- Home
- हेल्थ
- प्रदेश में कुष्ठ रोग उन्मूलन के लिए ‘’स्पर्श कुष्ठ जागरूकता अभियान’’ का आयोजन किया जा रहा है जिसके तहत ज़िले के विकासखण्ड आरंग, अभनपुर,धरसीवां और तिल्दा में प्रचार प्रसार कर कुष्ठ पहचान शिविर आयोजित किए जा रहे हैं ।साथ ही शहरी वार्ड और ग्राम पंचायत एवं आश्रित ग्रामों में ‘’स्पर्श कुष्ठ जागरूकता अभियान’’ के लिये ग्राम सभा, भी आयोजित की जा रही है ।
अभियान की जानकारी देते हुए नोडल अधिकारी डॉ.अनिल परसाई ने बताया,“महात्मा गांधी की पुण्य तिथि के उपलक्ष्य में 30 जनवरी से 13 फरवरी 2021 तक ”स्पर्श कुष्ठ जागरुकता पखवाड़े का आयोजन किया जा रहा है lलोगों तक कार्यक्रम की जानकारी पहुँचाने के लिए प्रचार प्रसार के माध्यम का सहारा लिया जा रहा ताकि इसके प्रति भय और भ्रांतियों को दूर किया जा सके।इसके लिए शहरी वार्डों एवं समस्त ग्राम पंचायतों में माइक्रो प्लान बनाकर प्रत्येक ग्राम सभा में स्वास्थ विभाग की ओर से बहुउद्देशीय स्वास्थ्य कार्यकर्ता (एनएमए) महिला एवं पुरुष , मितानिने और मितानिन प्रशिक्षक समस्त बहुउद्देशीय स्वास्थ्य पर्यवेक्षक (महिला एवं पुरुष) विभागीय कार्यकर्ताओं द्वारा ग्राम सभा में ‘’स्पर्श कुष्ठ जागरूकता अभियान’’विषय पर परिचर्चा की जा रही है ।
कुष्ठ रोग उन्मूलन के लिये लक्ष्य प्रति दस हजार की जनसंख्या में एक या एक से कम लाने का प्रयास भी किया जा रहा। इसके लिए कुष्ठ रोग विभाग की एनएमए की टीम घर-घर जाकर लोगों में लक्षण नजर आने पर जांच कर रही है ।साथ ही 30 जनवरी से 13 फरवरी तक स्पर्श कुष्ठ जागरूकता अभियान को व्यापक स्तर से चलाने हेतु ग्राम सभाओं का आयोजन, वॉल पेंटिंग और प्रचार–प्रचार किया जा रहा है । इस दौरान अनिवार्य रूप से कोविड-19 गाइडलाइन का अनुपालन किया जा रहा है।
डॉ. परसाई ने कहा “कुष्ठ से प्रभावित दो तरह के मरीजों के होने की संभावना देखी जाती है। एक मल्टीबेसिलरी और दूसरा पोसिबेसिलरी। मल्टीबेसिलरी मरीज को 12 माह और पोसिबेसिलरी मरीज को छह माह तक दवा लेनी होती है।हमारे समाज में आज भी अंधविश्वास के कारण कई लोग पूर्व जन्म का पाप मानते हैं ऐसे छुपे हुए रोगी ही कुष्ठ रोग का प्रसार करते हैं, जबकि यह बीमारी एक जीवाणु (लेप्रा बेसीलाई) के कारण होता है।कुष्ठ रोग के कारण प्रभावित अंगों में अक्षमता एवं विकृति आ जाती है, इसलिए छुपे हुए केस को जल्दी से जल्दी खोज कर एवं जांच उपचार कर कुष्ठ रोग का प्रसार रोका जा सकता है और सामाज को कुष्ठ मुक्त कर सकते हैं”।
- कोरोनावायरस महामारी के दौर में संक्रमण से बचने केलिए फेस मास्क का उपयोग पिछले एक साल में सबसे बड़ी सार्वजनिक चर्चा और राजनीतिक बहस का विषय रहा है। मास्क का उपयोग किया जाए या नही और किस परिस्थिति में किया जाए – यह इस चर्चा से जुड़े कुछ मुद्दे हैं।आम तौर पर श्वसन संक्रमण संक्रमित व्यक्ति के सांस लेने, बोलने, खाँसने और छींकने के दौरान निकालने वाली संक्रमित बूंदों के ज़रिये फैलता है जिसके प्रसार को मुँह पर मास्क पहनकर कम किया जा सकता है।
इंडियन जर्नल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईजेएमआर) में प्रकाशित हुए संस्करण 'फेस मास्क - कोविड-19 के खिलाफ भारत की लड़ाई में एक ज़रूरी हथियार’ - में कहा गया है कि मास्क संक्रमित बूंदों के प्रसार को रोकने के अलावा बेहद सस्ते, उपयोग में आसान और खासकर भीड़-भाड़ वाली जगहों के लिए काफी प्रभावी हैं।
हांलाकि मास्क पहनना शारीरिक दूरी और हाथों की स्वच्छता के लिए एक विकल्प के तौर पर नहीं है पर यह उन परिस्थितियों में बेहद असरदार साबित हो सकते हैं जहां शारीरिक दूरी बनाए रखना मुश्किल हो।
वर्तमान माहौल में जब लोग बचाव के उपाय अपनाते हुए ऊब गए हैं, आपके चेहरे पर मास्क दूसरों इसकीअहमियत याद दिलाने में मदद कर सकता है। इस प्रकार मास्क पहनने वाले लोग न केवल दूसरों पर भी इसके लिए दबाव बना सकते हैं बल्कि सामाजिक परिवर्तन का ज़रिया भी बन सकते हैं।इसलिए उचित होगा कि भारत में रहने वाला प्रत्येक व्यक्ति सार्वजनिक स्थानों पर उचित मास्क ज़रूर पहने। मास्क का उपयोग आगे आने वाले कुछ समय तक जारी रखना होगा क्यूंकि कोविड-19 का टीका आने के बाद भी वैक्सीन से प्रतिरोधक क्षमता विकसित होने में अभी समय लगेगा।
.बीमारी की रोकथाम के लिए सामुदायिक स्तर पर मास्क का उपयोग सबसे पहले पूर्वोत्तर चीन के मंचूरियन प्लेग (1910-1911) के समय किया गया था। इस महामारी के दौरान बीमारी से बचाव में जुटी टीम ने अनुभव किया कि इस बीमारी का प्रसार हवा के माध्यम से हो सकता है और इसलिए मरीजों को क्वारंटाइन करने के अलावा लोगों को पतले कपड़े या पट्टी से बने मास्क (गौज़ मास्क) पहनने की सलाह दी गई।
.कुछ साल बाद 1918 के इन्फ्लूएंजा महामारी, जिसे स्पैनिश फ्लू भी कहा जाता है, के दौरान पश्चिमी देशों में कई परतों वाले कपड़े के मास्क के उपयोग को बढ़ावा दिया गया। लेकिन खराब गुणवत्ता और कुछ हद तक लोगों द्वारा मास्क का उपयोग न करने की वजह से यह कुछ खास प्रभावी साबित नहीं हुआ।
.लगभग एक सदी बाद, संक्रामक रोगों के बारे में जानकारी बढ्ने के साथ ही सिवियर एक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम (सार्स), मिडिल ईस्ट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम (मर्स) और अब कोविड-19 के खिलाफ बचाव में मास्क सबसे अहम हथियार बन गए हैं।
भारत में 30 जनवरी 2020 को कोविड-19 की पहली दस्तक के बाद यात्रा प्रतिबंधों से संबंधित जारी एड्वाइज़री, अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डों पर विदेश से आने वाले यात्रियों की स्क्रीनिंग, उड़ानों पर प्रतिबंध और 24 मार्च से राष्ट्रीय लॉकडाउन जैसे उपायों द्वारा कोविड-19 के प्रसार को रोकने की कोशिश की गई। इसके अलावा सार्वजनिक रूप से मास्क के उपयोग को भी प्रोत्साहित किया गया।
संस्करण के अनुसार, राष्ट्रीय सीरोलॉजिकल सर्वेक्षण के तीसरे चरण के आंकड़ों का एक प्रारंभिक विश्लेषण बताता है कि संक्रमण अब तक एक-चौथाई से अधिक आबादी में नहीं फैला है और इसलिए लोगों में हर्ड ईम्यूनिटी विकसित होने में अभी समय लगेगा ।
मास्क पर्यावरण में संक्रमित बूंदों के प्रसार को रोकने में मदद करते हैं। आमतौर पर बाज़ार में तीन प्रकार के मास्क उपलब्ध हैं: (i) कोविड-19 – कपड़े के मास्क , (ii) मेडिकल मास्क और (iii) रेस्पिरेटर मास्क (एन95 और एन99)। विश्व स्वास्थ्य संगठन आम लोगों को कपड़े के मास्क जबकि कोविड-19 उपचारधीनों, उच्च जोखिम वर्ग के लोगों और स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को मेडिकल या रेस्पिरेटर मास्क पहनने की सलाह देता है।
कपड़े के मास्क मोटे कणों को सांस के साथ बाहर जाने से रोकते हैं और छोटे कणों के प्रसार को भी सीमित करते हैं। कई परतों वाला कपड़े का मास्क सांस से निकलने वाले कणों को 50 से 70 प्रतिशत तक फिल्टर कर लेता है। कपड़े के मास्क की प्रभावशीलता विभिन्न कारकों पर निर्भर करती है जैसे कि कपड़े का प्रकार, परतों की संख्या और मास्क का चेहरे पर फिट। मोटे कपड़े से बना कम से कम तीन परतों वाला कपड़े का मास्क पहनना सबसे उपयुक्त माना गया है।
सूती मिक्स या अन्य मिले-जुले कपड़े जैसे सूती-रेशम या सूती-शिफॉन से बने मास्क बेहतर होते हैं क्योंकि सूती कपड़े के मुकाबले इनकी फिल्टर करने की क्षमता अधिक होती है। मास्क की बाहरी परत जल-प्रतिरोधी (हाइड्रोफोबिक) कपड़े जैसे पॉलिएस्टर या सूती-पॉलिएस्टर मिक्स की होनी चाहिए जिससे वातावरण में मौजूद बूंदें उसमें न समाएँ।बीच की परत भी जल-प्रतिरोधी जैसे पॉलीप्रोपाइलीन कपड़े की होनी चाहिए, लेकिन सबसे अंदर की परत जल-शोषक (हाइड्रोफिलिक) होनी चाहिए जिससे वह नाक और मुंह से निकलने वाली बूंदों को सोख ले और वह वातावरण में न जा पाएँ।
मास्क के उपयोग कब तक किया जाए और उसे कब बदला जाए यह इसपर निर्भर करता है कि मास्क किस प्रकार का है। कपड़े के मास्क को इस्तेमाल के तुरंत बाद या रोज़ साबुन और गर्म पानी से धोना चाहिए।मेडिकल मास्क को केवल एक बार ही इस्तेमाल करना चाहिए जबकि रेसपिरटर मास्क को संसाधनों की कमी के चलते सावधानी के साथ साफ करके दोबारा इस्तेमाल किया जा सकता है।
मास्क प्रभावी हो इसके लिए ज़रूरी है कि इसका उपयोग उचित तरीके से किया जाए। हाल ही में हुए एक सर्वेक्षण में कहा गया है कि केवल 44 प्रतिशत भारतीय ही दिशा-निर्देशों के अनुसार मास्क को सही तरीके से पहन रहे हैं। कुछ लोगों को मास्क पहनने के बाद असुविधा और साँस लेने में कठिनाई भी हुई।
विशेषज्ञों का कहना है कि कोविड-19 संक्रमण के अलावा मास्क अन्य तरह के श्वसन संक्रमण जैसे इन्फ्लूएंजा और टीबी को भी फैलने से रोकने में मददगार हैं। इसलिए उनका उपयोग करना बेहद महत्वपूर्ण है। - विश्व कैंसर दिवस के अवसर पर ट्रैफिक पुलिस को मुख कैंसर से बचने और दूसरों को बचाने के लिए एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया जिसमें लोगों को धूम्रपान करने से बचने की सलाह दी गई और मुख कैंसर के लक्षणों के बारे में जानकारी दी गई| लक्षण होने पर उपचार के लिए कहाँ जाना है इसके बारे में भी बताया गया|
संगोष्ठी में 90 ट्राफिक पुलिस के जवानों ने भाग लिया और एडिशनल एसपी ट्रैफिक, एमआर मंडावी, असिस्टेंट प्रोफेसर शासकीय दंत चिकित्सा रायपुर, डॉ.शिल्पा जैन और असिस्टेंट प्रोफेसर सीबीटीएस एम्स डॉ.प्रीतम साहनी मौजूद रहे ।
जिला सलाहकारडॉ सृष्टि यदु ने संगोष्ठी पर जानकारी देते हुए बताया कि इसमें मुख कैंसर के बारे में जानकारी दी गई और रोग होने पर उपचार के बारे में जानकारी दी गई|उन्होंने यह भी बताया कि नशा मुक्ति के लिए जिला चिकित्सालय, पंडरी में स्थित स्पर्श क्लीनिक से सहायता ली जा सकती है| केंद्र पर उपचार लेने वाले की जानकारी गुप्त रखी जाती है ।
मुख कैंसर संगोष्ठी का आयोजन मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. मीरा बघेल और ज़िला कार्यक्रम प्रबंधक मनीष कुमार मैजरवार मार्गदर्शन में किया गया ।
डॉ.प्रीतम साहनी असिस्टेंट प्रोफेसर सीबीटीएस एम्स ने संगोष्ठी को सम्बोधित करते हुऐ मुख कैंसर के लक्षणों के बारे में जानकारी देते हुए कहा त्वचा के नीचे गांठ महसूस होना, वजन अचानक से कम या ज्यादा होना,त्वचा पर जल्दी निशान पड़ जाना,निगलने में कठिनाई होना,मांसपेशियों और जोड़ों में दर्द होना,घाव का जल्दी ठीक न होना, थकान और कमजोरी महसूस होना, इस प्रकार के कैंसर के लक्षण हो सकते है|इस स्थिति में तुरंत नजदीकी चिकित्सालय में संपर्क कर करना चाहिए और नियमित इलाज करवाना चाहिए। कैंसर की पहचान समय पर हो तो इसका इलाज आसान होता है ।
डॉ.शिल्पा जैन असिस्टेंट प्रोफेसर, शासकीय दंत चिकित्सा ने कहा मुख कैंसर से बचाव के उपाय का आसान तरीका धूम्रपान, तंबाकू, गुटका और शराब के सेवन से बचना| ``आहार में अधिक वसा न लें, नियमित रूप से व्यायाम करें, और शरीर का सामान्य वजन बनाए रखें। अधिक परेशानी होने पर डॉक्टर से सलाह लें|’’ उन्होंने कहा लोगों में कैंसर के प्रति जागरूकता लाने के लिए कई कार्यक्रम चलाए जा रहे है। - रायपुर : हर वर्ष 04 फरवरी को विश्व कैंसर दिवस के रूप में मनाया जाता है |इस दिवस को मनाने का उद्देश्य कैंसर से बचाव और उसके प्रति जागरूकता पैदाकरना है ताकि समय रहते लोग इसको पहचान सकें और त्वरित उपचार करा कर इस बीमारी से अपना बचाव कर सकें |कैंसर के बारे में लोगों के मन में अनेक भ्रांतियां हैं|इन भ्रांतियों से सम्बंधित तथ्य नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ कैंसर प्रिवेंशन एंड रिसर्च ने अपने वेबसाईट पर दिए हैं |
इसके अनुसार-
भ्रान्ति : कैंसर एक संक्रामक बीमारी है |
तथ्य : कैंसर संक्रामक बीमारी नहीं हैं | कुछ कैंसर बैक्टीरिया और वायरस जनित होते हैं जैसे सर्वाइकल कैंसर ह्यूमन पैपिलोमावायरस, लिवर कारक कैंसर हिपेटाइटिस बी और सी |
भ्रान्ति : अगर व्यक्ति के परिवार में किसी को कैंसर नहीं है या पहले किसी को नहीं हुआ तो उसको भी कैंसर नहीं होगा |
तथ्य : यह जरूरी नहीं है | केवल 5 से 10 फीसद कैंसर आनुवंशिक होते है जबकि कुछ कैंसर व्यक्ति के पूरे जीवन में जेनेटिक परिवर्तनों के कारण होते हैं और कुछ पर्यावरण के कारण जैसे रेडियेशन और खाने की आदतों जैसे तम्बाकू का सेवन से होते हैं |
भ्रान्ति : परिवार में किसी को कैंसर हुआ है तो आपको कैंसर अवश्य होगा |
तथ्य : परिवार में कैंसर होना उसके सदस्यों में कैंसर को विकसित करने की सम्भावना को बढ़ा देता है | केवल 5 से 10 फीसद कैंसर जींस में हानिकारक म्यूटेशन के कारण होते हैं जो व्यक्ति को उसके पूर्वजों से मिलते हैं |
भ्रान्ति : सकारात्मक विचार रखने से कैंसर से आप बच जायेंगे |
