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- द न्यूज़ इंडिया समाचार सेवागणतंत्र दिवस पर की गई मुख्यमंत्री की घोषणा पर तत्काल शुरू हुआ अमल
42 प्रकार के स्वास्थ्य परीक्षण निःशुल्क होंगे और दवाईयां भी निःशुल्क मिलेंगी
रायपुर : मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने इस गणतंत्र दिवस पर राज्य के सभी शहरों की स्लम बस्तियों में रहने वालों को एक बड़ी सौगात दी है। अब यहां के रहवासियों को इलाज के लिए अस्पताल जाने या खून की जांच और अन्य स्वास्थ्य परीक्षण के लिए इधर-उधर नहीं भटकना पड़ेगा। अब उनके इलाके में मोबाइल मेडिकल यूनिट चिकित्सक के सहित खड़ी रहेगी, जहां 42 प्रकार के टेस्ट की निःशुल्क सुविधा भी होगी और निःशुल्क दवाईयां भी मिलेंगी। इसके लिए ‘‘मुख्यमंत्री स्लम स्वास्थ्य योजना’’ सभी 169 शहरों में शुरू करने की घोषणा की गई है। पूर्व में यह योजना राज्य के सभी 14 नगर पालिक निगम में 1 नवम्बर 2020 से सफलता पूर्वक संचालित हो रही थी। इस योजना के लाभ को देखते हुए मुख्यमंत्री ने सभी शहरों में इसे लागू करने का निर्णय लिया है। यह निर्णय कोरोना महामारी के मद्देनजर और भी कारगर साबित होगा, क्योंकि चिकित्सक से मिलने लोगों को अब अस्पताल नहीं जाना पड़ेगा।मुख्यमंत्री स्लम स्वास्थ्य योजना के शुरू होने से समाज के सभी वर्गों को इसका लाभ मिलेगा। हर गरीब और जरूरतमंद व्यक्ति चाहता है कि जब वह बीमार पड़े तो उसे अपने इलाज के लिए भटकना न पड़े। छोटी-छोटी बीमारी के लिए अपने काम धंधे बंद कर डाक्टरों से अपॉइंटमेंट लेना और कतार में लग कर इलाज कराने से हर कोई बचना चाहता है। लोगों की जरूरतों को ध्यान रख छत्तीसगढ़ में शुरू की गई मुख्यमंत्री शहरी स्लम स्वास्थ्य योजना अब इन्हीं उद्देश्यों और लक्ष्यों को पूरा कर रही है।
वर्तमान में राज्य के 14 नगरीय निकायों में 60 मोबाइल मेडिकल यूनिट (एमएमयू) के माध्यम से योजना का क्रियान्वयन संबंधित जिला कलेक्टर की अध्यक्षता में किया जा रहा है। मुख्यमंत्री की घोषणा के बाद वर्तमान में सेवारत 60 एमएमयू में अतिरिक्त 60 एमएमयू शामिल किए जाएंगे। इस तरह से प्रदेश के 169 शहरों में 120 एमएमयू के माध्यम से योजना का संचालन किया जाएगा। मुख्यमंत्री की घोषणा के बाद योजना के महत्व को देखते हुए इसे 21 फरवरी 2022 तक प्रारंभ करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
मुख्यमंत्री स्लम स्वास्थ्य योजना के प्रति नागरिकों के लगाव को देखें तो योजना के अंतर्गत अभी तक 20 हजार 928 कैंपों का आयोजन मोबाइल मेडिकल यूनिट के माध्यम से किया जा चुका है। इन कैंपों में 14 लाख 64 हजार 195 मरीज अपना इलाज कराकर स्वस्थ हो चुके हैं। एमएमयू में इलाज के लिए एम.बी.बी.एस. डाक्टर की पदस्थापना होती है। एमएमयू की प्रयोगशाला में कुल 42 प्रकार के टेस्ट निःशुल्क होते हैं। अभी तक 2 लाख 75 हजार 388 मरीज मुफ्त प्रयोगशाला से लाभांवित हो चुके हैं। एमएमयू में कुल 285 प्रकार की दवाइयां मुफ्त वितरण के लिए मौजूद होती हैं। इससे अभी तक 12 लाख 19 हजार 523 मरीजों ने मुफ्त दवा वितरण का लाभ लिया है। मरीजों को दवाइयों का वितरण डॉक्टर की पर्ची के आधार पर फार्मासिस्ट द्वारा किया जाता है।
मुख्यमंत्री स्लम स्वास्थ्य योजना के अंतर्गत एमएमयू में मरीजों की जांच की पूरी प्रक्रिया कंप्यूटराइज्ड की गई है। मरीजों का पंजीयन, डॉक्टर की पर्ची और फार्मासिस्ट द्वारा दवा वितरण का कार्य पूरी तरह कंप्यूटराइज्ड है। प्रक्रिया में कहीं चूक ना हो और मरीजों को ज्यादा से ज्यादा लाभ मिल सके इसके लिए सीनियर विशेषज्ञ डाक्टरों द्वारा इसका आडिट भी किया जाता है।
इस सेवा विस्तार से राज्य के 169 शहरों में 120 एमएमयू के माध्यम से प्रतिमाह लगभग 2 हजार 880 कैंप आयोजित होंगे और लगभग 1 लाख 80 हजार मरीजों का गुणवत्तापूर्ण इलाज संभव हो सकेगा। सुविधा विस्तार के लिए शासन द्वारा सेवा प्रदाता चयन की कार्यवाही सभी जिलों में पूर्ण कर ली गयी है और बसों में एमएमयू के लिए अस्पताल की सुविधाएं विकसित करने हेतु निर्माण कार्य भी प्रारंभ कर दिया गया है। इसके साथ ही कैंप प्लानिंग, डाक्टर एवं स्टाफ की ड्यूटी रोस्टर, दवा वितरण आदि व्यवस्थाओं की तैयारियां सभी शहरों में प्रगति पर हैं। -
द न्यूज़ इंडिया समाचार सेवा
सर्दी से बच्चे को हो सकता है निमोनिया
रायपुर : निमोनिया सांस से जुड़ी बीमारी है मौसम बदलने के साथ ही बच्चों में सर्दी लगने से बच्चों में निमोनिया होने की सम्भावना रहती है । आमतौर पर बैक्टीरियल वायरल से यह होता है जो 10-12 दिनों में ठीक भी हो जाता है। बच्चों में तेज बुखार, खांसी, सांस का तेज तेज चलना और पसलियों का तेज चलना निमोनिया के लक्षण होते है । पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों में रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती है। जिसके कारण सर्दी के दिनों में उनमें निमोनिया होने की संभावना अधिक बढ़ जाती है।
जिला टीकाकरण अधिकारी डॉ आशीष कुमार वर्मा ने बताया, ’’5 साल से कम उम्र के बच्चों में निमोनिया होने की संभावना अधिक रहती है । समय पर टीकाकरण और बचाव ही निमोनिया का कारगर इलाज है । साथ ही ऋतु परिवर्तन होने पर बच्चे को ऋतु अनुसार कपड़े पहनाना चाहिए ठंड के मौसम में जब भी बाहर जाए बच्चे को अच्छी तरह गर्म कपड़े पहनाए, कान को ढक के रखें, सर पर टोपी लगाए, बच्चे को सर्दी खांसी होने पर तुरंत चिकित्सक से परामर्श लेकर उसका उपचार शुरू कर दें । ताकि समय रहते हुए उसका इलाज सुनिश्चित किया जा सके । निमोनिया आमतौर पर एक बैक्टीरियल वायरल बीमारी होता है जो सामान्यत: 10 -12 दिनों में ठीक हो जाता है। लेकिन उसको नजरअंदाज नहीं करना चाहिए बच्चे की नियमित देखभाल साफ सफाई पर विशेष ध्यान देना चाहिए।“
लक्षण:
तेज बुखार, खांसी आना, सांस का तेज तेज चलना, पसली तेज चलना निमोनिया के लक्षण होते हैं। ऐसे लक्षण दिखाई देने पर तुरंत डॉक्टर से परामर्श ले और उपचार शुरू करें।
बच्चों का बचाव कैसे करें:
समय पर बच्चे का टीकाकरण कराएं, निमोनिया से बचाव करने के लिए पीसीवी के तीनों टीके अवश्य लगवाएं जो बीमारी से बचाव का काम करता है। सफाई का ध्यान रखें, खांसते और छींकते समय बच्चे की नाक और मुंह पर रूमाल या कपड़ा रखें। कीटाणुओं को फैलने से रोकें, बच्चों के हाथों बार-बार साफ करते रहें ।
पोषण का ध्यान रखें:
बच्चे को प्रथम छह माह तक मां का ही दूध दें । मां का दूध बच्चे में रोगप्रतिरोधक क्षमता को बढ़ता है साथ ही मां के दूध में एंटीबॉडीज होती हैं जो बच्चे को रोगों से लड़ने में मदद करती है।
सर्दी में गर्म कपड़े पहनाए:
सर्दी से बचाने के लिए गर्म कपड़े पहनाएं, ठंडी हवा से बचाव के लिये कान को ढंके, पैरों के गर्म मोज़े पहनाएं। नंगे पैर ना घूमने दे ठंडे पानी से दूर रखें । -
