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रायपुर 2 मई 2020 ।कोविड-19 से जंग में रायपुर ज़िले के शासकीय अस्पतालों और टीकाकरण केंद्रों पर स्वास्थ्य विभाग द्वारा कड़ाई से सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कराया जा रहा है जिसमें जनता का भी भरपूर सहयोग मिल रहा है ।
सोशल डिस्टेंसिंग का कड़ाई से पालन कराने की जानकारी देते मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी, रायपुर डॉ मीरा बघेल ने बताया ज़िले में नियमित टीकाकरण के सत्र आयोजित हो रहे है ।ज़िले के शासकीय अस्पतालों में नियमित गर्भवती महिलाओं की एएनसी जॉच,टीकाकरण और प्रसव हो रहे है ।हाथ धुलने के लिए एक कार्नर बनाया गया है जहाँ पर साबुन औरपानी से कम से कम 20 सेकंड तक हाथ धुलकर लाभार्थी और उनके देखभाल करने वालों को अन्दर आने दिया जाता है।एक समय पर चार से ज्यादा लाभार्थी स्थल पर न जुटें, इसके लिए उन्हें पहले से तय समय (टाइम स्लाट) पर ही आने को प्रेरित किया जाता है।स्वस्थ्य कार्यकर्ताओं,मितानिन, एएनएम और आंगनबाड़ी को भी इन गतिविधियों के संचालन के दौरान सुरक्षा संबंधी दिशा-निर्देशों का कड़ाई से पालन करने को कहा गया है। प्रत्येक लाभार्थी के टीकाकारण और किसी भी जांच से पहले एएनएम को सेनेटाइजर से हाथों को अच्छी तरह से साफ़ करने को कहा गया है। अगर किसी प्रथम पंक्ति कार्यकर्ता में इन्फ्लुएंजा यानि सर्दी- खांसी -बुखार के लक्षण नजर आयें तो उनको सत्र के दौरान ड्यूटी पर न बुलाया जाए। इसके अलावा लाभार्थी के साथ सहयोगी के रूप में ऐसे लोग न आने पाएं जिन्हें सर्दी-खांसी या बुखार की शिकायत है।गृह आधारित नवजात देखभाल (एचबीएनसी) के दौरान मितानिन बरतें सावधानी- सोशल डिस्टेंशिंग का पालन करें, गृह भ्रमण के दौरान मां-बच्चे को बिना छुए बात करें- गृह भ्रमण से पहले और बाद में साबुन-पानी से 20 सेकंड तक अच्छी तरह से हाथ धोऐं- गृह भ्रमण के दौरान मितानिन मास्क अवश्य पहनें- उच्च जोखिम वाले नवजात को प्राथमिकता के आधार पर सेवाएं सुनिश्चित कराएँ- कंगारू मदर केयर के बारे में जागरूक करें- बच्चे को जन्म के पहले घंटे में स्तनपान कराने को प्रेरित करें और छह माह तक केवल स्तनपान कराने के फायदे बताएंटीकों का सही समयकुछ टीके बच्चे के जन्म के 24 घंटे के अंदर लगना अनिवार्य होते हैं। अगर लॉकडाउन के दौरान कोई बच्चा पैदा हुआ है तो कोशिश करें कि बच्चे को अस्पताल में ही जन्म के समय ही यह टीका लगवा लिया जाए।वैसे तो टीकों को तय शेड्यूल के अनुसार ही लगवाना बेहतर होता है, लेकिन इन दिनों कोरोना वायरस से खुद को और अपने बच्चों को बचाना ज्यादा जरूरी है।नियमित टीकाकरण के लिए प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, उपस्वास्थ्य केंद्र, आंगनबाड़ी केंद्र, सामुदायिक अस्पताल, जिला अस्पताल, शहरी क्षेत्रों में वार्ड स्तर पर भी सुविधांए हैं।------------------------------------ -
रायपुर, 25 अप्रेल 2020। कोविद -19 के रोकथाम के लिए लागू लॉक डाउन के दौरान जिले में नियमित टीकाकरण कार्यक्रम के शत प्रतिशत लक्षय 1650 सत्र आयोजित किए गए। टीकाकरण केंद्रों में एएनएम, आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, सहायिका, मितानिन द्वारा सप्ताह के प्रत्येक मंगलवार व शुक्रवार को टीकाकरण के निर्धारित दिवस पर सत्र लगाए गए। लॉक डाउन के दौरान 3 अप्रेल से 24 अप्रेल के बीच जिले में 15,021 शिशुओं व 5043 गर्भवती महिलाओं को टीकाकरण लगाया गया। इस दौरान बीसीजी के 771, हेपे-बी और ओपीवी के 770 टीके बच्चों को लगाएं गएं। जिला टीकाकरण अधिकारी डॉ विकास तिवारी ने बताया, टीकाकरण के दौरान सोशल व फिजीकल डिसटेंसिंग के नियमों का पालन करते हुए प्रत्येक बच्चे का टीकाकरण से पूर्व स्वास्थ्य कर्मी अपने हाथों को सेनिटाइज करते हैं। इसके साथ चेहरे में मास्क, हाथे में गल्बस का भी उपयोग कर कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने सावधानियां बरती जा रही हैं।
कोविद-19 के चैन को तोड़ने लॉकडाउन के नियमों का पालन करते हुए राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के एमडी डॉ. प्रियंका शुक्ला ने टीकाकरण कार्यक्रम को नियमित रुप से संचालित करने के लिए स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों को वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से जरुरी निर्देश भी दिए। स्वास्थ्य विभाग ने टीकाकरण सत्र स्थल का निरीक्षण व मॉनिटरिंग के लिए जिला स्तर पर अधिकारियों की टीम गठित की है। जिला टीकाकरण अधिकारी डॉ. विकास तिवारी और एएसओ डीके बंजारे ने शुक्रवार को धरसींवा विकास खंड के अंतर्गत उप स्वास्थ्य केंद्र के नियमित टीकाकरण सत्र दोंदेखुर्द, सारागांव, मौहागांव में का निरीक्षण कर खंड चिकित्सा अधिकारी डॉ एनके लकड़ा व बीपीएम जुबैदा खान को आवश्यक दिशा निर्देश भी दिए। निरीक्षण के दौरान उप स्वास्थ्य केंद्र सिलयारी के आश्रित ग्राम मौहागांव में आयोजित सत्र में सोशल डिसटेंसिंग का पालन करते हुए गर्भवती महिलाओं एवं बच्चों को सुरक्षित तरीके अपनाते हुए टीकाकरण करने निर्देश आरएचओ को दिए गए।