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 फेस मास्क का उपयोग
कोरोनावायरस महामारी के दौर में संक्रमण से बचने केलिए फेस मास्क का उपयोग पिछले एक साल में सबसे बड़ी सार्वजनिक चर्चा और राजनीतिक बहस का विषय रहा है। मास्क का उपयोग किया जाए या नही  और किस परिस्थिति में किया जाए – यह इस चर्चा से जुड़े कुछ मुद्दे हैं।
आम तौर पर श्वसन संक्रमण संक्रमित व्यक्ति के सांस लेने, बोलने, खाँसने और छींकने के दौरान निकालने वाली संक्रमित बूंदों के ज़रिये फैलता है जिसके प्रसार को मुँह पर मास्क पहनकर कम किया जा सकता है।

इंडियन जर्नल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईजेएमआर)  में प्रकाशित हुए संस्करण 'फेस मास्क  - कोविड-19 के खिलाफ भारत की लड़ाई में एक ज़रूरी हथियार’ - में कहा गया है कि मास्क संक्रमित बूंदों के प्रसार को रोकने के अलावा बेहद सस्ते, उपयोग में आसान और खासकर भीड़-भाड़ वाली जगहों के लिए काफी प्रभावी हैं।

हांलाकि मास्क पहनना शारीरिक दूरी और हाथों की स्वच्छता के लिए एक विकल्प के तौर पर नहीं है पर यह उन परिस्थितियों में बेहद असरदार साबित हो सकते हैं जहां शारीरिक दूरी बनाए रखना मुश्किल हो।

वर्तमान माहौल में जब लोग बचाव के उपाय अपनाते हुए ऊब गए हैं, आपके चेहरे पर मास्क दूसरों इसकीअहमियत याद दिलाने में मदद कर सकता है। इस प्रकार मास्क पहनने वाले लोग न केवल दूसरों पर भी इसके लिए दबाव बना सकते हैं बल्कि सामाजिक परिवर्तन का ज़रिया भी बन सकते हैं।
 
इसलिए उचित होगा कि भारत में रहने वाला प्रत्येक व्यक्ति सार्वजनिक स्थानों पर उचित मास्क ज़रूर पहने। मास्क का उपयोग आगे आने वाले कुछ समय तक जारी रखना होगा क्यूंकि कोविड-19 का टीका आने के बाद भी वैक्सीन से प्रतिरोधक क्षमता विकसित होने में अभी समय लगेगा।

.बीमारी की रोकथाम के लिए सामुदायिक स्तर पर मास्क का उपयोग सबसे पहले पूर्वोत्तर चीन के मंचूरियन प्लेग (1910-1911) के समय किया गया था। इस महामारी के दौरान बीमारी से बचाव में जुटी टीम ने अनुभव किया कि इस  बीमारी  का प्रसार हवा के माध्यम से हो सकता है और इसलिए  मरीजों को क्वारंटाइन करने के अलावा लोगों को पतले कपड़े या पट्टी से बने मास्क (गौज़ मास्क) पहनने की सलाह दी गई।

.कुछ साल बाद 1918 के इन्फ्लूएंजा महामारी, जिसे स्पैनिश फ्लू भी कहा जाता है, के दौरान पश्चिमी देशों में कई परतों वाले कपड़े के मास्क के उपयोग को बढ़ावा दिया गया। लेकिन खराब गुणवत्ता और कुछ हद तक लोगों द्वारा मास्क का उपयोग न करने की वजह से यह कुछ खास प्रभावी साबित नहीं हुआ।

.लगभग एक सदी बाद, संक्रामक रोगों के बारे में जानकारी बढ्ने के साथ ही सिवियर एक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम (सार्स), मिडिल ईस्ट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम (मर्स) और अब कोविड-19 के खिलाफ बचाव में मास्क सबसे अहम हथियार बन गए हैं।

भारत में 30 जनवरी 2020 को कोविड-19 की पहली दस्तक के बाद यात्रा प्रतिबंधों से संबंधित जारी एड्वाइज़री, अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डों पर विदेश से आने वाले यात्रियों की स्क्रीनिंग, उड़ानों पर प्रतिबंध और 24 मार्च से राष्ट्रीय लॉकडाउन जैसे उपायों द्वारा कोविड-19 के प्रसार को रोकने की कोशिश की गई। इसके अलावा सार्वजनिक रूप से मास्क के उपयोग को भी प्रोत्साहित किया गया।