वृद्धजनों का किया गया स्वास्थ्य परीक्षण
रायपुर : विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस के उपलक्ष्य में लायंस वृद्ध आश्रम में मानसिक स्वास्थ्य संबंधी जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस मौके पर वृद्ध लोगों को तनाव प्रबंधन के साथ-साथ वृद्धावस्था में होने वाली मानसिक समस्याएं, लक्षण एवं उनके उपचार के बारे में भी जानकारी दी गई ।
गैर संचारी रोग नियंत्रण कार्यक्रम की नोडल अधिकारी डॉ.सृष्टि यदु ने बताया ‘’ स्पर्श क्लीनिक की टीम द्वारा लायंस वृद्ध आश्रम में मानसिक स्वास्थ्य संबंधी जागरूकता कार्यक्रम एवं तनाव प्रबंधन कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इसमें वृद्धावस्था में होने वाली मानसिक समस्याएं ,लक्षण एवं उपचार के बारे में जानकारी प्रदान की गई । साथ ही वृद्धावस्था में होने वाले तनाव और उसके प्रबंधन को लेकर अलग-अलग ब्रेन स्ट्रैचिंग गेम्स और मेमोरी गेम्स के माध्यम से समझाया गया।‘’
डॉ.यदु ने बताया वृद्ध आश्रम में रह रहे लोग कभी-कभी अपने पुराने समय को याद करके डिप्रेशन में चले जाते हैं। कार्यक्रम में डिप्रेशन से उबरने और आपसी तालमेल बनाकर एक दूसरे के दुखों को साझा करते हुए एक बेहतर जीवन जीने का प्रयास करने के बारे में बताया गया इस अवसर पर सभी लोगों का स्वास्थ्य परीक्षण भी किया गया ।
स्पर्श क्लीनिक की साइकोलॉजिस्ट ममता गिरी गोस्वामी कहती है:, ‘’वृद्ध आश्रम में रहने वाले लोगों को तनाव प्रबंधन और ब्रेन स्ट्रेचिंग गेम्स के साथ-साथ मेमोरी गेम्स भी नियमित रूप से कराते रहना चाहिए । साथ ही नियमित रूप से मनोरंजन और स्वास्थ्य का ध्यान भी रखना चाहिए । मानसिक समस्याओं से दूर रखने के लिए वृद्ध आश्रम में एक खुशनुमा माहौल बनाकर रखना चाहिए जिससे इन पलों को जिया जाए। ’’
वृद्धजनों को बताया गया किस तरह एक दूसरे से खुशनुमा पलों की बात की करके मन को स्वस्थ रखा जा सकता है। जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ.मीरा बघेल और जिला कार्यक्रम प्रबंधक मनीष मेजरवार के मार्गदर्शन किया गया । -
द न्यूज़ इंडिया समाचार सेवा
1 से 19 वर्ष तक के बच्चों को दी जाएगी कृमिनाशक दवा
मॉप-अप दिवस में 21 से 23 सितम्बर तक छूटे हुए बच्चों को खिलाई जाएगी
जगदलपुर : कोविड-19 के दौरान भी समस्त आवश्यक सेवायें निरन्तर रूप से प्रदान की जा रही है । इसी कड़ी में स्वास्थ्य विभाग द्वारा आगामी 13 सितम्बर से 20 सितम्बर 2021 तक राष्ट्रीय कृमि मुक्ति दिवस का आयोजन किया जाएगा।तथा छूटे हुए बच्चों को यह दवा 21 से 23 सितम्बर तक मॉप-अप दिवस पर खिलाई जाएगी। प्रत्येक वर्ष 1 से 19 वर्ष के किशोर/ किशोरियों को पेट के कीड़ों से बचाने के लिए कृमिनाशक एलबेंडाजोल की दवा खिलाई जाती है। इस बार राज्य के 24 जिलों के कुल 92.67 लाख बच्चों को यह दवा खिलाए जाने का लक्ष्य रखा गया है।
सितम्बर माह में होने वाले इस कार्यक्रम में बच्चों को मितानिन द्वारा आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के सहयोग से अपने कार्यक्षेत्र के सभी घरों का भृमण कर कृमिनाशक दवा दी जाएगी। 1 से 2 वर्ष तक के बच्चों को आधी गोली (200 एमजी) चूर्ण बनाकर पानी के साथ, 2 से 3 वर्ष तक के बच्चों को 1 गोली पूरी तरह से चूर्ण बनाकर पानी के साथ तथा 4 वर्ष से 19 वर्ष तक के बच्चों को एक पूरी गोली (400 एमजी) चबाकर के पानी के साथ सेवन कराया जाएगा।एल्बेंडाजोल की गोली बच्चों और बड़ों के लिए सुरक्षित है। दवा खाने के उपरांत यदि कोई प्रतिकूल प्रभाव हो तो प्रबंधन के लिए प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र एवं उप स्वास्थ्य केन्द्रों पर उपचार की व्यवस्था भी स्वास्थ्य विभाग द्वारा रहेगी। कृमि मुक्ति दिवस पर बीमार बच्चों या पहले से कोई अन्य दवाई ले रहे बच्चों को एल्बेंडाजोल की गोली नहीं दी जाएगी।
जिला सीएमएचओ डॉ. डी.राजन ने बताया, “सरकार के निर्देशानुसार साल में 2 बार कृमिमुक्ति कार्यक्रम मनाया जाता है, जिसमें स्वास्थ्य विभाग व महिला एवं बाल विकास विभाग की भागीदारी होती है। कोविड 19 संक्रमण की व्यापकता को देखते हुए मार्च 2021 में हुए कार्यक्रम के अनुसार इस चरण में भी कोविड 19 संबंधित दिशा निर्देशों का पालन किया जाएगा । जिन घरों में कोविड 19 के सक्रिय केस होंगे वहां सामान्य स्थिति होने के उपरांत दवा दी जाएगी। एलबेंडाजोल की गोली खिलाने के दौरान सोशल डिस्टेंसिंग, मास्क ,सैनिटाइजर का प्रयोग किया जाएगा”।
कृमिमुक्ति कार्यक्रम के नोडल अधिकारी सी.आर.मैत्री ने बताया, “कृमि संक्रमण चक्र की रोकथाम के लिए यह गोली बच्चों को देना आवश्यक है। कृमि बच्चों के स्वास्थ्य शिक्षा और संपूर्ण विकास को लंबे समय तक नुकसान पहुंचा सकते हैं। कृमिनाशक की गोली से बच्चों के संपूर्ण शारीरिक मानसिक विकास में मदद मिलती है। इसलिए कृमि नाशक गोली खिलाना आवश्यक है”।
कृमि संक्रमण के लक्षण-
कृमि संक्रमण पनपने से बच्चे के शरीर में खून की कमी हो जाती है। वे हमेशा थकान महसूस करते हैं उनकी शारीरिक, मानसिक विकास भी बाधित होती है। बच्चों में रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है।
कृमि संक्रमण से बचाव के उपाय-
नाखून साफ और छोटे रखें, हमेशा साफ और स्वच्छ पानी ही पीऐं, खाने को ढक कर रखें, साफ पानी में अच्छे से फल व सब्जियां धोएं, घरों के आसपास साफ. सफाई रखें, खुले में शौच न करें हमेशा शौचालय का प्रयोग करें,अपने हाथ साबुन से धोए विशेषकर खाने से पहले और शौच जाने के बाद। - द न्यूज़ इंडिया समाचार सेवारायपुर : पुरे छत्तीसगढ अंचल में हरेली श्रावण मास में मनाया जाने वाला त्यौहार है। ग्रामीण बड़ी धूमधाम से इस दिन हरेली को मनाते हैं। किसान इस दिन अपने मवेशियों और कृषि यंत्रो की पुजा करते हैं और ग्रामीण जन गोठान जाते हैं।सुबह के समय अपने साथ थाली में चावल, मिर्च और नमक चरवाहे के लिए ले जाते हैं। उसी के साथ गुथा हुआ आटा और खम्हार पान ले जाते हैं। उस गुथे हुए आटे की गोली बनाकर खम्हार पान(पान=पत्र) के बीच रख हल्का बांध देते हैं फिर अपने गाय, बैल, भैंस को खिलाते हैं।घर वापस लौटते समय चरवाहों द्वारा सुदुर जंगल से लायी हुई वनौषधि को अच्छे से साफ कर एक मिट्टी के घड़े लेकर पानी में उबालकर रातभर औषधि का काढा तैयार करते हैं। गांव में ही एक पारंपरिक वैद्य यानी बैगा होता है जो हरेली के दिन गांव के सभी घरों में जाकर नीम और भल्लातक की टहनियाँ पत्तों के साथ घर के प्रमुख द्वार और आँगन में लगाते हैं।
