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 हाथरस कांड : अब सीबीआई जांच की मॉनिटरिंग इलाहाबाद हाई कोर्ट करेगा

 एजेंसी 

नई दिल्ली : हाथरस कांड की सीबीआई जांच की निगरानी का जिम्मा सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट को सौंप दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई से कहा कि वह जांच की स्टेटस रिपोर्ट हाई कोर्ट में जमा करवाए. मुकदमे को दिल्ली ट्रांसफर करने पर फिलहाल कोई आदेश देने से कोर्ट ने मना कर दिया. कहा- जांच पूरी होने के बाद अगर ज़रूरत हुई तो इस सवाल पर विचार किया जा सकता है.

याचिकाओं में रखी गई थी अलग-अलग मांगे 

सुप्रीम कोर्ट में हाथरस मामले पर दाखिल कई याचिकाओं में अलग-अलग मांगे रखी गई थी. इनमें- सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट के मौजूदा या पूर्व जज की अध्यक्षता में SIT के गठन, सीबीआई जांच की समय सीमा तय करने, जांच की सुप्रीम कोर्ट की तरफ से निगरानी, पीड़ित परिवार को सीआरपीएफ की सुरक्षा देने और मुकदमे को दिल्ली ट्रांसफर करने जैसे कई पहलू शामिल थे. मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस एस ए बोबडे की अध्यक्षता वाली तीन जजों की बेंच ने की. जजों ने कई बार यह कहा था कि इनमें से ज्यादातर पहलुओं पर आदेश देने में हाई कोर्ट सक्षम है. याचिकाकर्ताओं को अपनी बातें वही रखनी चाहिए.

सुप्रीम कोर्ट ने मामले को इलाहाबाद हाई कोर्ट में भेजा

आज दिए आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने मामले को इलाहाबाद हाई कोर्ट में भेज दिया. कोर्ट ने कहा- “हाई कोर्ट भी मामले पर सुनवाई कर रहा है. जो भी बातें सुप्रीम कोर्ट में रखी गई हैं, उन्हें हाई कोर्ट देख सकता है. सीबीआई अपनी जांच की स्टेटस रिपोर्ट हाई कोर्ट में जमा करवाए और हाईकोर्ट के निर्देशों के मुताबिक जांच को आगे बढ़ाए.“

मुकदमे को दिल्ली ट्रांसफर करने की मांग पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “अभी इस पर आदेश देने की कोई जरूरत नहीं है. पहले सीबीआई को जांच पूरा पूरी करने दिया जाए. उसके बाद जरूरत के मुताबिक इस मसले को हमारे सामने रखा जा सकता है.“ पीड़ित परिवार को सीआरपीएफ की सुरक्षा देने की मांग पर भी सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर इस पहलू पर कोई आदेश देने की जरूरत है, तो वह हाई कोर्ट कर सकता है.

पीड़ित परिवार की पहचान उजागर न हो- सुप्रीम कोर्ट

मामले की सुनवाई के दौरान यूपी सरकार के लिए पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने हाई कोर्ट के एक आदेश का हवाला दिया था, जिसमें पीड़िता और उसके परिवार की पहचान उजागर हो रही थी. सुप्रीम कोर्ट ने आज हाई कोर्ट से आग्रह किया कि वह अपने आदेश में उचित संशोधन कर ले, जिससे पीड़ित परिवार की पहचान उजागर न हो सके.

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