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सुधीर तम्बोली
दिव्यांगो के लिए एक प्रेरणा है शशि निर्मलकर
एक दशक से दिव्यांग विद्यार्थियों के जीवन को दिशा देने का कर रही कार्य
रायपुर : "दिव्यांग होने के बावजूद यदि जुनून व हौसला हो तो दिव्यांगता को भी प्रेरणा में बदला जा सकता है जिससे स्वयं के साथ अन्य दिव्यांग का जीवन संवर सकता है और यही साबित कर रही है छत्तीसगढ़ प्रदेश की एक समर्पित समाजसेवी युवती जो करीब एक दशक से दिव्यांगों के लिए निस्वार्थ निःशुल्क कार्य कर रही है। कोरोना काल के दौरान भी विपरीत परिस्थितियों के बावजूद संस्था को सफलता पूर्वक आगे बढ़ाने में डटे रही जिसके फलस्वरूप संस्था के दो दिव्यांग बच्चों ने एवरेस्ट बेस कैंप में भी तिरंगा लहराया है।"
आज अंतरराष्ट्रीय दिव्यांग दिवस के अवसर पर दिव्यांग विद्यार्थियों के लिए कार्य कर रही एक ऐसे शख्सियत के बारे में पढ़िये जिससे लोगो को सीखना चाहिए कि हम समाज के लिए क्या कर सकते है ।
सुश्री शशि निर्मलकर दिव्यांग विद्यार्थियों के लिए कार्यरत संस्था एक्ज़ेक्ट फाउंडेशन में सचिव है। संस्था के द्वारा दिव्यांग आवासीय विद्यालय छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले के रुद्री में संचालित है जहां वर्तमान में 46 विद्यार्थी शिक्षा दीक्षा ग्रहण कर रहे है। सुश्री शशि निर्मलकर स्वयं दिव्यांग है इसलिए दिव्यांगों की मनोदशा, दिव्यांगों की समस्या और उनकी जरूरत को बहुत बेहतर समझती है इसलिए ही उनके संस्था के बच्चों ने राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वयं को साबित किया है।सुश्री शशि निर्मलकर का जन्म धमतरी जिले के ग्राम भुसरेंगा में हुआ है। पिता श्री अरुण कुमार निर्मलकर परिवारिक समाजिक पेशे से जीवन यापन करते है व माता जी श्रीमती प्रेमिन निर्मलकर ग्रहणी है। सुश्री शशि 4 भाई बहनों में तीसरे नम्बर की है। सुश्री शशि ने अपनी प्राथमिक शिक्षा ग्राम भुसरेंगा में पूरी की जिसके पश्चात उच्च शिक्षा कुरूद में ग्रहण किया और पॉलिटेक्निक की शिक्षा छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में पूरी की, शशि बताती है कि शिक्षा के लिए उनके परिवार ने पूरा सहयोग किया। पढ़ाई होने के बाद जिला कार्यालय में उनकी नौकरी दैनिक वेतन भोगी में हो गई और एक सामाजिक संस्था में उनकी नियुक्ति हुई थी जो दिव्यांगजनो के लिए कार्यरत थी।
सुश्री शशि बताती है कि उस संस्था में जुड़कर कार्य करने के दौरान उनको लगा कि दिव्यांगों के लिए और बहुत कुछ किये जाने की जरूरत है और हम बहुत कुछ कर सकते है।
उसी दौरान संस्था को संभालने वाली लक्ष्मी सोनी दीदी के साथ परिचय के बाद दिव्यांगों के लिए और कुछ सार्थक करने को लेकर चर्चा होती थी पर उस संस्था में काम करते वह संभव नही लगा जो हम वाकई दिव्यांग लोगों के लिए करना चाह रहे थे क्योंकि उस संस्था में रहकर हम लोग वह सब नहीं कर पा रहे थे जो दिव्यांग विद्यार्थियों के जीवन में बड़ा बदलाव ला सके क्योंकि दूसरे के अधीनस्थ रहकर काम करना थोड़ा मुश्किल था क्योंकि उस संस्था के प्रमुख हमें जितना बोलते थे हमको उतना ही करना होता था। एक वक्त के बाद लक्ष्मी दीदी से जो विचार विमर्श होता था उसको साकार रूप देने का निर्णय लिया तब लक्ष्मी सोनी दीदी के साथ मिलकर और अन्य लोगो को अपने साथ जोड़कर हमने एक्ज़ेक्ट फाउंडेशन की शुरुआत की फिर 2016 में ग्राम डांडेसरा के एक पुराने भवन में संस्था के आवासीय विद्यालय संस्था की शुरुआत की,उन शुरुआती दिनों में बहुत दिक्कतों का सामना करना पड़ा लेकिन मेहनत रंग लाई फिर धीरे-धीरे हमें बहुत से लोगों का सहयोग मिलना शुरू हुआ फिर हम लोगो ने आसपास के गांवों में से दिव्यांग बच्चो की जानकारी जुटानी शुरू की और अपने आवासीय विद्यालय में रहकर पढ़ने सीखने की व्यवस्था को प्रचारित किया जिसके बाद दिव्यांग बच्चो की संख्या विद्यालय में बढ़ते गया। दिव्यांग बच्चो की रुचि अनुसार खेल कूद, गायन, नृत्य व अन्य प्रतिभाओं को तराशने व मंच देने का हमने मन में ठान कर रखा था जो काम हमने सोचा था उसमें हम लोग सफल होते गये।सुश्री शशि भरपूर आत्मविश्वास से कहती है कि यदि सभी दिव्यांग बच्चो को उनकी रुचि और उनके क्षमता अनुसार कार्य के लिए प्रेरित करें, उन्हें तैयार करें, सुविधाएं उपलब्ध कराये और बेहतर प्रशिक्षण दिया जाये तो वह हर क्षेत्र में सफलता अवश्य अर्जित कर सकते है।
सुश्री शशि निर्मलकर के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने वाली श्रीमती लक्ष्मी विकास सोनी कहती है कि आज हमारे संस्था एक्ज़ेक्ट फाउंडेशन के बच्चे शशि से प्रेरित होकर बहुत सारी उपलब्धियों को हासिल किए,अपने परिवार, गांव, जिले प्रदेश व देश को गौरवान्वित कर रहे है। हमारे संस्था एक्ज़ेक्ट फाउंडेशन के बच्चे देश प्रदेश में ही नहीं विश्व में भी अपना परचम लहरा चुके हैं इसके पीछे शशि निर्मलकर की समर्पण भावना है जो एक मिसाल है। शशि सभी लोगों को एक संदेश देना चाहती है की दिव्यागंता कोई कमजोरी नहीं है,कोई भी व्यक्ति दिव्यांग शरीर से होता है बस नाकि मन से और अगर कोई भी व्यक्ति यदि ठान ले और जी जान लगाकर प्रयत्न करें तो कुछ भी कर सकता है।इसका जीता जागता उदाहरण हमारी साथी शशि निर्मलकर स्वयं है, सलाम है उसके साहस को जिसके सकारात्मक सोच से हमारी संस्था के बच्चों को उपलब्धियां मिल रही है और वह अपने भविष्य को संवारने के लिए लगे हुए है। शशि निर्मलकर दिव्यांग लोगो के लिए एक प्रेरणा है जो दिव्यांगों के जीवन को संवारने में लगी है। -
द न्यूज़ इंडिया समाचार सेवा
मितानों ने 14 हजार से अधिक दस्तावेज लोगों के घर पहुंचाकर उपलब्ध कराए
14 नगर निगम क्षेत्रों में मिल रही हैं 13 प्रकार की सेवाएं
रायपुर : मुख्यमंत्री मितान योजना जनता का पैसा, समय और श्रम की बचत कर रही है। इस योजना ने सरकारी कार्यालयों से जनता के घर की दूरी मिटा दी है। जिन सरकारी दस्तावेजों के लिए लोगों को सरकारी कार्यालयों का चक्कर लगाना पड़ता था, अब वही दस्तावेज उन्हें घर बैठे उपलब्ध हो रहे हैैं। मितानों ने अब तक 14 हजार से अधिक दस्ततावेज लोगों को घर पहुंचाकर उपलब्ध कराए हैं।