पंच कर्म चिकित्सा विशेषज्ञ डॉ. रंजीप कुमार दास का कहना है:``हमारे पुर्वज काफी वैज्ञानिक सोच के थे जो हर रोग की एक औषधि का ज्ञान रखते रहें। जो वनौषधि उन्हें खाने को दी जाती थी वह आज पारंपरिक रुप से आस्था के साथ साथ बीमारियों के प्रकोप से बचाने शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढाता है।स्वास्थ्य और चिकित्सा विज्ञान के तहत एक ही दिन में पूरे जनसमुदाय को एक साथ एक ही समय में दिए जाने वाला औषधि अभियान की तरह होता है। इसे स्वास्थ्य कार्यक्रम मान सकते हैं जिसमें एक ही दिन में हजारों लोगों को औषधि खिलायी जाती थी। हरेली एक त्यौहार ही नहीं ये हमारे पुर्वजों के द्वारा शुरु की गयी पहली स्वास्थ्य अभियान या कार्यक्रम है। इस तरह पहले लोग अपनी प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाते थे जो आज भी मान्य है।‘’
आयुर्वेद चिकित्सक डॉ. गुलशन कुमार सिन्हा बताते हैं ग्रामीणों में मान्यता है– सावन के महीने में मौसमी बीमारियों के प्रकोप का संक्रमण प्रबल होता है। रोगों से बचने के लिए चरवाहे जंगलों से वनौषधि लाते है और यह कार्य सिर्फ चरवाहे करते हैं जो उपवास रख कर साल में एक वनौषधि को पूरी रात जग कर तैयार करते हैं। वन औषधि से बने काढ़े को फिर सुबह गोठान में प्रत्येक ग्रामीणों को बाँटा जाता है।
डॉ. गुलशन कुमार सिन्हा ने बताया, आयुर्वेद में इस संबंध में और जानकरी जुटाई तो ज्ञात हुआ वर्षा ऋतु में श्रावण मास में सर्वाधिक वर्षा होती है। इससे नदी, नाले, तालाब व खेतों में बड़ी मात्रा में बाढ़ भी आती है। इसके कारण जीवाणु, विषाणु और बैक्टिरिया सक्रिय हो जाते हैं। कहीं-कहीं गंदगी बाढ़ के कारण या पानी का जमावड़ा हो जाता है जिससे महामारी फैलने का खतरा बना रहता है। वर्तमान में स्वास्थ्य विभाग द्वारा विभिन्न स्वास्थ्य जागरुकता कार्यक्रम चलाती है।
लेकिन पहले आज की तरह आधुनिक चिकित्सा सुविधाएँ नहीं थी तो लोग किसी महामारी को दैविय प्रकोप मानते थे। सैकड़ो हजारों की संख्या में लोगों की मृत्यु हो जाती थी। इसी से बचने के लिए ग्रामीण वनौषधि का सेवन करते थे जिसे आज परम्परा के रुप में मनाते आ रहे हैं। वनौषधि जिसका हरेली के दिन सेवन करते हैं उसे आयुर्वेद चिकित्सा पद्वति में शतावर के नाम से जाना जाता है जिसका लैटिन नाम एस्पेरेगस रेसिमोसस होता है।
शतावरी एक बहुमुल्य औषधि इसके फायदे-
यह शारिरीक क्षीणता दूर करता है
अनिद्रा दूर करता है
रात की रतौंधी मे उपयोगी
पेशाब संबंधी बिमारी में
महिलाओं की स्तन संबंधी समस्या या दूध न आना
पुरुषों में बलवर्धक
प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है
नीम का औषधिय महत्व -
नीम :- Azadirachtaindica
यह मधुमेह में अत्यंत लाभकारी है
नीम की छाल का लेप सभी प्रकार के चर्म रोगों और व्रण के निवारण में सहायक है
नीम का दातुन करने से दांत और मसुड़े स्वस्थ रहते हैं
नीम की पत्तियाँ चबाने से रक्तशोधन होता है और त्वचा कांतिवान होती है
नीम की पत्ती को पानी में उबालकर नहाने से चर्म रोग दुर करने में सहायक होती है। खासतौर से चेचक के उपचार में सहायक है उसके विषाणु को फैलने नही देते।
नीम के तैल का नस्य करने से शिरोरोग में लाभ तथा बालों की समस्या (बाल झड़ना) से भी निजात मिलती है।
भल्लातक का औषधिय महत्व
छत्तीसगढ़ में भेलवा कहा जाने वाला औषधिय युक्त वनोपज को Semecarpusanacardium (लैटिन नाम) जाता है। इसका काजु से निकट संबंध है।ग्रामीण इसे मुख्य रुप से हाथ पैर की माँसपेशियों के दर्द से निजात पाने के लिए प्रयोग करते हैं।इसके फल को गर्म कर इसमें सुई(सुजा) चुभोकरइसके तैल को सुई से हाथ पैर के तलवों और ऐड़ी पर लगाया जाता है।इसका उपयोग अत्यंत सावधानी से करना पड़ता है क्योंकि तलवों के अलावा अन्यत्र शरीर पर लग जाये तो त्वचा पर फफोले आ सकते हैं । इसकी तासिर गर्म होती है। आयुर्वेद के अनुसार भल्लातक एक मधुर और तिक्त रस से युक्त कड़वे स्वाद वाला फल होता है।
कृमिरोग नाशक होता है
यौन रोगों में लाभकारी होता है
भूख बढ़ाने में सहायक होता है
त्वचा संबंधी विकार को दुर करने में सहायक होता है। -
स्थानीय जनप्रतिनिधियों का मिल रहा सहयोग
अब तक 1,848 बच्चों का किया जा चुका है वजन
वजन त्यौहार को लेकर गुढ़ियारी सेक्टर के आंगनबाड़ी केंद्रों में उत्साह देखने को मिल रहा है । इस समय आंगनबाड़ी केंद्र प्रतिदिन वज़न करवाने आने वाले बच्चों से गुलजार रहते हैं ।अभिभावक आंगनवाड़ी केंद्रों पर बच्चों को वजन कराने को लेकर आ रहे हैं । सेक्टर में 2,230 लक्षित बच्चे हैं जिसमें से अब तक 0 से 5 वर्ष के 1,848 बच्चों का वजन किया जा चुका है । आंगनबाड़ी केंद्र हनुमान नगर में ठक्कर बापा वार्ड 17 में पार्षद सुंदरलाल जोगी द्वारा वजन त्यौहार के संबंध में हितग्राहियों को संदेश भी दिया गया है ।
जिला कार्यक्रम अधिकारी अशोक पांडे एवं रायपुर शहरी-2 के परियोजना अधिकारी सोमनाथ सिंह राजपूत के मार्गदर्शन में वजन त्यौहार मनाया जा रहा है।
इस अवसर पर पार्षद सुंदरलाल जोगी ने वजन त्यौहार का महत्व बताते हुए महिलाओं और बच्चों को स्वस्थ रहने के का संदेश दिया। उन्होंने कहा, “वजन मशीन में बच्चे का वजन लेने पर सुपोषण अथवा कुपोषण के स्तर का पता चलता है। इसके आधार पर बच्चे को चिन्हांकित कर आंगनवाड़ी कार्यकर्ता एवं सहायिका की देखरेख में उन्हें विशेष पोषण आहार दिया जाता है।वजन मशीन में वजन लेते समय हरा रंग सुपोषित होने का प्रतीक है, जबकि पीला रंग मध्यम कुपोषण तथा लाल रंग गंभीर कुपोषण का संकेतक है। उन्होंने कहा, पौष्टिक भोजन और संयमित दिनचर्या ही बच्चों में कुपोषण दूर कर पोषण लाने का सशक्त माध्यम है। ताजा फल और हरी सब्जियां स्वास्थ्य के लिए लाभदायक मानी जाती हैं।‘’
गुढ़ियारी सेक्टर की पर्यवेक्षक रीता चौधरी ने बताया “गुढ़ियारी सेक्टर की 28 आंगनबाड़ी में 0 से 5 वर्ष के 2,230 लक्षित बच्चे हैं । उसमें से अब तक 1,848 बच्चों का वजन किया जा चुका है ।साथ ही 11 से 19 वर्ष की 290 किशोरियों का हीमोग्लोबिन परीक्षण किया जा चुका है । हनुमान नगर में ठक्कर बापा वार्ड 17 की आंगनबाड़ी केंद्र में स्थानीय पार्षद सुंदरलाल जोगी द्वारा वजन त्यौहार के संबंध में हितग्राहियों को संदेश दिया गया ।महिलाओं को उनके स्वस्थ रहने के संबंध में संदेश दिया गया । बच्चों का वजन लेने के पश्चात बच्चों के साथ सेल्फी भी पार्षद सुंदरलाल जोगी द्वारा ली गई । केंद्र पर गर्भवती महिलाओं की गोद भराई का कार्यक्रम भी आयोजित किया गया ।इस कार्यक्रम में आंगनवाड़ी कार्यकर्ता सावित्री एवं सहायिका प्रमिला की अहम भूमिका रही । बच्चों को वजन करवाने के बाद उनको गुब्बारे दिये गये जिससे वह बहुत खुश हुए “
