथ-साथ आम लोगों के जनजीवन में तेजी से बदलाव आएगा।
छत्तीसगढ़ सरकार ने किसान हितैषी निर्णय लेते हुए समर्थन मूल्य में धान खरीदी के लिए प्रति एकड़ 21 क्विंटल धान खरीदी की है। साथ ही किसानों को दो साल का बकाया बोनस राशि के रूप में 3716 करोड़ की राशि सीधे उनके बैंक खाते में दी है। इसके अलावा कृषि मजदूरों को भी राहत देने के लिए पंडित दीनदयाल उपाध्याय भूमिहीन कृषि मजदूर योजना लागू करने का निर्णय लिया है। इस योजना में भूमिहीन कृषि मजदूर को साल में 10 हजार रूपए की राशि दी जाएगी।
गौरतलब है कि केन्द्र सरकार द्वारा छत्तीसगढ़ के 23 लाख से ज्यादा किसानों को प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि का भी लाभ मिल रहा है। इस योजना में किसानों को तीन किश्तों में साल में 6 हजार रूपए की राशि केन्द्र सरकार के द्वारा सीधे किसानों के बैंक खातों में दी जा रही है। केन्द्र सरकार ने छत्तीसगढ़ में धान के विपुल उत्पादन को देखते हुए केन्द्रीय पूल में 74 लाख मीट्रिक टन चावल जमा करने का लक्ष्य दिया है। - द न्यूज़ इंडिया समाचार सेवारायपुर : छत्तीसगढ़ में दानवीर लोगों की कमी नहीं है। वैसी भी दान देने की परम्परा हमारे समाज में प्राचीन काल से चली आ रही है। यहां नई फसल की खुशी में छेरछेरा पर्व में दान देने की परंपरा है। यह हमारे समाज की दानशीलता का उदाहरण है। हमारे शास्त्रों में भी अन्नदान को महादान की संज्ञा दी गई है।
छत्तीसगढ़ सरकार बच्चों में कुपोषण दूर करने के लिए समाज की इसी परम्परा का सहारा ले रही है। प्रधानमंत्री पोषण शक्ति योजना में समुदाय की भागीदारी जोड़ते हुए न्योता भोजन की अनूठी पहल की गई है। मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय ने अपने गृह ग्राम बगिया में आश्रम शाला के बच्चों को अपने जन्मदिवस पर न्योता भोजन कराते हुए इस योजना की शुरूआत की है।
छत्तीसगढ़ में स्कूली बच्चों को अब नियमित रूप से मिल रहे भोजन के अलावा समाज के अग्रणी और सक्षम लोगों के जरिए न्योता भोजन में पौष्टिक और रूचिकर खाद्य सामग्री मिलेगी। ‘न्योता भोजन’ तीन प्रकार के हो सकते हैं - पूर्ण भोजन (शाला की सभी कक्षाओं हेतु), आंशिक पूर्ण भोजन (शाला के किसी कक्षा विशेष हेतु), अतिरिक्त पूरक पोषण सामग्री।
दान-दाताओं द्वारा प्रदान किया जाने वाला खाद्य पदार्थ अथवा सामग्री उस क्षेत्र के खान-पान की आदत (फुड हैबिट) के अनुसार होनी चाहिए। पूर्ण भोजन की स्थिति में नियमित रूप से दिये जाने वाले भोजन के समान बच्चों को दाल, सब्जी और चावल सभी दिया जाना है। फल, दूध, मिठाई, बिस्किट्स, हलवा, चिक्की, अंकुरित खाद्य पदार्थ जैसे सामग्री, जो बच्चों को पसंद हो का चुनाव अतिरिक्त पूरक पोषण सामग्री के रूप में किया जा सकता है। पौष्टिक एवं स्वादिष्ट मौसमी फलों का चयन भी पूरक पोषण सामग्री के रूप में किया जा सकता है।
न्योता भोजन का उद्देश्य समुदाय के बीच अपनेपन की भावना का विकास, भोजन के पोषक मूल्य में वृद्धि तथा सभी समुदाय वर्ग के बच्चों में समानता की भावना विकसित करना है। इस योजना में समाज के अग्रणी और सक्षम लोगों के अलावा कोई भी सामाजिक संगठन, स्कूलों में अध्ययनरत विद्यार्थियों को पूर्ण भोजन का योगदान कर सकते हैं अथवा अतिरिक्त पूरक पोषण के रूप में खाद्य सामग्री का योगदान कर सकते हैं। यह स्कूल में दिए जाने वाले भोजन का विकल्प नहीं होगा, बल्कि यह विद्यार्थियों को दिए जा रहे भोजन का पूरक होगा।
न्योता भोजन समुदाय के सक्षम लोग भी विवाह के वर्षगांठ, जन्मदिन, राष्ट्रीय पर्व आदि विशेष अवसरों पर भी स्कूली बच्चों को पौष्टिक भोज्य पदार्थ उपलब्ध करा सकेंगे। यह पूर्ण रूप से ऐच्छिक होगा। दानदाता स्कूली बच्चों को मौसमी फल, दूध, मिठाई, बिस्किट, हलवा, अंकुरित खाद्य पदार्थ आदि वितरित कर सकते हैं। न्यौता भोजन के लिए बच्चों की रूचि के अनुरूप दानदाता खाद्य पदार्थ का चयन कर सकते हैं।
‘न्योता भोजन’ में प्रधानमंत्री पोषण शक्ति निर्माण योजना से लाभांवित हो रहे बच्चों को अतिरिक्त खाद्य पदार्थ या पूर्ण भोजन के रूप में पौष्टिक और स्वादिष्ट भोजन प्रदाय किया जा सकेगा। इस योजना के संचालन के लिए शाला विकास समिति को जिम्मेदारी सौंपी गई है। यह समिति समुदाय में ऐसे दान दाताओं की पहचान करेगी, जो रोटेशन में माह में कम से कम एक दिन शाला में ‘न्योता भोजन’ करा सके। दान दाताओं को प्रोत्साहित करने के लिए उन्हें शाला की प्रार्थना सभा अथवा वार्षिक दिवस में सम्मानित भी किया जाएगा। - द न्यूज़ इंडिया समाचार सेवा
आनंद प्रकाश सोलंकी, सहायक संचालक
रायपुर : छत्तीसगढ़ की नयी सरकार ने सुशासन का संकल्प लिया है। सुशासन यानि लोगों की बेहतरी के लिए प्रशासन में पारदर्शिता, कार्यों का समय सीमा में गुणवत्ता के साथ पूरा होना, अच्छा प्रबंधन, जनभागीदारी, जवाबदेही, कुशलता और कानून का पालन जैसी बातें शामिल हैं। यह किसी भी जनकल्याणकारी राज्य की प्रथम आवश्यकता होती है। नयी सरकार सुशासन की स्थापना के लिए आई.टी. को प्रमुख टूल के रूप में अपनाएगी। इसकी बानगी वित्तीय वर्ष 2024-25 के बजट में देखी जा सकती है।
मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय की मंशा है कि छत्तीसगढ़ ई-गवर्नेंस की दृष्टि से माडल राज्य बने। उनकी मंशा के अनूरूप योजनाओं की ई-मानीटरिंग के साथ-साथ पारदर्शी प्रशासन और आईटी आधारित कर प्रणाली विकसित की जाएगी। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए छत्तीसगढ़ सेंटर फॉर स्मार्ट गवर्नेन्स की स्थापना का उल्लेख बजट में किया गया है। बजट में सभी विभागों में आई.टी. के उपयोग को प्रोत्साहित करने के लिए आवश्यक उपकरण एवं आधुनिक सॉफ्टवेयर इत्यादि की व्यवस्था के लिए 266 करोड़ का प्रावधान किया गया है।
प्रदेश के 168 नगरीय निकायों में ई.गवर्नेन्स के तहत बजट एण्ड अकाउंटिंग मॉड्यूल स्थापित किया जायेगा। 47 नगरीय निकायों में प्रॉपर्टी सर्वे किये जाने हेतु GIS आधारित सॉफ्टवेयर निर्माण किया जायेगा। इससे प्रॉपर्टी टैक्स की प्राप्तियों में पारदर्शिता आयेगी। इन कार्यों के लिए 30 करोड़ का प्रावधान किया गया है। विभागवार महत्वपूर्ण अभिलेखों को डिजिटल रूप में तैयार करके छत्तीसगढ़ वेब अभिलेखागार में जन.सामान्य को सुविधा के लिए उपलब्ध कराया जायेगा, इसके लिए बजट में 03 करोड़ का प्रावधान किया गया है।
राज्य शासन द्वारा संचालित सभी प्रमुख जनकल्याणकारी योजनाओं की एकजाई मॉनिटरिंग अटल डैशबोर्ड के माध्यम से की जायेगी। इसके लिए 05 करोड़ का प्रावधान किया गया है। शासकीय धन के आय.व्यय की दैनिक निगरानी के लिए एकीकृत वित्तीय प्रबंधन सूचना प्रणाली (IFMIS- 2.0) प्रारंभ की जायेगी। एकीकृत ई.प्रोक्योरमेंट परियोजना के नवीन संस्करण हेतु 15 करोड़ का प्रावधान किया गया है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति.2020 को तत्परता से लागू किया जायेगा। डिजिटल एवं ए.आई. आधारित इको सिस्टम के माध्यम से शिक्षा की व्यवस्था की जायेगी।भारत नेट परियोजना के तहत राज्य की 9,804 ग्राम पंचायतों को ऑप्टिकल फाईबर केबल से जोड़ा जा चुका है। इसके रख.रखाव एवं संचालन के लिए 66 करोड़ की पूल निधि के गठन का प्रावधान किया गया है। ग्रामीण क्षेत्रों में वाई.फाई के माध्यम से हॉट-स्पॉट स्थापित कर प्रदेश भर में इंटरनेट की पहुंच बढ़ायी जायेगी। इस हेतु प्रथम चरण में 1,000 ग्राम पंचायतों में वाई.फाई की सुविधा के लिए पी.एम.वाणी परियोजना अंतर्गत 37 करोड़ का प्रावधान किया गया है। शासन के विभिन्न विभागों द्वारा उपयोग किये जा रहे ई.परिसंपत्ति, मोबाईल एप, एवं वेबसाईट की सायबर सुरक्षा हेतु आवश्यक जांच एवं सर्टिफिकेशन की व्यवस्था की जायेगी।
कर प्रशासन में मजबूती एवं पारदर्शिता लाने के लिए सभी विभागों में आई.टी. टूल्स की सहायता ली जायेगी। कर प्राप्तियों में सुधार हेतु निगरानी तंत्र को भी मजबूत किया जायेगा। वस्तु एवं सेवाकर के संकलन में सुधार एवं पारदर्शिता के लिए राज्य मुख्यालय में बिजनेस इंटेलिजेंस यूनिट की स्थापना की जायेगी। इसमें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस एवं मशीन लर्निंग का उपयोग करते हुए डाटा ड्रिवन फ्रॉड एनालिसिस सहित राजस्व संवर्धन के अन्य उपाय सुनिश्चित किये जायेंगे। इस हेतु 09 करोड़ 50 लाख का प्रावधान किया गया है। वस्तु एवं सेवा कर संबंधी अपीलीय मामलों के त्वरित निराकरण हेतु अधिकरण की स्थापना के लिए 05 करोड़ का प्रावधान किया गया है।भूमि एवं भवनों का हस्तांतरण तथा अन्य विविध पंजीकृत संव्यवहार हेतु राष्ट्रीय सामान्य दस्तावेज पंजीकरण प्रणाली (NGDRS) सॉफ्टवेयर का उपयोग सभी जिलों में लागू किया जायेगा, इससे धोखाधड़ी एवं बेनामी लेन.देन की प्रवृत्ति पर अंकुश लगेगा। विचाराधीन संपत्तियों का ऑटोवेल्यूवेशन मॉड्यूल के तहत बाजार मूल्य की ऑनलाईन गणना का विकल्प होने से राजस्व प्राप्तियों में वृद्धि होगी, इसके लिए 10 करोड़ का प्रावधान किया गया है।
छत्तीसगढ़ सरकार के वर्ष 2024-25 के बजट में रायपुर-भिलाई सहित आसपास के क्षेत्रों को स्टेट कैपिटल रीजन के रूप में विकसित कर यहां विश्वस्तरीय आई.टी. सेक्टर विकसित किया जायेगा। नवा रायपुर, अटल नगर में “लाईवलीहुड सेन्टर ऑफ एक्सीलेंस” एवं दुर्ग जिले में “सेंटर ऑफ एंटरप्रेन्योरशिप” स्थापित किया जायेगा। स्टार्टअप्स को प्रोत्साहित करने के लिए इन्यूबेशन सेंटर की स्थापना तथा बी.पी.ओ. एवं के.पी.ओ. को आकर्षित करने के लिए आई.टी. पार्क की स्थापना की जायेगी। नवा रायपुर में आई.टी. आधारित रोजगार सृजन हेतु ‘प्लग एण्ड प्ले’ मॉडल का विकास किया जायेगा, इससे आर्थिक विकास एवं रोजगार सृजन के नये अवसर विकसित होंगे।
जल संसाधन के बेहतर प्रबंधन हेतु डिजिटल सूचना प्रणाली विकसित की जायेगी। इसके लिए राज्य जल सूचना केन्द्र की स्थापना हेतु 01 करोड़ 56 लाख का प्रावधान किया गया है। जल जीवन मिशन की मॉनिटरिंग के लिए डैशबोर्ड एवं राज्य पोर्टल के साथ-साथ शिकायत निवारण एवं नये कनेक्शन हेतु ऑनलाईन आवेदन की व्यवस्था शुरू की जायेगी। जल की गुणवत्ता की ऑनलाईन मॉनिटरिंग की जायेगी।
भू.नक्शों का जियो.रिफ्रेन्सिंग कराया जायेगा तथा प्रत्येक भू.खंड में यू.एल.पिन नंबर देते हुए भू.आधार कार्ड जारी किया जायेगा। नगरीय क्षेत्रों में 1: 500 के स्केल पर भूमि का नवीन सर्वेक्षण प्रारंभ किया जायेगा। इससे शहरी क्षेत्रों में छोटे भू.खण्डों को भू.नक्शे पर दर्ज किया जाना संभव हो सकेगा। भू.अभिलेखों को सिविल न्यायालयों से लिंक किया जायेगा। इससे सिविल न्यायालय द्वारा भूमि संबंधी प्रकरणों में पारित आदेशों के परिपालन में भू.अभिलेख का सुधार कार्य ऑनलाईन प्रक्रिया से संभव हो सकेगा। भूमि व्यपवर्तन की प्रक्रिया को ऑनलाईन एवं सरल किया जायेगा।