तथ्य : सकारात्मक विचार आपके जीवन की गुणवत्ता को तो बढ़ा सकतेहैं लेकिन इसका ऐसा को वैज्ञनिक प्रमाण नहीं है जिससे यह पता चले की इससे कैंसर का उपचार होता है |
भ्रान्ति : यदि व्यक्ति को कैंसर हुआ है तो उसकी मृत्यु शीघ्र हो जाएगी |
तथ्य : ऐसा नहीं है|यदि प्रारम्भिक स्टेज में कैंसर की पहचान हो जाती है तो बचाव की दर बढ़ जाती है | वास्तव में बहुत से लोग 5 साल या उससे भी अधिक वर्ष तक जीवित रहते हैं जिनमें कैंसर की पहचानजल्दी हो जाती है |
भ्रान्ति : बुज़ुर्ग लोगों के लिए कैंसर का इलाज उपयुक्त नहीं है |
तथ्य : ऐसा नहीं है| वास्तविकता यह है कि कैंसर के इलाज की कोई आयु सीमा नहीं है |
भ्रान्ति :सेल फोन और सेल फोन के टावर्स कैंसर फैलाते हैं |
तथ्य : यह भी विवादित है कि सेल फोन के टावर्स से निकालने वाले रेडीऐशन से कैंसर होता हैं | कैंसर जींस में म्यूटेशन के कारण होता है| सेल फोन्स से लो फ्रीक्वेंसी ऊर्जा की किरणें निकलती हैं जो कैंसर का कारण नहीं हैं |
भ्रान्ति :हर्बल उत्पादों से कैंसर का इलाज होता है |
तथ्य : कैंसर के इलाज में इस्तेमाल होने वाली कीमोथेरेपी के साइड इफ्केट्स में हर्बल उत्पादों के उपयोग की सलाह दी जाती है लेकिन ऐसा कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है जिसमें कैंसर के इलाज में हर्बल उत्पाद का उपयोग होता है |
भ्रान्ति : हेयर डाई और एंटीपर्सपिरेंट्स से कैंसर हो सकता है |
तथ्य : ऐसे कोई वैज्ञानिक साक्ष्य नहीं है जिनसे यह ज्ञात हो कि उपरोक्त पदार्थ कैंसर के विकास में खतरा हैं |
भ्रान्ति : कृत्रिम स्वीटनर, फ्लेवर्स, खाने में डाले जाने वाले रंग वाले पदार्थ के उपयोग से कैंसर हो सकता है |
तथ्य : शोधों से ऐसे कुछ परिणाम सामने नहीं आये हैं जिनसे यह पता चले कि उपरोक्त पदार्थों से कैंसर हो सकता है |
भ्रान्ति : कैंसर दर्द देता है |
तथ्य : अगर कैंसर के बारे में प्रारम्भ में ही पता चला जाता है तो यह कष्टदायी नहीं होता है | अधिकांश केसों में कैंसर सम्बंधित दर्द का इलाज दवाओं और दर्द प्रबंधन विधियों से किया जाता है |
भ्रान्ति : कैंसर से ठीक हुए लोग सामान्य गतिविधियों में प्रतिभाग नहीं कर सकते हैं |
तथ्य : कैंसर के रोगियों को कुछ समय के लिए ही अस्पताल में रहना पड़ता है | वह अपने सभी कार्यों को कर सकते हैं, यहाँ तक कि इलाज के दौरान भी वह अपने सामान्य गतिविधियों को कर सकते हैं | - सीईओ ने ली ज़िला टास्क फोर्स की बैठक
प्रत्येक बच्चे तक पहुंचाएगे अभियान
रायपुर : रेडक्रास के सभाकक्ष में पल्स पोलियो अभियान को सफल बनाने के लिए जिला पंचायत सीईओ की अध्यक्षता में ज़िला टास्क फोर्स की बैठक आयोजित की गयी ।बैठक मेंस्वास्थ्य विभाग, महिला एवं बाल विकास विभाग एवं शिक्षा विभाग सहित अन्य विभाग के अधिकारी-कर्मचारी उपस्थित रहे । बैठक में जानकारी दी गयी कि इस बार पल्स पोलियो अभियान 31 जनवरी से 2 फरवरी 2021 के बीच आयोजित किया जायेगा ।
पल्स पोलियो अभियान के अंर्तगत शून्य से पांच वर्ष तक के बच्चों को पोलियो की दवा ‘’दो बूंद हर बार पोलियो पर जीत रहे बरकरार’’ मंत्र के साथ पिलाई जायेगी । इसके लिए माइक्रो प्लान तैयार किया जा चुका है ।जिसके तहत टीकाकरण केंद्रों में 31 जनवरी को बूथ में एवं 1 तथा 2 फरवरी को घर-घर जाकर छूटे हुए बच्चो को पोलियो की खुराक दी जाए। ताकि कोई भी बच्चा दवा पीने से वंचित न रहे पाए।
पल्स पोलियो अभियान की जानकारी देते हुए ज़िला टीकाकरण अधिकारी डॉ.अनिल परसाई ने बताया,“इस बार जिले में लगभग 3.42 लाख से अधिक बच्चों का लक्ष्य डायरेक्टरेट आफ हेल्थ सर्विसेज (डीएचएस) से मिला है ।जिले में 1,370 से अधिक बूथ बनाए जाएंगे जिसमें प्रत्येक बूथ पर 4 सदस्यों की टीम रहेगी। इस टीम द्वारा बच्चों को पोलियो की दवा पिलाई जाएगी और 1 और 2 फरवरी को किसी कारणवश पोलियो रोधी दवा पीने से छूटे बच्चों को घर-घर जाकर टीम पोलियो रोधी दवा पिलाई जायेगी ।
ज़िला टास्क फोर्स की बैठक में मुख्य कार्यपालन अधिकारी द्वारा अंतर विभागीय समन्वय स्थापित कर निर्देशित किया गया है। जिसके तहत विद्युत विभाग पल्स पोलियो अभियान के दौरान सतत विद्युत आपूर्ति बनाए रखेगा ।महिला एवं बाल विकास विभाग आंगनवाड़ी केंद्रों को पोलियो बूथ के लिए खुलवाना और साफ सफाई के साथ-साथ 0 से 5 साल के बच्चों को केंद्र तक लाएगी ।पंचायत विभाग द्वारा जिन भवनों में पोलियो बूथ बनाया गया है, उनको खुलवाना और साफ सफाई की व्यवस्था करवाएगा । नगर निगम और नगर पंचायत शहर में प्रवेश करने वाले नाकों पर लगने वाले पोलियो बूथ के लिए कुर्सी टेबल टेंट की व्यवस्था करेगा ।साथ ही पुलिस विभाग द्वारा बूथ पर सुरक्षा व्यवस्था प्रदान की जाएगी । पल्स पोलियो अभियान के लिये आवश्यक वाहन व्यवस्था प्रोटोकॉल के माध्यम से की जाएगी
प्रत्येक पांच बूथ पर एक सुपरवाइजर की व्यवस्था की जाएगी जिसमें 274 लोगों व्यवस्था है । प्रत्येक बूथपर 4 टीका कर्मी की व्यवस्था की गई है कुल 5,480 टीकाकर्मी की व्यवस्था की है 40 ट्रांजिट टीमें का गठन किया गया है प्रत्येक टीम में 4 सदस्य होंगे कुल 160 सदस्यों की टीम बनाई गई है । 8 ट्रांजिट पर्यवेक्षकों की व्यवस्था की गई है । 45 मोबाइल टीमों की व्यवस्था की गई है जिसमें कुल 180 सदस्य मौजूद रहेंगे । 9 मोबाइल पर्यवेक्षकों की व्यवस्था कार्यक्रम में की गई है ।
पल्स पोलियो अभियान के बारें में अभी से प्रचार-प्रसार की गतिविधियों को तेज करने के निर्देश मिले हैं। इसके लिए लोगों को शार्ट मैसेज सर्विस (एसएमएस) के माध्यम से जानकारी उपलब्ध कराई जाऐगी।साथ ही दीवार लेखन, बैनर, पोस्टर्स का प्रयोग कर जागरुकता बढाने का काम होगा। अभियान को सुचारू रूप से संचालित करने के बूथ संचालित होंगे, जहां दो पृथक कक्ष एवं शौचालय इस कार्य के लिए आरक्षित रखे जाऐगे।
डॉ. परसाई ने कहा “पल्स पोलियो अभियान को सफल करने के लियें महिला एवं बाल विकास विभाग के आंगनबाड़ी केन्द्रों को भी संचालित किए जाने के लिए भी कहा है।विशेष रुप में हाई रिस्क एरिया, रेल्वे बस्ती, घुमन्तु परिवार, ईंट भट्ठा, अर्बन स्लम आदि का चिन्हांकन एवं पल्स पोलियो के हितग्राही 0 से 5 वर्ष तक के बच्चों का चिन्हांकन किया जाएगा एवं सभी चिन्हांकित पोलियो बूथ पर पोलियों की दवा निर्धारित समय पर पिलाई जाएगी”।
पूर्व वर्ष की उपलब्धि
पिछले वर्ष 19 जनवरी 2020 को राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित पोलियो कार्यक्रम में ओरल पोलियो ड्रॉप (ओपीवी) पिलाने का लक्ष्य 3.42 लाख बच्चों का लक्ष्य था । जिसकी तुलना में3.43 लाख बच्चों को पोलियो ड्रॉप पिलवाई गई थी। जोकि शत-प्रतिशत था। - स्वास्थ्य विभाग के कोरोना वारियर्स सम्मानित
कोविड-19 दिशा निर्देशों के अनुरूप मनाया गया गणतंत्र दिवस समारोह
कोरबा : जिला स्तर गणतंत्र दिवस समारोह कार्यक्रम में, कोरोनावायरस महामारी के विरूद्ध लड़ाई में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करने वाले कोरोना वारियर्स को सम्मानित किया गया। इसमें स्वास्थ्य विभाग के डाक्टर्स, पैरा मेडिकल स्टाफ और सफाईकर्मी भी शामिल थे।
कोरोना महामारी की शुरूआत (मार्च 2020 में ) कोरबा जिला छत्तीसगढ़ में हॉट स्पॉट के रूप में उभरा थाI तभी से स्वास्थ्यकर्मी महामारी नियंत्रण टीम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और महीनों अपने परिवार से दूर कोविड ड्यूटी में तैनात रहे।इनमें एपीडेमोलॉजिस्ट डॉ. प्रेम प्रकाश आनंद एवं लैब तकनीशियन दिनेश साहू काफी सक्रिय रहे। कई महीनों तक घर से दूर कोरोना की जांच और संक्रमितों के इलाज की वजह से अस्पताल ही इनका घर बन गया था। गणतंत्र दिवस के दिन सम्मान पाकर वह बहुत खुश हैं और दोगुनी उर्जा के साथ कार्य करने के लिए संकल्पित भी हैं।
एपीडेमोलॉजिस्ट डॉ. प्रेम प्रकाश आनंद ने राज्य स्वास्थ्य संसाधन केन्द्र, रायपुर से विभाग में सेवा की शुरूआत की और आज जिला एपीडेमोलॉजिस्ट के रूप में कोरबा जिला अस्पताल में अपनी सेवाएं दे रहे हैं।उन्होंने बताया उनकी एक छोटी बेटी हैI जब महामारी नियंत्रण टीम में उनकी ड्यूटी लगी तो उन्हें बेटी की चिंता हुई। स्वास्थ्य कार्यकर्ता के कर्तव्य को ही प्राथमिकता दी और कई महीने तक परिवार से दूर रहे।शुरूआत में दिन-रात टेस्टिंग और लोगों को जागरूक करने के लिए जिले से कुछ लोगों को चुना गया था। उन्होंने बताया उन्हें गर्व है कि विभागीय अधिकारियों ने उन्हें लोगों की सेवा करने का मौका दिया इसलिए विभागीय अधिकारियों को वह धन्यवाद देते हैं। इसी तरह पुरस्कार पाने वाले दिनेश साहू भी दिन रात सेवा दे रहे थे। जिला कलेक्टर द्वारा सम्मान पाकर उन्हें भी काफी खुशी हैं और आगे भी इसी तरह विभागीय कार्य और लोगों की सेवा करने के लिए दृढ़संकल्पि हैं।
सादगी से मनाया गया गणतंत्र दिवस समारोह- कोरोना महामारी की वजह से इस वर्ष गणतंत्र दिवस समारोह सादगी से मनाया गया। परंतु कोविडकाल में अपनी जान की परवाह किए बगैर लोगों की सेवा में तत्पर विभिन्न विभागों के कर्मठ कर्मचारियों कोरोनावारियर्स को सम्मानित किया गया।फुटबॉल ग्राउंड सीएसईबी मैदान में आयोजितत गणतंत्र दिवस समारोह में आदिम जाति तथा अनुसूचित जाति विकास, पिछड़ा वर्ग डॉ. प्रेमसाय सिंह टेकाम ने स्वास्थ्य विभाग के कर्मियों को प्रशस्ति पत्र और शील्ड देकर सम्मानित किया। सम्मान पाने वाले कर्मियों को धन्यवाद देते हुए उनके बेहतर कार्य की सराहना की। साथ ही उनके उन्नत भविष्य की कामना की।
इन्हें मिला सम्मान- जिला स्तर पर सम्मानित होने वाले स्वास्थ्य कर्मियों में डॉ. प्रिंस जैन, डॉ. प्रीतेश मसीह (एमडी मेडिसीन), डॉ. रूद्रपाल सिंह ( बीएमओ कटघोरा), डॉ. प्रेम प्रकाश आनंद ( एपीडेमोलॉजिस्ट), डॉ. हेमंत पटेल ( आयुष मेडिकल ऑफिसर), लक्ष्मी नेताम, सुस्मिता परीदा स्टाफ नर्स, दिनेश साहू ( एमएलटी), राजेश पैकरा ( फार्मासिस्ट), धर्मेंद्र चुटैल ( सफाईकर्मी), पद्माकर शिंदे (डीपीएम), अशोक सिंह (सीपीएम) एवं डॉ. सी.के.सिहं (डीएचओ) आदि शामिल हैं।
जिला अस्पताल में मना गणतंत्र दिवस- सिविल सर्जन डॉ. अरूण तिवारी के नेतृत्व में जिला अस्पताल कोरबा में गणतंत्र दिवस समारोह सादगी और कोरोना नियमों का पालन करते हुए मनाया गया।इस संबंध में डॉ. अरूण तिवारी ने बताया कोविड-19 को देखते हुए इस वर्ष गणतंत्र दिवस समारोह अलग ढंग से मनाया गया। जिला स्तर पर आयोजित कार्यक्रम में कोरोना वारियर्स को विशेष रूप से आमंत्रित कर उन्हें सम्मानित किया गया है।यह जिले के लिए गौरव की बात है। उन्होंने सम्मानित किए जाने वाले सभी कर्मियों को बधाई देते हुए उनके उज्जवल भविष्य की कामना की। मौके पर काफी संख्या में स्वास्थ्य कर्मी, अधिकारी एवं कर्मचारी मौजूद थे। -
(With TNI News Service inputs)
दुर्ग : जिले के निकुम ब्लॉक को धुम्रपान मुक्त बनाने को सभी सरकारी व सार्वजनिक संस्थानों में कोटपा एक्ट 2003 लागू किया जाएगा। अनुविभागीय अधिकारी खेमलाल वर्मा ने सभी विभागों के अधिकारियों को धुम्रपान मुक्त क्षेत्र घोषित करने के निर्देश जारी किये हैं।
सार्वजनिक स्थलों पर धूम्रपान से जुड़ा सिगरेट और अन्य तंबाकू उत्पाद (विज्ञापन और व्यापार और वाणिज्य, उत्पादन, आपूर्ति और वितरण का निषेध अधिनियम, 2003) कोटपा की धारा 4 के तहत कोई भी सार्वजनिक स्थान पर धुम्रपान नहीं करेगा।कोटपा 2003 की धारा 6(अ) के तहत 18 वर्ष से कम उम्र के नाबालिकों को सिगरेट व अन्य तंबाकू उत्पाद का क्रय व विक्रय की अनुमति नहीं होगी। वहीं धारा 6 (ब) के तहत किसी भी शैक्षणिक संस्थानों के आसपास 100 गज की दूरी की परिधी में तंबाकू उत्पादों की बिक्री प्रतिबंधित रहेगी।
सामाजिक संस्था द यूनियन के संभागीय समन्वयक प्रकाश श्रीवास्तव ने बताया, “धुम्रपान मुक्त ब्लॉक बनाने के लिए Cigarettes and Other Tobacco Products Act, (COTPA) 2003 के तहत कानूनों का कड़ाई से पालन कराते हुए धुम्रपान निषेध का बोर्ड सभी कार्यालयों में लगाया जाएगा साथ ही उसमें यह लिखा रहेगा -“यहां धुम्रपान करना अपराध है” ।
उन्होंने बताया, ब्लॉक के समस्त सिगरेट व तंबाकू उत्पाद बिक्री के दुकानों में बोर्ड लगाया जाएगा साथ ही वहाँ यह भी अंकित रहेगा कि 18 वर्ष से कम आयु के बच्चों को तंबाकू उत्पादों की बिक्री करना दंडनीय है।इसके लिए नगर निगम, नगर पंचायतों के जिम्मेवार अधिकारियों को छापेमारी करनी होगी और नियमों का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ जुर्माना लिया जाना है। शैक्षणिक संस्थानों के 100 गज के दायरे में तंबाकू उत्पाद की बिक्री होने पर 200 रुपए तक जुर्माना विकासखंड शिक्षा अधिकारी द्वारा लगाया जाना है”। .
