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कोरबा :  स्वालंबन की राह पर अग्रसर कोरबा जिले की महिलाएं
द न्यूज़ इंडिया समाचार सेवा'
 
कोरबा : छत्तीसगढ़ ही नहीं पूरे देश में बिजली उत्पादन के लिए जाने जाने वाले कोरबा जिले को पर्यटन के मानचित्र पर भी अब सशक्त पहचान मिल गई है, परंतु जिले की यह पहचान किसी और के कारण नहीं बल्कि यहां की मातृ शक्ति से है।
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कलेक्टर श्रीमती किरण कौशल के नेतृत्व में टीम कोरबा में शामिल प्रशासनिक अधिकारियों-कर्मचारियों के साथ-साथ जिले के महिला स्व सहायता समूहों की सदस्यों का भी इसमें बड़ा योगदान है। ग्रामीण हो या शहरी, हर क्षेत्र में जिले की महिलाओं ने अपनी जोरदार उपस्थिति दर्ज कराई है।
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राज्य सरकार ने भी जिले में महिलाओं को मजबूत और अधिकार सम्पन्न बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। महिला स्वास्थ्य या पोषण का मामला हो, रोजगार और आजीविका से जुड़ने की गतिविधियां, खेल-कूद हो या खेती-किसानी और पशुपालन... हर क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी ने शासकीय योजनाओं और कार्यक्रमों की सफलता तय की है। 
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राज्य सरकार ने नरवा-गरवा-घुरवा-बाड़ी विकास कार्यक्रम शुरू किया तो कोरबा जिले में इसके क्रियान्वयन की मैदानी स्तर पर जिम्मेदारी महिलाओं के हिस्से आई। गौठान समितियों के माध्यम से गौठानों के संचालन से लेकर गौठानों को आजीविका के बहुआयामी केन्द्र के रूप में विकसित करने में महिलाओं का बड़ा योगदान रहा।

कोरबा जिले में संचालित लगभग 250 गौठानों का पूरा प्रबंधन महिलाओं के हाथ में है। इन गौठानों में डे-केयर के रूप में पशुओं की देखभाल के साथ-साथ वर्मी कम्पोस्ट उत्पादन, गोबर खरीदी, गोबर से विभिन्न उत्पादों का निर्माण जैसी सभी गतिविधियां महिला स्व सहायता समूहों की सदस्यो द्वारा संचालित हैं।

गौठानों में चारागाह के प्रबंधन से लेकर सब्जी उत्पादन का काम भी महिला समूह ही कर रहे हैं। कोरबा जिले में नौ हजार 906 महिला स्व सहायता समूहों के माध्यम से लगभग एक लाख 15 हजार महिलाओं का एक बड़ा और मजबूत संगठन है।

हरे कृष्णा स्व सहायता समूह, धन लक्ष्मी स्व सहायता समूह, पूजा स्व सहायता समूह, सरस्वती स्व सहायता समूह, साईं स्व सहायता समूह, बेबी स्व सहायता समूह, जय संतोषी मां स्व सहायता समूह और ऐसे मातृ शक्ति प्रेरित नामों के कई समूह कोरबा जिले को महिला सशक्तिकरण की दिशा में आगे बढ़ाने में लगे हैं। साढ़े छह हजार से अधिक महिला समूहों की लगभग 25 हजार महिलाएं खेती-किसानी, बागवानी, पशुपालन से जुड़ी रोजगार मूलक गतिविधियों में संलग्न है। 262 महिला समूहों द्वारा जैविक खाद का निर्माण, गोबर के गमले, मूर्तियां और अन्य आकर्षक कलाकृतियां बनाने का काम किया जा रहा है। 

कोरबा जिले में सतरेंगा पर्यटन स्थल के संवर्धन और उसे अंतर्राष्ट्रीय पहचान दिलाने में महिलाओं की विशेष भूमिका रही है। जिले की कलेक्टर श्रीमती किरण कौशल की योजना को मूर्तरूप देने में महिलाओं ने पुरूषों के साथ बराबरी से हिस्सेदारी की।