लागों को घर पहुंच शासकीय सेवाएं उपलब्ध कराने के उद्देश्य से एक मई 2022 से मुख्यमंत्री मितान योजना की शुरूआत की गई है। यह योजना सरकार और जनता के बीच महत्वपूर्ण कड़ी का काम कर रही है। टोल फ्री नंबर 14545 पर कॉल करके अभी प्रदेश के 14 नगर निगम क्षेत्रों में 13 प्रकार की राजस्व एवं नगरीय प्रशासन विभाग से जुड़ी सेवाएं ली जा सकती हैं। इन सेवाओं में मूल निवास प्रमाण पत्र, जाति प्रमाण पत्र, आय प्रमाण पत्र, दस्तावेज की नकल, डिजिटलाइज्ड भूमि रिकॉर्ड, मृत्यु प्रमाणपत्र, विवाह पंजीकरण प्रमाण पत्र, दुकान और स्थापना पंजीकरण, जन्म प्रमाण पत्र, मृत्यु व जन्म प्रमाण पत्र में सुधार शामिल है।
भविष्य में 100 सेवाएं कराई जाएंगी उपलब्ध
राज्य सरकार ने मुख्यमंत्री मितान योजना के तहत लोगों को मिलने वाले लाभ को देखते हुए निर्णय लिया है कि भविष्य में योजना से मिलने वाली सेवाओं का विस्तार करके 13 से बढ़ाकर 100 सेवाएं घर बैठे जनता को उपलब्ध कराई जाएंगी। इसके अलावा यह भी निर्णय लिया गया है कि इस योजना का केवल 14 नगर निगम क्षेत्रों में ही नहीं सभी नगरीय निकायों तक विस्तार किया जाएगा।
अब घर बैठे बनेगा बच्चों का आधार
मुख्यमंत्री मितान योजना के तहत पांच साल तक के बच्चों का आधार कार्ड भी अब घर बैठे बनवाया जा सकेगा। इस सुविधा की घोषणा राज्योत्सव के अवसर पर मुख्यमंत्री द्वारा की गई है। बच्चों के आधार कार्ड बनाने के लिए टोल फ्री नंबर 14545 पर कॉल कर अपनी सुविधानुसार अप्वांइंटमेंट बुक किया जा सकता है। आवेदक द्वारा दी गई नियत तिथि एवं समय अनुसार बच्चे का आधार पंजीकरण के लिए मितान घर आएंगे। यह प्रक्रिया पूर्ण होने के कुछ ही दिनों में बच्चे का आधार आवेदक द्वारा दिए गए पते पर पहुंच जाएगा। -
द न्यूज़ इंडिया समाचार सेवा
कुपोषण से लड़ने में फोर्टिफाइड चावल बहुत उपयोगी....इसके सेवन से बच्चों में बेहतर पोषण और स्वास्थ्य हो रहा सुनिश्चित
छत्तीसगढ़ में मध्याह्न भोजन में फोर्टिफाइड चावल का हो रहा वितरण
रायपुर : प्रत्येक माता-पिता की ख्वाइश होती है कि उनके बच्चे स्वस्थ्य रहें। लेकिन उनकी चिंता तब बढ़ जाती है जब बच्चे खाने-पीने में आनाकानी करते हैं। इससे बच्चों के शरीर में पोषक तत्वों की कमी होने लगती है और उनकी वृद्धि प्रभावित होती है। इसके साथ कुछ बच्चे जन्म से ही कुपोषित होते हैं। बच्चों का बेहतर स्वास्थ्य और सुपोषण स्तर बना रहे इसके लिये मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल के निर्देश पर मध्याह्न भोजन में फोर्टिफाइड चावल का वितरण शुरू किया गया है। फोर्टिफाइड चावल वितरण की शुरूआत कोण्डागांव जिले से हुई थी। फोर्टिफाईड चावल क्या होता है..ये कैसे बनाया जाता है और बच्चों के लिये ये कैसे उपयोगी है..इस लेख में आपको बताते हैं।
फूड या खाद्य पदार्थों के फोर्टीफिकेशन का क्या मतलब होता है...?
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक फूड फोर्टीफिकेशन का मतलब होता है टेक्नोलॉजी के माध्यम से खाने में विटामिन और मिनरल के स्तर को बढ़ाना। ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि आहार में पोषक तत्वों की कमी को दूर किया जा सके और इससे लोगों के स्वास्थ्य को भी लाभ मिले।चावल में पहले से ही पोषक तत्व होते है फिर उसके फोर्टीफिकेशन की क्या जरूरत है?
आम तौर पर चावल की मिलिंग और पॉलिशिंग के समय फैट और सूक्ष्म पोषक तत्वों से भरपूर चोकर की परतें हट जाती है। चावल की पॉलिश करने से 75-90 प्रतिशत विटामिन भी निकल जाते है जिसके वजह से चावल के अपने पोषक तत्व खत्म हो जाते है। इसलिए चावल को फोर्टिफाई करने से उनमें सूक्ष्म पोषक तत्व न सिर्फ फिर से जुड़ जाते है बल्कि और ज्यादा मात्रा में मिलाये जाते है जिससे चावल और ज्यादा पौष्टिक बन जाता है।
कुपोषण से लड़ने के लिए जरूरी है चावल का फोर्टीफिकेशन
छत्तीसगढ़ देश का प्रमुख चावल उत्पादक राज्य है। विश्व में 22 प्रतिशत चावल का उत्पादन भारत करता है और हमारे देश में 65 प्रतिशत आबादी रोज़ चावल का सेवन करती है। इतना ही नहीं, भारत में प्रति व्यक्ति चावल की खपत प्रति माह 6.8 किलोग्राम है। भारत में खाद्य सुरक्षा कार्यक्रमों में चावल का वितरण भी बहुत ज्यादा मात्रा में होता है। इसलिए देश की ज्यादातर आबादी के लिए चावल ऊर्जा और पोषण का एक बड़ा स्रोत है और कुपोषण से लड़ने के लिए चावल का फोर्टीफिकेशन एक कारगर रणनीति है। सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि दुनिया भर के कई देश चावल के फोर्टीफिकेशन की रणनीति को लागू कर रहे है।
चावल को ऐसे करते हैं फोर्टीफाई ...
चावल को फोर्टीफाई करने के लिए सबसे पहले सामान्य चावल का पाउडर बनाया जाता है और उसमे सूक्ष्म पोषक तत्व जैसे विटामिन B 12, फोलिक एसिड और आयरन, FSSAI के मानकों के अनुसार मिलाये जाते है। चावल के पाउडर और विटामिन/मिनरल के मिश्रण को मशीनों द्वारा गूंथा जाता है और एक्सट्रूजन नामक मशीन से चावल के दानों फोर्टिफाइड राइस कर्नेल FRK को निकाला जाता है। इस FRK के एक दाने (ग्राम) को सामान्य चावल के 100 दानों (ग्राम) के अनुपात में मिलाया जाता है जिसे फोर्टीफाइड चावल कहते है।
फोर्टीफाइड चावल खाने के फायदे...
फोर्टीफाइड चावल में कई पोषक गुण है क्यूंकि इसमें आयरन, फोलिक एसिड और विटामिन B 12 जैसे सूक्ष्म पोषक तत्व या माइक्रोन्युट्रिएंट्स मिलाये जाते है। ये पोषक तत्व अनीमिया और सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी से बचाता है।आयरन अनीमिया से बचाव करता है, फोलिक एसिड खून बनाने में सहायक होता है और विटामिन B 12 नर्वस सिस्टम के सामान्य कामकाज में सहायक होता है। फोर्टीफाइड चावल के नियमित सेवन से बेहतर पोषण और स्वास्थ्य सुनिश्चित होता है।
ऐसे पकाया जाता है फोर्टीफाइड चावल
अधिकतम पौष्टिक लाभ के लिए फोर्टीफाइड चावल को पर्याप्त पानी में पकाना चाहिए और बचे हुए पानी को फेंकना नहीं चाहिए। अगर चावल को बनाने से पहले पानी में भिगोया गया हो तो चावल को उसी पानी में पकाना चाहिए। फोर्टीफाइड चावल को हर बार इस्तेमाल करने के बाद साफ और सूखे हवा-बंद डब्बे में रखना चाहिए।
फोर्टीफाइड चावल कहाँ मिलता है?