हितग्राही 3 वर्षीय अभय सिन्हा के माता-पिता मनीषा सिन्हा और पवन सिन्हा कहते है “जब अभय गर्भ में था तब से ही आंगनबाड़ी केंद्र पर हमको जोड़ दिया गया था नियमित रूप से यहां पर हमको गर्भकाल के दौरान किस प्रकार का भोजन लेना है पोषण आहार क्या होता है आदि की जानकारी दी गई अभय के जन्म उपरांत नियमित रूप से टीकाकरण का कार्यक्रम भी आंगनबाड़ी केंद्र पर ही हुआ साथ ही बच्चे को किस प्रकार से भोजन कराना है कैसे कराना है और एक स्वस्थ नागरिक बनाने के लिए उसको क्या-क्या आवश्यकताएं होती हैं आंगनवाड़ी केंद्र पर नियमित रूप से बताई जाती है मेरा बालक अब 3 वर्ष का हो गया है आज वजन त्यौहार के दौरान उसका वजन भी लिया गया है । वह 15 किलो 100 ग्राम है और उसका पोषण स्तर सामान्य है । वह हर महीना वजन कराने आता है । वजन त्यौहार का उद्देश्य बच्चों, महिलाओं को कुपोषण से बचाना है ।“
गर्भवती महिला रामकली यादव और अंकिता जंघेल कहती है, “आज आंगनबाड़ी केंद्र पर गोद भराई कार्यक्रम आयोजित किया गया । इस कार्यक्रम में बहुत अच्छा लगा पार्षद सुंदर लाल जोगी द्वारा आशीर्वाद दिया गया । साथ ही पर्यवेक्षक रीता चौधरी द्वारा गोद भराई के दौरान नारियल और चना दिया गया है प्रतिदिन अंकुरित करके खाने को भी कहा गया है ।साथ ही गर्भावस्था के दौरान सतरंगी थाली के महत्व को भी बताया गया जिसमें उन्होंने कहा कि दाल, चावल, हरी पत्तेदार सब्जियां, एक फल खाने के बारे में बताया है नियमित रूप से अंकुरित चना खाने की समझाइश भी दी गई उन्होंने कहा इस प्रकार यदि हम पोषित भोजन करेंगे तो हमारा बच्चा कुपोषण की बीमारी से दूर रहेगा साथ ही नियमित रूप से टीकाकरण और जांच कराने के लिए भी कहा गया ।“
कोविड-19 महामारी के इस दौर में कोविड-19 के प्रोटोकॉल का पालन करते हुए सभी गतिविधियां का आयोजन किया जा रहा है। - द न्यूज़ इंडिया समाचार सेवा
जिले भर में 1.40 लाख से अधिक बच्चों का लिया जाएगा वज़न
कार्यकर्ता कर रही है जगह जगह दीवार पर नारा लेखन
महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा 7 जुलाई से वजन त्यौहार का आयोजन किया जा रहा है जिसमें 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों में पोषण स्तर के आकलन के लिए समुदाय की सहभागिता सुनिश्चित भी की जाएगी।इस बार वजन त्यौहार का आयोजन 16 जुलाई तक सभी आंगनबाड़ी केंद्रों में कोविड-19 के सुरक्षा मानकों का पालन करते हुए आयोजित किया जाएगा। जिले में 1.40 लाख बच्चों का वज़न लेने का लक्ष्य रखा गया है|
जिला कार्यक्रम अधिकारी अशोक पांडे ने बताया ‘’वजन त्यौहार को लेकर समस्त रायपुर जिले में आयोजन की तैयारी शुरु कर दी गई है । त्यौहार के दौरान बच्चों की लंबाई एवं वज़न ज्ञात करने के लिए कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षण दिया गया है ।इसके अलावा मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत की अध्यक्षता में जोनल अधिकारियों एवं महिला बाल विकास विभाग के परियोजना अधिकारी एवं पर्यवेक्षक की बैठक ली जा चुकी है ।जोनल अधिकारियों को वजन त्यौहार के संबंध में जानकारी दी गई और 5 वर्ष से छोटे बच्चों का वजन और लंबाई लेने की प्रक्रिया का प्रत्यक्ष प्रदर्शन कर बताया गया है।जिले में लगभग 1.40 लाख से अधिक बच्चों का वजन लिया जाएगा ।कुपोषित पाए गए बच्चों को लक्ष्य सुपोषण और मुख्यमंत्री सुपोषण अभियान से जोड़ा जाएगा । अति कुपोषित या गंभीर कुपोषित बच्चों को पोषण पुनर्वास केंद्र (एनआरसी) मे एडमिट करवाया जाएगा । इसी प्रकार एनीमिक पाई गई किशोरियों को भी मुख्यमंत्री पोषण अभियान से जुड़कर विशेष आहार के रूप में अंडा केला आदि दिया जाएगा साथ ही उनका नियमित फॉलो अप भी किया जाएगा। ‘’
गुढ़ियारी सेक्टर की पर्यवेक्षक रीता चौधरी ने बताया:“ सेक्टर की 28 आंगनबाड़ी केंद्रों में इस वजन त्यौहार के दौरान 2 वर्ष से कम उम्र के बच्चों की ऊंचाई इन्फैंटोमीटर से मालूम की जाएगी और जो बच्चे 2 वर्ष से अधिक उम्र के हैं उनकी लंबाई स्टूडियो मीटर से मालूम की जाएगी। इसका भी प्रशिक्षण समस्त पर्यवेक्षक द्वारा आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को दिया गया है ।‘’
रीता चौधरी ने कहा ‘’कार्यकर्ताओं द्वारा अपने-अपने क्षेत्र में नारा लेखन कर वजन त्यौहार के पक्ष में जन समुदाय के बीच वातावरण निर्मित किया गया है । इस बार विशेष रूप से सभी केंद्रों में इलेक्ट्रॉनिक वजन मशीन और वजन वृद्धि चार्ट भी लगाया गया है ।इस बार के वजन त्यौहार में 11 से 18 वर्ष की किशोरियों का हीमोग्लोबिन टेस्ट और उनका वजन लेकर बीएमआई (बॉडी मास इंडेक्स) निकाला जाएगा । त्योहार का उद्देश्य पोषण पर जन जागरूकता में वृद्धि करना किशोरियों के एमीनिया (खून की कमी) के स्तर में सुधार लाना भी है ।‘’
आंगनबाड़ी केंद्र अशोक नगर 2 की कार्यकर्ता कोकिला सिंह कहती है वजन त्यौहार को लेकर घर घर जा कर हितग्राहियों को 0 से 5 वर्ष तक के बच्चों को आंगनबाड़ी केंद्र पर लाकर उनका लंबाई एवं वजन की जांच कराने के लिए प्रेरित भी किया जा रहा है । - द न्यूज़ इंडिया समाचार सेवा
रायपुर : जिला चिकित्सालय पंडरी में विश्व रक्तदाता दिवस के अवसर पर श्री गहोई वैश्य समाज रायपुर द्वारा रक्तदान शिविर का आयोजन किया गया । जिसमें रक्तदाता को सर्टिफिकेट, एवं उपहार स्वरुप मास्क एवं ग्लब्स प्रदान किये गए ।
जिला चिकित्सालय पंडरी रायपुर के अस्पताल कंसल्टेंट डॉ.एनके ओझा ने बताया:’’ श्री गहोई वैश्य समाज रायपुर द्वारा रक्तदान शिविर का आयोजन किया गया । जिसमें 10 लोगों द्वारा रक्तदान किया गया । इस शिविर में विशेष रूप से समिति द्वारा रक्तदान करवाया गया रक्तदान उपरांत रक्तदाता को सर्टिफिकेट, एवं उपहार स्वरुप मास्क एवं ग्लब्स भी दिये गए ।‘’
उन्होंने कहा “इस वर्ष कोविड-19 संक्रमण की वजह से जिले में रक्तदान के लियें सोशल मीडिया के माध्यम से लोगों को रक्तदान के लिए जागरुक किया जा रहा है । डॉ. ओझा ने कहा,रक्तदान स्वास्थ्य सेवाओं का अति आवश्यक अंग है। वर्तमान में आधुनिक तकनीकों के बावजूद भी रक्त को कृत्रिम रूप से बनाया नहीं जा सकता है। इसका एकमात्र स्रोत रक्तदान ही है। उन्होंने रक्तदान शिविर के दौरान रक्तदाताओं को स्वैच्छिक रक्तदान के लाभ के बारे में भी बताया।“
डॉ.ओझा कहते है,‘’रक्तदान से पूर्व रक्तदाता की काउंसलिंग कर इससे होने वाले फायदे के बारे में जानकारी दी जाती है। ऐसे लोग जो स्वस्थ है। वह रक्तदान के लिए पात्र होते हैं। कोविड-19 के नियमों का पालन करते हुए रक्तदान करें । रक्तदाता को हैंडवाश करना, सेनेटाइजर का उपयोग और मास्क लगाना अनिवार्य है। सावधानियां व व्यक्तिगत सुरक्षा रख कर रक्तदान करने में किसी तरह का भी संक्रमण का खतरा नहीं होता है। दरअसल रक्तदान के महत्व को लेकर किए जा रहे प्रचार-प्रसार के बावजूद आज भी लोगों में बहुत सी कुछ गलत धारणाएं विद्यमान हैं, जैसे रक्तदान करने से संक्रमण का खतरा रहता है। शरीर में कमजोरी आती है, बीमारियां शरीर को जकड़ सकती हैं ।‘’
