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 महासमुन्द : लें स्पीच थैरेपी, हकलाना और तुतलाना होगा बंद, सुविधा- जिला चिकित्सालय में मिलती है स्पीच थैरेपी की निःशुल्क सेवा

अगर आप हकलाते हैं या आपका बच्चा तुतलाता है तो स्पष्ट शब्दों में बात न कर पाने की यह परेशानी बिना रुपया खर्चे, सरल अभ्यास से ही दूर हो सकती है‘‘

महासमुन्द 12 मार्च : कितना आसान है न ‘दुबई‘ शब्द बोलना, ध्यान रहे कि हम ‘चैकोस्लोवाकिया‘ जैसे कठिन शब्दों की बात नहीं कर रहे और न ही किसी मैट्रो सिटी के महंगे और बड़े अस्पताल में मिलने वाले इलाज की। बता दें कि कभी मशहूर फिल्म अभिनेता हृतिक रोशन के लिए भी दुबई जैसे साधारण से शब्द का उच्चारण कर पाना दूभर था। लेकिन, नियमित अभ्यास व मेहनत रंग लाई और अब उनकी पकड़, हिन्दी ही नहीं अपितु अंग्रजी भाषा में भी काफी बेहतर है। अगर, आपके परिवार में भी किसी सदस्य को हकलाने या तुतलाने की परेशानी है तो यह खबर आपके काम की है। यहां, हम बात कर रहे जिला चिकित्सालय के कक्ष क्रमांक त्रेपन में मिलने वाली उन निशुल्क सेवाओं की जो ‘स्पीच थैरेपी‘ यानी मौखिक संचार संबंधित दिक्कतों को दूर करने वाला विज्ञान है। 

यहां, अवकाश के दिन छोड़ कर सुबह 09 बजे से दोपहर 02 बजे तक नियमित रूप से ओपीडी संचालित की जाती है। पहले जांच कर पता लगाया जाता है कि मरीज को किस तरह की समस्या है, फिर अभ्यास के जरिए संचार संबंधी परेशानी दुरुस्त की जाती है। प्रभारी मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी तथा सिविल सर्जन सह मुख्य अस्पताल अधीक्षक डॉ आरके परदल ने बताया कि राष्ट्रीय बधिरता बचाव व नियंत्रण कार्यक्रम के नोडल अधिकारी डॉ के गजभिए एवं नाक-कान-गला रोग विशेषज्ञ डॉ ओंकेश्वरी साहू के मार्गदर्शन व अनुभवी विशेषज्ञों की देख-रेख में मनोवैज्ञानिक तरीके से स्पीच थैरेपी परामर्श व उपचार की सेवाएं प्रदाय की जा रही हैं। ऑडियोलॉजिस्ट सुश्री अर्चना तोमर के मुताबिक जिले भर से हर माह तकरीबन दर्जन भर के आस-पास मरीज स्पीच थेरेपी लेने आते हैं। जिनमें, वयस्कों में हकलाने यानी बोलते-बोलते किसी अक्षर या शब्द विशेष पर अटक जाने की परेशानी होती है। वहीं, आमतौर पर बच्चों में तुतलाना मतलब बोलते समय अक्षर ‘स‘ को ‘छ‘ या अक्षर ‘क‘ को ‘ग‘ आदि उच्चारित करने जैसी समस्याएं देखने मिलती हैं। बड़ों में हकलाने की परेशानी में कोई उम्र बंधन नहीं होता। लेकिन, यदि बच्चों में छह वर्ष की आयु के बाद भी तुतलाने की समस्या हो तो उन्हें ‘स्पीच थैरेपी‘ की जरूरत होती है। दोनों ही स्थितियों में उच्चारण और उपचार पद्धत्ति के संतुलित अभ्यास से स्वास्थ्य लाभ मिलना काफी हद तक संभव हा जाता है। बस जरूरत है तो जागरूकता के साथ नियमित अभ्यास में सहयोगी परामर्शदाता और परिवार की।

जिला कार्यक्रम प्रबंधक श्री संदीप ताम्रकार से मिली जानकारी के मुताबिक अभी भी लोग अपने बच्चों के साफ न बोलने पर सोचते हैं कि उनके वयस्क होने पर यह समस्या खुद-ब-खुद सुलझ जाएगी। लेकिन, हमेशा ऐसा हो यह जरूरी नहीं। इस समस्या से जूझ रहे व्यक्ति के हंसी का पात्र बनना और उसके आत्म-विश्वास का प्रभावित होना आम है। संबंधित विषय पर बीते कुछ वर्षों में मैट्रो सिटी या अन्य बड़े शहरों के लोग अपेक्षाकृत अधिक जागरूक हुए हैं, लेकिन, जिले में अभी इन समस्याओं को लेकर सिर्फ स्वास्थ्य विभाग और राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन ही पहल करता नजर आ रहा है। जब्कि, समस्याग्रस्त प्रभावितों की संख्या कहीं अधिक है। इस संबंध में विषय को गंभीरता से लेते हुए डॉ परदल ने भी स्थानीय निवासियों की ओर अनुकरणीय संदेश प्रेषित किया है। जिसमें, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन अंतर्गत संचालित ऑडियोमेट्री एवं निशुल्क स्पीच थैरेपी पद्धत्ति से स्वास्थ्य लाभ लेने की अपील निहित है।

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