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- दुर्ग : जिले में सघन कोरोना सर्वे अभियान 5 अक्टूबर से 12 अक्टूबर तक स्वास्थ्य विभाग द्वारा चलाया गया था । इस दौरान शहर से लेकर ग्रामीण क्षेत्रों में 3.17 लाख घरों में कोविड-19 से सम्बंधित लक्षण वाले मरीजों की पहचान की गयी है।इस कार्य में जिले की आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, मितानिन व महिला पुलिस स्वयंसेविकाओं ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए सर्दी-खांसी के लक्षण वाले 2,897 लोगों की पहचान की हैं। सर्वे टीम ने 2,842 लोगों की एंटीजन टेस्ट कराया जिसमें 218 कोविड-19 पॉजेटिव लोग मिले। सीएमएचओ डॉ. गंभीर सिंह ठाकुर ने बताया 2,030 संभावित लक्षणों वाले लोगों का सेम्पल आरटीपीसी टेस्ट के लिए भेजा गया है।
उन्होंने बताया दुर्ग जिले के कुछ शहरी क्षेत्रों में अभी सर्वे का कार्य जारी है | जल्द हीयह कार्य एक दो दिन में पूरा कर लिया जाएगा। इसके लिए स्थानीय स्वास्थ्य अमला द्वारा कोरोना से निपटने के लिए घर-घर सघन सर्वे में कोविड-19 से सम्बंधित लक्षण वाले लोगों की जानकारियां जुटाई जा रही हैं।सर्वे टीम के द्वारा उच्च जोखिम वाले-60 वर्ष से अधिक, गर्भवती महिला, 5 वर्ष के कम आयु के बच्चे, उच्च रक्तचाप, डायबीटीज से ग्रसित व्यक्ति के 506 लोगों का सेम्पल भी जांच के लिए भेजे गए हैं।
सीएमएचओ डॉ. गंभीर सिंह ठाकुर ने बताया, आज धमधा ब्लॉक के मेडेसरा उप स्वास्थ्य केंद्र व ग्रामीणों से मुलाकात कर कोरोना सर्वे से संबंधित जानकारी ली गयी । वहीं मैदानी स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को उच्च जोखिम वाले मरीजों की पहचान के बाद लगातार ग्रामीणों से संपर्क बनाए रखने के निर्देश दिए गए हैं।सीएमएचओ डॉ. सिंह के साथ स्वास्थ्य विभाग के डिप्टी डायरेक्टर डॉ योगेश शर्मा के साथ कोरोना संक्रमण के बचाव के लिए किए जा रहे प्रयासों व गतिविधियों का जायजा लिया गया। वही स्वास्थ्य विभाग की एक्टीव सर्विलेंस टीम को उच्च जोखिम वाले लोगों के स्वास्थ्य के प्रति अतिरिक्त सावधानियां बनाए रखने का निर्देश भी दिया गया।
उन्होंने कहा कोविड-19 के संक्रमण से बचाव के लिए गंभीर रोगों से पीड़ित व्यक्तियों में सर्दी, खांसी, बुखार व गले में खराश जैसे लक्षण वाले लोगों को सोशल डिस्टेंसिंग मास्क लगाने , बाहरी व्यक्तियों के दूरी बनाए रखने के बारे में बताया जा रहा है। बुजुर्गो की देखभाल में परिवार के सदस्यों को सावधानियों के साथ ही खान पान में विशेष ध्यान रखने की समझाईश भी दी जा रही है।सीएमएचओ ने लोगों से कहा घर –घर पहुंचने वाले सर्वे दल को स्वास्थ्य की सही जानकारी देकर सघन कोरोना सर्वे सामुदायिक संक्रमण को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएं । कोरोना पॉजिटिव लोगों की जल्द पहचान से ही संक्रमण को रोकने में मदद मिलेगी । -
जांजगीर-चांपा : ब्रेस्ट कैंसर के प्रति लोगों में जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से प्रति वर्ष अक्टूबर को स्तन कैंसर जागरूकता माह के रूप में मनाया जाता है। स्तन कैंसर के प्रति जागरूकता के लिए ग्रामीण स्तर पर महिला संगठनों में स्वसहायता समूह, मितानिन व आंगनबाडी कार्यकर्ता भी आगे बढकर अभियान चला रही हैं।
13 अक्टूबर से स्तन कैंसर माह को मनाने के लिए आज जाजंगीर-चांपा जिले के पामगढ ब्लॉक स्थित ग्राम पंचायत मेंऊ की महिलाओं ने नरसिंह चौक मुहल्ले की चौपाल में एक बैठक का आयोजन किया।
आंगनबाड़ी केंद्र क्रमांक 3 नरसिंह चौक मेंऊ की कार्यकर्ता सावित्री दिनकर ने बताया, स्तन कैंसर पुरुषों और महिलाओं दोनों को हो सकता है, परन्तु यह महिलाओं में अधिक होता है। कई कारणों से स्ततनों में बढ़ने वाली असामान्य कोशिकाएं कभी कभी गांठ का रूप ले लेती हैं जो आगे चलकर कैंसर में परिवर्तित हो सकती हैं ।
उन्होंने कहा, ब्रेस्ट में गांठ या स्थानीय चमड़ी मोटी होना जो आसपास से अलग दिखना, ब्रेस्ट के आकार या स्वरूप में बदलाव, ब्रेस्ट त्वचा में परिवर्तन, जैसे कि डिंपलिंग, उल्टां निप्पल, निप्पल के आस-पास की त्वचा का छिलना, स्केलिंग, क्रस्टिंग या फ्लेकिंग लाल होना या निप्पल खड़ा होना ब्रेस्टं कैंसर के लक्षण हो सकते हैं।
आंगनबाड़ी कार्यकर्ता ने महिलाओं को बताया,यदि बीमारी के लक्षण के बारे में समय रहते पता चल जाए तो इसका उपचार हो सकता है। ऐसी स्थिति में मितानिन और एएनएम से लक्षण के बारे में चर्चा कर नजदीक के अस्पताल में चिकित्सकीय परामर्श व इलाज कराया जा सकता है |इसके हेतु समुदाय में जागरुकता लाने के लिए मितानिन व स्वसहायता समूहों की महिलाएं मुहल्ले में लगभग 250 घरों में पहुंच कर परिवार के महिला सदस्यों से भागीदारी निभाने के लिए प्रेरित करेंगी।
इस मौके पर मितानिन शशी बंजारे व रमशीला टंडन ने बताया, नरसिंह चौक मुहल्ले में लगभग 15 से 50 साल तक 200 से अधिक महिलाओं व किशोरियों को माहवारी स्वच्छता अभियान से जोड़ा जाएगा। स्वस्थ्य नारी–स्वस्थ्य परिवार बनाने को मितानिन दीदी ने स्वच्छ माहवारी के लिए सेनेटरी पेड का इस्तेमाल करने की शपथ दिलाई । अब हर बेटी,बहु व महिला के सम्मान के लिए हर नारी को एक कदम आगे बढ़ाने की जरुरत है। वहीं बैठक में बी स्माइल फाउंडेशन सोसाइटी के ब्लॉक समन्वयक संजय कुमार साहू ने बताया, उनकी संस्था महिलाओं को बी स्माइल फाउंडेशन के माध्यम से 12 महीने के लिए 300 रुपए में 72 सेनेटरी पेड का सेट उपलब्ध कराएगी।
अनिल कुमार साहू ने बताया महिलाओं में जागरुकता की कमी के कारण माहवारी के दौरान सैनेटरी पेड का इस्तेमाल नहीं किया जा रहा है। इसलिए यह करने के लिए महिलाओं व युवतियों को समूह की महिला गृहभेंट कर प्रेरित कर रहीं हैं। इस दौरान माहवारी के समय परंपरागत संसाधनों के बदले सेनेटरी पेड को स्वास्थ्य के लिए सुरक्षित एवं ज्यादा हितकारी होने की जानकारी भी दी गयी ।
बैठक में कोरोना संक्रमण से बचाव के लिए स्वच्छता पर ध्यान देने के बाद महिलाओं को ब्रेस्ट कैंसर जैसे बीमारियों और सवाइकल कैंसर के बारे में भी बताया गया। इस मौके पर नरसिंह चौक आंगनबाड़ी केंद्र की आंगनबाड़ी कार्यकर्ता सावित्री दिनकर , सहायिका तीजमती दिनकर और जय माँ चंद्रहासिनी महिला स्वसहायता समूह की अध्यक्ष मैना बाई लहरे, सम्मेबाई लहरे, तीज बाई दिनकर, मालती दिनकर, सचिव उषा रोही दास और कल्याणी महिला स्वसहायता समूहकी अध्यक्ष नन्दनी खांडे, सचिव दामिनी जांगड़े, मनीषा बंजारे, रामकुमारी बंजारे, कुमारी रोहिदास, मुकनी सोनवानी व कांति सोनवानी भी उपस्थित रही। -
23 नवंबर से 18 दिसंबर की अवधि, राज्य सरकार ने की निर्धारित
टास्क फोर्स की बैठक में अभियान की तैयारियों पर हुई चर्चा
रायपुर : जैपनीज इंसेफलाइटिस ( जेई) के टीके 23 नवंबर से प्रदेश के पांच जिलों में लगाए जाएंगे। राज्य सरकार ने जेई टीकाकरण अभियान के लिए 23 नवंबर से 18 दिसंबर की अवधि निर्धारित की है। इसे लेकर गुरूवार को राज्य स्तरीय टास्क फोर्स की बैठक आयोजित हुई।
अपर मुख्य सचिव रेणु पिल्लई की अध्यक्षता में आयोजित बैठक में जेई टीकाकरण संबंधित तैयारियों के साथ ही संभावित परेशानियों पर भी विस्तार से चर्चा हुई। हर दौरान अपर मुख्य सचिव ने जेई अभियान में 1 वर्ष से 15 वर्ष तक के लक्षित सभी बच्चों को जैपनीज इंसेफलायटिस( जेई) का टीका अनिवार्य रूप से लगाए जाने और अभियान को शत-प्रतिशत सफल बनाने का निर्देश दिया।उल्लेखनीय है जैपनीज इंसेपलायटिस ( जेई) एक गंभीर बीमारी है, जिसके 70 प्रतिशत रोगी या तो मृत हो जाते हैं अन्यथा दीर्घकालिक न्यूरोल़जिकल विकलांगता से ग्रसित हो जाते हैं। यह बीमारी 1 से 15 वर्ष के बच्चों को ही ज्यादा प्रभावित करता है।इस बीमारी की रोकथाम टीकाकरण से ही संभव है। भारत सरकार के निर्देशानुसार राज्य के बस्तर, बीजापुर, दंतेवाड़ा, धमतरी और कोंडागांव जिले में जेई टीकाकरण अभियान चलाया जाना है। इसके लिए राज्य सरकार ने भी 23 नवंबर से 18 दिसंबर की अवधि निर्धारित की है।
चार सप्ताह चलेगा अभियान- राज्य टीकाकरण अधिकारी डॉ. अमर सिंह ठाकुर ने बताया कोविड-19 नियमों का पालन करते हुए जेई टीकाकरण अभियान चलाया जाएगा। अभियान चार सप्ताह तक चलाया जाएगा।पहले दो सप्ताह सरकारी एवं गैर सरकारी विद्यालयों जहां पर 15 वर्ष से कम उम्र के बच्चे पढ़ते हों, वहां टीकाकरण किया जाएगा। इसी तरह अगले दो सप्ताह ( अभियान के तीसरे और चौथे सप्ताह) अभियान समुदाय अर्थात गांव के स्वास्थ्य केन्द्रों, आंगनबाड़ी केन्द्रों, अतिरिक्त केन्द्रों, उपकेन्द्रों तथा अन्य नियमित टीकाकरण सत्र स्थल ईंट भट्ठे आदि स्थलों पर चलाया जाएगा।ईंटभट्ठे में टीकाकरण अभियान के लिए मोबाइल टीम की सहायता ली जाएगी। इस दौरान यह प्रयास किया जाएगा कि कोई भी बच्चा टीके से वंचित ना रहे। डॉ. ठाकुर ने बताया इस जेई अभियान के दौरान मंगलवार एवं शुक्रवार को नियमित टीकाकरण सत्र यथावत चलते रहेंगे।
जिला स्तर पर प्रशिक्षण- जिला स्तर पर अभियान के शत-प्रतिशत सफलता और कार्यक्रम के नियमित रूप से पर्यवेक्षण, कोल्ड चेन श्रृखला सुदृढ़ीकरण, एईएफआई प्रबंधन, डाटा संकलन के लिए स्वास्थ्य अधिकारियों को प्रशिक्षण भी दिया जाएगा।अक्टूबर के दूसरे सप्ताह में जिला स्तरीय बैठक आयोजित होगी। बैठक में सभी विकासखंड चिकित्सा अधिकारी, प्रभारी चिकित्सा अधिकारी एवं डाटा एंट्री ऑपरेटर ,सम्मिलित होंगे। इसके अतिरिक्त जिला शिक्षा अधिकारी एवं जिला कार्यक्रम अधिकारी (आईसीडीएस) मुख्य रूप से शामिल होंगे। आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, मितानिन, एएनएम एवं स्वयंसेवी कार्यकर्ताओं को 15 अक्टूबर तक प्रशिक्षण जिला स्तर पर दिया जाएगा।
