- Home
- विशेष रिपोर्ट
-
द न्यूज़ इंडिया समाचार सेवा
आस्था, आध्यात्म और संस्कृति का त्रिवेणी संगम
रायपुर : छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले में स्थित पवित्र धार्मिक नगरी राजिम में प्रतिवर्ष माघ पूर्णिमा से महाशिवरात्रि तक पंद्रह दिनों का मेला लगता है। राजिम में तीन नदियों का संगम है इसलिए इसे त्रिवेणी संगम भी कहा जाता है, यहाँ मुख्य रूप से तीन नदियां बहती हैं, जिनके नाम क्रमशः महानदी, पैरी नदी तथा सोंढूर है। संगम स्थल पर कुलेश्वर महादेव जी विराजमान है। राज्य शासन द्वारा वर्ष 2001 से राजिम मेले को राजीव लोचन महोत्सव के रूप में मनाया जाता था, वर्ष 2005 से इसे कुम्भ के रूप में मनाया जाता रहा था, और अब 2019 से राजिम माघी पुन्नी मेला के रूप में मनाया जा रहा है।यह आयोजन छत्तीसगढ़ शासन धर्मस्व एवं पर्यटन विभाग एवं स्थानीय आयोजन समिति के तत्वाधान में होता है। मेला की शुरुआत कल्पवास से होती है। पखवाड़े भर पहले से श्रद्धालु पंचकोशी यात्रा प्रारंभ कर देते हैं पंचकोशी यात्रा में श्रद्धालु पटेश्वर, फिंगेश्वर, ब्रम्हनेश्वर, कोपेश्वर तथा चम्पेश्वर नाथ के पैदल भ्रमण कर दर्शन करते हैं तथा धुनी रमाते हैं। 101 कि॰मी॰ की यात्रा का समापन होता है और माघ पूर्णिमा से मेला का आगाज होता है। इस वर्ष 5 फरवरी माद्य पूर्णिमा से 18 फरवरी 2023 महाशिवरात्रि तक राजिम माद्यी पुन्नी मेला आयोजित किया गया है। राजिम माघी पुन्नी मेला में विभिन्न जगहों से हजारांे साधू संतों का आगमन होता है, प्रतिवर्ष हजारो की संख्या में नागा साधू, संत आदि आते हैं, तथा विशेष पर्व स्नान तथा संत समागम में भाग लेते हैं, प्रतिवर्ष होने वाले इस माघी पुन्नी मेला में विभिन्न राज्यों से लाखों की संख्या में लोग आते हैं और भगवान श्री राजीव लोचन तथा श्री कुलेश्वर नाथ महादेव जी के दर्शन करते हैं और अपना जीवन धन्य मानते हैं। लोगो में मान्यता है कि भगवान जगन्नाथपुरी जी की यात्रा तब तक पूरी नही मानी जाती, जब तक भगवान श्री राजीव लोचन तथा श्री कुलेश्वर नाथ के दर्शन नहीं कर लिए जाते, राजिम माघी पुन्नी मेला का अंचल में अपना एक विशेष महत्व है।
राजिम अपने आप में एक विशेष महत्व रखने वाला एक छोटा सा शहर है। राजिम गरियाबंद जिले का एक तहसील है। प्राचीन समय से राजिम अपने पुरातत्वों और प्राचीन सभ्यताओं के लिए प्रसिद्ध है। राजिम मुख्य रूप से भगवान श्री राजीव लोचन जी के मंदिर के कारण प्रसिद्ध है। राजिम का यह मंदिर आठवीं शताब्दी का है। यहाँ कुलेश्वर महादेव जी का भी मंदिर है। जो संगम स्थल पर विराजमान है। राजिम माघी पुन्नी मेला प्रतिवर्ष माघ पूर्णिमा से महाशिवरात्रि तक चलता है। इस दौरान प्रशासन द्वारा विविध सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजन होते हैं। -
द न्यूज़ इंडिया समाचार सेवारायपुर : छत्तीसगढ़ की माटी में खुशबू में समाहित लोक कला एवं संस्कृति को आगे लाने के साथ राज्य सरकार छत्तीसगढ़िया खेलों को भी आगे बढ़ाने का काम किया जा रहा है। छत्तीसगढ़िया ओलंपिक का आयोजन पहली बार इसी मंशा से किया गया, जिसे भारी जनसमर्थन देखने को मिला। मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल द्वारा 6 अक्टूबर को इसका शुभारंभ किया गया, जो अब अंतिम चरणों में है। 10 जनवरी को इसका समापन हो जाएगा। छह चरणों में आयोजित छत्तीसगढ़िया आलंपिक प्रतिस्पर्धा में लोगों का शामिल होने का जुनून देखते ही बनता है। इस ओलंपिक की खास बात यह रही कि महिलाओं ने इसमें बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। इनमें ऐसी महिलाएं भी शामिल है, जो शादी के बाद ससुराल चली गई थी, उन्हें भी अपनी जड़ों से जुड़ने का मौका इस ओलंपिक ने दिया है। ये महिलाएं विभिन्न स्तरों पर आयोजित प्रतियोगिताओं में अप्रत्याशित रूप से विजेता बनकर उभरीं।
छत्तीसगढ़िया ओलंपिक में बच्चे और युवाओं के साथ खेल मैदान से नाता तोड़ चुके बुजुर्गों ने भी पूरे जोशो-खरोश के साथ भाग लिया और अपनी खेल प्रतिभा और खेल कौशल का प्रदर्शन कर लोगों को दांतों तले अंगुलियां दबाने को मजबूर कर दिया। इस ओलंपिक में छह साल की बच्ची से लेकर 65 साल के बुजुर्ग भी शामिल हो रहे हैं। ये खिलाड़ी ग्रामीण स्तर से अपनी प्रतिभा को साबित करते हुए संभाग स्तर पर विजेता बनकर उभरे और अब राज्य स्तरीय स्पर्धाओं में अपनी प्रतिभा का जौहर दिखा रहे हैं।
उभर कर आये कई प्रतिभावान खिलाड़ी-
छत्तीसगढ़िया ओलंपिक प्रतियोगिता के माध्यम से रायपुर की नबोनीता बैरा को बिलासपुर खेल अकादमी में प्रशिक्षण का सुनहरा मौका मिला है। बुजुर्गों ने भी इन खेलों में अपना दम-खम दिखाया। फुगड़ी में हरदी ग्राम पंचायत की 65 वर्षीय श्रीमती आशोबाई ने 01 घण्टा 31 मिनट 58 सेकेण्ड तक फुगड़ी खेलकर अपने जज्बे से 40 वर्ष अधिक आयुवर्ग में जीत हासिल की। दूसरे स्थान पर रही कोरबा जिले के पाली विकासखंड की साहिन बाई ने आशोबाई को 01 घण्टा 31 मिनट 53 सेकण्ड तक कड़ी टक्कर दी और दूसरा स्थान प्राप्त किया। वहां मौजूद दर्शकों ने इस आयु वर्ग के खिलाड़ियों को पूरे जोशो-खरोश के साथ खेलते देखकर उनका खूब उत्साहवर्धन किया। दर्शकों ने कहा कि इस आय वर्ग के खिलाड़ियों को देखना एक सुखद अनुभव कराता है और अपनी खेल और परंपराओं के प्रति उनका समर्पण को भी दिखाता है। यहां आये लोगों ने छत्तीसगढ़ सरकार की इस कदम की सराहना करते हुए इसे आगे भी जारी रखने की बात कही।
इस ओलंपिक में कई खिलाड़ी अपनी शारीरिक कमियों और विपरीत परिस्थितियों के बावजूद अपने पूरे दमखम के साथ शामिल होकर अपने आप को साबित भी किया। ऐसी ही एक कहानी है बस्तर केे बकावंड ब्लाक के ग्राम सरगीपाल की रहने वाली गुरबारी की है। उनकी बाएं हाथ की हथेली नहीं है, लेकिन बावजूद उन्होंने राजीव युवा मितान क्लब स्तर पर कई खेलों में भाग लिया और सामूहिक खेल कबड्डी और खो-खो में जीत भी दर्ज की।
ग्रामीण क्षेत्रों में 25 लाख और नगरों में 1.30 लाख लोगों की रही भागीदारी-
छत्तीसगढ़िया ओलंपिक की राज्य स्तरीय आयोजन में प्रदेश के विभिन्न जिलों के लगभग 1900 प्रतिभागी शामिल हो रहे हैं। इस खेल आयोजन में ग्रामीण क्षेत्रों के 25 लाख से ज्यादा और नगरीय क्षेत्रों में एक लाख 30 हजार से ज्यादा लोगों की भागीदारी रही। राज्य स्तरीय स्पर्धाएं राजधानी रायपुर के चार स्थानों पर आयोजित हो रही हैं। बलबीर सिंह जुनेजा इनडोर स्टेडियम में फुगड़ी, बिल्लस, भंवरा, बाटी और कबड्डी, छत्रपति शिवाजी महाराज आउटडोर स्टेडियम में संखली, रस्साकशी, लंगडी, पिट्ठुल, गेंडी दौड़, माधव राव सप्रे उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में खो-खो और गिल्ली डंडा और स्वामी विवेकानंद स्टेडियम कोटा में लंबी कूद और 100 मीटर दौड़ खेलों की प्रतिस्पर्धाएं आयोजित की गई।
छत्तीसगढ़िया ओलंपिक में रही प्रदेश के 14 पारंपरिक खेलों की धूम-
मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल की पहल पर छत्तीसगढ़ में पारंपरिक खेलों को बढ़ावा देेने के उद्देश्य के छत्तीसगढ़िया ओलंपिक का आयोजन हो रहा है। पारंपरिक खेलों में शामिल होने को लेकर लोगों का उत्साह देखते ही बनता है। घरेलू महिलाएं, बच्चे और बुजुर्ग भी इस ओलंपिक में बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं। छत्तीसगढ़िया ओलंपिक में 14 खेलों को शामिल किया गया है। इसके तहत दलीय खेल में गिल्ली डंडा, पिट्टुल, संखली, लंगड़ी दौड़, कबड्डी, खो-खो, रस्साकसी, बाटी (कंचा) और एकल खेल में बिल्लस, फुगड़ी, गेड़ी दौड़, भंवरा, 100 मी. दौड़ तथा लंबी कूद की प्रतिस्पर्धाएं आयोजित की जा रही हैं। छह चरणों में आयोजित किए जा रहे छत्तीसगढ़िया ओलंपिक में लेवल-01 राजीव युवा मितान क्लब, लेवल- 02 जोन स्तर, लेवल-03 विकासखंड एवं नगरीय क्लस्टर स्तर, लेवल-04 जिला स्तर, लेवल-05 संभाग स्तर पर आयोजित होने के बाद लेवल-06 में राज्य स्तर पर प्रतियोगिताएं हो रही है।
छत्तीसगढ़िया ओलंपिक के आयोजन से गांव, नगर, कस्बों में खेलों को लेकर उत्साहजनक वातावरण तैयार हुआ। छत्तीसगढ़ में राज्य सरकार जिस तरह से छत्तीसगढ़ी परंपरा विरासत और संस्कृति के संरक्षण का प्रयास कर रही है। उसी तरह हमारे ग्रामीण अंचलों की गलियों में खेले जाने वाले पारंपरिक खेलों को भी सहेज रही हैं। प्रतिभागियों का उत्साह और हौसला बढ़ाने के लिए खासी भीड़ भी जुटी। लोग अपने पुराने दिनों की यादों को ताजा कर रहे हैं। राज्य सरकार ने इस आयोजन के माध्यम से ऐसे लोगों को अपना खेल हुनर दिखाने का अवसर दिया है, जो खुद की खेल प्रतिभा से अंजान थे। -
द न्यूज़ इंडिया समाचार सेवा
रायपुर : छेरछेरा पर्व पौष पूर्णिमा के दिन छत्तीसगढ़ में बड़े ही धूमधाम, हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है। इसे छेरछेरा पुन्नी या छेरछेरा तिहार भी कहते हैं। इसे दान लेने-देने पर्व माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन दान करने से घरों में धन धान्य की कोई कमी नहीं रहती। इस दिन छत्तीसगढ़ में बच्चे और बड़े, सभी घर-घर जाकर अन्न का दान ग्रहण करते हैं। युवा डंडा नृत्य करते हैं।
छत्तीसगढ़ की संस्कृति के संरक्षण और संवर्धन के लिए शासन द्वारा बीते चार वर्षों के दौरान उठाए गए महत्वपूर्ण कदमों के क्रम में स्थानीय तीज-त्यौहारों पर भी अब सार्वजनिक अवकाश दिए जाते हैं। इनमें छेरछेरा (मां शाकंभरी जयंती) तिहार भी शामिल है। जिन अन्य लोक पर्वों पर सार्वजनिक अवकाश दिए जाते हैं वे हैं हरेली, तीजा, मां कर्मा जयंती, विश्व आदिवासी दिवस और छठ। अब राज्य में इन तीज-त्यौहारों को व्यापक स्तर पर मनाया जाता है, जिसमें शासन की भी भागीदारी होती है। इन पर्वों के दौरान महत्वपूर्ण शासकीय आयोजन होते है तथा महत्वपूर्ण शासकीय घोषणाएं भी की जाती है। छेरछेरा पुन्नी के दिन स्वयं मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल भी परम्परा का निर्वाह करते हुए छेरछेरा मांगते हैं।छत्तीसगढ़ का लोक जीवन प्राचीन काल से ही दान परम्परा का पोषक रहा है। कृषि यहाँ का जीवनाधार है और धान मुख्य फसल। किसान धान की बोनी से लेकर कटाई और मिंजाई के बाद कोठी में रखते तक दान परम्परा का निर्वाह करता है। छेर छेरा के दिन शाकंभरी देवी की जयंती मनाई जाती है। ऐसी लोक मान्यता है कि प्राचीन काल में छत्तीसगढ़ में सर्वत्र घोर अकाल पड़ने के कारण हाकाकार मच गया। लोग भूख और प्यास से अकाल मौत के मुँह में समाने लगे। काले बादल भी निष्ठुर हो गए। नभ मंडल में छाते जरूर पर बरसते नहीं। तब दुखीजनों की पूजा-प्रार्थना से प्रसन्न होकर अन्न, फूल-फल व औषधि की देवी शाकम्भरी प्रकट हुई और अकाल को सुकाल में बदल दिया। सर्वत्र खुशी का माहौल निर्मित हो गया। छेरछेरा पुन्नी के दिन इन्हीं शाकंभरी देवी की पूजा-अर्चना की जाती है। यह भी लोक मान्यता है कि भगवान शंकर ने इसी दिन नट का रूप धारण कर पार्वती (अन्नपूर्णा) से अन्नदान प्राप्त किया था। छेरछेरा पर्व इतिहास की ओर भी इंगित करता है।
माई कोठी के धान ला हेर हेरा
छेरछेरा पर बच्चे गली-मोहल्लों, घरों में जाकर छेरछेरा (दान) मांगते हैं। दान लेते समय बच्चे ‘छेर छेरा माई कोठी के धान ला हेर हेरा’ कहते हैं और जब तक गृहस्वामिनी अन्न दान नहीं देंगी तब तक वे कहते रहेंगे- ‘अरन बरन कोदो दरन, जब्भे देबे तब्भे टरन’। इसका मतलब ये होता है कि बच्चे कह रहे हैं, मां दान दो, जब तक दान नहीं दोगे तब तक हम नहीं जाएंगे।