रक्तदान करने पंहुची आयुषी गुप्ता ने बताया:’’ वह पहले भी कई बार रक्तदान कर चुकी है रक्तदान करने पर उन्हें गर्व महसूस होता है, उनका कहना है रक्तदान किसी का जीवन बचा सकता है ।कोई भी व्यक्ति जिला चिकित्सालय पंडरी के ब्लड बैंक आकर रक्तदान कर सकता है।
रक्तदान शिविर में दो गज की शारीरिक दूरी, मास्क एवं सैनीटाइजेशन पर विशेष व्यवस्था करते हुए रक्तदान शिविर का आयोजन किया गया ।
शिविर में जिला अस्पताल रायपुर के सिविल सर्जन डॉ. पीके गुप्ता, डॉ. एसके भंडारी (आरएमओ), डॉ. पी.महिश्वर पैथोलॉजिस्ट, डॉ.एम.वानखेड़े, डॉ.एस.साहू, स्टाफ नर्स श्रीमती पार्वती साहू, श्रीमती नम्रता मसीह, लैब टेक्नोलॉजिस्ट रिंकू सिंह, श्रीकांत सोनी, उपस्थित रहे वहीं शिविर सयोंजक अशोक बानी एवं संजय गुप्ता का रक्तदान शिविर को सफल बनाने में विशेष योगदान रहा | -
Chhattisgarh CFAR- द न्यूज़ इंडिया सामाचार सेवा
कोविड-19 की दूसरी लहर के बाद कोविड से संक्रमित हुए लोग और उनके तीमारदारों में चिंता, घबराहट और नींद की समस्या बढ़ गई है । कोरोना काल में लोगों के मन में भय ज्यादा है जिसके कारण अनेक प्रकार की मानसिक समस्याएं भी उत्पन्न हो रही है । नींद ना आना भी एक प्रकार की मानसिक समस्या है । लोगों को अपने मन से इन परेशानियों एवं भय को दूर करना चाहिए और नींद ना आने की समस्या से निजात पाने के लिए बिना डॉक्टर की सलाह के नींद की दवाइयों के उपयोग से बचना चाहिए। बिना डॉक्टरी सलाह के नींद की दवाओं का सेवन खतरनाक हो सकता है ।
स्पर्श क्लीनिक के मनोचिकित्सक डॉ.अविनाश शुक्ला ने बताया, "स्पर्श क्लीनिक की ओपीडी लॉक डाउन के समय भी नियमित रूप से चल रही है । यहाँ पर निशुल्क परामर्श और इलाज होता है तथा उपचार के लिए आए लोगों की पहचान भी गुप्त रखी जाती है । कोविड-19 की दूसरी लहर के बाद चिंता और नींद ना आने की समस्या में वृद्धि देखी गई है । नींद शरीर को स्वस्थ रखने के लिए बहुत आवश्यक है और कोविड-19 से संक्रमित हुए लोगों में नींद ना आने जैसी समस्या बढ़ गई है साथ ही संक्रमित हुए लोगों की तीमारदारी करने वाले लोग भी नींद ना आने की समस्या से परेशान हो रहे है" ।
बीते अप्रैल और मई में आंकड़े बताते हैं कि दो माह में कुल अवसाद के 36, चिंता/घबराहट के 48 और नींद ना आने के 15 लोग परामर्श के लिये स्पर्श क्लीनिक आये थे । जिसमें अप्रैल में अवसाद के 22, चिंता/घबराहट के 13 और नींद ना आने के 5 लोगों ने उपचार लिया । वहीं मई में अवसाद के 14, चिंता/घबराहट के 35 और नींद ना आने के 10 लोग आये। लोगों में समस्या बढ़ने के साथ साथ एक और परेशानी है कि लोग बिना डॉक्टरी सलाह के दवाईयॉ ले लेते है जो लंबे समय में नुकसानदायक हो सकती है । मानसिक परेशानी में विषय विशेषज्ञ की सलाह बहुत जरूरी है। बिना उचित सलाह दवाओं के सेवन से बचें। राष्ट्रिय मानसिक स्वस्थ्य कार्यक्रम अंतर्गत ज़िला अस्पताल पंडरी में स्पर्श क्लीनिक संचालित है । यहाँ सभी प्रकार के मानसिक रोग के साथ साथ नशा-मुक्ति तथा मिर्गी और मिग्राइन जैसी समस्याओं का भी इलाज नि:शुल्क होता है ।
नींद कितनी आना चाहिये ।
हर व्यक्ति को अपनी उम्र के अनुसार नींद लेनी चाहिए। एक से तीन माह के बच्चों को 17 से 19 घंटा तक सोता है । बच्चा इससे कम सोता है तो यह चिंता का विषय है। शिशुओं को 12-15 घंटे की नींद लेनी चाहिए। यह अवधि 18 घंटे से अधिक नहीं होनी चाहिए। 1 से 2 साल के बच्चे को 11 से 14 घंटे सोना चाहिए। इससे कम सोने पर शिशु बीमार पड़ सकता है। 3 से 5 साल के बच्चे को 10 से 13 घंटे की नींद लेनी चाहिए। 6 से 13 साल के बच्चे को 9 से 11 घंटे की नींद लेने हैं। किशोरावस्था में 8 से 10 घंटे की नींद इनके लिए सही होती है। 18 से 25 साल के व्यक्ति को 7 से 9 घंटे की नींद लेनी चाहिये। 25 से 65 साल के व्यक्ति को सात से आठ घंटे की नींद लेना चाहिये। नींद का अत्यधिक कम होना या ज्यादा होना शरीर पर बुरा प्रभाव डालता है और सामान्य रूप से इस से बचना चाहिए । छुट्टियों के दिन भी उठने और सोने का समय नियमित रूप से बाकी दिन जैसा ही रखें। इसके साथ नशीले पदार्थों के सेवन, मोबाइल फोन का अत्यधिक उपयोग, ज़रूरत से ज्यादा भोजन तथा चाय कॉफी का अत्यधिक सेवन भी नींद पर बुरा प्रभाव डालता है । अच्छी नींद के लिए नियमित व्यायाम करें, पौष्टिक भोजन लें, बेड रूम मे ज्यादा तेज़ रौशनी न रखें और मन को शांत करने वाले कार्य करें।
- द न्यूज़ इंडियाकोविड-19 का बच्चों पर असर को रखते हुए स्वास्थ्य मंत्रालय ने जारी की गाइडलाइन
रेमडिसिविर,आइवरमेक्टिन, व इस्टीरायड बच्चों को देने पर रोक लगाई, सिर्फ गंभीर बच्चों को देने की अनुमति
रायपुर : आने वाले दिनों में कोविड-19 का असर बच्चों पर होने की संभावना को ध्यान में रखते हुए स्वास्थ्य मंत्रालय ने बुधवार को गाइडलाइन जारी की है।
इसके मुताबिक सिर्फ कोरोना से ग्रसित गंभीर बच्चों को ही अस्पताल में भर्ती करने की जरूरत होगी। बाकी का इलाज होम आइसोलेशन में रखकर किया जा सकता है। गाइडलाइन के मुताबिक जिन बच्चों का आक्सीजन लेवल 90 से नीचे गिरता है, उन्हें कोविड अस्पताल में भर्ती किया जाना चाहिए। गाइडलाइन में बच्चों को इस्टीरायड देने की मनाही की गई है। सिर्फ गंभीरबच्चों को जरूरत पड़ने पर यह दवा देने की अनुमति दी जाएगी। इसके अलावा कोविड-19 के इलाज में इस्तेमाल हो रही रेमडिसिविर, आइवरमेक्टिन, फैवीपिराविर जैसी दवाओं को बच्चों को देने से मना किया गया है।
गाइडलाइन में आगे कहा गया है कि जिन बच्चों का आक्सीजन लेवल 90 से कम आता है उन्हें गंभीर निमोनिया, एक्यूट रिसपाइटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम, सैप्टिक शाक, मल्टी आर्गन डिस्फक्शन सिंड्रोम जैसी बीमारियां हो सकती हैं। ऐसे मरीजों को फौरन किसी कोविड अस्पताल में भर्ती कराया जाए और जरूरत पड़े तो आईसीयू में शिफ्ट किया जाए। इन बच्चों को इस्टीरायड दिए जा सकते हैं।
गाइडलाइन के अनुसार कुछ बच्चे बुखार के साथ पेट दर्द, उल्टी व दस्त की समस्या के आ सकते हैं, उनका भी कोरोना मरीज के तौर पर इलाज किया जाना चाहिए। उनका स्टूल टेस्ट कराने पर पुष्ट हो जाएगा कि उन्हें कोरोना है या नहीं।
दिशानिर्देश में यह भी कहा गया है कुछ बच्चों में मल्टी सिस्टम इन्फ्लैमटोरी सिन्ड्रोम भी हो सकता हैजिसके लिए सतर्क रहने की जरूरत है।
गाइनलाइन में साफ कहा गया है कि सिर्फ कोरोना ग्रसित गंभीर बच्चों को भर्ती कराने की जरूरत होगी। बाकी का इलाज में घर में रहकर ही किया जा सकता है। बस उनकी नियमित मानिटरिंग होती रही। ज्यादातर बच्चे लक्षणविहीन हो सकते हैं इसलिए उनका इलाज सावधानी से करने की जरूरत है।
क्या हो सकते है लक्षण-
ज्यादातर बच्चे लक्षण विहीन या हल्के-फुल्के लक्षण वाले होंगे