राष्ट्रीय तम्बाकू नियंत्रण कार्यक्रम के तहत ब्लॉक स्तरीय समन्वय समिति के सदस्यों की पिछले दिनों बैठक में अनुविभागीय अधिकारी खेमलाल वर्मा ने दुर्ग (निकुम) को धूम्रपान मुक्त ब्लॉक बनाए जाने का संकल्प लिया था। इसके लिए दुर्ग कलेक्टर डॉ. सर्वेश्वर नरेन्द्र भुरे ने जिले के सभी शासकीय कार्यालयों को तंबाकू मुक्त क्षेत्र बनाने की दिशा में कार्य करने का आदेश भी जारी किया है।
तंबाकू के प्रयोग से कैंसर, हृदय रोग, मधुमेह, टीबी, जैसे गैर संचारी रोग होने की संभावना अधिक होती है। सार्वजनिक स्थानों पर धुम्रपान की वजह से आसपास के लोग भी इससे प्रभावित होते हैं। इसलिए सिगरेट एवं अन्य तंबाकू उत्पाद अधिनियम के तहत सार्वजनिक स्थानों में धुम्रपान प्रतिबंधित किया जाता है।
शासकीय भवनों में दूसरे व्यक्ति को प्रभावित करने में जीएटीएस-1 ( 2009-10) में 4.7 प्रतिशत से बढकर जीएटीएस-2 ( 2016-17) में 8.7 प्रतिशत दर्ज किया गया है। कोटपा एक्ट के उल्लंघन पर चालानी करने के लिए सभी विभागों के कार्यालयों में नोडल अधिकारी बनाए जाने के निर्देश दिए गए हैं।
मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ जी एस ठाकुर एवं नोडल अधिकारी डॉ आर के खण्डेलवाल के दिशा निर्देशानुसार आज नगर पालिक निगम भिलाई के आयुक्त ऋतुराज रघुवंशी को धूम्रपान निषेध क्षेत्र, तम्बाकू मुक्त संस्था/ परिसर सम्बन्धी पोस्टर भी प्रदान किये गए । इस संबंध में आयुक्त ने भिलाई शहर के सभी मुख्य चौक-चौराहों में तम्बाकू निषेध सम्बन्धी जन जागरूकता संदेश पोस्टर चस्पा करने के निर्देश दिए । - रायपुर : नशा मुक्ति एवं तंबाकू निषेध को लेकर मितानिन और स्वास्थ्य केंद्र पर आये लाभार्थियों समूह चर्चा (एफजीडी) की गई । समूह चर्चा का मुख्य उद्देश्य लोगों को तंबाकू और नशे से होने वाले नुकसान के बारे में जागरूक करना था ।इस अवसर परउपस्थित लोगों को मास्क और सेनेटाइज़र का वितरण भी किया गया साथ ही भारत सरकार द्वारा जारी कोविड-19 की गाइडलाइन का पालन भी किया गया।
समूह चर्चा के दौरान मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ.मीरा बघेल ने कहा,“तंबाकू का सेवन स्वास्थ्य के लिए घातक है। स्मोकिग से सबसे ज्यादा फेफड़ों के कैंसर होने की संभावना होती है।इसलिए बेहतर स्वास्थ्य के लिए लोगों को तंबाकू का सेवन बिलकुल नहीं करना चाहिए । कोरोना के संक्रमण काल में चार बातों को जानना बेहद महत्वपूर्ण है ।
तंबाकू या धुम्रपान से कोरोना का कनेक्शन यह है कि यह फेफड़ों को कमजोर करता है, जिससे वायरस का संक्रमण गंभीर हो सकता है । सिगरेट,सीगार, बीड़ी, वाटरपाइप और हुक्का पीने वालों में कोविड-19 का रिस्क ज्यादा होता है ।तंबाकू चबाने व सिगरेट पीने वालों में कोरोना हाथ से मुंह तक पहुंच सकता है । संक्रमित के तंबाकू चबाने के बाद थूकने पर वायरस अन्य लोगों को भी जकड़ सकता है” ।
शहरी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (यूपीएचसी) भाटागांव के प्रभारी डॉ. किशोर सिन्हा ने कहा,“गुटखा, तंबाकू व शराब आदि का सेवन करने से कैंसर जैसी गंभीर बीमारी को बढ़ावा मिलता है।कुछ घंटों के शौक के लिए किये जाने वाले इस नशे से कैंसर हो सकता है साथ ही व्यक्ति बाद में आर्थिक रूप से भी बर्बाद होता है। बीमारी जड़ से भी खत्म होने की गारंटी नहीं होती। ऐसे में सभी को संकल्प लेना चाहिए कि नशे से दूर रहे और दूसरों को भी यह सलाह दें”।
समूह चर्चा के दौरान जिला सलाहकार डॉ. सृष्टि यदु ने सभी को तंबाकू का सेवन न करनेकी शपथ दिलाई, साथ ही कोटपा अधिनियम 2003 के बारे में जानकारी भी दी। ग्लोबल एडल्ट टोबैको सर्वे 2016-17 का उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया,“छत्तीसगढ़ में 39.1 प्रतिशत लोग किसी न किसी प्रकार से तंबाकू का सेवन करते हैं।
यह देश की औसत 28.4 प्रतिशत से अधिक है। इसमें से 7 प्रतिशत लोग ऐसे थे जिन्होंने 15 वर्ष की उम्र से पहले ही तम्बाकू का सेवन शुरू किया था। 29 प्रतिशत ने 15-17 वर्ष की उम्र से और 35.4 प्रतिशत ने 18-19 वर्ष में सेवन शुरू किया। यानी औसतन 18.5 वर्ष की आयु में तंबाकू का सेवन शुरू किया था”।
जिला कार्यक्रम प्रबंधक रायपुर मनीष मेजरवार ने कहा, “स्वास्थ्य कर्मी व मितानिन गांवों के लोगों को जागरूक करें जिससे लोग तंबाकू से दूर हों। सिगरेट में निकोटिन सहित कई विषैले पदार्थ पाए जाते है।जिससे हार्ट अटैक, स्ट्रोक जैसी कई समस्या हो सकती है जिसके कारण बोलने की शक्ति, सुनने की क्षमता, आंशिक अंधापन की समस्या हो सकती है।
धूम्रपान न करने वालों की तुलना में धूम्रपान करने वालों में स्ट्रोक होने की संभावना तीन गुना अधिक होती है”। नेहा सोनी सोशल वर्कर ने बताया,“तंबाकू में पाए जाने वाला ग्लूकोज आपके पाचन तंत्र को बिगाड़ सकता है।जो बाद में डायबिटीज का कारण भी बन सकताहै। दरअसल धुएं में आर्सेनिक, फार्मलाडिहाइड और अमोनिया शामिल होते हैं। यह रसायन खून में शामिल होकर आंखों के नाजुक ऊतकों तक पहुंचते हैं जिससे रेटीना कोशिकाओं की संरचना को नुकसान होता है। अल्जाइमर का खतरा भी बढ जाता है”।
काउंसलर अजय कुमार बैस ने कहा,“नशा छुड़ाने का प्रयास किया जा सकता है।समय रहते नशा छोडने से मन और शरीर स्वस्थ रहता है। धूम्रपान करने वाले दोनों पुरुष और महिलाओं में डिमेंशिया या अल्जाइमर जैसे रोग होने की संभावना अधिक होती है। इसमें मानसिक पतन का अनुभव भी कर सकते हैं। सिगरेट में मौजूद निकोटीन मस्तिष्क के लिए हानिकारक है और डिमेंशिया या अल्जाइमर रोग की शुरुआत करता है”। -
शहरी क्षेत्र में यूसीएचसी गुढियारी और यूपीएचसी हीरापुर को मिला प्रथम स्थान
रायपुर :‘’कायाकल्प –स्वच्छ अस्पताल योजना “ वर्ष 2019-20 के तहत प्रदेश स्तर पर मुंगेली के जिला अस्पताल को प्रथम और रायपुर जिला अस्पताल को द्वितीय पुरस्कार मिले हैं।जिला अस्पतालों में 7 अस्पतलों में कोरबा, जशपुर, बीजापुर, बलौदाबाजार, जगदलपुर, नारायणपुर, कांकेर और जांजगीर-चांपा को संतावना पुरस्कार मिला है। राज्य क्वालिटी एश्यूरेंस कमेटी द्वारा कायाकल्प अवार्ड के लिए जिला अस्पताल का चयन हुआ है।
नैशनल हेल्थ मिशन (एनएचएम) के डिप्टी डायरेक्टर डॉ सुरेंद पामभोई ने बताया, चिकित्सा सुविधाओं का आंकलन कर स्वास्थ्य केंद्रों को प्रोत्साहित करने केंद्र सरकार की ओर से प्रत्येक वर्ष इस योजना के तहत विभिन्न श्रेणियों में पुरस्कार दिया जाता है।विशेषज्ञों की टीमें अस्पताल आकर 200 बिंदुओं पर मूल्यांकन करती है। उन्होंने बताया 70 फीसदी से ऊपर अंक प्राप्त करने वाले अस्पतालों को विभिन्न श्रेणियों में सम्मानित किया जाता है।प्रथम श्रेणी में जिला अस्पताल स्तर पर मुंगेली जिला अस्पताल को 86.8 प्रतिशत तो रायपुर जिला अस्पताल को 85.9 प्रतिशत अंक प्राप्त हुए हैं।कायाकल्प के द्वितीय श्रेणी के पुरस्कारों में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (ग्रामीण) स्तर पर प्रथम स्थान मुंगेली जिले के लोरमी सीएचसी को 87.7 प्रतिशत अंकों के साथ , द्वितीय स्थान पर दुर्ग के पाटन सीएचएसी ने 86.8 प्रतिशत अंक और रायपुर के शहरी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र श्रेणी में सीएचसी गुढियारी ने 73.6 प्रतिशत अंकों के साथ प्रथम स्थान प्राप्त किया।
तृतीय श्रेणी के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र स्तर पर शहरी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र हीरापुर को प्रथम व बिलासपुर के शहरी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र बंधवापारा को 92.31 प्रतिशत के साथ पुरस्कार मिल रहा है।कायाकल्प के चौथे श्रेणी में जिला स्तर पर प्राथमिक स्वस्थ्य केंद्रों में मंदिर हसौद पीएचसी को 98.3 प्रतिशत, धमतरी के चटौद को 90.0 प्रतिशत, महासमुंद के पटेवा को 86.9 प्रतिशत, राजनांदगांव के दो पीएचसी रामटोला व सरगी को 94.17 प्रतिशत, कर्वधा के कुंडा को 87.8 प्रतिशत,गरियाबंद के कोपरा पीएचसी को 81.1 प्रतिशत, बलौदाबाजार के गोपालपुर पीएचसी को 94.4 प्रतिशत, बेमेतरा के देवरबीजा पीएचसी को 85.8 प्रतिशत, बिलासपुर के नवागांव सकला को 92.50 प्रतिशत व कोटमी पीएचसी को 92.50 प्रतिशत, मुंगेली के पंडेरभांठा को 99.4 प्रतिशत, कोरबा के तुमान को 90 प्रतिशत, रायगढ के बेडवान को 80 प्रतिशत, जांजगीर के राहौद को 85.3 प्रतिशत, बस्तर के अडावल को 80.3 प्रतिशत, कोंडागांव के अडेंगा को 95 प्रतिशत, कांकेर के बसंवाही को 87.8 प्रतिशत, नारायणपुर के बेनुर को 86.1 प्रतिशत, बलरामपुर के जामवंतपुर को 90.3 प्रतिशत, सरगुजा के अजबनगर को 89.7 प्रतिशत, कोरिया के हल्दीबाड़ी को 82.8 प्रतिशत, जशपुर के भेलवान को 90.8 प्रतिशत, दंतेवाड़ा के पोटाली को 78.9 प्रतिशत अंक के साथ विजेता घोषित किए गए हैं। पांचवी श्रेणी में उपस्वास्थ्य केंद्र स्तर पर मुंगेली जिले के टेमरी को 95 प्रतिशत के साथ प्रथम स्थान और रायपुर के चंडी व कटिया को पुरस्कार मिलेंगे।
आज दोपहर को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने वर्चुअल रुप से पुरस्कार देने की घोषणा की है। राज्य स्तरीय कायाकल्प अवार्ड को जिला अस्पताल, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, शहरी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र व उपस्वास्थ्य केंद्र स्तर में बेहतर चिकित्सकीय सुविधा, साफ-सफाई के लिए कायाकल्प के तहत प्रशस्ति अवार्ड के लिए चुना गया है।राज्य स्तर पर स्वास्थ्य विभाग द्वारा कायाकल्प अवार्ड समारोह आगामी मार्च महीने में आयोजन कर पुरस्कारों के साथ इनाम की राशि प्रदान करेगी। कायाकल्प अवार्ड 2019-20 के अंतर्गत 10 जिला अस्पतालों, 31 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों, एक शहरी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, 153 प्राथमिक स्वास्थ्य केद्रों, 12 शहरी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों एवं 67 उपस्वास्थ्य केंद्रों (हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर) को 70 फीसदी से अधिक अंक हासिल करने पर विजेता के रुप में चयन किया गया है। - 20 चैम्पियन जुड़ेंगे टीबी को हराने अभियान में 1 से 31 जनवरी 2021 तक
दुर्ग : टीबी मुक्त छत्तीसगढ़ बनाने के लिए जिले में तीन चरणों में टीबी रोगी खोज अभियान 1 से 31 जनवरी 2021 तक चलाया जाएगा। इस अभियान के तहत शहरी क्षेत्रों में उच्च जोखिम क्षेत्र में कच्ची बस्ती, जिला कारागृह, वृद्धा आश्रम, निर्माणाधीन श्रमिक, रेन बसेरा, एड्स मरीज, छात्रावास, अनाथ आश्रम और ग्रामीण क्षेत्रों में उच्च जोखिम क्षेत्र खदान, क्रेशर, घनी आबादी, दूर-दराज के क्षेत्र, टीबी के पूर्व रोगी एवं कुपोषित क्षेत्र में घर-घर सर्वे होगा। अभियान में पहली बार 20 टीबी चैम्पियन को भी जोड़ा जाएगा जिन्होंने टीबी को हराकर पूरी अब स्वस्थ्य जीवन व्यतीत कर रहे हैं।