डॉ .तिवारी ने बताया, कुछ लोगों में लॉकडाउन की वजह से भ्रम की स्थिति है कि अस्पतालों में टीकाकरण बंद हैं। ऐसे लोगों को मितानिन और आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के माध्यम से घर-घर जाकर सूचनाएं दी जा रही है। बच्चों को लगने वाले टीकों का एक तय शेड्यूल होता है। टीकाकरण अगर सही समय पर नहीं हो तो माता-पिता का चिंतित होना लाजिमी है। कोरोनावायरस के कारण इन दिनों लॉकडाउन है। ऐसे में कई समुदाय तक टीकाकरण वार्ड व आंगनबाड़ी केंद्र स्तर पर भी सुविधाएं दिया जा रहा है। लेकिन इस परिस्थिति में भी अभिभावकों को घबराने की जरूरत नहीं है। बच्चों को लगने वाले अधिकांश टीके बाद में भी लगवाए जा सकते हैं। जिला टीकाकरण अधिकारी डॉ. तिवारी ने अभिभावकों से अपील की है कि नियमित टीकाकरण के दौरान नजदीक के टीकाकरण सत्र केंद्र में उपस्थित होकर आने बच्चों को टिका जरुर लगवाएं। साथ सोशल डिसटेंसिंग का पालन भी किया जाए।टीकों का सही समयकुछ टीके बच्चे के जन्म के 24 घंटे के अंदर लगना अनिवार्य होते हैं। अगर लॉकडाउन के दौरान कोई बच्चा पैदा हुआ है तो कोशिश करें कि बच्चे को वहीं अस्पताल में ही जन्म के समय ही यह लगवा लें। वैसे तो टीकों को तय शेड्यूल के अनुसार ही लगवाना बेहतर होता है, लेकिन इन दिनों कोरोना वायरस से खुद को और अपने बच्चों को बचाना ज्यादा जरूरी है।जन्म के समय बीसीजी, पोलियो व हेपेटाइटिस बी का टीका। छह हफ्ते की उम्र में रोटावायरस, पेंटावेलेंट, न्यूमोकोकल और इंजेक्शन पोलियो का टीका। 10 सप्ताह की उम्र में पेंटावेलेंट, इंजेक्शन पोलियो और रोटावायरस। 14 सप्ताह की उम्र में पेंटावेलेंट, रोटावायरस, न्यूमोन्यूमोकोकल, इंजेक्शन पोलियो का टीका। 9 महीने की उम्र में एमआर, ओरल पोलियो और न्यूमोकोकल के टीके। कुछ टीके निजी अस्पतालों में लगवाए जाते हैं। फ्लू के दो टीके छह महीने व सात महीने की उम्र में। एक साल की उम्र में हेपेटाइटिस ए, 15 महीने की उम्र में एमएमआर और चिकनपॉक्स। 18 महीने की उम्र में पेंटावेलेंट, न्यूमोकोकल और ओरल पोलियो। पांच साल की उम्र में डीपीटी और पोलियो का टीका। नियमित टीकाकरण के लिए प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, उपस्वस्थ्य केंद्र, आंगनबाड़ी केंद्र, सामुदायिक अस्पताल, जिला अस्पताल, शहरी क्षेत्रों में वार्ड स्तर पर भी सुविधांए हैं।- -
• स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने जारी की एडवाइजरी
• रक्त-दाताओं को रक्तदान करने पर मिलेगी विशेष सर्टिफिकेट• स्वैच्छिक रक्त-दाताओं को अवागमन के लिए मिलेगी पास• ब्लड डोनेशन केन्द्रों पर कोविड-19 प्रोटोकॉल के अनुपालन करने के निर्देशरायपुर, 22 अप्रैल: कोरोना संक्रमण के बढ़ते प्रसार के कारण जरुरी स्वास्थ्य सेवाओं के साथ आपातकालीन स्वास्थ्य सेवाएं भ बाधित हुयी हैं. जिसमें ब्लड बैंकों के सुगम संचालन में भी बाधा आई है. इसे ध्यान में रखते हुए विज्ञान और प्रौद्योगिकी एवं पृथ्वी विज्ञान मंत्री ,स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय डॉ. हर्षवर्धन ने सभी राज्यों के स्वास्थ्य मंत्रालय को ब्लड बैंकों के कुशल क्रियान्वयन के संबंध में एडवाइजरी जारी की है. एडवाइजरी में कहा गया है कि कोविड 19 संक्रमण की रोकथाम व संक्रमितों व संदिग्धों सहित आमलोगों के स्वास्थ्य की देखभाल के लिए आवश्यक प्रबंधन किये जाने को लेकर राज्य की स्वास्थ्य विभाग की टीम ने उल्लेखनीय काम किया है. लेकिन इस दौरान सरकारी व गैर-सरकारी ब्लड बैंकों में पर्याप्त मात्रा में उपलब्धता को बरकरार रखने के लिए और भी आवश्यक इंतजाम किये जाने हैं. कोरोना संक्रमण से बचाव को लेकर हो रही रोकथाम व लॉकडाउन के मद्देनजर रक्तदान शिविर का आयोजन संभव नहीं है. लेकिन इन तमाम हालात में ब्लड बैंकों में पर्याप्त मात्रा में रक्त उपलब्ध कराया जाना भी आवश्यक है. एडवाइजरी में कहा गया है कि रक्त का उपलब्ध कराया जाना कई कारणों से आवश्यक हैं. वैसे लोग जो थैलसिमिया, स्क्लि सेल एनिमिया व हिमोफीलिया से पीड़ित हैं उन्हें नियमित ब्लड ट्रांसफ्यूजन की आवश्यकता पड़ती है. ऐसे लोगों को समय पर रक्त उपलब्ध कराया जाना निहायत जरूरी है.