कोर ग्रुप का गठन- जिला स्तर पर जेई ऑपरेशनल कोर ग्रुप का गठन किया जाएगा। इसकी बैठक में कलेक्टर, मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी, जिला टीकाकरण अधिकारी, जिला कार्यक्रम प्रबंधक, शहरी कार्यक्रम प्रबंधक, जिला शिक्षा अधिकारी, जिला कार्यक्रम अधिकारी ( महिला एवं बालव विकास विभाग) जिला कार्यक्रम अधिकारी ( आदिमजाति कल्याण विभाग), जिला समन्वयक मितानिन, नगर निगम अथवा नगर पालिका के प्रतिनिधि विकासखंड चिकित्सा अधिकारी, कार्यक्म सहयोगी संस्थाएं यूनिसेफ, डब्ल्यूएचओ, यूएनडीपी, रोटरी एवं स्थानीय स्वयंसेवी संस्थाओं के प्रतिनिधि शामिल होंगे। - डीपी विप्रा शिक्षा महाविद्यालय के छात्रों को दिया जायेगा दो दिवसीय प्रशिक्षण
9 और 10 अक्टूबर को होगा प्रशिक्षणबिलासपुर : राज्य मानसिक स्वास्थ्य चिकित्सालय, सेंद्री द्वारा डीपी विप्रा शिक्षा महाविद्यालय के छात्रों के लिए विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस के उपलक्ष मेंदो दिवसीय लाइफ स्किल और बाल मनोविज्ञान विषय प्रशिक्षण का आयोजन 9 से 10 अक्टूबर को किया गया है ।
प्रशिक्षण सिस्को वेबेक्स के माध्यम से आयोजित होगा । प्रशिक्षण का उद्देश्य शिक्षा विषय में स्नातक शिक्षा और डिप्लोमा शिक्षा (बीएड और डीएड) कर रहे छात्रों को अपने विद्यार्थी के मनोविज्ञान को समझना और उसके अनुरूप कार्य करना है ।
प्रशिक्षण का आयोजन राज्य मानसिक चिकित्सालय,सेंद्री,बिलासपुर के अस्पताल अधीक्षक डॉ. बीआर नंदा और डीपी विप्र शिक्षा महाविद्यालय की प्राचार्य डॉ.विभा मिश्रा के संयुक्त मार्गदर्शन में किया जाऐगा ।
इस वर्ष की थीम है ‘’Mental health for all. Greater investment. Greater access’’``मानसिक स्वास्थ्य सभी के लिए, अधिक निवेश, ज्यादा पहुँच’’अर्थात मानसिक स्वास्थ्य सेवाएँ सभी के लिए हर जगह उपलब्ध होनी चाहियें।
प्रशिक्षण कार्यक्रम की जानकारी देते हुऐ मनोचिकित्सक डॉ. मल्लिकार्जुन सागि ने कहा ऑनलाइन प्रशिक्षण में 150 स्नातक शिक्षा और डिप्लोमा शिक्षा के छात्र भाग लेंगे । इस प्रशिक्षण के दौरान साइकाइट्रिक सोशल वर्कर प्रशांत रंजन पांडे भी प्रशिक्षक के रूप में मौजूद रहेंगे ।
भावी शिक्षकों को प्रशिक्षण कार्यशाला के दौरान प्रारंभिक शिक्षा एवं बाल मनोविज्ञान के माध्यम से शिक्षण कौशल,जीवन कौशल के तरीके भी सुझाये जायेगे। बच्चों को कैसे तनाव और मानसिक समस्या से बचाया जाये पर भी इस सत्र में चर्चा होगी ।
प्राचार्य डॉ.विभा मिश्रा ने बताया शिक्षण कार्य करना एक विशेष विधि है। जब तक इसकी जानकारी नहीं होगी तब तक शिक्षा का उद्देश्य सफल नहीं हो सकता। बाल मनोविज्ञान के ज्ञान से कक्षा में सबसे पहले अपने छात्रों की मनोदशा को समझते है। इसलिये बच्चों के साथ अच्छा व्यवहार करना चाहिए, ताकि शिक्षक उनकी समस्याओं को समझ सके और शिक्षा में अवरोध उत्पन्न करने वाली चीजें सामने आ सकें। ``जब तक हम बच्चों की समस्याओं और तनाव को दूर नहीं करेंगे तब तक उनके साथ किया जाने वाला प्रयास सफल नहीं होगा।‘’
उन्होंने बताया माडयूल के अनुसार बाल मनोविज्ञान विषय का गहनता के साथ अध्ययन जरुरी है ।शिक्षा के क्षेत्र में बदलते परिदृश्य के अनुरुप बच्चों के मनोविज्ञान को समझते हुए अध्यापन कार्य कराने से ही आप एक सफल शिक्षक बन सके इसलिए इस प्रशिक्षण का आयोजन किया जा रहा है । -
नई दिल्ली : कोरोना वायरस पर दुनियाभर में अध्ययन जारी हैं। हर दिन कोई न कोई नई जानकारी सामने आती है। ऐसे ही एक अध्ययन में पता चला है कि कोरोना वायरस त्वचा पर कई घंटे तक सक्रिय रह सकता है। इसमें यह बात भी सामने आई है कि सामान्य मास्क असुविधाजनक तो हो सकते हैं, लेकिन इनसे फेफड़ों के नुकसान का खतरा नहीं है।
सार्वजनिक स्थल पर जरूर पहनें फेस : मास्क, फेफड़ों को नहीं होता नुकसान शोधकर्ताओं का दावा है कि सामान्य फेस मास्क असुविधाजनक तो हो सकते हैं, लेकिन वे फेफड़ों के लिए जरूरी ऑक्सीजन के प्रवाह को रोक नहीं सकते। यहां तक कि फेफड़ों की गंभीर बीमारी से पीड़ित मरीजों को भी मास्क पहनने से नुकसान नहीं होता।शोधकर्ताओं ने गैस एक्सचेंज प्रक्रिया के तहत सर्जिकल मास्क पहनने के प्रभाव का अध्ययन किया। शरीर में उपलब्ध खून में ऑक्सीजन के प्रवेश व कार्बन डाईऑक्साइड के उत्सर्जन की प्रक्रिया को गैस एक्सचेंज कहते हैं। अध्ययन में 15 स्वस्थ फिजिशियन व फेफड़ों की बीमारी से पीड़ित सेना के अवकाशप्राप्त 15 सैनिकों को शामिल किया गया। उन्हें मास्क पहनाकर ठोस सतह पर छह मिनट तक चलाया गया है। इससे पहले और बाद में भी उनके खून में ऑक्सीजन व कार्बन डाईऑक्साइड की उपलब्धता के स्तर की जांच की गई। दोनों में से किसी के गैस एक्सचेंज पैमाने पर कोई असर नहीं पड़ा।
15 सेकेंड में निष्क्रिय भी हो सकता है वायरस : मेडिकल जर्नल क्लीनिकल इंफेक्शियस डिजीज में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, प्रयोगशाला में त्वचा पर शोध के बाद वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि कोरोना वायरस त्वचा पर नौ घंटे से ज्यादा सक्रिय रह सकता है, जबकि एंफ्लूएंजा जैसे वायरस सिर्फ दो घंटे तक सक्रिय रहते हैं।हालांकि, त्वचा पर 80 फीसद अल्कोहल वाले सैनिटाइजर को 15 सेकेंड तक रगड़ने के बाद ये दोनों ही वायरस निष्क्रिय हो जाते हैं। यूएस सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन का कहना है कि अल्कोहल आधारित सैनिटाइजर के इस्तेमाल या 20 सेकेंड तक साबुन-पानी से अच्छी तरह हाथ धोकर कोरोना संक्रमण के खतरे को टाला जा सकता है।
अच्छी नींद भी है जरूरी : शोधकर्ताओं ने फिनलैंड के नेशनल डाटाबेस का उपयोग करते हुए अध्ययन में बताया है कि अगर किसी कोरोना संक्रमित को नींद संबंधी परेशानी है तो उसकी स्थिति ज्यादा गंभीर हो सकती है। उन्होंने पाया कि अगर किसी को ऑब्सट्रक्टिव स्लीप एपनिया यानी ओएसए की समस्या है तो कोरोना संक्रमण की स्थिति में उसे अस्पताल में भर्ती किए जाने का खतरा पांच गुना बढ़ जाता है।
- दुर्ग : सुपोषण अभियान से समुदाय को जोड़ने के लिए स्वसहायता समूहों की महिलाओं के साथ आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं द्वारा लगातार बैठक आयोजित की जा रही हैं ताकि कोरोना संक्रमण के इस दौर में कुपोषण, एनिमिया और डायरिया से बचाव के लिए घर-घर प्रबंधन के उपाय किए जा सकें। आज तीनदर्शन परिक्षेत्र भिलाई की आगनबाड़ी कार्यकर्ताओं द्वारा स्वसहायता समूह की बैठक लेकर पोषण अभियान के अंतर्गत जानकारी प्रदान की गई।
एकीकृत बाल विकास परियोजना भिलाई के तीनदर्शन परिक्षेत्र की महिला पर्यवेक्षक श्रीमती उषा झा ने बताया पोषण माह में आंगनबाडी कार्यकर्ता एवं सहायिका प्रतिदिन गृहभेंट के माध्यम से भी बच्चों और महिलाओं के पोषण आहार को ध्यान रखने के लिए चर्चा कर रही हैं। आंगनबाडी कार्यकर्ताओं द्वारा स्वसहायता समूह की बैठक लेकर संकमण, कुपोषण, एनीमिया और डायरिया से बचने के उपाय बताये जा रहे है।साथ ही छोटी-छोटी गतिविधियों जैसे सामूहिक बैठक लेकर स्थानिय स्त्रोतों के प्रदर्शन के माध्यम से हितग्राहियों को उचित खानपान, हाथ धुलाई, साफ-सफ़ाई, पोषण वाटिका, ओआरएस बनाने की विधि एनीमिया और कुपोषण से बचाव आदि की जानकारी दे रही है। पोषण आधारित व्यवहार को लेकर समुदाय स्तर पर जनजागरुकता लाने पौष्टिक भोजन से मिलने वाले विटामिन और मिनरल्स के महत्व को बताए जा रहे हैं।
ऊषा झा ने बताया कुपोषण से बचाव के लिये शैशवाबस्था से ही पोषण पर परिवार को सचेत रहना चाहिए प्रायः शिशुओ में 6 माह के बाद पेाषण की कमी देखी गई है। पूरक पोषण आहार इसीलिए आवश्यक हो जाता है बच्चों के मस्तिष्क का विकास प्रथम 5वर्ष तक होता है। इस दौरान हुए कुपोषण का प्रभाव केवल शारीरिक कमजोरी ही नहीं मानिसक विकास को भी प्रभावित करता है। बचपन में ही संतुलित एवं पौष्टिक खानपान से व्यक्ति का शरीर मजबूत और अधिक श्रम करने में सक्रिय रहता है।
कुपोषण से प्रतिरोधक क्षमता में कमी
शरीर के लिए आवश्यक सन्तुलित आहार लम्बे समय तक नहीं मिलना ही कुपोषण है। कुपोषण के कारण बच्चों और महिलाओं की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है, जिससे वे आसानी से कई तरह की बीमारियों के शिकार बन जाते हैं। अत: कुपोषण की जानकारियाँ होना अत्यन्त जरूरी है। कुपोषण प्राय: पर्याप्त सन्तुलित अहार के आभाव में होता है।बच्चों और स्त्रियों के अधिकांश रोगों की जड़ में कुपोषण ही होता है। स्त्रियों में रक्ताल्पता या घेंघा रोग अथवा बच्चों में सूखा रोग या रतौंधी और यहाँ तक कि अंधत्व भी कुपोषण के ही दुष्परिणाम हैं। इसके अलावा ऐसे कई रोग हैं जिनका कारण अपर्याप्त या असन्तुलित भोजन होता है।
हमारे समाज में स्त्रियाँ अपने स्वयं के खान-पान पर ध्यान नहीं देतीं। जबकि गर्भवती स्त्रियों को ज्यादा पौष्टिक भोजन की आवश्यकता होती है। उचित पोषण के अभाव में गर्भवती माताएँ स्वयं तो रोग ग्रस्त होती ही हैं साथ ही होने वाले बच्चे को भी कमजोर और रोग ग्रस्त बनाती हैं।
एनिमिया यानी खून की कमी
एनीमिया यानी शरीर में खून की कमी होना। शरीर में हिमोग्लोबिन एक ऐसा तत्व है खून की मात्रा बताता है। पुरुषों में इसकी मात्रा 12 से 16 ग्राम तथा महिलाओं में 11 से 14 ग्राम के बीच होना चाहिए। खून की कमी तब होता है, जब शरीर के रक्त में लाल कणों या कोशिकाओं के नष्ट होने की दर, उनके निर्माण की दर से अधिक होती है। किशोरावस्था और रजोनिवृत्ति के बीच की आयु में एनीमिया सबसे अधिक होता है।गर्भवती महिलाओं को बढ़ते शिशु के लिए भी रक्त निर्माण करना पड़ता है। इसलिए गर्भवती महिलाओं को एनीमिया होने की संभावना होती है। एनीमिया से पीड़ित महिलाओं की प्रसव के दौरान मरने की संभावना सबसे अधिक होती है।
एनिमिया के लक्षण व निवाराण