जिला क्षय रोग अधिकारी डॉ. अनिल कुमार शुक्ला के नेतृत्व में टीबी रोगी की खोज के लिए जांच कर शतप्रतिशत नोटिफिकेशन की जाएगी। जांच में टीबी के लक्षण मिलने पर बलगम के साथ-साथ कोरोना की जांच की जाएगी। उन्होंने बताया अभियान के तहत लोगों को सावधानियाँ बताते हुए जागरूक किया जाएगा। इस अभियान में टीबी के साथ एड्स के रोगियों की भी पहचान की जाएगी। जिले की शहरी मलिन बस्तियों में घर-घर जाकर, खदान, औद्योगिक इकाइयों के श्रमिकों के लिए टीबी खोज अभियान का कार्ययोजना तैयार करने आगामी 4 जनवरी को जिला स्तरीय बैठक आयोजित किया जाएगा।
राज्य क्षय अधिकारी द्वारा वीडियो कान्फ्रेंस में 28 दिसम्बर को निर्देश दिया गया है। कलेक्टर डॉ. सर्वेश्वर नरेंद्र भूरे के मार्गदर्शन में टीबी खोज अभियान सम्पूर्ण जिले में चलाने के लिए कार्ययोजना तैयार कर शतप्रतिशत क्षय रोगियों की खोज की जाएगी। खोजी टीम लोगों से अपील करेगा की इस रोग को छिपाएं नहीं उसका इलाज कराएं। इलाज से टीबी की बीमारी पूरी तरह से ठीक हो सकती है। टीम के लिए माइक्रो प्लानिंग कर ब्लॉक, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, गाँव, पारा, जनसंख्या, टार्गेट एरिया, टार्गेटेड जनसंख्या, टीम की मेंबर के नाम की रिपोर्ट तैयार की जाएगी।
सीएमएचओ डॉ गम्भीर सिंह ठाकुर ने बताया, प्रथम चरण 1 जनवरी से शुरु होने जा रहे टीबी खोज अभियान में एक सप्ताह सघन प्रचार-प्रसार किया जाना है। इस अभियान में आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, मितानिन, आरएमए, टीबी चैम्पियन एवं राष्ट्रीय क्षय रोग उन्मूलन कार्यक्रम (एनटीईपी) कर्मचारी की डयूटी लगाई जाएगी।
टीबी के लक्षणों के आधार पर संभावित मरीजों की जांच के लिए 1600 खोजी टीम गठित किया जाना है। टीबी के संदेहास्पद मरीज पाये जाने पर निशुल्क एक्सरे जांच, सेंपल कलेक्शन एवं ट्रांसपोर्टेशन मेकेनिसम का उपयोग करते हुए स्पूटम परीक्षण एवं सीबी नॉट जांच कारवाई जाएगी। जिले में वर्ष 2018 में 3608 टी बी के मरीज थे जबकि वर्ष 2020 में 2886 मरीज पाए गए। टीम द्वारा घर–घर जाकर करीब 12 लाख लोगों की स्क्रीनिंग करेंगी। जबकि गत वर्ष टीबी खोज अभियान में 1043 संदिग्ध लोगों की पहचान कर जांच में 90 टीबी से ग्रसित नए मरीज मिले थे।
उन्होंने बताया जिले के प्रत्येक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र स्तर पर एक एनटीईपी कर्मचारी एवं एक स्वास्थ्य सुपरवाइजर द्वारा अभियान पर्यवेक्षक के रूप में निगरानी करेंगे। अभियान के दौरान संभावित टीबी मरीज का स्पॉट सेंपल लेकर डीएमसी उसी दिन भिजवाने की व्यवस्था की जाएगी| सुबह के खखार के लिए संभावित टीबी के मरीज को स्पूटम कंटेनर एवं रेफरल स्लिप देकर नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र भेजना होगा| इस अभियान में सभी निजी चिकित्सकों, नर्सिंग होम संचालकों, प्रयोगशालाओं में क्षय रोग नियंत्रण कार्यक्रम से जुड़े कर्मचारी संपर्क करने के साथ-साथ क्षय रोगों के बारे में जानकारी हासिल करेंगे। - बेमेतरा : कोरोना टीकाकरण के बाद के प्रतिकूल प्रभाव से निपटने के लिए भी डॉक्टरों की टीम तैयार की जा रही है। एडवर्स इवेंट्स फॉलोइंग इम्यूनाइजेशन ( एईएफआई) के प्रबंधन के लिए केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के दिशा-निर्देशों के अनुसार जिला स्तर पर टीमों का गठन किया जा रहा है।
इसको लेकर जारी गाइडलाइन में कहा गया है कि कोरोना वायरस वैक्सीन से संबंधित दुष्प्रभावों से निपटने की व्यवस्था भी रखनी होगी। कोविड-19 के टीकाकरण के बाद प्रतिकूल घटनाओं से निपटने के लिए सही रिपोर्टिंग और समय पर सूचना देने की व्यवस्था के निर्देश दिए गए हैं। टीकाकरण निगरानी प्रणाली में बूथ स्तर से सूचना तंत्र विकसित किया जा रहा है। इसके लिए एईएफआई कमेटी की बैठक सीएमएचओ कार्यालय में सोमवार को दोपहर एक बजे से रखी गई है।
सीएमएचओ डॉ . एस के शर्मा ने बताया, कोविड-19 महामारी को नियंत्रित करने के लिए टीकाकरण एक प्रभावी माध्यम है। कोविड-19 से बचाव के लिए आगामी महीने से व्यापाक स्तर पर टीके लगाये जाने की संभावनाओं के साथ ही प्रथम चरण की तैयारी की जा रही है।
ऐसे में वैक्सीन का दुष्प्रभाव कुछ लोगों में संभव है। इन वजह से अन्य लोगों में कोई दुष्प्रचार न हो, इसके लिए मजबूत निगरानी और प्रबंधन तंत्र जरूरी है। ताकि, आम लोगों में भ्रम की स्थिति उत्पन्न न हो। टीकाकरण के बाद के प्रतिकूल प्रभाव से निपटने विशेषज्ञ चिकित्सकों की टीम बनाई गई है।
जिले में सरकारी व निजी विशेषज्ञ चिकित्सकों की सेवाएं भी ली जा रही है। जिला स्तरीय एईएफआई कमेटी में सीएमएचओ, जिला टीकाकरण अधिकारी, एमडी मेडीसीन, एमडी स्त्रीरोग व अन्य रोगों के विशेषज्ञों को भी शामिल किया गया है।
टीम के द्वारा टीका लगने के बाद 30 मिनट तक किसी तरह के प्रतिकूल प्रभाव होने पर संबंधित टीका सत्र प्रभारी के माध्यम से सूचना मिलने पर तत्काल एम्बुलेंस की सहायता से जिला अस्पताल में भर्ती कराया जाएगा। विशेषज्ञ चिकित्सकों की टीम द्वारा निगरानी की जाएगी कि वैक्सीन किस वजह से प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा है। इसकी रिपोर्ट स्टेट कार्यालय को भेजी जायेगी।
डॉ. शर्मा ने बताया, “अन्य नियमित टीकाकरण की तरह कोविड-19 टीकाकरण के बाद भी बुखार, सूजन एवं एलर्जी जैसे-छोटे साइड इफेक्ट हो सकते हैं। इसे ध्यान में रखते हुए टीकाकरण सत्रों पर लोगों को किसी भी तरह की आपातकालीन सेवा मुहैया कराने के लिए एम्बुलेंस की भी सुविधा उपलब्ध रहेगी। साथ ही टीकाकरण को लेकर स्वास्थ्य कर्मियों के द्वारा लोगों को जागरूक भी किया जाएगा। ताकि, टीकाकरण को लेकर लोगों के मन में किसी भी तरह की भ्रांति न रहे।“
इंटीग्रेटेड डिजीज सर्विलांस की टीम रहेगी एक्टिव
कोरोना वायरस महामारी से निपटने के लिए जिला व ब्लॉक स्तर पर इंटीग्रेटेड डिजीज सर्विलांस प्रोग्राम (आईडीएसपी) की टीम एक्टिव रहेगी। टीकाकरण स्थल से लेकर कोल्ड चैन सहित महामारी से निपटने के लिए निगरानी में तैनात स्वास्थ्य अमला फील्ड स्तर की रिपार्ट प्रतिदिन सीएमएचओ कार्यालय व नोडल अधिकारी को सौंपेंगे।
कोल्ड चैन पाइंट के नजदीक होगा टीकाकरण स्थल
जिला टीकाकरण अधिकारी डॉ शरद कोहाड़े ने बताया, “कोरोना वायरस को मात देने के लिए प्रथम चरण पर सरकारी व प्राइवेट हेल्थ वर्करों जिनकी तादाद 5,126 को वैक्सीन दी जाएगी। जिले में टीकाकरण के लिए 26 वैक्सीन कोल्ड चैन पाइंट बनाए गए हैं। ऐसे स्कूल व सार्वजिनक भवनों को टीकाकरण स्थल बनाया जाएगा जहां से कोल्ड चैन पाइंट नजदीक हो।
कलेक्टर ने टीकाकरण स्थल के चयन को लेकर ब्लॉक चिकित्सा अधिकारियों को निर्देश दिए हैं। सोमवार से कलेक्टर द्वारा कोल्ड चैन पाइंट और टीकाकरण स्थल का निरीक्षण करने के लिए जिले में दौरा किया जाएगा। टीकाकरण की तैयारियों में वैक्सीन का टेम्प्रेचर मैंनटेन करने से लेकर टीकाकरण सत्र के लिए 5 सदस्यीय टीम और पर्याप्त कमरों वाले भवनों को प्राथमिकता में रखा जाएगा।
ताकि तीन कमरों वाले टीकाकरण स्थल में जांच कक्ष, वेटिंग कक्ष, टीकाकरण कक्ष और बिजली, पानी, पंखे, शौचालय की भी सुविधाएं होनी जरुरी है। हर टीकाकरण स्थल पर 5 सदस्यीय टीम तैनात रहेगी। जिनमें एक वैक्सीनेटर, 2 सपोर्ट स्टाफ, एक सुरक्षाकर्मी और एक कर्मचारी फ्रंटलाइन वर्करों के दस्तावेज वेरिफाई करने के लिए तैनात होगा।
जिला व ब्लॉक स्तर पर बनेंगे कंट्रोल रुम
जिले में कोरोना वैक्सीन लगाने के लिए जिला प्रशासन ने 20 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र , 4 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, एक जिला व सिविल अस्पताल सहित कुल 26 वैक्सीनेशन साइट यानी टीकाकरण स्थल को चिन्हित किया है। प्रथम चरण में इन्हीं साइट्स पर फ्रंटलाइन हेल्थ वर्करों को कोरोना की वैक्सीन दी जाएगी।
इसके अलावा वैक्सीनेशन प्रक्रिया की निगरानी के लिए जिला व ब्लॉक स्तर पर कंट्रोल रूम भी बनाए जाएंगे। सभी ब्लॉकों के ट्रेनिंग ऑफ ट्रेनर को ऑनलाइन ट्रेनिंग दी गयी है इसके लिए जिला नोडल अधिकारी एवं डिप्टी कलेक्टर संदीप ठाकुर के मार्गदर्शन में कोविड-19 के टीकाकरण को लेकर एक कार्यशाला का आयोजित की गयी थी।
कार्यशाला में क्षेत्र के समस्त स्वास्थ्य पर्यवेक्षक, आरएचओ महिला एवं पुरुष एएनएम सम्मिलित हुई । कार्यशाला में जिला टीकाकरण अधिकारी डॉ.शरद कोहाड़े द्वारा कोविड-19 वैक्सीनेशन की जानकारी प्रतिभागियों को पीपीटी के माध्यम से दी गई । - स्वस्थ्य जीवन अपना कर, दे रहे नशा नहीं करने की सीख
मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं को समझना और उनका निराकरण करना वर्तमान समय में बहुत जरूरी है। कोरोनाकाल में हर व्यक्ति मानसिक तनाव और चिंता से गुजर रहा है। इसी को ध्यान में रखते हुए बलौदाबाजार के सभी स्वास्थ्य केन्द्रों में मानसिक स्वास्थ्य सेवाएं लोगों को पहुंचाई जा रही हैं।
जिसमें वह लोग भी शामिल हैं जो मानसिक बीमारी की वजह से अत्याधिक नशा सेवन करते हैं। बेहतर मानसिक इलाज के फलस्वरूप कई लोगों ने नशा सेवन छोड़कर स्वस्थ्य जीवन अपनाया है और अन्य लोगों को भी नशाखोरी नहीं करने की सीख दे रहे हैं।
जिला चिकित्सालय में ऐसे लोगों का इलाज किया जाता है और विशेष काउंसिलिंग कर मानसिक विकारों को दूर करने का प्रयास किया जाता है। ताकि नशा सेवन करने वाले लोग चिकित्सकीय लाभ लेकर नशे से दूर रहकर समाज की मुख्य धारा में शामिल हो सकें।
राज्य सरकार भी अब प्राथमिक और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में तैनात डॉक्टरों को मानसिक बीमारियों और मानसिक रोगियों की पहचान करने तथा ऐसे रोगियों का इलाज सुविधा मुहैय्या कराए जाने का प्रयास कर रही है। सरकारी प्रयास की बदौलत ही जिले के सभी ब्लॉक स्तर पर स्वास्थ्य केन्द्रों में मानसिक रोगियों को परामर्श प्रदान किया जा रहा है।
डॉ. राकेश कुमार प्रेमी मनो चिकित्सक (एनएमएचपी) और कार्यक्रम कंसल्टेंट डॉ. सुजाता पांडेय ने बताया, “जिले में मानसिक रोग को लेकर लोगों में जागरूकता आई है और मानसिक बीमार व्यक्तियों विशेषकर हर तरह की नशा का सेवन करने वाले व्यक्ति इससे लाभान्वित भी हो रहे हैं”।
नशा छोड़कर हर समस्या का मिला समाधान- जिला चिकित्सालय में पूरी तरह नशा सेवन ( शराब एवं अन्य नशा) छोड़ने वाले लोगों ने बताया “नशा करना समस्या का समाधान नहीं है बल्कि नशा नहीं करने से हर समस्या का समाधान मिला”।