मुख्यमंत्री व स्वास्थ्य मंत्री को स्वैच्छिक रक्तदान की अपील करने की सलाह:एडवाइजरी के माध्यम से राज्यों के मुख्यमंत्री व स्वास्थ्य मंत्री से स्वैच्छिक रक्तदान को बढ़ावा देने के लिए स्थानीय अखबारों, टीवी व रेडियो चैनल के माध्यम से आम लोगों से अपील करने की बात कही गयी है. साथ ही रक्तदान संबंधी सूचनाओं को ई-रक्तकोश पोर्टल पर अपडेट करने के लिए कहा गया है. यह एक ऐसा पोर्टल है जहाँ रक्तदाताओं के रिकॉर्ड मौजूद होते हैं. साथ ही इस पोर्टल के माध्यम से प्रत्येक रक्त समूह की उपलब्धता की वर्तमान स्थिति पर रियल टाइम इंफॉर्मेशन दी जा सकती है. इसके लिए भावी रक्तदाताओं को इस पोर्टल पर रक्तदान के लिए रजिस्ट्रर किये जाने के लिए कहा गया है. ब्लड बैंकों को यह आदेश दिया गया है कि ई- रक्तकोश पोर्टल पर नियमित रूप से रक्त की उपलब्धता की जानकारी दी जाये.ब्लड ट्रांसपोर्टशन के लिए उपलब्ध कराया जायेगा वाहन:एडवाइजरी के माध्यम से राज्योंको रक्त को जमा करने व उसके सही तरीके से ट्रांसपोर्टेशन के लिए आवश्यक इंतजाम करने की सलाह दी गयी है. विभागीय वाहन नहीं होने की स्थिति में भाड़ा पर वाहन का इंतजाम करने की भी बात बताई गयी है ताकि क्षेत्र में लोगों को पर्याप्त मात्रा में आसानी से रक्त सुलभ कराया जा सके. एडवाइजरी में रक्तदाताओं के लिए एक निश्चित समय तय करने पर जोर दिया गया है. साथ ही तय समय सीमा को आवश्यकतानुसार बढ़ाने की बात कही गयी है. रक्तदान करने वालों को क्रमबद्ध तरीके से आने और रक्तदान करने के लिए कहा गया है. साथ ही रक्तदान केन्द्रों पर सोशल डिस्टेंसिंग नियमों का पालन किए जाने की बात कही गयी है.रक्तदाताओं को मिलेगा पूरा सम्मान, जारी होगा पास:कोरोना संक्रमण के कारण आम लोगों को बाहर निकलने की अनुमति नहीं है. ऐसे में स्वेच्छा से रक्तदान करने वाले रक्तदाताओं के आवागमन में दिक्कत नहीं हो इसका भी ध्यान दिया गया है. एडवाइजरी में बताया गया है कि रक्तदाताओं के आवागमन को आसान करने के लिए उन्हें पास मुहैया कराया जाए. साथ ही कोरोना संकटकाल में रक्तदान करने वाले इन रक्तवीरों को रक्तदान से संबंधित विशेष सर्टिफिकेट भी प्रदान कराए जाने की सलाह दी गयी है.सुरक्षा नियमों का पूर्ण पालन करने का है निर्देश:एडवाइजरी में रक्तदान करने वाले केंद्रों व ब्लड बैंकों में कोरोना संक्रमण के मद्देनजर विशेष सावधानी व कोविड-19 के मापदंड अनुपालन करने की बात कही गयी है. ताकि इन केन्द्रों पर किसी प्रकार का संक्रमण प्रसारित नहीं हो सके. इसके लिए व्यक्तिगत सुरक्षा नियमों के तहत हाथों की धुलाई, रक्तदान करने वाले क्षेत्र की नियमित सफाई, डोनर के लिए जीवाणुरहित सामग्रियां व एंटीसेप्टिक क्लीनर की व्यवस्था करने की बात कही गयी है. साथ ही थैलीसिमिया व हिमोफीलिया के मरीजों के लिए अस्पतालों में आयरन चेल्टिंग एजेंट्स एवं एंटी- हिमोफीलिया फैक्टर्स उपलब्ध कराने की हिदायत दी गयी है.-------------------------------------------- - रायपुर, । वैश्विक महामारी कोविड-19से निपटने के लिए प्रदेश में लॉकडाउन 2.0 के दौरान कोरिया जिले के ग्राम नागपुर निवासी मेजर थैलेसिमिया से पीडि़त एक 16 वर्षीय युवक को मध्य रात्रि को एम्बु लेंस से रायपुर इलाज के लिए लाया गया। स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव के पहल पर मरीज के हालात को देखते हुए विशेष एंबुलेंस से राजधानी के डी.के.एस. अस्पताल में लाकर विशेषज्ञ की देख-रेख में भर्ती कराकर इलाज जारी है। लॉकडाउन की स्थिति में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल एवं मंत्री टी.एस. सिहदेव ने स्वास्थ्य विभाग की टीम को अलर्ट पर रखा है।इसी प्रकार राज्य सरकार द्वारा थैलेसिमिया से पीडि़त दो गर्भवती महिलाओं को विशेष जांच सीबीसी परीक्षण (कोरियोनिक विलस नमूना परीक्षण) की व्यवस्था उपलब्ध कराने के लिए डा. खूबचंद बघेल स्वास्थ्य सहायता योजना के माध्यम से सुविधा प्रदान करने हेतु निर्देश दिया गया है। स्वास्थ्य विभाग द्वारा थैलेसिमिया से पीडि़त मरीजों के लिये प्रत्येक जिले के जिला चिकित्सालय में आवश्यकतानुसार नि:शुल्क ब्लड ट्रांसफ्यूजन एवं दवाईयों की सुविधा उपलब्ध कराने की तैयारी कर रही है।थैलेसिमिया के इन मरीजों को प्रत्येक 30 से 45 दिन पर खून की जरूरत पड़ती है। लेकिन कोरिया जिला अस्पताल में सरकारी स्तर पर खून की उपलब्धता नहीं होने से मरीज को राजधानी रेफर किया गया। एड्स कंट्रोल सोसायटी के एडिशनल प्रोजेक्ट डायरेक्टर डॉ एस.के. बिंझवार ने बताया, स्वास्थ्य मंत्री के निर्देश पर तत्काल रात्रि कालीन इमेंरजेंसी सेवा के लिए ब्लड बैंक से मरीज के लिए ब्लड का इंतजाम कराया। डीकेएस के डॉक्टरों का कहना है, समय पर अस्पताल पहुंचने से मरीज के हालत में काफी सुधार आया है।