फोर्टीफाइड चावल सरकारी राशन की दुकानों पर मिलता है। यह चावल आंगनवाड़ी केंद्रों पर दिए जाने वाले पूरक पोषण आहार और स्कूलों में मध्यान्ह भोजन में भी दिया जाता है।
फोर्टीफाइड चावल से संबंधित कुछ भ्रांतियां और तथ्य
भ्रान्ति: फोर्टीफाइड चावल प्लास्टिक चावल है ।तथ्यः चावल को थ्त्ज्ञ के साथ 100:1 के अनुपात में मिलाकर फोर्टीफाइड चावल तैयार किया जाता है। थ्त्ज्ञ को चावल के आटे और प्रीमिक्स से तैयार किया जाता है जिसमें आयरन, फोलिक एसिड और विटामिन बी 12 होता है जिसे एक साथ मिश्रित किया जाता है। इसमें प्लास्टिक जैसा कुछ भी नहीं होता और यह उपभोग करने के लिए पूरी तरह से सुरक्षित और स्वास्थ्यवर्धक है।
भ्रान्तिः फोर्टीफाइड चावल के स्वाद, सुगंध और पकाने की विधि में परिवर्तन होता है।
तथ्यः स्वाद, सुगंध और दिखने में फोर्टीफाइड चावल सामान्य चावल के जैसा ही होता है। इसे सामान्य चावल की तरह ही पकाकर सेवन करना चाहिए।भ्रान्तिः फोर्टीफाइड चावल में पोषक तत्व खाना पकाने के दौरान नष्ट हो जाते हैं।तथ्यः फोर्टीफाइड चावल पकाने के दौरान अपने पोषक तत्वों को बरकरार रखता है। अत्यधिक पानी में धोने और पकाने के दौरान भी पोषक तत्व अवशेष बरकरार रहते हैं। -
द न्यूज़ इंडिया समाचार सेवा
खेल अकादमियों का गठन, बेहतर अधोसंरचना के निर्माण से खिलाड़ियों को मिल रही है बेहतर खेल सुविधाएं
खेलों के सफलतापूर्वक आयोजनों से छत्तीसगढ़ को मिली अंतर्राष्ट्रीय ख्याति
छत्तीसगढ़िया ओलंपिक के आयोजन से पारंपरिक खेलों को मिला मंच
रायपुर : छत्तीसगढ़ खेल की दुनिया में छाने के लिए अब पूरी तरह से तैयार है। यहां पर हो रहे राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय खेलों के साथ ही पारंपरिक खेलों के आयोजनों से राज्य की एक नई पहचान बनी है। मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल की पहल और खेल एवं युवा कल्याण मंत्री श्री उमेश पटेल के निर्देशन में नई खेल अकादमियों का निर्माण, नए खेल मैदान का निर्माण एवं उन्नयन, खिलाड़ियों को मिल रही बेहतर सुविधाओं ने खेलों के लिए एक बेहतर महौल तैयार किया है। पिछले दिनों शतरंज और बैडमिंटन के अंतर्राष्ट्रीय स्तर के टूर्नामंेट का आयोजन राजधानी रायपुर में किया गया। जिसमें राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ियों ने भाग लिया। खिलाड़ियों को यहां पर अपनी रैंकिंग मजबूत करने का मौका भी मिला। खिलाड़ियों ने यहां की व्यवस्थाओं की तारीफ की और दुबारा आयोजन होने पर फिर से शामिल होने की बात कही। इसके साथ ही राज्य में छत्तीसगढ़ के पारंपरिक खेलों को बढ़ावा देने के लिए छत्तीसगढ़िया ओलंपिक का आयोजन किया जा रहा है। इसमें सभी आयु वर्ग के लोग बढ़-चढ़ के शामिल हो रहे हैं। क्या बच्चे, क्या बुजुर्ग, क्या महिलाएं सभी का अपनी लोक संस्कृति में रचे-बसे पारंपरिक खेलों में भाग लेने को लेकर उत्साह देखते ही बनता है।
बेहतर अधोसंरचना का निर्माण, बढ़ती सुविधाएं
राज्य में खेल अकादमियों के संचालन, खेल अधोसंरचनाओं का विकास एवं समुचित उपयोग तथा खेलों के समग्र विकास हेतु छत्तीसगढ़ खेल विकास प्राधिकरण का गठन किया गया है। खिलाड़ियों को बेहतर वैज्ञानिक तरीकों से आधुनिक खेल प्रशिक्षण देकर उन्हें भविष्य के लिए तैयार करने के उद्देश्य से खेल अकादमियों का निर्माण किया जा रहा है। इन अकादमियों में अंतर्राष्ट्रीय स्तर की अधोसंरचना, मानक खेल सामग्री के साथ बेहतर प्रशिक्षण की व्यवस्था होगी। स्व. बी.आर. यादव राज्य खेल प्रशिक्षण केन्द्र बहतराई बिलासपुर में हॉकी, तीरंदाजी एवं एथलेटिक की आवासीय अकादमी की स्थापना की गई है, जिसे भारतीय खेल प्राधिकरण द्वारा खेलो इण्डिया स्टेट सेन्टर ऑफ एक्सीलेंस की मान्यता दी गई है। इस अकादमी में हॉकी की आवासीय अकादमी संचालित है जिसमें 36 बालक एवं 24 बालिकाएं कुल 60 खिलाड़ी प्रशिक्षणरत् है। तीरंदाजी तथा एथलेटिक खेल की अकादमी एवं आवासीय बालिका कबड्डी अकादमी में प्रवेश हेतु खिलाड़ियों के चयन ट्रायल लिए जा चुके हैं। रायपुर में एनएमडीसी लिमिटेड के सहयोग से आवासीय तीरंदाजी अकादमी की स्थापना की गई है। इसी तरह प्रदेश में चार गैर अवासीय अकादमीसंचालित हैै। जिसमें शिवतराई बिलासपुर में गैर अवासीय अकादमी तीरंदाजी प्रशिक्षण उपकेन्द्र, रायपुर के सरदार वल्लभ भाई पटेल अंतर्राष्ट्रीय हॉकी स्टेडियम में गैर आवासीय हॉकी एवं तीरंदाजी अकादमी, रायपुर के स्वामी विवेकानन्द स्टेडियम कोटा में गैर आवासीय बालिका फुटबॉल अकादमी और रायपुर के ही स्वामी विवेकानन्द स्टेडियम कोटा में गैर आवासीय बालक एवं बालिका एथलेटिक अकादमी संचालित है। टेनिस खेल के लिए लाभांडी रायपुर मंे अंतर्राष्ट्रीय स्तर के टेनिस स्टेडियम एवं अकादमी का निर्माण किया जा रहा है। छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा राज्य के प्रत्येक जिले में खेल अकादमियां स्थापित करने का लक्ष्य रखा गया है। भारत सरकार की खेलो इण्डिया योजना अंतर्गत 07 लघु केन्द्र स्वीकृत है। जिसमें जशपुर में हॉकी, बीजापुर में तीरंदाजी, राजनांदगांव में हॉकी, गरियाबंद में व्हॉलीबॉल, नारायणपुर में मलखम्ब, सरगुजा में फुटबॉल एवं बिलासपुर में तीरंदाजी खेल की स्वीकृति मिली है। खेलो इण्डिया लघु केन्द्र के माध्यम से स्थानीय सीनियर खिलाड़ी को प्रशिक्षक के रूप में नियुक्त किया जाएगा। भारत सरकार की खेलो इण्डिया योजना अंतर्गत जशपुर में सिंथेटिक टर्फ युक्त हॉकी मैदान, अम्बिकापुर में मल्टीपरपज इंडोर हॉल, जगदलपुर बस्तर में सिंथेटिक फुटबॉल ग्राउण्ड विथ रनिंग ट्रैक ,महासमुंद में सिंथेटिक सतह युक्त एथलेटिक ट्रैक निर्माण की स्वीकृति प्राप्त हुई है। इसमें जशपुर और जगदलपुर बस्तर में निर्माण कार्य पूर्ण हो चुका है।
छत्तीसगढ़िया ओलंपिक ने राज्य के पारंपरिक खेलों को दिया मंच
छत्तीसगढ़ में पारंपरिक खेलों को बढ़ावा देेने के उद्देश्य के छत्तीसगढ़िया ओलंपिक का आयोजन किया जा रहा है। पारंपरिक खेलों में शामिल होने को लेकर लोगों का उत्साह देखते ही बनता है। घरेलू महिलाएं, बच्चे और बुजुर्ग भी इस ओलंपिक में बढ़चढ़ कर हिस्सा ले रहे हैं। छत्तीसगढ़िया ओलंपिक में 14 खेलों को शामिल किया गया है। इसके तहत दलीय खेल में गिल्ली डंडा, पिट्टुल, संखली, लंगड़ी दौड़, कबड्डी, खो-खो, रस्साकसी, बाटी (कंचा) और एकल खेल में बिल्लस, फुगड़ी, गेड़ी दौड़, भंवरा, 100 मी. दौड़ तथा लंबी कूद की प्रतिस्पर्धाएं आयोजित की जा रही हैं। 6 चरणों में आयोजित किए जा रहे छत्तीसगढ़िया ओलंपिक में लेवल-01 राजीव युवा मितान क्लब एवं लेवल- 02 जोन स्तर के सफल आयोजन के बाद लेवल-03 विकासखंड एवं नगरीय क्लस्टर स्तर और इसके बाद जिला, संभाग और राज्य स्तर पर प्रतियोगिताएं होंगी।
हो रहें अंतर्राष्ट्रीय आयोजन, मिल रही है ख्याति
राजधानी रायपुर में 19 से 28 सितंबर तक छत्तीसगढ़ चीफ मिनिस्टर ट्राफी इंटरनेशनल ग्रैंड मास्टर चेस टूर्नामेंट का आयोजन हुआ। जिसमे भारत के 21 राज्यों सहित विश्व के 15 देशों के 500 से भी अधिक शतरंज खिलाड़ियों ने हिस्सा लिया। टूर्नामेंट में ग्रैंडमास्टरर्स, इंटरनेशनल मास्टर्स, वीमेन ग्रैंडमास्टरस, वीमेन इंटरनेशनल मास्टरर्स, फीडे मास्टर्स एवं ईलो रेटेड खिलाड़ियों ने भाग लिया। इसी तरह छत्तीसगढ़ में पहली बार बैडमिंटन का अंतर्राष्ट्रीय मुकाबला खेला गया। राजधानी रायपुर में मुख्यमंत्री ट्राफी इंडिया इंटरनेशनल बैडमिंटन चैलेंज के नाम से आयोजित इस टूर्नामेंट में भारत सहित 12 अन्य देशों के 550 से अधिक खिलाड़ियों ने सिरकत की। गुजरात में आयोजित 36 वें नेशनल गेम में छत्तीसगढ़ के खिलाड़ियों ने अपना उत्कृष्ट खेल का प्रदर्शन कर 13 मैडल जीते। जिसमें 02 गोल्ड, 5 सिल्वर और 06 सिल्वर मैडल शामिल है। -
