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-अनिल बेदाग़-
फिल्म समीक्षा: कहानी रबरबैंड कीकलाकार: प्रतीक गांधी, मनीष रायसिंघन, अविका गोर, गौरव गेरा और अरुणा ईरानीडायरेक्टर: सारिका संजोतरेटिंग: 3.5 स्टार्स
बॉलीवुड में यौन शिक्षा और कंडोम को लेकर हालांकि कई फिल्में बनी हैं मगर डायरेक्टर सारिका संजोत की इस सप्ताह रिलीज हुई सोशल कॉमेडी फिल्म "कहानी रबरबैंड की" काफी यूनिक और कई मायनों में अलग कहानी है। महिला निर्देशिका ने जिस तरह एक संजीदा सब्जेक्ट को हल्के फुल्के ढंग से पेश किया है, वह देखने लायक है।
फ़िल्म के पहले हिस्से में आकाश (मनीष रायसिंघन) और काव्या (अविका गोर) की प्यारी सी प्रेम कहानी को दर्शाया गया है। दोनों की नोकझोंक के बाद दोस्ती, प्यार और फिर शादी होती है। कहानी में मोड़ उस समय आता है जब आकाश द्वारा कंडोम का इस्तेमाल करने के बावजूद काव्या गर्भवती हो जाती है। इससे दोनों की जिंदगी में उथल पुथल मच जाती है। आकाश के मन में शक पैदा होता है कि काव्या के करीबी दोस्त रोहन (रोमिल चौधरी) का इस मामले में हाथ है। आकाश उस पर बेवफाई का इल्ज़ाम लगाता है तो काव्या नाराज़ होकर और गुस्से में अपने मायके चली जाती है। बाद में जब आकाश को एहसास होता है कि खराब और एक्सपायरी डेट वाला कंडोम होने के कारण वह सुरक्षा देने में सफल नहीं हुआ था तो आकाश कंडोम बनाने वाली कंपनी पर अदालत में मुकदमा दर्ज करवाता है। यहां से फ़िल्म की एकदम नई कहानी शुरू होती है। इस केस को उसका करीबी दोस्त नन्नो (प्रतीक गांधी) लड़ता है, जो अपने पिता के मेडिकल स्टोर पर बैठता है मगर एलएलबी की डिग्री भी रखता है। जबकि बचाव पक्ष की वकील सबसे विख्यात एडवोकेट करुणा राजदान (अरूणा ईरानी) होती है, जो अब तक एक केस भी नहीं हारी। अब कोर्ट में केस कौन जीतता है, इसके लिए आपको फ़िल्म देखनी पड़ेगी। लेकिन यह कोर्ट रूम ड्रामा काफी मजेदार भी है और आंख खोलने वाला भी है।