छेरछेरा पर्व में अमीर गरीब के बीच दूरी कम करने और आर्थिक विषमता को दूर करने का संदेश छिपा है। इस पर्व में अहंकार के त्याग की भावना है, जो हमारी परम्परा से जुड़ी है। सामाजिक समरसता सुदृढ़ करने में भी इस लोक पर्व को छत्तीसगढ़ के गांव और शहरों में लोग उत्साह से मनाते हैं। -
द न्यूज़ इंडिया समाचार सेवा
कोदो-कुटकी उगाने वाले किसान समृद्धि की ओर
किसानों को कोदो से होने लगी करोड़ों की आय
बीज विक्रय से आमदनी में चार गुना इजाफा
रायपुर : मिलेट को बढ़ावा देने के मामले में छत्तीसगढ़ को मिल चुका है देश के सर्वश्रेष्ठ उदीयमान राज्य का सम्मानछत्तीसगढ़ मिलेट मिशन के चलते राज्य में कोदो, कुटकी और रागी (मिलेट्स) की खेती को लेकर किसानों का रूझान बहुत तेजी से बढ़ा है। पहले औने-पौने दाम में बिकने वाला मिलेट्स अब छत्तीसगढ़ राज्य में अच्छे दामों में बिकने लगा है। मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल की विशेष पहल के चलते राज्य में मिलेट्स की समर्थन मूल्य पर खरीदी होने से किसानों को करोड़ों रूपए की आय होने लगी है। बीते सीजन में किसानों ने समर्थन मूल्य पर 34298 क्विंटल मिलेट्स 10 करोड़ 45 लाख रूपए में बेचा था। छत्तीसगढ़ देश का इकलौता राज्य है, जहां कोदो, कुटकी और रागी की समर्थन मूल्य पर खरीदी और इसके वैल्यू एडिशन का काम भी किया जा रहा है। कोदो-कुटकी की समर्थन मूल्य पर 3000 प्रति क्विंटल की दर से तथा रागी की खरीदी 3377 रूपए प्रति क्विंटल की दर से खरीदी की जा रही है।
शासन की महत्वाकांक्षी योजना राजीव गांधी किसान न्याय योजना एवं मिलेट मिशन किसानों के लिए वरदान साबित हो रही है। छत्तीसगढ़ राज्य लघु वनोपज संघ द्वारा वर्ष 2021-22 में 5,273 टन मिलेट जिसका मूल्य रू. 16.03 करोड़ का समर्थन मूल्य पर क्रय किया गया है। वर्ष 2022-23 में 13,005 टन मिलेट जिसका मूल्य रू. 39.60 करोड़ का समर्थन मूल्य पर क्रय करने का लक्ष्य है।
देश के कई आदिवासी इलाकों में मोटे अनाज का काफी समय से प्रयोग किया जाता रहा है। यह स्वास्थ्य की दृष्टि से बहुत फायदेमंद है, इसलिए अब दूसरे इलाकों में भी इन अनाज का काफी इस्तेमाल किया जा रहा है। एक्सपर्ट के मुताबिक कोदो कुटकी को प्रोटीन व विटामिन युक्त अनाज माना गया है। इसके सेवन से शुगर बीपी जैसे रोग में लाभ मिलता है. कोदो एक मोटा अनाज है, जिसे अंग्रेजी में कोदो मिलेट या काउ ग्रास के नाम से जाना जाता है। कोदो के दानों को चावल के रूप में खाया जाता है और स्थानीय बोली में भगर के चावल के नाम पर इसे उपवास में भी खाया जाता है। बस्तर के आदिवासी संस्कृति व खानपान में कोदो कुटकी रागी जैसे फसलों का महत्वपूर्ण स्थान है।
छत्तीसगढ़ राज्य बीज प्रमाणीकरण संस्था के सहयोग एवं मार्गदर्शन से किसान कोदो के प्रमाणित बीज का उत्पादन कर अच्छा खासा मुनाफा अर्जित करने लगे हैं। बीते एक सालों में प्रमाणित बीज उत्पादक किसानों की संख्या में लगभग 5 गुना और इससे होने वाली आय में चार गुना की वृद्धि हुई है। वर्ष 2021-22 में राज्य के 11 जिलों के 171 कृषकों द्वारा 3089 क्विंटल प्रमाणित बीज का उत्पादन किया गया, जिसे बीज निगम ने 4150 रूपए प्रति क्विंटल की दर से किसानों से क्रय कर उन्हें एक करोड़ 28 लाख 18 हजार रूपए से अधिक की राशि भुगतान किया है। राज्य के किसानों द्वारा उत्पादित प्रमाणित बीज, सहकारी समितियों के माध्यम से बोआई के लिए प्रदाय किया जा रहा है।
बीज प्रमाणीकरण संस्था के अधिकारियों ने बताया कि वर्ष 2020-21 में राज्य में 7 जिलों के 36 किसानों द्वारा मात्र 716 क्विंटल प्रमाणित बीज का उत्पादन किया गया था। इससे उत्पादक किसानों को 32 लाख 88 हजार रूपए की आमदनी हुई थी, जबकि 2021-22 में कोदो बीज उत्पादक किसानों की संख्या और बीज विक्रय से होने वाला लाभ कई गुना बढ़ गया है। बीते तीन वर्षो में कोदो प्रमाणित बीज उत्पादक किसानों ने एक करोड़ 65 लाख 18 हजार 633 रूपए का बीज, छत्तीसगढ़ बीज एवं विकास निगम को विक्रय किया है।
अधिकारियों ने बताया कि ऐसी कृषि भूमि जहां धान का उत्पादन नाममात्र उत्पादन होता है, वहां कोदो की खेती किया जाना ज्यादा लाभकारी है। कोदो की खेती की कम पानी और कम खाद की जरूरत पड़ती है। जिसके फलस्वरूप इसकी खेती में लागत बेहद कम आती है और उत्पादक कृषकों को लाभ ज्यादा होता है। उन्होंने बताया कि वर्ष 2019-20 में राज्य में मात्र 103 क्विंटल प्रमाणित बीज उत्पादन हुआ था। मिलेट्स मिशन लागू होने के बाद से छत्तीसगढ़ राज्य बीज प्रमाणीकरण संस्था द्वारा अन्य शासकीय संस्थानों से समन्वय कर कोदो बीज उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए निरंतर प्रयासरत है, जिससे बीज उत्पादन में लगातार वृद्धि हो रही है।
गौरतलब है कि मिलेट्स की खेती को बढ़ावा देने के मामले में छत्तीसगढ़ राज्य को राष्ट्रीय स्तर का पोषक अनाज अवार्ड 2022 सम्मान भी मिल चुका है। राज्य में मिलेट्स उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए इसको राजीव गांधी किसान न्याय योजना में शामिल किया गया है। मिलेट्स उत्पादक कृषकों को प्रोत्साहन स्वरूप प्रति एकड़ के मान से 9 हजार रूपए की आदान सहायता भी दी जा रही है।
राज्य में कोदो, कुटकी और रागी की खेती को राज्य में लगातार विस्तारित किया जा रहा है, जिसके चलते राज्य में इसकी खेती का रकबा 69 हजार हेक्टेयर से बढ़कर एक लाख 88 हजार हेक्टेयर हो गया है। मिलेट की खेती को प्रोत्साहन, किसानों को प्रशिक्षण, उच्च क्वालिटी के बीज की उपलब्धता तथा उत्पादकता में वृद्धि को ध्यान में रखते हुए राज्य में मिलेट मिशन संचालित है। 14 जिलों ने आईआईएमआर हैदराबाद के साथ छत्तीसगढ़ राज्य लघु वनोपज संघ के प्रयास से मिलेट मिशन के अंतर्गत त्रिपक्षीय एमओयू भी हो चुका है। छत्तीसगढ़ मिलेट मिशन के तहत मिलेट की उत्पादकता को प्रति एकड़ 4.5 क्विंटल से बढ़ाकर 9 क्विंटल यानि दोगुना किए जाने का भी लक्ष्य रखा गया है।
-
द न्यूज़ इंडिया समाचार सेवा
किसानों के लिए चाय-कॉफी की खेती बन रही बेहतर आय का जरिया
रायपुर : छत्तीसगढ़ राज्य अपनी धान की दुर्लभ प्रजातियों के लिए विश्व में प्रसिद्ध है। बड़़े पैमाने पर धान की खेती होने के कारण राज्य को धान का कटोरा कहा जाता है। प्राकृतिक संपदा से भरपूर प्रदेश में नदियां, जंगल, पहाड़ और पठार भी काफी भू-भाग में हैं। इनमें पठारी भूमि में धान का उत्पादन नहीं हो पाने के कारण अर्थव्यवस्था में उनका योगदान सीमित हो गया था। इन सबके बावजूद जशपुर जिले के पठारी क्षेत्र में चाय और बस्तर में कॉफी की खेती ने संभावानाओं के नए द्वार खोले हैं। कृषि वैज्ञानिकों ने यहां की जलवायु के अध्ययन के आधार पर संभावनाओं को नई दिशा दी है।मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल की पहल से छत्तीसगढ़ शासन की तरफ से टी-कॉफी बोर्ड गठन का फैसला इसी दिशा में अहम कदम है। जिसके तहत राज्य में 10-10 हजार एकड़ में चाय और कॉफी की खेती कराने का लक्ष्य तय किया गया है। जशपुर जिला में चाय की खेती सफलतापूर्वक की जा रही हैं। यहां शासन ने जिला खनिज न्यास, वन विभाग, डेयरी विकास योजना और मनरेगा की योजनाओं के बीच समन्वय स्थापित करते हुए कांटाबेल, बालाछापर, सारुडीह के 80 एकड़़ भूमि में चाय बागान विकसित हो रहे हैं।
कुछ साल बाद जब बागानों से चाय का उत्पादन शुरू होगा तो प्रति एकड़़ 2 लाख रुपये सालाना तक का किसान लाभ कमा सकेंगे। यह धान की खेती से कहीं अधिक लाभकारी साबित होगा। इसी तरह बस्तर के दरभा, ककालगुर और डिलमिली में कॉफी की खेती विकसित हो चुकी है। यहां कॉफी की दो प्रजातियां अरेबिका और रूबस्टा कॉफी लगाए गए हैं। बस्तर की कॉफी की गुणवत्ता ओडिसा और आंध्रप्रदेश के अरकू वैली में उत्पादित किए जा रहे कॉफी के समान है। कॉफी उत्पादन के लिए समुद्र तल से 500 मीटर की ऊंचाई जरूरी है। बस्तर के कई इलाकों की ऊंचाई समुद्र तल से 600 मीटर से ज्यादा है जहां ढलान पर खेती के लिए जगह उपलब्ध है।
100 एकड़ जमीन में कॉफी उत्पादन का प्रयोग सफल रहा है तथा बस्तर कॉफी नाम से इसकी ब्रांडिंग भी हो रही है। उद्यानिकी विभाग किसानों को काफी उत्पादन का प्रशिक्षण भी दे रहा है। चाय-कॉफी की खेती की विशेषता यह है कि इसके लिए हर साल बीज नहीं डालना पड़़ता किसान कॉफी की खेती से हर साल 50 हजार से 80 हजार प्रति एकड़ आमदनी कमा सकते है। धान की तरह बहुत अधिक पानी की भी आवश्यकता नहीं पड़ती। केवल देखभाल करने की आवश्यकता रहती है।वनोपजों के मामले में प्रदेश काफी आगे है तथा पठारी क्षेत्रों में चाय-कॉफी के उत्पादन से ग्रामीणों के लिए रोजगार और अर्थाेपार्जन के नए अवसर सृजित हो रहे हैं। सरकार की ओर से टी-कॉफी बोर्ड बनाने पहल को सही दिशा में उठाया गया कदम माना जा सकता है। उम्मीद की जानी चाहिए कि कृषि वैज्ञानिकों के अध्ययन के आधार पर सरकार की तरफ से हुई इस पहल के सार्थक परिणाम सामने आएंगे और राज्य के किसानों और उद्यमियों की संपन्नता में चाय-कॉफी ताजगी लाने का काम करेगी। -
तारण प्रकाश सिन्हा जी के फेसबुक वॉल सेबगिया के फूल ल सबो भौंरा जुठारे हे साहेब।खुद भीतर उतर जाओ, सत्य वहीं पर बसताकहां ले आरुग फूल लान के चढावंव साहेब।।गाय के गोरस ल बछरू जुठारे हे ।कहां के आरूग गोरस लानव साहेब।।कोठी के अन्न ल सुरही जुठारे हे।कहां के आरुग चाउर के तस्मई बनानंव साहेब।।नदिया के पानी ल मछरी जुठारे हे ।कहा के आरुग जल मय लानव साहेब ।।आरूग हवे हमर हिरदय के भाव साहेब ।ओही ल सरधा से तोर चरन म चढावंव साहेब ।।
फूलों को भौरे ने झूठा कर दिया है, दूध को बछड़े ने, अनाज को कीटों ने, नदी के पानी को मछलियों ने...। तो ऐसा क्या है जिसे कोई जूठा न कर सका ? जो पवित्र है ?वह हृदय के भाव ही हैं, उसे ही गुरु के चरणों में चढ़ाना ठीक होगा।ये पंथी-गीत के बोल हैं, उसी के भाव हैं।
गुरु की अर्चना का यह तरीका बाबा गुरु घासीदास जी द्वारा बताए गए धर्म के मार्ग जितना ही सरल है। उन्हीं के उपदेशों से हृदय में उत्पन्न होने वाले भावों को उन्हीं को अर्पित कर देने से अच्छा और क्या हो सकता है ? उन्होंने जिन भावों से हृदय को ओत-प्रोत कर दिया है, वे दया, करुणा, ममता, प्रेम, परस्परता के भाव हैं।
बिरले ही संत होंगे जिन्होंने इतनी सहजता के साथ लोगों को बता दिया कि वास्तव में धर्म क्या है। गुरु घासीदास ने कहा- मनखे-मनखे एक समान। इस एक वाक्य में न कोई अलंकार है, न कोई चमत्कार। सीधी-साधी भाषा है, और सीधे-साधे शब्द। लेकिन यह सदियों के आध्यात्मिक अनुभवों का निचोड़ है। जिस बात को वसुधैव कुटुंबकम् कहकर नहीं समझाया जा सका, उसे गुरु घासीदास ने लोक को उसी की बोली में समझा दिया। उन्होंने धर्म के आचारण के बहुत सरल सूत्र दिए, सत्य पर भरोसा कीजिए, सत्य का आचरण कीजिए, प्राणियों के साथ हिंसा मत कीजिए, नशा-व्याभिचार मत कीजिए।