सायबर क्राईम के प्रकरणों की संख्या में वृद्धि को देखते हुए कबीरधाम़, कोरबा, राजनांदगांव एवं रायगढ़ जिले में 04 नवीन सायबर पुलिस थानों की स्थापना के लिए बजट में प्रावधान किया गया है। ई.कोर्ट मिशन प्रोजेक्ट के क्रियान्वयन हेतु हार्डवेयर इंजीनियर एवं डाटा एण्ट्री ऑपरेटर के 596 पदों के सृजन का प्रावधान किया गया है। - द न्यूज़ इंडिया समाचार सेवाराममय हुए माहौल में सद्भावना और मानवता का संदेश दे रहा रामनामी मेला
अयोध्या में रामलला प्राण प्रतिष्ठा पर इन्हें भी हैं खुशी
रामनामी समाज चाहते हैं कि आपस में भाईचारा बढ़े, समाज में भेदभाव दूर हो
आलेख-कमलज्योति
रायपुर : सुबह का सूरज आज बादलो में कही गुम था...रात बारिश हुई थी और भीगी-भीगी मौसम के बीच हजारों लोगों का हुजूम जिस ओर आकर्षित हो रही थीं... वह शायद उनकी श्रद्धा और विश्वास ही था...जो इस धरती के ऐसे राम को देखने आए जा रहे थे... जो किसी मंदिर में नहीं... अपितु इनके जीवन में सदैव समाहित है। बेशक यह रामनामी है और न सिर्फ इनका चोला..शरीर का हर हिस्सा राम...राम...राम...के अक्षरों से नस-नस में विद्यमान है।
शरीर पर श्वेत परिधानों के साथ मोह, माया, लोभ, काम, क्रोध और व्यसनों को त्याग कर सबको भाई-चारे के साथ बिना किसी भेदभाव के शांतिपूर्ण तरीके से जीवनयापन का संदेश भी देते हैं। छत्तीसगढ़ के नवगठित जिले सक्ती के जैजैपुर विकासखंड में रामनामी समुदाय का तीन दिवसीय बड़े भजन का मेला नई पीढ़ी और पहली बार देखने वालों के लिए जहाँ कौतूहल का केंद्र बना है, वहीं इसके विषय में पहले से जानने और समझने वालों के लिए यह सम्मान और गौरव से कम नहीं...। अयोध्या में रामलला के प्राण प्रतिष्ठा से राममय हुए माहौल के बीच रामनामी समुदाय का बड़े भजन का यह मेला भी सद्भावना और मानवता का संदेश दे रहा है।
अपने राम के प्रति अगाध,अथाह प्रेम और अटूट आस्था की यह गाथा हकीकत में कही विराजमान है तो वह छत्तीसगढ़ के रामनामी समुदाय ही हैं। भगवान राम के ननिहाल छत्तीसगढ़ में रामनामी समुदाय का पादुर्भाव कई उपेक्षाओं, तिरस्कारो और संघर्षों की दास्तान है, जो 160 वर्ष से अधिक समय पहले अपनी आस्था पर पहुँची चोट के साथ इस रूप में जन्मी कि आने वाले काल में इन्हें अपनाने और मानने वालों की संख्या बढ़ती चली गई। वह दौर भी आया जब रामनामी समुदाय अपनी तपस्या और सादगी को अपनी उपासना के बलबूते साबित करने में सफल हुए।
इनका मानना है कि उनका राम तो हर जगह मौजूद है, वे अपने राम को कही ढूंढते भी नहीं.. न ही अपने शरीर पर राम... राम लिखवाने से परहेज करते हैं। रामनामी समाज के गुलाराम रामनामी बताते हैं कि उनका यह आयोजन सन 1910 से होता आ रहा है। जैजैपुर का आयोजन 115वां वर्ष है। साल में एक बार यह आयोजन बड़े भजन मेला के रूप में निरंतर किया जाता है। उन्होंने बताया कि रामनामी को कोई भी समाज और धर्म के लोग अपना सकते हैं,लेकिन उन्हें सदाचारी, शाकाहारी और नशे आदि से दूर रहते हुए मानवता के प्रति प्रेम को अपनाना होगा। उन्होंने यह भी बताया कि रामनामी अपने शरीर पर राम...राम लिखवाने के साथ ही कभी सिर पर केश नहीं रखते, महिला हाथों में चूड़ी या गले में माला भी नहीं पहनती। शरीर पर राम ही राम धारण होता है और यह प्राण त्यागने के पश्चात भी मिट्टी में दफन होते तक आत्मसात रहता है।
82 साल के रामनामी तिहारु राम ने बताया कि उनकी पत्नी फिरतीन बाई और उन्होंने चार दशक पहले ही राम को अपने जीवन और शरीर में आत्मसात किया है। एक साल पहले वे अयोध्या भी गए थे, इस बार रामलला के प्राण प्रतिष्ठा समारोह में आमंत्रण आया था। यहाँ से रामनामी गए हैं और खुशी व्यक्त करते हुए कहते हैं कि सभी की कामना है कि जाति-पाति, ऊंच-नीच खत्म हो तथा समाज में भाईचारे के साथ सद्भावना का विकास हो। रामनामी समाज में महिला और पुरूष में कोई भेदभाव नहीं होने की बात कहते हुए तिहारु राम बताते हैं कि वे लोग मूर्तिपूजा नहीं करते, रामायण का पाठ करते हैं और अपने राम का जाप करते हुए मानवता का संदेश देते हैं। लगभग 80 साल के रामभगत, 75 साल की सेतबाई ने भी शरीर पर राम..राम गुदवाया है। वे कहते हैं कि यहीं राम उनकी आस्था है और प्रेरणा भी...। यह अमिट लिखावट उन्हें कभी भी किसी के प्रति दुराचार या गलत आचरण की ओर नहीं ले जाती।
कलश यात्रा के साथ श्वेत ध्वज चढ़ाकर मेले का किया गया शुभारंभ
ऐतिहासिक और गौरवान्वित करने वाला रामनामी मेला,बड़े भजन का मेला किसी पहचान का मोहताज नहीं है। आज 115वां मेला का शुभारंभ सक्ती जिले के जैजैपुर ब्लॉक मुख्यालय में हुआ। इस दौरान आसपास सहित दूरदराज गांवों से बड़ी संख्या में रामनामी समाज के लोग और ग्रामीण पहुँचे। गाँव के मदन खांडे के निवास से पूजा अर्चना के पश्चात धान से राम..राम लिखकर कलश यात्रा निकाली गई, जो कि गाँव के प्रमुख गलियों से होकर मेला स्थल बरछा में छतदार जैतखाम तक पहुँची। यहाँ ध्वज चढ़ाने के साथ ही भजन-आरती की गई। सिर पर मोरपंख के साथ मुकुट धारण किए रामनामी को अपने आराधना और आराध्य देव राम के भक्ति भावना में लीन होकर चलते हुए देखकर लोगों के मन में राम के प्रति श्रद्धा और विश्वास और भी कायम होता नजर आया।
खींचे चले आते हैं मेले में और फिर आना चाहते हैं ग्रामीण
रामनामी मेला हर साल किसी न किसी गाँव में होता आ रहा है। इस मेले में एक बार आने वाले समय मिलते ही दोबारा जरूर आते हैं। अब तक आठ बार रामनामी मेले में आ चुकी वृद्धा कचरा बाई कहती है कि मुझे यहां आकर बहुत ही खुशी की अनुभूति महसूस होती है। कौशल्या चौहान बताती है कि वह तीसरी बार इस मेले में आई है। दिल्ली से आये सरजू राम ने बताया कि वह कई मेले में शामिल हो चुका है। यह मेला सभी समाज को जोड़ने और मानवता को बढ़ावा देने के संदेश को विकसित करता है। मेला समिति के अध्यक्ष केदारनाथ खांडे ने बताया कि दूरदराज से आए ग्रामीण मेला में पूरे तीन दिन तक ठहरते भी हैं, यहाँ लगातार भंडारा भी चलता रहता है। इस दौरान राम...राम..राम की आस्था उन्हें दोबारा आने के लिए उत्सुक भी करती है।
गाँव के ही दंपति द्वारा दान भूमि में बनाया गया है छतदार जैतखाम
भगवान राम के लिए अपनी जीवन समर्पित करने वाले रामनामी समुदाय का यह मेला वास्तव में समाज को जोड़ने और मानवता को विकसित करने वाला होता है, इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है कि गाँव के अनेक लोग जो अन्य समाज के है उन्होंने अपनी कीमती भूमि छतदार जैतखाम के निर्माण के लिए दान की। गांव के पंचराम चंद्रा और श्रीमती लकेश्वरी चंद्रा ने मेला स्थल पर भूमि दान की है वहीं अन्य ग्रामीण भी है,जिन्होंने निःस्वार्थ अपनी कीमती जमीन दान की है।
1910 में ग्राम पिरदा में आयोजित किया गया था पहली बार मेला
रामनामी बड़े भजन का मेला,संत समागम का आयोजन वर्ष 1910 से लगातार आयोजित किया जा रहा है। पौष शुक्ल पक्ष एकादशी से त्रयोदशी तक 3 दिवस चलने वाले इस मेले में भजन और 24 घण्टे राम नाम जाप किया जाता है। पैरो में घुँघरू के साथ राम..राम लय में गाते हुए नृत्य करते है और मेले की शोभा को बढ़ाते हुए रामनाम के संदेश को सभी के मन में समाहित करने कामयाब भी होते हैं।
- द न्यूज़ इंडिया समाचार सेवा
प्रति एकड़ 75 हजार से डेढ़ लाख रूपए तक की आमदनी
छत्तीसगढ़ आदिवासी स्थानीय स्वास्थ्य परंपरा एवं औषधि पादप बोर्ड द्वारा महत्वपूर्ण औषधीय पौधे- सैलेशिया, नन्नारी, मिल्क थिसल, पुदीना, यलंग-यलंग, सिट्रोडोरा एवं गुड़मार आदि पौधे का छत्तीसगढ़ में कृषिकरण को विशेष रूप से बढ़ावा दिया जा रहा है। इन प्रजातियों के कृषिकरण से किसान प्रति एकड़ 75 हजार से डेढ़ लाख रूपए तक की आमदनी प्राप्त कर सकते है।
इस संबंध में वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री श्री मोहम्मद अकबर ने बताया कि मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल की मंशा के अनुरूप राज्य में औषधीय प्रजातियों का कृषिकरण किए जाने का मुख्य उद्देश्य पारंपरिक खेती के अतिरिक्त अन्य फसल के वाणिज्यिक कृषिकरण को बढ़ावा देकर स्थानीय कृषकों के आर्थिक लाभ को बढ़ाना एवं कृषिकरण के प्रति उनका मनोबल बढ़ाना है। प्रधान मुख्य वन संरक्षक एवं वन बल प्रमुख श्री व्ही. श्रीनिवास राव ने बताया कि छत्तीसगढ़ में औषधि पादप बोर्ड द्वारा किसानों को दी जा रही सहुलियत के फलस्वरूप इनकी खेती के लिए भरपूर प्रोत्साहन मिल रहा है। छत्तीसगढ़ में वर्तमान में 108 एकड़ में प्रायोगिक तौर पर बच की खेती तथा 800 एकड़ से अधिक रकबा में लेमन ग्रास की खेती की जा रही है।
राज्य औषधि पादप बोर्ड के अध्यक्ष श्री बालकृष्ण पाठक ने बताया कि छत्तीसगढ़ की जलवायु औषधीय प्रजातियों के लिए बहुत उपयुक्त है। बोर्ड का यह प्रयास है कि किसानों को उपरोक्त प्रजातियों के फायदे एवं कृषिकरण की जानकारी देकर इसके लिए प्रोत्साहित किया जाना। उक्त प्रजातियों के कृषिकरण का प्रयास बोर्ड द्वारा जा चुका है, जो सफल हुआ है। ये औषधीय पौधे कई बीमारियों में उपयोग किये जाने के कारण इनका बाजार मांग अधिक होने के साथ-साथ अत्यधिक मूल्य वाले प्रजातियॉ है।द न्यूज़ इंडिया समाचार सेवा
रायपुर : मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल का ठेठ छत्तीसगढ़िया अंदाज रंग ला रहा है। जमीनी हकीकत और छत्तीसगढ़ के लोगों की जरूरतों से जुड़ी उनकी योजनाओं ने पुरखों के सपनों के ‘नवा छत्तीसगढ़‘ गढ़ने की परिकल्पना को धरातल पर साकार करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। उनके पिछले पौने पांच साल के कार्यकाल की सबसे बड़ी विशेषता यह रही कि वे छत्तीसगढ़िया गौरव और स्वाभिमान को जगाने में कामयाब रहे हैं।
मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल द्वारा छत्तीसगढ़ में प्रारंभ किए गए नवाचारों ने पूरे देश का ध्यान आकर्षित किया और सराहना पायी। नवाचारों को दूसरे राज्यों अपनाने के लिए आगे आ रहे है। संसदीय समितियों और नीति आयोग ने भी छत्तीसगढ़ के इन नवाचारों की सराहना की है। सुराजी गांव योजना, नरवा, गरूवा, घुरवा, बाड़ी योजना, गोबर खरीदी की गोधन न्याय योजना, राजीव गांधी किसान न्याय योजना, राजीव गांधी भूमिहीन कृषि मजदूर न्याय योजना जब प्रारंभ हुई थीं, तब लोगों ने इनकी सफलता पर बड़ा प्रश्न चिन्ह लगाया था, लेकिन इन योजनाओं को लागू करने में मुख्यमंत्री श्री बघेल के दृढ़ संकल्प ने योजनाओं की सफलता ने नया कीर्तिमान बनाया है।
ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने के लिए मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल द्वारा छत्तीसगढ़ में लागू की गई न्याय योजनाओं से बड़ा बदलाव आया है। किसानों, मजदूरों, ग्रामीणों, पशुपालकों और गरीबों की जेब में सीधे पैसे डालने की योजनाओं से लोगों की आर्थिक स्थिति और जीवनस्तर में सुधार हुआ है, उनकी क्रय शक्ति में बढ़ोत्तरी हुई है। जिससे छत्तीसगढ़ के बाजारों की रौनक बढ़ी और उद्योग और व्यापार के क्षेत्र में उत्साहजनक वातावरण बना है। नीति आयोग द्वारा हाल ही में जारी रिपोर्ट के अनुसार पिछले पांच वर्षों में छत्तीसगढ़ में 40 लाख लोग गरीबी के दायरे से बाहर आए हैं। इस उपलब्धि में छत्तीसगढ़ सरकार की राजीव गांधी किसान न्याय योजना, राजीव गांधी भूमिहीन कृषि मजदूर न्याय योजना, गोधन न्याय योजना की महत्वपूर्ण भूमिका रही है।
मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेने के बाद श्री भूपेश बघेल ने सबसे पहले किसानों से किए गए कर्जमाफी का वायदा निभाया और किसानों की कर्जमाफी की घोषणा की। राज्य के किसानों के 9270 करोड़ रुपए से अधिक के कृषि ऋण अदायगी में छूट दी गई। इसके साथ ही 244.18 करोड़ रुपए का सिंचाई कर भी माफ किया गया। किसानों से 2500 रुपए प्रति क्विंटल की दर से धान खरीदी का वादा किया गया था। समर्थन मूल्य के अलावा अंतर की राशि को राजीव गांधी किसान न्याय योजना लागू कर आदान सहायता के रूप में प्रदान किया जा रहा है।
वनवासियों के लिए आय में वृद्धि का स्रोत बढ़ाने सरकार द्वारा खरीदी जाने वाली लघुवनोपजों की संख्या को सात से बढ़ाते हुए 65 प्रकार के लघुवनोपज तक कर दी गई है। तेंदूपत्ता के समर्थन मूल्य में बड़ी वृद्धि करते हुए 2500 रुपए से 4000 हजार रुपए तक किया गया। वहीं तेंदूपत्ता संग्राहकों के लिए 5 अगस्त 2020 को शहीद महेन्द्र कर्मा तेंदूपत्ता संग्राहक सामाजिक सुरक्षा योजना की शुरुआत की गई। इसमें 4555 तेंदूपत्ता संग्राहकों को 31 मार्च 2022 की तारीख तक 63 करोड़ 43 लाख रुपये की बीमा राशि का भुगतान किया गया है। आदिवासियों की लोहाण्डीगुड़ा में टाटा समूह द्वारा 4200 एकड़ अधिगृहीत जमीन वापसी कराई गई।
स्वामी आत्मानंद उत्कृष्ट अंग्रेजी माध्यम स्कूल की शुरुआत करते हुए निम्न आय वर्ग के बच्चों को भी भविष्य में बेहतर अवसर दिलाने की पहल। शिक्षा के क्षेत्र में नवाचार करते हुए राज्य सरकार द्वारा 377 स्वामी आत्मानंद अंग्रेजी माध्यम तथा 350 स्वामी आत्मानंद हिन्दी माध्यम के स्कूल प्रारंभ किए गए है, जहां 4.21 लाख विद्यार्थी अध्ययनरत् हैं। इन विद्यालयों में शिक्षा की गुणवत्ता और लाइब्रेरी, लैब सहित अधोसंरचना इतनी अच्छी है कि निजी विद्यालयों में पढ़ने वाले विद्यार्थियों ने इन विद्यालयों में प्रवेश लेने की होड़ लगी रहती है। चंूकि इन स्कूलों में शिक्षा निःशुल्क दी जा रही है, इससे भी शिक्षा पर होने वाले खर्च में लोगों की बचत हो रही है।
राज्य के युवाओं को अंग्रेजी माध्यम में उच्च शिक्षा के लिए 10 स्वामी आत्मानंद अंग्रेजी माध्यम कॉलेज प्रारंभ किए गए हैं। आने वाले समय में सभी जिला मुख्यालय में अंग्रेजी माध्यम कॉलेज प्रारंभ करने की योजना है। राज्य में मेडिकल शिक्षा के क्षेत्र में अभूतपूर्व कार्य हुए है। चार नए मेडिकल कॉलेज प्रारंभ किए गए और जिनमें से एक निजी कॉलेज का अधिग्रहण किया गया है। इसी प्रकार चार नए मेडिकल कॉलेज की घोषणा की गई। इन्हें मिलाकर आने वाले समय में छत्तीसगढ़ में मेडिकल कॉलेजों की संख्या बढ़कर 6 से बढ़कर 14 हो जाएगी।
सुराजी गांव योजना के तहत नरवा-गरवा-घुरवा-बाड़ी कार्यक्रम से विशेष प्रसिद्धि प्राप्त की है। गोधन न्याय योजना जिसके अंतर्गत गोबर खरीदी योजना लाया गया और गौठानों का निर्माण किया गया। गोबर के साथ गोमूत्र खरीदने वाला देश का पहला राज्य छत्तीसगढ़ है। महंगी दवाओं से राहत देने के लिए श्री धनवंतरी जेनेरिक मेडिकल स्टोर्स की शुरुआत जहां 50 से 72 फीसदी तक छूट में 300 से अधिक प्रकार की दवाएं और मेडिकल उपकरण उपलब्ध हैं। सी-मार्ट (छत्तीसगढ़ मार्ट) की शुरुआत करते हुए ग्रामीण उत्पादों के लिए बाजार उपलब्ध कराने का कार्य किया गया।इन योजनाओं के साथ-साथ समर्थन मूल्य पर धान खरीदी, लघुवनोपजों की समर्थन मूल्य पर खरीदी और प्रसंस्करण, मिलेट्स के समर्थन मूल्य पर खरीदी और प्रसंस्करण, जैसी योजनाओं ने भी लोगों की आय बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। इसके साथ-साथ बेरोजगारी भत्ता योजना ने बेरोजगार युवाओं को संबल प्रदान किया है। राजीव युवा मितान क्लब योजना ने युवाओं को रचनात्मक गतिविधियों से जोड़ने का काम किया है।
गांव के गौठानों में प्रारंभ किए गए रूरल इंडस्ट्रीयल पार्क के माध्यम से विभिन्न आर्थिक गतिविधियों के माध्यम से महिला स्व-सहायता समूहों को रोजगार और आय के साधन मिले हैं। प्रदेश में 300 रीपा विकसित किए जा रहे हैं, जिनमें ग्रामीण युवाओं को छोटे-छोटे उद्योग धंधे प्रारंभ करने के लिए जमीन, बिजली, पानी, बैंक लिंकेज और प्रशिक्षण की सुविधा उपलब्ध करायी जा रही है। रीपा में पौनी-पसारी के तहत परम्परागत व्यवसाय करने वाले लोगों को भी अपनी गतिविधियों के लिए शेड उपलब्ध कराये जा रहे हैं।
राज्य सरकार द्वारा विभिन्न योजनाओं के माध्यम से लगभग पौने दो लाख करोड़ रूपए की राशि जनता की जेब में डाली गई है। छत्तीसगढ़ सरकार की न्याय योजनाओं के चलते बीते पौने पांच सालों में प्रति व्यक्ति का 88,793 रूपए से बढ़कर 1,33,898 रूपए हो गई है। इस अवधि में छत्तीसगढ़ का जीएसडीपी 3,27,106 करोड़ रूपए से बढ़कर 5,09,043 करोड़ रूपए हो गयी है। मार्च 2020 से निरंतर दो वर्ष तक कोविड-19 आपदा के कारण आर्थिक गतिविधियां मद होने के बावजूद राज्य शासन की नीतियों और न्याय योजनाओं के चलते अर्थव्यवस्था के आकार में 56 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। वर्ष 2022-23 में कृषि, औद्योगिक एवं सेवा क्षेत्र में छत्तीसगढ़ राज्य की विकास दर राष्ट्रीय औसत से काफी ज्यादा रही है।
राज्य शासन द्वारा राजीव गांधी किसान न्याय योजना के तहत 24.30 लाख किसानों को इनपुट सब्सिडी के रूप में अब तक 21 हजार 912 करोड़ रूपए का भुगतान किया जा चुका है। इसी तरह ‘राजीव गांधी भूमिहीन कृषि मजदूर न्याय योजना’ के 5.6 लाख हितग्राहियों को अब तक 758.03 करोड़ रूपए का भुगतान किया जा चुका है। इस योजना के हितग्राहियों को किश्तों में प्रतिवर्ष 7000 रूपए की मदद दी जा रही है। ‘गोधन न्याय योजना’ के तहत अब तक महिला स्व-सहायता समूहों, गौठान समितियों और ग्रामीणों को 551.31 करोड़ रूपए का भुगतान किया जा चुका है।
इसी तरह राज्य में गठित किए 13 हजार 242 राजीव युवा मितान क्लबों को अब तक 132.48 करोड़ रूपए की राशि का भुगतान किया जा चुका है। बेरोजगारी भत्ता योजना के तहत प्रदेश के 01 लाख 22 हजार 625 हितग्राहियों को अब तक 112 करोड़ 43 लाख 30 हजार रूपए की राशि दी जा चुकी है। युवाओं को शासकीय नौकरी का अवसर प्रदान करने के लिए हाल ही में राज्य में 42 हजार पदों पर भर्ती प्रक्रिया की जा रही है। प्रतियोगी परिक्षाओं में फीस माफ की गई है। राज्य के युवाओं को उद्योगों में रोजगार के अवसर दिलाने के लिए 36 आईटीआई का आधुनिकीकरण किया जा रहा है। जहां नए जमाने के अनुरूप विभिन्न ट्रेडों में युवाओं को तकनीकी प्रशिक्षण की व्यवस्था रहेगी। इससे प्रतिवर्ष 10 हजार युवाओं को प्रशिक्षण मिलेगा।तेन्दूपत्ता संग्राहकों की मेहनत का उचित मूल्य दिलाने के लिए राज्य सरकार द्वारा तेन्दूपत्ता संग्रहण की दर 2500 रूपए से बढ़ाकर 4000 रूपए प्रति मानक बोरा की गई है। इसी तरह 67 प्रकार की लघु वनोपजों के समर्थन मूल्य पर खरीदी के साथ उनके प्रसंस्करण का काम प्रारंभ होने से वनोपज संग्राहकों की आय में वृद्धि हुई है।
राज्य सरकार द्वारा लागू की गई किसान हितैषी योजनाओं से प्रदेश में खेती-किसानी की अच्छी प्रगति हुई है। ऐसे किसान जो कृषि लागत बढ़ने के कारण खेती-किसानी छोड़ चुके थे, वे भी खेतों की ओर लौटे है। पिछले पौने पांच वर्षों में समर्थन मूल्य पर धान बेचने वाले किसानों की संख्या 12 लाख से बढ़कर 24 लाख से ज्यादा हो गई है। खेती का रकबा भी 24.46 लाख हेक्टेयर से बढ़कर 31.17 लाख हेक्टेयर हो गया है। खेती की प्रगति से समर्थन मूल्य पर धान का उर्पाजन 55 लाख मीटरिक टन से बढ़कर 107 लाख मीटरिक टन हो गया है।
प्रदेश में मछली पालन, लाख पालन को कृषि का दर्जा दिया गया है। इसके अलावा रेशम पालन और मधुमक्खी पालन को कृषि का दर्जा देने की घोषणा की गई है। समर्थन मूल्य पर धान खरीदी के एवज में किसानों को वर्ष 2019-20 में 15 हजार 285 करोड़, वर्ष 2020-21 में 17 हजार 241 करोड़, वर्ष 2021-22 में 19 हजार 37 करोड़ तथा वर्ष 2022-23 में 22 हजार 67 करोड़ रूपए का भुगतान किया गया है। खेती-किसानी को मिले प्रोत्साहन से शून्य प्रतिशत ब्याज पर अल्पकालीन कृषि ऋण लेने वाले किसानों की संख्या वर्ष 2018-19 में 9.94 लाख से बढ़कर वर्ष 2022-23 में 14.07 लाख हो गई है।
लोगों की बचत को बढ़ावा देने में राज्य सरकार की हाफ बिजली बिल योजना, जिसमें 400 यूनिट तक बिजली की खपत पर आधा बिजली बिल देना होता है। किसानों को रियायती दर पर बिजली की आपूर्ति, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के किसानों को निःशुल्क बिजली प्रदाय, राज्य सरकार की सार्वभौमिक सार्वजनिक वितरण प्रणाली, इलाज के लिए डॉ. खूबचंद बघेल स्वास्थ्य सहायता योजना के तहत गरीबों को इलाज के लिए पांच लाख रूपए तक की सहायता, मुख्यमंत्री विशेष स्वास्थ्य सहायता योजना के तहत इलाज के लिए 20 लाख रूपए तक की सहायता उपलब्ध कराने की पहल की गई है। हमर लैब के माध्यम से जांच की सुविधा, हाट बाजार क्लिनिक योजना, मुख्यमंत्री शहरी स्लम स्वास्थ्य योजना, दाई-दीदी क्लिनिक योजना जैसी योजनाओं ने भी लोगों के खर्च कम करने में मदद की है।
लोगों को गरीबी से बाहर निकालने में छत्तीसगढ़ सरकार योजनाओं की सफलता पर नीति आयोग ने भी हाल ही में जारी अपनी रिपोर्ट में मुहर लगायी है। इस रिपोर्ट के अनुसार छत्तीसगढ़ के कबीरधाम, सरगुजा और दंतेवाड़ा में 23 से 25 प्रतिशत लोग गरीबी से बाहर आ गए हैं। रायपुर, धमतरी और बालोद जिले में गरीबी का अनुपात अब 10 प्रतिशत से कम रह गया है। नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार छत्तीसगढ़ सरकार की जनहितैषी नीतियों और न्याय योजनाओं से राज्य के 40 लाख लोग गरीबी से बाहर निकलने में सफल हुए हैं।द न्यूज़ इंडिया समाचार सेवा