डॉ. अंबेडकर अस्पताल के माइक्रो बॉयोलॉजी विभाग के एचओडी डॉ. अरविंद नेरलवार के बताया, थैलेसीमिया रक्त से संबंधित ऐसी आनुवंशिक बीमारी है जो एक लाख की जनसंख्यान में दो से तीन लोगों में होती है। थैलेसीमिया माइनर तब होता है, जब मरीज के माता-पिता में से केवल एक से दोषपूर्ण जीन प्राप्त करता है। अल्फा और बीटा थैलेसीमिया के माइनर रूप वाले लोगों में लाल रक्त कोशिकाएं छोटी होती है। यह वैरिएंट या किसी जीन की अनुपस्थिति के कारण भी होती है, जो हीमोग्लोबिन प्रोटीन के निर्माण को गंभीर रूप से प्रभावित करता है। हीमोग्लोबिन प्रोटीन एक ऐसी जरूरी चीज है जो लाल रक्त कोशिकाओं को ऑक्सीजन ले जाने में मदद करती है। थैलेसीमिया के रोगियों में 6 माह के बच्चे् में पाए जाने वाला हिमोग्लोबिन होता है जो 180 दिन से पहले नष्टं हो जाता है। इस लिए ऐसे रोगियों को एक से डेढ महीने में ब्लनड ट्रांसफ्यूजन की जरुरत होती है। यह रोग कुछ ही समुदायों में पाया जाता है।थैलेसीमिया और सिकल सेल के रोगियों में एनिमिया होना सामान्य लक्ष्ण होते लेकिन सिकल सेल के रोगी ज्यादा पाए जाते हैं। इसके प्रसार को रोकने के लिए शादी से पूर्व रक्तु परीक्षण जरुरी है। रक्त से संबंधित इस आनुवंशिक बीमारी का रोगियों पर व्यापक प्रभाव पड़ता है। जैसे उनमें आयरन का स्तर बढ़ जाता है, हड्डियों में विकृति आ जाती है और गंभीर मामलों में हृदय रोग भी हो सकते हैं। थैलेसीमिया मेजर के रोगियों के इलाज में क्रोनिक ब्लड ट्रांसफ्यूजन थेरेपी, आयरन कीलेशन थेरेपी आदि शामिल हैं। इसमें कुछ ट्रांसफ्यूजन भी शामिल होते हैं, जो मरीज को स्वस्थ लाल रक्त कोशिकाओं की अस्थायी रूप से आपूर्ति करने के लिए आवश्यक होते हैं, ताकि उनमें हीमोग्लोबिन का स्तर सामान्य हो सके और रोगी के शरीर के लिए जरूरी ऑक्सीजन पहुंचाने में सक्षम हो।
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रायपुर.17 अप्रैल 2020। कोरोना महामारी के कारण लॉक डाउन के दौरान स्वच्छ पेयजल सुनिश्चित करना बेहद आवश्यक है। मामले की गंभीरता को देखते हुए भारत सरकार ने सभी राज्यों को स्वच्छ पीने के पानी की आपूर्ति की सलाह देते हुए आवश्यक दिशा निर्देश जारी किए हैं, विशेष रूप से ऐसे ग्रामीण क्षेत्रों में जहां पानी की आपूर्ति में कमीं हो और मेडिकल सैनिटाइज़र की सुविधा उपलब्ध नहीं है।
स्वास्थ्य मंत्रालय ने समाज के कमजोर वर्गों को सर्वोच्च प्राथमिकता दिए जाने की सिफारिश की है, विशेषकर ऐसी जगहों पर लोगों का ध्यान रखने को कहा है जो राहत शिविर, अस्पताल, वृद्धाश्रम, आश्रय स्थल, समाज के गरीब तबके के निवास स्थान एवं झुग्गी-झोपड़ी आदि में रह रहे हैं। इन स्थानों में पानी की आपूर्ति और सुरक्षित एवं शुद्ध पानी मुहैय्या कराने के लिए राज्य सरकारों के सार्वजनिक स्वास्थ्य इंजीनियरिंग विभागों / बोर्डों / निगमों को निर्देशित किया गया है। कोविड-19 बीमारी के प्रसार से निपटने के लिए बनाई गई जिलों की सूक्ष्म योजनाओं में पीने योग्य पानी की उपलब्धता को शामिल करने को बेहद जरूरी बताया है।साफ पानी की आपूर्ति के लिए शुद्धिकरण रसायन आवश्यक- स्वास्थ्य मंत्रालय ने पानी को पीने योग्य बनाने के लिए आवश्यक शुद्धिकरण रसायन जैसे क्लोरीन की गोलियाँ, ब्लीचिंग पाउडर, सोडियम हाइपोक्लोराइट घोल इत्यादि को आवश्यक बताते हुए जरूरी उपाय अपनाने को कहा है। पानी को शुद्ध करने वाले रसायनों की उपलब्धता का आंकलन करने और यदि आपूर्ति में कमी है तो इन रसायन को आवश्यक वस्तुओं की श्रेणी में शामिल कर आवश्यकता को तत्काल पूरा करने के लिए उनकी खरीदी करने को निर्देशित किया है। ग्रामीण क्षेत्रों में पानी की जांच करने वाले किट ग्रामीणों को उपलब्ध कराने और उन्हें प्रशिक्षित करने की सलाह भी दी है।चौबीस घंटे पानी की आपूर्ति, व्यक्तिगत सुरक्षा का करें प्रबंध - चौबीस घंटे पानी की आपूर्ति हो इसे सुनिश्चित करने के साथ ही पानी की आपूर्ति में लगे लोगों की व्यक्तिगत सुरक्षा के प्रबंध जैसे मास्क, सैनिटाइटर आदि पीएचईडी के अधिकारियों को प्रदान किए जाने को निर्देशित किया गया है। पानी की आपूर्ति या प्रबंधन करने वाले कर्मी यदि संक्रमित हो जाते, तो वैकल्पिक व्यवस्था करने, ऐसे लोगों जिन्हें कुछ दूर सार्वजनिक नल से पीने का पानी लाना पड़ता हो उन स्थानों पर सामाजित दूरी का पालन कराने और पानी की आपूर्ति का समय बढ़ाए जाने की सिफारिश की गई है।पानी आपूर्ति में ना आए रूकावट- पीने के पानी की नियमित आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए मौजूदा शिकायत निवारण तंत्र को मजबूत करने और संबंधित अधिकारियों को तुरंत सूचित कर उसका निवारण करने को कहा गया है। कोवि़ड-19 से संबंधित अन्य निर्देशों का पालन करने को भी कहा गया है। -
- अच्छी होगी इम्यूनिटी तो दूर भागेंगी बीमारियां