गुरु घासीदास जी ने उपदेश दिया कि जाति-पाति के प्रपंच में मत पड़ो। जिसने इस सृष्टि को बनाया है, वही सतनाम है, उसी को पूजो, उसी की आराधना करो। वे जो कह रहे थे, वह इतना आसान और ग्राह्य था कि देखते ही देखते लाखों लोग उनके अनुयायी हो गए। उनके संदेशों की खुशबू न केवल छत्तीसगढ़ की बल्कि देश की सीमाओं को भी लांघकर बिखर गई। गुरु घासीदास ऐसे समय में हुए, जब उनकी सबसे ज्यादा जरूरत थी। उन्होंने मोक्ष का कोई मंत्र नहीं बताया, स्वर्ग की सीढ़ियां नहीं दिखाई, कहा कि खुद से खुद को मुक्त कर लो, फिर खुद भीतर उतर जाओ, सत्य वहीं पर बसता है। वहीं पर सतनाम है।बाबा गुरु घासीदास जी को उनकी जयंती पर शत-शत वंदन -
द न्यूज़ इंडिया समाचार सेवा
सहकारी शक्कर कारखानों इथेनॉल प्लांट की स्थापनागन्ना किसानों के लिए न्याय योजनाप्राथमिक कृषि साख सहकारी समितियों का पुनर्गठनसहकारी अधिनियम का संशोधन एवं सरलीकरणनवगठित प्राथमिक साख सहकारी समितियों में गोदाम-सह-कार्यालय निर्माणबस्तर एवं सरगुजा संभाग के दूरस्थ अंचलों में बैकिंग सुविधा का विस्तार
रायपुर : मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने सरकार गठन के एक घंटे के भीतर प्रदेश के किसानों के ऋण माफी की घोषणा की। मुख्यमंत्री की घोषणा से ऐसे कृषक जो वर्षों से डिफाल्टर हो जाने के कारण ऋण नहीं ले पा रहे थे, उन्हें ऋण की पात्रता मिल गई। प्रदेश में सहकारी समितियों के माध्यम से 13 लाख 46 हजार 569 किसानों का 5261.43 करोड़ रूपए का ऋण माफ कर उन्हें आर्थिक रूप से सुदृढ़ बनाने की दिशा में पहला कदम बढ़ाया।
मुख्यमंत्री की पहल पर सहकारिता के क्षेत्र में पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) मोड से इथेनॉल प्लांट की स्थापना, सम्पूर्ण देश में प्रथम उदाहरण है। इसके लिए सभी प्रक्रिया लॉक डाउन अवधि में सम्पादित की गई। प्रदेश के सहकारी शक्कर कारखाना कवर्धा में प्रथम इथेनॉल प्लांट की स्थापना पीपीपी मोड में करने के लिए इन्वेस्टर्स मीट आयोजित कर इच्छुक निवेशकों के पक्ष को चुना गया। इसके बाद आरएफक्यू, आरएफपी की प्रक्रिया पूर्ण कर निवेशक का चयन किया गया। चयनित निवेशक द्वारा 80 किलो लीटर प्रति दिन क्षमता (केएलपीडी) की क्षमता से कारखाना लगाया जा रहा है, जिससे कारखाने को प्रतिवर्ष 9.22 करोड़ रूपए लायसेंस फीस के रूप में प्राप्त होगा। चयनित संस्था और कारखाने के मध्य 29 दिसम्बर 2022 को अनुबंध निष्पादित किया गया। पीपीपी मॉडल इथेनॉल प्लांट की स्थापना देश में पहला उदाहरण है। इथेनॉल संयंत्र की स्थापना से क्षेत्र में प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रोजगार के अवसर उत्पन्न होंगे और क्षेत्र में आर्थिक समृद्धि का आधार मजबूत होगा।मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल के कुशल नेतृत्व में राज्य बनने के बाद प्रदेश के चारों कारखानों से शक्कर के निर्यात के लिए प्रथम बार कार्रवाई की गई। चारों शक्कर कारखानों से 30.18 करोड़ रूपए की 14 हजार 302 मीट्रिक टन शक्कर का निर्यात भारत सरकार से प्राप्त निर्यात कोटे के अनुसार किया गया। इस निर्यात के फलस्वरूप भारत सरकार से राज्य को 10448 रूपए प्रति मीट्रिक टन की मान से 14.95 करोड़ रूपए की सब्सिडी स्वीकृत हुई।मुख्यमंत्री द्वारा प्रदेश में शुरू की गई किसान न्याय योजना से गन्ना किसानों को भी जोड़ा गया। प्रदेश के गन्ना किसानों के लिए न्याय योजना के अंतर्गत 93.75 रूपए प्रति क्विंटल की मान से 34,292 किसानों को 74.24 करोड़ रूपए भुगतान किया गया। इस प्रकार प्रदेश में गन्ना किसानों को गन्ना पेराई सीजन 2019-20 में 355 रूपए प्रति क्विंटल के मान से गन्ना का मूल्य प्राप्त हुआ। वर्ष 2020-21 में 79.50 रूपए प्रति क्विंटल की मान से 84.85 करोड़ रूपए की राशि का भुगतान किया गया।
राज्य गठन के समय कुल 1333 प्राथमिक कृषि साख सहकारी समितियां संचालित थी। राज्य में प्राथमिक सहकारी समितियों के माध्यम से किसानों को ऋण वितरण, खाद-बीज, दवाईयां आदि का वितरण किया जाता है। इन सोसायटियों का गठन 1971-72 के मध्य हुआ था। इनके गठन के समय राज्य की जनसंख्या एवं भौगोलिक स्थिति भिन्न थी। राज्य बनने के 20 वर्षों के बाद जनसंख्या में वृद्धि होने के साथ-साथ कृषि रकबे में वृद्धि होने से मांग एवं किसानों की सुलभता को देखते हुए सरकार ने इन समितियों के पुनर्गठन का निर्णय लिया। लॉक डाउन अवधि में जैसी विषम परिस्थितियों में 1333 समितियों का पुनर्गठन कर 725 नवीन समितियों का गठन, पंजीयन किया गया। नवगठित 725 प्राथमिक साख सहकारी समितियों के के माध्यम से किसानों को खाद, बीज एवं ऋण की उपलब्धता सुगमता से की जा रही है। वर्तमान में प्रदेश में 2058 प्राथमिक कृषि साख सहकारी समितियां संचालित हैं।मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल की सरकार द्वारा सहकारी अधिनियम का संशोधन एवं सरलीकरण किया गया है। सहकारी सदस्यों के हित में प्रावधान संशोधित किए गए हैं। सहकारी समितियों के पंजीयन के लिए न्यूनतम आवश्यक सदस्यों की संख्या 20 से घटाकर 10 की गई है। सहकारी समितियों के पंजीयन की अवधि 90 दिवस से घटाकर 45 दिवस किया गया है। सहकारी समितियों की उपविधियों में संशोधन की अवधि 60 दिवस से घटाकर 45 दिवस कर दिया गया है। न्यायालयीन प्रकरणों के त्वरित निराकरण के लिए संभागीय संयुक्त पंजीयकों को प्रथम अपील के अधिकार दिए गए हैं। अधिनियम संशोधन के पूर्व सम्पूर्ण राज्य के प्रथम अपील के प्रकरण पंजीयक द्वारा सुने जाते थे, जिससे दूरस्थ अंचल के संस्थाओं के जुड़े कृषक सदस्यों को कठिनाई होती थी। संशोधन से किसानों को उनके नजदीक सुलभ न्याय दिलाया जाना सुनिश्चित कराया गया है।
छत्तीसगढ़ में ग्रामीण अधोसंरचना विकास निधि (आरआईडीएफ) योजनांतर्गत नवगठित 725 नवीन समितियों में आधारभूत संरचना प्रदाय किए जाने के उद्देश्य से गोदाम सह कार्यालय निर्माण की योजना तैयार की गई। इस योजना में प्रत्येक सोसायटी में 25.56 लाख रूपए की दर से 725 समितियों में 185.31 करोड़ रूपए की लागत से गोदाम सह कार्यालय का निर्माण किया जाएगा। सभी समितियों के लिए जमीन आबंटन का कार्य पूर्ण कर लिया गया है। टेण्डर आदि प्रक्रिया होने के बाद 514 समितियों में कार्यादेश जारी किया जा चुका है और 55 समितियों में कार्य प्रारंभ हो चुका है। माह मार्च 2023 तक सभी समितियों में गोदाम सह कार्यालय पूर्ण किए जाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। गोदाम सह कार्यालय के निर्माण से नवगठित समितियों में सुचारू रूप से खाद, बीज, ऋण वितरण, धान खरीदी का कार्य सुगमता से किया जा सकेगा।
मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल द्वारा बस्तर और सरगुजा संभाग में दूरस्थ अंचल के ग्रामीणों पर सुलभ बैंकिंग सुविधा उपलब्ध कराने के उद्देश्य से निर्देश दिए गए हैं। निर्देश के पालन में बस्तर और सरगुजा संभाग में कार्ययोजना बनाकर सहकारी बैंकिंग की सुविधा का विस्तार किया जा रहा है। बस्तर संभाग में 7 स्थानों- नानगुर, बजावण्ड, दहीकोंगा, धनोरा, बडे राजपुर, जेपरा-हल्बा, अमोड़ा और सरगुजा संभाग में तीन स्थानों-लुण्ड्रा, देवनगर एवं पटना में नवीन शाखा खोले जाने की स्वीकृति प्रदान की जा चुकी है। साथ ही बस्तर संभाग में प्रथम चरण में 6 स्थानों-बड़े किलेपाल, मर्दापाल, अमरावती, बड़े डोंगर, कोयलीबेड़ा एवं मद्देड़ में एटीएम और तीन स्थानों-नदीसागर, कुटरू एवं बेनूर में मोबाइल बेन लगाई जा रही है। इसी प्रकार सरगुजा संभाग के 5 स्थानों- राजापुर, गोविंदपुर, पोंड़ी, राजौली, केल्हारी में एटीएम लगाए जा रहे हैं। -
द न्यूज़ इंडिया समाचार सेवा
स्वदेशी की ताकत से शुरू हुआ स्वरोजगार का सफर
रायपुर : देशभर में महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए चल रह प्रयासों के साथ कदम मिलते हुए छत्तीसगढ़ ने परंपरागत दृष्टिकोण से हटकर एक नयी दृष्टि से काम किया है, जिसमें महिलाओं को प्रकृति द्वारा प्रदत्त रचनात्मक क्षमता के उन्नयन के साथ-साथ उनकी सृजन-शक्ति को स्थानीय संसाधनों के साथ जोड़ा गया है। महिलाओं की सामाजिक और आर्थिक स्थिति के अंतरसंबंधों पर आधारित यह दृष्टिकोण उनके आर्थिक सशक्तिकरण के लिए नये क्षेत्रों के अनुसंधान पर जोर देता है। छत्तीसगढ़ सरकार ने इस ओर कदम बढ़ाते हुए सुराजी गांव योजना के तहत गौठानों में महिलाओं के स्वावलंबन की नई राहें तैयार की वहीं वनांचल आदिवासी क्षेत्रों में वनोपज संग्रहण और उसके प्रसंस्करण से महिलाओं को जोड़ा है। इसका परिणाम है कि गौठानों में राज्य के 11,187 स्व-सहायता समूहों की 83,874 महिलाओं को रोजगार मिला है। लघु वनोपज के संग्रहण से लगभग 4 लाख 50 हजार महिला समूह जुड़ी हैं। इससे आदिवासी और ग्रामीण महिलाओं को आर्थिक आजादी के साथ समाज में एक नई पहचान भी मिली है।
राज्य के कुल उत्पादन में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाते हुए उत्पादों के लिए नये बाजारों की तलाश करना, और बाजार में पहले से मौजूद संभावनाओं का विस्तार करना रणनीति का अहम हिस्सा रहा है, इसी के अंतर्गत बाजार में उपलब्ध विदेशी अथवा बहुराष्ट्रीय कंपनियों के उत्पादों के मूल्य और गुणवत्ता से प्रतिस्पर्धा कर सकने में सक्षम स्थानीय उत्पादों का उत्पादन ग्रामीण स्तर पर महिला स्व सहायता समूहों के माध्यम से किया जा रहा है। उत्पादों की ब्रांडिंग से लेकर मार्केटिंग तक की पूरी प्रक्रिया में राज्य शासन सहयोगी है। यह दृष्टिकोण महिला सशक्तिकरण के लिए महात्मागांधी के खादी और स्वदेशी के विचारों से ताकत लेता है।
असल भारत गांवों में बसता है, इसे ध्यान में रखते हुए महात्मा गांधी ने ग्रामीण व्यवस्था और लोगों को सुदृढ़ बनाकर सुराजी गांव की परिकल्पना की थी। गांधी जी के इसी सपने को साकार करने छत्तीसगढ़ में सुराजी गांव योजना की शुरूआत की गई। इसके तहत नरवा, गरवा, घुरवा, बारी जैसे संसाधनों के पुनर्जीवन के साथ ग्रामीण अर्थव्यवस्था का नया अध्याय शुरू हुआ।
असल भारत गांवों में बसता है, इसे ध्यान में रखते हुए महात्मा गांधी ने ग्रामीण व्यवस्था और लोगों को सुदृढ़ बनाकर सुराजी गांव की परिकल्पना की थी। गांधी जी के इसी सपने को साकार करने छत्तीसगढ़ में सुराजी गांव योजना की शुरूआत की गई। इसके तहत नरवा, गरवा, घुरवा, बारी जैसे संसाधनों के पुनर्जीवन के साथ ग्रामीण अर्थव्यवस्था का नया अध्याय शुरू हुआ।
आज गोबर और गौमूत्र की खरीदी कर जैविक खाद तथा कीटनाशकों के निर्माण से लेकर बिजली उत्पादन, प्राकृतिक पेंट, गुलाल, पूजन सामग्री आदि का निर्माण महिलाएं कर रही हैं। गौठानों को ग्रामीण औद्योगिक पार्कों के रूप में विकसित करते हुए वहां दाल मिल, तेल मिल, आटा मिल, मिनी राइस मिल जैसी प्रसंस्करण इकाइयां भी स्थापित की जा रही हैं। राज्य सरकार ने समूहों द्वारा नई आर्थिक गतिविधियां शुरू करने के लिए महिला कोष से संबंधित महिला समूहों के 12.77 करोड़ रूपए के ऋण माफ करने के साथ ही ऋण लेने की सीमा को भी दो से चार गुना तक बढ़ा दिया है। इन औद्योगिक पार्कों में उत्पादित वस्तुओं के विक्रय के लिए सभी जिलों में सी-मार्ट की स्थापना की गई है। इसके अलावा इन्हें ऑन लाइन और ऑफ लाइन प्लेटफार्मों पर भी बेचा जा रहा है। सच कहे तो स्वदेशी की ताकत से छत्तीसगढ़ के गांवों में स्वरोजगार का नया युग शुरू हो गया है। -
द न्यूज़ इंडिया समाचार सेवा