एनिमया के लक्षण आमतौर पर सामान्य होते हैं। एनिमिया पीड़ित के त्वचा का सफेद दिखना। जीभ, नाखूनों एवं पलकों के अंदर सफेदी। कमजोरी एवं बहुत अधिक थकावट। चक्कर आना- विशेषकर लेटकर एवं बैठकर उठने में। बेहोश होना। सांस फूलना। हृदयगति का तेज होना। चेहरे एवं पैरों पर सूजन दिखाई देना। ये लक्षण हो तब नजदीक के स्वास्थ्य केंद्र में चिकित्सक से परामर्श लेना जरुरी है। एनिमिया के सबसे बड़े कारण में लौह तत्व वाली चीजों का उचित मात्रा में सेवन न करना।
एनिमिया के रोकथाम के लिए अगर एनीमिया मलेरिया या परजीवी कीड़ों के कारण है, तो पहले उनका इलाज करें। आयरन-युक्त पदार्थ का सेवन और भोजन में विटामिन 'ए' एवं 'सी' युक्त खाद्य पदार्थ खाएं। शरीर में स्वस्थ लाल रक्त कण बनाने के लिए फोलिक एसिड की आवश्यकता होती है। फोलिक एसिड के लिए गहरे हरे रंग की पत्तेदार सब्जियां, मूंगफली, अंडे, दाल व आलू जरुरी होता है। मूली, गाजर, टमाटर, शलजम, खीरा जैसी कच्ची सब्जियां प्रतिदिन खानी चाहिए। अंकुरित दालों व अनाजों का नियमित प्रयोग करें। - दुर्ग : जिले में राष्ट्रीय पोषण माह-2020 के अंतर्गत आंगनबाड़ी केंद्रों और सेक्टर स्तर पर “ सही पोषण-छत्तीसगढ रोशन “ जागरुकता अभियान चलाया जा रहा है। कोविड-19 की वजह से कंटेन्टमेंट जोन को छोड़ कर अन्य क्षेत्रों के आंगनबाड़ी केंद्रों को संचालन भी किया जा रहा है।पोषण माह में 1 सितंबर से 30 सितंबर तक प्रत्येक दिन अलग-अलग गतिविधियां महिला एवं बाल विकास विभाग के जिला कार्यक्रम अधिकारी विपिन जैन एवं परियोजना अधिकारी श्रीमती पूजा अग्रवाल के मार्गदर्शन में की जा रही है।
भिलाई परियोजना के तीन दर्शन सेक्टर के 26 आंगनबाड़ी केंद्रों के 6 माह के उम्र के 26 बच्चों का माह के चौथे मंगलवार को अन्नप्राशन करवाया गया। पर्यवेक्षक श्रीमती ऊषा झा ने बताया सही समय पर पूरक आहार की शुरुआत से कुपोषण से बचा जा सकता है। इस दौरान आंगनबाड़ी कार्यकर्ता मुनेश्वरी सिंह ने बच्चों के हाथ भी धुलवाए।
महिला पर्यवेक्षक श्रीमती झा ने बताया 6 माह पूरे करने वाले शिशुओं को मीठा खीर खिलाकर पहली बार पूरक आहार की शुरुआत यानि अन्नप्राशन करवाया गया। अन्नप्राशन कराए गए बच्चों में तीनदर्शन के आंगनबाड़ी केंद्र में शिशु यश कुमार माता सीमा देवी, मशानघाट आंगनबाड़ी केन्द्र में शिशु साक्षी माता पूजा साहू, कोसानगर सतनामी मोहल्ला आंगनबाड़ी केन्द्र में शिशु युगान्त माता किरण शामिल थे।
वहीं अम्बेडकर नगर की आंगनबाड़ी कार्यकर्ता अन्नपूर्णा दुबे द्वारा विभिन्न मौसमी पौष्टिक फल एवं सब्जियों के पोषक तत्वों को भोजन में शामिल कर पोषण अभियान को सफल बनाने पर जोर दिया गया। मौसमी फल सेव, केला, अनार, पपीता और सब्जी हरी पत्तेदार सब्जी, मुनगा, गोभी, भिंडी, करेला, बरबट्टी, गवारफल्ली, कद्दू सहित अन्य सब्जी थाली में होना जरुरी है।
6 माह के बाद दें शिशु को पूरक आहार
छह महीने की उम्र के बाद शिशु को भोजन से अतिरिक्त पोषक तत्वों की जरुरत होती है, विशेष तौर पर आयरन की। शिशु के शुरुआती छह महीनों में उसकी पाचन और रोग प्रतिरोधक प्रणाली धीरे-धीरे मजबूत हो रही होती है। 7 वें माह से शिशु ठोस आहार को अधिक कुशलता से पचाने में सक्षम होने लगता है। शिशु को विभिन्न प्रकार के ठोस खाद्य पदार्थों (जैसे, मसला हुआ, नर्म या पका हुआ और सादा आहार) का स्वाद चखाते रहें। शिशु की बढ़ती शारीरिक ज़रूरतों को पूरा करने के लिए, मसली हुई सब्ज़ियाँ और फल लगातार दिए जा सकते हैं। बेहतर प्रभाव के लिए, इसे सीरियल के साथ मिलाकर शिशु को दिन में लगभग 3 बार दें ।
क्या खिलाएं: सादे अनाज और मसले हुए फलों व सब्जियों के अलावा अब शिशु को गाढ़े मसले और नर्म पके हुए खाद्य पदार्थ भी दें।
कितना खिलाएं : स्तनपान कराने और ठोस खाद्य पदार्थों के बीच संतुलन बनाए रखें ।
आहार संबंधी सलाह: एक समय में एक ही ठोस पदार्थ देने का प्रयास करें। - सुपोषित थाली, प्रदर्शनी और रंगोली के माध्यम से कर रहे पोषण के प्रति जागरूक
किशोरियों को सिखाए जा रहा महावारी के दिनों में स्वच्छता रखने के तरीके
ज़िले में 30 सितंबर तक चलने वाले राष्ट्रीय पोषण माह के अंतर्गत विकासखंड अभनपुर के सेक्टर केंद्री की समस्त पंचायत में नियमित रूप से पोषण वारियर्स के माध्यम से गर्भवती, शिशुवती माताओं और बच्चों को गृह भेंट कर पोषण संबंधी जानकारियां दी जा रहीं हैं ।पोषण माह में विशेष रुप से 11 से 18 वर्ष के किशोरियों को माहवारी के दिनों में स्वच्छता बनाए रखने के सही तरीके सिखाए जा रहे हैं । विकासखण्ड अभनपुर में राष्ट्रीय पोषण माह का आयोजन सीडीपीओ जागेश्वर साहू के मार्गदर्शन में किया गया ।
केंद्री की सुपरवाइजर श्रीमती खेमेश्वरी वर्मा ने बताया राष्ट्रीय पोषण माह के अंतर्गत केंद्री सेक्टर की 6 पंचायतों केंद्री, झांकी, बकतरा, भेलवाड़ीह बेंद्री और पचेड़ा में आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं द्वारा नियमित रूप से गृह भेंट, पोषण थाली निर्माण प्रदर्शनी, रंगोली, नारा लेखन और पोषक खाद्य पदार्थ के चित्रों के माध्यम से समाज को पोषण की महत्वता के बारे में जागरूक कर ‘’सही पोषण देश रोशन’’ का संदेश भी दिया जा रहा है । गृहभेंट के दौरान रेडी-टू-ईट फूड का वितरण भी किया जा रहा है ।
16 वर्षीया भेलवाड़ीह निवासी रानू साहू बताती है वह नही जानती थी की महावारी के दिनों में किस प्रकार साफ-सफाई रखना होता है । गृह भ्रमण के दौरान आंगनबाड़ी दीदी ने पूछा की आप महामारी के दिनों में स्वच्छता का कैसे ख्याल रखती हो ? उस समय मैं निरुत्तर हो गई । उसके बाद आंगनबाड़ी दीदी ने बताया कि नियमित रूप से सेनेटरी पैड को बदलते रहना आवश्यक है ।अत्यधिक रक्तस्राव होने पर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में जाकर जानकारी ली जा सकती है । अपने से किसी भी प्रकार की घरेलू या चिकित्सकीय दवाई ना लें । जब तक आपको कोई स्त्री रोग विशेषज्ञ या डॉक्टर सलाह ना दे, तब तक किसी भी प्रकार की दवाई ना ले। नियमित रूप से स्नान और सफाई का ध्यान रखें । साथ ही उन्होंने स्वस्थ शरीर के लिए तिरंगा थाली कैसे बनाई जाएगी और उसे कैसे खाते हैं की भी जानकारी दी गई ।आंगनबाड़ी पचेड़ा की आंगनबाड़ी कार्यकर्ता गीता माण्डले ने बताया समुदाय में पोषण और स्वच्छता का संदेश देने के लिए ग्राम की किशोरी बालिकाओं द्वारा रंगोली बनाकर ‘’सही पोषण देश रोशन’’ का संदेश भी दिया गया जिसमें विशेष रूप से निशिता ऋषिका और आयुषी द्वारा बनाई गई रंगोलियों में ‘’बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’’ का संदेश भी दिया गया है ।पोषण माह में स्वास्थ्य विभाग की मितानिन का सहयोग भी लिया जा रहा है । जिसके द्वारा शिशुवती माताओं और गर्भवती महिलाओं को पोषण और टीकाकरण के लिए जागरूक किया जा रहा है ।
विभाग द्वारा समस्त गतिविधियों का आयोजन कोविड-19 की गाइडलाइन अनुसार किया जा रहा है । - शिशुवती और गर्भवती महिलाओं को थाली में तिरंगा भोजन खाने की दी जा रही सीख
हितग्राहियों को किया जा रहा रेडी टू ईट का वितरण
महिला एवं बाल विकास विभाग के द्वारा से चलाये जा रहे राष्ट्रीय पोषण माह में आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के माध्यम से गृह भेंट कर “सही पोषण देश रोशन” का संदेश पहुंचाने के साथ-साथ हितग्राहियों को हस्त प्रक्षालन और पोषण आहार सेवन के प्रति जागरूक भी किया जा रहा है । शिशुवती और गर्भवती महिलाओं को थाली में तिरंगा भोजन खाने की सीख दी जा रही है ।साथ ही रेडी टू ईट का वितरण भी किया जा रहा है । विकासखण्ड अभनपुर में राष्ट्रीय पोषण माह का आयोजन सीडीपीओ जागेश्वर साहू के मार्गदर्शन में किया गया ।
ग्राम पंचायत पारागॉव की हितग्राही संध्या साहू जो 2 माह की गर्भवती ने बताया आंगनबाड़ी दीदी ने मुझे पोष्टिक थाली के बारे में बताया उन्होंने कहा गर्भवती की थाली कम से कम तिरंगा थाली होना चाहिये । जिसमें दाल चावल और रोटी होना ही चाहिये थाली जितनी रंगीन होगी उतनी ही पोष्टिक भी होती है ।गर्भवती को दूध,दही सूखे मेवे और ताज़ी हरी पत्तेदार सब्ज़ीयॉ खाने से शिशु का उचित विकास होता है । खाना एक बार में पूरा नही खाया जा रहा हो तो भरपूर खाने के लियें थोडा थोडा अंतराल पर खाते रहना चाहिये ।
15 वर्षीय किशोरी ग्राम पंचायत चम्पारण की निवासी हेमलता निषाद कहती है कि आंगनबाड़ी दीदी जब गृह भेंट पर आयी तो उन्होंने मुझे बताया की खाने से पहले और शौच के बाद साबुन से हस्त प्रक्षालन करना ,घर से बाहर जाने पर फेस मास्क और शारीरिक दूरी का ध्यान रखना है । माहवारी के विशेष दिनों के दौरान स्वच्छता रखने के तरीके और उसके फायदे भी बताये ।सेक्टर पारागॉव की पर्यवेक्षक कांता लकडा ने बताया कि सेक्टर की दस ग्राम पंचायत में कुपोषित बच्चों का अलग से चिन्हांकन करके उन्हें पौष्टिक आहार दिया जा रहा है।आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं द्वारा घर-घर जाकर बच्चों के माता-पिता को पौष्टिक भोजन से होने वाले फायदो की जानकारी भी दे रहे हैं। गांव में सुपोषण से संबंधित सभी जानकारी अभिभावकों को दी जा रही है।विभिन्न पौष्टिक आहारों का महत्व के साथ-साथ उसके सेवन करने के तरीके को भी पोषण आहार प्रदर्शनी लगाकर बताया जा रहा है।
आंगनबाड़ी केन्द्रो के माध्यम से चित्रकारी, सुपोषण से संबंधित स्लोगन तथा रचनात्मक चित्रकारी बच्चों से बनवाकर व्हाट्सएप के माध्यम से पोषण आहार का संदेश भी दिया जा रहा है।लोग भी सुपोषण के महत्व समझ को रहे हैं।बच्चों तथा महिलाओं को कुपोषण से मुक्ति दिलाने के लिए आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं द्वारा गृहभेंट कर रेडी टू ईट का वितरण किया जा रहा है । सेक्टर में राष्ट्रीय पोषण माह संबंधी आकर्षक रंगोली तथा चित्रकारी बनाकर पोषण आहार का उपयोग करने का संदेश दिया जा रहा है। - 6 डिसमिल जमीन पर उगाते है आंगनबाड़ी के बच्चों के लिए फल और सब्ज़ियॉसामाजिक सरोकार का है एक बड़ा उदाहरण
