जिला बेमेतरा की कृषि प्रगति की सफलता कहानी (2012 से 2025 तक)
द न्यूज़ इंडिया समाचार सेवा
“परंपरागत खेती से आत्मनिर्भर कृषि की ओर बेमेतरा का सफर”
बेमेतरा : कृषि, बेमेतरा जिले की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। वर्ष 2012 से 2025 तक का यह कालखंड जिले के किसानों के लिए एक परिवर्तनकारी दौर साबित हुआ है। आधुनिक तकनीक, योजनाबद्ध प्रयास, सरकारी योजनाओं के प्रभावी क्रियान्वयन एवं किसानों की मेहनत के परिणामस्वरूप बेमेतरा ने कृषि उत्पादन, सिंचाई विस्तार, बीज आत्मनिर्भरता, तथा टिकाऊ खेती के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति दर्ज की है।
फसल क्षेत्र विस्तार: उत्पादन क्षमता में उल्लेखनीय बढ़ोतरी
वर्ष 2012 में खरीफ फसलों का क्षेत्रफल 193.47 हेक्टेयर था, जो 2025 में बढ़कर 225.36 हेक्टेयर हो गया है। रबी फसलों का क्षेत्रफल भी 136.33 हेक्टेयर से बढ़कर 172.63 हेक्टेयर तक पहुँच गया।
इसी के साथ, जिले की फसल समग्र उत्पादकता 2012 के 147.00 हेक्टेयर से बढ़कर 2025 में 176.00 हेक्टेयर तक पहुँची। यह वृद्धि दर्शाती है कि जिले में कृषि भूमि का बेहतर उपयोग, उन्नत तकनीकी हस्तांतरण और किसानों की जागरूकता ने उत्पादन क्षमता को नई ऊँचाइयाँ दी हैं।
नगदी फसल क्षेत्र विस्तार: किसानों की आमदनी में नई ऊर्जा
वर्ष 2012 में जिले में गन्ने की खेती मात्र 2.09 हेक्टेयर क्षेत्र में की जा रही थी, जो 2025 में बढ़कर 3.853 हेक्टेयर हो गई है। कपास जैसी वाणिज्यिक फसल, जो 2012 में लगभग अनुपस्थित थी, 2025 तक 2.28 हेक्टेयर क्षेत्र में विकसित हो चुकी है। इसी प्रकार साग-सब्ज़ी उत्पादन क्षेत्र 3.046 हेक्टेयर से बढ़कर 5.424 हेक्टेयर हो गया है। इन आँकड़ों से स्पष्ट है कि किसानों ने पारंपरिक फसलों के साथ-साथ नकदी फसलों की ओर भी रुख किया है, जिससे उनकी आय में बहुगुणा वृद्धि हुई है।
सिंचित क्षेत्र में विस्तार: जल संसाधनों का बेहतर दोहन
वर्ष 2012 में खरीफ मौसम में सिंचित क्षेत्र 90,711 हेक्टेयर था, जो 2025 में बढ़कर 1,30,624 हेक्टेयर हो गया है।रबी मौसम में भी सिंचित क्षेत्र 71,931 हेक्टेयर से बढ़कर 92,500 हेक्टेयर तक पहुँचा है। यह उपलब्धि बताती है, कि जिले में सिंचाई योजनाओं, नलकूपों, लिफ्ट सिंचाई परियोजनाओं और जल संरक्षण कार्यों के माध्यम से कृषि भूमि की सिंचाई क्षमता में क्रांतिकारी सुधार हुआ है।
प्रमाणित बीज उत्पादन: आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ते कदम
वर्ष 2012 में प्रमाणित बीज उत्पादन के तहत अनाज फसलों का उत्पादन 559.10 क्विंटल था, जो 2025 में बढ़कर 1080.30 क्विंटल हो गया है। इसी प्रकार, दलहन बीज उत्पादन 23.80 क्विंटल से बढ़कर 539.48 क्विंटल हो गया है।यह परिवर्तन दर्शाता है कि जिले ने न केवल स्थानीय बीज उत्पादन में आत्मनिर्भरता हासिल की है, बल्कि अन्य जिलों के लिए भी एक प्रेरणास्रोत बना है।
धान विक्रय करने वाले कृषकों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि
वर्ष 2012 में जहाँ मात्र 66,795 किसान समर्थन मूल्य पर धान विक्रय करते थे, वहीं 2025 में यह संख्या बढ़कर 1,57,633 तक पहुँच गई है। यह वृद्धि कृषि विपणन में किसानों की बढ़ती भागीदारी, पारदर्शिता और शासन की किसान हितैषी नीतियों का प्रतिफल है। किसानों की आमदनी और भरोसे दोनों में उल्लेखनीय सुधार हुआ है।
आदान सामग्री वितरण: संसाधन सशक्तिकरण का विस्तार
वर्ष 2012 में खरीफ बीज वितरण 33,321.33 क्विंटल था, जो 2025 में बढ़कर 44,482.40 क्विंटल हो गया है।
रबी बीज वितरण 6,125.63 क्विंटल से बढ़कर 29,967.30 क्विंटल तक पहुँचा है द्य उर्वरक वितरण में भी दोगुनी से अधिक वृद्धि हुई है कृ खरीफ में 43,681 क्विंटल से बढ़कर 94,357 क्विंटल तथा रबी में 9,205 क्विंटल से बढ़कर 45,550 क्विंटल तक। यह आँकड़े दर्शाते हैं कि कृषि इनपुट की सहज उपलब्धता ने जिले की उत्पादन क्षमता को नई दिशा दी है।
विविध क्षेत्र में प्रगति: आधुनिकता और परंपरा का संगम
वर्ष 2012 में जिले में 266 (निजी एवं सहकारी) आदान वितरण केंद्र संचालित थे, जो 2025 तक बढ़कर 653 केंद्रों तक पहुँच गए हैं। किसान क्रेडिट कार्ड की संख्या 22,500 से बढ़कर 1,59,464 तक पहुँचना किसानों की वित्तीय पहुँच और आत्मनिर्भरता का द्योतक है। इसके अतिरिक्त, वर्ष 2012 में जहाँ जैविक एवं प्राकृतिक खेती का क्षेत्र शून्य था, वहीं 2025 तक 1,080 हेक्टेयर जैविक खेती और 450 हेक्टेयर प्राकृतिक खेती का विस्तार हुआ है। यह परिवर्तन पर्यावरण-संवेदनशील, टिकाऊ और स्वस्थ कृषि पद्धतियों की दिशा में जिले के अग्रसर होने का प्रतीक है।
आत्मनिर्भर किसान, समृद्ध बेमेतरा
वर्ष 2012 से 2025 तक बेमेतरा जिले की कृषि यात्रा आत्मनिर्भरता, नवाचार और सतत विकास की कहानी कहती है। सरकारी योजनाओं के प्रभावी क्रियान्वयन, अधिकारियों के सतत प्रयासों, और किसानों की मेहनत से आज बेमेतरा जिले ने छत्तीसगढ़ में एक कृषि उत्कृष्टता मॉडल के रूप में अपनी पहचान बनाई है। फसल विविधीकरण, सिंचाई विस्तार, बीज आत्मनिर्भरता और पर्यावरण-संवेदनशील खेती जैसे क्षेत्रों में मिली ये सफलताएँ भविष्य के लिए भी प्रेरणा स्रोत हैं।

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