महिला समूहों द्वारा यहां आने वाले पर्यटकों के खाने-पीने के लिए सर्वसुविधा युक्त सतरेंगा कैफेटेरिया का संचालन किया जा रहा है। इडली, दोसा, चाउमीन के साथ छत्तीसगढ़ के पारंपरिक फरा, चीला, ठेठरी-खुर्मी व्यंजनों से पर्यटकों का पेट ही नहीं बल्कि मन भी संतृप्त हो रहा है। सतरेंगा में संचालित होने वाले रिसाॅर्ट में भी स्थानीय युवतियों को ही काम पर रखा गया है।

कैफेटेरिया से लेकर साफ-सफाई तक की समितियों मे महिलाओं को शामिल कर पर्यटन से रोजगार की अवधारणा को सतरेंगा मंे ही मूर्तरूप मिला है। सतरेंगा को पर्यटको के लिए विकसित कर देने से लगभग 30 स्थानीय महिला स्व सहायता समूहों की 250 से अधिक महिलाओं को आजीविका के अलग-अलग साधन मिले हैं और वे हर महीने पांच हजार से लेकर 10 हजार रूपए तक की आय प्राप्त कर रहीं हैं। 
 
छत्तीसगढ़ सरकार की महिला कोष ऋण योजना ने भी महिला समूहों को आत्मनिर्भर बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। महिला एवं बाल विकास विभाग की विभिन्न पोषण योजनाओं के लिए 89 समूहों की लगभग 900 महिलाएं रेडी टु इट बनाने का काम कर रहीं हैं।

एक हजार 600 से अधिक समूहों की 17 हजार से अधिक महिलाएं गर्म पका भोजन तैयार कर कुपोषित बच्चों और गर्भवती माताओं को रोज खिला रहे हैं। महिलाओं से जुड़े कामों के साथ-साथ पुरूषों के एकाधिकार वाले कई जीविकोपार्जन के काम कोरबा जिले में महिला समूहों द्वारा किए जा रहे हैं।

ईंट निर्माण, चांवल व्यवसाय, आंटा चक्की संचालन, कोशा धागाकरण, सिलाई व्यवसाय, किराना-कपड़ा मनिहारी व्यवसाय, मसाला व्यवसाय, पापड़ निर्माण, बांस-शिल्प व्यवसाय से लेकर वनोपज संग्रह, साबुन, रंग, गुलाल निर्माण जैसे कामों में महिला समूहों की सदस्यों ने अपनी क्षमता और कार्य कुशलता का  उत्कृष्ट प्रदर्शन किया है। महिला कोष के माध्यम से जिले के दो हजार 114 समूहों को अभी तक अपना व्यवसाय करने के लिए 25 से 30 हजार रूपए के हिसाब से चार करोड़ 41 लाख रूपए से ज्यादा का ऋण दिया गया है।

इसमें खास बात यह है कि ऋण लेने के बाद समूहों ने अपनी कर्मठता और मेहनत से व्यवसाय को आगे बढ़ाया, अच्छी आमदनी प्राप्त की और लगभग 95 प्रतिशत से अधिक समूहों ने ऋण की अदायगी भी कर दी है। ग्रामीण क्षेत्रो में बैंकिंग सुविधाओं के विस्तार के लिए 149 बैंक सखियां भी काम कर रहीं हैं। पेंशन या स्काॅलरशीप का भुगतान हो या मनरेगा की मजूदरी देना हो, बैंक खाते से राशि निकालना हो या बचत के लिए जमा करना हो ऐसे सभी काम लोगों के घर जाकर बैंक सखियों के माध्यम से आसानी से हो रहे हैं।  

वैश्विक महामारी कोरोना के काल में भी जिले की महिलाओं ने जनजागरूकता से लेकर कोरोना मरीजों के ईलाज तक की गतिविधियों में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया है। महिला डाॅक्टर, स्वास्थ्य कर्मी, प्रशासनिक अधिकारी-कर्मचारी सभी महिलाओं ने कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए अपने अनुभव का अच्छी तरह उपयोग किया। महिला होने के नाते पारिवारिक ही नहीं सामाजिक और प्रशासनिक स्तर पर भी बारिकियांे का ध्यान रख कोरोना संक्रमण से बचाव की रणनीति तैयार की गई। जिले की कलेक्टर श्रीमती किरण कौ

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