ठाकुर राम पटेल का नाती कुपोषित क्या हुआ कि अपने क्षेत्र की आंगनबाड़ी के लिए लगा दी पोषण वाटिका । 65 वर्षीय ठाकुर राम पटेल कहते हैं कि लगभग चार-पांच वर्ष पहले मेरा नाती कुपोषित हो गया था । आंगनबाड़ी दीदी ने बताया कि उचित पोषण आहार न मिलने के कारण आपका नाती कुपोषित है । बस फिर क्या था अपने खेत की 6 डिसमिल जमीन पर ग्राम पंचायत टीला विकासखण्ड अभनपुर की आंगनबाड़ी क्रमांक 2 के लिए सुपोषण वाटिका लगा डाली ।
उन्होंने बताया कि इस कार्य में ग्राम के सरपंच का भी सहयोग मिला है ग्राम स्तर से मुनगा, भाटा, बरबट्टी, पपीता, केला तोरई एवं करेला सब्जी के पौधे लगाकर पोषण वाटिका के माध्यम से बच्चों को गरमा गरम सुपोषित भोजन की व्यवस्था की जाती है ।सब्जी को नियमित रूप से आंगनबाड़ी को भेज देते हैं जिससे वहां पर बच्चों को ताजा गरमा गरम सुपोषित पौष्टिक भोजन खाने में मिलता है ।
नीरा पटेल कहती हैं आंगनबाड़ी दीदी करुणा सोनी को जब भी बच्चों के लिए सब्जी की जरूरत होती है हमारे यहां से मंगा लेती हैं । हमारे परिवार में 8 लोग हैं आठ पोषण वाटिका को विशेष रुप से सहयोग करते हैं । परिवार इस पोषण वाटिका में नियमित रूप से अपना सहयोग करता है साथ ही समय पर पानी देना, दवा का छिड़काव करना और आवश्यकता अनुसार देख रेख की जाती है।हमने अब ठान लिया है कि हम अपने ग्राम के किसी भी बालक को कुपोषित नहीं होने देंगे । जब से कोरोनावायरस आया है तबसे आंगनबाड़ी दीदी की सहायता से सब्जियों को अच्छे से धोकर ही उनकी मदद से बच्चों के घर पर भी पर भी पहुंचाते हैं ।
आंगनबाड़ी कार्यकर्ता करुणा सोनी ने कहा ठाकुर राम पटेल द्वारा नियमित रूप से आंगनबाड़ी को सब्जी उपलब्ध कराई जाती है जो कि निशुल्क होती है। ठाकुर राम पटेल ने अपनी 6 डिसमिल जमीन पर आंगनबाड़ी के लिए पोषण वाटिका लगाई है यह एक बड़ा सामाजिक सरोकार का उदाहरण है जो कुछ लोग ही कर पाते हैं।
इस समय सही पोषण देश रोशन की अवधारणा के साथ पूरे प्रदेश में राष्ट्रीय पोषण माह भी मनाया जा रहा है। इस दौरान महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा अन्य विभागों के सहयोग से आंगनबाड़ी केन्द्रों, स्कूलों, घरों की बाड़ियों, सामुदायिक भूमि में पौष्टिक आहार उपलब्ध कराने के लिए पोषण वाटिका तैयार कराई जा रही है। इनमें मुख्य रूप से सब्जियां और फलदार पौधे लगाए जा रहे हैं।पोषण वाटिकाओं को तैयार करने का मुख्य उद्देश्य मौसमी और ताजी सब्जियों और फल की पर्याप्त स्थानीय उपलब्धता से बच्चों और महिलाओं के पोषण स्तर में सुधार लाना और हरी साग-सब्जियों को खान-पान में अनिवार्य रूप से शामिल करने के लियें जागरूकता लाना है।पोषण वाटिका में लौकी, बरबट्टी, लाल भाजी, पालक और मुनगा जैसे विभिन्न प्रकार की पौष्टिक हरी साग-सब्जियों के साथ पपीता,अमरूद जैसे पौष्टिक फलों के पौधे भी लगाए जाते हैं।इस दौरान कोविड-19 से सुरक्षा के संबंध में समस्त निर्देशों का पालन भी किया जा रहा है। -
316 ओ.आर.टी. और जिंग कॉर्नर की हुई स्थापना
कोरबा : बच्चों को डायरिया से बचाने के लिए हर वर्ष जुलाई माह में सघन डायरिया नियंत्रण पखवाड़ा मनाया जाता है। इसी क्रम में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग की ओर से यह पखवाड़ा मनाया गया था।इसके अंतर्गत कोरबा जिले के पांच वर्ष की आयु तक के 1.2 लाख बच्चों को डायरिया से बचाने के लिए ओआरएस एवं जिंक का वितरण किया गया। साथ ही जिला मुख्यालय से लेकर गांव स्तर तक डायरिया नियंत्रण के प्रति लोगों को जागरूक भी किया गया।
इसके अतिरिक्त कोरोनावायरस संक्रमण को देखते हुए स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं द्वारा लोगों को कोरोना वायरस से बचाव के उपाय भी बताए गए। सीएमएचओ डॉ. बी.बी. बोर्डे के नेतृत्व में डायरिया की रोकथाम एवं प्रबंधन के लिए कोविड-19 के दिशा-निर्देशों का पालन करते हुए जिले के स्वास्थ्य केंद्रों में 316 ओ.आर.टी. (ओरल रिहाईड्रेशन थेरेपी) और जिंक कॉर्नर की स्थापना की गई। इस दौरान पांच वर्ष के कम आयु के बच्चों को समुचित स्वास्थ्य देखभाल प्रदान की गई।
जिला सर्विलेंस अधिकारी डॉ. कुमार पुष्पेश ने बताया डायरिया से होने वाली मौतों की दर शून्य रखने, जन-जागरूकता फैलाते हुए समुदाय व गांव स्तर पर घरों में ओ.आर.एस. का वितरण किया गया और बनाने की विधि का प्रदर्शन भी किया गया। साथ ही जिला एपीडेमोलॉजिस्ट डॉ. प्रेम प्रकाश आनंद एवं स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं द्वारा मितानिनों के माध्यम से लोगों को हाथ धुलाई का महत्व बताकर सही तरीके से हाथ धुलाई करना भी सिखाया गया।
ओ.आर.टी. और जिंक कार्नर- जिले में कुल 316 ओ.आर.टी. और जिंक कार्नर जिला अस्पताल एवं स्वास्थ्य केन्द्रों में स्थापित किए गए। इनमें मुख्य रूप से उप स्वास्थ्य केंन्द्र, शहरी स्वास्थ्य केंन्द्र, सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र, जिला अस्पताल कोरबा तथा प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र शामिल हैं। इन सभी केन्द्रों में 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों स्वास्थ्यगत देखभाल हुई।
812 गांवों के बच्चे हुए लाभांन्वित- डायरिया जागरूकता के तहत 812 गांवों के पांच वर्ष की आयु तक के बच्चों के स्वास्थ्य जागरूकता का प्रयास हुआ। इस दौरान 1.2 लाख बच्चों को ओआरएस के पैकेट दिए गए और 923 बच्चे जो डायरिया पीड़ित थे, उनका इलाज किया गया। 20 मोबाइल टीम भी बनाई गई जिनके माध्यम से जिले के सभी गांव और ब्लॉक को कवर किया गया था।
डायरिया - डायरिया को दस्त के रूप में भी जाना जाता है। छोटे बच्चों और बडों को भी डायरिया दूषित पानी पीने एवं दूषित भोजन करने की वजह से हो सकता है। कुपोषित और कमजोर प्रतिरक्षा वाले (लो इम्युनिटी ) लोगों, शिशुओं, छोटे बच्चों को संक्रमण का शिकार होने का खतरा अधिक होता है।
डायरिया के लक्षण और बचाव - डायरिया से जूझ रहे व्यक्ति मे पानी वाला मल, पेट में ऐंठन या ऐंठन होना, मतली और उल्टी होना, बुखार और भूख में कमी के लक्षण दिखाई देंगे। उचित व्यक्तिगत स्वच्छता, रखरखाव दस्त को रोकने का सटीक उपाय है। टॉयलेट जाने के बाद और खाना बनाने / खाने से पहले साबुन या लिक्विड हैंडवाश से हाथ धोने से डायरिया को आसानी से नियंत्रित किया जा सकता है। इसके अलावा ओरल रिहाइड्रेशन सॉल्यूशन या ओआरएस को पानी में मिलाकर पीने से दस्त की वजह से खोए हुए मिनरल्स और लवणों को वापस लाने में मदद मिलती है।
इसके अलावा दस्त वाले बच्चों को सामान्य रूप से दूध पिलाना, स्तनपान कराना जारी रखना चाहिए। चीनी, नमक का घोल, तरल पदार्थ छांछ, नारियल पानी देना चाहिए और चिकित्सकीय परामर्श अवश्य लेना चाहिए। - बच्चे के शारीरिक और मानसिक विकास के लिए शुरू के 1000 दिन यानि गर्भकाल के 270 दिन और बच्चे के जन्म के दो साल (730 दिन) तक का समय बहुत ही महत्वपूर्ण होते है । इस दौरान पोषण का खास ख्याल रखना बहुत ही जरूरी होता है|इस दौरान अगर बच्चे को पर्याप्त पोषण न मिले तो उसका पूरा जीवन चक्र प्रभावित हो सकता है। पर्याप्त पोषण से संक्रमण, विकलांगता, बीमारियों व मृत्यु की संभावना कम होती है ।माँ और बच्चे को पर्याप्त पोषण उपलब्ध कराने से बच्चे की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है साथ ही इससे बच्चे में स्वस्थ जीवन जीने की नींव भी पड़ती है ।
बच्चे के सही पोषण के बारे में जागरूकता के लिए आंगनवाड़ी केन्द्रों पर अन्नप्राशन दिवस का आयोजन भी किया जाता है जिसमें बच्चा 6 माह की आयु पूरी होने पर पहली बार अन्न चखता है । इस दिवस को आयोजित करने का मुख्य उद्देश्य बच्चों के पोषण स्तर में सुधार लाना है ताकि शिशु स्वास्थ्य को बेहतर बनाया जा सके एवं कुपोषण को मिटाया जा सके तथा शिशु मृत्यु दर में कमी लायी जा सके |इस दिवस पर 6 माह की आयु पूरी कर चुके बच्चों का अन्नप्राशन किया जाता है एवं उक्त माह में पड़ने वाले बच्चों का जन्म दिवस मनाया जाता है तथा माँ व परिवार वालों को पोषण, स्वच्छता एवं पुष्टाहार आदि के बारे में परामर्श दिया जाता है |
6 माह के बाद पूरक आहार क्यों जरूरी?
जब बच्चा 6 माह अर्थात 180 दिन का हो जाता है तब स्तनपान शिशु की पोषण संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं होता है | इस समय बच्चा तेजी से बढ़ता है और उसे अतिरिक्त पोषण की आवश्यकता होती है ।विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार नवजात शिशु को स्तनपान के साथ-साथ 6 माह की आयु पूरी होने के बाद पूरक आहार देना शुरू करना चाहिए ताकि उसको पर्याप्त पोषण मिल सके। पूरक आहार को 6 माह के बाद ही शुरू करना चाहिए क्योंकि यदि पहले शुरू करेंगे तो यह माँ के दूध का स्थान ले लेगा जो कि पौष्टिक होता है |बच्चे को देर से पूरक आहार देने से उसका विकास धीमा हो जाता है या रुक जाता है तथा बच्चे में सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी होने की संभावना बढ़ जाती है और वह कुपोषित हो सकता है।
राज्य बाल रोग एवं टीकाकरण अधिकारी डॉ.अमर सिंह ठाकुर ने बताया, स्तनपान के साथ-साथ 6-8 माह की आयु के बच्चों को 250-250 मिली की आधी-आधी कटोरी अर्द्धठोस आहार, दिन में 2 बार देना चाहिए | 9-11 माह के बच्चे को स्तनपान के साथ-साथ 250-250 मिली की आधी-आधी कटोरी दिन में तीन बार देनी चाहिए |11-23 माह के बच्चे को भी स्तनपान के साथ 250-250 मिली मिली की पूरी कटोरी दिन में तीन बार देनी चाहिये और साथ में 1-2 बार नाश्ता भी खिलाएँ | बच्चे को तरल आहार न देकर अर्द्ध ठोस पदार्थ देने चाहिए |
साथ ही भोजन में चतुरंगी आहार (लाल, सफ़ेद, हरा व पीला) जैसे गाढ़ी दाल, अनाज, हरी पत्तेदार सब्जियाँ स्थानीय मौसमी फल और दूध व दूध से बने उत्पादों को बच्चों को खिलाना चाहिए |इनमें भोजन में पाये जाने वाले आवश्यक तत्व जरूर होने चाहिए, जैसे- : कार्बोहाइड्रेट, वसा, प्रोटीन, विटामिन, खनिज पदार्थ, रेशे और पानी उपस्थित हों |
क्या कहते हैं आंकड़े ?