उनमें बुखार, खांसी, सांस लेने में तकलीफ, थकावट, सूंधने व टेस्ट की क्षमता में कमी आना, नाक बहना, मांसपेशियों में तकलीफ, गले में खराश जैसेलक्षण होंगे-
कुछ बच्चों में दस्त आना, उल्टी होना, पेट दर्द होना
कुछ में मल्टी सिस्टम इंफलामेट्री सिंड्रोम होगा। ऐसे बच्चों को बुखार 38 सेंटीग्रेड से अधिक होगा, उनके लक्षण SARS CoV-2 से संबंधित हो सकते हैं। इनबच्चों में खांसी, नाक बहना व गले में खराश जैसे लक्षण भी हो सकते हैं । -
द न्यूज़ इंडिया समाचार सेवा
इन नियमों का पालन कर मिलता है होम आइसोलेशन, ऐसा नहीं करने से हो जाएंगे हॉस्पिटल रेफर
रायपुर : प्रदेश में कोरोना पर लगाम लगाने के लिए स्वास्थ्य विभाग द्वारा तरह-तरह के जतन किये जा रहे हैं। कोरोना संक्रमण की रफ्तार जिस गति से बढ़ रही है उसमें होम आइसोलेशन ने विभाग को काफी राहत प्रदान की है। राज्य सरकार द्वारा जारी किये गए आंकडों के मुताबिक राज्य में 6.05 लाख से अधिक मामले आए हैं जिनमें से 3.60 लाख से अधिक लोग होम आइसोलशन से ठीक हो चुके हैं। स्वास्थ्य विभाग की मानें तो कम लक्षण और लक्षण नहीं होने पर कोरोना रिपोर्ट पॉजिटिव आने पर होम आइसोलेशन सबसे बेहतर विकल्प है। होम आइसोलेशन हेतु निम्न सहायता 108 संजीवनी एंबुलेंस सेवा, 104 आरोग्य एवं परामर्श सेवा, 1099 मुक्तांजलि सेवा, ई-संजीवनी ओपीडी एप मौजूद है।
होम आइसोलेशन में पालन किये जाने वाले नियम
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग द्वारा जारी जानकारी के अनुसार होम आइसोलेशन हेतु बताए गए सभी दिशा-निर्देशों का पालन करना आवश्यक है । संपूर्ण अवधि में घर के पृथक हवादार शौचालय युक्त कमरा में रहना होगा । प्रतिदिन अपनी ऑक्सीजन सांद्रता एवं तापमान की रिपोर्ट प्रेषित करना चाहिए| कंट्रोल रूम/चिकित्सक से आने वाले टेलीफोन का उचित जवाब देना । संपूर्ण अविध के दौरान घर से बाहर नहीं निकालना चाहिए और अपने कमरे के शौचालय, कपड़े एवं बर्तन की प्रतिदिन नियमानुसार सफाई करेंगे। किसी भी प्रकार से खतरे की अवस्था होने पर अपने चिकित्सक/कंट्रोल रूम में सूचित करना होगा और चिकित्सक के परामर्श अनुसार नियमित दवाई का सेवन करना होगा| सभी प्रकार के दस्तावेजों में सही जानकारी उपलब्ध करवाना और अपने परिजनों की कोविड जांच नियमानुसार करवाना जरूरी है| परिजनों को चिकित्सक द्वारा बताए गए आवश्यक प्रोफिलेक्सिस की दवाई का सेवन करवाना चाहिए| अपने घर में पूरे समय तक मास्क लगाकर रहना और होम आइसोलेशन के दौरान दिशा-निर्देशों का पालन नहीं कर रहें हैं वह अपात्र होंगे।
होम आइसोलेशन हेतु प्रक्रिया
कोविड 19 से पॉजिटिव आने वाले मरीजों को उपलब्ध एप के माध्यम से या हार्ड कॉपी के माध्यम से कंट्रोल रूम से सहमति के पश्चात चिकित्सक की अनुमति के बाद होम आइसोलेशन की स्वीकृति दी जा सकेगी। ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले मरीज उस क्षेत्र के खंडचिकित्साधिकारी/चिकित्साधिकारी की अनुमति के पश्चात ही होम आइसोलेशन के लिए पात्र होंगे।
प्रत्येक मरीज होम आइसोलेशन की पात्रता के संबध में एक शपथ पत्र ( अंडरटेकिंग) भरकर संबंधित अधिकारी को उपलब्ध कराएंगे। किसी भी आपातकालीन स्थिति में मरीज अपने निकटम कोविड अस्पताल में उपलब्ध एंबुलेंस या स्वंय के निजी वाहन से तत्काल पहुंचना होगा|
होम आइसोलेशन में रहने वाले मरीज आवश्यक रूप से ये ना करें
घर के अंदर अन्य कमरों ने ना जाएं, घर में बिना मास्क के न रहें, अपने बर्तन एवं कपड़ों को स्वंय साफ करें, दवाईयों का सेवन बंद न करें, अपनी जांच की रिपोर्ट नियमित रूप से चिकित्सक/कंट्रोल रूम को आवश्यक रूप से अवगत करावें, किसी खतरे की आशंका नजरअंदाज न करें, निकटस्थ कोविड चिकित्सालय की पूरी जानकारी रखें, आपातकाल में उपयोग हेतु एंबुलेंस/निजी वाहन की जानकारी पूर्ण रूप से रखें, बिना चिकित्सकीय सलाह के किसी प्रकार की जांच या दवाई का सेवन न करें, किसी भी खतरे की आशंका में तत्काल चिकित्सक / कंट्रोल रूम को आवश्यक रूप से अवगत कराएं, अपना मोबाईल स्विच ऑफ न करें, अपनी जानकारी गलत न देवें, होम आइसोलेशन के दौरान घर से बाहर न निकलें।
होम आइसोलेशन के लिए पात्रता
कोविड 19 के धनात्मक ऐसे मरीज जो लक्षण रहित अथवा कम लक्षण के हो, मरीज के घर में पृथक से शौचालययुक्त हवादार कमरा उपलब्ध हो, मरीज की देखरेख हेतु 24 घंटे के लिए एक परिचारक/परिजन उपलब्ध हो, मरीज समस्त शासकीय दिशा-निर्देशों की पालन करने की लिखित सहमति दे, मरीज चिकित्सक के बताए अनुसार नियमति रूप से दवाओं का सेवन करें, मरीज अपने समस्त पैरामीटर की जानकारी प्रतिदिन कम-से-कम दो बार कंट्रोल रूम को प्रेषित करेंगे, को-मॉर्बिट मरीज/अधिक उम्र के मरीज प्रतिदिन कम-से-कम एक बार वीडियो कॉलिंग की सहमित दें, मरीज घर में पूरे समय मास्क लगाकार रहेंगे तथा साफ-सफाई के सभी निर्देशों का पालन करेंगे, मरीज के परिजन परामर्श अनुसार नियमित रूप से बचाव हेतु अपनी दवाओं का सेवन करेंगे। मरीज अपने घर/ कमरे से पूरे 17 दिन तक बाहर नहीं निकलेंगे।
होम आइसोलेशन के लिए अपात्र के मरीजों की जानकारी
अत्यधिक उंम्र के व्यक्ति एवं एमीनो कॉम्प्रोमाइज व्यक्ति (एआईवी पॉजिटिव) अंगदान के मरीज, कैंसर के उपचारत मरीज आदि, ऐसे मरीज जो गंभीर किडनी की बीमारी से ग्रसित हों, जिनका डायलिसिस निरंतर चल रहा हो या सीरम क्रियेटिनी 2 से ज्यादा हो या जो गंभीर स्वास्थ्य की स्थिति में हों वे अपात्र होंगे,. सांस की परेशानी के मरीज तथा जो विगत 3 माह के अंदर सांस या ह्रदय संबंधी रोगों के लिए भर्ती हों वे भी अपात्र होंगे। जिन मरीजों के पास स्मार्ट फोन उपलब्ध न हो, जिन मरीजों को स्मार्ट फोन चलाना न आता हो, ऐसे मरीज जो पहुंचविहीन क्षेत्रों में रहते हों, ऐसे स्थानों के मरीज जहां मोबाईल नेटवर्क उपलब्ध न हों, जिनके घर में पृथक से शौचालययुक्त कमरा न हों, एकल निवास करने वाला व्यक्ति। -
द न्यूज़ इंडिया समाचार सेवा
ऑक्सीजन का स्तर 94 से कम होने पर पेट के बल सोने की होती है जरूरत
दायें एवं बाएं करवट सोने से भी मिलती है राहत
गर्भवती माताएं, हृदय एवं स्पाइन रोगी पेट के बल सोने से करें परहेज
रायपुर : कोरोना की दूसरी लहर में संक्रमितों में ऑक्सीजन की कमी की समस्या सबसे अधिक देखी जा रही है. शरीर में ऑक्सीजन की कमी होने के कारण कई कोरोना पॉजिटिव रोगियों को अस्पताल जाने की जरूरत भी पड़ रही है. लेकिन होम आइसोलेशन में रह रहे मरीज अपने सोने के पोजीशन में थोड़ा बदलाव कर ऑक्सीजन की कमी को दूर कर सकते हैं. इस प्रक्रिया को `प्रोनिंग’ कहा जाता है और इसको लेकर स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार ने इस संबंध में पोस्टर के माध्यम से विस्तार से जानकारी दी है.