तहसील पलारी जिला बलौदाबाजार के रहने वाले 37 वर्षीय शेष नारायण वर्मा बताते हैं “उन्हें इलाज नहीं कराने के पहले भीड़भाड़ ,ज्यादा लोगों के सामने जाने और गाड़ी पर बैठने पर डर लगता था।लेकिन शराब पीकर लोगों के सामने जाने और गाड़ी पर बैठने में नहीं डर लगता था”। इस तरह वह शराब का अत्याधिक सेवन करने के आदी हो गए।उनकी इस आदत ले लोग उन्हें शराबी कहकर उनसे घृणा करने लगे। दो साल पहले जिला चिकित्सालय में उनका इलाज शुरू हुआ और वह पूरी तरह स्वस्थ्य हैं और शराब पीना भी छोड़ दिया है।
इसी तरह 35 वर्षीय उमा शंकर भी हैं, अत्याधिक शराब सेवन से मानसिक रूप से अस्वस्थ्य होने की वजह से चार माह पूर्व ही वह जिला अस्पताल पहुंचे। यहां उनका इलाज अभी चल रहा है लेकिन उन्होंने शराब पूरी तरह से छोड़ दिया है।अब समाज, घर परिवार के अन्य लोगों को नशा नहीं करने और ऐसी परिस्थिति में मानसिक रोगों का इलाज संभव है, इसकी सीख लोगों को दे रहे हैं।
भर्ती कर इलाज की सुविधा जल्द- सीएमएचओ डॉ.खेमलाल सोनवानी ने बताया नशे की लत एक मानसिक बीमारी है। अधिकांश लोग मानसिक समस्याओं से जूझते हुए शराब या अन्य प्रकार के नशे का सेवन करने लगते हैं।आजकल नशे के प्रकार भी बढ़ रहे हैं, और नशे की लत गंभीर मानसिक बीमारी है जिसका इलाज जिला चिकित्सालय में किया जाता है। जल्द ही जिला अस्पताल में भर्ती कर नशे की लत के शिकार ऐसे मरीजों का इलाज भी शुरू किया जाएगा।
स्पर्श क्लिनिक में विशेष इलाज- जिला मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम , बलौदाबाजार के अंतर्गत जिला चिकित्सालय में स्पर्श क्लिनिक संचालित है। जिला नोडल अधिकारी एवं मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ डॉ राकेश कुमार प्रेमी द्वारा नशामुक्ति के लिए नशा सेवन करने वाले लोगों का इलाज किया जा रहा है।अप्रैल 2020 से 23 दिसंबर 2020 तक नशा मुक्त इलाज के क्रम में 53 व्यक्तियों ( शराब सेवन 26, तंबाकू /गुड़ाखू /बीड़ी 27) का इलाज चल रहा, जिसमें से 24 लोग ऐसे हैं जिनके द्वारा किसी प्रकार का नशा सेवन नहीं किया जा रहा है। इन्य 29 लोगों का फॉलोअप के माध्यम से इलाज किया जा रहा है। - बेमेतरा : कोरोना का टीका सबसे पहले कोरोना वॉरियर्स (स्वास्थ्य कर्मचारियों) को लगेगा। जिले में प्राइवेट और सरकारी समेत करीब 5,500 फ्रंटलाइन हेल्थ वर्कर हैं।इसमें जिले के उपस्वास्थ्य केंद्रों से लेकर प्राथमिक, सामुदायिक, जिला अस्पताल, सिविल अस्पताल, आयुर्वेदिक अस्पतालों के स्वास्थ्य विभाग के कर्मी के साथ ही निजी क्षेत्र के स्वास्थ्य कर्मचारी भी शामिल हैं। जिले के स्वास्थ्य कर्मचारियों के डेटा फीडिंग का काम तेजी से जारी है। प्रदेश में सबसे पहले स्वास्थ्य कर्मियों को ही कोरोना की वैक्सीन लगेगी।
जिला टिकाकरण अधिकारी डॉ. शरद कोहाडे़ ने बताया, “निजी और सरकारी अस्पतालों के स्वास्थ्यकर्मियों और अन्य कर्मचारियों की जानकारी एकत्र कर ली गई है। सबसे पहले इन्हीं को टीका लगाया जाएगा।फिलहाल, इनके फोन नंबर सत्यापित करने का काम चल रहा है। इसके लिए जिला स्तर पर इन मोबाइल नंबरों पर बात करके पता किया जा रहा है। “जानकारी के मुताबिक, स्वास्थ्य विभाग ऐसी तैयारी कर रहा है कि कोरोना की वैक्सीन आने के बाद टीकाकरण में कोई परेशानी न आए। बेमेतरा जिले में डीप फ्रिजर व आईस लाइंड रेफ्रीजरेटर की संख्या 48 है। वैक्सीन स्टोर के लिए जनवरी माह में डीप फ्रीजर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों , सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों के लिए भी उपलब्ध कराई जाएगी।टीका लगवाने के लिए स्वास्थ्य विभाग द्वारा भेजा गया एसएमएस या सूचना ही सही मानी जाएगी। साथ ही, जिले के सभी सरकारी अस्पतालों के अलावा प्राथमिक व मीडिल स्कूलों के भवनों को भी कोरोना का टीकाकरण केंद्र बनाया जाएगा। जिससे अस्पतालों में आने वाले रुटीन मरीजों को स्वास्थ्य केंद्रों में भीड़ का सामना नहीं करना पड़ेगा।
सीएमएचओ डॉ. एसके शर्मा ने बताया,“प्रथम चरण में स्वास्थ्य कर्मियों, मितानिन, आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, प्राइवेट अस्पतालों के स्टॉफ व चिकित्सकों की सूची तैयार कर ली गई है। इसके लिए राज्य, जिला व ब्लॉक स्तर पर स्वास्थ्य कर्मियों को ऑनलाइन ट्रेनिंग भी दी गयी है। केंद्रीय और राज्य स्वास्थ्य विभाग के आदेश के बाद जिले में कोरोना के वैक्सीन को सुरक्षित रखने के इंतजाम शुरू कर दिए गए हैं।सरकारी, निजी, मेडिकल कॉलेज और डेंटल के स्वास्थ्य कर्मियों की जानकारी एकत्र कर ली गयी है। टिकाकरण केंद्रों में कोल्ड चेन भी मेंटेन है, जैसे ही वैक्सीन आएगी, टीकाकरण शुरू कर देंगे। टिकाकरण पाइंट में डीप फ्रीजर और आईस लाइंड रेफ्रीजरेटर (आईएलआर फ्रीजर) से वैक्सीन का टेम्प्रेचर मेनटेन करने की व्यवस्था का जायजा भी ले लिया गया है।“
स्वास्थ्य केंद्रों में नियमित टीकाकरण के कार्य प्रभावित न हो इसको ध्यान में रखते हुए कोरोना वैक्सीन के लिए अलग से स्टोर की व्यवस्था की जा रही है। आईस लाइंड रेफ्रीजरेटर में वैक्सीन को 2 से 8 डिग्री सेंटी ग्रेट तापमान पर स्टोर किया जा सकता है। डॉ. शर्मा ने बताया, “वैक्सीन का टिकाकरण सफलता पूर्वक संचालित करने के लिए अंतर विभागीय समन्वय समिति भी कलेक्टर की अध्यक्षता में गठित की गई है।वैक्सीन लगाने के बाद किसी तरह साइड इफेक्ट होने की सूचना मिलने पर स्पेशल टीम द्वारा आपात चिकित्सा उपलब्ध कराने के लिए एम्बुलेंस 24 घंटे अलर्ट पर रहेंगे।“ दूसरे चरण में पुलिस कर्मी और तीसरे में 60 साल से अधिक उम्र के वृद्वों को टीकाकरण का लाभ मिल सकेगा।
टीकाकरण स्थल में एक सत्र में 100 लोगों को लगेगा टीका
सीएमएचओ डॉ. शर्मा ने बताया, कोरोना के टीके को लेकर केंद्र सरकार ने ऑपरेशनल गाइडलाइंस के मुताबिक भारत में कोरोना वैक्सीन आने के बाद एक दिन में 100 लोगों को वैक्सीन दी जाएगी।एक वैक्सीनेशन साइट पर एक सत्र (यानी एक दिन) में अधिकतम 100 लाभार्थियों को वैक्सीन देने की उम्मीद है। लेकिन अगर किसी वैक्सीनेशन साइट पर पर्याप्त लॉजिस्टिक और वेटिंग रूम, ऑब्जरवेशन रूम के साथ क्राउड मैनेजमेंट की सुविधा भी है, तो एक और वैक्सीनेटर ऑफिसर जोड़कर एक दिन में 200 लोगों को कोरोना का टीका दिया जा सकता है।इस लिहाज से पर्याप्त लॉजिस्टिक और वेटिंग रूम की सुविधा न होने पर एक दिन में एक सेंटर पर केवल 100 लोगों की कोरोना का टीका दिया जाएगा। सरकार ने स्पष्ट किया कि वायरस संक्रमण के कारण, केवल 13-14 लोगों को एक घंटे में और एक दिन में 100 लोगों को टीका लगाया जाएगा। प्रत्येक टीकाकरण स्थल में पांच टीकाकरण अधिकारी होंगे, जिनमें एक सुरक्षा गार्ड भी होगा , और तीन कमरे होंगे – एक प्रतीक्षा के लिए, दूसरा टीकाकरण के लिए और तीसरा अवलोकन के लिए – टीकाकरण क्व दौरान 6 फीट की सामाजिक दूरी बनाए रखना आवश्यक होगा।डॉ. शर्मा ने बताया, टीकाकरण की प्रक्रिया में वेटिंग हॉल में बैठने की सुविधा रहेगी। टीकाकरण हॉल में संबंधित व्यक्ति के आधारकार्ड व पहचान पत्र की ऑनलाइन पोर्टल से मिलान किया जा सकेगा। वैक्सीन लेने से पहले स्वास्थ्य ठीक होना जरुरी होगा। वैक्सीन लगने के बाद अवलोकन कक्ष में 30 मिनट तक निगरानी की जाएगी। किसी तरह के साइड इफेक्ट होने पर एम्बुलेंस से सीधे अस्पताल में भर्ती कराया जाएगा। - जशपुर में आत्महत्या का दर को कम करने का प्रयास
जशपुर : जिले में आत्महत्या दर को काम करने के लिए `लक्ष्य’ कार्यक्रम शुरू किया गया है जिसके अंतर्गत मानसिक रोगियों की निशुल्क जांच और उपचार किया जाएगा|
मानसिक रोग आत्महत्या की एक बड़ी वजह होती है| तनावग्रस्त व्यक्ति अक्सर तनाव से निपटने के लिए कई बार आत्महत्या की राह चुन लेता है या फिर मानसिक रोग का उपचार न होने के कारण रोगी अपनी जान लेता है| मानसिक रोगों से जुड़ी गलत धारणाओं की वजह से परिवार ऐसे रोगों को छिपाते है|
जिला कलेक्टर महादेव कवरे की अध्यक्षता में जशपुर जिले में शत प्रति मानसिक रोगियों की जांच और उपचार के लक्ष्य के साथ यह कार्यक्रम चलाया जा रहा है| आत्महत्या दर को 2022 तक 15 प्रति लाख और जिले में 42 स्पर्श क्लिनिक शुरू करवाना इस कार्यक्रम का लक्ष्य है।
बीते 6 महीने में जशपुर जिले में 105 लोगों ने आत्महत्या की है और 219 लोगों ने आत्महत्या का प्रयास किया है। जिला मानसिक चिकित्सा के नोडल अधिकारी डॉ. कांशीराम खुसरो बताते हैं: “आत्महत्या के मामले में जिले की दर 24.85 व्यक्ति प्रति लाख है जो राष्ट्रीय आत्महत्या के दर से बहुत ज्यादा है।‘’
नैशनल क्राइम रेकॉर्ड्स ब्युरो की 2019 की रिपोर्ट के अनुसार भारत में आत्महत्या दर 10.4 प्रति लाख है|
डॉ. खुसरो कहते हैं आत्महत्या की दर को 2022 तक 15 व्यक्ति प्रति लाख तक करने का हमारा लक्ष्य है। इसके लिए सरकार द्वारा मानसिक रोगियों को मिलने वाली सुविधाएं देना, मानसिक विकलांक का सर्टिफिकेट देना प्राथमिकता है।
निमहान्स बेंगलुरु के डॉ गोपी और उनके स्टाफ की मदद से छत्तीसगढ़ कम्युनिटी मेन्टल केअर प्रोग्राम "CHaMP" चलाया जा रहा है जिसमें 72 डॉक्टर्स और 46 आरएमए प्रशिक्षित होकर सभी मानसिक रोगियों की पहचान, जांच, उपचार और रेफर का काम करेंगे।
गेटकीपर की ट्रेनिंग शुरू कर चुके हैंगेटकीपर यानी समाज के वह लोग जो अपने आसपास ऐसे लोगों की पहचान कर सकें कि उनमें आत्मघाती कदम के लक्षण दिखे तो मानसिक स्वास्थ्य केंद्र को सूचना दें और उस व्यक्ति को मानसिक स्वास्थ्य का लाभ लेने के लिए प्रेरित करे। इन गेटकीपर्स को बकायदा स्वास्थ्य विभाग द्वारा ट्रेनिंग दी जा रही है। इसके साथ ही 17-18 दिसंबर से नैशनल इंस्टिट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एण्ड अलीड स्कीनकेस (निम्हास- बेंगलुरू) द्वारा डॉक्टर और आऱएमए के लिए मानसिक रोगियों की पहचान करने के लिए ट्रैनिंग आयोजित की गई|
42 स्पर्श क्लिनिक खोलने का भी है लक्ष्यविभाग के कार्यकर्ता फील्ड में जाकर लोगों को मानसिक तनाव के बारे में बताते हैं| विभाग स्पर्श क्लीनिक और डि-एडीक्शन सेंटर भी चलाते हैं। पूरे जिले में 8 सीएससी 34 पीएससी हैं और सभी जगह यानी 42 जगहों पर स्पर्श क्लीनिक खोलने की योजना है। कोरोना काल में डिप्रेशन, एनजायटी टेंशन के मामले बढ़ें हैं। ड्रग इन्ड्यूसड डिप्रेशन के मामले सबसे ज्यादा आ रहे हैं, डाक्टर खुसरो ने बताया।
कोविड में ज्यादा डरे हैं लोगकोविड के दौरान ने 275 लोगों को होम आइसोलेशन के मरीजों को टेलीफोन द्वारा काउंसिलिंग की गई है। 5-6 केस रोज आ रहे हैं। कोविड पॉजिटिव होने के बाद कई लोग डरे हुए हैं और उन्हें यह लगता था कि उन्हें यह जानलेवा बीमारी हो गई है तो उनका पूरा परिवार खत्म हो जाएगा। ऐसे लोगों को अवसाद से बचाने के लिए काउंसिलिंग कारगर साबित होती है|
- 2.37 लाख बच्चों तक स्वास्थ्य विभाग ने अपनी पहुंच बनाई बस्तर विकासखण्ड में सर्वाधिक 99% बच्चों को लगा वैक्सीन।