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 (2015-16) के अनुसार, छत्तीसगढ़ में 6-23 माह के लगभग 11 % बच्चों को ही उनकी जरूरत के अनुसार पर्याप्त आहार मिल पाता है, वहीं 6-8 महीने के 54% बच्चों को ही स्तनपान के साथ ठोस या अर्ध-ठोस आहार प्राप्त होता है, 5 वर्ष तक के 38% बच्चे ऐसे हैं जिनकी लंबाई, उनकी आयु के अनुपात में कम है, 23% बच्चे ऐसे हैं जिनका वजन उनकी लंबाई के अनुपात में कम है तथा 38% बच्चे ऐसे हैं जिनका वजन उनकी आयु के अनुपात में कम है। -
दादाजी और बहन ने पहचानी मनोदशा, परामर्श से अब है खुशहाल
बलौदाबाजार: संध्या साव (परिवर्तित नाम) कभी काफी परेशान थीं। उन्हें अपनी जिंदगी बेरंग और बोझ लगने लगी थी। इसलिए उन्होंने जिंदगी को खत्म करने की कोशिश की। परंतु दादाजी और छोटी बहन की सूझबूझ की वजह से समय पर उन्हें अस्पताल ले जागा गया जहां उनकी जान भी बच गई और उनमें मनोचिकित्सकों द्वारा मिले परामर्श से जीवन जीने की ललक भी जाग गई है। आज संध्या सामान्य और खुशहाल जीवन जी रही हैं।
डॉ. राकेश कुमार प्रेमी मनो चिकित्सक (एनएमएचपी) (जिन्हें नेशनल इंस्टीच्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरो साइंसेज (निमहांस) द्वारा गेटकीपर ट्रेनिंग हासिल है) ने बताया तीन माह पहले भटगांव भिलाईगढ़ ब्लॉक की 18 वर्षीय संध्या जब उनके पास आई थी तो एकदम शांत, चेहरे पर उदासी, मायूसी, चिंता और शारीरिक दुर्बलता के साथ आत्महत्या करने पर उतारू थी। ऐसा इसलिए क्योंकि बीते एक साल से वह पीलिया बीमारी से ग्रसित थी। पारिवारिक परिवेश उसका काफी गरीब था और तीन भाई बहनों में वह बढ़ी थी। माता-पिता मजदूरी करते थे इसलिए उसका इलाज कराने में असमर्थ भी थे। संध्या के पिता नशा कर उन्हें और उनके भाई-बहनों के साथ गाली-गलौच और मारपीट भी करते थे। डॉ. राकेश के मुताबिक संध्या हमेशा बुझी-बुझी सी रहती थी। उसके मन में निराशा और जीवन के प्रति उदासीनता आ गई। इसी विचार की वजह से एक दिन उसने आत्महत्या का प्रयास किया परंतु उसकी छोटी बहन को इसकी जानकारी मिली और उसके दादाजी के सहयोग से उसे अस्पताल लाया गया, जहां चिकित्सकों के प्रयास से उनकी जान बच गई। मनोचिकित्सक के परामर्श और दादाजी के सहयोग से आज उनमें जीवन जीने की ललक जाग गई है। हालांकि अभी उनका इलाज चल ही रहा I संध्या कहती हैं “आस-पास के लोगों को भी मानसिक समस्याओं के प्रति जागरूक करूंगी।“
पीएचसी में मनोचिकित्सा-बलौदाबाजार के पीएचसी में मनोचिकित्सकों ने संध्या की काउंसिलिंग की। काउंसिलिंग के दौरान यह पता चला संध्या डिप्रेशन से ग्रस्त थी। गरीबी की वजह से उसे पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ी थी। इसके बाद पीलिया की बीमारी और पिता के नशे में मारपीट करने और उसके स्वास्थ्य पर ध्यान नहीं देने की वजह से वह टूट गई, जिसके बाद उसने आत्महत्या जैसा कदम उठा लिया था। संध्या के साथ ही डॉ. राकेश कुमार प्रेमी ने उसके परिवार के लोगों की भी काउंसिलिंग की और संध्या के साथ व्यवहार करने पर बात की। टेलीफोनिक परामर्श और मेडिटेशन की सलाह दी गई। साथ ही उसके माहवारी संबंधी समस्या के लिए स्त्री रोग विशेषज्ञ से इलाज भी कराया गया। आज चिकित्सकीय परामर्श से संध्या ठीक हो सामान्य जीवन जीने लगी हैI
पिता की भी चल रही काउंसिलिंग - मनोचिकित्सक के अनुसार संध्या के पिता की भी स्थानीय पीएचसी और समीप के सीएचसी में काउंसिलिंग की जा रही है। ताकि उनकी शराब की आदत छुड़वा दी जाए जिससे पहले से सुधार देखा जा रहा है।
दिखे यह लक्षण तो हो जाएं सतर्क -डॉ. राकेश कुमार प्रेमी का कहना है आत्महत्या करना या उसका विचार आने का कोई एक कारण नहीं है। इसके अनगिनत कारण हो सकते हैं। लेकिन मानसिक तनाव एक मुख्य कारण है। यदि किसी भी व्यक्ति के व्यवहार में बदलाव दिखे, जैसे- निराशा, बेबसी और हीनता का भाव तो तुरंत मदद पहुंचानी होती है। क्योंकि यह मानसिक रूप से अस्वस्थ्य होने के संकेत हैं। इसके साथ ही आत्महत्या का विचार रखने वालों को उपचार दिलाने के लिए उनके परिवार और दोस्तों को शामिल कर उन्हें भावनात्मक सहारा और स्वस्थ्य होने का आश्वासन अवश्य दें। जिन व्यक्तियों का इलाज चल रहा है उन रोगियों का फॉलोअप भी अवश्य करें।
बचाएं दूसरों की जान-डॉ. महेन्द्र सिहं उप संचालक, (राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ कार्यक्रम) ने बताया आत्महत्या के दर में कमी लाने के लिए प्रत्येक नागरिक की जिम्मेदारी है कि वह गेटकीपर के रूप में आत्महत्या रोकथाम करे। जब तनाव चरम पर पहुँच जाता है तो अक्सर लोग आत्महत्या करते हैं। समय से उनकी मदद की जाए तो उन्हें बचाया भी जा सकता है । कोई भी व्यक्ति गेटकीपर या द्वारपाल बन सकता है और आत्महत्या करने से बचा सकता है। इसके लिए विशेष ट्रेनिंग भी दी जा रही है। - TINSबरसात के दिनों में शरीर में कई समस्याएं उत्पन्न होती हैजिनमें नेत्र की समस्याएं भी शामिल हैं। इस मौसम में कन्जंक्टिवाइटिस बहुत आम बातहै। तापमान में वृद्धि होने के कारण वायरस को फैलने के लियें अनुकूल वातावरण मिलता है। यह हर उम्र के लोगों को प्रभावित भी करता है जिस के कारण आंखों में दर्द के साथ आंखों में लाली और सूजन भी आ जाती है।
शासकीय आयुर्वेदिक चिकित्सालय, रायपुर के पंचकर्म विभागाध्यक्ष डॉ.रंजीप दास कहते है आयुर्वेद ग्रंथों में नेत्र रक्षा के विभिन्न उपायों का वर्णन किया गया है।आंवला, हर, और बहेड़ा के नियमित उपयोग से नेत्र ज्योति को बढ़ा सकते है।
रतौंधी या रात के अंधेपन की समस्या में अगस्त्य पेड़के फूल काफी लाभकारी होते हैं।आंखों की सेहत के लिए देर रात्रि भोजन करने से बचें साथ ही हल्का भोजन करें।तला हुआ भोजन आंखों के लियें नुकसान पहुंचाने वाला हो सकता है ।।
कन्जंक्टिवाइटिस के कारण
पर्यावरण से एलर्जी जिसमें वायु प्रदूषण, धूम्रपान और पेड़ व घास के पराग कण शामिल हैं।अन्य कारण जैसे परफ्यूम, कॉस्मेटिक और आई मेकअप भी हो सकता है ।
सावधानियॉ
आंखों को मलने से बचें,तौलिया शेयर करने से बचें, जगहों के संपर्क में आने से बचें ।गंदे हाथों से बार-बार आंखों को छूने बचना कन्जंक्टिवाइटिस में मूल सावधानी है ।आंखों को ठंडे पानी या भीगे कपड़े की सहायता से धोना। कॉन्टैक्ट लेंस नहीं पहनना , धूप का सामान्य चश्मा पहनना लक्षण दूर होने तक किसी भी आई ड्रॉप और ऑइंटमेंट का उपयोग डॉक्टर की सलाह अनुसार ही करें।साथ ही उपचार के दौरान कम्प्यूटर और मोबाइल का इस्तेमाल कम करें या ना करें तो भी अच्छा है । - स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने जारी किए दिशा निर्देश
कोरबा : मनुष्य के शरीर में आँखों का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। इसलिए आँखों की नियमित जाँच एवं देखभाल भी बहुत जरूरी है। किन्तु कोविड-19 के कारण मूलभूत स्वास्थ्य सेवाओं पर विपरीत प्रभाव पड़ा जिसके कारण नियमित रूप से मिलने वाली आँखों से संबंधित स्वास्थ्य सेवाएं भी समय से नहीं मिल रहीं हैं । इस समस्या को दूर करने के लिए स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने आँखों की जाँच के संबंध में विशेष दिशा निर्देश जारी किए हैं ।इन विशेष दिशानिर्देशों को जारी करने का उद्देश्य लोगों को नेत्र रोगों से संबंधित उपचार प्रदान करने के साथ ही नेत्र रोग विशेषज्ञ, तकनीशियनों, नर्सों, सहायक कर्मचारियों एवं रोगियों के बीच कोविड-19 संक्रमण के प्रसार को रोकना है। नेत्र रोगों से संबंधित जाँचों और प्रक्रियाओं में डॉक्टर और रोगी का संपर्क बिल्कुल निकट होता है। इसलिए इस दौरान कोविड-19 संक्रमण फैलने की संभावना अधिक हो सकती है।
गाइडलाइन में स्पष्ट है कि कन्टेनमेंट क्षेत्र में नेत्र जाँच की सुविधा बंद रहेगी। इसके अलावा 65 वर्ष से अधिक उम्र के व्यक्ति, कोमोर्बिडिटी वाले व्यक्ति, गर्भवती महिलाएँ और 10 वर्ष से कम उम्र के बच्चे स्वयं नेत्र संबंधी रोगों से पीड़ित नहीं है तो उनको घर पर ही रहने के लिए कहा गया है ।
सभी रोगियों, कर्मचारियों और आगंतुकों को इन साधारण उपायों का करना होगा पालन:
जहां तक संभव हो कम से कम 6 फीट की शारीरिक दूरी का पालन किया जाना होगा साथ ही अनिवार्य रूप से फेस कवर और मास्क का उपयोग किया जाएगा। थोड़े-थोड़े अंतराल पर कम से कम 40 से 60 सेकेंड तक हाथ धोना या कम से कम 20 सेकेंड तक अल्कोहल आधारित सेनेटाइज़र का प्रयोग करना जरूरी होगा। इसके अतिरिक्त श्वसन संबंधी शिष्टाचार का सख्ती से पालन किया जाएगा, खांसी या जुकाम की स्थिति में सभी कोहनी या टिशू पेपर का इस्तेमाल करेंगे एवं उपयोग किए गए टिशू पेपर को ठीक से निपटान भी जरूरी होगा । सभी के द्वारा अपने स्वास्थ्य की स्वयं निगरानी करना और राज्य और जिला हेल्पलाइन में जल्द से जल्द किसी भी बीमारी के बारे में रिपोर्ट करना होगा ।
सभी नेत्र जाँच केंद्रों को यह सुविधाएं करनी होंगी सुनिश्चित
रोगियों की विजिट को कम करने के लिए टेली-काउंसलिंग को प्रोत्साहित किया जाएगा एवं अग्रिम पंजीकरण प्रणाली का पालन किया जा सकता है, जिसमें रोगियों का परीक्षण या नेत्र जांच प्रक्रिया की आवश्यकता होती है। विधिवत रूप से सामाजिक दूरी का पालन, हाथ स्वच्छता और व्यक्तिगत सुरक्षा उपायों के बाद ही दूरस्थ क्षेत्रों में मोतियाबिंद और अन्य नेत्र रोगों के रोगियों की स्क्रीनिंग की जा सकेगी । दृष्टि केंद्रों में गैर-सरकारी संगठनों द्वारा दूरस्थ परामर्श को भी प्रोत्साहित किया जाएगा। मोतियाबिंद सर्जरी के लिए चिन्हित रोगियों को बेस अस्पताल में बुलाया जा सकता है, ताकि मोतियाबिंद का बैकलॉग न हो । अस्पताल / क्लिनिक में प्रवेश के लिए हाथ स्वच्छता और थर्मल स्क्रीनिंग अनिवार्य प्रावधान किए गए हैं। इसके अलावा सभी रोगियों और उनके परिचारकों और अस्पताल के सभी आगंतुकों की एक दैनिक सूची, मोबाइल नंबर और आईडी सहित बनाए जाएगी ताकि भविष्य में जरूरत पड़ने पर उनसे संपर्क किया जा सके।
नेत्र संबंधी ओ.पी.डी. सेवाओं के लिए होंगे ये नियम
नेत्र संबंधी ओ.पी.डी. सेवाओं के लिए डिजिटल या ऐप-आधारित पंजीकरण प्रणाली को बढ़ावा दिया जाएगा एवं एक मरीज के साथ केवल एक व्यक्ति को ही साथ जाने की अनुमति होगी । ओपीडी में अक्सर इस्तेमाल किए जाने वाले ट्रायल फ्रेम, ट्रायल लेंस आदि जैसे छुये हुए उपकरण की नियमित सफाई और नियमित कीटाणुशोधन (1% सोडियम हाइपोक्लोराइट का उपयोग करके) सुनिश्चित किया जाएगा। साथ ही नर्सिंग / पैरामेडिकल स्टाफ द्वारा बिना स्पर्श किए रोगी की आंख में आई ड्रॉप डाली जाएगी । - नवजातों की देखभाल, पोषक आहार और स्तनपान की दी जा रही जानकारी