- आयुष मंत्रालय की मानें सलाह , कोरोना से करें डटकर सामनारायपुर. 15 अप्रैल 2020। कोरोनावायरस (कोविड-19) वैश्विक महामारी के प्रकोप से बचने के लिए लॉकडाउन हैI इस दौरान वायरस से लड़ने के लिए रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाना भी आवश्यक है। सभी जानते हैं कोवि़ड-19 महामारी की कोई दवा अभी तक नहीं बनी है। अतः इस रोग से बचने के लिए शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के उपाय करना बेहतर है।रोग प्रतिरोधक क्षमता हर उम्र में अच्छी होनी चाहिए। इससे कई बीमारियां आपके शरीर पर धावा बोलकर भी हार जाती हैं। इसलिए सभी को अपने शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता दुरुस्त रखना चाहिए। वायरस कोविड 19 से लड़ने के लिए आयुष मंत्रालय की ओर से सलाह दी गई है जिसका जिक्र देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी करते हुए लोगों से इसका पालन करने की अपील की है। जारी सलाह लोगों की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के लिए है ना कि कोवि़ड-19 के इलाज के लिए।आयुष मंत्रालय ने दिए सलाह-1. दिनभर समय-समय पर गर्म पानी पीते रहें. पानी को हल्का गर्म करके पिएं।2. रोजाना कम से कम 30 मिनट तक योग करें. मंत्रालय ने इसके लिए #YOGAatHome #StayHome#StaySafe जैसे हैशटैग भी दिए. मंत्रालय ने योग और ध्यान करने की सलाह दी।3. अपने आहार में हल्दी, जीरा, धनिया और लहसुन जैसे मसालों का इस्तेमाल जरूर करें।4. एक चम्मच या 10 ग्राम च्यवनप्राश का सेवन रोज सुबह करें. डायबिटीज के रोग शुगर फ्री च्यवनप्राश का सेवन करें।5. दिन में एक या दो बार हर्बल चाय / काढ़ा पीएं. काढ़ा बनाने के लिए पानी में तुलसी, दालचीनी, काली मिर्च, सूखी अदरक, मुनक्का मिलाकर अच्छी तरह धीमी आंच पर उबालें. अगर मीठा लेना हो तो स्वादानुसार गुड़ डालें या खट्टा लेना हो तो नींबू का रस मिला लें।6. दिन में कम से कम एक या दो बारहल्दी वाला दूध लें. 150 मिली लीटर गर्म दूध में करीब आधी छोटी चम्मच हल्दी मिलाकर पीएं।7. नैजल एप्लीकेशन - तिल का तेल या नारियल का तेल या घी रोज सुबह और शाम नाक के दोनों छिद्रों में लगाएं।8. ऑयल पुलिंग थेरेपी - एक बड़ी चम्मच तिल का तेल या नारियल का तेल मुंब में लें. इसे पीना नहीं है. इसे दो से तीन मिनट तक मुंह में घुमाने के बाद थूक दें. इसके बाद गुनगुने पानी से कुल्ला करें. दिन में एक या दो बार ऐसा किया जा सकत है।9. गले में खरास या सूखा कफ होने पर पुदीने की कुछ पत्तियां और अजवाइन को पानी में गर्म करके स्टीम लें।10. गुड़ या शहद के साथ लॉन्ग का पाउडर मिलाकर इसे दिन में दो से तीन बार खाएं. सूखा कफ या गले में खरास ज्यादा दिनों तक है तो डॉक्टर को दिखाएं।देशभर के वैद्यों ने सुझाए उपाय- आयुष मंत्रालय द्वारा जारी प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने की सलाह प्रख्यात वैद्यों दवारा बताए गए हैं, जो संक्रमण के समय व्यक्तिगत रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में कारगर हो सकते हैं। इनमें दिल्ली, कोयम्बटूर, कोट्टाकल, नागपुर, ठाणे, बेलगांव, जामनगर, हरिद्वार, जयपुर, हरदोई, वाराणसी, चंडीगढ़ और कोलकाता के प्रख्यात वैद्य शांमिल हैं। -
मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी को पत्र लिखकर महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के अंतर्गत लंबित मजदूरी भुगतान और आगामी तीन माह की मजदूरी के लिए शीघ्र राशि जारी करने का अनुरोध किया था। केन्द्र सरकार ने इस पर कार्यवाही करते हुए 685.29 करोड़ रूपए जारी कर दिए हैं। मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने इसके लिए प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी का आभार व्यक्त किया है। इस राशि में से 404 करोड़ रूपए मजदूरी भुगतान के लिए दिया गया है। साथ ही सामग्री एवं प्रशासनिक मद में व्यय के लिए भारत सरकार द्वारा 281.28 करोड़ रूपए जारी किए गए हैं। इस मद में 88.13 करोड़ रूपए का राज्यांश मिलाकर कुल 773.42 करोड़ रूपए मनरेगा कार्यों मे व्यय किए जाएंगे।
पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री श्री टी.एस. सिंहदेव ने बताया कि मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल द्वारा भारत सरकार से पत्राचार कर वित्तीय वर्ष 2020-21 के लिए मनरेगा कार्यों के लिए राशि जल्द जारी करने की मांग की गई थी। उनकी पहल पर केंद्र सरकार द्वारा चालू वित्तीय वर्ष में मजदूरी, सामग्री और प्रशासनिक व्यय के लिए यह राशि जारी कर दी गई है। उन्होंने बताया कि भारत सरकार द्वारा चालू वित्तीय वर्ष में मजदूरी भुगतान की पहली किस्त के रूप में 934.70 करोड़ स्वीकृत किए गए हैं। इनमें से 404.01 करोड़ रूपए राज्य को प्राप्त हो गया है। -