द न्यूज़ इंडिया समाचार सेवा
रायपुर : छत्तीसगढ़ राज्योत्सव के अवसर पर आयोजित तीन दिवसीय राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव कल की ढलती हुई शाम के साथ ही समाप्त हो चुका है। इस वर्ष जिन 10 देशों के लोक नर्तक दल इस राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव में अपने नृत्य की छटा बिखेरने आए थे उनमें मोजांबिक, टोगो, इजिप्ट, मंगोलिया, इंडोनेशिया, रूस, न्यूजीलैंड, सर्बिया और मालदीव जैसे देश प्रमुख हैं।
दुनिया के इन 10 देशों से आए हुए लोक नर्तकों ने छत्तीसगढ़ की जनता को अपने लोक नृत्यों से अभिभूत कर दिया। लेकिन यह एकतरफा ही नहीं हुआ वे भी छत्तीसगढ़वासियों से कम अभिभूत होकर नहीं गए हैं और इसमें भाषा किसी तरह की दीवार या बाधा साबित नहीं हुई। क्योंकि नृत्य, संगीत की कोई भाषा नहीं होती इसे केवल महसूस किया जाता है।
भारत वर्ष एक विशाल और विविधताओं से भरा देश है। यहां हर प्रदेश की अपनी एक अलग लोक संस्कृति है। इन्हीं लोक संस्कृति से एक महान भारतीय संस्कृति बनती है। इस बार राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव और राज्योत्सव में देश के 28 राज्यों के लोक नर्तकों ने अपनी लोक नृत्यों के प्रदर्शन से साइंस कॉलेज मैदान में जो खुशबू बिखेरी है और जो जादू जगाया है उस खुशबू और जादू को हम छत्तीसगढ़वासी बहुत दिनों तक अपने दिलों में महसूस करते रहेंगे।
राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव के समापन की बेला में हमारे छत्तीसगढ़ राज्य के मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने जो कहा है वह भी अपने आप में कोई कम महत्वपूर्ण नहीं है। आदिम संस्कृति सभी को जोड़ने का कार्य करती है। इसे सहेजकर और इसकी खूबसूरती को बड़े फलक पर दिखाने के उद्देश्य से हमने राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव का आयोजन किया है। मुझे इस बात कि खुशी है कि इस आयोजन में बहुत बड़ी संख्या में लोगों ने भागीदारी की है। आगे मुख्यमंत्री ने यह भी कहा है कि इस आयोजन के माध्यम से लोगों ने जाना है कि हमारी आदिवासी संस्कृति कितनी समृद्ध हैं। इनके नृत्यों के माध्यम से प्रकृति और लोकजीवन को सहेजने के सुंदर मूल्य जो सीखने को मिलते हैं वो सीख हमारे लिए अमूल्य है।इस अवसर पर झारखंड के मुख्यमंत्री श्री हेमन्त सोरेन ने जो कहा है वह भी बेहद महत्वपूर्ण है। आदिवासी नृत्य महोत्सव के जरिए यह संदेश देने का भी सफल प्रयास किया गया है कि जब तक सभी वर्गों का विकास नहीं होता तब तक देश का सर्वांगीण विकास नहीं हो सकता।
आज ये सभी नर्तक दल अपने-अपने देशों की ओर उड़ चले हैं। भारत के विभिन्न प्रांतों से आए हुए आदिवासी नर्तक दल भी अपने-अपने प्रदेशों की ओर लौट रहे हैं। ये सारे आदिवासी नर्तक दल अपने नृत्य की सोंधी खुशबू हम सब छत्तीसगढ़वासियों के दिलों में छोड़ गए हैं जो आने वाले कई दिनों तक हमारे भीतर महकते रहेंगे। -
द न्यूज़ इंडिया समाचार सेवा
बच्चे प्यार से बुला रहे कका, बना रहे पेंटिंग्स
प्रदेशव्यापी भेंट-मुलाकात कार्यक्रम में मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल की एक अलग ही छवि नजर आ रही है। बच्चों से मिलना-जुलना और उनसे घुल-मिलकर बातें करना न सिर्फ बच्चों को अच्छा लग रहा है बल्कि लोगों को भी यह बात खूब पसंद आ रही है। बच्चे भी मुख्यमंत्री से अपनेपन और लगाव के चलते उनमें एक अभिभावक की छवि देख रहे हैं।
मुख्यमंत्री का बच्चों से लगाव का एक और वाक्या भी सामने आया जब उन्होंने हाईस्कूल और हायर सेकेण्डरी की बोर्ड परीक्षाओं में प्रदेश के टॉप टेन बच्चों के साथ जिलों में पहले स्थान पर आने वाले बच्चों को हैलीकॉप्टर से सैर कराने का वायदा किया। लगभग 16 विधानसभा क्षेत्रों के दौरे में मुख्यमंत्री ने बच्चों से अनोखे अंदाज में मुलाकात की। कभी रस्सी कूदकर तो कभी निशाना साधकर और कभी गिल्ली-डंडा और भौरा खेलकर बच्चों में रम गए।
भंेट-मुलाकात कार्यक्रम में बच्चों की मासूमियत भरी बातों से न सिर्फ मुख्यमंत्री का दिल जीत रहे हैं वहीं मुख्यमंत्री भी बच्चों के पूछे गये सवालों का रोचक अंदाज में जवाब भी दे रहे हैं। वे बालहठ के सामने कई बार झुकते भी नजर आए। जब उनसे बच्चों ने हैलीकॉप्टर में घूमने की जिद की। तब बच्चों को मना नहीं कर सकें औैर बच्चों को हैलीकॉप्टर में सैर करायी।
बच्चों ने भी उन्हें तैेयार किए गए स्कैच और पेंटिंग भेंट किया। कोंडागांव जिले के बड़े डोंगर में आयुष जायसवाल ने पेंसिल से मुख्यमंत्री का स्केच बनाया और उन्हें भेंट किया। 12वीं के छात्र आयुष ने मुख्यमंत्री से कहा कि स्वामी आत्मानंद अंग्रेजी माध्यम स्कूल के जरिए हजारों छ़ात्रों का जीवन संवार रहे हैं और आप हम सब बच्चों के सच्चे अभिभावक हैं। जगदलपुर के भैंसगांव में तो स्कूली छात्राओं ने मुख्यमंत्री और उनकी माताश्री की पेंटिंग भेंट की जिससे मुख्यमंत्री भी भावुक हो गए थे।
मुख्यमंत्री जहां भी गए वहां छात्र अपने प्रिय मुख्यमंत्री से मिलने के लिए पहले से ही मौजूद रहे। फिर चाहे बात स्वामी आत्मानंद अंग्रेजी माध्यम स्कूल की हो, प्राइमरी के बच्चों की हो या फिर कालेज में पढ़ने वाले छात्रों की हो, हर कोई उन्हें अपना अभिभावक मानने लगे हैं। बस्तर के बादल एकेडमी के छात्र हों, इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय खैरागढ़ के छात्र हों या फिर किसी भी स्कूल के छात्र हों मुख्यमंत्री उनसे मिलते जरूर हैं। मुख्यमंत्री की पारखी नजर ऐसी है कि भीड़ में रोती हुयी बच्ची को भी देख लेते हैं और उसे चुप कराकर उसकी समस्याओं का समाधान और उसकी पढ़ाई की व्यवस्था भी कर देते हैं।
ऐसा नहीं है कि मुख्यमंत्री सिर्फ घोषणाएं करते चले जा रहे हैं, बल्कि घोषणाओं पर फौरीतौर पर अमल भी हो रहा है। भेंट मुलाकात कार्यक्रम में मुख्यमंत्री आमजनों से मिलने निकले हैं, लेकिन जिस तरह से इन कार्यक्रमों में उन्हें बच्चों का प्यार मिल रहा है और जिस तरह बच्चे आत्मविश्वास के साथ मुख्यमंत्री के सामने अपनी बात रख रहे हैं, उसे देखकर यही लग रहा है कि नवा छत्तीसगढ़ गढ़ने की दिशा में हो रही पहल रंग ला रही है।
- बॉबी रमाकांत - सीएनएस
तीस साल के निरंतर शोध के बाद आख़िरकार, दुनिया की पहली मलेरिया वैक्सीन, “आटीएस,एस”, को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने बच्चों में उपयोग के लिए संस्तुति दे दी। इस मलेरिया वैक्सीन टीके से बच्चे सबसे घातक क़िस्म की मलेरिया से बचेंगे जो मलेरिया कीटाणु, "प्लैज़्मोडीयम फ़ेलकीपेरम", के कारण रोग ग्रस्त होते हैं। यह मलेरिया टीका अत्यंत लाभकारी तो है परंतु मलेरिया नियंत्रण और उन्मूलन के लिए कदापि पर्याप्त नहीं है।
कीटनाशक से युक्त मच्छरदानी, साफ़-सफ़ाई और मच्छर निवारक छिड़काव, सभी के लिए मलेरिया रोग की बिना विलम्ब जाँच और सही इलाज आदि, ऐसे ज़रूरी प्रभावकारी कदम हैं जो इस मलेरिया टीके के साथ सभी जगह लागू होने चाहिए।
पर असलियत बहुत गम्भीर है क्योंकि मलेरिया अनेक लोगों को रोग ग्रस्त कर रहा है और कमजोर स्वास्थ्य और सामाजिक सुरक्षा के चलते अनेक लोगों के लिए प्राणघातक रोग बना हुआ है। मलेरिया रोकथाम के लिए आवश्यक स्वास्थ्य सेवाएँ जरूरतमंद लोगों तक समय से नहीं पहुँच रही हैं इसीलिए वैश्विक स्तर पर, मलेरिया से एक साल में 22.90 करोड़ लोग रोग ग्रस्त हुए और 4.09 लाख मृत। मलेरिया से मृत होने वालों में से दो-तिहाई बच्चे थे। 5 साल से कम उम्र के बच्चों में ही मलेरिया से सम्बंधित प्राण-घातक रोग होने का ख़तरा सर्वाधिक होता है।
ज़रूरी स्वास्थ्य सेवाएँ यदि हर जरूरतमंद इंसान तक नहीं पहुँचेंगी तो विश्व में सभी सरकारों का वादा कि 2030 तक मलेरिया उन्मूलन हो जाएगा, कैसे पूरा होगा?