धान की खेती से हटकर किसान अपने खेतों में उगा रहे हैं दूसरी फसलें
सरगुजा संभाग के प्रतापपुर में युवा किसान ने नवाचार कर शुरू की सेव की खेती
100 से ज्यादा पौधे,1 साल में ही कई पौधों में फल आने हुए शुरू
रायपुर : छत्तीसगढ़ को धान का कटोरा कहा जाता है। कुछ समय पहले तक छत्तीसगढ़ के किसान धान की फसल के अलावा दूसरी फसलों के बारे में सोचते भी नहीं थे। लेकिन मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल के द्वारा किसानों के लिए शुरू की गयी जनहितकारी योजनाओं के चलते किसान अब नवाचार कर रहे हैं। धान के बदले दूसरी फसलें लेने के लिए शासन द्वारा शुरू की गयी योजना का लाभ लेकर किसान छत्तीसगढ़ जैसे गर्म प्रदेश में सेव की खेती कर रहे हैं।सेव की खेती ठंडे प्रदेशों में हो सकती है,इस मिथ्या को तोड़ने की कोशिश प्रतापपुर के एक युवा कृषक ने की है। मुकेश गर्ग नाम के कृषक ने सूरजपुर जिले के प्रतापपुर जैसी गर्म जगह में अलग-अलग किस्म के सेव के सौ से ज्यादा पौधे लगाए हैं और कुछ में तो फल भी आने शुरू हो गए हैं।कुछ हप्तों में ये पूरी तरह से तैयार होकर खाने लायक हो जायंगे। कहा जा रहा है कि छत्तीसगढ़ में कहीं भी सेव की खेती हो सकती है और ये किसानों के लिए फायदेमंद साबित हो सकती है।
आमतौर पर सेव का फल हिमाचल प्रदेश,जम्मू कश्मीर, उत्तराखंड जैसे कम तापमान वाले राज्यों में होते हैं क्योंकि वहां का मौसम सेव की खेती के लिए अनुकूल है। छत्तीसगढ़ का मौसम गर्म है उन्हें सेव के अनुकूल नहीं माना जाता और इसकी खेती सपने जैसी है।लेकिन अब गर्म स्थानों में भी सेव की खेती हो सकती है।
कृषि एवं उद्यानिकी विभाग से मिली फसल के रखरखाव की जानकारीमुकेश गर्ग से मिली जानकारी के अनुसार खेती से उनका जुड़ाव शुरू से है,वे हमेशा कुछ अलग करने का प्रयास करते हैं। इस बीच उन्हें जानकारी मिली कि हिमाचल प्रदेश में सेव की ऐसी किस्म विकसित हुई है जो गर्म प्रदेशों में भी उग सकते हैं । मुकेश ने इसके लिए कृषि एवं उद्यानिकी विभाग से सम्पर्क किया और प्रतापपुर में सेव की नई किस्म के पौधे लगाए। उन्होंने इनके रोपण और रखवाली को लेकर उनसे और तरीके समझे तथा पौधे ऑर्डर किये इनका रोपण कराया। एक वर्ष की अवधि में ये पौधे चार से छह फीट के हो चुके हैं,कई में फल भी आ चुके हैं।
पौधों की रखवाली और रोपण में तरीकों को लेकर उन्होंने बताया कि इसका मुख्य समय नवम्बर से फरवरी के बीच होता है।इसके लिए उन्होंने पहले से ही दो बाय दो फीट गड्ढे तैयार करके रखे थे और गड्ढों को दीमक रोधी दवा(रीजेंट) से उपचारित किया गया था। गड्ढों में गोबर,मिट्टी और थोड़ा सा डीएपी डालकर पानी से भरकर रखे गए थे।इसका फायदा यह होता है कि गड्ढों को जितना बैठना होता है बैठ जाता है और पौधे लगने के बाद इनके रेशे टूटने का डर नहीं होता है। इसके बाद 1-2 दिन में पौधे रोपित कर दिए थे।इनके लिए ज्यादा पानी की आवश्यकता नहीं होती है केवल गर्मियों में दो से तीन दिन में पानी देना होता है। इस बात का ध्यान रखना होता है कि पौधों में बारिश के पानी का रुकाव नहीं हो क्योंकि जड़ों के सड़ने का डर होता है।
सेव की इस किस्म के लिए 50 डिग्री तक का तापमान है अनुकूल
मुकेश गर्ग बताते हैं कि आमतौर पर सेव की फसल ठंडे प्रदेशों में होती है लेकिन सेव की फसल ‘हरमन 99’ के लिए अधिकतम 50 डिग्री तक का तापमान अनुकूल है। हरमन के साथ ‘अन्ना’ और ‘डोरसेट’ किस्म भी यहां के तापमान के अनुकूल है।द न्यूज़ इंडिया समाचार सेवा
प्राथमिकता, अन्त्योदय, एकल निराश्रित, निःशक्जन श्रेणी के राशनकार्डधारियों को 01 अप्रैल से मिलेगा फोर्टिफाइड चावल
राज्य सरकार ने पोषण सुरक्षा को बढ़ावा देने कोण्डागांव जिले से शुरू की थी फोर्टिफाइड चावल वितरण अभियान
सूक्ष्म पोषक तत्वों विटामिन बी-12, फोलिक एसिड और आयरन से भरपूर है फोर्टिफाइड चावल डॉ. ओम प्रकाश डहरिया
रायपुर : छत्तीसगढ़ में महिलाओं और बच्चों में कुपोषण और एनीमिया की स्थिति को दूर करने के मद्देनजर मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल के नेतृत्व में राज्य सरकार ने प्रदेश के सभी जिलों में शासकीय उचित मूल्य दुकानों के माध्यम से प्राथमिकता वाले परिवारों को फोर्टिफाइड चावल वितरण का महत्वपूर्ण निर्णय लिया है। अब प्रदेश के सभी जिलों में आगामी माह के एक अप्रैल से फोर्टिफाइड चावल का वितरण होगा। जिला प्रशासन द्वारा इसकी तैयारी की जा रही है। फोर्टिफाइड चावल प्राथमिकता, अन्त्योदय, एकल निराश्रित, निःशक्जन, श्रेणी के राशनकार्डधारियों को वर्तमान में दिए जा रहे सामान्य चावल के स्थान पर मिलेगा।गौरतलब है कि राज्य सरकार सार्वभौम पीडीएस के तहत खाद्यान्न सुरक्षा के साथ-साथ पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करने तथा एनीमिया एवं अन्य पोषक तत्वों की कमी को दूर करने नवम्बर 2020 से कोण्डागांव जिले में फोर्टिफाइड चावल वितरण प्रारंभ किया गया है। वर्तमान में मध्यान्ह भोजन योजना तथा पूरक पोषण आहार योजना में प्रदेश के सभी जिलों में फोर्टिफाइड चावल का वितरण किया जा रहा है। इसके अतिरिक्त सार्वजनिक वितरण प्रणाली के अंतर्गत राज्य के 10 आकांक्षी जिले (कोरबा, राजनांदगांव, महासमुंद, कांकेर, नारायणपुर, दंतेवाडा, बीजोपुर, बस्तर, कोण्डागांव, सुकमा) तथा 02 हाई बर्डन जिले (कबीरधाम एवं रायगढ़) में फोटिफाइड चावल का भी वितरण किया जा रहा है।
आयरन और विटामिन से भरपूर है फोर्टिफाइड चावल
फोर्टिफाइड चावल पोषक एवं स्वास्थ्यवर्धक है। यह आयरन, फोलिक एसिड, विटामिन बी-12 से युक्त होता है। इसमें मौजूद आयरन, फोलिक एसिड, विटामिन बी-12 जैसे पोषक तत्व बड़ो एवं बच्चों में खून की कमी नहीं होने देता है तथा खून निर्माण एवं तंत्रिका तंत्र के सही ढंग से कार्य में सहायक होता है। प्रदेश के कई स्थानों पर फोर्टिफाइड चावल को लेकर प्लास्टिक चावल होने का भ्रम भी सामने आई है। दरअसल फोर्टिफाइड चावल सामान्य चावल से अधिक चिकना और अलग दिखता है, लेकिन वह प्लास्टिक नहीं है। लेकिन बेहतर गुणवत्ता वाला चावल है। खाद्य विभाग द्वारा लोगों में भ्रम की स्थिति को दूर करने राशनकार्डधारियों को आंगनबाडी कार्यकर्ता, मितानीन, एवं उचित मूल्य दुकानों में बैनर, पोस्टर आदि के माध्यम से फोर्टिफाइड चावल को पकाने के तरीके एवं उपयोग के संबंध में समय-समय पर जागरूक किया जा रहा है।
फूड या खाद्य पदार्थों के फोर्टीफिकेशन का क्या मतलब होता है
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक फूड फोर्टीफिकेशन का मतलब होता है टेक्नोलॉजी के माध्यम से खाने में विटामिन और मिनरल के स्तर को बढ़ाना। ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि आहार में पोषक तत्वों की कमी को दूर किया जा सके और इससे लोगों के स्वास्थ्य को भी लाभ मिले। आम तौर पर चावल की मिलिंग और पॉलिशिंग के समय फैट और सूक्ष्म पोषक तत्वों से भरपूर चोकर की परतें हट जाती है। चावल की पॉलिश करने से 75-90 प्रतिशत विटामिन भी निकल जाते है जिसके वजह से चावल के अपने पोषक तत्व खत्म हो जाते है। इसलिए चावल को फोर्टिफाई करने से उनमें सूक्ष्म पोषक तत्व न सिर्फ फिर से जुड़ जाते है बल्कि और ज्यादा मात्रा में मिलाये जाते है जिससे चावल और अधिक पौष्टिकयुक्त हो जाता है।
बता दे कि चावल को फोर्टीफाई करने के लिए सबसे पहले सामान्य चावल का पाउडर बनाया जाता है और उसमे सूक्ष्म पोषक तत्व जैसे विटामिन बी-12, फोलिक एसिड और आयरन, एफएसएसएआई ;थ्ैै।प्द्ध के मानकों के अनुसार मिलाये जाते है। चावल के पाउडर और विटामिन/मिनरल के मिश्रण को मशीनों द्वारा गूंथा जाता है और एक्सट्रूजन नामक मशीन से चावल के दानों फोर्टिफाइड राइस कर्नेल एफआरके ;थ्त्ज्ञद्ध को निकाला जाता है। इस एफआरके ;थ्त्ज्ञद्ध के एक दाने (ग्राम) को सामान्य चावल के 100 दानों (ग्राम) के अनुपात में मिलाया जाता है जिसे फोर्टीफाइड चावल कहते है।
ऐसे पकाया जाता है फोर्टीफाइड चावल-
अधिकतम पौष्टिक लाभ के लिए फोर्टीफाइड चावल को पर्याप्त पानी में पकाना चाहिए और बचे हुए पानी को फेंकना नहीं चाहिए। अगर चावल को बनाने से पहले पानी में भिगोया गया हो तो चावल को उसी पानी में पकाना चाहिए। फोर्टीफाइड चावल अत्यधिक पानी में धोने और पकाने के बाद भी अपने पोषक तत्वों को बरकरार रखता है। फोर्टीफाइड चावल को हर बार इस्तेमाल करने के बाद साफ और सूखे हवा-बंद डब्बे में रखना चाहिए।द न्यूज़ इंडिया समाचार सेवा
रायपुर : मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल द्वारा प्रस्तुत वर्ष 2023-24 के बजट में महिलाओं, बच्चों एवं बुजुर्गों के कल्याण के लिए संवेदनशील पहल की गई है। इसके साथ ही उन्होंने निराश्रितों, दिव्यांगों एवं विधवा तथा परित्यक्ता महिलाओं के साथ उभयलिंगी समुदाय का भी विशेष ध्यान रखा है।आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं, सहायिकाओं और मिनी आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं का बढ़ाया मानदेय
आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं की मांगों को पूरा करते हुए मुख्यमंत्री श्री बघेल ने महिलाओं तथा बच्चों के पोषण एवं टीकाकरण हेतु प्रदेश भर में संचालित 46 हजार 660 आंगनबाड़ी केन्द्रों में कार्यरत आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को दी जाने वाली मासिक मानदेय की राशि 6 हजार 500 रूपए प्रति माह से बढ़ाकर 10 हजार रूपए की है। इसी तरह आंगनबाड़ी सहायिकाओं का मानदेय 3 हजार 250 रूपए से बढ़ाकर 5 हजार और मिनी आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं का मानदेय 4 हजार 500 रूपए से बढ़ाकर 7 हजार 500 रूपए प्रति माह करने का प्रावधान बजट में किया है। बजट के इस प्रावधान से आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं तथा मिनी आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं का होली का उल्लास दोगुना हो गया है। प्रदेश भर की आंगनबाड़ी से जुड़ी महिलाओं में हर्ष की लहर है।
मुख्यमंत्री कन्या विवाह योजना की राशि बढ़ाकर 50 हजार की गई
मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने संवेदनशील पहल करते हुए आर्थिक रूप से कमजोर परिवार की बेटियों के विवाह के लिए संचालित मुख्यमंत्री कन्या विवाह योजना अंतर्गत दी जाने वाली सहायता राशि को 25 हजार से बढ़ाकर 50 हजार करने की घोषणा बजट में की है। इसके लिए बजट में 38 करोड़ रूपए का प्रावधान किया गया है।
महिलाओं के रोजगार उपलब्ध कराने शुरू होगी कौशल्या समृद्धि योजना
बजट में महिलाओं के आर्थिक समृद्धि और स्व-रोजगार के लिए नई योजनाओं का प्रावधान भी किया है। महिलाओं को रोजगार उपलब्ध कराने के लिए कौशल्या समृद्धि योजना प्रारंभ करने की घोषणा की है। इसके लिए नवीन मद में 25 करोड़ रूपए का प्रावधान किया गया है।
बाल संप्रेक्षण गृह से बाहर जाने वाले बच्चों के पुनर्वास के लिए शुरू होगी मुख्यमंत्री बाल उदय योजना
बजट में बाल संप्रेक्षण गृह से बाहर जाने की आयु 18 वर्ष से बढ़ाकर 21 वर्ष करने की घोषणा करने के साथ ही वहां से बाहर जाने वाले युवक-युवतियों के पुनर्वास के लिए मुख्यमंत्री बाल उदय योजना शुरू करने का प्रावधान किया है। इसके लिए बजट में एक करोड़ रूपए का प्रावधान किया गया है। इसके अलावा यूनिफाईड डिजिटल एप्लीकेशन योजना शुरू करने के लिए 5 करोड़ का प्रावधान किया गया है।
पोषण, बाल विकास के साथ अधोसंरचना विकास के लिए प्रावधान
बजट में मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने पुनर्वास और रोजगार के साथ पोषण, बाल विकास और अधोसंरचना विकास के लिए प्रावधान किया गया है। नगरीय क्षेत्रों में 100 आंगनबाड़ियों के लिए 12 करोड़ रूपए, मुख्यमंत्री सुपोषण योजना के लिए 160 करोड़ रूपए, बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ योजना के लिए 8 करोड़ रूपए, एकीकृत बाल विकास सेवा योजना के लिए 844 करोड़ रूपए, एकीकृत बाल संरक्षण योजना के लिए 124 करोड़ रूपए का प्रावधान किया गया है।
सामाजिक सुरक्षा पेंशन राशि बढ़ाकर 500 रूपए प्रति माह की गई
मुख्यमंत्री श्री बघेल ने निराश्रितों, बुजुर्गाे, दिव्यांगों एवं विधवा तथा परित्यक्ता महिलाओं के लिए बड़ी घोषणा करते हुए उनको सामाजिक सुरक्षा पेंशन योजना के अंतर्गत दी जाने वाली मासिक पेंशन की राशि 350 रूपए से बढ़ाकर 500 रूपए प्रति माह की है। इससे इन वर्गों को जीवन-यापन के लिए सहारा मिल सकेगा।
उभयलिंगी व्यक्तियों के लिए नवा पिल्हर योजना होगी शुरू
मुख्यमंत्री ने बजट में उभयलिंगी व्यक्तियों को मुख्यधारा में शामिल करने के लिए नई पहल करते हुए नवा पिल्हर योजना शुरू करने की घोषणा की है। इसके अंतर्गत उभयलिंगी व्यक्तियों के शिक्षण-प्रशिक्षण तथा रोजगार हेतु प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में सहायता की जायेगी। इसके लिए बजट में 25 लाख रूपए का प्रावधान किया गया है।
सियान हेल्पलाईन सेंटर की स्थापना की जाएगी
वरिष्ठ नागरिकों, उभयलिंगी व्यक्तियों, विधवा परित्यक्ता महिलाओं एवं दिव्यांगजनों की समस्याओं के ऑनलाईन समाधान हेतु सियान हेल्पलाईन सेंटर एवं टोल फ्री नंबर की स्थापना के लिए एक करोड़ रूपए का प्रावधान किया गया है। छत्तीसगढ़ राज्य केश शिल्पी कल्याण बोर्ड के संचालन हेतु नवीन सेटअप का प्रावधान भी बजट में किया गया है।
मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने इस ऐतिहासिक बजट में महिला एवं बाल विकास विभाग हेतु 2 हजार 675 करोड़ रूपए और समाज कल्याण विभाग हेतु 1 हजार 125 करोड़ रूपए का प्रावधान किया गया है। इसमें बच्चों से लेकर बुजुर्गों, महिलाओं सहित जरूरतमंद, कमजोर वर्गों के लिए भी मुख्यमंत्री श्री बघेल ने व्यापक प्रावधान किया है। मुख्यमंत्री ने इसके माध्यम से ’गढ़बो नवा छत्तीसगढ़’ की परिकल्पना को साकार रूप देने की ओर एक और बड़ा कदम बढ़ाया है और लोक आकांक्षाओं पर खरा उतरते हुए भरोसे का बजट प्रस्तुत किया है।द न्यूज़ इंडिया समाचार सेवा
राज्य में गोबर से पेंट उत्पादन की 13 इकाईयां स्थापित, 29 ईकाइयां प्रक्रियाधीन
पर्यावरण के अनुकूल और पेंट निर्माण की आजीविका से ग्रामीण महिलाओं को हो रहा लाभ
एक उत्पादन इकाई से 15 दिनों के अंदर ही 60 हजार तक के गोबर पेंट का विक्रयरायपुर : मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल की पहल पर प्रदेश सरकार की महत्वाकांक्षी नरवा, गरुवा, घुरवा और बाड़ी व गोधन न्याय योजना के तहत गौठानों में गोबर से वर्मी कम्पोस्ट के साथ ही अन्य सामग्रियों का निर्माण महिला स्व सहायता समूहों के द्वारा किया जा रहा हैं। गौमूत्र से फसल कीटनाशक और जीवामृत तैयार किये जा रहे हैं। महात्मा गांधी ग्रामीण औद्योगिक पार्क योजना (रीपा) आत्मनिर्भरता और सफलता की नई इबारत लिख रही है। इन सबके साथ अब गोबर से प्राकृतिक पेंट बनाने का काम भी पूरे प्रदेश में शुरू हो चुका है महिलाएं प्रशिक्षण लेकर स्व सहायता समूहों के माध्यम से पेंट का निर्माण कर रही हैं।
गोबर से प्राकृतिक पेंट का निर्माण, सभी शासकीय भवनों में अनिवार्य रूप से इस्तेमाल करने के निर्देश
मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल के निर्देशानुसार गोबर से प्राकृतिक पेंट के निर्माण के लिए राज्य में 42 उत्पादन इकाइयों को स्वीकृती दी गयी है। इनमें से 13 उत्पादन इकाइयों की की स्थापना हो चुकी है जबकि 21 जिलों में 29 इकाइयां स्थापना के लिए प्रक्रियाधीन हैं। शासन का निर्देश है कि सभी शासकीय भवनों में अनिवार्य रूप से गोबर से निर्मित प्राकृतिक पेंट का इस्तेमाल हो।
15 दिनों के अंदर ही 60 हजार रूपए तक के गोबर पेंट का विक्रय
कोरिया जिले के ग्राम मझगंवा में महात्मा गांधी ग्रामीण औद्योगिक पार्क योजना के तहत यहां गोबर से प्राकृतिक पेंट बनाने की इकाई शुरू हो गयी है। यहां प्रगति स्व सहायता समूह की महिलाओं को प्रशिक्षित कर पेंट बनाने का कार्य शुरू किया गया है। 15 दिनों के अंदर ही समूह ने 800 लीटर पेंट बनाया है जिसमें से 500 लीटर पेंट का विक्रय किया जा चुका है। पेंट की कीमत लगभग 60 हजार रुपये है। गोबर से बने प्राकृतिक पेंट को सी-मार्ट के माध्यम से खुले बाजार में बेचने के लिए रखा जा रहा है।
पर्यावरण के अनुकूल है प्राकृतिक पेंट
गोबर से निर्मित प्राकृतिक पेंट में एंटी बैक्टीरियल, एंटी फंगल, पर्यावरण अनुकूल, प्राकृतिक ऊष्मा रोधक, किफायती, भारी धातु मुक्त, अविषाक्त एवं गंध रहित गुण पाये जाते हैं। गुणों को देखते हुये छत्तीसगढ़ शासन द्वारा समस्त शासकीय भवनों की रंगाई हेतु गोबर से प्रकृतिक पेंट के उपयोग के निर्देश दिये गए हैं।
पेंट निर्माण से ग्रामीण महिलाओं को हो रहा लाभ
गोबर से पेंट बनाने की प्रक्रिया में पहले गोबर और पानी के मिश्रण को मशीन में डालकर अच्छी तरह से मिलाया जाता है और फिर बारीक जाली से छानकर अघुलनशील पदार्थ हटा लिया जाता है। फिर कुछ रसायनों का उपयोग करके उसे ब्लीच किया जाता है तथा स्टीम की प्रक्रिया से गुजारा जाता है। उसके बाद सी.एम.एस. नामक पदार्थ प्राप्त होता है। इससे डिस्टेम्पर और इमल्सन के रूप में उत्पाद बनाए जा रहे हैं। महात्मा गांधी ग्रामीण औद्योगिक पार्क के अंतर्गत महिला स्व सहायता समूहों द्वारा प्राकृतिक पेंट का उत्पादन उन्हें आर्थिक रूप से मजबूत करने का काम कर रहा है, प्राकृतिक पेंट की मांग को देखते हुए इसका उत्पादन भी दिन ब दिन बढ़ाया जा रहा है।द न्यूज़ इंडिया समाचार सेवा
छत्तीसगढ़ की ग्रामीण महिलाएं बढ़ा रही हैं स्वावलंबन की दिशा में बड़ा कदम
पालक, लालभाजी, हल्दी, जड़ी- बुटी व फूलों से हो रहा है हर्बल गुलाल बनाने का कार्य
रायपुर : एक वक्त था कि बाजार में केमिकल युक्त रंग गुलाल के अलावा कुछ उपलब्ध नहीं था। हर बार होली के त्यौहार पर त्वचा संबंधी बीमारियों को लेकर लोग परेशान रहते थे। लेकिन मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल के द्वारा गोधन न्याय योजना की शुरूआत के बाद केमिकल युक्त गुलाल अब लोगों के जीवन से दूर हो चले हैं। गोधन न्याय योजना से जुड़ी महिलाएं स्व सहायता समूहों के माध्यम से न सिर्फ वर्मी कंपोस्ट तैयार कर रही हैं बल्कि हर्बल गुलाल के उत्पादन में भी अग्रसर होकर स्वावलंबन की दिशा में कदम बढ़ा रही हैं।
समूह की महिलाएं पालक, लालभाजी, हल्दी, जड़ी- बुटी व फूलों से हर्बल गुलाल बनाने का कार्य कर रही हैं और इसमें किसी भी तरह का केमिकल नहीं मिलाया जाता है। इसके अलावा मंदिरों एवं फूलों के बाजार से निकलने वाले पुराने फूलों की पत्तियों को सुखाकर प्रोसेसिंग यूनिट में पीसकर गुलाल तैयार किया जा रहा है। फूलों के साथ ही चुकंदर, हल्दी, आम और अमरूद की हरी पत्तियां को भी प्रोसेस कर इसमें मिलाया जाता है।
गत वर्ष हर्बल गुलाल की मांग को देखते हुए इस बार होली पर्व को लेकर बिहान समूह से जुड़ी महिलाएँ हर्बल गुलाल की तैयारी में दिन रात जुटी हुयी हैं। हर्बल गुलाल की खासियत ये है कि ये पूरी तरह से केमिकल रहित होता है और इसके इस्तेमाल से कोई साइड इफेक्ट भी नहीं होता है। हर्बल गुलाल में रंग और महक के लिए प्राकृतिक फूलों का ही इस्तेमाल किया जाता है। बिहान समूह की महिलाओं के द्वारा स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए हर्बल गुलाल का निर्माण किया जा रहा है और इसकी मांग पूरे प्रदेश में है। महिला स्व सहायता समूह के सदस्यों की इस मेहनत से उन्हें स्वरोजगार के अवसर उपलब्ध हो रहे हैं और वे आर्थिक स्वावलंबन की तरफ अग्रसर हो रही हैं।महासमुंद जिले के ग्राम पंचायत डोगरपाली की जयमाता दी समूह की सदस्य श्रीमती अम्बिका साहू का कहना है कि उन्होंने गत वर्ष होली में 50 किलो हर्बल गुलाल बनाया था और ये पूरा हर्बल गुलाल बिक गया था। पिछली बार की मांग को देखते हुए इस बार ज्यादा हर्बल गुलाल का उत्पादन करने का लक्ष्य है। इस गुलाल के प्रयोग से त्वचा को किसी तरह का नुकसान नहीं होता है। विहान समूह की महिलाओं का कहना है कि उनका ये भी प्रयास है कि वो लोगों को हर्बल गुलाल के फायदे को समझाएं ताकि लोग इन्हें ज्यादा से ज्यादा अपनाएं और खुशी के साथ होली का पर्व मनाएं ।द न्यूज़ इंडिया समाचार सेवा
रायपुर : कई पीढ़ियों से भारतीय खान-पान का अहम हिस्सा रहे मिलेट्स कब थाली से गायब हो गए पता ही नहीं चला। मिलेट्स की पौष्टिकता और उसके फायदों को देखते हुए फिर से उसका महत्व लोगों तक पहुंचाने की कोशिश सरकारों द्वारा की जा रही है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वर्ष 2023 को अंतर्राष्ट्रीय मिलेट ईयर के रूप में मनाया जा रहा है। सामान्यतः मोटे अनाज वाली फसलों जैसे ज्वार, बाजरा, रागी, सावां, कोदो, कुटकी और कुट्टू को मिलेट क्रॉप कहा जाता है। मिलेट्स को सुपर फूड भी माना जाता है, क्योंकि इनमें पोषक तत्व अपेक्षाकृत अधिक मात्रा में होते हैं।
