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 महात्मा गांधी नरेगा के बकरी पालन केंद्र और प्रधानमंत्री आवास से खुशहाली की राह पर पण्डो परिवार

द न्यूज़ इंडिया समाचार सेवा


कोरिया : मेहनत से अपनी आजीविका को बेहतर करने वाले दंपति नकुल और कौशिल्या को अब पारंपरिक आजीविका बकरी पालन के लिए एक बेहतर संसाधन के रूप में पक्का बकरी आश्रय स्थल मिला है जिससे उनके स्वरोजगार मे नियमित आर्थिक तरक्की हो रही है और महात्मा गांधी नरेगा के पंजीकृत श्रमिक होने के साथ ही उनके पास प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत निर्मित एक पक्का मकान भी है। परिवार की महिला मुखिया कौशिल्या कहती हैं कि खुशियों को बढ़ाने में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना की अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका है। पहले सिर्फ अकुशल श्रम पर निर्भर रहने वाले इस परिवार के बच्चों की पढ़ाई में होने वाला खर्च अब आसानी से पूरा हो रहा है और इनके दैनिक जीवन में आवश्यकता अनुसार राशि की भी पर्याप्त उपलब्धता है। अपने परंपरागत आजीविका की गतिविधियों को बेहतर करके पण्डो परिवार अब पूरी तरह से सामाजिक और आर्थिक तरक्की की राह पर आगे बढ़ रहा है। पण्डो परिवार के मुखिया नकुल और उनकी पत्नी कौशिल्या के पास खुद का पर्याप्त रोजगार है और वह अकुशल श्रम के लिए होने वाली चिंता से पूरी तरह से मुक्त हो चुके हैं।
 

विशेष अनुसूचित जनजाति वर्ग से आने वाले पण्डो समुदाय की श्रीमती कौशिल्या बतलाती हैं कि उनके परिवार में कुल पांच सदस्य हें जिनमें दो बेटे और एक बेटी भी हैं। उनके बड़े बेटे मंगलेश्वर सोनहत के महाविद्यालय में ग्रेजुएशन पूरा कर रहे हैं और छोटे बेटे रामेश्वर सोनहत में ही रहकर ग्यारहवीं की पढ़ाई कर रहे हैं। उनकी एक बेटी नीतू घर पर ही रहकर उनका हाथ बटाती है। पहले इस परिवार के पास खुद का एक कच्चा मकान और लगभग 4 एकड़ असिंचित भूमि थी। इससे इनके परिवार को गुजारा करने में बड़ी दिक्कत होती थी। कौशिल्या और उनके पति नकुल दोनो महात्मा गांधी नरेगा के तहत मिलने वाले अकुशल रोजगार पर ही आश्रित रहते थे। बारिश आधारित खेती के कारण इन्हे धान की उपज के अलावा और कोई फसल नहीं मिलती थी। ऐसे में मनरेगा के मजदूरी के अलावा यह दूसरे किसानों कीे खेती करके अपनी आय का साधन बनाने का प्रयास करते थे। पर अब स्थिति बदल गई है। इनके पास अब खुद का पक्का मकान भी है और परंपरागत बकरीपालन का काम एक स्वरोजगार में बदल गया है। श्रीमती कौशिल्या बतलाती हैं कि बकरी पालन उनके परिवार का पुश्तैनी काम है। पहले वह खुले में ही बकरी पालन करते थे जिससे उनको बहुत समस्याओं का सामना करना पड़ता था। एक ओर बकरियों की आए दिन बीमारी से मौत होती थी वहीं अक्सर चोर भी उनकी बकरियां उठा ले जाते थे। इससे उन्हे बहुत नुकसान उठाना पड़ता था।
 

बीते साल उनके ग्राम पंचायत के सरपंच ने उन्हे बकरीपालन आश्रय स्थल बनाकर बकरीपालन करने की सलाह दी। इसके बाद इस परिवार ने अपने आवेदन के साथ जमीन के कागजात ग्राम पंचायत में प्रस्तुत किए। ग्राम पंचायत में आयोजित ग्राम सभा से पारित प्रस्ताव के आधार पर उन्हे जिला पंचायत कोरिया से बकरीपालन आश्रय स्थल की प्रशासकीय स्वीकृति प्राप्त हुई। इसके बाद उन्होने मेहनत से काम करने के बाद अब बकरीपालन के लिए एक पक्का और सुरक्षित स्थान मिल गया है। इस कार्य से उन्हे 8 हजार रूपए मजदूरी से प्राप्त हुए।
 
 
अभी इनके बाड़े में 4 बकरे और 25 बकरियों की संख्या है। श्रीमती कौशिल्या और नकुल बतलाते हैं कि जब आवश्यकता होती है, वह एक दो बकरे बेच देते हैं जिससे उन्हे दस से बारह हजार रूपए घर बैठे ही मिल जाते हैं। इसके अलावा गांव के अन्य परिवार इनसे बकरियां भी खरीदकर ले जाते हैं। एक बकरी या बकरे की न्यूनतम कीमत चार से पांच हजार रूपए मिल जाती है। इससे घर का दैनिक खर्च पूरा करने की चिंता खत्म हो गई है। बच्चों की पढ़ाई में खर्च के बाद भी कुछ पैसे बच जाते हैं जिसे यह परिवार अपने भविष्य के लिए सुरक्षित कर रहा है। इन्हे तीन वर्ष पूर्व सामाजिक आर्थिक जाति जनगणना के आधार पर एक प्रधानमंत्री आवास भी मिल चुका है। इस तरह विभिन्न जनहितकारी योजनाओं से जुड़कर इनके जीवन स्तर में निरंतर सुधार हो रहा है।

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