विज्ञान पत्रिका ‘द लैंसेट’ का दावा- हाइड्रॉक्सिक्लोरोक्वीन दवा कारगर नहीं
नई दिल्ली : कोरोना विषाणु संक्रमण को मात देने के लिए ‘हाइड्रॉक्सिक्लोरोक्वीन’ यानी एचसीक्यू की मांग पिछले दिनों दुनिया में बढ़ी थी और तमाम देशों ने भारत से इसके आयात की मांग की थी। भारत सरकार ने भी बड़ा कदम उठाते हुए इसके निर्यात पर लगी रोक को हटा लिया था। इस बीच, स्वास्थ्य और विज्ञान की नामी पत्रिका ‘द लैंसेट’ ने यह कह कर सबको चौंका दिया है कि कोविड-19 मरीजों के इलाज में ‘हाइड्रॉक्सिक्लोरोक्वीन’ का कोई फायदा नहीं। ताजा शोध के मुताबिक तो इस दवा के इस्तेमाल से मरीजों में मृत्यु दर बढ़ रही है। पत्रिका ‘द लैंसेट’ ने ट्वीट किया है, ‘प्राथमिक रिपोर्टों के आधार पर आए परिणामों से ये साफ होता है कि क्लोरोक्वीन और हाइड्रॉक्सिक्लोरोक्वीन को अकेले या फिर एजिथ्रोमाइसिन के साथ खाना फायदेमंद नहीं है।’ साथ ही पत्रिका ने यह भी दावा किया है कि इस दवा को खाने से अस्पताल में भर्ती संक्रमित मरीजों को नुकसान होने की आशंका होती है।
पत्रिका के अध्ययन में चार महाद्वीपों के कोरोना विषाणु से संक्रमित 96 हजार मरीजों को शामिल किया गया। शोधकर्ताओं ने कुल 96032 मरीजों पर अध्ययन किया। उनमें गंभीर मरीजों की औसत आयु 53.8 थी। 46.3 फीसद महिलाएं थीं। इनमें से 14888 मरीजों का उपचार किया जा रहा था। 1,868 को क्लोरोक्वीन, 3,783 को मैक्रोलाइड के साथ क्लोरोक्वीन, 3,016 को हाइड्रॉक्सिक्लोरोक्वीन और 6,221 को मैक्रोलाइड के साथ हाइड्रॉक्सिक्लोरोक्वीन दी गई थी। अन्य 81,144 मरीज की स्थिति ठीक थी। अध्ययन में पाया गया कि अस्पताल में 10,698 यानी 11.1 फीसद रोगियों की मृत्यु हो गई। पता चला कि दूसरे मरीजों की तुलना में हाइड्रॉक्सिक्लोरोक्वीन खाने वाले वर्ग में ज्यादा मौतें हुईं। इन मरीजों में हृदय रोग की समस्या भी देखी गई। जिन्हें हाइड्रॉक्सिक्लोरोक्वीन दी गई, उनमें मृत्यु दर 18 फीसद रही। दूसरी तरह की क्लोरोक्वीन लेने वालों में यह आंकड़ा 16.4 फीसद रहा। जिन्हें यह दवा नहीं दी गई, उनमें मृत्यु दर नौ फीसद रही।
करीब एक सदी पहले मलेरिया के इलाज के लिए खोजी गई हाइड्रॉक्सिक्लोरोक्वीन का इस्तेमाल एमीबियेसिस (पेचिश) और अथर्राइटिस (जोड़ों के दर्द) जैसी बीमारियों में भी होता रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की जरूरी दवाओं की सूची में यह शामिल है। इसे सबसे प्रभावी और सुरक्षित दवाओं में से एक माना जाता है। हालांकि, द लैंसेट ने चेताया है कि यह दवा हृदय रोगों को बढ़ा सकती है।
कई देशों के साथ साथ अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भी भारत से इस दवा की मांग की थी। ट्रंप बोल चुके हैं कि वे खुद जिंक के साथ इस दवा को ले रहे हैं।
वैज्ञानिक कह चुके हैं कि जिंक सप्लीमेंट और एंटीबॉयोटिक के साथ यह दवा लेने से खतरा कम हो जाता है। ग्रॉसमैन स्कूल आॅफ मेडिसिन ने कोविड-19 के 932 मरीजों पर दो मार्च से पांच अप्रैल तक शोध किया था। इनमें से करीब आधे संक्रमितों को एचसीक्यू और एजिथ्रोमाइसिन के साथ साथ जिंक सल्फेट दिया था। जबकि आधे मरीजों को सिर्फ हाइड्रॉक्सिक्लोरोक्वीन और एजिथ्रोमाइसिन दी गई। जिंक सल्फेट के साथ दवा लेने वाले मरीजों में ठीक होने की दर दूसरे मरीजों से डेढ़ गुना अधिक देखी गई। मरने की दर भी 44 फीसद कम देखी गई।
इन शोध नतीजों के बाद शोधकर्ताओं ने चेताया है कि इस दवा को बगैर चिकित्सकीय परीक्षण के लेना खतरनाक है। द लैंसेट का शोध सामने आने के बाद इसका चिकित्सकीय परीक्षण शुरू किया है। यूरोप, एशिया, अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका के 40 हजार से ज्यादा स्वास्थ्यकर्मियों पर इसका परीक्षण किया जाएगा।


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