महासमुन्द : पशुओं में खुरपका-मुंहपका रोग उन्नमूलन कार्यक्रम 31 मार्च तक
जिले में गौवंशीय एवं भैंसवंशीय पशुओं का किया जा रहा है टीकाकरण
महासमुन्द 26 फरवरी 2020/ : पशुमाता महामारी रिन्डर पेस्ट उन्मूलन की तर्ज पर राष्ट्रीय पशु रोग नियंत्रण कार्यक्रम के अंतर्गत पशुधन विकास विभाग द्वारा पशुओं में होने वाले खुरपका-मुंहपका रोग एफ.एम.डी उन्मूलन कार्यक्रम चलाया जा रहा है। पशु चिकित्सा सेवाएं के उपसंचालक डॉ.डी.डी.झारिया ने बताया कि शत-प्रतिशत केन्द्रीय वित्तीय सहायता से संचालित इस कार्यक्रम के तहत वर्ष 2025 तक इस रोग पर नियंत्रण एवं 2030 तक पूर्णतः उन्मूलन कर एफ.एम.डी. मुक्त भारत का लक्ष्य रखा गया है। राष्ट्रीय एफ.एम.डी. उन्मूलन का पहला चरण जिले में विगत 15 फरवरी 2020 से प्रारंभ हो गया है जो 31 मार्च 2020 तक चलेगा। इसके अंतर्गत गौवंशीय एवं भैंसवंशीय पशुओं का शत-प्रतिषत टीकाकरण किया जा रहा है। टीकाकृत पशुओं की पहचान एवं पंजीयन के लिए बारह अंकीय ईयर टैग लगाया जा रहा है।
उन्होंने बताया कि जिले में लगभग साढ़े तीन लाख गौवंशीय एवं भैंसवंशीय पशुधन है। इसी प्रकार भेड़ बकरी वर्ग की संख्या लगभग डेढ़ लाख है जिनमें टीकाकरण का कार्य 15 फरवरी तक पूर्ण कर लिया गया है। कार्यक्रम के सफल संचालन के लिए डॉ. आर.जी.यादव को जिला नोडल अधिकारी एवं जिले के समस्त पशु चिकित्सालय प्रभारियों को सहायक नोडल अधिकारी बनाया गया है। जिले में 69 टीकाकरण दलों का गठन किया गया है जिसमें सहायक पशु चिकित्सा क्षेत्र अधिकारी, पट्टीबंधक, पशु परिचारक, मैत्री, प्रायवेट कृत्रिम गर्भाधान कार्यकर्ता, गौ सेवक, जे.के.ट्रस्ट के गोपाल एवं वेटेरनरी पालीटेक्निक डिप्लोमाधारी छात्रों को शामिल कर इन्हे प्रशिक्षण दिया गया है। इनके द्वारा अब तक 12 हजार 186 पशुओं में टीकाकरण एवं दो हजार 337 टीकाकृत पशुओं में ईयर टैग लगाया गया है।
खुरपका-मुंहपका एफ.एम.डी. जुगाली करने वाले, दो खूरी पालतू एवं वन्य पशुओं में होने वाला विषाणु जनित अतिसंक्रामक एवं छूतदार बीमारी है। स्थानीय भाषा में इसे खुरहा-चपका के नाम से जाना जाता है। इसमें तेज बुखार आना, खाना-पीना एवं जुगाली बंद कर देना, मुंह के अंदर जीभ, थन एवं बाल रहित त्वचा पर छाले, फफोले होना, मुंह से लार गिरना एवं चप-चप की आवाज आना, खुरों के बीच में छाले पड़ना एवं घाव हो जाना इस रोग के प्रमुख लक्षण हैं। इस रोग में नवजात वत्सों की मृत्यु हो जाती है। बड़े पशुओं में मृत्यु दर कम है लेकिन उनकी कार्य एवं उत्पादन क्षमता एकदम कम हो जाती है जिससे पशुपालकों को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है। उपचार की अपेक्षा इस रोग से बचाव करना ही बेहतर उपाय है। जिसका टीकाकरण ही एकमात्र उपाय है। डॉ.झारिया ने जिले के पशुपालक कृषक बंधुओं से अपील की है कि टीकाकरण दल का सहयोग कर इस अभियान को सफल बनाएं।
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