रायपुर 28 मार्च 2020 ।लॉक डाउन होने से प्रत्येक व्यक्ति के जीवन चर्या पर असर हुआ है । इसमें मानसिक
तनाव, पेट की समस्या और शारीरिक थकान का एहसास लोगों को हो रहा है । उससे ज्यादा परेशानी है, पाचनक्रिया को लेकर हो रही है । शारीरिक परिश्रम और वर्कआउट कम हो रहा है लेकिन आदत के मुताबिक खाने मेंकमी नहीं कर रहे हैं । ज्यादातर देखा जा रहा है घरों में बच्चे और बुजुर्ग पेट साफ़ ना होने की समस्या सेपरेशान है ।शासकीय आयुर्वेदिक चिकित्सालय रायपुर के पंचकर्म विभागाध्यक्ष डॉ रंजीप दास ने बताया नियमित दिनचर्याके बदलाव होने से कब्ज होना एक आम बात है । ऐसे में समय पर उठने की आदत को ना त्यागे और साथ हीसमय पर नाश्ता करें । ड्राइंग रूम में ही चलकर सुबह की सैर का आनंद लें, रेगुलर गरम पानी पीऐं जिससे पेटसाफ रहेगा । भुनी सौंफ, अजवाइन, काला नमक, अदरक, और सौंठ, का सेवन भी कर सकते है । हर एकघंटे में एक गिलास पानी पीऐं । दिन भर में कम से 3 से 4 लीटर पानी पीऐं । पतली दाल बनाकर खायें ,छिलका मूंग की दाल भी पाचन और पेट के लियें अच्छी है , इसमें फाइबर होता हैं जो पेट साफ करने में मददकरते हैं । दलिया का सेवन करें । गर्म दूध हल्दी सोंठ पाउडर डालकर ले जो पेट के लिए लाभकारी होता है औरइससे भी पेट आसानी से साफ हो जाता है । विशेष रुप से शुगर पेशेंट घर के ड्राइंग रूम में पैदल चलें, योगासनकरें, प्राणायाम करें, बच्चों के साथ खेलें लाइट फूड और खिचड़ी का प्रयोग करें । बच्चों को दूध में किशमिशउबालकर पीने के लिए दे सकते हैं, यह पेट साफ करने में बहुत मदद करता है ।डॉ.दास ने कहा बसंत और शीत ऋतु में ठंडा पेय पदार्थ, केला और दही खान बंद कर दें । अंकुरित चना, मेथी,दालें विशेष रुप से मूंग दाल शुगर पेशेंट के लिए लाभदायक होता है । शहद के साथ आधा चम्मच अदरक आधाचम्मच तुलसी पत्ते का रस शहद के साथ खाने से कफ और खांसी में लाभ होता है हल्दी और सोंठ इम्यूनिटीबढ़ाने में लाभकारी होती है और पेट की सफाई में भी मदद करती है ।डॉ.दास ने बताया गर्म पानी पेट को साफ करता है, मेटाबोलिज्म को बढ़ाता है और सभी विषाक्त पदार्थों कोसाफ करता है। गर्म पानी पाचन प्रणाली की अशुद्धियों को साफ करता है और इससे पेट का दर्द भी दूर हो जाताहै। इसके साथ ही पेट को साफ करने में भी मदद मिलती है। इसके अलावा रोज़ 8 से 10 ग्लास पानी ज़रूरपीयें, इससे आपका शरीर हाइड्रेट रहेगा और नित्य क्रिया में भी आसानी होगी।अगर कोई भी समस्या पेट में है तो अपने नज़दीक के स्वास्थ्य केंद्र पर जा कर भी दिखा सकते या फोन परसम्पर्क कर के सलाह भी ले सकते हैं ।---------------------------------------------------------- -
सर्दियों में कई सब्जियां और फल ऐसे होते हैं, जिनके सेवन से न सिर्फ हम बीमारियों से बचे रहते हैं बल्कि हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ती है। जैसे, सर्दियों में किसी भी रूप में पालक का सेवन करना बेहद फायदेमंद माना जाता है। खासतौर पर आप इसे सलाद या इसका जूस पी सकते हैं क्योंकि इस तरह खाने से इसे ज्यादा पकाना नहीं पड़ता जिससे इसके पोषक तत्व नष्ट नहीं होते। आइए, जानते हैं पालक का जूस पीने के फायदे-
-पालक में विटामिन के की अच्छी मात्रा होती है। ऐसे में पालक का जूस पीने से हड्डि यां मजबूत होती हैं।
-पाचन क्रिया को दुरुस्त रखने के लिए भी पालक का जूस पीने की सलाह दी जाती है। ये शरीर के विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने में मददगार है। इसके अलावा अगर आपको कब्ज की समस्या है तो भी पालक का जूस आपके लिए फायदेमंद रहेगा।
-अगर आपको त्वचा से जुड़ी कोई समस्या है तो पालक का जूस पीना आपके लिए फायदेमंद रहेगा। पालक का जूस पीने से त्वचा दाग-धब्बों से दूर और जवां बनी रहती है। यह बालों के लिए भी अच्छा है।
-गर्भवती महिलाओं को भी पालक का जूस पीने की सलाह दी जाती है। पालक का जूस पीने से गर्भवती महिला के शरीर में आयरन की कमी नहीं होती है।
-कई अध्ययनों में कहा गया कि पालक में मौजूद कैरोटीन और क्लोरोफिल कैंसर से बचाव में सहायक हैं। इसके अलावा ये आंखों की रोशनी के लिए भी अच्छा है -
नई दिल्ली: स्वस्थ जीवन के लिए हड्डियों को मजबूत बनाए रखना सबसे अधिक महत्वपूर्ण है. सर्द मौसम में दिल्ली जैसे महानगर में प्रदूषण के कारण लोगों तक सूर्य की किरणों से मिलने वाले प्राकृतिक विटामिन-डी कम ही पहुंच पाती है. ऐसे में लोगों के शरीर में विटामिन-डी की कमी होना लाजमी है. इस बारे में फोर्टिस राजन ढल हॉस्पिटल के ऑर्थोपेडिक्स विभाग के ऑर्थोस्कॉपी एंड स्पॉर्ट्स इंजुरी के वरिष्ठ सलाहकार डॉ. विश्वदीप शर्मा ने कुछ प्रमुख बिंदुओं पर प्रकाश डाला है. दिन में धूप सेंकने के उचित समय और विटामिन-डी के पर्याप्त स्तर को बनाए रखने को लेकर कई शोध किए गए हैं.