छत्तीसगढ़ की बात करें तो मिलेट्स यहां के आदिवासी समुदाय के दैनिक आहार का पारंपरिक रूप से अहम हिस्सा रहे हैं। आज भी बस्तर में रागी का माड़िया पेज बचे चाव से पिया जाता है। छत्तीसगढ़ के वनांचलों में मिलेट्स की खेती भी भरपूर होती है। इसे देखते हुए मोटे अनाजों के उत्पादन और उपभोग को प्रोत्साहित करने के लिए मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल की पहल पर मिलेट मिशन चलाया जा रहा है।छत्तीसगढ़ देश का पहला राज्य है, जहां मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल के नेतृत्व में मिलेट्स को लगातार बढ़ावा दिया जा रहा है। छत्तीसगढ़ में कोदो, कुटकी और रागी का ना सिर्फ समर्थन मूल्य घोषित किया गया, अपितु समर्थन मूल्य पर खरीदी भी की जा रही है। छत्तीसगढ़ राज्य लघु वनोपज संघ के माध्यम से प्रदेश में कोदो, कुटकी एंव रागी का न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारित कर उपार्जन किया जा रहा है। इस पहल से छत्तीसगढ़ में मिलेट्स का रकबा डेढ़ गुना बढ़ा है और उत्पादन भी बढ़ा है।
छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले के नथिया-नवागांव में मिलेट्स का सबसे बड़ा प्रोसेसिंग प्लांट भी स्थापित किया जा चुका है, जो कि एशिया की सबसे बड़ी मिलेट्स प्रसंस्करण इकाई है। अब तक राज्य के 10 जिलों में 12 लघु मिलेट प्रसंस्करण केन्द्र स्थापित किए जा चुके हैैं। गौठानों में विकसित किए जा रहे रूरल इंडस्ट्रियल पार्क में मिलेट्स प्रोसेसिंग प्लांट लगाए जा रहे हैं।
मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल की पहल पर छत्तीसगढ़ विधानसभा में मिलेट्स से बने व्यंजनों को बढ़ावा देने के लिए दोपहर भोज का भी आयोजन किया जा चुका है। रायगढ़ जिले के खरसिया में बीते दिनों प्रदेश के पहले मोबाईल मिलेट कैफे ’मिलेट ऑन व्हील्स का शुभारंभ भी किया है। मोबाइल कैफे का संचालन करने वाली महिला समूह ने महज 8 महीनों में कैफे की मासिक आमदनी 3 लाख रूपये को पार कर गयी है। इस चलते फिरते मिलेट कैफे में रागी का चीला, डोसा, मिलेट्स पराठा, इडली, मिलेट्स मंचूरियन, पिज्जा, कोदो की बिरयानी और कुकीज जैसे लजीज व्यंजन परोसे जा रहे हैं। स्वास्थ्य के प्रति जागरूक लोगों, फूड ब्लॉगर्स और युवाओं की यह पहली पसंद बन गए हैं।
छत्तीसगढ़ में शुरू हुए मिलेट मिशन का मुख्य उद्देश्य जिसका प्रमुख उद्देश्य प्रदेश में मिलेट (कोदो, कुटकी, रागी, ज्वार इत्यादि) की खेती के साथ-साथ मिलेट के प्रसंस्करण को बढ़ावा देना है। इसके अतिरिक्त दैनिक आहार में मिलेट्स के उपयोग को प्रोत्साहित कर कुपोषण दूर करना है। प्रदेश में आंगनबाड़ी और मिड-डे मील में भी मिलेट्स को शामिल किया गया है। स्कूलों में बच्चों को मिड-डे मील में मिलेट्स से बनने वाले व्यंजन परोसे जा रहे है। इनमें मिलेट्स से बनी कुकीज, लड्डू और सोया चिक्की जैसे व्यंजनों को शामिल किया गया है।
छत्तीसगढ़ में मिलेट्स की खेती के लिए राज्य को राष्ट्रीय स्तर का पोषक अनाज अवार्ड 2022 सम्मान भी मिल चुका है। मिलेट मिशन के चलते राज्य में कोदो, कुटकी और रागी (मिलेट्स) की खेती को लेकर किसानों का रूझान बहुत तेजी से बढ़ा है। पहले औने-पौने दाम में बिकने वाला मिलेट्स अब छत्तीसगढ़ राज्य में अच्छे दामों में बिकने लगा है। बीते एक सालों में प्रमाणित बीज उत्पादक किसानों की संख्या में लगभग 5 गुना और इससे होने वाली आय में चार गुना की वृद्धि हुई है।
प्रदेश में कोदो, कुटकी और रागी की खेती का रकबा 69 हजार हेक्टेयर से बढ़कर एक लाख 88 हजार हेक्टेयर तक पहुंच गया है। मिलेट उत्पादक किसानों को राजीव गांधी किसान न्याय योजना का लाभ भी दिया जा रहा है। इस किसानों को भी 9000 रूपए प्रति एकड़ की मान से आदान सहायता दी जा रही है।
आईआईएमआर हैदराबाद के साथ छत्तीसगढ़ राज्य लघु वनोपज संघ के प्रयास से मिलेट मिशन के अंतर्गत त्रिपक्षीय एमओयू भी हो चुका है। छत्तीसगढ़ मिलेट मिशन के तहत मिलेट की उत्पादकता को दोगुना किए जाने का भी लक्ष्य रखा गया है। सीएसआईडीसी ने मिलेट आधारित उद्योगों को प्रोत्साहित करने के लिए कुछ चुंनिदा ब्लॉक में भूमि, संयंत्र एवं उपकरण पर 50 प्रतिशत सब्सिडी की योजना पेश की है। उम्मीद है कि पीढ़ियों से हमारे स्वाद और सेहत का खजाना रहे मिलेट्स का स्वस्थ जीवन शैली के लिए महत्व को लोग समझेंगे और एक बार फिर यह हमारी दैनिक जीवन का हिस्सा होगा।द न्यूज़ इंडिया समाचार सेवा
नक्सल पीड़ित क्षेत्रों में 900 से अधिक परिवारों को दिलाई जा चुकी है मुकदमों से मुक्ति
बीते वर्ष 555 नक्सलवादियों को आत्मसमर्पण के लिए प्रेरित करने में मिली बड़ी सफलता, इस दौरान 46 नक्सली हुए धराशायी
छत्तीसगढ़ के डीजीपी ने लिखा एनआईए के महानिदेशक को पत्र
बस्तर में हुई तीन जनप्रतिनिधि की हत्या की जांच का किया अनुरोध
रायपुर : मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने कहा कि छत्तीसगढ़ में सरकार भयमुक्त एवं विधिसम्मत शासन व्यवस्था प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध है। मुख्यमंत्री ने अपराध पर लगाम लगाए जाने और नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में पुलिस के संवेदनशील रवैये के साथ नक्सलवादियों के आत्मसमर्पण के लिए छत्तीसगढ़ पुलिस की तारीफ की है। उन्होंने कहा है कि विकास,विश्वास और सुरक्षा की रणनीति के कारण ही प्रदेश में नक्सली हिंसा की घटनाओं पर प्रभावी रोक लगी है।
प्रदेश के गृहमंत्री श्री ताम्रध्वज साहू ने कहा है कि छत्तीसगढ़ राज्य में पिछले चार वर्षों में नक्सली उन्मूलन को लेकर लगातार कार्य किए जा रहे हैं। राज्य सरकार द्वारा पुलिस आधुनिकीकरण के कार्य किए जा रहे हैं। छत्तीसगढ़ शासन नक्सलियों के खिलाफ पुलिस को आधुनिक हथियार, सुरक्षा उपकरण, आवश्यक प्रशिक्षण एवं वाहन उपलब्ध करा रही है।
बीते वर्ष सरकार के द्वारा जनहित में किए जा रहे कार्यों से प्रभावित होकर और छत्तीसगढ़ पुलिस के संवेदनशील व्यवहार के कारण 555 नक्सलवादियों ने आत्मसमर्पण किया है जो एक बड़ी सफलता है। इसी दौरान 46 नक्सलवादियों की पुलिस मुठभेड़ में मौत भी हुई है। बीते चार वर्षों में नक्सल पीड़ित क्षेत्रों में 900 से अधिक परिवारों को मुकदमों से मुक्ति दिलाई जा चुकी है जो सरकार की आदिवासियों के हित में दूरदर्शी सोच और पुलिस की संवेदनशीलता से संभव हो पाया है।
बस्तर को लेकर चार वर्ष पहले तक देश में कई भ्रांतियां थीं। लेकिन इन चार वर्षों में सरकार ने सुरक्षा और विश्वास को लेकर कार्य किया है। इस दौरान बस्तर क्षेत्र में विकास के कार्य हुए हैं। इस दौरान नक्सल प्रभावित क्षेत्रों के बंद पड़े स्कूलों को फिर से प्रारंभ किया गया, नए अस्पताल खोले गए, ग्रामीणों के लिए पानी और बिजली जैसी बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराई गयीं। प्रत्येक गांव में राशन दुकान खोले गए हैं। नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में किसानों को वन अधिकार पट्टों का वितरण किया गया है और आदिवासियों को उनकी जमीनें वापस कराई गई है।
गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ के पुलिस महानिदेशक श्री अशोक जुनेजा ने एनआईए के महानिदेशक को पत्र लिखकर बस्तर में हुई तीन जनप्रतिनिधि की हत्या की जांच की मांग की है। श्री जुनेजा ने कहा है कि माओवादियों का इलाका लगातार सिकुड़ रहा है, केंद्रीय सुरक्षा बल और राज्य पुलिस के प्रयास से विगत वर्षों में नक्सली उन्मूलन में सफलता मिली है और इससे नक्सली बौखलाहट में जनप्रतिनिधियों, आम नागरिकों को निशाना बना रहे हैं।द न्यूज़ इंडिया समाचार सेवा
ईंटों से बना हुआ प्राचीन लक्ष्मण मंदिर आज भी यहाँ का दर्शनीय स्थान
उत्खनन में यहाँ पर पाए गए हैं प्राचीन बौद्ध मठ
सिरपुर महोत्सव में दिखती है कला व संस्कृति की अनोखी झलक
महासमुंद : सिरपुर छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिले में महानदी के तट स्थित एक पुरातात्विक स्थल है। इस स्थान का प्राचीन नाम श्रीपुर है यह एक विशाल नगर हुआ करता था तथा यह दक्षिण कोशल की राजधानी थी। सोमवंशी नरेशों ने यहाँ पर राम मंदिर और लक्ष्मण मंदिर का निर्माण करवाया था। ईंटों से बना हुआ प्राचीन लक्ष्मण मंदिर आज भी यहाँ का दर्शनीय स्थान है। उत्खनन में यहाँ पर प्राचीन बौद्ध मठ भी पाये गये हैं।
अंतराष्ट्रीय पर्यटन मानचित्र पर सिरपुर अपनी ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक महत्ता के कारण आकर्षण का केंद्र हैं। यह पांचवी से आठवीं शताब्दी के मध्य दक्षिण कोसल की राजधानी थी। सिरपुर में सांस्कृतिक एंव वास्तुकौशल की कला का अनुपम संग्रह हैं। भारतीय इतिहास में सिरपुर अपने धार्मिक मान्यताओ और वैज्ञानिक दृष्टिकोण के कारण आकर्षण का केन्द्र था और वर्तमान में भी ये देश विदेश के पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है।सिरपुर महोत्सव का आयोजन
सिरपुर के एतिहासिक महत्व को देखते हुए छत्तीसगढ़ शासन की तरफ से प्रत्येक वर्ष यहां पर सिरपुर महोत्सव का आयोजन किया जाता है। छत्तीसगढ़ के विश्व प्रसिद्ध ऐतिहासिक स्थल सिरपुर में माघ पूर्णिमा के अवसर पर होने वाले तीन दिवसीय सिरपुर महोत्सव का हर किसी को इंतजार रहता है। रविवार को खाद्य एवं संस्कृति मंत्री श्री अमरजीत भगत ने तीन दिवसीय सिरपुर महोत्सव का शुभारंभ करते हुए सभी प्रदेश वासियों को माघी पूर्णिमा सिरपुर महोत्सव की शुभकामनाएं दी हैं।
गंधेश्वर महादेव का मंदिरसिरपुर का एक अन्य मंदिर गंधेश्वर महादेव का है। यह महानदी के तट पर स्थित है। इसके दो स्तम्भों पर अभिलेख उत्कीर्ण हैं। कहा जाता है कि चिमणाजी भौंसले ने इस मन्दिर का जीर्णोद्वार करवाया था। सिरपुर से बौद्धकालीन अनेक मूर्तियाँ भी मिली हैं। जिनमें तारा की मूर्ति सर्वाधिक सुन्दर है। सिरपुर का तीवरदेव के राजिम-ताम्रपट्ट लेख में उल्लेख है। 14वीं शती के प्रारम्भ में, यह नगर वारंगल के ककातीय नरेशों के राज्य की सीमा पर स्थित था। 310 ई. में अलाउद्दीन खलिजी के सेनापति मलिक काफूर ने वारंगल की ओर कूच करते समय सिरपुर पर भी धावा किया था, जिसका वृत्तान्त अमीर खुसरो ने लिखा है।