रायपुर : किसानों की आमदनी बढ़ाने में सौर ऊर्जा के उपयोग में छत्तीसगढ़ देश के अग्रणी राज्यों में शुमार है। कृषि के साथ अन्य क्षेत्रों में सोलर एनर्जी के इस्तेमाल का दायरा राज्य में लागतार बढ़ता जा रहा है। सौर ऊर्जा का उपयोग पेयजल और सुदूर अंचलों के गांवों, अस्पतालों, स्कूलों, छात्रावासों में विद्युत व्यवस्था में भी हो रहा है, इससे मूलभूत सुविधाओं को मजबूती मिल रही है। मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल द्वारा ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने के प्रयासों के तहत किसानों की आमदनी बढ़ाने के उद्देश्य से सोलर सिंचाई पम्प लगाने के काम को सर्वोच्च प्राथमिकता दी गई है। इस दिशा में तेजी से काम हुआ और हाल ही में देश में सर्वाधिक सोलर पम्प स्थापित करने और ऊर्जा संरक्षण के लिए छत्तीसगढ़ राज्य अक्षय ऊर्जा विकास अभिकरण को राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।
छत्तीसगढ़ में ग्लोबल वार्मिंग की चुनौतियों से निपटने के लिए सुराजी गांव योजना के साथ सौर ऊर्जा के इस्तेमाल को प्रोत्साहित किया जा रहा है। सौर ऊर्जा के उपयोग के लिए आधुनिक तकनीक के उपयोग को बढ़ावा दिया जा रहा है। नई उद्योग नीति में भी सौर ऊर्जा से विद्युत उत्पादन से जुड़ी इकाईयों की स्थापना को प्राथमिकता की श्रेणी में रखा गया है। राज्य के सुदूर वनांचल क्षेत्रों में रहने वाले किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार के लिए सौर ऊर्जा खासी मददगार साबित हो रही है। राज्य में ऐसे कई हिस्से हैं जहां परम्परागत तरीके से विद्युत की व्यवस्था नहीं हो सकी है, उन क्षेत्रों के किसानों को सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराने में सोलर पम्प गेम चेंजर साबित हो रहे हैं। सौर सुजला योजना के तहत प्रदेश में स्थापित किए गए सोलर सिंचाई पंप के उपयोग से पिछले पांच वर्षों में 6.55 लाख टन कार्बन उत्सर्जन में कमी का अनुमान है।
छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा सोलर एनर्जी से कृषि के क्षेत्र में बड़े बदलाव लाने के प्रयासों के साथ क्रेड़ा द्वारा सोलर विद्युत केन्द्र, सोलर लाइट, वनांचलों के गांवों में पेयजल उपलब्ध कराने में भी सोलर पम्पों का उपयोग किया जा रहा है, जल जीवन मिशन सहित राज्य शासन की योजना के तहत प्रदेश में 10 हजार 629 सोलर पम्प स्थापित कर 4 लाख 80 हजार से अधिक परिवारों को शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराया जा रहा है। राज्य के 1480 स्वास्थ्य केन्द्रों में प्रकाश की व्यवस्था के लिए 4.70 मेगावाट के ऑफ ग्रिड सोलर पॉवर प्लांटों की स्थापना की गई है। जिससे शासकीय स्वास्थ्य केन्द्रों अस्पतालों में प्रकाश की व्यवस्था के साथ साथ जीवन रक्षक मशीनें और वैक्सिन को सुरक्षित रखने के लिए फ्रीजर के लिए विद्युत की आपूर्ति की जा रही है। इस उपलब्धि के लिए क्रेडा को अंतर्राष्ट्रीय अवार्ड से सम्मानित किया जा चुका है।
सौर सुजला योजना में 1.17 लाख से अधिक सोलर सिंचाई पंप स्थापितक्रेडा द्वारा राज्य में पिछले चार वर्षो में प्रदेश में 71 हजार 753 सोलर कृषि पम्पों की स्थापना की गई। सोलर सिंचाई पम्पों से लगभग 86,104 हेक्टयेर रकबा सिंचित हुआ है। इन्हें मिलाकर प्रदेश में अब तक 3 एवं 5 हार्स पॉवर के एक लाख 17 हजार से अधिक सोलर सिंचाई पम्पों की स्थापना हो चुकी है। जिससे लगभग एक लाख 17 हजार हेक्टेयर से अधिक की भूमि सिंचित हुई हो रही है। इस योजना से 1 लाख 26 हजार से अधिक किसान लाभान्वित हो रहे हैं।लघु और सीमांत किसानों को सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराने के लिए सौर सिंचाई सामुदायिक परियोजना सतही जल स्त्रोत के निकट बनायी जा रही है। सतही जल के उपयोग से भू-जल का दोहन में भी कमी आएगी। पिछले चार वर्षों में 16 सौर सामुदायिक सिंचाई परियोजनाओं की स्थापना की गई, जिसके माध्यम से लगभग 911 किसानों की 976.17 हेक्टेयर भूमि में सिचाई सुविधा का लाभ मिल रहा है। इन परियोजनाओं में 59 सोलर सिंचाई पम्पों की स्थापना की गई है। इन्हें मिलाकर प्रदेश में अब तक 228 सौर सामुदायिक सिंचाई परियोजना में 334 सोलर सिंचाई पम्प स्थापित किये गए हैं, इसके माध्यम से 2639 किसानों की 2749 हेक्टेयर भूमि में सिंचाई हो रही है।
सौर सुजला में अधिकतम 2 लाख रूपए का अनुदानसौर सुजला योजना में किसानों को तीन एवं पांच हॉर्स पावर क्षमता के सोलर सिंचाई पंपों की स्थापना के लिए राज्य शासन द्वारा अनुदान अधिकतम 2 लाख रूपए तक का अनुदान दिया जा रहा है। तीन एचपी के पंप की स्थापना के लिए अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजातियों के लिए हितग्राहियों को 7 हजार रूपए, अन्य पिछड़ा वर्ग के हितग्राही को 12 हजार रूपए तथा सामान्य वर्ग के हितग्राही को 18 हजार रूपए अंशदान देना होता है। इसी तरह 5 हॉर्स पावर तक के सिंचाई पंप के स्थापना के अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के हितग्राही को 10 हजार रूपए, अन्य पिछड़ा वर्ग के हितग्राही को 15 हजार रूपए तथा सामान्य वर्ग के हितग्राही को 20 हजार रूपए अंशदान देना होता है। शेष राशि राज्य शासन द्वारा अनुदान के रूप में दी जाती है। अकेले प्रदेश में स्थापित सोलर पंपों से पिछले 5 वर्षों में 6.55 लाख टन कार्बन उत्सर्जन में कमी हुई है। सौर समुदायिक सिंचाई योजना के लिए लघु एवं सीमांत किसानों के ऐसे समूह जिनके पास कम से कम 10 हेक्टेयर कृषि भूमि है। प्रति हेक्टेयर 1 लाख 80 हजार रूपए का अनुदान दिया जा रहा है। इसी तरह 4 किलोवॉट मॉड्यूल सहित 5 टन स्टोरेज क्षमता के सोलर कोल्ड स्टोरेज की स्थापना के लिए 4 लाख रूपए प्रति यूनिट अनुदान दिया जा रहा है।
चार हजार 970 गौठानों में सोलर सिंचाई पंप स्थापित
पिछले चार वर्षों में सिंचाई सुविधा के विस्तार के लिए नदी नालों के निकट स्थित खेतोें को सिंचित करने के लिए 59 वृहद सोलर पम्प स्थापित किये गए हैं। जिनके माध्यम से 976 हेक्टेयर सामुदायिक कृषि रकबा सिंचित हो रहा है। इसके अलावा सुराजी गांव योजना नरवा, गरवा, घुरवा, बाड़ी के तहत 4970 गौठानों में सोलर पम्प स्थापित कर पशुओं के लिए पेयजल और चारागाहों में सिंचाई सुविधा की व्यवस्था की गई है। सोलर पेयजल योजना के अंतर्गत पिछले चार वर्षों में पहुंच विहीन गांवों में 6093 सोलर ड्यूल पम्प स्थापित कर 3 लाख से अधिक परिवारों को 24 घंटे शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराया जा रहा है। इसके अलावा जल जीवन मिशन के अंतर्गत 4536 ड्यूल पम्प स्थापित कर ग्रामीण अंचलों के घरों में नल कनेक्शन के माध्यम से शुद्ध पेयजल की आपूर्ति की व्यवस्था की गई है। इस योजना में 12 मीटर एवं 9 मीटर ऊंचाई पर 10 लीटर क्षमता की पानी टंकी स्थापित कर घरों में पेयजल की आपूर्ति की जा रही है। इस योजना के अंतर्गत एक लाख 80 हजार परिवार लाभान्वित हो रहे हैं।
एक लाख 38 हजार से अधिक घरों का सोलर विद्युतीकरण
पिछले चार वर्षों में गांवों और कस्बों के चौक-चौराहों, हाट बाजारों में 3155 सोलर हाईमास्ट लाईट स्थापित की गई हैं। इन्हें मिलाकर राज्य में 3924 सोलर हाई मास्ट की स्थापना हो चुकी है। इसी तरह दूरस्थ पहुंच विहीन क्षेत्रों में जहां बिजली का तार खींचकर बिजली नहीं पहुंचाई जा सकती, वहां के गांवों और मजरे टोलों के 80 हजार 859 घरों में सोलर लाईट के माध्यम से प्रकाश की व्यस्था की गई है। इन्हें मिलाकर सोलर संयंत्रों के माध्यम से 920 गांवों के एक लाख 38 हजार से अधिक घरों का सोलर विद्युतीकरण किया जा चुका है।
भवनों की छत पर 2232 सौर संयंत्र स्थापित
वर्ष 2022-23 में सोलर पंप के माध्यम से नदी, एनीकटों में उपलब्ध जल से तालाबों को भरने की योजना को इंदिरा गांव गंगा योजना के रुप में लागू किया गया है। इस योजना में चार वर्षों में 21 गांवों के 33 तालाबों को भरने का काम पूरा किया गया। प्रदेश में 326 सौर ऊर्जा आधारित जल शुद्धिकरण संयंत्र की स्थापना की गयी है। राज्य के शासकीय एवं निजी भवनों की छत में ग्रिड कनेक्टेड 196 तथा ऑफ ग्रिड कनेक्टेड 2232 सौर संयंत्रों की स्थापना की जा चुकी है। इनके अलावा 433 मेगावॉट क्षमता के 37 वृहद स्तर पर ग्रिड कनेक्टेड सोलर पावर प्लांट स्थापित किए गये हैं। राज्य के ऐसे स्थानों में जहां नियमित बिजली आपूर्ति संभव नहीं हो पाती या जहां वोल्टेज फ्ल्कचुएशन की स्थिति बनी रहती है, वहां सब्जियों, फल-फूलों के सुरक्षित भंडारण के लिए 270 किलोवॉट क्षमता के 65 सोलर कोल्ड स्टोरेज स्थापित किए गए हैं।राज्य शासन के प्रोत्साहन से प्रदेश में सौर ऊर्जा का उपयोग बढ़ रहा है। सौर सुजला योजना किसानों के मध्य काफी लोकप्रिय हो रही है। सोलर ऊर्जा के उपयोग के लिए राज्य शासन द्वारा विभिन्न योजनाओं में अनुदान दिया जा रहा है। आने वाले समय में छत्तीसगढ़ इस क्षेत्र में नए कीर्तिमान स्थापित करेगा। -
द न्यूज़ इंडिया समाचार सेवा
रायपुर : छत्तीसगढ़ की नवीन औद्योगिक नीति 2019-2024 में फूड, एथेनॉल, इलेक्ट्रॉनिक्स, डिफेंस, दवा, सोलर जैसे नए उद्योगों को प्राथमिकता दी गई हैं। सेवा क्षेत्र को भी प्रोत्साहन दिया जा रहा है। रोजगार के अवसर बढ़ाने के लिए सरकार द्वारा कृषि, लघु वनोपज, वनौषधियों, उद्यानिकी फसलों पर आधारित उद्द्योगो को प्राथमिकता दी जा रही हैं। मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल के नेतृत्व में उद्योग और व्यापार जगत के लोगों से विस्तृत विचार विर्मश के बाद तैयार की गई नई औद्योगिक नीति में किए गए इन प्रावधानों से छत्तीसगढ़ औद्योगिक नवाचार की संभावनाओं से भरपूर राज्य के रूप में तेजी से उभर रहा है।
छत्तीसगढ़ राज्य औद्योगिक नीति के अंतर्गत स्टार्टअप इकाईयों को प्रोत्साहित करने के लिए छत्तीसगढ़ राज्य स्टार्टअप पैकेज लागू किया गया है। मान्यता प्राप्त 688 स्टार्टअप इकाईयों में से 508 इकाईयों को बीते चार वर्षो में पंजीकृत कर विशेष प्रोत्साहन पैकेज का लाभ दिया जा रहा है। एम.एस.एम.ई सेवा श्रेणी उद्यमों में इलेक्ट्रिक वाहन चार्जिग स्टेशन, सेवा केन्द्र, बी.पी.ओ. 3-डी प्रिंटिंग, बीज ग्रेडिंग इत्यादि 16 सेवाओं को सामान्य श्रेणी के उद्योगों की भांति औद्योगिक निवेश प्रोत्साहन दिए जाने का प्रावधान किया गया है। मेडिकल उपकरण तथा अन्य सामग्री निर्माण के लिए उद्योगों की भांति औद्योगिक निवेश प्रोत्साहन देने का प्रावधान भी किया गया है।
राज्य सरकार द्वारा प्रदेश में 10 नवीन फूड पार्क की स्थापना की स्वीकृति दी गई है। सुकमा में 5.9 हेक्टेयर भूमि पर फूड पार्क की स्थापना के लिए आवश्यक अधोसंरचना निर्माण कार्य पूर्ण कर लिया गया है। राज्य में 200 फूड पार्क की स्थापना का लक्ष्य रखा गया है। प्रदेश के 146 विकासखण्डों में से 112 विकासखण्डों में फूड पार्क के लिए जमीन चिन्हांकित कर ली गई है। इसमें से 52 विकासखण्डों में 620 हेक्टेयर भूमि का अधिपत्य उद्योग विभाग को दिया गया है।