पेट के बल सोने के लिए 4 से 5 तकिए की जरूरत:
यदि किसी कोरोना संक्रमित व्यक्ति को सांस लेने में दिक्कत हो रही हो एवं ऑक्सीजन की स्तर 94 से घट गया हो तो ऐसे लोगों को पेट के बल सोने की सलाह दी गयी है. इसके लिए सबसे पहले वह पेट के बल सो लें. एक तकिया अपने गर्दन के नीचे रखें. एक या दो तकिया छाती के नीचे रख लें एवं 2 तकिया पैर के टखने के नीचे रखें. इस तरह से 30 मिनट से 2 घंटे तक सो सकते हैं. साथ ही स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने इस बात पर भी विशेष जोर दिया है कि होम आईसोलेशन में रह रहे मरीजों की तापमान की जाँच, ऑक्सीमीटर से ऑक्सीजन के स्तर की जाँच, ब्लड प्रेसर एवं शुगर की नियमित जाँच होनी चाहिए.
सोने के 4 पोजीशन फायदेमंद:
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने कोरोना पॉजिटिव मरीजों के लिए सोने की 4 पोजीशन को महत्वपूर्ण बताया है जिसमें 30 मिनट से 2 घन्टे तक पेट के बल सोने, 30 मिनट से 2 घन्टे तक बाएं करवट, 30 मिनट से 2 घन्टे तक दाएं करवट एवं 30 मिनट से 2 घन्टे तक दोनों पैर सीधाकर पीठ को किसी जगह टीकाकार बैठने की सलाह दी गयी है. यद्यपि, मंत्रालय ने प्रत्येक पोजीशन में 30 मिनट से अधिक समय तक नहीं रहने की भी सलाह दी है.
इन बातों का रखें ख्याल:
· खाने के एक घन्टे तक पेट के बल सोने से परहेज करें
· पेट के बल जितना देर आसानी से सो सकतें हैं, उतना ही सोने का प्रयास करें
· तकिए को इस तरह रखें जिससे सोने में आसानी हो
इन परिस्थियों में पेट के बल सोने से बचें:
· गर्भावस्था के दौरान
· वेनस थ्रोम्बोसिस( नसों में खून के बहाव को लेकर कोई समस्या)
· गंभीर हृदय रोग में
· स्पाइन, फीमर एवं पेल्विक फ्रैक्चर की स्थिति में
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द न्यूज़ इंडिया समाचार सेवा
राज्य स्वास्थ्य विभाग ने आइवरमेकटिन, डाक्सीसाइक्लिन और पैरासिटामॉल लेते रहने की दी सलाह
कोरोना संक्रमण के लक्षण हैं तो तुरंत टेस्ट कराएं : डॉ. योगेश पटेल
रायपुर : किसी को कोरोना के लक्षण हैं और उनकी टेस्ट रिपोर्ट नहीं आई तो वह इस रिपोर्ट के बिना भी दवाई ले सकते हैं। इस संदर्भ में छत्तीसगढ़ स्वास्थ्य विभाग ने कोरोना के संभावित मरीजों के लिये इलाज का नया प्रोटोकॉल जारी किया है। संभावित मरीजों को पांच दवाएं लेने की सलाह दी गई है। इसमें आइवरमेकटिन, डाक्सीसाइक्लिन, पैरासिटामॉल, विटामिन-सी और जिंक की गोलियां शामिल हैं।
स्वास्थ्य विभाग की अपर मुख्य सचिव रेणु जी. पिल्लै ने गुरुवार को मेडिकल कॉलेज के सभी डीन और मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारियों को यह प्रोटोकॉल जारी किया है जिसे राज्य स्तरीय ट्रीटमेंट कमेटी ने तय किया है। इसके अनुसार सैंपल देने के बाद रिपोर्ट आने में देरी हो रही है ऐसी दशा में लक्षण वाले मरीजों को इलाज तत्काल उपलब्ध कराना है। जब तक कोरोना की पुष्टि नहीं हो जाती तब तक के लिये कमेटी ने आइवरमेकटिन को दिन भर में एक गोली भोजन के बाद पांच दिनों तक, डाक्सीसाइक्लिन की एक-एक गोली सुबह-शाम सात दिनों तक, पैरासिटामोल की एक-एक गोली चार बार तीन दिनों तक, तीन दिन के बाद बुखार और बदन दर्द होने पर पैरासिटामॉल दिया जा सकता है। विटामिन सी की एक-एक गोली भोजन के बाद 10 दिनों तक और जिंक टेबलेट की एक गोली रोज 10 दिनों तक खाने को कहा है। यह दवाएं सरकार को उपलब्ध कराना है।राज्य स्वास्थ्य विभाग ने एहतियात बरतते हुए बड़ा कदम उठाया है। किसी व्यक्ति में कोरोना संक्रमण के लक्षण हैं तो वह तुरंत कोरोना जांच कराए। रैपिड एंटीजन रिपोर्ट तो तुरंत आ जाती है पर कई दफे आरटीपीसीआर रिपोर्ट को आने में समय लग जाता है क्योंकि लगातार कोविड के मामले बढ़ते जा रहे हैं लक्षण वाले मरीजों की यदि रिपोर्ट नहीं आती है तो लोग स्वास्थ्य विभाग द्वारा सुझाए दवाई का कोर्स जरूर लें। यह दवाई आपको सैंपलिंग सेंटर व मितानिनों के पास से मिल जाएगी।
किस काम की कौन सी दवा
आइवरमेकटिन एक एंटी पैरासाइट है। यह परजीवियों के संक्रमण के उपचार में काम आता है। वहीं डाक्सीसाइक्लिन एक एंटी बॉयोटिक है। जीवाणुओं के संक्रमण को ठीक करने में कारगर है। पैरासिटामॉल 650 मिग्रा बुखार और दर्द की दवा है। होम आइसोलेशन में रह रहे मरीजों के लिये 10 अप्रैल को इन दवाओं का प्रोटोकाल तय हुआ था। स्वास्थ्य विभाग ने गुरुवार को इसे संदिग्ध मरीजों के लिये भी जारी कर दिया।
गुनगुना पानी, भाप और व्यायाम करें
ट्रीटमेंट कमेटी ने लक्षण वाले मरीजों को रिपोर्ट आने से पहले प्रतिदिन 3 से 4 लीटर गुनगुना पानी पीने, दिन में तीन बार भाप लेने की सलाह दी है। उसके साथ ही रोज आठ घंटे की नींद और 45 मिनट व्यायाम करने या टहलने की सलाह दी गई है। ऐसे मरीजों के ऑक्सीजन लेवल की रिपोर्ट लेते रहने को कहा गया है। ऑक्सीजन स्तर 94 प्रतिशत से कम होने पर अथवा सांस लेने में तकलीफ होने पर डॉक्टर को सूचीत करने का निर्देश है। - द न्यूज़ इंडिया समाचार सेवा40 साल की उम्र के बाद होने वाली बीमारियाँ अब 30 में ही रहीं घेर
आज की भागदौड़ भरी जिन्दगी और बदलती जीवन शैली ने सबसे अधिक युवा पीढ़ी को प्रभावित किया है । जीवन में जल्दी से जल्दी बहुत कुछ हासिल कर लेने की चाह ने जहाँ उनके सुकूनको छीन लिया है वहीँ उनके पास न तो सही से खाने का वक्त होता है और न ही सोने का। फ़ास्ट फ़ूड और दिखावे के लिए शराब और सिगरेट का सहारा लेने वाले युवाओं में हृदय रोग, डायबिटीज, कैंसर और हाइपरटेंशन जैसी गैर संचारी रोग अब 30 साल की उम्र में ही शरीर पर कब्ज़ा जमाने लगी हैं, जबकि यह बीमारियाँ पहले 40 साल की उम्र के बाद की मानी जाती थीं ।