उत्तर प्रदेश में इस साल बारिश में फिर से, जल भराव के साथ-साथ डेंगू, मलेरिया और बुख़ार का प्रकोप जनता ने झेला जबकि इन रोगों से बचाव और रोकधाम, समय से जाँच-इलाज सब मुमकिन है। यदि यह पहली मलेरिया वैक्सीन सभी आवश्यक मलेरिया नियंत्रण सेवाओं के साथ, जरूरतमंद लोगों - विशेषकर बच्चों तक, नहीं पहुँचीं (चाहे वह बच्ची अमीर हो या गरीब, अमीर देश में हो या गरीब देश में) तो कैसे होगा २०३० तक मलेरिया उन्मूलन? सिर्फ़ ११० महीने रह गए हैं और मलेरिया आज भी भारत में एक जन स्वास्थ्य चुनौती बना हुआ है जबकि पड़ोसी देश जैसे कि, श्री लंका, मॉल्डीव्ज़, आदि ने, मलेरिया उन्मूलन का लक्ष्य हासिल कर लिया है।
दुनिया की सबसे पहली मलेरिया वैक्सीन के बारे में जाने
संयुक्त राष्ट्र की सर्वोच स्वास्थ्य एजेन्सी, विश्व स्वास्थ्य संगठन ने, इस मलेरिया वैक्सीन (“आटीएस,एस”) को ऑक्टोबर 2021 में मोहर लगा के सभी देशों को वैश्विक मलेरिया उन्मूलन के लिए एक और प्रभावकारी माध्यम दिया है।
यह मलेरिया वैक्सीन दुनिया के उन देशों या क्षेत्रों में अधिक कारगर रहेगी जहां यह रोग, मलेरिया कीटाणु "प्लैज़्मोडीयम फ़ेलकीपेरम" के कारण होता है। इस कीटाणु के कारण सबसे जानलेवा मलेरिया होने का ख़तरा रहता है, और यही कीटाणु अधिकांश अफ्रीकी मलेरिया के लिए भी ज़िम्मेदार है। भारत में अधिकांश मलेरिया इस कीटाणु से तो नहीं होती परंतु अनेक प्रदेशों में यह जानलेवा मलेरिया वाले कीटाणु का प्रकोप है।
इस मलेरिया वैक्सीन का शोध शुरू हुए 30 साल से भी अधिक समय हो चुका है। इसके शोध के दौरान, जिन बच्चों को वैक्सीन लगी थी उनमें से बहुत ही कम बच्चों पर अत्यंत गम्भीर दुष्प्रभाव पड़ने की आशंका थी - पर यह स्थापित नहीं था कि यह दुष्प्रभाव वैक्सीन के कारण हुए या किसी अन्य कारण से। यह भी एक कारण था कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 2015 में वैक्सीन शोधकर्ताओं से एक पाइलट शोध करने को कहा जो 2019 में 3 अफ्रीकी देशों में शुरू हुआ - अप्रैल 2019 में यह मलावी में शुरू हुआ, मई 2019 में घाना में और सितम्बर 2019 में कीन्या में शुरू हुआ। इस शोध में 8 लाख से अधिक बच्चों को यह वैक्सीन लगी - पहली 3 खुराक 5-9 महीने की उम्र में लगी और 4वीं खुराक 2 साल की उम्र में लगी। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, चौथी खुराक लगे या नहीं इसका प्रमाण अभी पुख़्ता नहीं है इसीलिए शोध जारी है कि 4वीं खुराक का लाभ है या नहीं। 2019 से हुए पाइलट शोध में जिसमें 8 लाख से अधिक बच्चों का टीकाकरण हुआ, यह सिद्ध हुआ कि इस टीके के कोई गम्भीर दुष्प्रभाव नहीं हैं। बल्कि इस टीके से मलेरिया से बच्चों का बचाव हुआ है।
30+ साल से हो रहे मलेरिया टीके शोध के मुख्य नतीजे:
जिन बच्चों को टीका नहीं लगा उनकी तुलना में टीकाकरण करवाए हुए बच्चों में मलेरिया से बचाव होता है
- हर 10 मलेरिया ग्रस्त होने वाले बच्चों में से 4 को टीके के कारण मलेरिया नहीं हुआ
- हर 10 मलेरिया से मृत होने वाले बच्चों में से 3 की जान टीके के कारण बची
- हर 10 गम्भीर मलेरिया "अनीमिया" झेलने वाले बच्चों में से 6 का बचाव टीके ने किया। यह इस लिए भी महत्वपूर्ण बात है क्योंकि मलेरिया से मृत होने वाले बच्चों में से अधिकांश मलेरिया "अनीमिया" के कारण मृत होते हैं
इसके अलावा भी इस मलेरिया वैक्सीन के अनेक लाभ मिले। मलेरिया अनीमिया के कारण ही अधिकांश बच्चे अस्पताल में भर्ती होते हैं और रक्त चढ़ाने की ज़रूरत भी पड़ती है। चूँकि वैक्सीन के कारण मलेरिया अनीमिया का दर घटी इसीलिए मलेरिया के कारण अस्पताल में भर्ती होने वालों की संख्या में गिरावट आयी और रक्त चढ़ाने की ज़रूरत भी कम हुई।
पर यह बात समझना ज़रूरी है कि यह टीका अकेले पर्याप्त नहीं है बल्कि बाक़ी सभी प्रभावकारी मलेरिया नियंत्रण और रोकधाम के जो तरीक़े हैं उनके साथ समोचित ढंग से बिना-विलम्ब लागू होना चाहिए।
अफ़्रीका में हुए पाइलट शोध के अनुसार, जिन ८ लाख बच्चों तक वैक्सीन पहुँची उनमें से दो-तिहाई बच्चे, कीटनाशक युक्त मच्छरदानी के भीतर नहीं सो रहे थे। यह महत्व की बात है कि मलेरिया टीका उन बच्चों तक पहुँचा जिन तक कीटनाशक युक्त मच्छरदानी नहीं पहुँच पा रही थी। यह सवाल भी उठता है कि जरूरतमंद बच्चों तक मलेरिया नियंत्रण के पुराने प्रभावकारी तरीक़े क्यों नहीं पहुँच पा रहे थे?