उद्योगों को दी जा रही अनेक रियायतेंअनुसूचित जाति, जनजाति एवं महिला वर्ग के उद्यमियों द्वारा 5 करोड़ के पूंजी लागत तक के नवीन उद्योग की स्थापना पर 25 प्रतिशत अधिकतम सीमा 50 लाख मार्जिन मनी अनुदान देने का प्रावधान। औधोगिक नीति 2019-24 में वनांचल उद्योग पैकेज के अंतर्गत स्थापित होने वाली इकाईयों को कुल निवेश का 50 प्रतिशत, 5 वर्षो में अधिकतम 50 लाख प्रति वर्ष अनुदान देने का प्रावधान। औद्योगिक क्षेत्रों में भूमि आबंटन नियमों का सरलीकरण किया गया था, जिसके अनुसार औद्योगिक क्षेत्रों में भूमि आबंटन भू-प्रब्याजी में 30 प्रतिशत की कमी की गई है। औद्योगिक क्षेत्रों में भू-भाटक में 33 प्रतिशत की कमी की गई है। राज्य सरकार द्वारा औद्योगिक इकाईयों को 423 करोड़ रूपए स्थाई पूंजी निवेश अनुदान और 141 करोड़ ब्याज अनुदान दिया गया है।
ऐसे अनेकों प्रयासों के कारण छत्तीसगढ़ में नये उद्योगों की स्थापना हो रही है। राज्य में 10 साल या उससे अधिक समय से उत्पादनरत् औधोगिक इकाईयों को लीज पर आबंटित भूमि को फ्री-होल्ड कर निवेशकों को मालिकाना हक दिया जा रहा है, ऐसा करने वाला छत्तीसगढ़ देश का दूसरा राज्य है। उद्योग विभाग द्वारा एकल खिड़की प्रणाली से 56 सेवाएं ऑनलाइन दी जा रही हैं। ई-डिस्ट्रिक्ट के अंतर्गत 82 सेवाएं ऑनलाइन की गई हैं, जिसमें दुकान पंजीयन से लेकर कारोबार के लायसेंस तक शामिल हैं।
छत्तीसगढ़ सरकार की नई औद्योगिक नीति में उद्योगों की स्थापना के नियमों का सरलीकरण किया गया है। उद्यमियों को अनेक रियायतें दी जा रही है। स्वीकृति की प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाया गया है, इससे प्रदेश में उद्योग के लिए अनुकूल माहौल बना है और पूंजी निवेश को बढ़ावा मिल रहा है। सरकार द्वारा नई औद्योगिक नीति में ऐसे अनेक प्रावधान किये गए हैं, जिनसे नवीन उद्योगों की स्थापना के लिए उद्यमियों को प्रोत्साहन मिल रहा है और नए उद्योग स्थापित हो रहे हैं। इससे प्रदेश में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार की संभावनाएं भी बढ़ रही है।इज ऑफ डूइंग बिजनेस के मामले में छत्तीसगढ़ देश के प्रथम 6 राज्यों में शामिल है। राज्य सरकार ने नई औद्योगिक नीति 2021-2024 में उद्योगों की स्थापना से जुड़े नियमों को सरल बनाया है। पहले उद्योगों को स्थापना से पूर्व की प्रक्रियाओं में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता था। विभागीय स्वीकृति, कागजी कार्यवाही एवं अन्य कठिनाईयों के कारण उद्योग की स्थापना की प्रक्रिया में विलंब होता था। नई औद्योगिक नीति में इन सभी समस्याओं को दूर करने के लिए उद्योगों को विभिन्न स्वीकृतियां प्रदान करने के लिए एकल खिड़की प्रणाली लागू की गई है एवं कठिन प्रक्रियाओं का सरलीकरण किया गया है।प्रदेश में 21 हजार करोड़ रूपए से अधिक का पूंजी निवेश, 2218 नए उद्योग स्थापितछत्तीसगढ़ सरकार द्वारा औद्योगिक विकास को गति देने के लिए गए निर्णय के परिणाम स्वरूप राज्य में पिछले 4 वर्षो में 2218 नए उद्योग स्थापित हुए, जिसमें 21 हजार 457 करोड़ रूपए से अधिक का निवेश हुआ तथा 40 हजार 324 लोगों को रोजगार मिला है। प्रदेश में नए उद्योगों की स्थापना के लिए 167 एमओयू किये गए हैं। जिसमें 78 हजार करोड़ रूपए का पूंजी निवेश प्रस्तावित हैं। इससे 90 हजार से अधिक लोगों को रोजगार मिलेगा। इन्हे मिलाकर वर्तमान स्थिति में उद्योगों की स्थापना के लिए 177 एम.ओ.यू. प्रभावशील हैं, जिसमें 89 हजार 597 करोड़ रूपए का पूंजी निवेश और 1 लाख 9 हजार 910 लोगों को रोजगार दिया जाना प्रस्तावित है। 90 से अधिक इकाईयों द्वारा उद्योग स्थापना की प्रक्रिया में 4 हजार 126 करोड़ से अधिक का पूंजी निवेश पर 11 इकाईयों ने व्यवसायिक उत्पादन शुरू कर दिया है।कृषि एवं खाद्य प्रसंस्करण आधारित 486 इकाइयां स्थापितराज्य में साढ़े 3 सालों में कृषि एवं खाद्य प्रसंस्करण पर आधारित 486 इकाइयां स्थापित हुई हैं जिसमें 9 सौ 31 करोड़ रूपए का पूंजी का निवेश हुआ है। इसी तरह से छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा प्रदेश में नई औद्योगिक नीति के क्रियान्वयन से रोजगार, स्वरोजगार के अवसर बढ़ाने की दिशा में कार्य किया जा रहा है। बीते चार सालों में राज्य के निर्यात में तीन गुना वृद्धि आई है। वर्ष 2019-20 में 9067.29 करोड़, वर्ष 2020-21 में 17199.97 करोड़ तथा वर्ष 20121-22 में 25241.13 करोड़ रूपए का चावल, आयरन एवं स्टील एल्यूमिनियम एवं एल्यूमिनियम उत्पादों का निर्यात हुआ है।उद्योगों की स्थापना के नियमों के सरलीकरण और उद्यमियों को दी जा रही रियायतों से प्रदेश में उद्योग के लिए अनुकूल माहौल बना है। -
द न्यूज़ इंडिया समाचार सेवा
निराशा के अंधेरों में आशा की किरण बनी मुख्यमंत्री विशेष स्वास्थ्य योजनामुख्यमंत्री विशेष स्वास्थ्य योजना एवं स्वेच्छानुदान से नेहल को ब्रेन कैंसर के ईलाज हेतु मिली 25 लाख रूपए की सहायता राशिरायपुर : अक्सर गंभीर बीमारियां होने पर ये बीमारियां इंसान को शारीरिक रूप से परेशान करने के साथ व्यक्ति एवं उसके परिवार को ईलाज में होने वाले आर्थिक परेशानियों में भी डाल जाती है। ऐसी संकट की घड़ी में अपने भी जहां आंख चुराने लगते है, ऐसे में व्यक्ति निराश हो जाता है। कहीं भी उसे सहायता प्राप्त नहीं होती। ऐसी परिस्थितियों से लोगों को राहत पहुंचाने के लिए मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल की मंशा के अनुरूप राज्य सरकार द्वारा 01 जनवरी 2020 को मुख्यमंत्री विशेष स्वास्थ्य सहायता योजना प्रारंभ की गयी थी। जिससे गंभीर बीमारियों से पीड़ित लोगों को आर्थिक समस्या से बचा कर उनको बेहतर उपचार प्रदान किया जा सके।ऐसी ही एक कहानी विकासखण्ड कोण्डागांव के सम्बलपुर निवासी छोटे से किसान गिरजानंद पटेल की है। जहां उनकी 09 वर्षीय बेटी नन्ही नेहल पटेल जब वर्ष 2019 में चौथी कक्षा में अपने नाना-नानी के साथ रह कर जगदलपुर में पढ़ रही थी, तब अचानक उसकी तबियत खराब रहने लगी। उसे कक्षा में उल्टियां होने के साथ तीव्र बुखार आया करता था। जिसे शिक्षक सामान्य बुखार समझकर दवाईयां दे दिया करते थे। जिससे उसे तात्कालिक आराम तो प्राप्त हो जाता था परन्तु बहुत दिनों तक यह क्रम चलने पर 17 जून 2019 को विशाखापटनम घूमने जा रहे उनके नाना-नानी द्वारा वहां उसकी स्वास्थ्य जांच निजी अस्पताल में करवाई। जहां डॉक्टरों द्वारा दिमाग में ट्यूमर होने की बात कहते हुए प्रारंभिक जांच कर उसका इलाज किया गया। जिसके पश्चात नेहल को कुछ दिनों बाद पुनः परेशानियां होने लगी। वह दर्द के कारण पढ़ नहीं पाती थी एवं दिन-रात दर्द से चिल्लाया करती थी। धीरे-धीरे वह चलने फिरने में भी असमर्थ हो गयी। नेहल की ऐसी दशा देख पिता द्वारा डॉक्टरों की सलाह पर वर्ष 2020 में नेहल की जांच अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) रायपुर में कराई गई।एम्स के चिकित्सकों द्वारा जांच उपरांत दिमाग में ट्यूमर के स्थान पर ब्रेन कैंसर की पुष्टि करते हुए यह बात परिजनों को बताई। जिसपर परिजनों द्वारा पूछे जाने पर डॉक्टरों ने बताया कि नेहल कैंसर के चौथे स्टेज में है और कैंसर सिर से होते हुए मेरूरज्जू तक फैल रहा है। एम्स में डेढ़ साल तक नेहल का उपचार चलता रहा परंतु नेहल की हालत ना सुधरता देख डॉक्टरों ने चेन्नई स्थित एक निजी अस्पताल में इसका इलाज संभव होने की जानकारी परिजनों को दी। इलाज में बहुत अधिक खर्च होने की बात जानकर परिजनों ने नेहल को बचा पाने की अपनी उम्मीद भी खो दी थी।ऐसे में स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों द्वारा उन्हें मुख्यमंत्री विशेष स्वास्थ्य सहायता योजना अंतर्गत 20 लाख रूपये तक स्वास्थ्य उपचार हेतु सहायता प्राप्त होने के संबंध में जानकारी प्रदान की गयी। जिससे उनमें निराशा के अंधेरे में उम्मीद की एक नई किरण दिखाई दी। जिस पर मार्च 2022 में ग्राम के जनप्रतिनिधि बुधराम नेताम द्वारा उन्हें योजना का लाभ लेने हेतु सहायता करते हुए जगदलपुर में मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल के भेंट मुलाकात कार्यक्रम में जाने के संबंध में जानकारी देते हुए मुख्यमंत्री से सहायता हेतु अपील करने को कहा। जिस पर 26 मई 2022 को जगदलपुर में नेहल के पिता द्वारा मुख्यमंत्री से सहायता की अपील की।जहां मुख्यमंत्री द्वारा संवेदनशीलता पूर्वक जल्द से जल्द नेहल की सहायता हेतु स्वास्थ्य अधिकारियों को निर्देशित किया। जिस पर तत्परता दिखाते हुए अगले ही दिन स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों के दल द्वारा नेहल के घर पहुंच स्वास्थ्य रिपोर्ट तैयार की गयी। जहां 04 जून को लिमदरहा में अपने कार्यक्रम के दौरान कोण्डागांव विधायक मोहन मरकाम के द्वारा नेहल की चर्चा पर मुख्यमंत्री ने तुंरत राशि जारी कर नेहल का उपचार प्रारंभ करवाने के निर्देश दिये। जिस पर त्वरित कार्यवाही करते हुए 06 जून को अधिकारियों द्वारा विभागीय कार्यवाही पूर्ण कर 20 लाख रूपये नेहल के पिता के खाते में अंतरित कर दिये गये।राशि प्राप्त होते ही नेहल के पिता उसे लेकर चेन्नई पहुंचे। जहां प्रारंभिक जांच के उपरांत डॉक्टरों द्वारा 28 लाख रूपयों के खर्च होने की बात बतायी, जिस पर पुनः नेहल के परिजन 08 लाख रूपयों की कमी को लेकर चिन्तित हो गये। परिजनों ने जैसे-तैसे कर कुछ रूपये जोड़े जो फिर भी पूरे नहीं थे। तब उन्होने प्रतिनिधि के माध्यम से पुनः मुख्यमंत्री से सहायता की गुहार लगायी। जिस पर मुख्यमंत्री द्वारा स्वेच्छानुदान से नेहल की सहायता हेतु 05 लाख रूपयों की अतिरिक्त सहायता परिजनों को दी। जिससे परिजनों की चिन्ता दूर हुई। जिसके पश्चात 35 दिन लम्बे चले उपचार के उपरांत नेहल ने अंततः तीन वर्षों बाद कैंसर को हरा दिया और अब पूरी तरह स्वस्थ हो गयी है। जहां स्कूल प्रबंधन एवं शिक्षकों द्वारा नेहल के लिए ऑनलाइन कक्षाओं का प्रबंध कर दिया गया। जिससे नेहल अब घर में रहकर अपनी पढ़ाई जारी रख पा रही है।नेहल एवं उसके परिजनों ने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को इलाज हेतु सहायता के लिए तहे दिल से धन्यवाद देते हुए पिता गिरजानंद ने नम आंखों से कहा कि अगर मुख्यमंत्री से सहायता राशि न मिलती तो आज शायद आज नेहल इस दुनिया में न होती। उन्होंने मुख्यमंत्री का आभार जताते हुए बताया कि नेहल को जब से मुख्यमंत्री द्वारा प्राप्त सहायता के बारे में जानकारी मिली है, वह स्वयं मिलकर उनका आभार व्यक्त करना चाहती है। -
सुधीर तम्बोली
दिव्यांगो के लिए एक प्रेरणा है शशि निर्मलकर
एक दशक से दिव्यांग विद्यार्थियों के जीवन को दिशा देने का कर रही कार्य
रायपुर : "दिव्यांग होने के बावजूद यदि जुनून व हौसला हो तो दिव्यांगता को भी प्रेरणा में बदला जा सकता है जिससे स्वयं के साथ अन्य दिव्यांग का जीवन संवर सकता है और यही साबित कर रही है छत्तीसगढ़ प्रदेश की एक समर्पित समाजसेवी युवती जो करीब एक दशक से दिव्यांगों के लिए निस्वार्थ निःशुल्क कार्य कर रही है। कोरोना काल के दौरान भी विपरीत परिस्थितियों के बावजूद संस्था को सफलता पूर्वक आगे बढ़ाने में डटे रही जिसके फलस्वरूप संस्था के दो दिव्यांग बच्चों ने एवरेस्ट बेस कैंप में भी तिरंगा लहराया है।"
आज अंतरराष्ट्रीय दिव्यांग दिवस के अवसर पर दिव्यांग विद्यार्थियों के लिए कार्य कर रही एक ऐसे शख्सियत के बारे में पढ़िये जिससे लोगो को सीखना चाहिए कि हम समाज के लिए क्या कर सकते है ।
