मशहूर शायर राहत इंदौरी का निधन
मशहूर शायर राहत इंदौरी का निधन हो गया है. वह कोरोना वायरस से संक्रमित थे. कोविड-19 की पुष्टि होने के बाद 70 वर्षीय राहत इंदौरी को देर रात अस्पताल में भर्ती कराया गया था. जहां आज उन्होंने अंतिम सांस ली. राहत साहब तो दुनिया को अलविदा कह गए लेकिन पीछे अदब का वो विरासत छोड़ गए हैं जो हमेशा नई पीढ़ी के लिए किसी खजाने से कम नहीं होगी.
बड़ा शायर वो है जो शेर बतौर शायर नहीं बल्कि बतौर आशिक कहे. जब लोग राहत इंदौरी साहब को सुनते हैं या पढ़ते हैं तो उन्हें एक ऐसा शायर नज़र आता है जो अपना हर शेर बतौर आशिक कहता है. वह आशिक जिसे अपने अदब के दम पर आज के हिन्दुस्तान में अवाम की बेपनाह महबूबियत हासिल है. शायरी को लेकर ग़ालिब, मीर, ज़ौक, फैज़. इक़बाल आदि मुतालिए (अध्यन) के विषय हैं और हमेशा रहेंगे. इनके मुतालिए के बिना तो शेर शुद्ध लिखना और ग़ज़ल समझना भी दूर की बात है लेकिन ग़ालिब, मीर, ज़ौक, फैज़ और इक़बाल जैसे बड़े शोअराओं के अलावा आज हिन्दी-उर्दू का कैनवस इतना बड़ा सिर्फ इसलिए है क्योंकि अदब की मशाल राहत इंदौरी जैसे शायर ने इतने सालों तक अपने हाथ में थामें रखा.
यह सच है कि साहित्य इमारतों में पैदा नहीं होती..उसे गंदे बस्तियों में जाकर फनीश्वरनाथ रेनु बनने के लिए आंचलिक सफर तय करना पड़ता है. उसे प्रेमचंद बनने के लिए मॉल की चकाचौंध छोड़कर किसी काश्तकारी करते होरी की तलाश में निकलना ही पड़ता है. उसे सआदत हसन मंटो की तरह अरबाबे निशात (कोठे वालियों की गली) में भटकना पड़ता है. मोहब्बत में सफल हो जाने मात्र से साहित्य पैदा नहीं होता. साहित्य लिखने के लिए अमृता प्रीतम की तरह इमरोज को अपने घर की छत और साहिर को खुला आसमान बनाना पड़ता है. राहत साहब की सबसे खास बात यही रही कि उनकी शायरी मीर और ग़ालिब की ज़मीन पर उपजी अपनी ही तरह की एक शायरी है. वो मीर और ग़ालिब के खानदान के ज़रूर हैं लेकिन राहत साहब की पहचान उनकी अपनी है. उन्होंने तो खुद भी कहा है


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