आधुनिकता के दौर में बौद्ध विरासत, लोककला एवं संस्कृति का केंद्रसिरपुर महोत्सव आधुनिकता के दौर में भी अपनी प्राचीन संस्कृति और भव्यता को बनाये हुए है। युवा पीढ़ी को यहाँ की बौद्ध विरासत तथा लोककला एवं संस्कृति को जानने का अवसर मिलता है। सिरपुर लोगों की आस्था और श्रद्धा का केन्द्र है जिसे देखने और महसूस करने के लिए देश विदेश से लोग यहां पहुंचते हैं। गौरतलब है कि मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल के नेतृत्व में राज्य में हर तरफ विकास के काम हो रहे हैं। मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने राज्य के लोक कलाकारों को प्रोत्साहित करने के लिए योजना बनायी है जिससे स्थानीय कलाकारों को प्रोत्साहन मिल रहा है।द न्यूज़ इंडिया समाचार सेवा
आस्था, आध्यात्म और संस्कृति का त्रिवेणी संगम
रायपुर : छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले में स्थित पवित्र धार्मिक नगरी राजिम में प्रतिवर्ष माघ पूर्णिमा से महाशिवरात्रि तक पंद्रह दिनों का मेला लगता है। राजिम में तीन नदियों का संगम है इसलिए इसे त्रिवेणी संगम भी कहा जाता है, यहाँ मुख्य रूप से तीन नदियां बहती हैं, जिनके नाम क्रमशः महानदी, पैरी नदी तथा सोंढूर है। संगम स्थल पर कुलेश्वर महादेव जी विराजमान है। राज्य शासन द्वारा वर्ष 2001 से राजिम मेले को राजीव लोचन महोत्सव के रूप में मनाया जाता था, वर्ष 2005 से इसे कुम्भ के रूप में मनाया जाता रहा था, और अब 2019 से राजिम माघी पुन्नी मेला के रूप में मनाया जा रहा है।यह आयोजन छत्तीसगढ़ शासन धर्मस्व एवं पर्यटन विभाग एवं स्थानीय आयोजन समिति के तत्वाधान में होता है। मेला की शुरुआत कल्पवास से होती है। पखवाड़े भर पहले से श्रद्धालु पंचकोशी यात्रा प्रारंभ कर देते हैं पंचकोशी यात्रा में श्रद्धालु पटेश्वर, फिंगेश्वर, ब्रम्हनेश्वर, कोपेश्वर तथा चम्पेश्वर नाथ के पैदल भ्रमण कर दर्शन करते हैं तथा धुनी रमाते हैं। 101 कि॰मी॰ की यात्रा का समापन होता है और माघ पूर्णिमा से मेला का आगाज होता है। इस वर्ष 5 फरवरी माद्य पूर्णिमा से 18 फरवरी 2023 महाशिवरात्रि तक राजिम माद्यी पुन्नी मेला आयोजित किया गया है। राजिम माघी पुन्नी मेला में विभिन्न जगहों से हजारांे साधू संतों का आगमन होता है, प्रतिवर्ष हजारो की संख्या में नागा साधू, संत आदि आते हैं, तथा विशेष पर्व स्नान तथा संत समागम में भाग लेते हैं, प्रतिवर्ष होने वाले इस माघी पुन्नी मेला में विभिन्न राज्यों से लाखों की संख्या में लोग आते हैं और भगवान श्री राजीव लोचन तथा श्री कुलेश्वर नाथ महादेव जी के दर्शन करते हैं और अपना जीवन धन्य मानते हैं। लोगो में मान्यता है कि भगवान जगन्नाथपुरी जी की यात्रा तब तक पूरी नही मानी जाती, जब तक भगवान श्री राजीव लोचन तथा श्री कुलेश्वर नाथ के दर्शन नहीं कर लिए जाते, राजिम माघी पुन्नी मेला का अंचल में अपना एक विशेष महत्व है।
राजिम अपने आप में एक विशेष महत्व रखने वाला एक छोटा सा शहर है। राजिम गरियाबंद जिले का एक तहसील है। प्राचीन समय से राजिम अपने पुरातत्वों और प्राचीन सभ्यताओं के लिए प्रसिद्ध है। राजिम मुख्य रूप से भगवान श्री राजीव लोचन जी के मंदिर के कारण प्रसिद्ध है। राजिम का यह मंदिर आठवीं शताब्दी का है। यहाँ कुलेश्वर महादेव जी का भी मंदिर है। जो संगम स्थल पर विराजमान है। राजिम माघी पुन्नी मेला प्रतिवर्ष माघ पूर्णिमा से महाशिवरात्रि तक चलता है। इस दौरान प्रशासन द्वारा विविध सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजन होते हैं।द न्यूज़ इंडिया समाचार सेवारायपुर : छत्तीसगढ़ की माटी में खुशबू में समाहित लोक कला एवं संस्कृति को आगे लाने के साथ राज्य सरकार छत्तीसगढ़िया खेलों को भी आगे बढ़ाने का काम किया जा रहा है। छत्तीसगढ़िया ओलंपिक का आयोजन पहली बार इसी मंशा से किया गया, जिसे भारी जनसमर्थन देखने को मिला। मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल द्वारा 6 अक्टूबर को इसका शुभारंभ किया गया, जो अब अंतिम चरणों में है। 10 जनवरी को इसका समापन हो जाएगा। छह चरणों में आयोजित छत्तीसगढ़िया आलंपिक प्रतिस्पर्धा में लोगों का शामिल होने का जुनून देखते ही बनता है। इस ओलंपिक की खास बात यह रही कि महिलाओं ने इसमें बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। इनमें ऐसी महिलाएं भी शामिल है, जो शादी के बाद ससुराल चली गई थी, उन्हें भी अपनी जड़ों से जुड़ने का मौका इस ओलंपिक ने दिया है। ये महिलाएं विभिन्न स्तरों पर आयोजित प्रतियोगिताओं में अप्रत्याशित रूप से विजेता बनकर उभरीं।
छत्तीसगढ़िया ओलंपिक में बच्चे और युवाओं के साथ खेल मैदान से नाता तोड़ चुके बुजुर्गों ने भी पूरे जोशो-खरोश के साथ भाग लिया और अपनी खेल प्रतिभा और खेल कौशल का प्रदर्शन कर लोगों को दांतों तले अंगुलियां दबाने को मजबूर कर दिया। इस ओलंपिक में छह साल की बच्ची से लेकर 65 साल के बुजुर्ग भी शामिल हो रहे हैं। ये खिलाड़ी ग्रामीण स्तर से अपनी प्रतिभा को साबित करते हुए संभाग स्तर पर विजेता बनकर उभरे और अब राज्य स्तरीय स्पर्धाओं में अपनी प्रतिभा का जौहर दिखा रहे हैं।
उभर कर आये कई प्रतिभावान खिलाड़ी-
छत्तीसगढ़िया ओलंपिक प्रतियोगिता के माध्यम से रायपुर की नबोनीता बैरा को बिलासपुर खेल अकादमी में प्रशिक्षण का सुनहरा मौका मिला है। बुजुर्गों ने भी इन खेलों में अपना दम-खम दिखाया। फुगड़ी में हरदी ग्राम पंचायत की 65 वर्षीय श्रीमती आशोबाई ने 01 घण्टा 31 मिनट 58 सेकेण्ड तक फुगड़ी खेलकर अपने जज्बे से 40 वर्ष अधिक आयुवर्ग में जीत हासिल की। दूसरे स्थान पर रही कोरबा जिले के पाली विकासखंड की साहिन बाई ने आशोबाई को 01 घण्टा 31 मिनट 53 सेकण्ड तक कड़ी टक्कर दी और दूसरा स्थान प्राप्त किया। वहां मौजूद दर्शकों ने इस आयु वर्ग के खिलाड़ियों को पूरे जोशो-खरोश के साथ खेलते देखकर उनका खूब उत्साहवर्धन किया। दर्शकों ने कहा कि इस आय वर्ग के खिलाड़ियों को देखना एक सुखद अनुभव कराता है और अपनी खेल और परंपराओं के प्रति उनका समर्पण को भी दिखाता है। यहां आये लोगों ने छत्तीसगढ़ सरकार की इस कदम की सराहना करते हुए इसे आगे भी जारी रखने की बात कही।
इस ओलंपिक में कई खिलाड़ी अपनी शारीरिक कमियों और विपरीत परिस्थितियों के बावजूद अपने पूरे दमखम के साथ शामिल होकर अपने आप को साबित भी किया। ऐसी ही एक कहानी है बस्तर केे बकावंड ब्लाक के ग्राम सरगीपाल की रहने वाली गुरबारी की है। उनकी बाएं हाथ की हथेली नहीं है, लेकिन बावजूद उन्होंने राजीव युवा मितान क्लब स्तर पर कई खेलों में भाग लिया और सामूहिक खेल कबड्डी और खो-खो में जीत भी दर्ज की।
ग्रामीण क्षेत्रों में 25 लाख और नगरों में 1.30 लाख लोगों की रही भागीदारी-
छत्तीसगढ़िया ओलंपिक की राज्य स्तरीय आयोजन में प्रदेश के विभिन्न जिलों के लगभग 1900 प्रतिभागी शामिल हो रहे हैं। इस खेल आयोजन में ग्रामीण क्षेत्रों के 25 लाख से ज्यादा और नगरीय क्षेत्रों में एक लाख 30 हजार से ज्यादा लोगों की भागीदारी रही। राज्य स्तरीय स्पर्धाएं राजधानी रायपुर के चार स्थानों पर आयोजित हो रही हैं। बलबीर सिंह जुनेजा इनडोर स्टेडियम में फुगड़ी, बिल्लस, भंवरा, बाटी और कबड्डी, छत्रपति शिवाजी महाराज आउटडोर स्टेडियम में संखली, रस्साकशी, लंगडी, पिट्ठुल, गेंडी दौड़, माधव राव सप्रे उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में खो-खो और गिल्ली डंडा और स्वामी विवेकानंद स्टेडियम कोटा में लंबी कूद और 100 मीटर दौड़ खेलों की प्रतिस्पर्धाएं आयोजित की गई।
छत्तीसगढ़िया ओलंपिक में रही प्रदेश के 14 पारंपरिक खेलों की धूम-
मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल की पहल पर छत्तीसगढ़ में पारंपरिक खेलों को बढ़ावा देेने के उद्देश्य के छत्तीसगढ़िया ओलंपिक का आयोजन हो रहा है। पारंपरिक खेलों में शामिल होने को लेकर लोगों का उत्साह देखते ही बनता है। घरेलू महिलाएं, बच्चे और बुजुर्ग भी इस ओलंपिक में बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं। छत्तीसगढ़िया ओलंपिक में 14 खेलों को शामिल किया गया है। इसके तहत दलीय खेल में गिल्ली डंडा, पिट्टुल, संखली, लंगड़ी दौड़, कबड्डी, खो-खो, रस्साकसी, बाटी (कंचा) और एकल खेल में बिल्लस, फुगड़ी, गेड़ी दौड़, भंवरा, 100 मी. दौड़ तथा लंबी कूद की प्रतिस्पर्धाएं आयोजित की जा रही हैं। छह चरणों में आयोजित किए जा रहे छत्तीसगढ़िया ओलंपिक में लेवल-01 राजीव युवा मितान क्लब, लेवल- 02 जोन स्तर, लेवल-03 विकासखंड एवं नगरीय क्लस्टर स्तर, लेवल-04 जिला स्तर, लेवल-05 संभाग स्तर पर आयोजित होने के बाद लेवल-06 में राज्य स्तर पर प्रतियोगिताएं हो रही है।
छत्तीसगढ़िया ओलंपिक के आयोजन से गांव, नगर, कस्बों में खेलों को लेकर उत्साहजनक वातावरण तैयार हुआ। छत्तीसगढ़ में राज्य सरकार जिस तरह से छत्तीसगढ़ी परंपरा विरासत और संस्कृति के संरक्षण का प्रयास कर रही है। उसी तरह हमारे ग्रामीण अंचलों की गलियों में खेले जाने वाले पारंपरिक खेलों को भी सहेज रही हैं। प्रतिभागियों का उत्साह और हौसला बढ़ाने के लिए खासी भीड़ भी जुटी। लोग अपने पुराने दिनों की यादों को ताजा कर रहे हैं। राज्य सरकार ने इस आयोजन के माध्यम से ऐसे लोगों को अपना खेल हुनर दिखाने का अवसर दिया है, जो खुद की खेल प्रतिभा से अंजान थे।द न्यूज़ इंडिया समाचार सेवा
रायपुर : छेरछेरा पर्व पौष पूर्णिमा के दिन छत्तीसगढ़ में बड़े ही धूमधाम, हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है। इसे छेरछेरा पुन्नी या छेरछेरा तिहार भी कहते हैं। इसे दान लेने-देने पर्व माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन दान करने से घरों में धन धान्य की कोई कमी नहीं रहती। इस दिन छत्तीसगढ़ में बच्चे और बड़े, सभी घर-घर जाकर अन्न का दान ग्रहण करते हैं। युवा डंडा नृत्य करते हैं।