सुश्री शशि निर्मलकर दिव्यांग विद्यार्थियों के लिए कार्यरत संस्था एक्ज़ेक्ट फाउंडेशन में सचिव है। संस्था के द्वारा दिव्यांग आवासीय विद्यालय छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले के रुद्री में संचालित है जहां वर्तमान में 46 विद्यार्थी शिक्षा दीक्षा ग्रहण कर रहे है। सुश्री शशि निर्मलकर स्वयं दिव्यांग है इसलिए दिव्यांगों की मनोदशा, दिव्यांगों की समस्या और उनकी जरूरत को बहुत बेहतर समझती है इसलिए ही उनके संस्था के बच्चों ने राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वयं को साबित किया है।सुश्री शशि निर्मलकर का जन्म धमतरी जिले के ग्राम भुसरेंगा में हुआ है। पिता श्री अरुण कुमार निर्मलकर परिवारिक समाजिक पेशे से जीवन यापन करते है व माता जी श्रीमती प्रेमिन निर्मलकर ग्रहणी है। सुश्री शशि 4 भाई बहनों में तीसरे नम्बर की है। सुश्री शशि ने अपनी प्राथमिक शिक्षा ग्राम भुसरेंगा में पूरी की जिसके पश्चात उच्च शिक्षा कुरूद में ग्रहण किया और पॉलिटेक्निक की शिक्षा छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में पूरी की, शशि बताती है कि शिक्षा के लिए उनके परिवार ने पूरा सहयोग किया। पढ़ाई होने के बाद जिला कार्यालय में उनकी नौकरी दैनिक वेतन भोगी में हो गई और एक सामाजिक संस्था में उनकी नियुक्ति हुई थी जो दिव्यांगजनो के लिए कार्यरत थी।
सुश्री शशि बताती है कि उस संस्था में जुड़कर कार्य करने के दौरान उनको लगा कि दिव्यांगों के लिए और बहुत कुछ किये जाने की जरूरत है और हम बहुत कुछ कर सकते है।
उसी दौरान संस्था को संभालने वाली लक्ष्मी सोनी दीदी के साथ परिचय के बाद दिव्यांगों के लिए और कुछ सार्थक करने को लेकर चर्चा होती थी पर उस संस्था में काम करते वह संभव नही लगा जो हम वाकई दिव्यांग लोगों के लिए करना चाह रहे थे क्योंकि उस संस्था में रहकर हम लोग वह सब नहीं कर पा रहे थे जो दिव्यांग विद्यार्थियों के जीवन में बड़ा बदलाव ला सके क्योंकि दूसरे के अधीनस्थ रहकर काम करना थोड़ा मुश्किल था क्योंकि उस संस्था के प्रमुख हमें जितना बोलते थे हमको उतना ही करना होता था। एक वक्त के बाद लक्ष्मी दीदी से जो विचार विमर्श होता था उसको साकार रूप देने का निर्णय लिया तब लक्ष्मी सोनी दीदी के साथ मिलकर और अन्य लोगो को अपने साथ जोड़कर हमने एक्ज़ेक्ट फाउंडेशन की शुरुआत की फिर 2016 में ग्राम डांडेसरा के एक पुराने भवन में संस्था के आवासीय विद्यालय संस्था की शुरुआत की,उन शुरुआती दिनों में बहुत दिक्कतों का सामना करना पड़ा लेकिन मेहनत रंग लाई फिर धीरे-धीरे हमें बहुत से लोगों का सहयोग मिलना शुरू हुआ फिर हम लोगो ने आसपास के गांवों में से दिव्यांग बच्चो की जानकारी जुटानी शुरू की और अपने आवासीय विद्यालय में रहकर पढ़ने सीखने की व्यवस्था को प्रचारित किया जिसके बाद दिव्यांग बच्चो की संख्या विद्यालय में बढ़ते गया। दिव्यांग बच्चो की रुचि अनुसार खेल कूद, गायन, नृत्य व अन्य प्रतिभाओं को तराशने व मंच देने का हमने मन में ठान कर रखा था जो काम हमने सोचा था उसमें हम लोग सफल होते गये।सुश्री शशि भरपूर आत्मविश्वास से कहती है कि यदि सभी दिव्यांग बच्चो को उनकी रुचि और उनके क्षमता अनुसार कार्य के लिए प्रेरित करें, उन्हें तैयार करें, सुविधाएं उपलब्ध कराये और बेहतर प्रशिक्षण दिया जाये तो वह हर क्षेत्र में सफलता अवश्य अर्जित कर सकते है।
सुश्री शशि निर्मलकर के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने वाली श्रीमती लक्ष्मी विकास सोनी कहती है कि आज हमारे संस्था एक्ज़ेक्ट फाउंडेशन के बच्चे शशि से प्रेरित होकर बहुत सारी उपलब्धियों को हासिल किए,अपने परिवार, गांव, जिले प्रदेश व देश को गौरवान्वित कर रहे है। हमारे संस्था एक्ज़ेक्ट फाउंडेशन के बच्चे देश प्रदेश में ही नहीं विश्व में भी अपना परचम लहरा चुके हैं इसके पीछे शशि निर्मलकर की समर्पण भावना है जो एक मिसाल है। शशि सभी लोगों को एक संदेश देना चाहती है की दिव्यागंता कोई कमजोरी नहीं है,कोई भी व्यक्ति दिव्यांग शरीर से होता है बस नाकि मन से और अगर कोई भी व्यक्ति यदि ठान ले और जी जान लगाकर प्रयत्न करें तो कुछ भी कर सकता है।इसका जीता जागता उदाहरण हमारी साथी शशि निर्मलकर स्वयं है, सलाम है उसके साहस को जिसके सकारात्मक सोच से हमारी संस्था के बच्चों को उपलब्धियां मिल रही है और वह अपने भविष्य को संवारने के लिए लगे हुए है। शशि निर्मलकर दिव्यांग लोगो के लिए एक प्रेरणा है जो दिव्यांगों के जीवन को संवारने में लगी है। -
द न्यूज़ इंडिया समाचार सेवा
मितानों ने 14 हजार से अधिक दस्तावेज लोगों के घर पहुंचाकर उपलब्ध कराए
14 नगर निगम क्षेत्रों में मिल रही हैं 13 प्रकार की सेवाएं
रायपुर : मुख्यमंत्री मितान योजना जनता का पैसा, समय और श्रम की बचत कर रही है। इस योजना ने सरकारी कार्यालयों से जनता के घर की दूरी मिटा दी है। जिन सरकारी दस्तावेजों के लिए लोगों को सरकारी कार्यालयों का चक्कर लगाना पड़ता था, अब वही दस्तावेज उन्हें घर बैठे उपलब्ध हो रहे हैैं। मितानों ने अब तक 14 हजार से अधिक दस्ततावेज लोगों को घर पहुंचाकर उपलब्ध कराए हैं।
लागों को घर पहुंच शासकीय सेवाएं उपलब्ध कराने के उद्देश्य से एक मई 2022 से मुख्यमंत्री मितान योजना की शुरूआत की गई है। यह योजना सरकार और जनता के बीच महत्वपूर्ण कड़ी का काम कर रही है। टोल फ्री नंबर 14545 पर कॉल करके अभी प्रदेश के 14 नगर निगम क्षेत्रों में 13 प्रकार की राजस्व एवं नगरीय प्रशासन विभाग से जुड़ी सेवाएं ली जा सकती हैं। इन सेवाओं में मूल निवास प्रमाण पत्र, जाति प्रमाण पत्र, आय प्रमाण पत्र, दस्तावेज की नकल, डिजिटलाइज्ड भूमि रिकॉर्ड, मृत्यु प्रमाणपत्र, विवाह पंजीकरण प्रमाण पत्र, दुकान और स्थापना पंजीकरण, जन्म प्रमाण पत्र, मृत्यु व जन्म प्रमाण पत्र में सुधार शामिल है।
भविष्य में 100 सेवाएं कराई जाएंगी उपलब्ध
राज्य सरकार ने मुख्यमंत्री मितान योजना के तहत लोगों को मिलने वाले लाभ को देखते हुए निर्णय लिया है कि भविष्य में योजना से मिलने वाली सेवाओं का विस्तार करके 13 से बढ़ाकर 100 सेवाएं घर बैठे जनता को उपलब्ध कराई जाएंगी। इसके अलावा यह भी निर्णय लिया गया है कि इस योजना का केवल 14 नगर निगम क्षेत्रों में ही नहीं सभी नगरीय निकायों तक विस्तार किया जाएगा।
अब घर बैठे बनेगा बच्चों का आधार
मुख्यमंत्री मितान योजना के तहत पांच साल तक के बच्चों का आधार कार्ड भी अब घर बैठे बनवाया जा सकेगा। इस सुविधा की घोषणा राज्योत्सव के अवसर पर मुख्यमंत्री द्वारा की गई है। बच्चों के आधार कार्ड बनाने के लिए टोल फ्री नंबर 14545 पर कॉल कर अपनी सुविधानुसार अप्वांइंटमेंट बुक किया जा सकता है। आवेदक द्वारा दी गई नियत तिथि एवं समय अनुसार बच्चे का आधार पंजीकरण के लिए मितान घर आएंगे। यह प्रक्रिया पूर्ण होने के कुछ ही दिनों में बच्चे का आधार आवेदक द्वारा दिए गए पते पर पहुंच जाएगा। -
द न्यूज़ इंडिया समाचार सेवा
कुपोषण से लड़ने में फोर्टिफाइड चावल बहुत उपयोगी....इसके सेवन से बच्चों में बेहतर पोषण और स्वास्थ्य हो रहा सुनिश्चित
छत्तीसगढ़ में मध्याह्न भोजन में फोर्टिफाइड चावल का हो रहा वितरण
रायपुर : प्रत्येक माता-पिता की ख्वाइश होती है कि उनके बच्चे स्वस्थ्य रहें। लेकिन उनकी चिंता तब बढ़ जाती है जब बच्चे खाने-पीने में आनाकानी करते हैं। इससे बच्चों के शरीर में पोषक तत्वों की कमी होने लगती है और उनकी वृद्धि प्रभावित होती है। इसके साथ कुछ बच्चे जन्म से ही कुपोषित होते हैं। बच्चों का बेहतर स्वास्थ्य और सुपोषण स्तर बना रहे इसके लिये मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल के निर्देश पर मध्याह्न भोजन में फोर्टिफाइड चावल का वितरण शुरू किया गया है। फोर्टिफाइड चावल वितरण की शुरूआत कोण्डागांव जिले से हुई थी। फोर्टिफाईड चावल क्या होता है..ये कैसे बनाया जाता है और बच्चों के लिये ये कैसे उपयोगी है..इस लेख में आपको बताते हैं।
फूड या खाद्य पदार्थों के फोर्टीफिकेशन का क्या मतलब होता है...?
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक फूड फोर्टीफिकेशन का मतलब होता है टेक्नोलॉजी के माध्यम से खाने में विटामिन और मिनरल के स्तर को बढ़ाना। ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि आहार में पोषक तत्वों की कमी को दूर किया जा सके और इससे लोगों के स्वास्थ्य को भी लाभ मिले।चावल में पहले से ही पोषक तत्व होते है फिर उसके फोर्टीफिकेशन की क्या जरूरत है?
आम तौर पर चावल की मिलिंग और पॉलिशिंग के समय फैट और सूक्ष्म पोषक तत्वों से भरपूर चोकर की परतें हट जाती है। चावल की पॉलिश करने से 75-90 प्रतिशत विटामिन भी निकल जाते है जिसके वजह से चावल के अपने पोषक तत्व खत्म हो जाते है। इसलिए चावल को फोर्टिफाई करने से उनमें सूक्ष्म पोषक तत्व न सिर्फ फिर से जुड़ जाते है बल्कि और ज्यादा मात्रा में मिलाये जाते है जिससे चावल और ज्यादा पौष्टिक बन जाता है।
कुपोषण से लड़ने के लिए जरूरी है चावल का फोर्टीफिकेशन
छत्तीसगढ़ देश का प्रमुख चावल उत्पादक राज्य है। विश्व में 22 प्रतिशत चावल का उत्पादन भारत करता है और हमारे देश में 65 प्रतिशत आबादी रोज़ चावल का सेवन करती है। इतना ही नहीं, भारत में प्रति व्यक्ति चावल की खपत प्रति माह 6.8 किलोग्राम है। भारत में खाद्य सुरक्षा कार्यक्रमों में चावल का वितरण भी बहुत ज्यादा मात्रा में होता है। इसलिए देश की ज्यादातर आबादी के लिए चावल ऊर्जा और पोषण का एक बड़ा स्रोत है और कुपोषण से लड़ने के लिए चावल का फोर्टीफिकेशन एक कारगर रणनीति है। सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि दुनिया भर के कई देश चावल के फोर्टीफिकेशन की रणनीति को लागू कर रहे है।
चावल को ऐसे करते हैं फोर्टीफाई ...
चावल को फोर्टीफाई करने के लिए सबसे पहले सामान्य चावल का पाउडर बनाया जाता है और उसमे सूक्ष्म पोषक तत्व जैसे विटामिन B 12, फोलिक एसिड और आयरन, FSSAI के मानकों के अनुसार मिलाये जाते है। चावल के पाउडर और विटामिन/मिनरल के मिश्रण को मशीनों द्वारा गूंथा जाता है और एक्सट्रूजन नामक मशीन से चावल के दानों फोर्टिफाइड राइस कर्नेल FRK को निकाला जाता है। इस FRK के एक दाने (ग्राम) को सामान्य चावल के 100 दानों (ग्राम) के अनुपात में मिलाया जाता है जिसे फोर्टीफाइड चावल कहते है।
फोर्टीफाइड चावल खाने के फायदे...
फोर्टीफाइड चावल में कई पोषक गुण है क्यूंकि इसमें आयरन, फोलिक एसिड और विटामिन B 12 जैसे सूक्ष्म पोषक तत्व या माइक्रोन्युट्रिएंट्स मिलाये जाते है। ये पोषक तत्व अनीमिया और सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी से बचाता है।आयरन अनीमिया से बचाव करता है, फोलिक एसिड खून बनाने में सहायक होता है और विटामिन B 12 नर्वस सिस्टम के सामान्य कामकाज में सहायक होता है। फोर्टीफाइड चावल के नियमित सेवन से बेहतर पोषण और स्वास्थ्य सुनिश्चित होता है।
ऐसे पकाया जाता है फोर्टीफाइड चावल
अधिकतम पौष्टिक लाभ के लिए फोर्टीफाइड चावल को पर्याप्त पानी में पकाना चाहिए और बचे हुए पानी को फेंकना नहीं चाहिए। अगर चावल को बनाने से पहले पानी में भिगोया गया हो तो चावल को उसी पानी में पकाना चाहिए। फोर्टीफाइड चावल को हर बार इस्तेमाल करने के बाद साफ और सूखे हवा-बंद डब्बे में रखना चाहिए।
फोर्टीफाइड चावल कहाँ मिलता है?