जगदलपुर : जापानी बुखार से बचाव के लिये जेई टीकाकरण अभियान की अवधि 1 अतिरिक्त दिन के लिये बढ़ा दी गयी है। पहले जेई टीकाकरण अभियान 23 नवम्बर से 18 दिसम्बर तक मनाया जाना था, लेकिन 18 दिसम्बर को गुरु घासीदास जयंती के राजकीय अवकाश के कारण अब यह 19 दिसम्बर तक कर दी गयी है।
इस टीकाकरण अभियान का मुख्य उद्देश्य 1 से 15 वर्ष के बच्चों को जेई के टीके लगाकर मस्तिष्क ज्वर से सुरक्षित करना है । 23 नवम्बर को प्रारंभ हुआ यह अभियान अब अंतिम पड़ाव की ओर है और इसके तहत बस्तर जिले में 16 दिसम्बर तक 93 प्रतिशत बच्चों को जेई के टीके लग चुके है।
विभाग द्वारा दी गयी जानकारी के अनुसार बस्तर जिले के कुल 2.55 लाख बच्चों को जेई के टीके लगाए जाने है जिनमे 2.37 लाख बच्चों को टीके लगाए जा चुके हैं। अब केवल 17,677 बचे हुए बच्चे जिनमें बस्तर ब्लॉक के 799, बकावण्ड के 794,बड़े किलेपाल के 670, लोहण्डीगुड़ा के 873, दरभा के 1544, नानगुर के 3984, तोकापाल के 4243, जगदलपुर शहर के 4770, बच्चों को जापानी इंसेफेलाइटिस के टीके लगेंगे।
जैपनीज इंसेफ्लाइटिस टीकाकरण की शुरुआत प्रदेश में 4 वर्ष पूर्व सुकमा जिले से की गई थी । भारत सरकार के दिशा निर्देश के अनुरूप छत्तीसगढ़ के अन्य 5 जिले में भी यह टीकाकरण अभियान चलाया जा रहा है ।
27 दिनों तक चलने वाले इस इस अभियान में बस्तर ब्लॉक की स्थिति सबसे अच्छी है जहाँ 99% तक लक्ष्य की प्राप्ति हो चुकी है। इसके अतिरिक्त बकावंड ब्लॉक में 98%, लोहंडीगुड़ा 97%,बड़े किलेपाल 96%, दरभा 92 % तोकापाल में 84% , नानगुर में 89% ,जगदलपुर में 87% ,बच्चों तक स्वास्थ्य विभाग की टीम ने अपनी पहुँच बनाई।
जैपनीज इंसेफ्लाइटिस टीकाकरण अभियान की जानकारी देते हुए मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. आर.के.चतुर्वेदी ने कहा बच्चे को मस्तिष्क ज्वर से बचाने के लिए उनका टीकाकरण कराना विभाग के साथ-साथ माता पिता की भी जिम्मेदारी है । अब 1 दिन शेष रह गए है ऐसे में टीके से छूटे हुए अपने बच्चों का टीकाकरण करवाना सुनिश्चित करें और इस अभियान को शत प्रतिशत सफल करने में सहयोग करें। इस अभियान में कोरोना संक्रमण से बचाव का भी ध्यान रखा जा रहा है। टीकाकरण के लिए बच्चों के बीच सोशल डिस्टेनसिंग रखने, टीकाकरण के दौरान मास्क, ग्लव्स का प्रयोग करने आदि का विशेष तौर से ध्यान रखने के निर्देश दिये गये है।
जिला टीकाकरण अधिकारी डॉ. सी.आर.मैत्री ने जानकारी देते हुए बताया, अब तक के आंकडों के अनुसार यह अभियान बेहतर स्थिति में दिख रहा है|, इन्सेफेलाइटिस को जापानी बुखार के नाम से भी जाना जाता है| यह एक प्रकार का दिमागी बुखार है जो वायरल संक्रमण के कारण होता है| यह संक्रमण ज्यादा गंदगी वाली जगह पर पनपता है और क्यूलेक्स मच्छर के काटने से होता है। जापानी इन्सेफेलाइटिस में बुखार होने पर बच्चे की सोचने, समझने, और सुनने की क्षमता प्रभावित हो जाती है. तेज बुखार के साथ बार- बार उल्टी होती है। प्रायः यह वायरस 1 से 15 साल की उम्र के बच्चों को अपनी चपेट में लेता है, डाक्टर मैत्री ने बताया । - 17 जनवरी से 19 जनवरी 2021 के बीच होगा आयोजित
कलेक्टर ने ली टास्क फोर्स की बैठक
अभियान में प्रत्येक बच्चे को किया जाएगा कवर
विगत दिनों में कलेक्टोरेट में पल्स पोलियो अभियान को सफल बनाने के लियें ज़िला टास्क फोर्स की बैठक ली गयी । बैठक में स्वास्थ्य विभाग, महिला एवं बाल विकास विभाग, शिक्षा विभाग एवं अन्य विभागों के अधिकारी-कर्मचारी उपस्थित रहे । बैठक में बताया कि इस बार पल्स पोलियो अभियान 17 जनवरी से 19 जनवरी 2021 के बीच आयोजित किया जायेगा ।
पल्स पोलियो अभियान के अंर्तगत शून्य से पांच वर्ष तक के बच्चों को दो बूंद जिंदगी की यानी पोलियो की दवा पिलाई जाएगी। इसके लिए माइक्रो प्लान तैयार किया जा रहा है। जिसके तहत टीकाकरण केंद्रों में 17 जनवरी को बूथ परएवं 18 तथा 19 जनवरी को घर-घर जाकर छूटे हुए बच्चो को पोलियो की खुराक पिलाई जाएगी। ताकि कोई भी बच्चा दवा पीने से वंचित न रहे।
आयोजित होने वाले पल्स पोलियो अभियान की जानकारी देते हुए ज़िला टीकाकरण अधिकारी डॉ.अनिल परसाई ने बताया, “इस बार जिले में लगभग 3.50 लाख से अधिक बच्चों को लाभान्वित किया जाएगा।जिलेमें 1,370 से अधिक बूथ बनाए जाएंगे जिसमें प्रत्येक बूथ पर 4सदस्यों की टीम रहेगी । इस टीम द्वारा बच्चों को पोलियो रोधी दवा पिलाई जाएगी और 18 और 19 जनवरी को किसी कारणवश पोलियो की दवा पीने से छूटे बच्चों को घर-घर जाकर पल्स पोलियो टीम द्वारा पोलियोरोधीदवापिलाई जायेगी ।“
पल्स पोलियो अभियान के बारें में अभी से प्रचार-प्रसार की गतिविधियों को तेज करने के निर्देश दिए गए हैं। इसके लिए लोगों को शार्ट मैसेज सर्विस (एसएमएस) के माध्यम से जानकारी उपलब्ध कराई जाऐगी। साथ ही दीवार लेखन, बैनर, पोस्टर्स का प्रयोग कर जागरुकता बढाने का काम होगा। अभियान को सुचारू रूप से संचालित करने केलिए बूथ संचालित होंगे, जहां दो पृथक कक्ष एवं शौचालय इस कार्य के लिए आरक्षित रखे जायेंगे।
डॉ. परसाई ने कहा “पल्स पोलियो अभियान को सफल करने के लियेंमहिला एवं बाल विकास विभाग के आंगनबाड़ी केन्द्रों को भी संचालित किए जाने के लिए कहा गया है।विशेष रुपसे हाई रिस्क एरिया जैसे रेलवे बस्ती, घुमन्तु परिवार, ईंट भट्ठा, अर्बन स्लम आदि का चिन्हांकन किया जाएगा एवं ऐसे क्षेत्रों में पल्स पोलियो अभियान के लक्षित बच्चों तक पहुँच बनाकर उनको पोलियो की दवा दी जायेगी ताकि कोई बच्चा ना छूटे एवं सभी चिन्हांकित पोलियो बूथ पर पोलियों की दवा निर्धारित समय पर पिलाई जाएगी। - शारीरिक या मानसिक आघात की चाइल्ड लाइन को 1098 पर दें सूचना
बच्चों को दें 'गुड टच व बैड टच' की जानकारी, बचाएं उन्हें शोषण से
कोरोना संकटकाल में उनके संपूर्ण स्वास्थ्य की सुरक्षा पर जोर
कोरोना संक्रमण के संकटकाल का व्यापक असर बच्चों के शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ा है. लॉकडाउन के कारण लगातार घर में रहने व स्कूलों व कोचिंग संस्थानों के नियमित नहीं खुलने के कारण उनकी दिनचर्या पर असर पड़ा है. उनके जीवनशैली में अचानक हुए इस बदलाव के कारण उनका मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित हुआ है. ऐसे में बच्चों में कई नकारात्मक सोच उभरने की आशंका भी बढ़ी है. इस परिस्थिति में उन्हें भावनात्मक मदद मिलनी जरूरी है अन्यथा वह किसी बड़े शारीरिक व मानसिक आघात का शिकार हो सकते हैं. बच्चों को इस संकट से उबारने के लिए 'दी ब्लू ब्रिगेड', ‘राष्ट्रीय सेवा योजना’ एवं ‘यूनिसेफ’ ने मिलकर लोगों को इसके प्रति जागरूक करने व उन्हें बच्चों के प्रति उनकी नैतिक जिम्मेदारियों के प्रति सजग बनाने के उद्देश्य से एक मार्गदर्शिका जारी की है.
मार्गदर्शिका के अनुसार बच्चों के साथ किसी प्रकार की भी ऐसी घटना जिसमें शारीरिक शोषण, बच्चें की पिटाई, किसी वस्तु से चोट पहुंचाना, घर से निकालना, काटना, जलाना या ज्यादा ही सख्ती से पेश आना, उपयुक्त भोजन एवं सुरक्षा प्रदान नहीं करना, अपमानित करना, अनुचित भाषा का प्रयोग करना, यौन शोषण करना व उपेक्षा करना आदि शामिल हों, इसकी सूचना चाइल्ड लाइन को 1098 पर कॉल कर देनी है.
आवश्यक टीकाकरण को भी दी गयी है तरजीह :
कोविड 19 संक्रमण के असर के मद्देनजर बच्चों के आवश्यक टीकाकरण को भी तरजीह दी गयी है. बच्चों को आंगनबाड़ी केंद्र, जिला अस्पताल सहित सामुदायिक व प्राथमिक व उप स्वास्थ्य केंद्रों पर जाकर टीकाकरण जरूर दिलाया जाना चाहिए. बच्चों को दिये जाने वाले टीकाकरण में विशेषतौर पर हेपेटाइटिस बी, काली खांसी, टीबी, हिब इंफेक्शन, दिमागी बुखार, पोलियो, खसरा व रूबेला, डिप्थेरिया व टिटनेस शामिल हैं. ये टीकाकरण बच्चों को जानलेवा बीमारियों से रक्षा करने के साथ उनके रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत बनाने का काम करती हैं.
गर्भस्थ शिशु का भी रखा गया है पूरी तरह ध्यान :
मार्गदर्शिकामें कोविड 19 संकटकाल में गर्भस्थ शिशु के भी स्वास्थ्य का संपूर्ण ध्यान रखते हुए गर्भवती महिलाओं से प्रसव के लिए सरकारी या निजी स्वास्थ्य केंद्रों का चयन करने के लिए कहा गया है. इस बात पर बल दिया गया है कि स्वास्थ्य केंद्र में प्रसव के क्या फायदे हैं और इसकी तैयारी किस प्रकार होनी चाहिए. साथ ही जननी सुरक्षा योजना, प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना तथा भगिनी प्रसूति सहायता योजना आदि की भी जानकारी दी गयी है. गर्भवती महिलाओं में कोविड 19 के भय को दूर करने, तथा गर्भवती को आंगनबाड़ी कार्यकर्ता व आशा या नर्स से मिलवाना व सरपंच या पंचायत प्रतिनिधियों से सहयोग दिलावाने के लिए लोगों से अपील की गयी है.
'गुड टच, बैड टच' व्यवहार के प्रति भी जागरूकता :
जारी मार्गदर्शिका में बच्चों को शारीरिक स्पर्श के बारे में भी सजग व जागरूक बनाने के लिए कहा गया है. बच्चों को यह बताने की अपील की गयी है कि यदि कोई उन्हें अनुचित ढंग से छुए तो उसे रोकें और मदद के लिए जोर से चिल्लाए. ऐसे व्यवहार जिनमें वे स्वयं को सहज महसूस नहीं करते उन्हें बैड टच के रूप में देखा जाता है. पैर के बीच, नितंब व जांघों के बीच, छाती व चेहरा को छूना या ऐसे कोई भी स्पर्श जिससे बच्चा असहज होता है बैड टच की श्रेणी में आता है. ऐसी बातों को मां, पिता, दादा दादी व शिक्षक आदि से बताने के लिए कहा गया है.
कोविड के दौरान घर पर ही सीखने की प्रक्रिया पर बल :
कोविड के दौरान इस बात पर जोर दिया गया है कि बच्चों के घर पर सीखना जारी रहे. कोविड-19के कारण बच्चों के सामने शिक्षा को लेकर कई चुनौतियां हैं. ऐसी चुनौतियों के बीच बच्चे घर पर रहते हुए सीखना जारी रखें. स्वयं को सीखने की प्रक्रिया में व्यस्त रख इस महामारी में तनाव से निपटन में मदद मिलेगी. सीखने की प्रक्रिया में उनके भाई बहन, माता पिता, या चाचा चाची अपनी जिम्मेदारी निभा सकते हैं. उनके साथ पंसदीदा कहानियां पढ़ने या खेलने सहित अन्य रचनात्मक कार्य में मदद कर सकते हैं. - छह टोल प्लाज़ा पर हुई शुरुआत, सात दिनों तक चलेगा अभियान
स्वास्थ्य विभाग और परिवहन प्राधिकरण के संयुक्त तत्वाधान में भारी वाहन जैसे बस, ट्रक और डंपर चलाने वाले 45 साल से अधिक उम्र के ड्राइवरों की आंखों की जांच के लिए सात दिवसीय नेत्र परीक्षण अभियान चलाया जा रहा है जिसकी शुरुआत प्रदेश के छह टोल प्लाज़ा से की गई जहॉ प्रथम दिवस पर 473 ड्राइवरों का नेत्र परीक्षण किया गया है ।
इस नेत्र परीक्षण अभियान का उद्देश्य ड्राइवरों की आंखों की जांचकर उन्हें उचित चिकित्सकीय परामर्श देने के साथ साथ उचित मार्गदर्शन भी देना है ताकि सड़क दुर्घटनाओं में कमी लायी जा सके।
