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स्ट्रेस डिसऑर्डर: नई थेरेपी से मिटेगा दिमाग का डर

 हेल्थ न्यूज़ 

वैज्ञानिकों ने ऐसी एक नई उपचार प्रक्रिया विकसित की है जो व्यक्ति के दिमाग में बैठे किसी खास डर को मिटा सकती है। इस प्रक्रिया में मस्तिष्क की स्कैनिंग तकनीक और कृत्रिम बुद्धि का इस्तेमाल किया गया है। शोधकतार्ओं ने कहा, इस उपचार से किसी हादसे से गुजर चुके व्यक्ति के दिमाग से हादसे के कारण पैदा हुए डर या तनाव को दूर किया जा सकेगा।किसी हादसे या अवांछित परिस्थिति से गुजरने के कई मामलों में व्यक्ति के दिमाग में उसकी डरावनी यादें जड़ जमा लेती हैं। इससे वह अपने रोजमर्रा के जीवन में सामान्य नहीं रह पाता। वह आशंका और तनाव से पीड़ित हो जाता है, जिसे डॉक्टरी भाषा में पोस्ट ट्राउमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर कहते हैं। 
 
मस्तिष्क के इस हिस्से में पैदा होता है डर 
इस समस्या को देखते हुए कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के शोधकतार्ओं ने डिकोडेड न्यूरो फीडबैक नामक एक नई तकनीक विकसित की। इसका इस्तेमाल कर दिमाग को पढ़कर उसमें अवचेतन रूप से बैठे डर को पहचान कर मिटाया जा सकता है। इसमें मस्तिष्क की स्कैनिंग कर गतिविधियों पर नजर रखी जाती है। यह देखा जाता है कि किसी डर या आशंका के जिक्र के प्रति मस्तिष्क की गतिविधियों में क्या और कैसी जटिलता पैदा होती है।
फिलहाल ऐसे मरीजों को आम तौर पर उस डर का सामना कराया जाता है, जिससे वे पीड़ित होते हैं। ताकि उन्हें यह भरोसा हो जाए कि इस डर से उनको कोई हानि नहीं होने वाली है। इसे एवर्सन थेरेपी कहते हैं, जो मरीज को कतई सहज नहीं लगती। इस अध्ययन में शोधकतार्ओं ने बिजली का झटका देकर 17 स्वस्थ प्रतिभागियों के मस्तिष्क में डर की एक याद पैदा कराई। इसके बाद उनके मस्तिष्क की स्कैनिंग कर उस हिस्से को पहचाना, जहां डर की याद अंकित हुई थी। उन्होंने इसका भी पता लगाया कि इस डर को लेकर मस्तिष्क की गतिविधियों में क्या बदलाव आया। इस तरह उन्होंने मस्तिष्क में डर से जुड़ी गतिविधियों के पैटर्न का पता लगाया।  प्रतिभागियों के मस्तिष्क में डर की याद वाले हिस्से में गतिविधि शुरू होते ही शोधकतार्ओं ने उन्हें कुछ पैसे दिए। इस तरह प्रतिभागियों के मस्तिष्क में डर से जुड़ी याद की जगह पैसे पाने की बात अंकित हो गई। तीन दिन तक यह प्रक्रिया दोहराने के बाद शोधकतार्ओं ने प्रतिभागियों के मस्तिष्क की दोबारा स्कैनिंग की। पता चला कि मस्तिष्क में पहले जिस स्थान पर डर की याद अंकित थी, उसकी गतिविधियां थम-सी गई थीं। अर्थात प्रतिभागी उस डर को भूल चुके थे। यह अध्ययन नेचर ह्यूमन बिहेवियर जर्नल में छपा है।

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