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परहित सरिस धर्म नहिं

 परहित सरिस धर्म नहिं

----------------------------  तारन प्राकश सिन्हा जी के फेसबुक वाल से 
  
इस लॉक डाउन के दौरान रोज कमाने खाने-वालों, प्रवासी मजदूरों और बेघरों के लिए प्रबंधन देशभर में चुनौती बनकर उभरा है। सात पड़ोसी राज्यों से सांस्कृतिक और आर्थिक रूप से जुड़े छत्तीसगढ़ में भी ओडिशा, उत्तरप्रदेश, बिहार, झारखंड आदि राज्यों के प्रवासी मजदूर बड़ी संख्या में निवासरत हैं। गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश समेत अनेक राज्यों में छत्तीसगढ़ के मजदूर प्रवास करते हैं। इन मजदूरों का प्रबंधन यहां भी एक चुनौती हो सकती थी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। देश के दिगर इलाकों जैसी भगदड़ यहां नजर नहीं आई।
कोविड-19 के फैलाव के शुरुआती दिनों में ही छत्तीसगढ़ शासन ने इस स्पष्ट समझ के साथ काम करना शुरू कर दिया था कि यदि विदेशों से आ रहे संक्रमित लोगों को आइसोलेट कर उपचार करने के साथ-साथ दिहाड़ी मजदूरों को सुरक्षित नहीं किया गया तो जल्द ही स्थिति नियंत्रण से बाहर हो जाएगी। दो चीजें जरूरी थीं, एक तो इन मजदूरों को इस वायरस के खतरों के बारे में ठीक से समझाया जाए, दूसरी यह कि उन्हें उनकी दैनिक जरूरतों की पूर्ति को लेकर आश्वस्त किया जाए। इन दोनों ही मोर्चों पर सफलता हाथ लगी। 
लॉक-डाउन के दौरान देश के दिगर शहरों की तरह छत्तीसगढ़ के गांवों-शहरों में पुलिस को बल-प्रयोग की जरूरत नहीं पड़ी। लॉक-डाउन के महत्व को शासन ने इतने सफल तरीके से कम्युनिकेट किया गांव के गांव अपनी-अपनी सुरक्षा के उठ खड़े हुए। उन्होंने अपने नियम कायदे खुद तय किये और अपने तौर-तरीके भी। किसानों के ब्यारों के ‘राचर’ गांवों के मुख्यमार्गों के बैरियर बन गए। यह जागृति सरगुजा से लेकर बस्तर के सुदूर अबुझमाढ़ और सुकमा तक नजर आई।
TNIS
 

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