महासमुंद: कोरोनावायरस से लोगों को बचाने के लिए फ्रंट लाइन वारियर्स के रुप में मितानिन सर्वे और स्वास्थ्य सुरक्षा के कार्य को क्रियांवित करने में जुटी हुई हैं। वह कोविड-19 से बचाव और खान-पान में सावधानी के जरूरी उपायों की जानकारी देने के लिए घर-घर में पहुंच रही हैं। साथ ही कोरोना के दौरान मां और बच्चे को कैसे स्वस्थ्य रखा जाए इसके लिए गर्भवती महिलाओं व शिशुवती माताओं को जागरुक भी कर रही हैं। महासमुंद ब्लॉक बसना, सेक्टर भंवरपुर की मितानिन सुपरवाइजर आरती डडसेना घर-घर जाकर लोगों को कोविड से बचने के उपाय बता रही हैं। दूसरी ओर गृहभेंट कर शिशुवती माताओं को नवजात शिशुओं की देखभाल और स्तनपान कराने के बारे में जागरूक भी कर रही हैं।गृहभ्रमण के दौरान सोमवार को आरती ने शिशुवती माता रमावती के घर पहुंच कर लगभग डेढ़ माह के शिशु का सुरक्षित रखरखाव किस प्रकार रखना है की जानकारी दी। साथ ही स्तनपान कराने के बारे में बताया। बच्चे को किस तरह से कपड़े पहनाना है, कैसे सफाई करनी है, खतरे के लक्षण कैसे पहचानने हैं और बच्चे को ठंड से बचाने के सम्बंध में जानकारी दी। उल्लेखनीय है नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-4 (एनएफएचएस-4) 2015-16 के अनुसार महासमुंद जिले में 75.7 प्रतिशत शिशु (6 महीने से कम उम्र के बच्चे) विशेष रूप से स्तनपान करते हैं।
6 माह तक सिर्फ मां का दूध - आरती ने शिशुवती माता को बाहरी दूध की बजाए सिर्फ मां का दूध ही 6 माह तक देने की सलाह दी। साथ ही यह भी बताया कि बच्चे को 6 माह तक माँ के दूध के अतिरिक्त पानी भी नहीं देना है क्योंकि माँ के दूध में पर्याप्त मात्रा में पानी की उपलब्धता होती है। मां को पर्याप्त दूध हो इसके लिए क्या खाना बेहतर होता है, इसकी जानकारी भी मितानिन ने दी। उन्होंने शिशुवती माता को खानपान सुधारने एवं अपने भोजन में जरूरी पोषक तत्वों को शामिल करने की सलाह परिवार के अन्य महिला सदस्यों को भी दी। शिशुवती माता रमावती ने बताया सीजेरियन डिलवेरी की वजह से बच्चे को स्तनपान कराने में उन्हें दिक्कतें आ रही थीं। मां का दूध पर्याप्त नहीं आने से बच्चे का पेट भी पूरा नहीं भरता इसलिए रमावती ने शिशु को बाहरी दूध देना शुरू किया था।
6 माह तक मां का दूध इसलिए है जरूरी- शिशु रोग विशेषज्ञों का कहना है बाल्यकाल में होने वाली निमोनिया बीमारी को रोकने में माँ का दूध बहुत महत्वपूर्ण योगदान देता है। केवल स्तनपान ही बच्चों को अनेक प्रकार के रोगों से विशेषकर निमोनिया से लड़ने की क्षमता प्रदान कर सकता है। माँ के दूध में सभी तरह के जरूरी पोषक तत्व जैसे – एंटी बाडीज, हार्मोन, प्रतिरोधक कारक और ऐसे आक्सीडेंट पूर्ण रूप से मौजूद होते हैं, जो नवजात शिशु के बेहतर विकास और स्वास्थ्य के लिए बेहद जरूरी है। साथ ही इम्यूनोग्लोबिन, प्रतिरोधक तत्व भी प्रदान करता है। इन तत्वों से शिशुओं को रोगों से लड़ने की क्षमता मिलती है तथा बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता में भी वृद्धि होती है।
दूध के अतिरिक्त पोषण आहार भी जरूरी - मितानिन आरती डडसेना का कहना है कि 6 माह के पश्चात बच्चे को पूरक पोषाहार की आवश्यकता होती है। इसकी पूर्ति के लिए बच्चे के खाने में पर्याप्त खाद्य पदार्थों को शामिल करने को लेकर वीडियो के माध्यम से जानकारी दी। बच्चे की बढती उम्र के साथ समग्र विकास के लिए सभी पोषक तत्वों का भोजन में समावेश होना नितांत ही आवश्यक है। शिशुवती माताओं को सही आहार व पोषक तत्वों की पूर्ति के लिए बच्चों को छः माह तक केवल स्तनपान कराने के लिए समझाया जा रहा है।
कई शिशुवती हुई हैं लाभान्वित- मितानिन आरती डडसेना ने बताया कोविड काल के दौरान स्वास्थ्य सुरक्षा के प्रति भी लोगों को जागरूक करना उनकी दिनचर्या में शामिल हो गया है। घर भ्रमण के दौरान कई शिशुवती माताओं को खानपान और शिशु के रख-रखाव के बारे में बताया गया। उन्होंने बताया महिलाओं को स्तनपान से जुड़ी सभी बातों के चित्र दिखाकर समझाया जाता है । शिशुवती को मां के दूध बनने के लिए शरीर को जरुरत पड़ने वाले तत्वों व समय-समय पर आहार की प्रक्रिया व मां का सही रूप से बैठकर बच्चे को छाती से लगाकर दूध पिलाने की विधि बताई गई। इससे बच्चे को स्तनपान से वंचित होने से बचाया गया है। गांव की शिशुवती माताएं बच्चों के लालन-पालन को लेकर जागरूक हैं। - अदरक का इस्तेमाल घरों में कई तरह से किया जाता है. कभी खाने को स्वादिष्ट बनाने में किया जाता है तो कभी चाय में डालकर पिया जाता है. महिलाएं खूबसूरती बढ़ाने में भी अदरक का यूज करती हैं. उसका इस्तेमाल हर तरह से मुफीद माना गया है. पौष्टिक तत्वों और बायोएक्टिव यौगिकों से भरा हुआ अदरक शरीर और दिमाग के लिए लाभकारी है
अदरक में हैं लाभकारी गुण
अदरक एंटी फंगल, एंटी बैक्टीरियल होता है. उसमें फाइबर, कैल्शियम, मैग्नीशियम, मैग्नीज, विटामिन (बी6, ई, बी1, बी2, बी5), जिंक, फॉस्फोरस, सोडियम और आयरन समेत सेहत के लिए फायदेमंद तत्व पाए जाते हैं. मगर क्या आपको मालूम है कि उसे चबाकर खाने से आपकी सेहत पर बड़ा असर पड़ता है? उसे किस वक्त चबाकर खाना फायदेमंद रहेगा?
1. अदरक को चबाकर खाने से खाना जल्दी पच जाता है और ये पाचन तंत्र को बेहतर बनाने में ज्यादा मुफीद होता है. जब आप अदरक को चबाते हैं तो उसका ताजा रस पेट में जाता है. रस पेट में जाकर कीड़ों का खात्मा करता है
2. ज्यादा बलगम आने की समस्या में भी अदरक चबाकर खाना मुफीद होता है
3. दातों में कीड़ा लग जाए तो अदरक को चबाया जा सकता है. ये कीड़ों को जड़ों से बाहर निकालने में मददगार साबित होता है
4. डायबिटीज की बीमारी में उसको चबाकर खाना इंसुलिन को काबू रखने में मदद पहुंचाता है
5. हाईपरटेंशन की बीमारी से अगर आप पीड़ित हैं तो आपको रोजाना अदरक चबाकर खाना चाहिए
6. अगर स्मरण शक्ति कमजोर पड़ जाए तो उसको चबाएं. ये आपकी याद्दाश्त को बढ़ाने में मदद पहुंचाएगा - बच्चों में मास्क के इस्तेमाल पर विश्व स्वास्थ्य संगठन ने दिया गाइडलाइन
मास्क लगाने में परेशानी है तो बच्चों के लिए है फेस शील्ड का विकल्प
बच्चों को पैरेंट्स व स्कूल प्रबंधन मास्क इस्तेमाल के प्रति करें जागरूक
रायपुर: वैश्विक महामारी कोविड 19 का असर बच्चों पर भी पड़ा है. कोरोना काल में बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के लिए उनके पोषण का ध्यान रखने के अलावा सुरक्षात्मक नियमों की जानकारी देना व उसका पालन करवाना आवश्यक है. कोरोना संक्रमण के जोखिम की रोकथाम के लिए बच्चों में मास्क के इस्तेमाल को बढ़ावा दिये जाने की जरूरत पर विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी बल दिया है. साथ ही शारीरिक दूरी के नियम का पालन, हाथों की स्वच्छता और घरों के अंदर के हिस्सों का हवादार होना भी जरूरी बताया है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन(डबल्यूएचओ) ने एडवाइस ऑन द यूज ऑफ मास्क फॉर चिल्ड्रेन इन द कम्यूनिटी इन द कंटेक्सट ऑफ कोविड 19 नाम से जारी गाइडलाइंस में उम्र के अनुसार बच्चों में नॉन मेडिकल मास्क यानी कपड़ों से बनाये गये मास्क के इस्तेमाल को लेकर विशेष चर्चा की है.
मास्क के इस्तेमाल के बारे में दे जरूरी जानकारी:
डबल्यूएचओ के मुताबिक 6 से 11 साल के उम्र के बच्चों को उन जगहों पर मास्क जरूर लगाने के लिए कहें जहां पर अधिक लोग मौजूद हैं और संक्रमण का खतरा हो सकता है. डबल्यूएचओ ने सलाह दी है कि बच्चों को मास्क के बारे में जानकारी और उसके पहनने के तरीके को विस्तार से बताया जाना चाहिए. जब बच्चे मास्क लगायें तो ध्यानपूर्वक देख लें कि उन्होंने सही से मास्क लगाया है या नहीं. वहीं डबल्यूएचओ ने 5 साल या इससे कम उम्र के बच्चों के लिए मास्क अनिवार्य नहीं बताया है. तथा बच्चों के खेलते समय व शारीरिक गतिविधियों के दौरान मास्क लगाने को जरूरी नहीं कहा है.
माता पिता व स्कूल प्रबंधन बच्चों को करें जागरूक:
डबल्यूएचओ ने माता पिता सहित स्कूल प्रबंधन, स्वास्थ्य संबंधी नीतिगत फैसले लेने वाली एंजेंसियां व स्वास्थ्य विभाग द्वारा संक्रमण के बारे में पर्याप्त जानकारी देने और मास्क का इस्तेमाल करवाने की बात भी कही है. संगठन के अनुसार छोटी उम्र के बच्चों की तुलना में बड़ी उम्र के बच्चों के संक्रमण से प्रभावित होने और उनके द्वारा संक्रमण फैलाने में उनकी सक्रिया भूमिका देखी गयी है. उनके साझा अध्ययन के मुताबिक 1 से 7 प्रतिशत बच्चों में कोविड 19 मामले होने की सूचना है लेकिन अन्य आयु समूह की अपेक्षाकृत उनकी मौत बहुत कम है.
गंभीर श्वसन रोग से पीड़ित बच्चों के लिए मास्क जरूरी:
डबल्यूएचओ के अनुसार गंभीर श्वसन रोग से पीड़ित बच्चों को हर हालात में मास्क पहनाना आवश्यक है. पांच साल या उससे कम उम्र के बच्चों को शारीरिक दूरी रखने, बार बार हाथ धोने व व्यक्तिगत साफ सफाई की जानकारी देनी चाहिए. उन्हें यह भी बताना है कि कब और किन जगहों पर उन्हें मास्क लगाना जरूरी है. यदि बच्चे मास्क सहन नहीं कर पाते हैं उनके लिए फेस शील्ड दूसरा विकल्प है. साथ ही उन्हें बीमार लोगों के संपर्क में आने नहीं दिया जाना चाहिए. -
विशेषज्ञों के मुताबिक किसी दूसरे महीने की तुलना में मॉनसून के दौरान वायरल इंफेक्शन होने का खतरा दोगुना हो जाता है. हवा में नमी की ज्यादा मात्रा बैक्टीरिया और इंफेक्शन को पनपने में मददगार साबित होती है. मॉनसून में पांच इंफेक्शन से इंसान जल्दी प्रभावित होता है.
डायरिया (Diarrhea)
मॉनसून के दौरान अगर खाने-पीने के सामान को ठीक से नहीं रखा जाए तो उसमें जीवाणु या विषाणु पैदा हो जाते हैं. ये जीवाणु या विषाणु बैक्टीरिया का कारण बनते हैं. जिससे डायरिया होने का खतरा रहता है. इस इंफेक्शन से बचाव का तरीका घर का पका हुआ खाना है. खाने में किसी भी फफूंद या कीड़े की जांच-पड़ताल कर लेें. सब्जियों और फलों को इस्तेमाल करने से पहले अच्छी तरह पानी से धोकर डायरिया से बचा जा सकता है.
हैजा (Cholera)
ये पानी से पैदा होनेवाला इंफेक्शन है और मॉनसून के दौरान आम तौर से होता है. इससे बचने का सबसे बेहतर उपाय है शरीर में पानी की मात्रा बढ़ाने के लिए हाइड्रेटेड रहना. साफ-सुथरा खाना खाने से इंफेक्शन से बचने में मदद मिलती है.
सर्दी और फ्लू (Cold and Flu)
मॉनसून के दौरान वायरल होनेवाली आम बीमारियों में से एक सर्दी और फ्लू भी है. इस मौसम में ज्यादातर लोगों को कम से कम एक बार जरूर बीमार पड़ने की आशंका रहती है. वायरल बीमारी से संक्रमित लोगों से दूर रहकर खुद को बचाया जा सकता है. अगर परिवार के किसी सदस्य को ये इंफेक्शन हो जाता है तो पीड़ित सदस्य को अलग तौलिया और बर्तन का इस्तेमाल करना चाहिए. उसे हाथ ज्यादा से ज्यादा धोते रहने की विशेषज्ञ सलाह देते हैं.
