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प्राथमिक प्रसंस्करण एवं मूल्य वर्धन विषय पर तीन दिवसीय कौशल विकास प्रशिक्षण का आयोजन

 

द न्यूज़ इंडिया समाचार सेवा


दुर्ग : दाऊ श्री वासुदेव चन्द्राकर कामधेनु विश्वविद्यालय, दुर्ग एवं भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के केंद्रीय कटाई- उपरांत अभियांत्रिकी एवं प्रौद्योगिकी संस्थान, लुधियाना के संयुक्त तत्वाधान में अनुसूचित जाति उपयोजना के अंतर्गत श्री अन्न का प्राथमिक प्रसंस्करण एवं मूल्य वर्धन विषय पर तीन दिवसीय 14 मार्च से 16 मार्च तक कौशल विकास प्रशिक्षण का आयोजन किया जा रहा है। इस कार्यक्रम का उद्घाटन विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ.(कर्नल) एन.पी. दक्षिणकर की अध्यक्षता एवं मुख्य अतिथि प्रोफेसर डॉ. नितिन एम. नागरकर, निदेशक एम्स रायपुर की गरिमामयी उपस्थिति में हुआ ।

इस अवसर पर भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद्- सीफेट से वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. दीपिका गोस्वामी, वैज्ञानिक डॉ.चंदन सोलंकी, विश्वविद्यालय के कुलसचिव डॉ.आर.के.सोनवाने, पूर्व निदेशक एवं प्राध्यापक डॉ.ओ.पी. मिश्रा, निदेशक अनुसंधान सेवाएं डॉ.जी.के.दत्ता, निदेशक विस्तार शिक्षा डॉ.संजय शाक्य, निदेशक शिक्षण डॉ.एस.पी.इंगोले, अधिष्ठाता छात्र कल्याण डॉ. नीलू गुप्ता, कृषि विज्ञान केंद्र, अंजोरा के कार्यक्रम समन्वयक डॉ.व्ही.एन. खुणे, विश्वविद्यालय जनसंपर्क अधिकारी डॉ. दिलीप चौधरी आदि उपस्थित रहे। मुख्य अतिथि प्रोफेसर डॉ. नितिन एम.नागरकर ने इस कार्यक्रम में उपस्थित सभी कृषकों को संबोधित करते हुए कहा कि ज्वार,बाजरा, कोदो, कुटकी, रागी प्राचीन अनाज बहुत कम पानी में पैदा हो जाते हैं एवं कीटाणु रोधी होते हैं। दुर्ग जलवायु परिवर्तन के अनुकूल होने के कारण यह फसल कृषकों के लिए उपयोगी है।

इसमें आयरन एवं कैल्शियम की मात्रा भरपूर होती है औषधियाँ गुणों से परिपूर्ण होने के कारण इसके उपयोग से रक्तचाप, उच्च कोलेस्ट्रॉल तथा रक्त में शर्करा की मात्रा नियंत्रित रहती है। ज्वार, बाजरा, कोदो ,कुटकी, रागी आदि लघु धान्य डायबिटीज के मरीजों के लिए उपयोगी है। विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ.(कर्नल)एन.पी.दक्षिणकर ने बताया कि लघु धान्य एवं पोषक अनाज कम पानी , उर्वरक और कीटनाशक के साथ कम उपजाऊ मिट्टी में उगाया जा सकता है। यह अनाज सेहत के लिए बहुत फायदेमंद होते हैं, इसमें प्रोटीन फाइबर, विटामिन बी, कैल्शियम, आयरन, मैग्नीज, फास्फोरस, जिंक, पोटेशियम, कॉपर और सेलेनियम सहित बहुत पोषक तत्व होते हैं। यह एंटीऑक्सीडेंट, फ्वोनोइड्स, सैपोनिन और लिग्नन्स का एक पावर हाउस भी है। इसे सुपर फूड भी कहा जाता है ।

डॉ. दीपिका गोस्वामी ने इस प्रशिक्षण कार्यक्रम के बारे में विस्तृत जानकारी दी। निदेशक अनुसंधान सेवाऐं डॉ.जी. के. दत्ता ने लघु धान्य एवं पोषक अनाज की उपयोगिता एवं महत्व पर प्रकाश डाला । साथ ही उन्होंने कहा कि लोगों में जागरूकता के अभाव में भारतीय बाजार में इसकी उपलब्धता बहुत कम है।

निदेशक विस्तार शिक्षा डॉ.संजय शाक्य ने कहा कि लघु धान्य एवं पोषक अनाज गांवों के बेरोजगार युवकों को बेहतर आजीविका एवं आय में बढ़ोतरी के साधन बन सकती हैं। कार्यशाला के उद्घाटन सत्र में प्रशिक्षण पुस्तिका का विमोचन भी किया गया। कार्यशाला का संचालन डॉ. राजकुमार गढ़पायले एवं डॉ.राकेश मिश्रा द्वारा धन्यवाद ज्ञापित किया गया । यह कार्यक्रम भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद - सीफेट के निदेशक डॉ. नचिकेत कोतवाली वाले के निर्देशन व अनुसूचित जाति उपयोजना के नोडल अधिकारी डॉ.आर. के.अनुराग के मार्गदर्शन में आयोजित किया गया ।

इस प्रशिक्षण कार्यक्रम को सफल बनाने में संयोजक डॉ. दीपिका गोस्वामी व डॉ.चंदन सोलंकी तथा स्थानीय संयोजक डॉ.यशवंत अटभैया एवं डॉ.निशा शर्मा का योगदान रहा। 

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