फोर्टीफाइड चावल सरकारी राशन की दुकानों पर मिलता है। यह चावल आंगनवाड़ी केंद्रों पर दिए जाने वाले पूरक पोषण आहार और स्कूलों में मध्यान्ह भोजन में भी दिया जाता है।
फोर्टीफाइड चावल से संबंधित कुछ भ्रांतियां और तथ्य
भ्रान्ति: फोर्टीफाइड चावल प्लास्टिक चावल है ।तथ्यः चावल को थ्त्ज्ञ के साथ 100:1 के अनुपात में मिलाकर फोर्टीफाइड चावल तैयार किया जाता है। थ्त्ज्ञ को चावल के आटे और प्रीमिक्स से तैयार किया जाता है जिसमें आयरन, फोलिक एसिड और विटामिन बी 12 होता है जिसे एक साथ मिश्रित किया जाता है। इसमें प्लास्टिक जैसा कुछ भी नहीं होता और यह उपभोग करने के लिए पूरी तरह से सुरक्षित और स्वास्थ्यवर्धक है।
भ्रान्तिः फोर्टीफाइड चावल के स्वाद, सुगंध और पकाने की विधि में परिवर्तन होता है।
तथ्यः स्वाद, सुगंध और दिखने में फोर्टीफाइड चावल सामान्य चावल के जैसा ही होता है। इसे सामान्य चावल की तरह ही पकाकर सेवन करना चाहिए।भ्रान्तिः फोर्टीफाइड चावल में पोषक तत्व खाना पकाने के दौरान नष्ट हो जाते हैं।तथ्यः फोर्टीफाइड चावल पकाने के दौरान अपने पोषक तत्वों को बरकरार रखता है। अत्यधिक पानी में धोने और पकाने के दौरान भी पोषक तत्व अवशेष बरकरार रहते हैं। -
द न्यूज़ इंडिया समाचार सेवा
खेल अकादमियों का गठन, बेहतर अधोसंरचना के निर्माण से खिलाड़ियों को मिल रही है बेहतर खेल सुविधाएं
खेलों के सफलतापूर्वक आयोजनों से छत्तीसगढ़ को मिली अंतर्राष्ट्रीय ख्याति
छत्तीसगढ़िया ओलंपिक के आयोजन से पारंपरिक खेलों को मिला मंच
रायपुर : छत्तीसगढ़ खेल की दुनिया में छाने के लिए अब पूरी तरह से तैयार है। यहां पर हो रहे राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय खेलों के साथ ही पारंपरिक खेलों के आयोजनों से राज्य की एक नई पहचान बनी है। मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल की पहल और खेल एवं युवा कल्याण मंत्री श्री उमेश पटेल के निर्देशन में नई खेल अकादमियों का निर्माण, नए खेल मैदान का निर्माण एवं उन्नयन, खिलाड़ियों को मिल रही बेहतर सुविधाओं ने खेलों के लिए एक बेहतर महौल तैयार किया है। पिछले दिनों शतरंज और बैडमिंटन के अंतर्राष्ट्रीय स्तर के टूर्नामंेट का आयोजन राजधानी रायपुर में किया गया। जिसमें राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ियों ने भाग लिया। खिलाड़ियों को यहां पर अपनी रैंकिंग मजबूत करने का मौका भी मिला। खिलाड़ियों ने यहां की व्यवस्थाओं की तारीफ की और दुबारा आयोजन होने पर फिर से शामिल होने की बात कही। इसके साथ ही राज्य में छत्तीसगढ़ के पारंपरिक खेलों को बढ़ावा देने के लिए छत्तीसगढ़िया ओलंपिक का आयोजन किया जा रहा है। इसमें सभी आयु वर्ग के लोग बढ़-चढ़ के शामिल हो रहे हैं। क्या बच्चे, क्या बुजुर्ग, क्या महिलाएं सभी का अपनी लोक संस्कृति में रचे-बसे पारंपरिक खेलों में भाग लेने को लेकर उत्साह देखते ही बनता है।
बेहतर अधोसंरचना का निर्माण, बढ़ती सुविधाएं
राज्य में खेल अकादमियों के संचालन, खेल अधोसंरचनाओं का विकास एवं समुचित उपयोग तथा खेलों के समग्र विकास हेतु छत्तीसगढ़ खेल विकास प्राधिकरण का गठन किया गया है। खिलाड़ियों को बेहतर वैज्ञानिक तरीकों से आधुनिक खेल प्रशिक्षण देकर उन्हें भविष्य के लिए तैयार करने के उद्देश्य से खेल अकादमियों का निर्माण किया जा रहा है। इन अकादमियों में अंतर्राष्ट्रीय स्तर की अधोसंरचना, मानक खेल सामग्री के साथ बेहतर प्रशिक्षण की व्यवस्था होगी। स्व. बी.आर. यादव राज्य खेल प्रशिक्षण केन्द्र बहतराई बिलासपुर में हॉकी, तीरंदाजी एवं एथलेटिक की आवासीय अकादमी की स्थापना की गई है, जिसे भारतीय खेल प्राधिकरण द्वारा खेलो इण्डिया स्टेट सेन्टर ऑफ एक्सीलेंस की मान्यता दी गई है। इस अकादमी में हॉकी की आवासीय अकादमी संचालित है जिसमें 36 बालक एवं 24 बालिकाएं कुल 60 खिलाड़ी प्रशिक्षणरत् है। तीरंदाजी तथा एथलेटिक खेल की अकादमी एवं आवासीय बालिका कबड्डी अकादमी में प्रवेश हेतु खिलाड़ियों के चयन ट्रायल लिए जा चुके हैं। रायपुर में एनएमडीसी लिमिटेड के सहयोग से आवासीय तीरंदाजी अकादमी की स्थापना की गई है। इसी तरह प्रदेश में चार गैर अवासीय अकादमीसंचालित हैै। जिसमें शिवतराई बिलासपुर में गैर अवासीय अकादमी तीरंदाजी प्रशिक्षण उपकेन्द्र, रायपुर के सरदार वल्लभ भाई पटेल अंतर्राष्ट्रीय हॉकी स्टेडियम में गैर आवासीय हॉकी एवं तीरंदाजी अकादमी, रायपुर के स्वामी विवेकानन्द स्टेडियम कोटा में गैर आवासीय बालिका फुटबॉल अकादमी और रायपुर के ही स्वामी विवेकानन्द स्टेडियम कोटा में गैर आवासीय बालक एवं बालिका एथलेटिक अकादमी संचालित है। टेनिस खेल के लिए लाभांडी रायपुर मंे अंतर्राष्ट्रीय स्तर के टेनिस स्टेडियम एवं अकादमी का निर्माण किया जा रहा है। छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा राज्य के प्रत्येक जिले में खेल अकादमियां स्थापित करने का लक्ष्य रखा गया है। भारत सरकार की खेलो इण्डिया योजना अंतर्गत 07 लघु केन्द्र स्वीकृत है। जिसमें जशपुर में हॉकी, बीजापुर में तीरंदाजी, राजनांदगांव में हॉकी, गरियाबंद में व्हॉलीबॉल, नारायणपुर में मलखम्ब, सरगुजा में फुटबॉल एवं बिलासपुर में तीरंदाजी खेल की स्वीकृति मिली है। खेलो इण्डिया लघु केन्द्र के माध्यम से स्थानीय सीनियर खिलाड़ी को प्रशिक्षक के रूप में नियुक्त किया जाएगा। भारत सरकार की खेलो इण्डिया योजना अंतर्गत जशपुर में सिंथेटिक टर्फ युक्त हॉकी मैदान, अम्बिकापुर में मल्टीपरपज इंडोर हॉल, जगदलपुर बस्तर में सिंथेटिक फुटबॉल ग्राउण्ड विथ रनिंग ट्रैक ,महासमुंद में सिंथेटिक सतह युक्त एथलेटिक ट्रैक निर्माण की स्वीकृति प्राप्त हुई है। इसमें जशपुर और जगदलपुर बस्तर में निर्माण कार्य पूर्ण हो चुका है।
छत्तीसगढ़िया ओलंपिक ने राज्य के पारंपरिक खेलों को दिया मंच
छत्तीसगढ़ में पारंपरिक खेलों को बढ़ावा देेने के उद्देश्य के छत्तीसगढ़िया ओलंपिक का आयोजन किया जा रहा है। पारंपरिक खेलों में शामिल होने को लेकर लोगों का उत्साह देखते ही बनता है। घरेलू महिलाएं, बच्चे और बुजुर्ग भी इस ओलंपिक में बढ़चढ़ कर हिस्सा ले रहे हैं। छत्तीसगढ़िया ओलंपिक में 14 खेलों को शामिल किया गया है। इसके तहत दलीय खेल में गिल्ली डंडा, पिट्टुल, संखली, लंगड़ी दौड़, कबड्डी, खो-खो, रस्साकसी, बाटी (कंचा) और एकल खेल में बिल्लस, फुगड़ी, गेड़ी दौड़, भंवरा, 100 मी. दौड़ तथा लंबी कूद की प्रतिस्पर्धाएं आयोजित की जा रही हैं। 6 चरणों में आयोजित किए जा रहे छत्तीसगढ़िया ओलंपिक में लेवल-01 राजीव युवा मितान क्लब एवं लेवल- 02 जोन स्तर के सफल आयोजन के बाद लेवल-03 विकासखंड एवं नगरीय क्लस्टर स्तर और इसके बाद जिला, संभाग और राज्य स्तर पर प्रतियोगिताएं होंगी।
हो रहें अंतर्राष्ट्रीय आयोजन, मिल रही है ख्याति
राजधानी रायपुर में 19 से 28 सितंबर तक छत्तीसगढ़ चीफ मिनिस्टर ट्राफी इंटरनेशनल ग्रैंड मास्टर चेस टूर्नामेंट का आयोजन हुआ। जिसमे भारत के 21 राज्यों सहित विश्व के 15 देशों के 500 से भी अधिक शतरंज खिलाड़ियों ने हिस्सा लिया। टूर्नामेंट में ग्रैंडमास्टरर्स, इंटरनेशनल मास्टर्स, वीमेन ग्रैंडमास्टरस, वीमेन इंटरनेशनल मास्टरर्स, फीडे मास्टर्स एवं ईलो रेटेड खिलाड़ियों ने भाग लिया। इसी तरह छत्तीसगढ़ में पहली बार बैडमिंटन का अंतर्राष्ट्रीय मुकाबला खेला गया। राजधानी रायपुर में मुख्यमंत्री ट्राफी इंडिया इंटरनेशनल बैडमिंटन चैलेंज के नाम से आयोजित इस टूर्नामेंट में भारत सहित 12 अन्य देशों के 550 से अधिक खिलाड़ियों ने सिरकत की। गुजरात में आयोजित 36 वें नेशनल गेम में छत्तीसगढ़ के खिलाड़ियों ने अपना उत्कृष्ट खेल का प्रदर्शन कर 13 मैडल जीते। जिसमें 02 गोल्ड, 5 सिल्वर और 06 सिल्वर मैडल शामिल है। -
द न्यूज़ इंडिया समाचार सेवा
रायपुर : छत्तीसगढ़ राज्योत्सव के अवसर पर आयोजित तीन दिवसीय राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव कल की ढलती हुई शाम के साथ ही समाप्त हो चुका है। इस वर्ष जिन 10 देशों के लोक नर्तक दल इस राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव में अपने नृत्य की छटा बिखेरने आए थे उनमें मोजांबिक, टोगो, इजिप्ट, मंगोलिया, इंडोनेशिया, रूस, न्यूजीलैंड, सर्बिया और मालदीव जैसे देश प्रमुख हैं।
दुनिया के इन 10 देशों से आए हुए लोक नर्तकों ने छत्तीसगढ़ की जनता को अपने लोक नृत्यों से अभिभूत कर दिया। लेकिन यह एकतरफा ही नहीं हुआ वे भी छत्तीसगढ़वासियों से कम अभिभूत होकर नहीं गए हैं और इसमें भाषा किसी तरह की दीवार या बाधा साबित नहीं हुई। क्योंकि नृत्य, संगीत की कोई भाषा नहीं होती इसे केवल महसूस किया जाता है।
भारत वर्ष एक विशाल और विविधताओं से भरा देश है। यहां हर प्रदेश की अपनी एक अलग लोक संस्कृति है। इन्हीं लोक संस्कृति से एक महान भारतीय संस्कृति बनती है। इस बार राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव और राज्योत्सव में देश के 28 राज्यों के लोक नर्तकों ने अपनी लोक नृत्यों के प्रदर्शन से साइंस कॉलेज मैदान में जो खुशबू बिखेरी है और जो जादू जगाया है उस खुशबू और जादू को हम छत्तीसगढ़वासी बहुत दिनों तक अपने दिलों में महसूस करते रहेंगे।
राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव के समापन की बेला में हमारे छत्तीसगढ़ राज्य के मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने जो कहा है वह भी अपने आप में कोई कम महत्वपूर्ण नहीं है। आदिम संस्कृति सभी को जोड़ने का कार्य करती है। इसे सहेजकर और इसकी खूबसूरती को बड़े फलक पर दिखाने के उद्देश्य से हमने राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव का आयोजन किया है। मुझे इस बात कि खुशी है कि इस आयोजन में बहुत बड़ी संख्या में लोगों ने भागीदारी की है। आगे मुख्यमंत्री ने यह भी कहा है कि इस आयोजन के माध्यम से लोगों ने जाना है कि हमारी आदिवासी संस्कृति कितनी समृद्ध हैं। इनके नृत्यों के माध्यम से प्रकृति और लोकजीवन को सहेजने के सुंदर मूल्य जो सीखने को मिलते हैं वो सीख हमारे लिए अमूल्य है।इस अवसर पर झारखंड के मुख्यमंत्री श्री हेमन्त सोरेन ने जो कहा है वह भी बेहद महत्वपूर्ण है। आदिवासी नृत्य महोत्सव के जरिए यह संदेश देने का भी सफल प्रयास किया गया है कि जब तक सभी वर्गों का विकास नहीं होता तब तक देश का सर्वांगीण विकास नहीं हो सकता।
आज ये सभी नर्तक दल अपने-अपने देशों की ओर उड़ चले हैं। भारत के विभिन्न प्रांतों से आए हुए आदिवासी नर्तक दल भी अपने-अपने प्रदेशों की ओर लौट रहे हैं। ये सारे आदिवासी नर्तक दल अपने नृत्य की सोंधी खुशबू हम सब छत्तीसगढ़वासियों के दिलों में छोड़ गए हैं जो आने वाले कई दिनों तक हमारे भीतर महकते रहेंगे। -
द न्यूज़ इंडिया समाचार सेवा
बच्चे प्यार से बुला रहे कका, बना रहे पेंटिंग्स