टाइफाइड (Typhoid)
टाइफाइड बुखार सैल्मोनेला टाइफी की वजह से होनेवाली एक बैक्टीरियल बीमारी है. ये बीमारी मॉनसून के मौसम में आम हो जाती है. बीमारी से ग्रसित शख्स की त्वचा और जिगर प्रभावित होते हैं. इससे बचने के लिए जरूरी है कि साफ पानी पिया जाए और बाहर के खुले पेय इस्तेमाल करने से बचा जाए.
डेंगू (Dengue)
मूसलाधार बारिश से पानी जमा हो जाता है. बारिश का जमा पानी मच्छरों को पनपने का अनुकूल अवसर मुहैया कराता है. इसलिए बेहतर है अपने घर के आसपास पानी को जमा न होने दें. उसके अलावा आस्तीन वाले कपड़े पहनकर खुद को मच्छरों के काटने से बचा सकते हैं. - कोविड-19 के संकट के बीच दुनिया भर में मनाया जा रहा है हेपेटाइटिस दिवसरायपुर : विश्व भर में कोरोना वायरस महामारी के संक्रमण के बीच आज विश्व हेपेटाइटिस दिवस मनाया जा रहा है । हेपेटाइटिस से बचने के लिए लोगों में जागरूकता का होना जरूरी है । इसके कारण और बचाव के उपाय के प्रति जागरुकता फैलाने के लिए हर वर्ष 28 जुलाई को हेपेटाइटिस दिवस मनाया जाता है ।वैश्विक महामारी (कोविड-19) को देखते हुए इस बार वर्चअल कार्यक्रम आयोजित किए जाने का निर्णय लिया गया है । इस बार हेपेटाइटिस दिवस की थीम 'हेपेटाइटिस फ्री फ्यूचर'रखा गया है।मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ.मीरा बघेल ने बताया हेपेटाइटिस एक जानलेवा बीमारी है, जिसके प्रति लोगों में जागरूकता की काफी कमी है। वैज्ञानिकों ने हेपेटाइटिस के लिए पांच जिम्मेदार वायरसों की खोज की है। इन्हें ए, बी, सी, डी और ई नाम दिया गया है।हेपेटाइटिस बी और सी का संक्रमण शरीर में कई साल तक खामोश रहता है। इससे क्रोनिक हेपेटाइटिस होने का खतरा बढा रहता जिसके बाद मरीज का लीवरख़राब हो जाता है|हेपेटाइटिस से बचने के लियें सावधानीसाफ-सफाई पर सबसे पहले ध्यान रखना, ब्रश और रेजर को साझा नहीं करना, और शराब के सेवन से बचना। शुरुआती दौर में हेपेटाइटिस के लक्षण समझ नहीं आते है। समयानुसार थकान, भूख न लगना, पेट में दर्द, सिर का दर्द, चक्कर आना,मूत्र का पीला होने की समस्याएं आने लगती हैं।इस प्रकार की समस्या होने पर तुरंत विशेषज्ञ की सलाह लें ।शुरुवाती लक्षणकई लोगों को प्रारंभ में हेपेटाइटिस के लक्षण दिखाई नहीं देते है। कुछ के लक्षण 15 से 180 दिनों के बाद दिखाई देने लगते हैं जिसमें बुखार आना, डायरिया होना, थकान महसूस होना, उल्टीयॉ होना, भूख न लगना, घबराट होना पेट में दर्द की शिकायत रहना, और वजन में कमी आना है। त्वचा, आंखों के सफेद भाग, जीभ का रंग पीला पड़ जाना (ये लक्षण पीलिया में दिखाई देते हैं)|
- नई दिल्ली : कोरोना वायरस से अधिक वजन (Overweight) वाले लोगों की मौत का खतरा हेल्दी लोगों की तुलना में तीन गुना अधिक हो जाता है. ब्रिटेन की सरकारी एजेंसी पब्लिक हेल्थ इंग्लैंड की रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ है.
कोरोना से बीमार पड़ने पर ओवरवेट लोगों के लिए वेंटिलेटर की जरूरत भी 7 गुना तक अधिक होती है. बॉडी मास इंडेक्स 25 से ऊपर होने पर समझा जाता है कि व्यक्ति का वजन अधिक है. ऐसे लोगों के लिए भी वेंटिलेटर की जरूरत बढ़ सकती है. लेकिन बॉडी मास इंडेक्स 30 से 35 होने पर कोरोना से मौत का खतरा 40 फीसदी बढ़ जाता है.
रिपोर्ट के मुताबिक, बॉडी मास इंडेक्स 25 से ऊपर रहने पर कोरोना से गंभीर बीमार पड़ने का खतरा दोगुना हो जाता है और मौत का खतरा 3 गुना बढ़ जाता है. वेंटिलेटर की जरूरत पड़ने की संभावना सात गुना तक बढ़ सकती है.
हालांकि, अधिक वजन की वजह से कोराना से संक्रमित होने का खतरा नहीं बढ़ता. ओवरवेट लोगों के संदर्भ में डॉक्टरों का कहना है कि व्यक्ति अपना वजन जितना किलो कम कर लेगा, कोरोना से खतरा उतना कम हो जाएगा.
पब्लिक हेल्थ इंग्लैंड की रिपोर्ट में कहा गया है कि अधिक फैट होने से रेस्पिरेटरी सिस्टम प्रभावित होता है और इससे शरीर का इम्यून सिस्टम पर असर पड़ सकता है. इससे पहले ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने कहा था कि कोरोना की दूसरी लहर की आशंका को देखते हुए लोगों को अपना वजन घटाना चाहिए.
हालांकि, कुछ रिपोर्ट में पता चला है कि लॉकडाउन की वजह से लोग स्नैक्स अधिक खा रहे हैं और एक्सरसाइज कम कर रहे हैं. ब्रिटेन में दो तिहाई लोगों का वजन अधिक है. ब्रिटेन में अब तक कोरोना से 45,700 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है और इसके पीछे मोटापा एक कारण हो सकता है.
बता दें कि दुनिया में कोरोना के कुल मामलों की संख्या फिलहाल 1.59 करोड़ से अधिक हो चुकी है, जबकि 6.43 लाख लोगों की मौत हो चुकी है. - सनलाइट के अलावा विटामिन –डी से भरपूर है मशरुम
रायपुर: कोरोना वायरस और अन्य बीमारियों से लड़ने के लिए शरीर में रोग प्रतिरोध क्षमता का होना जरुरी होता है। ऐसे में प्रकृति में मौजूद जैव विविधता पर्यावरण के साथ ही शरीर के लिए विभिन्न पोषक तत्व प्रदान करती है। बरसात के मौसम में गरज और बारिश में उगने वाला मशरूम दीमक की बामियों, पैरा, साल के पेड़ों और बांसों की ढेर में निकलता है। जंगलों और खेत खिलहानों में प्राकृतिक और कृत्रिम रुप से उत्पादन किए जाने वाले औषधीय गुणों व पोषक तत्व से भरपूर मशरूम यानी फूटू सब्जी का स्वाद बहुत ही लजीज होता है।
छत्तीसगढ़ में यह फुटू (पुटू) नाम से जाना जाता है जिसको आयुर्वेद में धरती का फूल कहा जाता है। मशरूम में कई ऐसे जरूरी पोषक तत्व मौजूद होते हैं जिनकी शरीर को बहुत आवश्यकता होती है। सूर्य की धूप के बाद पोषण आहार के रुप में विटामिन-डी तथा फाइबर यानी रेशे का यह एक अच्छा स्रोत है। कई बीमारियों में मशरूम का इस्तेमाल औषधि के तौर पर किया जाता है। मशरुम में विभिन्न प्रकार के पोषक तत्व जैसे खनिज एवं विटामिन पाया जाता है जो शरीर का प्रतिरक्षा तंत्र मजबूत करता है और रोगों से लड़ने की क्षमता में वृद्वि होती है। मशरूम में एक खास पोषक तत्व पाया जाता है जो मांसपेशियों की सक्रियता और याददाश्त बरकरार रखने में बेहद फायदेमंद रहता है।
विटामिन और मिनरल्स है भरपूर:
प्राकृतिक तौर पर जंगलों में मिलने वाली यह सब्ज़ी (फंगस) मशरुम में गुड फैट, स्टार्च, शुगर फ्री, विटामिन और खनिज तत्व के साथ प्रोटीन पाया जाता है। इसमें कैलोरीज ज्यादा नहीं होतीं। नॉनवेज पसंद नहीं करने वालों के लिए पनीर की तरह प्रोटीनयुक्त शुद्व शाकाहारी है। महंगे प्राणीज पदार्थ के स्थान पर मशरुम का उपयोग लाभकारी होगा, क्योंकि इसमें विटामिंन और मिनरल्स पाये जाते हैं जो 100 ग्राम मशरुम में पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध रहता है। विटामिन–बी6, सी, डी, आयरन, काबोहाइड्रेट, फाइबर, प्रोटीन, पोटेशियम, मैग्निशियम मशरुम में मिलते हैं।
पोषण व औषधिय गुणों से भरपूर है मशरुम:
डिग्री गर्ल्स कॉलेज की फूड एवं न्यूट्रेशन विभाग की प्रोफेसर डॉ. अभ्या आर. जोगलेकर बताती हैं सावन-भादों के मौसम में मशरुम प्राकृतिक रुप से जंगलों व खेतों में मिलती है। मशरुम की पौष्टिकता का रोग निवारण में प्रभाव देते हैं जैसे- बीपी, शुगर, कब्ज, हृदय रोग, मोटापा, कैंसर, एड्स, हड्डी रोग, कुपोषित बच्चे, कमजोर व्यक्तियों, एनिमिक व गर्भवती महिलाएं के लिए मशरूम में मौजूद तत्व रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाते हैं। इससे सर्दी-जुकाम जैसी बीमारियां जल्दी-जल्दी नहीं होती। मशरूम में मौजद सेलेनियम इम्यूनिटी सिस्टम के रिस्पॉन्स को बेहतर करता है। मशरूम विटामिन डी का भी एक बहुत अच्छा माध्यम है। यह विटामिन हड्डियों की मजबूती के लिए बहुत जरूरी होता है। इसमें बहुत कम मात्रा में कार्बोहाइड्रेट्स होते हैं, जिससे वह वजन और ब्लड शुगर लेवल नहीं बढ़ाता। मशरूम में एंटी-ऑक्सीडेंट भूरपूर होते हैं। इसके अलावा मशरूम को बालों और त्वचा के लिए भी काफी फायदेमंद माना जाता है। वहीं कुछ स्टडीज में मशरूम के सेवन से कैंसर होने की आशंका कम होने की बात तक कही गई है।
70 फीसदी महिलाओं में हडडी से संबंधित रोग:
शासकीय आयुर्वेदिक कॉलेज पंचकर्म विभाग के एचओडी डॉ. रंजीप कुमार दास का कहना है अस्पताल की ओपीडी में आने वाली 40 वर्ष की उम्र पार कर चुके महिलाओं में हड्डी, कमर दर्द और कैलैशियम की कमी की समस्या प्रमुख रुप से पायी जाती है। इस तरह की बीमारियों की शिकायत लेकर आने वाली 70 फीसदी महिलाओं में अर्थराइटिस और ऑस्टियो-पोरोसिस की समस्याएं होती है। इसके लिए मशरुम में मिलने वाला पोषक तत्व और विटामिन-डी हडडी से संबंधित रोगों से लड़ने के लिए कारगर होता है।
प्राकृतिक मशरुम के उत्पादन के लिए हो रहा रिसर्च:
इंदिरागांधी कृषि विश्वविद्यालय के प्लांट पैथोलॉजी विभाग के प्रोफेसर डॉ. सीएस शुक्ला ने बताया मशरुम की अलग-अलग प्रजातियों का बीज तैयार कर कृत्रिम रुप से व्यवसायिक उत्पादन के लिए अखिल भारतीय मशरुम अनुसंधान परियोजना के तहत रिसर्च कार्य चल रहा है। डॉ. शुक्ला ने बताया छत्तीसगढ की जलवायु मशरुम के लिए अनुकूल होने की वजह से यहां 30 से 35 प्रजातियां खाने योग्य है। कुछ औषधीय मशरुम पर भी कृषि विवि में रिसर्च चल रहा है।
प्राकृतिक रुप से कनकी फूटू, भिंभोरा फुटू, बोडा, पेहरी एवं अन्य प्रकार के मशरुम मिलते हैं। वहीं कृत्रिम रुप से आयस्टर, पैरा फुटू, बटन, सफेद दुधिया मशरुम की खेती की जा रही है। डॉ. शुक्ला ने बताया, दुनियाभर में मशरुम की 42,000 प्रजातियां हैं जिसमें से 800 प्रजातियों की पहचान भारत में कर ली गई है। सीड तैयार कर मशरुम की कृत्रिम खेती घर के अंदर सरलता से वर्षभर की जा सकती है। प्राकृतिक मशरुम को सब्जी बनाने से पहले घर के बुजुर्गों से खादय मशरुम की पहचान कराने के बाद ही खाना चाहिए।
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माता-पिता बच्चों के व्यवहार परिवर्तन पर रखें नज़र
नियमित रुप से बच्चों के साथ करें चर्चा