15 मिनट करें धूप का सेवन
आमतौर पर कहा जाता है कि शरीर का 20 प्रतिशत हिस्सा यानी बिना ढका हाथ और पैरों से प्रतिदिन 15 मिनट धूप का सेवन करने से विटामिन-डी अच्छी मात्रा में लिया जा सकता है.
इस समय करें धूप का सेवन
अगला प्रश्न यह है कि दिन का कौन सा पहर सूर्य की रोशनी के संपर्क में आने का सबसे उपयुक्त होता है. आम धारणा के अनुसार, सुबह का धूप और देर शाम का धूप सेवन के लिए उपयुक्त होता है, जबकि सच्चाई यह है कि सुबह 10 से दोपहर 3 बजे के बीच के दौरान धूप का सेवन मानव शरीर की त्वचा को विटामिन-डी प्रदान करता है. हालांकि धूप के सेवन के दौरान त्वचा पर सन-ब्लॉक क्रीम या लोशन नहीं लगे होने चाहिए.
अगर धूप नहीं तो इनका करें सेवन
दिल्ली जैसे शहर, जहां प्रदूषण के कारण लोगों तक धूप नहीं पहुंच पाती है, वहां लोग दुग्ध उत्पादों व आहार के जरिए विटामिन डी का सेवन कर सकते हैं. महिलाओं में विशेष रूप से प्री-मेनोपॉजल और पोस्ट-मेनोपॉजल की श्रेणी की महिलाओं में ऑस्टियोपोरोसिस और ऑस्टियोमलेशिया होने की संभावना होती है. वहीं खुद को पूरी तरह से ढकने वाली महिलाओं व सनक्रीम लगाने वाली महिलाओं में भी विटामिन-डी की मात्रा काफी कम होती है, क्योंकि उनकी त्वचा के अंदर धूप प्रवेश नहीं कर पाता है. वहीं बच्चों में विटामिन डी की कमी से रिकेट्स की समस्या होने लगती है.
बच्चों को लेकर बरतें खास सावधानी
बच्चों को शुरुआत में ही पर्याप्त आहार के साथ-साथ अच्छी धूप का सेवन कराना आवश्यक होता है. बच्चों को खास कर उन बच्चों को जिन्होंने मां का दूध पीना छोड़ दिया है, उन्हें विटामिन डी से भरपूर खाद्य पदार्थों का सेवन कराना आवश्यक है. वहीं सर्दियों में हड्डियों को स्वस्थ रखने में अच्छी मात्रा में कसरत करने से भी फायदा मिलता है. कसरत से हड्डियों का घनत्व बना रहता है, जिससे ऑस्टियोपोरोसिस जैसी समस्याओं से बचा जा सकता है. -
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जब भी हम कोई नकारात्मक विचार करते हैं या उग्र, तनाव में रहता है तब हमारे शरीर के मस्तिष्क में स्थित न्यूरोकेमिकल्स सही तरह से काम नहीं करते लिहाजा पाचन क्रिया सहित शरीर की अन्य क्रिया में भी गड़बड़ी शूरू हो जाती है। इस पीरियड में आंतों में खून की आपूर्ति घट जाती है और एसिड का तनाव बढ़ जाता है। जिससे एसिडीटी, पेट में दर्द, गैस बनना, अपच, कब्ज आदि की समस्या पैदा होती है। अधिक्तर लोग किसी मुसिबत के बारे में सोचकर या फिर किसी जिम्मेदारी से घबराकर नकारात्मक विचारों से घिर जाते हैं तो ऐसी स्थिति उत्पन्न होती है जिसमें पेट में गैस बनना, भोजन का न पचना, कब्ज बनना, भूख न लगना, कमजोरी लगना आदि कई समस्या उत्पन्न होती हैं। हो जाता है। कुछ लोग अपने विचारों को नियत्रित न कर पाने और बार-बार एक ही विचार करने जैसी समस्या से ग्रसित हो जाते है और इस समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए हमेशा डॉक्टर, बैद्य से परामर्श करते रहते है। और काई न कोई दवा का सेवन करते रहना है। फिर भी कोई ठोस नतीजा नहीं निकल पाया है। दिनों दिन उनकी बीमारी और भी गंभीर हो जाती है। आपको ज्ञात होना चाहिए कि आज मेडिकल साइंस भी मानती है ज्यादा तनाव की स्थिति में पेट में उल तक होने की अधिक संभवना बनी रहती है। -
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पाचन से लेकर त्वचा की चमक तक अक्सर विशेषज्ञ फाइबर्स के सेवन की सलाह देते हैं। अब एक शोध कह रहा है कि लंबे समय तक फोइबर-रिच डाइट लेने से बढ़ती उम्र के साथ भी स्वस्थ रहने में मदद मिल सकती है। जानें कैसे?किसी भी व्यक्ति के लिए उम्र का बढ़ना एक प्राकृतिक क्रिया है। इसके साथ ही शरीर के अंगों का कमजोर होना और सफेद बालों, झुर्रियों आदि के साथ बढ़ती उम्र का दिखाई देने लगना भी स्वाभाविक है लेकिन यदि प्रारंभ से प्रयास किए जाएं, तो बढ़ती उम्र के इन लक्षणों को लंबे समय तक टाला जा सकता है और उम्र संबंधी तकलीफों के असर को कम किया जा सकता है। भोजन भी इस मामले में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।