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन छत्तीसगढ़ की मिशन संचालक डॉ प्रियंका शुक्ला के मार्गदर्शन में आज इन नेत्र परीक्षण शिविरों का आयोजन टोल प्लाज़ा आरंग,सिमगा,झलप,राजनंदगॉव,बालौद एवं बिलासपुर में किया गया।
राज्य अंधत्व निवारण नियंत्रण समिति एवं राज्य कार्यक्रम अधिकारी डॉ.सुभाष मिश्रा ने बताया,परिवार के भरण-पोषण की खातिर वाहन चालक दिन और रात में लंबी दूरी तक वाहन चलाने के लिए मजबूर हैं। विभाग में वाहन चालकों के लिए आंखों की जांच से लेकर किसी भी बीमारी का इलाज कराने की सुविधा उपलब्ध है। इसके बावजूद अधिकांश वाहन चालक इन सुविधाओं का लाभ नहीं ले पाते हैं। इसलिए इन लोगों को स्वास्थ्य विभाग द्वारा प्रदान की जाने वाली स्वास्थ्य सेवाओं के बारे में जागरूकता लाने के लिए भी यह शिविर लगाये जा रहेहै। इस दौरान वाहन चालकों के हेल्थ चैकअप में मुख्य तौर पर आंखों की जांच गई ।
उन्होनें कहा भारी वाहन चालकों की आंखों की हर माह जांच होनी चाहिए । साथ ही वाहन मालिक की भी जिम्मेदारी है कि वह अपने वाहन चालकों की नियमित रूप से आंखों की जांच कराएं। ताकि रात और सुबह होने वाले सड़क हादसों को कम किया जा सके ।
डॉ. मिश्रा ने कहा नेत्र विशेषज्ञों के द्वारा चालकों को आवश्यक परामर्श भी दिया गया है । चालकों को सलाह दी गई कि वह नेत्र समस्या को लेकर किसी भी प्रकार की लापरवाही न बरतें। यदि कहीं कोई समस्या हो तो तत्काल चिकित्सकों से संपर्क करें। बिना किसी नेत्र विशेषज्ञ की सलाह के आंखों में दवाओं का प्रयोग न करें ।
क्यों जरुरी है नेत्र जांच
उम्र बढ़ने के साथ साथ हमारी दृष्टि भी कमज़ोर होती जाती है40 वर्ष की आयु पार करने के बाद, करीब की वस्तुओं पर फोकस करना कठिन हो जाता है । इसलिए समय समय पर नेत्र चिकित्सक से जांच कराना आवश्यक होता है| नेत्र परिक्षण के दौरान नेत्र चिकित्सक से अपनी आंखों और दृष्टि के बारे में सभी परेशानियों पर चर्चा करें । उन्हें अपने परिवार में आंखों की समस्याओं के किसी भी इतिहास के बारे में भी जरूर बताएं|
इन सब समस्याओं का समय पर पता चलने से दृष्टि में आने वाली परेशानी को कम या खत्म किया जा सकता है । -
19 नवंबर को महिलाओं के लियें स्पेशल ‘दाई-दीदी क्लीनिक’ की हुई है शुरूआत
रायपुर : विशेष रूप से महिलाओं को समर्पित ‘दाई-दीदी क्लीनिक’ के अंतर्गत संचालित मोबाईल क्लीनिक के द्वारा आज गुढ़ियारी के पहाड़ी चौक में शिविर लगाया गया जिसमें21 किशोरी बालिकाओं और 42 महिलाओं की जांच की गई । इस अवसर पर रामकृष्ण परमहंस वार्ड के पार्षद श्रीकुमार मैनन, दानवीर भामाशाह वार्ड के पार्षद सुंदरलाल जोगी भी उपस्थित थे ।साथ ही क्षेत्र की आंगनवाड़ी कार्यकर्ता एवं सहायिकाएवं मितानिन मौजूद रहीं ।‘दाई-दीदी क्लीनिक’ में कुल 63 लोगों की जांच की गई ।जिसमें 38 महिलाओं का शुगर टेस्ट एल्ब्यूमिन और ब्ल्ड प्रेशर टेस्ट भी किया गया 1 महिला का ईसीजी भी किया गया था ।
महिला एवं बाल विकास विभाग की पर्यावेक्षक रीता चौधरी ने बताया, दाई-दीदी क्लीनिक गाड़ियों की शुरुआत मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने 19 नवम्बर को पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की जयंती पर किया था । यह स्पेशल महिला मेडिकल मोबाइल क्लीनिक देश में अपनी तरह की पहली अनूठी क्लीनिक है इसमें केवल महिला मरीजों को ही निःशुल्क इलाज की सुविधा है ।विभाग द्वारा आज गुढ़ियारी के पहाड़ी चौक में शिविर लगाकर 21 किशोरी बालिकाओं और 42 महिलाओं की जांच कराई गई ।जिसमें कोविड-19 के दिशा निर्देशों का पालन भी किया गया है ।
मातारानी चौक निवासी सावित्री यादव 63 वर्षीय ने बताया,फास्टिंग और खाना खाने के उपरांत मेरी यहॉ शुगर की जांच की गई । उसके बाद मुझे दवाइयों का वितरण किया गया । साथ ही मेरे बीपी (रक्तचाप )की जांच भी की गई । दाई-दीदी क्लीनिक मोबाइल वाहन से बहुत सारी समस्याओं का घर बैठे ही निराकरण हो गया ।
शुक्रवारी बाजार निवासी 18 वर्षीय अमेरिका साहू कहती हैं, दाई दीदी क्लीनिक वाहन विशेषकर किशोरी बालिकाओं और नव युवतियों के लिए बहुत अच्छी शुरुआत है । इसके अंदर जो पूरा स्टाफ कार्य कर रहा है वह महिलाएं हैं । जिसके कारण हम कोई भी परामर्श बिना झिझक के ले सकते हैं मैंने भी अपने आंतरिक समस्याओं की चर्चा खुलकर की और यहां से उन समस्याओं के निराकरण का परामर्श भी मिला और महत्वपूर्ण जानकारियां भी प्राप्त हुई ।
केवल महिला मरीजों को ही मिलेगा निःशुल्क इलाज
क्लीनिक की गाड़ियों में केवल महिला मरीजों को ही निःशुल्क इलाज की सुविधा उपलब्ध है । दाई-दीदी क्लीनिक गाड़ियों में केवल महिला स्टाफ और महिला डॉक्टर, महिला लैब टेक्नीशियन के साथ महिला एएनएम ही कार्यरत हैं।
रायपुर, भिलाई एवं बिलासपुर में हुई है शुरूआत
इस क्लीनिक के शुरू होने से महिला श्रमिकों एवं स्लम क्षेत्रों में निवासरत महिलाओं एवं बच्चियों को अपने घर के निकट ही महिला डॉक्टरों के माध्यम से इलाज की सुविधा मिलेगी। इस क्लीनिक का संचालन मुख्यमंत्री शहरी स्लम स्वास्थ्य योजना के अंतर्गत किया जाएगा। वर्तमान में प्रदेश के तीन बड़े नगर पालिक निगम रायपुर, भिलाई एवं बिलासपुर में महिलाओं के लिए एक-एक दाई-दीदी क्लीनिक शुरू की जा रही है।
मिलेंगी विशेष जांच सुविधाएं
इस क्लीनिक में महिलाओं के प्राथमिक उपचार के साथ-साथ महिला चिकित्सक द्वारा स्तन कैंसर की जांच, हितग्राहियों को स्व स्तन जांच का प्रशिक्षण, गर्भवती महिलाओं की नियमित एवं विशेष जांच आदि की अतिरिक्त सुविधा होगी।
स्लम क्षेत्रों पर है खास ध्यान
महिला एवं बाल विकास विभाग के सहयोग से शहरों में स्थित आंगनबाड़ी के निकट पूर्व निर्धारित दिवसों में यह क्लीनिक स्लम क्षेत्र में लगाया जाएगा। इस क्लीनिक के साथ-साथ गर्भवती महिलाओं, बच्चों आदि के लिए महिला एवं बाल विकास विभाग की विभिन्न हितग्राहीमूलक परियोजना का लाभ भी प्रदान किया जाएगा।
महिलाएं निःसंकोच ले सकेंगी परामर्श
गौरतलब है कि जनरल क्लीनिक में महिलाओं के लिए पृथक जांच कक्ष और काउंसलर नहीं होने से महिलाएं परिवार नियोजन के साधन, कॉपर-टी निवेशन, आपातकालीन पिल्स की उपलब्धता, गर्भनिरोधक गोलियां, साप्ताहिक गर्भनिरोधक गोली, गर्भनिरोधक इंजेक्शन, परिवार नियोजन परामर्श, एसटीडी परामर्श में झिझक का अनुभव करती है। इस महिला क्लीनिक में डेडीकेटेड महिला स्टाफ होने से अब इस प्रकार के परामर्श निःसंकोच लिये जा सकेंगे। -
मोबाइल मेडिकल यूनिट से मिल रही स्वास्थ्य सेवाऐं ।
दवाइयों का किया गया निशुल्क वितरण ।
मुख्यमंत्री स्लम स्वास्थ्य योजना के तहत आज मोवा मे मोबाइल मेडिकल यूनिट के माध्यम से क्षेत्र में रहने वाले निवासियों के लिए स्वास्थ्य परीक्षण का आयोजन किया गया ।
स्वास्थ्य परीक्षण का उद्देश्य लोगों को उनके घर तक स्वास्थ्य सेवाओं को पहुंचाना है । इस दौरान मोबाइल मेडिकल यूनिट वेन के माध्यम से सुबह 10से 5 बजे तक निशुल्क स्वास्थ्य परीक्षण किया गया ।
स्वास्थ्य परीक्षण की जानकारी देते हुए मोबाइल मेडिकल यूनिट के प्रभारी डॉ. अतीश प्रधान ने बताया, मोबाइल मेडिकल यूनिट के माध्यम से आज मोवा में 37 लोगों का स्वास्थ्य परीक्षण किया गया है ।
जिसमें विशेष रूप से शुगर की जांच रक्तचाप स्तर की जांच के साथ-साथ अन्य ग़ैर संचारी रोग (नॉन कम्युनिकेबल डिज़ीज़ ) और संचारी रोग (कम्युनिकेबल डिज़ीज़) की भी जांच भी की गई थी । चार लोगों की विशेष जांच की गई जो शुगर के मरीज थे । जरूरत के अनुरूप दवाई भी प्रदान की गई है ।
रायपुर निगम क्षेत्र में आयोजित मोबाइल मेडिकल यूनिट के शिविर में लोगों का स्वास्थ्य परीक्षण किया जा रहा है। छत्तीसगढ़ शासन की मंशा अनुरूप मोहल्ले में ही चिकित्सकों द्वारा मुफ्त स्वास्थ्य परीक्षण की सुविधा देने के लिए मोबाइल मेडिकल यूनिट भेजी जा रही हैं । यह अलग-अलग वार्डो में पहुंचकर क्षेत्र के लोगों की निशुल्क जांच एवं दवाइयां प्रदान कर रही हैं ।मोबाइल मेडिकल यूनिट में पैथोलॉजी की सुविधा शुगर हिमोग्लोबिन व अन्य जांच भी की जा रही है ।
मोबाइल मेडिकल यूनिट से लाभ प्राप्त करने वाले लाभार्थी सुरेश कहते हैं कि यहां आकर जांच करवाई तो मुझे पता चला कि मेरी शुगर सामान्य से अधिक है । जांच के उपरांत मुझे दवाईयॉ भी दी गई है ।
मोबाइल मेडिकल यूनिट के सफल संचालन में स्टाफ नर्स हिना ढीढी, फार्मेसिस्ट तरुण कुमार साहू लैब टेक्नीशियन आरती रामटेके और माखंलाल का महत्वपूर्ण योगदान रहा ।
-
रायपुर : विश्व स्ट्रोक दिवस या विश्व आघात दिवस हर वर्ष 29 अक्टूबर को मनाया जाता है। स्ट्रोक ब्रेन अटैक के नाम से भी जाना जाता है। इस दिवस को मनाने का उद्देश्य लोगों को स्ट्रोक से होने वाले खतरों के प्रति आगाह करने के साथ साथ उनको इससे बचाव के उपाय भी सुझाना है । विश्व स्ट्रोक संगठन के अनुसार स्ट्रोक का खतरा हर चार व्यक्तियों में से एक को होता है। इसलिए इस बार की थीम “वह एक न बनें” रखी गयी है।
इस बारे में मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ मीरा बघेल ने बताया आजकल लोग काफी मानसिक तनाव से गुजर रहे हैं क्योंकि वैश्विक महामारी कोरोना के कारण किसी की नौकरी छूट गयी है तो किसी का व्यापार बंद हो गया है । ऐसे में उनको स्ट्रोक होने का जोखिम और अधिक है| इसलिए स्ट्रोक के प्रति अधिक सतर्कता बरतने की आवश्यकता है ।
विश्व स्ट्रोक संगठन के अनुसार पूरी दुनिया में हर वर्ष लगभग 1.70 करोड़ लोग स्ट्रोक्स की समस्या का सामना करते हैं जिसमें से 60 लाख लोग तो मर जाते हैं जबकि 50 लाख लोग स्थायी रूप से विकलांग हो जाते हैं । दुनिया में होने वाली मौतों में स्ट्रोक दूसरा प्रमुख कारण है जबकि विकलांगता होने का यह तीसरा प्रमुख कारण है । इतना गंभीर होने के बाबजूद भी कम से कम आधे से अधिक स्ट्रोक्स को लोगों में पर्याप्त जागरूकता पैदा कर रोका जा सकता है । किसी भी समुदायिक स्वास्थ्य केंद्र ,प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और हेल्थ एण्ड वेलनेस सेंटर में आप नियमित जाँच करवा सकते हैं ।
क्या है स्ट्रोक?
जब रक्त वाहिका नलिकायें किसी रुकावट या रिसाव के कारणमस्तिष्क कोरक्त की आपूर्ति नहीं कर पाती हैं तो ऐसी स्थिति को स्ट्रोक कहते है । इसको ब्रेन अटैक के नाम से भी जाना जाता है ।
स्ट्रोक्स के लक्षणों को FAST रणनीति के माध्यम से आसानी से पहचाना जा सकता है –
F – फेस : किसी व्यक्ति के मुस्कुराने पर उसका चेहरा एक तरफ लटक रहा है तो उसे स्ट्रोक का खतरा हो सकता है
A – आर्म : किसी व्यक्ति द्वारा दोनों हाथों को उठाने पर एक हाथ का न उठ पाना या गिर जाना
S – स्पीच : यदि किसी व्यक्ति द्वारा साधारण शब्द बोलने पर उसकी आवाज में लडख़ड़ाहट होना
T –टाइम टू एक्शन :यदि आपको उपरोक्त में से कोई भी लक्षण है तो एम्बुलेंस के लिए आपातकालीन नंबर पर कॉल करें
कैसे बचा जा सकता है स्ट्रोक से ?