दोस्त बनकर नशीले पदार्थों के नशे से निकाला जा सकता है ।
रायपुर 25 जून : नशा केवल शराब और तम्बाकू का ही नहीं होता है बल्कि अफीम, चरस, गांजा, हेरोइन जैसे मादक पदार्थों का भी होता है जो लोगों को बुरी तरह प्रभावित करता है । नशीले पदार्थों का प्रयोग आज एक विश्वव्यापी समस्या बन चुकी है।देश में मादक पदार्थों के सेवन के प्रति युवा पीढ़ी ग्लैमर लाईफ स्टाइल की झूठी शान दिखाने के चक्कर में अंधी दौड में शामिल हो रही है । शहरी क्षेत्र ही नही बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में भी इसका असर देखने को मिल रहा है ।
युवा पीढ़ी ज़्यादातर स्कूल-कालेजों के छात्र जीवन में अपने साथियों के कहने या मित्र मंण्डली के दबाव डालने पर या फिर मॉडर्न दिखने की चाह में इनका सेवन शुरु करते हैं। कुछ युवक मादक पदार्थों से होने वाली अनुभूति को अनुभव करने के लिए, तो कुछ रोमांचक अनुभवों के लिए तो कुछ ऐसे लोग होते है जो मानसिक तौर पर परेशानी या हताशा के हालात में इनका सेवन शुरू करते हैं। मानव जीवन की रक्षा के लिए बनाई जाने वाली कुछ दवाओं का उपयोग भी लोग अब तो नशा करने के लिए इस्तेमाल करने लगे हैं।
जिला अस्पताल पंडरी में स्थित स्पर्श क्लीनिक के मनोचिकित्सक डॉ. अविनाश शुक्ला ने बताया कोई भी व्यक्ति एक दिन में नशे का आदी नहीं होता है । यह प्रक्रिया धीरे-धीरे होती है । शौक धीरे धीरे आदी बना देता है जब व्यक्ति नशे की गिरफ्त में आताहै।उससे पहले वह कुछ संकेत भी देता है । उन संकेतों को परिवार को समझना बहुत जरूरी होता है ।
जून 26 को हर वर्ष अंतर्राष्ट्रीय मादक पदार्थ सेवन और तस्करी निरोध दिवसके रूप में मनाया जाता है।इस वर्ष की थीम ही "बेहतर देखभाल के लिए बेहतर ज्ञान" है ।
आदी होने से पूर्व लक्षण जो देखे जाते है
खेलकूद और रोजमर्रा के कामों में दिलचस्पी न लेना , भूख कम लगना, वजन कम हो जाना, शरीर में कंपकंपी छूटना, आंखें लालऔरसूजी हुई लगना, दिखाई कम देना, चक्कर आना, उल्टी दस्त आना, अत्यधिक पसीना आना, शरीर में दर्द लगना , नींद न आना की समस्या , चिड़चिड़ापन, सुस्ती, आलस्य, निराशा, गहरी चिन्ता, सुई के माध्यम से मादक पदार्थ को लेने वालों व्यक्ति को एड्स का खतरा भी रहता है।
पदार्थ जिनका व्यसन होता है
शराब,(बियर व्हिस्की रम हंडिया महुआ ठर्रा), तंबाकू उत्पाद (तंबाकू बीड़ी बीड़ी सिगरेट गुड़ाखू गुटका नसवार), गांजा चरस भांग,अफीम,भुक्की, डोडा, हेरोइन, ब्राउन शुगर, स्मैक फोर्टविन (पेंटाजोसिन) कोकिन, नींद की गोलियां, सांस के माध्यम से लिए जाने वाले पदार्थ जैसे गैस, पेंट, पेट्रोल, गोंद, डेन्ड्राइड व्हाइटनर । डेन्ड्राइड और व्हाइटनर का उपयोगस्कूल के बच्चे, या सड़कों पर कचरा बिनने वाले बच्चे में ज्यादा देखने को मिलता है क्यूंकि ये आसानी से उपलब्ध होता है, और किसी को शक भी नहीं होता है ।
मादक पदार्थ को कुछ भागों में बांट सकते है ।
अपशामक, मतिभ्रम उत्पन्न करने वाले पदार्थ, निच्श्रेतक और दर्द निवारक मादक पदार्थ,उत्तेजक,भांग से निर्मित मादक पदार्थ,
अपशामक - मस्तिष्क की सक्रियता कम कर देते हैं। ये पदार्थ हैं, अल्कोहल, सिकोनाल, नेमब्यूटाल, गाडेर्नाल, वैलियम, लिबियम, मैन्ड्रेक्स, डोरिडेन, N10, एलप्रेक्स, नाइट्रो सन, है।
मतिभ्रम उत्पन्न करने वाले पदार्थ - हमारे देखने, सुनने और महसूस करने की क्षमता पर प्रभाव डालते हैं।
निच्श्रेतक और दर्द निवारक मादक पदार्थ-अफीम, मॉर्फीन, कोकीन, हेरोइन, ब्राउन शूगर, मेथाजेन, पेथीडीन, मेप्राडीन है।
उत्तेजक - मस्तिष्क के केन्द्रीय तंत्रिका तंत्रों की सक्रियता बढ़ा देते हैं। जैसे, बैंजोड्रिन, डैक्सेड्रिन, मैथेड्रिन, कोकीन, निकोटीन है ।
भांग से निर्मित मादक पदार्थ - गांजा, हशीश, चरस
नशीले पदार्थ और तस्करी के मामले भारत में नारकोटिक ड्रग्स एंड सायकोट्रॉपिक सब्सटनसीज एक्ट (NDPS एक्ट)2014 के अंतर्गत आतेहैं। जो लोग नशीले पदार्थों की तस्करी अथवा व्यापार करते है, उनके इस व्यापार/तस्करी से अर्जित की हुए संपत्ति भी सरकार जब्त कर सकती है और सज़ा के साथ साथ जुर्माने का प्रावधान भी किया गया है ।
क्या कहते हैं आंकड़े
राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वे 2015-16के अनुसार छत्तीसगढ़ में 29.86 % लोग तम्बाकू खाने के आदि है जबकि 7.14 % शराब पीने के आदि हैं। -
रायपुर : गर्मी और धूप की वजह से लोग लू का शिकार हो जाते है। लू लगने से हर वर्ष कई लोग अपनी जान भी गवां देते हैं। धूप से बचाव करना जरूरी है। धूप में देर तक रहने से शरीर में पानी की कमी भी होने लगती है। गर्मियों में शरीर से ज्यादा पसीना निकलने के कारण पानी और नमक की कमी हो जाती है। इस वजह से रक्त संचार भी बिगड़ने लगता है। शरीर का तापमान सामान्य से ज्यादा होता है जिससे कई बीमारियों के होने का खतरा मंडराने लगता है। लू के आयुर्वेदिक उपाय अपनाकर इस समस्या से राहत पा सकते हैं।
शासकीय आयुर्वेदिक चिकित्सालय रायपुर के पंचकर्म विभाग के एचओडी डॉ. रंजीप दास कहते है गर्मी के दिनों में लू लगना सामान्य है ।तापमान बढ़ने से शरीर का तापमान असंतुलित होने लगता है । बच्चे और बूढ़े लोग लू (sunstroke) की चपेट में जल्दी आ जाते हैं। अगर मरीज लू लगने से बेहोश हो गया है तो तुरंत डॉक्टर के पास लेकर जाएं। ``गर्मी के मौसम में आप ठीक ढंग से अपना ख्याल रखें और कुछ ज़रुरी सावधानियां बरतें तो लू के प्रकोप से बच सकते हैं। खाली पेट घर से बाहर न निकलें, हल्का भोजन करें, पूरी बांह के कपड़े पहनें और नंगे पैर बाहर न जाएं । ज्यादा देर तक धूप में न रहें ।ज़्यादा मात्रा में पानी पिएं। बाहर जाते समय पानी साथ लेकर जाएं। बेल का शरबत, सेब का सिरका, चंदनासव, कच्चे आम उबाल कर उसका पना पीने से लू और गर्मी से बचा जा सकता है । बज़ारी जूस, शीतल पेय पदार्थ और सीलंबद जूस का सेवन नहीं कर रहे हैं। इनको आप घरों पर ही तैयार बेहतर होगा ।‘’
डॉ दास का कहना है मौसमी फल आम, संतरा, मौसमी, खरबूज, तरबूज, ककड़ी, बेल, अंगूर, आंवला, ठंडाई, नींबू शिकंजी का प्रयोग करें। जौ, चना और गेहूं के मिश्रण का सत्तू बना कर सेवन करें । खरबूजा के बीज, सौंफ, काली मिर्च, बादाम, किशमिश, खशखश और गुलाब के सूखे पत्तों को मिलकर ठंडाई बना कर प्रयोग करें । अधचल (बगैर घी निकाली छाछ ) भी खाने में लें। पुदीना और जलजीरा भी घर बना कर ही पियें । लू लगने पर छाछ दही और लस्सी का प्रयोग करना चाहिए| यह डिहाइड्रेशन को दूर करती है । इसमें कैल्शियम, फास्फोरस, विटामिन B2, B5, B12 मैग्नीशियम और फैटी एसिड रहता है जो डिहाइड्रेशन को दूर करता है ।
लू लगने के लक्षण
सिर में तेज दर्द होना, चक्कर आना और सांस लेने में तकलीफ । शुरुआत में इन लक्षणों में काफी कमी होती है समय के साथ साथ ये लक्षण बढ़ते जाते हैं। लू लगने पर अचानक से तेज बुखार होने लगता है शरीर में गर्मी बढ़ती जाती है। शरीर में गर्मी बढ़ने के बावजूद भी लू लगने के दौरान शरीर से पसीना नहीं निकलता है। उल्टी आना,शरीर में तेज दर्द होना आम बात है। उल्टी होने पर शरीर में सोडियम और पोटैशियम का संतुलन बिगड़ जाता है। कमजोर प्रतिरोधक क्षमता वाले या शारीरिक रुप से कमजोर लोग लू लगने से बेहोश भी हो जाते हैं।
लू लगने पर क्या करें
लू लगने पर मरीज को तुरंत छायादार जगह पर या ठंडी जगह पर लिटायें। शरीर को ठंडा रखने के लिए शरीर पर ठंडे पानी की पट्टियां लगाएं। घर के खिड़की दरवाजे खोल दें और कूलर या एसी चालू कर दें। अगर मरीज लू लगने से बेहोश हो गया है तो तुरंत नज़दीकी डॉक्टर के पास लेकर जाएं। - नई दिल्ली : चेहरे पर मास्क लगा कर वर्कआउट या रनिंग करना सेहत के लिए हानिकारक हो सकता है। हाल ही में चीन से एक ऐसी घटना सामने आई है जिसमें 26 वर्षीय एक युवक को मास्क लगाकर चार किलोमीटर दौड़ लगाने के बाद सांस लेने में परेशानी होने लगी। जिसके बाद इस युवक को अस्पताल में भर्ती करवाना पड़ा।
डॉक्टरों ने कहा कि उसका बायां फेफड़ा 90 फीसदी सिकुड़ कर क्षतिग्रस्त हो गया। ऐसा फेफड़ों में उच्च दबाव के कारण ऐसा होता है। युवक ने मास्क पहन गलत तरीके से व्यायाम किया था। डॉक्टर्स के मुताबिक, मास्क पहनकर इंटेंस वर्कआउट करना खतरनाक है। शख्स भी मास्क पहन दौड़ रहा था। ऐसे में उसकी बॉडी को पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिल पा रहा था। आइए जानते हैं मास्क लगाकर वर्कआउट करना कितना खतरनाक हो सकता हैं। जब आप व्यायाम करते हैं, तो उस समय आप ज्यादा मात्रा में सांस लेते और छोड़ते हैं। ऐसे में क्लॉस्ट्रोफोबिक का जोखिम बहुत ज्यादा बढ़ जाता है। क्योंकि मास्क पहनने से हवा की आपूर्ति बाधित हो जाती है। एक ऑस्ट्रेलियाई न्यूज एजेंसी के अनुसार हाल ही में चीन में, जिम में दो लड़कों की वर्कआउट के दौरान ही मौत हो गई। क्योंकि वे मास्क पहनकर फिजिकल वर्कआउट कर रहे थे।
जब आप हवा में सांस लेते और छोड़ते हैं तो आपके हृदय की गति तेज हो जाती है, जिससे आपको पसीना आता है। पर मास्क पहनने के दौरान आप केवल सांस छोड़ते हैं और ताजा सांस नहीं ले पाते, जिससे पसीना बहुत ज्यादा मात्रा में आने और डिहाइड्रेशन होने का जोखिम बढ़ जाता है। इसलिए विशेषज्ञ आपको सुझाव देते हैं कि गर्मियों के दौरान खुद को हाइड्रेट रखना क्यूं जरूरी है।
हालांकि यह बहुत आम नहीं है, लेकिन आप इसकी संभावनाओं से इन्कार नहीं कर सकते। जब आप मास्क पहनकर व्यायाम करती हैं तो आप अपने शरीर में कार्बन डाइऑक्साइड के स्तर को फिर से बढ़ा रही होती हैं, जिससे बेहोशी का जोखिम बढ़ जाता है।
ऑक्सीजन और सांस की कमी से आपको वर्कआउट के दौरान मतली और चक्कर आना भी महसूस हो सकता है। वहीं कुछ लोगों में ये वोमिटिंग का भी बड़ा कारण बन सकता है। अगर आप भी मास्क में चलते हुए ये सब महसूस करते हैं, तो ऐसे कामों को करना बंद कर दें और घर में ही रहें।साभार : हिंदी वन इण्डिया