प्रदेशव्यापी भेंट-मुलाकात कार्यक्रम में मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल की एक अलग ही छवि नजर आ रही है। बच्चों से मिलना-जुलना और उनसे घुल-मिलकर बातें करना न सिर्फ बच्चों को अच्छा लग रहा है बल्कि लोगों को भी यह बात खूब पसंद आ रही है। बच्चे भी मुख्यमंत्री से अपनेपन और लगाव के चलते उनमें एक अभिभावक की छवि देख रहे हैं।
मुख्यमंत्री का बच्चों से लगाव का एक और वाक्या भी सामने आया जब उन्होंने हाईस्कूल और हायर सेकेण्डरी की बोर्ड परीक्षाओं में प्रदेश के टॉप टेन बच्चों के साथ जिलों में पहले स्थान पर आने वाले बच्चों को हैलीकॉप्टर से सैर कराने का वायदा किया। लगभग 16 विधानसभा क्षेत्रों के दौरे में मुख्यमंत्री ने बच्चों से अनोखे अंदाज में मुलाकात की। कभी रस्सी कूदकर तो कभी निशाना साधकर और कभी गिल्ली-डंडा और भौरा खेलकर बच्चों में रम गए।
भंेट-मुलाकात कार्यक्रम में बच्चों की मासूमियत भरी बातों से न सिर्फ मुख्यमंत्री का दिल जीत रहे हैं वहीं मुख्यमंत्री भी बच्चों के पूछे गये सवालों का रोचक अंदाज में जवाब भी दे रहे हैं। वे बालहठ के सामने कई बार झुकते भी नजर आए। जब उनसे बच्चों ने हैलीकॉप्टर में घूमने की जिद की। तब बच्चों को मना नहीं कर सकें औैर बच्चों को हैलीकॉप्टर में सैर करायी।
बच्चों ने भी उन्हें तैेयार किए गए स्कैच और पेंटिंग भेंट किया। कोंडागांव जिले के बड़े डोंगर में आयुष जायसवाल ने पेंसिल से मुख्यमंत्री का स्केच बनाया और उन्हें भेंट किया। 12वीं के छात्र आयुष ने मुख्यमंत्री से कहा कि स्वामी आत्मानंद अंग्रेजी माध्यम स्कूल के जरिए हजारों छ़ात्रों का जीवन संवार रहे हैं और आप हम सब बच्चों के सच्चे अभिभावक हैं। जगदलपुर के भैंसगांव में तो स्कूली छात्राओं ने मुख्यमंत्री और उनकी माताश्री की पेंटिंग भेंट की जिससे मुख्यमंत्री भी भावुक हो गए थे।
मुख्यमंत्री जहां भी गए वहां छात्र अपने प्रिय मुख्यमंत्री से मिलने के लिए पहले से ही मौजूद रहे। फिर चाहे बात स्वामी आत्मानंद अंग्रेजी माध्यम स्कूल की हो, प्राइमरी के बच्चों की हो या फिर कालेज में पढ़ने वाले छात्रों की हो, हर कोई उन्हें अपना अभिभावक मानने लगे हैं। बस्तर के बादल एकेडमी के छात्र हों, इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय खैरागढ़ के छात्र हों या फिर किसी भी स्कूल के छात्र हों मुख्यमंत्री उनसे मिलते जरूर हैं। मुख्यमंत्री की पारखी नजर ऐसी है कि भीड़ में रोती हुयी बच्ची को भी देख लेते हैं और उसे चुप कराकर उसकी समस्याओं का समाधान और उसकी पढ़ाई की व्यवस्था भी कर देते हैं।
ऐसा नहीं है कि मुख्यमंत्री सिर्फ घोषणाएं करते चले जा रहे हैं, बल्कि घोषणाओं पर फौरीतौर पर अमल भी हो रहा है। भेंट मुलाकात कार्यक्रम में मुख्यमंत्री आमजनों से मिलने निकले हैं, लेकिन जिस तरह से इन कार्यक्रमों में उन्हें बच्चों का प्यार मिल रहा है और जिस तरह बच्चे आत्मविश्वास के साथ मुख्यमंत्री के सामने अपनी बात रख रहे हैं, उसे देखकर यही लग रहा है कि नवा छत्तीसगढ़ गढ़ने की दिशा में हो रही पहल रंग ला रही है।
-
बॉबी रमाकांत - सीएनएस
तीस साल के निरंतर शोध के बाद आख़िरकार, दुनिया की पहली मलेरिया वैक्सीन, “आटीएस,एस”, को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने बच्चों में उपयोग के लिए संस्तुति दे दी। इस मलेरिया वैक्सीन टीके से बच्चे सबसे घातक क़िस्म की मलेरिया से बचेंगे जो मलेरिया कीटाणु, "प्लैज़्मोडीयम फ़ेलकीपेरम", के कारण रोग ग्रस्त होते हैं। यह मलेरिया टीका अत्यंत लाभकारी तो है परंतु मलेरिया नियंत्रण और उन्मूलन के लिए कदापि पर्याप्त नहीं है।
कीटनाशक से युक्त मच्छरदानी, साफ़-सफ़ाई और मच्छर निवारक छिड़काव, सभी के लिए मलेरिया रोग की बिना विलम्ब जाँच और सही इलाज आदि, ऐसे ज़रूरी प्रभावकारी कदम हैं जो इस मलेरिया टीके के साथ सभी जगह लागू होने चाहिए।
पर असलियत बहुत गम्भीर है क्योंकि मलेरिया अनेक लोगों को रोग ग्रस्त कर रहा है और कमजोर स्वास्थ्य और सामाजिक सुरक्षा के चलते अनेक लोगों के लिए प्राणघातक रोग बना हुआ है। मलेरिया रोकथाम के लिए आवश्यक स्वास्थ्य सेवाएँ जरूरतमंद लोगों तक समय से नहीं पहुँच रही हैं इसीलिए वैश्विक स्तर पर, मलेरिया से एक साल में 22.90 करोड़ लोग रोग ग्रस्त हुए और 4.09 लाख मृत। मलेरिया से मृत होने वालों में से दो-तिहाई बच्चे थे। 5 साल से कम उम्र के बच्चों में ही मलेरिया से सम्बंधित प्राण-घातक रोग होने का ख़तरा सर्वाधिक होता है।
ज़रूरी स्वास्थ्य सेवाएँ यदि हर जरूरतमंद इंसान तक नहीं पहुँचेंगी तो विश्व में सभी सरकारों का वादा कि 2030 तक मलेरिया उन्मूलन हो जाएगा, कैसे पूरा होगा?
उत्तर प्रदेश में इस साल बारिश में फिर से, जल भराव के साथ-साथ डेंगू, मलेरिया और बुख़ार का प्रकोप जनता ने झेला जबकि इन रोगों से बचाव और रोकधाम, समय से जाँच-इलाज सब मुमकिन है। यदि यह पहली मलेरिया वैक्सीन सभी आवश्यक मलेरिया नियंत्रण सेवाओं के साथ, जरूरतमंद लोगों - विशेषकर बच्चों तक, नहीं पहुँचीं (चाहे वह बच्ची अमीर हो या गरीब, अमीर देश में हो या गरीब देश में) तो कैसे होगा २०३० तक मलेरिया उन्मूलन? सिर्फ़ ११० महीने रह गए हैं और मलेरिया आज भी भारत में एक जन स्वास्थ्य चुनौती बना हुआ है जबकि पड़ोसी देश जैसे कि, श्री लंका, मॉल्डीव्ज़, आदि ने, मलेरिया उन्मूलन का लक्ष्य हासिल कर लिया है।
दुनिया की सबसे पहली मलेरिया वैक्सीन के बारे में जाने
संयुक्त राष्ट्र की सर्वोच स्वास्थ्य एजेन्सी, विश्व स्वास्थ्य संगठन ने, इस मलेरिया वैक्सीन (“आटीएस,एस”) को ऑक्टोबर 2021 में मोहर लगा के सभी देशों को वैश्विक मलेरिया उन्मूलन के लिए एक और प्रभावकारी माध्यम दिया है।
यह मलेरिया वैक्सीन दुनिया के उन देशों या क्षेत्रों में अधिक कारगर रहेगी जहां यह रोग, मलेरिया कीटाणु "प्लैज़्मोडीयम फ़ेलकीपेरम" के कारण होता है। इस कीटाणु के कारण सबसे जानलेवा मलेरिया होने का ख़तरा रहता है, और यही कीटाणु अधिकांश अफ्रीकी मलेरिया के लिए भी ज़िम्मेदार है। भारत में अधिकांश मलेरिया इस कीटाणु से तो नहीं होती परंतु अनेक प्रदेशों में यह जानलेवा मलेरिया वाले कीटाणु का प्रकोप है।
इस मलेरिया वैक्सीन का शोध शुरू हुए 30 साल से भी अधिक समय हो चुका है। इसके शोध के दौरान, जिन बच्चों को वैक्सीन लगी थी उनमें से बहुत ही कम बच्चों पर अत्यंत गम्भीर दुष्प्रभाव पड़ने की आशंका थी - पर यह स्थापित नहीं था कि यह दुष्प्रभाव वैक्सीन के कारण हुए या किसी अन्य कारण से। यह भी एक कारण था कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 2015 में वैक्सीन शोधकर्ताओं से एक पाइलट शोध करने को कहा जो 2019 में 3 अफ्रीकी देशों में शुरू हुआ - अप्रैल 2019 में यह मलावी में शुरू हुआ, मई 2019 में घाना में और सितम्बर 2019 में कीन्या में शुरू हुआ। इस शोध में 8 लाख से अधिक बच्चों को यह वैक्सीन लगी - पहली 3 खुराक 5-9 महीने की उम्र में लगी और 4वीं खुराक 2 साल की उम्र में लगी। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, चौथी खुराक लगे या नहीं इसका प्रमाण अभी पुख़्ता नहीं है इसीलिए शोध जारी है कि 4वीं खुराक का लाभ है या नहीं। 2019 से हुए पाइलट शोध में जिसमें 8 लाख से अधिक बच्चों का टीकाकरण हुआ, यह सिद्ध हुआ कि इस टीके के कोई गम्भीर दुष्प्रभाव नहीं हैं। बल्कि इस टीके से मलेरिया से बच्चों का बचाव हुआ है।
30+ साल से हो रहे मलेरिया टीके शोध के मुख्य नतीजे:
जिन बच्चों को टीका नहीं लगा उनकी तुलना में टीकाकरण करवाए हुए बच्चों में मलेरिया से बचाव होता है
- हर 10 मलेरिया ग्रस्त होने वाले बच्चों में से 4 को टीके के कारण मलेरिया नहीं हुआ
- हर 10 मलेरिया से मृत होने वाले बच्चों में से 3 की जान टीके के कारण बची
- हर 10 गम्भीर मलेरिया "अनीमिया" झेलने वाले बच्चों में से 6 का बचाव टीके ने किया। यह इस लिए भी महत्वपूर्ण बात है क्योंकि मलेरिया से मृत होने वाले बच्चों में से अधिकांश मलेरिया "अनीमिया" के कारण मृत होते हैं
इसके अलावा भी इस मलेरिया वैक्सीन के अनेक लाभ मिले। मलेरिया अनीमिया के कारण ही अधिकांश बच्चे अस्पताल में भर्ती होते हैं और रक्त चढ़ाने की ज़रूरत भी पड़ती है। चूँकि वैक्सीन के कारण मलेरिया अनीमिया का दर घटी इसीलिए मलेरिया के कारण अस्पताल में भर्ती होने वालों की संख्या में गिरावट आयी और रक्त चढ़ाने की ज़रूरत भी कम हुई।
पर यह बात समझना ज़रूरी है कि यह टीका अकेले पर्याप्त नहीं है बल्कि बाक़ी सभी प्रभावकारी मलेरिया नियंत्रण और रोकधाम के जो तरीक़े हैं उनके साथ समोचित ढंग से बिना-विलम्ब लागू होना चाहिए।
अफ़्रीका में हुए पाइलट शोध के अनुसार, जिन ८ लाख बच्चों तक वैक्सीन पहुँची उनमें से दो-तिहाई बच्चे, कीटनाशक युक्त मच्छरदानी के भीतर नहीं सो रहे थे। यह महत्व की बात है कि मलेरिया टीका उन बच्चों तक पहुँचा जिन तक कीटनाशक युक्त मच्छरदानी नहीं पहुँच पा रही थी। यह सवाल भी उठता है कि जरूरतमंद बच्चों तक मलेरिया नियंत्रण के पुराने प्रभावकारी तरीक़े क्यों नहीं पहुँच पा रहे थे?
इन अफ्रीकी देशों में हुए शोध में यह भी देखा गया कि मलेरिया टीका लगने से कहीं अन्य मलेरिया नियंत्रण और रोकधाम के तरीक़ों के उपयोग में कमी तो नहीं आती और यह सिद्ध हुआ कि टीके के बाद भी, जो लोग मच्छरदानी का उपयोग कर रहे थे वह करते रहे और अन्य मलेरिया नियंत्रण कार्यक्रम भी सुचारु रूप से चलते रहे।
दुनिया के लिए जीएसके के साथ मिलकर भारत की बाइओटेक (biotech) कम्पनी बनाएगी यह टीका
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने मलेरिया टीके को जारी करते हुए कहा कि दुनिया के सभी बाइओ-टेक उद्योग से अनुरोध किया गया था कि वह जीएसके (जिस कम्पनी का यह टीका है) के साथ मिल कर इसको निर्मित और वितरण के लिए अर्ज़ी दें। विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक और अन्य विशेषज्ञों ने कहा कि विश्व में सिर्फ़ भारत की बाइओ-टेक कम्पनी ही चयनित हुई है जो जीएसके के साथ इस टीके को बनाएगी और दुनिया में वितरित करेगी।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने यह भी कहा कि प्रारम्भिक प्रयास हो रहे हैं कि इस नए मलेरिया वैक्सीन को ख़रीदने के लिए धनराशि एकत्रित हो पर यह सवाल महत्वपूर्ण है कि जब वैज्ञानिक उपलब्धि प्राप्त होती है तो जरूरतमंद तक पहुँचने में अनावश्यक विलम्ब होता है। हर पाँच में से चार कोविड वैक्सीन टीके अमीर देशों में लगे हैं - इस ग़ैर बराबरी को नज़रंदाज़ नहीं कर सकते।
मलेरिया वैक्सीन को जरूरतमंद बच्चों तक पहुँचाने के लिए, बिना विलम्ब, आवश्यक सभी कदम उठाने चाहिए। पैसे के अभाव हो या हर देश की अपनी अंदरूनी प्रक्रिया जिसके तहत नयी वैक्सीन को संस्तुति आदि मिलती है - यह कहीं अनावश्यक विलम्ब न करे। यदि मलेरिया उन्मूलन का सपना साकार करना है तो हर प्रभावकारी मलेरिया नियंत्रण, रोकधाम, जाँच-इलाज सेवाएँ आदि सभी जरूरतमंद तक बिना विलम्ब दुनिया भर में पहुँचे वरना न सिर्फ़ मलेरिया उन्मूलन में हम असफल होंगे बल्कि अन्य सतत विकास लक्ष्यों पर भी पिछड़ेंगे।