इन अफ्रीकी देशों में हुए शोध में यह भी देखा गया कि मलेरिया टीका लगने से कहीं अन्य मलेरिया नियंत्रण और रोकधाम के तरीक़ों के उपयोग में कमी तो नहीं आती और यह सिद्ध हुआ कि टीके के बाद भी, जो लोग मच्छरदानी का उपयोग कर रहे थे वह करते रहे और अन्य मलेरिया नियंत्रण कार्यक्रम भी सुचारु रूप से चलते रहे।
दुनिया के लिए जीएसके के साथ मिलकर भारत की बाइओटेक (biotech) कम्पनी बनाएगी यह टीका
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने मलेरिया टीके को जारी करते हुए कहा कि दुनिया के सभी बाइओ-टेक उद्योग से अनुरोध किया गया था कि वह जीएसके (जिस कम्पनी का यह टीका है) के साथ मिल कर इसको निर्मित और वितरण के लिए अर्ज़ी दें। विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक और अन्य विशेषज्ञों ने कहा कि विश्व में सिर्फ़ भारत की बाइओ-टेक कम्पनी ही चयनित हुई है जो जीएसके के साथ इस टीके को बनाएगी और दुनिया में वितरित करेगी।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने यह भी कहा कि प्रारम्भिक प्रयास हो रहे हैं कि इस नए मलेरिया वैक्सीन को ख़रीदने के लिए धनराशि एकत्रित हो पर यह सवाल महत्वपूर्ण है कि जब वैज्ञानिक उपलब्धि प्राप्त होती है तो जरूरतमंद तक पहुँचने में अनावश्यक विलम्ब होता है। हर पाँच में से चार कोविड वैक्सीन टीके अमीर देशों में लगे हैं - इस ग़ैर बराबरी को नज़रंदाज़ नहीं कर सकते।
मलेरिया वैक्सीन को जरूरतमंद बच्चों तक पहुँचाने के लिए, बिना विलम्ब, आवश्यक सभी कदम उठाने चाहिए। पैसे के अभाव हो या हर देश की अपनी अंदरूनी प्रक्रिया जिसके तहत नयी वैक्सीन को संस्तुति आदि मिलती है - यह कहीं अनावश्यक विलम्ब न करे। यदि मलेरिया उन्मूलन का सपना साकार करना है तो हर प्रभावकारी मलेरिया नियंत्रण, रोकधाम, जाँच-इलाज सेवाएँ आदि सभी जरूरतमंद तक बिना विलम्ब दुनिया भर में पहुँचे वरना न सिर्फ़ मलेरिया उन्मूलन में हम असफल होंगे बल्कि अन्य सतत विकास लक्ष्यों पर भी पिछड़ेंगे। -
हिम्मत वतन की हमसे है tTNIS
---------------------------------देश में कोविड-19 से होने वाली प्रभावितों का आंकड़ा 700 से पार हो चुका है। हालात बहुत चिंताजनक हैं, लेकिन राहत की बात है कि अब नियंत्रण में हैं।भारत इस महामारी से जिस कुशलता के साथ निपट रहा है, उसकी दुनियाभर में तारीफ हो रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने हमारे प्रयासों की सराहना तो की है, इस महामारी की सबसे बड़ी चुनौती झेल चुके चीन ने भी तारीफ की है। कोविड-19 के जन्म से लेकर इस पर नकेल कसने तक चीन के पास लंबा अनुभव है, और वह कह रहा है कि भारत समय से पहले ही इस पर विजय पा लेगा।ऐसे समय में जबकि अमेरिका जैसे शक्तिशाली देश के हौसले पस्त हैं, इस भयंकर महामारी से निपटने के लिए भारत का मनोबल देखते ही बनता है। इसी मनोबल के बूते इस देश ने कोविड-19 को दूसरे चरण में ही अब तक थाम रखा है, अन्यथा अब तक तस्वीर कुछ और होती।यदि विश्व स्वास्थ्य संगठन कह रहा है कि कोरोना को लेकर दुनिया का भविष्य भारत के प्रयासों पर निर्भर है, तो इसके गहरे निहितार्थ है। इसीलिए इन प्रयासों को लेकर उसके द्वारा प्रकट की गई प्रसन्नता बहुत व्यापक है। भारत के इन्हीं प्रयासों ने उसे उसके समानांतर देशों में कोरोना के विरूद्ध चल रहे अभियान में एक तरह से नेतृत्वकर्ता की भूमिका में स्वीकार्यता दी है।पहले जनता कर्फ्यू और बाद में 21 दिनों का लाक-डाउन जैसे कड़े फैसलों के दौरान जो परिदृश्य उभरा है, उसमें यह साफ नजर आता है कि हम न केवल दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र हैं, बल्कि सबसे ताकतवर और एकजुट लोकतंत्र भी हैं। वह इसलिए कि भारत की तुलना में कोविड-19 से कई गुना अधिक पीड़ित होने के बावजूद अमेरिका अब तक ऐसे फैसलों की हिम्मत नहीं जुटा पाया है।चीन संभवतः इसीलिए चकित है कि लोकहित में कड़े फैसले तानाशाही के बिना भी लिए जा सकते हैं।कोविड-19 की पीड़ा के इस दौर में भारत न सिर्फ एक परिपक्व लोकतंत्र के रूप में उभरा है, बल्कि उसने अपने संघीय ढांचे की ताकत का भी अहसास करा दिया है। दुनिया देख रही है कि बहु-दलीय प्रणाली वाले इस देश के प्रत्येक राजनैतिक दल का मूल सिद्धांत एक है। जब देश और मानवता पर संकट आता है तो जाति, धर्म, संप्रदाय सबसे सब हाशिये पर धकेल दिए जाते हैं। इस समय यही राजनीतिक एकजुटता देश को ताकत दे रही है।केंद्र और राज्य, शासन और प्रशासन, जनप्रतिनिधि और जनता, इन सबकी सीमाएं टूट चुकी हैं। सबके सब इस समय एकाकार हैं। अद्भुत समन्वय और तालमेल के साथ यह देश अपने अनदेखे दुशमन के साथ जंग लड़ रहा है। चाहे वह मेडिकल स्टाफ हो, या पुलिस के जवान, या फिर स्वच्छता-सैनिक, सभी ने साबित कर दिखाया है कि देश के लिए जो जज्बा सरहद पर लड़ने वाले सैनिक का होता है, वही जज्बा इस देश के जन-जन में है।कोविड-19 पर हम निश्चित ही विजय पा लेंगे। उसके बाद नव-निर्माण का दौर होगा। हमें अपने हौसले पर भरोसा है। हम चीन जैसे देशों को एक और बार यह कहने पर मजबूर कर देंगे कि भारत समय से पहले उठ खड़ा होगा।तारन प्रकाश सिन्हा -
IANS की खबर
जेनेवा: अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) की एक नई रिपोर्ट ने अनुमान जताया है कि इस साल बेरोजगारी का आंकड़ा बढ़कर लगभग 2.5 अरब हो जाएगा. सोमवार को जारी हुई 'वर्ल्ड इंप्लॉयमेंट एंड सोशल आउटलुक (डब्ल्यूईएसओ) : ट्रेंड्स 2020' रिपोर्ट के अनुसार, दुनियाभर में लगभग आधा अरब लोग जितने घंटे काम करना चाहते हैं, उससे कम घंटों तक वैतनिक काम कर रहे हैं, या कह सकते हैं उन्हें पर्याप्त रूप से वैतनिक काम नहीं मिल रहा है.
समाचार एजेंसी सिन्हुआ के अनुसार, रोजगार और सामाजिक रुझान पर आईएलओ की रिपोर्ट बताती है कि बढ़ती बेरोजगारी और असमानता के जारी रहने के साथ सही काम की कमी के कारण लोगों को अपने काम के माध्यम से बेहतर जीवन जीना और मुश्किल हो गया है.वेसो के अनुसार, दुनियाभर में बेरोजगार माने गए 18.8 करोड़ लोगों में 16.5 करोड़ लोगों के पास अपर्याप्त वैतनिक कार्य हैं और 12 करोड़ लोगों ने या तो सक्रियता से काम ढूंढ़ना छोड़ दिया है या श्रम बाजार तक उनकी पहुंच नहीं है.
आईएलओ के महानिदेशक गाय रायडर ने यहां संयुक्त राष्ट्र समाचार सम्मेलन में कहा कि दुनियाभर में अधिकतर लोगों के लिए जीविकोपार्जन का स्रोत अभी भी श्रम बाजार और श्रम गतिविधि बना हुआ है, लेकिन दुनियाभर में वैतनिक काम, प्रकार और काम की समानता और उनके पारिश्रमिक को देखते हुए श्रम बाजार का आउटकम बहुत असमान है.