छत्तीसगढ़ की संस्कृति के संरक्षण और संवर्धन के लिए शासन द्वारा बीते चार वर्षों के दौरान उठाए गए महत्वपूर्ण कदमों के क्रम में स्थानीय तीज-त्यौहारों पर भी अब सार्वजनिक अवकाश दिए जाते हैं। इनमें छेरछेरा (मां शाकंभरी जयंती) तिहार भी शामिल है। जिन अन्य लोक पर्वों पर सार्वजनिक अवकाश दिए जाते हैं वे हैं हरेली, तीजा, मां कर्मा जयंती, विश्व आदिवासी दिवस और छठ। अब राज्य में इन तीज-त्यौहारों को व्यापक स्तर पर मनाया जाता है, जिसमें शासन की भी भागीदारी होती है। इन पर्वों के दौरान महत्वपूर्ण शासकीय आयोजन होते है तथा महत्वपूर्ण शासकीय घोषणाएं भी की जाती है। छेरछेरा पुन्नी के दिन स्वयं मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल भी परम्परा का निर्वाह करते हुए छेरछेरा मांगते हैं।छत्तीसगढ़ का लोक जीवन प्राचीन काल से ही दान परम्परा का पोषक रहा है। कृषि यहाँ का जीवनाधार है और धान मुख्य फसल। किसान धान की बोनी से लेकर कटाई और मिंजाई के बाद कोठी में रखते तक दान परम्परा का निर्वाह करता है। छेर छेरा के दिन शाकंभरी देवी की जयंती मनाई जाती है। ऐसी लोक मान्यता है कि प्राचीन काल में छत्तीसगढ़ में सर्वत्र घोर अकाल पड़ने के कारण हाकाकार मच गया। लोग भूख और प्यास से अकाल मौत के मुँह में समाने लगे। काले बादल भी निष्ठुर हो गए। नभ मंडल में छाते जरूर पर बरसते नहीं। तब दुखीजनों की पूजा-प्रार्थना से प्रसन्न होकर अन्न, फूल-फल व औषधि की देवी शाकम्भरी प्रकट हुई और अकाल को सुकाल में बदल दिया। सर्वत्र खुशी का माहौल निर्मित हो गया। छेरछेरा पुन्नी के दिन इन्हीं शाकंभरी देवी की पूजा-अर्चना की जाती है। यह भी लोक मान्यता है कि भगवान शंकर ने इसी दिन नट का रूप धारण कर पार्वती (अन्नपूर्णा) से अन्नदान प्राप्त किया था। छेरछेरा पर्व इतिहास की ओर भी इंगित करता है।
माई कोठी के धान ला हेर हेरा
छेरछेरा पर बच्चे गली-मोहल्लों, घरों में जाकर छेरछेरा (दान) मांगते हैं। दान लेते समय बच्चे ‘छेर छेरा माई कोठी के धान ला हेर हेरा’ कहते हैं और जब तक गृहस्वामिनी अन्न दान नहीं देंगी तब तक वे कहते रहेंगे- ‘अरन बरन कोदो दरन, जब्भे देबे तब्भे टरन’। इसका मतलब ये होता है कि बच्चे कह रहे हैं, मां दान दो, जब तक दान नहीं दोगे तब तक हम नहीं जाएंगे।
छेरछेरा पर्व में अमीर गरीब के बीच दूरी कम करने और आर्थिक विषमता को दूर करने का संदेश छिपा है। इस पर्व में अहंकार के त्याग की भावना है, जो हमारी परम्परा से जुड़ी है। सामाजिक समरसता सुदृढ़ करने में भी इस लोक पर्व को छत्तीसगढ़ के गांव और शहरों में लोग उत्साह से मनाते हैं।द न्यूज़ इंडिया समाचार सेवा
कोदो-कुटकी उगाने वाले किसान समृद्धि की ओर
किसानों को कोदो से होने लगी करोड़ों की आय
बीज विक्रय से आमदनी में चार गुना इजाफा
रायपुर : मिलेट को बढ़ावा देने के मामले में छत्तीसगढ़ को मिल चुका है देश के सर्वश्रेष्ठ उदीयमान राज्य का सम्मानछत्तीसगढ़ मिलेट मिशन के चलते राज्य में कोदो, कुटकी और रागी (मिलेट्स) की खेती को लेकर किसानों का रूझान बहुत तेजी से बढ़ा है। पहले औने-पौने दाम में बिकने वाला मिलेट्स अब छत्तीसगढ़ राज्य में अच्छे दामों में बिकने लगा है। मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल की विशेष पहल के चलते राज्य में मिलेट्स की समर्थन मूल्य पर खरीदी होने से किसानों को करोड़ों रूपए की आय होने लगी है। बीते सीजन में किसानों ने समर्थन मूल्य पर 34298 क्विंटल मिलेट्स 10 करोड़ 45 लाख रूपए में बेचा था। छत्तीसगढ़ देश का इकलौता राज्य है, जहां कोदो, कुटकी और रागी की समर्थन मूल्य पर खरीदी और इसके वैल्यू एडिशन का काम भी किया जा रहा है। कोदो-कुटकी की समर्थन मूल्य पर 3000 प्रति क्विंटल की दर से तथा रागी की खरीदी 3377 रूपए प्रति क्विंटल की दर से खरीदी की जा रही है।
शासन की महत्वाकांक्षी योजना राजीव गांधी किसान न्याय योजना एवं मिलेट मिशन किसानों के लिए वरदान साबित हो रही है। छत्तीसगढ़ राज्य लघु वनोपज संघ द्वारा वर्ष 2021-22 में 5,273 टन मिलेट जिसका मूल्य रू. 16.03 करोड़ का समर्थन मूल्य पर क्रय किया गया है। वर्ष 2022-23 में 13,005 टन मिलेट जिसका मूल्य रू. 39.60 करोड़ का समर्थन मूल्य पर क्रय करने का लक्ष्य है।
देश के कई आदिवासी इलाकों में मोटे अनाज का काफी समय से प्रयोग किया जाता रहा है। यह स्वास्थ्य की दृष्टि से बहुत फायदेमंद है, इसलिए अब दूसरे इलाकों में भी इन अनाज का काफी इस्तेमाल किया जा रहा है। एक्सपर्ट के मुताबिक कोदो कुटकी को प्रोटीन व विटामिन युक्त अनाज माना गया है। इसके सेवन से शुगर बीपी जैसे रोग में लाभ मिलता है. कोदो एक मोटा अनाज है, जिसे अंग्रेजी में कोदो मिलेट या काउ ग्रास के नाम से जाना जाता है। कोदो के दानों को चावल के रूप में खाया जाता है और स्थानीय बोली में भगर के चावल के नाम पर इसे उपवास में भी खाया जाता है। बस्तर के आदिवासी संस्कृति व खानपान में कोदो कुटकी रागी जैसे फसलों का महत्वपूर्ण स्थान है।
छत्तीसगढ़ राज्य बीज प्रमाणीकरण संस्था के सहयोग एवं मार्गदर्शन से किसान कोदो के प्रमाणित बीज का उत्पादन कर अच्छा खासा मुनाफा अर्जित करने लगे हैं। बीते एक सालों में प्रमाणित बीज उत्पादक किसानों की संख्या में लगभग 5 गुना और इससे होने वाली आय में चार गुना की वृद्धि हुई है। वर्ष 2021-22 में राज्य के 11 जिलों के 171 कृषकों द्वारा 3089 क्विंटल प्रमाणित बीज का उत्पादन किया गया, जिसे बीज निगम ने 4150 रूपए प्रति क्विंटल की दर से किसानों से क्रय कर उन्हें एक करोड़ 28 लाख 18 हजार रूपए से अधिक की राशि भुगतान किया है। राज्य के किसानों द्वारा उत्पादित प्रमाणित बीज, सहकारी समितियों के माध्यम से बोआई के लिए प्रदाय किया जा रहा है।
बीज प्रमाणीकरण संस्था के अधिकारियों ने बताया कि वर्ष 2020-21 में राज्य में 7 जिलों के 36 किसानों द्वारा मात्र 716 क्विंटल प्रमाणित बीज का उत्पादन किया गया था। इससे उत्पादक किसानों को 32 लाख 88 हजार रूपए की आमदनी हुई थी, जबकि 2021-22 में कोदो बीज उत्पादक किसानों की संख्या और बीज विक्रय से होने वाला लाभ कई गुना बढ़ गया है। बीते तीन वर्षो में कोदो प्रमाणित बीज उत्पादक किसानों ने एक करोड़ 65 लाख 18 हजार 633 रूपए का बीज, छत्तीसगढ़ बीज एवं विकास निगम को विक्रय किया है।
अधिकारियों ने बताया कि ऐसी कृषि भूमि जहां धान का उत्पादन नाममात्र उत्पादन होता है, वहां कोदो की खेती किया जाना ज्यादा लाभकारी है। कोदो की खेती की कम पानी और कम खाद की जरूरत पड़ती है। जिसके फलस्वरूप इसकी खेती में लागत बेहद कम आती है और उत्पादक कृषकों को लाभ ज्यादा होता है। उन्होंने बताया कि वर्ष 2019-20 में राज्य में मात्र 103 क्विंटल प्रमाणित बीज उत्पादन हुआ था। मिलेट्स मिशन लागू होने के बाद से छत्तीसगढ़ राज्य बीज प्रमाणीकरण संस्था द्वारा अन्य शासकीय संस्थानों से समन्वय कर कोदो बीज उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए निरंतर प्रयासरत है, जिससे बीज उत्पादन में लगातार वृद्धि हो रही है।
गौरतलब है कि मिलेट्स की खेती को बढ़ावा देने के मामले में छत्तीसगढ़ राज्य को राष्ट्रीय स्तर का पोषक अनाज अवार्ड 2022 सम्मान भी मिल चुका है। राज्य में मिलेट्स उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए इसको राजीव गांधी किसान न्याय योजना में शामिल किया गया है। मिलेट्स उत्पादक कृषकों को प्रोत्साहन स्वरूप प्रति एकड़ के मान से 9 हजार रूपए की आदान सहायता भी दी जा रही है।
राज्य में कोदो, कुटकी और रागी की खेती को राज्य में लगातार विस्तारित किया जा रहा है, जिसके चलते राज्य में इसकी खेती का रकबा 69 हजार हेक्टेयर से बढ़कर एक लाख 88 हजार हेक्टेयर हो गया है। मिलेट की खेती को प्रोत्साहन, किसानों को प्रशिक्षण, उच्च क्वालिटी के बीज की उपलब्धता तथा उत्पादकता में वृद्धि को ध्यान में रखते हुए राज्य में मिलेट मिशन संचालित है। 14 जिलों ने आईआईएमआर हैदराबाद के साथ छत्तीसगढ़ राज्य लघु वनोपज संघ के प्रयास से मिलेट मिशन के अंतर्गत त्रिपक्षीय एमओयू भी हो चुका है। छत्तीसगढ़ मिलेट मिशन के तहत मिलेट की उत्पादकता को प्रति एकड़ 4.5 क्विंटल से बढ़ाकर 9 क्विंटल यानि दोगुना किए जाने का भी लक्ष्य रखा गया है।
द न्यूज़ इंडिया समाचार सेवा
किसानों के लिए चाय-कॉफी की खेती बन रही बेहतर आय का जरिया
रायपुर : छत्तीसगढ़ राज्य अपनी धान की दुर्लभ प्रजातियों के लिए विश्व में प्रसिद्ध है। बड़़े पैमाने पर धान की खेती होने के कारण राज्य को धान का कटोरा कहा जाता है। प्राकृतिक संपदा से भरपूर प्रदेश में नदियां, जंगल, पहाड़ और पठार भी काफी भू-भाग में हैं। इनमें पठारी भूमि में धान का उत्पादन नहीं हो पाने के कारण अर्थव्यवस्था में उनका योगदान सीमित हो गया था। इन सबके बावजूद जशपुर जिले के पठारी क्षेत्र में चाय और बस्तर में कॉफी की खेती ने संभावानाओं के नए द्वार खोले हैं। कृषि वैज्ञानिकों ने यहां की जलवायु के अध्ययन के आधार पर संभावनाओं को नई दिशा दी है।मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल की पहल से छत्तीसगढ़ शासन की तरफ से टी-कॉफी बोर्ड गठन का फैसला इसी दिशा में अहम कदम है। जिसके तहत राज्य में 10-10 हजार एकड़ में चाय और कॉफी की खेती कराने का लक्ष्य तय किया गया है। जशपुर जिला में चाय की खेती सफलतापूर्वक की जा रही हैं। यहां शासन ने जिला खनिज न्यास, वन विभाग, डेयरी विकास योजना और मनरेगा की योजनाओं के बीच समन्वय स्थापित करते हुए कांटाबेल, बालाछापर, सारुडीह के 80 एकड़़ भूमि में चाय बागान विकसित हो रहे हैं।
कुछ साल बाद जब बागानों से चाय का उत्पादन शुरू होगा तो प्रति एकड़़ 2 लाख रुपये सालाना तक का किसान लाभ कमा सकेंगे। यह धान की खेती से कहीं अधिक लाभकारी साबित होगा। इसी तरह बस्तर के दरभा, ककालगुर और डिलमिली में कॉफी की खेती विकसित हो चुकी है। यहां कॉफी की दो प्रजातियां अरेबिका और रूबस्टा कॉफी लगाए गए हैं। बस्तर की कॉफी की गुणवत्ता ओडिसा और आंध्रप्रदेश के अरकू वैली में उत्पादित किए जा रहे कॉफी के समान है। कॉफी उत्पादन के लिए समुद्र तल से 500 मीटर की ऊंचाई जरूरी है। बस्तर के कई इलाकों की ऊंचाई समुद्र तल से 600 मीटर से ज्यादा है जहां ढलान पर खेती के लिए जगह उपलब्ध है।
100 एकड़ जमीन में कॉफी उत्पादन का प्रयोग सफल रहा है तथा बस्तर कॉफी नाम से इसकी ब्रांडिंग भी हो रही है। उद्यानिकी विभाग किसानों को काफी उत्पादन का प्रशिक्षण भी दे रहा है। चाय-कॉफी की खेती की विशेषता यह है कि इसके लिए हर साल बीज नहीं डालना पड़़ता किसान कॉफी की खेती से हर साल 50 हजार से 80 हजार प्रति एकड़ आमदनी कमा सकते है। धान की तरह बहुत अधिक पानी की भी आवश्यकता नहीं पड़ती। केवल देखभाल करने की आवश्यकता रहती है।वनोपजों के मामले में प्रदेश काफी आगे है तथा पठारी क्षेत्रों में चाय-कॉफी के उत्पादन से ग्रामीणों के लिए रोजगार और अर्थाेपार्जन के नए अवसर सृजित हो रहे हैं। सरकार की ओर से टी-कॉफी बोर्ड बनाने पहल को सही दिशा में उठाया गया कदम माना जा सकता है। उम्मीद की जानी चाहिए कि कृषि वैज्ञानिकों के अध्ययन के आधार पर सरकार की तरफ से हुई इस पहल के सार्थक परिणाम सामने आएंगे और राज्य के किसानों और उद्यमियों की संपन्नता में चाय-कॉफी ताजगी लाने का काम करेगी।