संस्करण के अनुसार, राष्ट्रीय सीरोलॉजिकल सर्वेक्षण के तीसरे चरण के आंकड़ों का एक प्रारंभिक विश्लेषण बताता है कि संक्रमण अब तक एक-चौथाई से अधिक आबादी में नहीं फैला है और इसलिए लोगों में हर्ड ईम्यूनिटी विकसित होने में अभी समय लगेगा ।

मास्क पर्यावरण में संक्रमित बूंदों के प्रसार को रोकने में मदद करते हैं। आमतौर पर बाज़ार में तीन प्रकार के मास्क उपलब्ध हैं: (i) कोविड-19 – कपड़े के मास्क , (ii) मेडिकल मास्क और (iii) रेस्पिरेटर मास्क (एन95 और एन99)। विश्व स्वास्थ्य संगठन आम लोगों को कपड़े के मास्क जबकि कोविड-19 उपचारधीनों, उच्च जोखिम वर्ग के लोगों और स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को मेडिकल या रेस्पिरेटर मास्क पहनने की सलाह देता है।

कपड़े के मास्क मोटे कणों को सांस के साथ बाहर जाने से रोकते हैं और छोटे कणों के प्रसार को भी सीमित करते हैं। कई परतों वाला कपड़े का मास्क सांस से निकलने वाले कणों को 50 से 70 प्रतिशत तक फिल्टर कर लेता है। कपड़े के मास्क की प्रभावशीलता विभिन्न कारकों पर निर्भर करती है जैसे कि कपड़े का प्रकार, परतों की संख्या और मास्क का चेहरे पर फिट। मोटे कपड़े से बना कम से कम तीन परतों वाला कपड़े का मास्क पहनना सबसे उपयुक्त माना गया है।

सूती मिक्स या अन्य मिले-जुले कपड़े जैसे सूती-रेशम या सूती-शिफॉन से बने मास्क बेहतर होते हैं क्योंकि सूती कपड़े के मुकाबले इनकी फिल्टर करने की क्षमता अधिक होती है। मास्क की बाहरी परत जल-प्रतिरोधी (हाइड्रोफोबिक) कपड़े जैसे पॉलिएस्टर या सूती-पॉलिएस्टर मिक्स की होनी चाहिए जिससे वातावरण में मौजूद बूंदें उसमें न समाएँ।
 
बीच की परत भी जल-प्रतिरोधी जैसे पॉलीप्रोपाइलीन कपड़े की होनी चाहिए, लेकिन  सबसे अंदर की परत जल-शोषक (हाइड्रोफिलिक) होनी चाहिए जिससे वह नाक और मुंह से निकलने वाली बूंदों को सोख ले और वह वातावरण में न जा पाएँ।

मास्क के उपयोग कब तक किया जाए और उसे कब बदला जाए यह इसपर निर्भर करता है कि मास्क किस प्रकार का है। कपड़े के मास्क को इस्तेमाल के तुरंत बाद या रोज़ साबुन और गर्म पानी से धोना चाहिए।
 
मेडिकल मास्क को केवल एक बार ही इस्तेमाल करना चाहिए जबकि रेसपिरटर मास्क को संसाधनों की कमी के चलते सावधानी के साथ साफ करके दोबारा इस्तेमाल किया जा सकता है।

मास्क प्रभावी हो इसके लिए ज़रूरी है कि इसका उपयोग उचित तरीके से किया जाए। हाल ही में हुए एक सर्वेक्षण में कहा गया है कि केवल 44 प्रतिशत भारतीय ही दिशा-निर्देशों के अनुसार मास्क को सही तरीके से पहन रहे हैं। कुछ लोगों को मास्क पहनने के बाद असुविधा और साँस लेने में कठिनाई भी हुई।

विशेषज्ञों का कहना है कि कोविड-19 संक्रमण के अलावा मास्क अन्य तरह के श्वसन संक्रमण जैसे इन्फ्लूएंजा और टीबी को भी फैलने से रोकने में मददगार हैं। इसलिए उनका उपयोग करना बेहद महत्वपूर्ण है।

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