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बिहार न्यायिक सेवा के परिणाम आ गए हैं जिसके मुताबिक़ २२ मुस्लिम युवाओं ने अपने नाम जीत हासिल कि है। शुक्रवार को आए परिणाम में 22 मुस्लिम जज बन गए हैं। खास बात यह है इनमें से 7 मुस्लिम लड़कियां है और इससे भी खास बात यह है।पटना की हिज़ाब पहनने वाली लड़की सनम हयात ने सभी मुस्लिम प्रतिभागियों में सबसे ज्यादा रैंक हासिल की है। सनम हयात की दसवीं रैंक है,वही कड़ी मेहनत के बाद जज बनी झारखंड के बोकारो की बेटी शबनम ज़बी के जज बनने पर भी तारीफ़ बटौरी जा रही है।
आपको बता दे कि यूपी में भी न्यायिक सेवा में 38 मुस्लिमों ने ‘योर ऑनर’ कहलाने का हक़ हासिल किया था। इनमे से 18 लड़कियां है हाल ही में राजस्थान के रिज़ल्ट में 6 मुस्लिम चुने गए जिनमे से पांच लड़कियां थी। बिहार में कुल 22 मुस्लिम जज बने है। इनमें से 7 लड़कियांहै। देखा जाये तो लड़कों के मुक़ाबले लड़कियां यहां पिछड़ गई है मगर बिहार में महिलाओं की स्थिति को देखते हुए यह क़ाबिल ए तारीफ है। यूपी, राजस्थान के बाद अब बिहार के 6 मुस्लिम ने भी अपने राज्य का नाम ऊंचा किया है। उन्हें बेटियों पर गर्व है, अधिवक्ता इक़बाल की बेटी शबनम ज़बी भी इसी परिणाम में जज बनी है। शुकवार को परिणाम के मुताबिक 30 वी बिहार न्यायिक सेवा परीक्षा में कुल 1080 उम्मीदवारों को साक्षात्कार के लिए बुलाया गया था।जिनमे से 687 लोगों को चुना गया।
हालांकि उत्तर प्रदेश न्यायिक सेवा के परिणाम की तुलना में यह रिज़ल्ट कम है। मगर वर्तमान की तुलना में काफी ज्यादा तरक्की हासिल किया गया है। खासतौर पर 7 लड़कियों का जज बनना बेहद काबीले तारीफ है आपको बता दे कि मुसलमानों की शिक्षा भारत में सबसे कम है, जिसको लेकर मुसलमानों का एकबड़ा तबका बदहाली की जिदंगी में जी रहा है। जिस तरह से मुसलमानों ने न्यायिक सेवा में अपने जीत का परचम लहराया है। बढ़ती शिक्षा से प्रेरित होकर अब मुसलमान अपने बच्चों को शिक्षित करेंगे ये एक बड़ी बात है।
नाम– रैंक
सनम हयात– 10
महविश फातिमा– 29
मोहम्मद अफजल खान -109
मोहम्मद अकबर अंसारी-134
ग़ज़ाला साहिबा-177
शारिक हैदर – 117
आसिफ नवाज़ – 121
नाजिया खान – 131
उज़मा कमर – 133
नाजिम अहमद -289
शबनम ज़बी -294
मोहम्मद शुएब-398
मासूम खानम-440
सफदर सालन -445
मोहम्मद फहद हुसैन-447
सबा शकील -486
शाद रज्ज़ाक 506
महजबी नाज -541
मसरूर आलम-559
ग़ुलाम रसूल -464
सरवर अंसारी-524
इज़्म्मुल हक़ -471
साभार- मुस्लिम मिरर -
कृष्ण देव सिंह, बुधवार मल्टीमीडिया न्यूज नेटवर्क
रायपुर । विश्व का सबसे बड़ा गणतंत्र का दम भरने वाले भारत में कब और कहाँ कितना पालन हो रहा है हमारे संविधान का ? आज संविधान दिवस के मौके पर इस सवाल के साथ ऐतिहासिक तस्वीरें हमें कुछ याद भी दिला रही है कि हमारे मनीषियों ने दो वर्ष ,11 माह और 18 दिनों की कड़ी मेहनत से हमारा संविधान तैयार किया था । बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर के नेतृत्व में संविधान प्रारूप समिति के सदस्यों ने इसका मसविदा बनाया था । डॉ. अम्बेडकर ने संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को 26 नवम्बर 1949 को संविधान का प्रारूप सौंपा,जो देश मे 26 जनवरी 1950 से लागू हुआ । डॉ. राजेन्द्र प्रसाद देश के प्रथम राष्ट्रपति बने ।
आज भी यह सवाल बारम्बार हमारे सामने खड़ा हो रहा है कि जिस आशा और विश्वास के साथ प्रारूप समिति के सदस्यों ने 'अध्ययन, चिन्तन और विचार -विमर्श के बाद राष्ट्र की दिशा और दशा तय करने वाले इस महाग्रन्थ की रचना की, क्या उन पर हम खरे साबित हो पा रहे हैं ? बहरहाल , सभी को संविधान दिवस की हार्दिक बधाई के साथ -साथ मेरा आपसे एक प्रश्न है कि क्या हम सभी एक जख्मी संविधान के साथ जीने के लिए मजबूर नहीं हैं?
हमारे देश में 365 दिन में से एक दिन संविधान पर चर्चा के लिए भी निर्धारित है । आज देश के पास संविधान तो है लेकिन संविधान के पास वो देश नहीं है जो संविधान के मुताबिक आचरण करता हो । राजनीतिक और संवैधानिक पदो पर बैठे हुए लोगो के लिए संविधान एक खिलौना और न्यायपालिका व कार्यपालिका के लिए बिछोना है। जनता के लिए संविधान सिर्फ एक आभासी छाता है क्योंकि संविधान के तहत जैसा जीवन और देश हमें बनाना था, हम बना ही नहीं पाए ।
मैंने भी भारतीय संविधान को उतना नहीं पढ़ा है जितना की एक छात्र को पढ़ाया जाता है । चूंकि मैं अभियांत्रिकी का छात्र रहा हूँ इसलिए संविधान को अन्य छात्रों के मुकाबले कुछ कम ही पढ़ा है । लेकिन संविधान के साथ जब--जब खिलवाड़ होती है,तब-तब मुझे आम लोगों की तरह ही वेदना होती है ।
हमारा संविधान एक कम सत्तर साल का हो गया है । यानि उसकी वरिष्ठता और परिक्वता को लेकर अब कोई सवाल खड़े नहीं किये जाना चाहिए । हम सब एक ऐसे संविधान के सहारे व्यवस्था को संचालित कर रहे हैं जिसमें समानता का आभास बाहर है? हमारे संविधान निर्माताओ ने एक ऐसी लचीली इमारत बनाई जिसे हम वक्त और जरूरत के मुताबिक तोड़-मरोड़ सकते हैं । हमने इस सुविधा का पूरा-पूरा लाभ भी उठाया और पिछले ६९ साल में संविधान को कम से कम 124 बार तो संशोधित किया ही है, इसके बावजूद हम अपने नागरिकों को बराबरी पर नहीं ला सके। संविधान सबकी मदद करना चाहता है लेकिन कुछ लोग हैं जो उसे ऐसा नहीं करने देते । वे समर्थ ,समझदार और महान लोग हैं ।
संविधान की व्याख्या करने वाले लोग,उसे वक्त जरूरत के हिसाब से बदलने वाले लोग तो संविधान को वेदों की तरह पावन नहीं मानते । अगर मानते तो देश में संविधान की शपथ लेने वाले लोग तमाशे न करते, तमाशा करने से डरते। अगर डरता तो इस देश में मौजूदा महाराष्ट्र जैसा प्रहसन न होता । सत्ता के प्रयोगों की जगह सत्य के प्रयोग हो रहे होते । सत्ता पाने के लिए हजारों करोड़ के भ्रष्टाचार को क्लीन-चिट न दे दी जाती । जनता द्वारा चुने विधायकों को भेड़ -बकरियों की तरह होटलों में न रखना पड़ता ।
हमारे पास एक संविधान है, हम सब उसका गुणगान करते हैं और नीचे से लेकर ऊपर तक सम्विधान का इस्तेमाल केवल शपथ लेने के लिए करते हैं । मुझे भी लगता है कि यदि हमारे पास संविधान न होता तो हम झूठ बोलने के लिए शपथ किसकी खाते। हमें और हमारी नयी पीढ़ी को निर्धारित करना पड़ेगा की वो संविधान का इस्तेमाल कैसे करना चाहती है ?क्या उसे केवल ऐसा संविधान चाहिए जो केवल शपथ विधि के समय काम आता है या एक ऐसा संविधान चाहिए जो आम आदमी को सुरक्षा,और बराबरी के लिए संरक्षण प्रदान करता है ।
भारतीय संविधान की प्रस्तावना एक ऋचा जैसी है उसमें कहा गया है की -'हम भारत के लोग, भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न, समाजवादी , पंथनिरपेक्ष,लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त करने के लिए तथा उन सबमें व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखण्डता सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढ़ाने के लिए दृढ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवम्बर 1949 ई0 (मिति मार्ग शीर्ष शुक्ल सप्तमी, सम्वत् दो हजार छह विक्रमी) को एतद द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।'
संविधान की इस ऋचा को भारत की आम जनता ने तो शायद आत्मसात कर भी लिया हो लेकिन भारत के भाग्य विधातागण इस ऋचा को आत्मसात करने के लिए अभी तक तैयार नहीं हैं ,वे प्रतिदिन व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता,अखण्डता को नुक्सान पहुंचते हैं और वो भी राष्ट्रवाद के नाम पर ।'हम भारत के लोग' ही अपने संविधान की रक्षा नहीं कर पा रहे हैं,हमारे संविधान पर 'हमारे भारत के ही लोग' प्रहार कर रहे हैं। क्या आज का दिन ऐसे संविधान विरोधी तत्वों को पहचानकर उन्हें अलग-थलग करने का नही है ?क्या ये काम 'हम भारत के लोग' ही नहीं कर सकते हैं,जबकि हमारे आस मताधिकार है ?
