जिला स्तरीय आर्द्रभूमि सीमा निर्धारण पर प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित
द न्यूज़ इंडिया समाचार सेवा
बेमेतरा : कलेक्टर श्री रणबीर शर्मा कि उपस्थिति मे जिला पंचायत सभाकक्ष में प्रातः 10 बजे से जिला स्तरीय आर्द्रभूमि सीमा निर्धारण (आर्द्रभूमि सीमांकन) हेतु एक दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस अवसर पर एडीएम अनिल वाजपेयी, एसडीएम प्रकाश भारद्वाज, एसडीएम बेरला दीप्ती वर्मा, एसडीएम साजा पिंकी मनहर, वनपाल, तहसीलदार, नायब तहसीलदार सहित समस्त हल्का पटवारी, राजस्व निरीक्षक, वन रक्षक और उपवन क्षेत्रपाल उपस्थित रहे। कार्यक्रम के दौरान परिपालन में जिला स्तरीय आर्द्रभूमि संरक्षण समिति का गठन किया गया। प्रशिक्षण में बताया गया कि आर्द्रभूमि एटलस 2021 के अनुसार राज्य में 2.25 हेक्टेयर से अधिक क्षेत्रफल वाली कुल 11,264 आर्द्रभूमियाँ चिन्हित की गई हैं। इनमें कुछ जिलों में संख्या अपेक्षाकृत कम है जैसे नारायणपुर (18), दंतेवाड़ा (51) और पेंड्रा-गौरेला- मरवाही (77), वहीं बिलासपुर (840) और रायपुर (944) जैसे जिलों में यह संख्या अत्यधिक है।
आर्द्र भूमि सीमांकन हेतु मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) के विभिन्न बिंदुओं पर विस्तार से जानकारी दी गई। राज्य आर्द्रभूमि प्राधिकरण से प्राप्त नक्शा और आंकड़ों के आधार पर जिला कलेक्टर द्वारा स्थल स्तरीय इकाई का गठन कर जिम्मेदारी सौंपी जाएगी। यह इकाई आर्द्रभूमि की सीमा निर्धारण, जीपीएस सर्वेक्षण, मौका सत्यापन रिपोर्ट तैयार करने और सीमांकन नक्शा बनवाने का कार्य करेगी। सत्यापन उपरांत तैयार रिपोर्ट और नक्शे को जिला स्तरीय समिति से अनुमोदन कर राज्य आर्द्रभूमि प्राधिकरण को भेजा जाएगा। इसके बाद राज्य स्तरीय विशेषज्ञ समिति द्वारा परीक्षण और अनुमोदन उपरांत दस्तावेज पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के पोर्टल पर अपलोड किए जाएंगे।
कलेक्टर श्री रणबीर शर्मा ने अधिकारियों को निर्देश दिए कि प्रशिक्षण में बताई गई कार्यप्रणाली के अनुसार तय समयसीमा में कार्य को पूरा करें। स्थल स्तरीय इकाइयाँ समय पर मौका सर्वेक्षण और जीपीएस ट्रैकिंग का काम करें। सीमांकन से जुड़े नक्शे और रिपोर्ट उच्च गुणवत्ता एवं शुद्धता के साथ तैयार हों। समिति की बैठकें नियमित रूप से आयोजित कर प्रगति की समीक्षा की जाए। जिन जिलों में आर्द्रभूमियों की संख्या कम है, वहां निर्धारित समय सीमा से पहले ही कार्य पूरा हो। श्री शर्मा ने कहा कि आर्द्रभूमि संरक्षण न केवल पर्यावरणीय दृष्टि से बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी महत्वपूर्ण है, इसलिए सभी संबंधित विभाग आपसी समन्वय और पारदर्शिता के साथ कार्य करें।
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