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 नीति आयोग के सीईओ ने कहा - हम प्रवासी मजदूरों के लिए अधिक बेहतर कर सकते थे
नई दिल्ली। देशव्यापी लॉकडाउन ने सबसे ज्यादा प्रभावित प्रवासी मजदूरों को किया है। शहरों में आर्थिक गतिविधियां ठप्प होती देख इन लोगों ने पैदल की अपने मूल राज्यों को जाना शुरू कर दिया था। किसी ने पैदल रास्ता नापा तो किसी ने नदी तक को पार किया। ऐसे में इन मजदूरों की कई दुखभरी तस्वीरें सामने आईं। कोरोना वायरस लॉकडाउन के दौरान फैक्ट्री, निर्माणाधीन कार्य और दुकानें आदि बंद होने से मजदूरों को खाने और आश्रय तक की परेशानी का सामना करना पड़ा है। इस मामले में शुक्रवार को नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत ने कहा कि केंद्र और राज्यों की सरकारें प्रवासी मजदूरों की देखभाल के लिए बहुत कुछ कर सकती थीं।

सरकार के थिंक टैंक यानी नीति आयोग के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) अमिताभ कांत ने एनडीटीवी से बातचीत में कहा, जहां लॉकडाउन वायरस के प्रकोप को नियंत्रित करने में सफल रहा, वहीं प्रवासी श्रमिकों के संकट को खराब तरीके से नियंत्रित किया गया। उन्होंने कहा, 'यह समझना महत्वपूर्ण है कि प्रवासियों का मुद्दा एक चुनौती थी क्योंकि वर्षों से हमने ऐसे कानून बनाए हैं जिनसे अर्थव्यवस्था में अनौपचारिक श्रमिकों की एक बड़ी मात्रा पैदा हुई है।'

उन्होंने आगे कहा, 'यह राज्य सरकारों की जिम्मेदारी थी कि वह सुनिश्चित करें कि श्रमिकों का अच्छी तरह से ध्यान रखा जाए। यह एक चुनौती थी, जहां मुझे लगता है कि हम राज्य, स्थानीय, जिला स्तर पर हर एक श्रमिक की देखभाल के लिए बहुत बेहतर काम कर सकते थे।' इस महीने की शुरुआत में भी लाखों की संख्या में मजदूरों ने अपने गांवों में जाना शुरू किया था, वो भी पैदल। इनमें छोटे बच्चे और गर्भवति महिलाएं तक शामिल थीं। हाईवे पर छोटे-छोटे बच्चे मीलों का सफर तय करते देखे गए। सोशल मीडिया पर इससे जुड़ी कई तस्वीरें और वीडियो भी सामने आए।

दर्जनों मजदूर तो घर जाते समय रास्ते में ही बीमार पड़ गए और कई की मौत भी हो गई। किसी की मौत थकान के कारण हुई तो किसी की सड़क हादसों से। सरकार ने आलोचना होने पर फंसे हुए लोगों को घर वापस लाने और भोजन उपलब्ध कराने की व्यवस्था की घोषणा की। भारत में 25 मार्च से लॉकडाउन लगा हुआ है, जिसका अभी चौथा चरण चल रहा है। फिलहाल देश में कोरोना वायरस के मामले एक लाख 25 हजार से अधिक हैं। जबकि 3720 लोगों की मौत हो गई है।
 

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