आॅस्ट्रेलिया में हुए एक शोध ने यह साबित किया कि फाइबर से भरपूर भोजन, जोकि असल में काबोर्हाइड्रेट का ही एक प्रकार होता है, और जिसे शरीर पचा नहीं सकता, वह असल में बढ़ती उम्र में स्वस्थ रखकर हमें फायदा पहुंचाता है।स्वस्थ रहकर उम्रदराज होने और काबोर्हाइड्रेट का सेवन करने के बीच की इस कड़ी को शोधकतार्ओं ने लाभकारी माना है। शोधकर्ता कहते हैं कि फाइबर्स की बदौलत, उम्र बढ़ने के साथ आने वाली मुश्किलों जैसे डिसेबिलिटी, डिप्रेशन के लक्षण, दिमागी अक्षमताओं, श्वास संबंधी तकलीफों से लेकर कैंसर और कोरोनरी आर्टरी डिसीज जैसी गंभीर अवस्थाओं तक से बचाव हो सकता है। -
हेल्थ न्यूज़। ड्राई फ्रूटस न सिर्फ कई गंभीर बीमारियां दूर करती है बल्कि स्वास्थ्य के लिए भी अच्छा माना जाता है। लंबे समय तक ड्राई फ्रूटस लेना बेहद फायदेमंद होता है। ड्राई फ्रूटस को रोजाना अपनी डाइट में शामिल करने से न सिर्फ उम्र्र बढ़ती है बल्कि उम्र्र के प्रभाव कोो भी कम किया जा सकता है। तो आईए जानते है ड्राई फ्रूटस से होने वाले लाभ..
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वैज्ञानिकों ने ऐसी एक नई उपचार प्रक्रिया विकसित की है जो व्यक्ति के दिमाग में बैठे किसी खास डर को मिटा सकती है। इस प्रक्रिया में मस्तिष्क की स्कैनिंग तकनीक और कृत्रिम बुद्धि का इस्तेमाल किया गया है। शोधकतार्ओं ने कहा, इस उपचार से किसी हादसे से गुजर चुके व्यक्ति के दिमाग से हादसे के कारण पैदा हुए डर या तनाव को दूर किया जा सकेगा।किसी हादसे या अवांछित परिस्थिति से गुजरने के कई मामलों में व्यक्ति के दिमाग में उसकी डरावनी यादें जड़ जमा लेती हैं। इससे वह अपने रोजमर्रा के जीवन में सामान्य नहीं रह पाता। वह आशंका और तनाव से पीड़ित हो जाता है, जिसे डॉक्टरी भाषा में पोस्ट ट्राउमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर कहते हैं।मस्तिष्क के इस हिस्से में पैदा होता है डरइस समस्या को देखते हुए कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के शोधकतार्ओं ने डिकोडेड न्यूरो फीडबैक नामक एक नई तकनीक विकसित की। इसका इस्तेमाल कर दिमाग को पढ़कर उसमें अवचेतन रूप से बैठे डर को पहचान कर मिटाया जा सकता है। इसमें मस्तिष्क की स्कैनिंग कर गतिविधियों पर नजर रखी जाती है। यह देखा जाता है कि किसी डर या आशंका के जिक्र के प्रति मस्तिष्क की गतिविधियों में क्या और कैसी जटिलता पैदा होती है।फिलहाल ऐसे मरीजों को आम तौर पर उस डर का सामना कराया जाता है, जिससे वे पीड़ित होते हैं। ताकि उन्हें यह भरोसा हो जाए कि इस डर से उनको कोई हानि नहीं होने वाली है। इसे एवर्सन थेरेपी कहते हैं, जो मरीज को कतई सहज नहीं लगती। इस अध्ययन में शोधकतार्ओं ने बिजली का झटका देकर 17 स्वस्थ प्रतिभागियों के मस्तिष्क में डर की एक याद पैदा कराई। इसके बाद उनके मस्तिष्क की स्कैनिंग कर उस हिस्से को पहचाना, जहां डर की याद अंकित हुई थी। उन्होंने इसका भी पता लगाया कि इस डर को लेकर मस्तिष्क की गतिविधियों में क्या बदलाव आया। इस तरह उन्होंने मस्तिष्क में डर से जुड़ी गतिविधियों के पैटर्न का पता लगाया। प्रतिभागियों के मस्तिष्क में डर की याद वाले हिस्से में गतिविधि शुरू होते ही शोधकतार्ओं ने उन्हें कुछ पैसे दिए। इस तरह प्रतिभागियों के मस्तिष्क में डर से जुड़ी याद की जगह पैसे पाने की बात अंकित हो गई। तीन दिन तक यह प्रक्रिया दोहराने के बाद शोधकतार्ओं ने प्रतिभागियों के मस्तिष्क की दोबारा स्कैनिंग की। पता चला कि मस्तिष्क में पहले जिस स्थान पर डर की याद अंकित थी, उसकी गतिविधियां थम-सी गई थीं। अर्थात प्रतिभागी उस डर को भूल चुके थे। यह अध्ययन नेचर ह्यूमन बिहेवियर जर्नल में छपा है।