उच्च रक्तचाप को नियंत्रित करके- स्ट्रोक्स केलगभग आधे से ज़्यादा मामले उच्च रक्तचाप से जुड़ें होते हैं। इसलिए स्वस्थ जीवन शैली अपनाकरउच्च रक्तचाप को नियंत्रित किया जा सकता है।
सप्ताह में पांच बार व्यायाम करने से- स्ट्रोक्सके एक तिहाई से अधिक मामले उन लोगों में होते हैं, जो कि नियमित रूप से व्यायाम नहीं करते हैं।इसलिए सप्ताह में पांच बार 20 से 30 मिनट व्यायाम करना चाहिए
स्वस्थ और संतुलित आहार खाना से- लगभग एक चौथाई स्ट्रोक्स के मामलेअसंतुलित आहार विशेषकर फलों एवं सब्जियों के कम सेवन करने से जुड़े होते हैं। इसलिए खाने में फल एवं सब्जियों को भी संतुलित मात्रा में सेवन करना चाहिए साथ ही स्ट्रोक्स का ज़ोखिम कम करने के लिए नमक का सेवन कम करना चाहिए।
संतुलित वज़न बनाए रखना- लगभग 5 में से 1 स्ट्रोक मोटापे से जुड़ा होता है। इसलिए व्यायाम एवं उचित खानपान के माध्यम से वज़न को नियंत्रित रखना चाहिए।
कोलेस्ट्रॉल कम करना- चार में से एक से ज़्यादा स्ट्रोक के मामले उच्च कोलेस्ट्रॉल से जुड़े होते हैं। इसलिए कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित करने के बारे में अपने चिकित्सक से परामर्श करना चाहिए।
धूम्रपान से दूरी बनाकर- धूम्रपान रोकने से स्ट्रोक का ज़ोखिम कम होता है। इसलिए धूम्रपान से दूरी बनाकर रखना चाहिए ।
अल्कोहल से दूरी बनाकर- प्रतिवर्ष एक मिलियन से अधिक स्ट्रोक अत्यधिक अल्कोहल के सेवन से जुड़ें है। इसलिए अल्कोहल का सेवन कम करने से स्ट्रोक के ज़ोखिम को कम करने में मदद मिलती है।
मधुमेह को नियंत्रित करके- मधुमेह को नियंत्रित करके स्ट्रोक्स का जोखिम कम किया जा सकता है क्योंकि मधुमेह से स्ट्रोक का ज़ोखिम बढ़ जाता है। यदि आप मधुमेह से पीड़ित है, तो मधुमेह को नियंत्रित करने के लिए उपचार और जीवन शैली बदलाव के बारे में अपने चिकित्सक से संपर्क करना चाहिए। -
दुर्ग : कोविड-19 के मामले अब कम तो हो रहे हैं लेकिन अभी भी सतर्कता बहुत ही आवश्यक है इसलिए ऐसे में बुजुर्गों का ख्याल रखना बहुत ही जरूरी है। इस वक्त मौसम भी बदल रहा है, इस स्थिति में और भी ज्यादा सजग रहने की जरूरत है। इन दिनों में बुजुर्गों की सेहत के प्रति लापरवाही उन्हें परेशानी में डाल सकती है। आमतौर पर बुजुर्गों में प्रतिरोधक क्षमता कम होती है। ऐसे में उनको संक्रमण का खतरा अधिक रहता है।
जिले के मुख्य स्वास्थ्य एवं चिकित्सा अधिकारी डॉ. गंभीर सिंह ठाकुर बताते हैं कोरोना वायरस का संक्रमण बुजुर्गों को होने की संभावना ज्यादा रहती है।
इसकी वजह यह है कि उनकी प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होती है, और उन्हें दूसरी बीमारियां भी होती हैं। इसलिए उनका खास तौर पर ख्याल रखना जरूरी है। कोरोना संक्रमण को देखते हुए स्वास्थ्य विभाग ने बुजुर्गों के देखभाल में सावधानियां बरने की सलाह दिए हैं। मानसून सीजन खत्म होने के बाद सर्दी का मौसम आ रहा है।ऐसे में बीपी व शुगर के मरीजों को सर्दी, खांसी के लक्षण होने पर तत्काल चिकित्सक से परामर्श लेना जरुरी है। वहीं बुजुर्गों को भीड़भाड़ वाले इलाकों में नहीं जाने के अलावा मास्क का उपयोग भी करना चाहिए। इसके अलावा बीड़ी, सिगरेट व शराब जैसे मादक पदार्थों के सेवन से परहेज करना चाहिए। ठंड के दिनों में शरीर का तापमान गर्म कपड़ों के पहनने से बढा रहता है। वहीं ठंड के दिनों में खान-पान पर भी सावधानियां रखनी चाहिए। जिससे बीपी व शुगर का खतरा नहीं रहता है।
उन्होंने कहा, कोरोना सघन सामुदायिक सर्वे अभियान के अंतर्गत स्वास्थ्य विभाग की टीम ने दुर्ग में 3.16 लाख घरों में पहुंच कर कोरोना व सर्दी खांसी के लक्षणों वाले लोगों की पहचान की है। सर्वे के दौरान लोगों को यह भी बताया गया है कि परिवार के बुजुर्ग लोगों का इस समय विशेष ख्याल रखें ताकि वे अपने आप को उपेक्षित महसूस ना करें और कोरोना से लड़ सकें । इसकेलिए आप उनके बीच रोज कुछ समय बिताएं। उनसे बातचीत करें उनसे पूछे कोई परेशानी तो नहीं है। अगर उन्हें किसी तरह की परेशानी है तो उसका समाधान करने की कोशिश करें। जहां तक संभव हो सके, कोरोना की चर्चा करने से बचें। ऐसी बातें करें जिनसे हंसी-खुशी का माहौल बने।
डा.सिंह ने इस संक्रमण से बचने के लिए बुजुर्गों को क्या करना चाहिए क्या नहीं करना चाहिए के बारे में बताते हुए कहा कि उम्रदराज लोगों को संक्रमण से बचाव के सभी संभव उपाय अपनाते हुए घर पर ही नियमित रूप से व्यायाम या योगा करना चाहिए साथ ही उन्हें नियमित अंतराल पर साबुन से हाथ और चेहरा धोते रहना चाहिए। घर से बाहर न निकलने का सख्ती से पालन करते हुए बाहर से आए लोगों से मिलने में परहेज करना चाहिए अगर मिलना बहुत जरूरी है तो कम से कम 2 गज की दूरी बनाकर मिलना सुरक्षित होगा। बुजुर्गों को घर में बना ताजा पोषण युक्त आहार व मौसमी फल, जूस, सूप, हर्बल टी या काढ़ा नियमित लेना चाहिए।
सीएमएचओ ने कहा 60 साल से अधिक उम्र के लोगों को पहले से चल रही दवाओं का सेवन नियमित रूप से करना चाहिए, साथ ही सर्दी जुकाम खांसी बुखार से पीड़ित लोगों से दूरी बनाकर रखना चाहिए। बुजुर्गों के कपड़े, चादरों और दूसरी चीजों की साफ सफाई नियमित रूप से करनी चाहिए। बुजुर्गों को बुखार जुकाम या सांस लेने में तकलीफ की समस्या होने पर तत्काल नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र और मितानिन से संपर्क करना चाहिए। -
1.आयोडीन अल्पता विकार संबंधी जगाएंगे जागरूकता
21 से 27 अक्टूबर तक जिला स्तर पर मनेगा कोरोना सुरक्षा एवं आयोडीन अल्पता विकार नियंत्रण सप्ताह
(21 अक्टूबर विश्व आयोडीन अल्पता दिवस विशेष)
रायपुर : आयोडीन की कमीं की वजह से कई तरह के रोग होते हैं। खासकर गर्भवती महिलाओं और शिशुओं के लिए आयोडीन जरूरी पोषक तत्वों में से एक है। बावजूद इसके बावजूद लोगों को जानकारी नहीं होने की वजह से आयो़डीन अल्पता विकार एक प्रमुख स्वास्थ्य समस्या बन गया है। इसी के मद्देनजर 21 अक्टूबर को प्रतिवर्ष वैश्विक आयोडीन अल्पता विकार निवारण दिवस मनाया जाता है।इस वर्ष कोविड-19 महामारी को देखते हुए जिला स्तर पर 21 अक्टूबर से 27 अक्टूबर के बीच कोरोनावायरस और आयोडीन अल्पता विकार नियंत्रण सप्ताह मनाया जाएगा। इस दौरान कई जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे।
डॉ. प्रदीप सक्सेना अतिरिक्त उप महानिदेशक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय भारत सरकार के निर्देश का अनुपालन करते हुए संचालक स्वास्थ्य सेवायें नीरज बंसोड़ ने सभी जिलों को 21 से 27 अक्टूबर के बीच वैश्विक आयोडीन अल्पता विकार निवारण दिवस के उपलक्ष्य में जागरूकता कार्यक्रम आयोजित करने हेतु दिशा-निर्देश जारी किए हैं। राज्य नोडल अधिकारी डॉ. कमलेश जैन ने बताया समाज में आयोडीन अल्पता विकार एवं आयोडीन युक्त नमक के सेवन के संबंध में जागरूकता लाने के लिए कई प्रयास किए जा रहे हैं।प्रतिवर्ष विविध जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए जाते थे, परंतु इस वर्ष कोविड-19 महामारी की वजह से सभी जिलों को निर्देशित किया गया है किसी भी एक दिन सुविधा के अनुसार आयो़डीन अल्पता विकार संबंधी जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए जाएं।प्रदेश के सभी जिलों के जिला अस्पतालों, स्वास्थ्य केन्द्रों तक में वैश्विक आयोडीन अल्पता विकार निवारण दिवस के महत्व को बताते हुए आयोडीन युक्त नमक एवं खाद्यपदार्थों के सेवन के प्रति जन जागरूकता के कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे।
जनजागरूकता की जरूरत- डॉ. कमलेश जैन ने बताया आयोडीन अल्पता विकार एवं आयोडीन युक्त नमक एवं खाद्यपदार्थों के सेवन के प्रति जागरूकता बेहद जरूरी है। आयोडीन की कमीं का सर्वाधिक असर गर्भवती महिलाओं और शिशुओं को होता है।गर्भवती महिलाओं में आयोडीन की कमी से गर्भपात, नवज़ात शिशुओं का वज़न कम होना,शिशु का मृत पैदा होना और जन्म लेने के बाद शिशु की मृत्यु होना आदि होते हैं।वहीं शिशु में आयोडीन की कमी से बौद्धिक और शारीरिक विकास समस्यायें जैसे मस्तिष्क का विकास धीमा होना, शरीर का कम विकसित होना, बौनापन, देर से यौवन आना, सुनने और बोलने की समस्यायें तथा समझ में कमी आदि समस्याएं होती हैं।
आयोजित होंगे विविध कार्यक्रम- कोरोनावायरस को देखते हुए इस वर्ष 21 अक्टूबर से 27 अक्टूबर के बीच जिला स्तर पर कोविड-19 एवं आयोडीन अल्पता से संबंधित ऑनलाइन क्विज प्रतियोगिता, मास्क दिवस, स्लोगन लेखन दिवस, रंगोली दिवस, दीया या कैंडल दिवस , कोवि़ड संक्रमण बचाव एवं आयोडीन युक्त नमक के सेवन संबंधी शपथ दिवस, गेंदा फूल का वितरण संबंधी कार्यक्रम आयोजित होंगे।
- दुर्ग : जिले में सघन कोरोना सर्वे अभियान 5 अक्टूबर से 12 अक्टूबर तक स्वास्थ्य विभाग द्वारा चलाया गया था । इस दौरान शहर से लेकर ग्रामीण क्षेत्रों में 3.17 लाख घरों में कोविड-19 से सम्बंधित लक्षण वाले मरीजों की पहचान की गयी है।इस कार्य में जिले की आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, मितानिन व महिला पुलिस स्वयंसेविकाओं ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए सर्दी-खांसी के लक्षण वाले 2,897 लोगों की पहचान की हैं। सर्वे टीम ने 2,842 लोगों की एंटीजन टेस्ट कराया जिसमें 218 कोविड-19 पॉजेटिव लोग मिले। सीएमएचओ डॉ. गंभीर सिंह ठाकुर ने बताया 2,030 संभावित लक्षणों वाले लोगों का सेम्पल आरटीपीसी टेस्ट के लिए भेजा गया है।
उन्होंने बताया दुर्ग जिले के कुछ शहरी क्षेत्रों में अभी सर्वे का कार्य जारी है | जल्द हीयह कार्य एक दो दिन में पूरा कर लिया जाएगा। इसके लिए स्थानीय स्वास्थ्य अमला द्वारा कोरोना से निपटने के लिए घर-घर सघन सर्वे में कोविड-19 से सम्बंधित लक्षण वाले लोगों की जानकारियां जुटाई जा रही हैं।सर्वे टीम के द्वारा उच्च जोखिम वाले-60 वर्ष से अधिक, गर्भवती महिला, 5 वर्ष के कम आयु के बच्चे, उच्च रक्तचाप, डायबीटीज से ग्रसित व्यक्ति के 506 लोगों का सेम्पल भी जांच के लिए भेजे गए हैं।
सीएमएचओ डॉ. गंभीर सिंह ठाकुर ने बताया, आज धमधा ब्लॉक के मेडेसरा उप स्वास्थ्य केंद्र व ग्रामीणों से मुलाकात कर कोरोना सर्वे से संबंधित जानकारी ली गयी । वहीं मैदानी स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को उच्च जोखिम वाले मरीजों की पहचान के बाद लगातार ग्रामीणों से संपर्क बनाए रखने के निर्देश दिए गए हैं।सीएमएचओ डॉ. सिंह के साथ स्वास्थ्य विभाग के डिप्टी डायरेक्टर डॉ योगेश शर्मा के साथ कोरोना संक्रमण के बचाव के लिए किए जा रहे प्रयासों व गतिविधियों का जायजा लिया गया। वही स्वास्थ्य विभाग की एक्टीव सर्विलेंस टीम को उच्च जोखिम वाले लोगों के स्वास्थ्य के प्रति अतिरिक्त सावधानियां बनाए रखने का निर्देश भी दिया गया।
उन्होंने कहा कोविड-19 के संक्रमण से बचाव के लिए गंभीर रोगों से पीड़ित व्यक्तियों में सर्दी, खांसी, बुखार व गले में खराश जैसे लक्षण वाले लोगों को सोशल डिस्टेंसिंग मास्क लगाने , बाहरी व्यक्तियों के दूरी बनाए रखने के बारे में बताया जा रहा है। बुजुर्गो की देखभाल में परिवार के सदस्यों को सावधानियों के साथ ही खान पान में विशेष ध्यान रखने की समझाईश भी दी जा रही है।सीएमएचओ ने लोगों से कहा घर –घर पहुंचने वाले सर्वे दल को स्वास्थ्य की सही जानकारी देकर सघन कोरोना सर्वे सामुदायिक संक्रमण को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएं । कोरोना पॉजिटिव लोगों की जल्द पहचान से ही संक्रमण को रोकने में मदद मिलेगी । -
जांजगीर-चांपा : ब्रेस्ट कैंसर के प्रति लोगों में जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से प्रति वर्ष अक्टूबर को स्तन कैंसर जागरूकता माह के रूप में मनाया जाता है। स्तन कैंसर के प्रति जागरूकता के लिए ग्रामीण स्तर पर महिला संगठनों में स्वसहायता समूह, मितानिन व आंगनबाडी कार्यकर्ता भी आगे बढकर अभियान चला रही हैं।
13 अक्टूबर से स्तन कैंसर माह को मनाने के लिए आज जाजंगीर-चांपा जिले के पामगढ ब्लॉक स्थित ग्राम पंचायत मेंऊ की महिलाओं ने नरसिंह चौक मुहल्ले की चौपाल में एक बैठक का आयोजन किया।
आंगनबाड़ी केंद्र क्रमांक 3 नरसिंह चौक मेंऊ की कार्यकर्ता सावित्री दिनकर ने बताया, स्तन कैंसर पुरुषों और महिलाओं दोनों को हो सकता है, परन्तु यह महिलाओं में अधिक होता है। कई कारणों से स्ततनों में बढ़ने वाली असामान्य कोशिकाएं कभी कभी गांठ का रूप ले लेती हैं जो आगे चलकर कैंसर में परिवर्तित हो सकती हैं ।
उन्होंने कहा, ब्रेस्ट में गांठ या स्थानीय चमड़ी मोटी होना जो आसपास से अलग दिखना, ब्रेस्ट के आकार या स्वरूप में बदलाव, ब्रेस्ट त्वचा में परिवर्तन, जैसे कि डिंपलिंग, उल्टां निप्पल, निप्पल के आस-पास की त्वचा का छिलना, स्केलिंग, क्रस्टिंग या फ्लेकिंग लाल होना या निप्पल खड़ा होना ब्रेस्टं कैंसर के लक्षण हो सकते हैं।
आंगनबाड़ी कार्यकर्ता ने महिलाओं को बताया,यदि बीमारी के लक्षण के बारे में समय रहते पता चल जाए तो इसका उपचार हो सकता है। ऐसी स्थिति में मितानिन और एएनएम से लक्षण के बारे में चर्चा कर नजदीक के अस्पताल में चिकित्सकीय परामर्श व इलाज कराया जा सकता है |इसके हेतु समुदाय में जागरुकता लाने के लिए मितानिन व स्वसहायता समूहों की महिलाएं मुहल्ले में लगभग 250 घरों में पहुंच कर परिवार के महिला सदस्यों से भागीदारी निभाने के लिए प्रेरित करेंगी।
इस मौके पर मितानिन शशी बंजारे व रमशीला टंडन ने बताया, नरसिंह चौक मुहल्ले में लगभग 15 से 50 साल तक 200 से अधिक महिलाओं व किशोरियों को माहवारी स्वच्छता अभियान से जोड़ा जाएगा। स्वस्थ्य नारी–स्वस्थ्य परिवार बनाने को मितानिन दीदी ने स्वच्छ माहवारी के लिए सेनेटरी पेड का इस्तेमाल करने की शपथ दिलाई । अब हर बेटी,बहु व महिला के सम्मान के लिए हर नारी को एक कदम आगे बढ़ाने की जरुरत है। वहीं बैठक में बी स्माइल फाउंडेशन सोसाइटी के ब्लॉक समन्वयक संजय कुमार साहू ने बताया, उनकी संस्था महिलाओं को बी स्माइल फाउंडेशन के माध्यम से 12 महीने के लिए 300 रुपए में 72 सेनेटरी पेड का सेट उपलब्ध कराएगी।
अनिल कुमार साहू ने बताया महिलाओं में जागरुकता की कमी के कारण माहवारी के दौरान सैनेटरी पेड का इस्तेमाल नहीं किया जा रहा है। इसलिए यह करने के लिए महिलाओं व युवतियों को समूह की महिला गृहभेंट कर प्रेरित कर रहीं हैं। इस दौरान माहवारी के समय परंपरागत संसाधनों के बदले सेनेटरी पेड को स्वास्थ्य के लिए सुरक्षित एवं ज्यादा हितकारी होने की जानकारी भी दी गयी ।
बैठक में कोरोना संक्रमण से बचाव के लिए स्वच्छता पर ध्यान देने के बाद महिलाओं को ब्रेस्ट कैंसर जैसे बीमारियों और सवाइकल कैंसर के बारे में भी बताया गया। इस मौके पर नरसिंह चौक आंगनबाड़ी केंद्र की आंगनबाड़ी कार्यकर्ता सावित्री दिनकर , सहायिका तीजमती दिनकर और जय माँ चंद्रहासिनी महिला स्वसहायता समूह की अध्यक्ष मैना बाई लहरे, सम्मेबाई लहरे, तीज बाई दिनकर, मालती दिनकर, सचिव उषा रोही दास और कल्याणी महिला स्वसहायता समूहकी अध्यक्ष नन्दनी खांडे, सचिव दामिनी जांगड़े, मनीषा बंजारे, रामकुमारी बंजारे, कुमारी रोहिदास, मुकनी सोनवानी व कांति सोनवानी भी उपस्थित रही।