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 दुर्ग :  बहना ने भाई की कलाई पे प्यार बाँधा है....

रक्षा बंधन के त्यौहार में इस बार होम मेड -हैंड मेड राखियों से सजेंगी भाईयों की कलाइयां
बिहान की दीदियां कर रही हैं राखी तैयार

दुर्ग 14 जुलाई : रक्षा बंधन भाई और बहन के अपार स्नेह का प्रतीक है और जब बिहान की दीदियां अपने हाथों से रेशमी धागों, मोती,रुद्राक्षऔर अक्षत से  राखियाँ तैयार कर रही हैं तो इस स्नेह के बंधन में अपनी कला संस्कृति की महक के साथ आंचलिक  रंग भी मौजूद रहेगा। एक तरफ परंपरा को पुनर्जीवित किया जा रहा है तो दूसरी तरफ महिलाओं के लिए आजीविका के स्रोत भी बन रहे हैं। प्रदेश सरकार की कोशिशों से हम अपनी जड़ों की ओर लौट रहे हैं ,पुरानी परंपराएं फिर लौट आई हैं।दीवाली पर भी  समूह की महिलाओं द्वारा निर्मित गोबर और मिट्टी के दियों से घर आंगन रोशन किए गए थे। रक्षाबंधन में हैंड मेड राखियाँ उपलब्ध होंगी। बिहान योजना के तहत स्व सहायता समूह को महिलाओं को राखियाँ बनाने का प्रशिक्षण दिया गया साथ ही रॉ मटेरियल खरीदने के लिए राशि भी उपलब्ध कराई गई।

जिला पंचायत सीईओ श्री सच्चिदानंद आलोक ने बताया कि राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन बिहान से जुडी स्व- सहायता समूह की महिलाओं ने रक्षाबंधन के पर्व की तैयारी शुरू कर दी है। उन्होंने बताया कि जनपद पंचायत पाटन में सांकरा आजीविका केंद्र और जनपद पंचायत धमधा के ग्राम पंचायत रौदा, मुरमुदा, पथरिया के आजिविका केन्द्र (डोम) में महिलाओं द्वारा राखियाँ बनाई जा रही हैं।

गाँव के बाजार और दुकानों में 5 रुपए से लेकर 65 रुपए तक के दाम में उपलब्ध होंगी ये हैंड मेड राखियाँ- स्व सहायता समूह की महिलाओं द्वारा अपने गांव के बाजार और दुकानों के माध्यम से राखियाँ उपलब्ध कराई जाएंगी।ये राखियाँ 5 रुपए से लेकर 65 रुपए तक कि कीमत में उपलब्ध होंगी। सांकरा में कुमकुम स्व सहायता समूह की महिलाओं द्वारा अब तक राखियाँ तैयार की जा रही हैं। वहीं जनपद पंचायत धमधा में ग्राम पंचायत रौदा की समृद्धि स्व-सहायता समूह ,ग्राम पंचायत पथरिया के

साधना स्व-सहायता समूह  और ग्राम पंचायत मुरमुंदा के  श्री गणेश स्व-सहायता समूह  की महिलाओं द्वारा राखियाँ बनाने का कार्य किया जा रहा है। इन महिलाओं द्वारा अब तक 2000 से अधिक राखियाँ तैयार की जा चुकी हैं।
 
संकट को अवसर में बदलकर आत्मनिर्भर बन रही हैं महिलाएं- कोविड संकट ने हम सबको एक बात सिखाई है कि हर संकट को अवसर में तब्दील किया जा सकता है।स्वदेसी का चलन फिर से लोकप्रिय हो रहा है। स्व सहायता समूह की दीदियों ने कदम से कदम मिलाकर न सिर्फ इस संकट का सामना किया बल्कि ,मास्क, सेनिटाइजर, हर्बल साबुन,ओर्गेनिक साग सब्जियाँ,ट्री गार्ड,सीमेंट पोल ,ओर्गेनिक खाद व कीटनाशक बनाकर अपना कौशल भी सिद्ध किया है। काम के लिए इन महिलाओं को दूर जाने की जरूरत भी नहीं ,अपने गांव में अपने घरों में रह कर ही आमदनी अर्जित कर रही हैं।

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