हमें तय करना पड़ेगा कि हम असल के सेवकों को चुनें जो न बिकें और न अपनी निष्ठाएं बात-बात पर बदलें । हम ऐसे लोगों को सरकार बनाने के लिए चुनें जो अपने लिए नहीं,कुर्सी के लिए नहीं बल्कि 'हम भारत के लोगों'के लिए काम करने का जज्बा रखते हों । जो त्रिशंकु विधानसभाओं और सांसदों के होते हुए भी बिना लड़े एक न्यूनतम साझा कार्यक्रम बनाकर देश को तरक्की के रास्ते पर आगे ला सके | आज राजनीति उदारता से रिक्त होती जा रही है । राजनीति को अधिनायकवाद से बचाने के लिए संविधान के अनुरूप चलने की जरूरत है । तभी संविधान दिवस मनाने की सार्थकता प्रमाणित होगी अन्यथा नहीं ।
भारतीय राजनीति में आई नैतिक पतन के लिए राजनीतिक दल व उसके नेता कम जिम्मेदार नहीं है। लोकसभा,विघान सभा,नगर निकायों के चुनावों में टिकट बांटते वक्त पार्टी के निष्ठावान, कर्तव्यनिष्ट और साफ सुधरी छवि वाले नेताओं/ कार्यकर्ताओं की सर्वाघिक उपेक्षा की जाती है और चुन-चुनकर ऐसे लोगों को बड़े पैमाने पर प्रत्याशी बनायें जाते हैं जिनका नैतिकता,सिद्यान्त,आदर्श,सभ्यता,संस्कार जैसे गुणों से दूर-दूर का नाता नहीं रहता ।
इसी का प्रतिफल आज अगर महाराष्ट्र सहित पुरा देश भुगत रहा है । इसका यह मतलब नहीं हैं कि संवैधानिक संस्थानों, न्यायपालिका और कार्यपालिका में बैठे हुए लोग दूध के धुले है । हमाम में ये सभी बराबर के जिम्मेदार हैं। देश को बर्बादी के कगार पर लाने के लिए चाल,चरित्र और चेहरा की राजनीति करने वालों का असली चरित्र नग्न स्प से सामने आ चुका है । ऑपरेशन कमल कराने वालों से कम दोष उस पार्टी और नेताओं का नहीं है जो लालची और भ्रष्ट नेताओं को टिकट देकर विधायक या सांसद बनाते हैं। जाहिर है जो पैसों के लिए दल बदलेंगे तो वे दल में पैसों के लिए ही रहेंगे। क्या खरीदने वालों से वे "कम दोषी है जो अपनी कीमत गले में लटका कर घूम रहे हैं। और उनका भी दोष कम नहीं है जो उनके कार्यगुजारियों को छिपाते हैं, महिमामंडित करते है व उन्हें सर्वजनिक रूप से नग्न करने के बजाय इसे उपलब्धि बताते फिरते है। क्या यह वक्त ठहरकर और गम्भीरता से चिन्तन मनन कर सकारात्मक कदम उठाने का नही है।
सियासत का असली चेहरा क्या होता है और मुखौटे के भीतर की शक्ल कितनी घिनौनी होती है, ये महाराष्ट्र में चली राजनीतिक नौटंकी के दौरान रोजाना सीरियल के एपिसोड की तरह देश के सामने आ गया है। हम पत्रकारों के लिए इस तरह की राजनीति बहुत कम देखने को मिलती है, जिसमें साम-दाम-दंड-भेद सब एक साथ मौजूद हो। हर पल बदलते हालात हों, कौन किस पर कब भारी पड़ जाए, किसी को ख़बर नहीं हो, एक से बढ़कर एक दांव हों और मस्त बयानबाज़ी हो।पहले भतीजे पवार का डायलॉग वायरल था कि शरद पवार के साथ हैं और सरकार बीजेपी-एनसीपी की बनेगी।अब चाचा पवार का डायलॉग वायरल है कि ये गोवा, मणिपुर,कर्नाटक नहीं है, ये महाराष्ट्र है, मुंबई है।
सुप्रीम कोर्ट से एक-एक दिन सुनवाई टलते जाने से हॉर्स ट्रेडिंग को थोड़ी-थोड़ी मोहलत तो मिलती गई, लेकिन अनुभवी शरद पवार इतनी जल्दी मैदान से बाहर होने के मूड में दिख नहीं रहे और बीजेपी के धनबल और सत्ताबल को पहली बार इतनी कड़ी टक्कर मिलती दिख रही है, अंतिम तस्वीर क्या निकलेगी, इसके लिए कल तक इंतजार करना पड़ रहा है लोगों को।.
जरा सोचिए कितना मन कचोट रहा होगा, सात पुश्तें संवारने का सुनहरा मौका होटल के एक्जिट गेट पर ही मौजूद है, लेकिन शिवसैनिकों के डंडों का डर और पवार की मजबूत पकड़ ने बेचारों के दिमाग को होटल के बाहर निकलने पर रोक लगा रखी है। जरा सोचिए बेचारे मुख्यमंत्री के दिल पर क्या गुजर रही होगी, जो शपथ भी ले चुके हैं, नोटों की कोई कमी नहीं है, लेकिन मंजिल सामने होते हुए भी फिलहाल दूर है। वैसे असली मजे तो उस डिप्टी सीएम के हैं, अब सरकार चाहे इधर की बनी या उधर की, सबसे हाई डिमांड में हैं तो डिप्टी सीएम की कुर्सी तय है, शपथ तो एडवांस में ले ही रखी है। ऊपर से बोनस ये कि अभी देश में भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस वाली सरकार का राज है तो रातों-रात हजारों करोड़ के सिंचाई घोटाले के भ्रष्टाचार से क्लीन चिट मिलने की चिट्ठी और खबर वायरल हो गई है।
महाराष्ट्र की मौजूदा राजनीतिक स्थिति ने उन लोगों को भी लिखने-बोलने-सोचने पर प्रेरित कर दिया है, जो भक्त-चमचों-चाटुकारों की आक्रामकता और बदतमीजियों के भय से सोशल मीडिया से कटे रहते हैं। चुनाव सुधार की ज़रूरत, राज्यपाल के विवेकाधिकार पर पुनर्विचार, एक पार्टी के टिकट से जीतकर दूसरी पार्टी की सरकार बनवाने जैसी परंपरा देश में बदलने की बजाय आगे क्यों बढ़ाई जा रही है? ये सवाल सोशल मीडिया पर अलग-अलग पोस्टों की शक्ल में दिख रहे हैं। मुख्यमंत्री जैसे संवैधानिक और तारीख तय कर तामझाम के साथ शपथग्रहण की परंपरा को चोर शपथ की तरह दिलवाए जाने का हास्य प्रसंग अब चल गया है। खुलेआम हॉर्स ट्रेडिंग को बढ़ावा दिया जा रहा है, ये पूरा देश देख रहा है क्योंकि इस सवाल का जवाब आम लोग भी जानते हैं कि जब शिवसेना बीजेपी के साथ नहीं है और सारे निर्दलीय साथ आने पर भी बीजेपी के नंबर पूरे नहीं हो रहे हैं तो फ्लोर टेस्ट बिना तोड़-फोड़ पूरा कैसे हो सकता ।
भाजपा के कार्यकर्ता एवं समर्थक केन्दीय गृह मंत्री अमित शाह को चाणक्य कहते हैं । वो कहते हैं कि कुछ भी हो जाये शाह तो जोड़-तोड़, खरीद-फरोख्त या इडी की धमकी देकर सरकार बनवा ही लेंगे । उनके अनुसार ये सभी विधाएँ राजनीति में जायज हैं । ऐसा कहते हुये उन्हें अपनी पार्टी और अमित शाह पर काफी गर्व भी महसूस होता।
अब भारत की जनता और समाज को ये सोचने की जरूरत है कि यदि भाजपा का अधिकारिक विचार धारा ऐसी है तो गैरअधिकारिक कैसी होगी? क्या यह पार्टी अपनी सरकार बनाने या बचाये रखने के लिये किसी भी स्तर पर जाने में कोई संकोच करती होगी ? क्या यह भारत जैसे महान लोकतांत्रिक गणराज्य वाले देश का दुर्भाग्य नही है? -
कावासाकीः जापान की राजधानी टोक्यो में मंगलवार सुबह उस समय हड़कम्प मच गया जब एक शख्स ने अचानक भीड़ पर चाकू से हमला शुरू कर दिया। एक बच्चे सहित 3 लोगों की मौत हो गई और 13 बच्चों समेत कम से कम 19 लोग घायल हो गए हैं। इस तरह का हमला जापान जैसे विकसित देश में बहुत दुर्लभ है जहां हिंसक अपराध बहुत कम होते हैं। चाकुओं से हमला करने वाले व्यक्ति की मंशा के बारे में तत्काल कुछ पता नहीं चल सका है।
हमला कावासाकी में सुबह के व्यस्ततम समय में हुआ जब लोग अपने-अपने दफ्तरों के लिए और बच्चे स्कूल के लिए निकल रहे थे। अग्निशमन विभाग के एक अधिकारी यूजी सेकिजावा ने बताया कि हमले में 9 अन्य घायल हो गए जिनमें कई बच्चे शामिल हैं। विभाग के एक अन्य प्रवक्ता दाई नगासे ने कहा, “एक व्यक्ति ने उन्हें छुरा मारा।” उन्होंने कहा, “हमें सुबह करीब पौने आठ बजे एक आपात फोन आया जिसमें बताया गया कि प्राथमिक स्कूल के चार बच्चों पर चाकू से हमला किया गया है।”स्थानीय टीवी चैनलों पर दिखाई जा रही घटना की फुटेज में मौके पर पुलिस की कई कारें, एंबुलेंस और दमकल की गाड़ियां नजर आ रहीं हैं। घायलों के इलाज के लिए आपातकालीन चिकित्सा तम्बू लगाए गए हैं। पुलिस ने कहा कि एक संदिग्ध व्यक्ति को हिरासत में लिया गया है। स्थानीय मीडिया ने बताया कि उसने खुद को भी चाकू मार लिया जिससे उसे गंभीर घाव हुआ है।