इन्हीं परिस्थितियों से लोगों को उबारने के लिए ही हर साल विश्व स्वास्थ्य संगठन के स्थापना दिवस पर सात अप्रैल को विश्व स्वास्थ्य दिवस मनाया जाता है जिसका मूल मकसद लोगों को स्वस्थ जीवन प्रदान करने के लिए जरूरी परामर्श के साथ जागरूक भी करना है । हर साल अलग-अलग थीम पर मनाये जाने वाले दिवस की इस बार की थीम है- बिल्डिंग अ फेयरर, हेल्दियर वर्ल्ड (एक निष्पक्ष, स्वस्थ दुनिया का निर्माण) ।
मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ.मीरा बघेल का कहना है “शारीरिक रूप से स्वस्थ होना स्वस्थता की निशानी नहीं है । स्वस्थ होने के लिए मानसिक और शारीरिक दोनो रूप से स्वस्थ होना बहुत आवश्यक है । साथ ही शरीर को नियमित रूप से व्यायाम और सही पोषण से चुस्त और दुरुस्त रखना चाहिए । आधुनिक दौड़-भाग की जीवन शैली में शरीर को स्वस्थ रखने के लिए कम से कम प्रतिदिन 45 मिनट तक व्यायाम या शारीरिक श्रम करना चाहिए इससे ह्रदय संबंधित रोग और डायबिटीज से शरीर स्वस्थ और रक्षित बना रहता है ।
शराब और तंबाकू जैसे नशीले सेवन से बचना चाहिए यह शरीर को भारी नुकसान पहुंचाते हैं । बीमारियों के बढ़ते प्रकोप को देखते हुए सरकार ने घर के नजदीकी हेल्थ एंड वैलनेस सेंटर स्थापित किये है वहां इन बीमारियों की स्क्रीनिंग की व्यवस्था के साथ-साथ प्रातः काल में योगा क्लास और काउंसलिंग की व्यवस्था भी की है”
सरकार हर किसी को स्वस्थ्य रखने के उद्देश्य से ही मातृ-शिशु स्वास्थ्य देखभाल, किशोर-किशोरी स्वास्थ्य देखभाल और प्रजनन स्वास्थ्य को लेकर पूरे प्रदेश में विभिन्न कार्यक्रमों को संचालित कर रही है। आंगनबाड़ी केन्द्रों के माध्यम से बच्चों और गर्भवती के सही पोषण की व्यवस्था कर रही है । हर क्षेत्र में मितानिन आशा कार्यकर्ता की नियुक्ति की गयी है जो स्वास्थ्य सम्बन्धी किसी भी मुश्किल में साथ खड़ी नजर आती हैं ।
स्वस्थ जीवन के लिए है जरूरी :
- संतुलित आहार लें, फल व सब्जियों की मात्रा बढ़ाएं
- नियमित व्यायाम से शरीर को चुस्त-दुरुस्त रखें
- तनाव मुक्त रहें, कोई दिक्कत हो तो परिवार से शेयर करें
- प्रतिदिन छह से सात घंटे की निद्रा या आराम जरूरी
- वजन को संतुलित रखें
- दिक्कत महसूस हो तो प्रशिक्षित चिकित्सक से संपर्क करें
स्वस्थ रहना है तो क्या न करें :
- चीनी व नमक का कम से कम सेवन करें
- तम्बाकू और शराब से तौबा करने में ही है भलाई
- तले खाद्य पदार्थों का सेवन न करें
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द न्यूज़ इंडिया समाचार सेवा
दुर्ग : विश्व टीबी दिवस के मौके पर टीबी के प्रति जागरुकता लाने को जिले में टीबी प्रचार रथ को रवाना किया गया है। इसके माध्यम से जनसामान्य को टीबी बीमारी के प्रति जागरुक कर रोग से बचाव के लिए उपाय बताये जा रहे हैं। प्रचार रथ में माइकिंग करके, पर्चा व पम्पलेट के माध्यम से लोगों को जानकारी दीजा रहीहै।आज विश्व टीबी दिवस के मौके पर मास्क सेल्फी कैंपेन का भी आयोजन किया गया। जिला क्षय नियंत्रण केंद्र प्रांगण में आज सभी स्वयं सेवी संस्थाओं एवं टीबी कार्यक्रम के सभी कर्मचारियों को टीबी का स्लोगन लिखे हुए मास्क का वितरण किया गया। इसके बाद जनसामान्य, यातायात पुलिस, बस व आटो चालक, स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को भी ऐसे ही मास्क का वितरण किया गया।
जिला टीबी अधिकारी डॉ अनिल कुमार शुक्ला ने बताया, “टीबी यूनिट धमधा द्वारा टीबी मरीज एवं डाट्स प्रोवाईडर के बीच समन्वय स्थापित करने को कार्यक्रम आयोजित किया गया। जिसमें टीबी मरीजों को दवा का पूरा कोर्स करने के लिए प्रोत्साहित किया गया साथ ही डॉट्स प्रोवाईडर को प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया गया।
टीबी के उपचार में मरीज को डेली डाट्स की दवा डाट्स प्रोवाईडर बनाकर द्वारा दी जाती है। डाट्स प्रोवाईडर कोई भी व्यक्ति हो सकता है ग्रामीण अंचल में मितानिन व टीबी मितान भी डाट्स प्रोवाईडर का काम करते हैं”।
जिला टीबी अधिकारी डॉ शुक्ला ने बताया, “टीबी अथवा क्षयरोग एक संक्रामक बीमारी है, जो माइको ट्यूबरक्युलोसिस बैक्टीरिया के कारण होती है। इसका ज्यादातर असर फेफड़ों पर होता है।यह संक्रामक बीमारी है और पीड़ित मरीज के खांसने- छींकने के दौरान मुंह-नाक से निकलने वाली ड्रॉपलेट्स के जरिए अन्य स्वस्थ व्यक्ति को संक्रमित कर सकती है।उन्होंने बताया, सिर्फ फेफड़ों का टीबी ही संक्रामक होता है। टीबी शरीर के अन्य हिस्सों में भी हो सकता है, लेकिन वह संक्रामक नहीं होता है। टीबी रोग का निदान सही समय पर समुचित इलाज मिलने से संभव है। जबकि इलाज में लापरवाही जानलेवा भी हो सकता है”।
निशुल्क जांच, इलाज की सुविधा
जिला टीबी अधिकारी डॉ शुक्ला ने बताया, टीबी उन्न्मूलन के लिए सरकार की कई योजनाएं चल रही हैं। इन योजनाओं का लाभ लेने के लिए निक्षय पोर्टल पर पंजीकरण अनिवार्य है। इसके बाद मरीज निशुल्क जांच और इलाज की सुविधा ले सकते हैं।घर के पास स्वास्थ्य केंद्र पर निशुल्क दवा भी मिल जाएगी। पोर्टल पर पंजीकरण कराने के अलावा एक कार्ड भी दिया जाता है। मरीजों को पोषण भत्ते के रूप में हर महीने 500 रुपये भी खाते में दिए जाते हैं। - कार्यशाला में दिया गया जीवन कौशल और आत्महत्या रोकथाम पर प्रशिक्षण
खेल और गतिविधियों पर आधारित है प्रशिक्षण
प्रदेश में राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत जीवन कौशल और आत्महत्या रोकथाम पर 8 जिलों के सोशल वर्कर, सायकेट्रिक नर्स और कम्युनिटी मोबिलाइजर के लिये आज से चार दिवसीय कार्यशाला का शुरू हुई।प्रशिक्षण कार्यशाला में निमहंस ( नेशनल इंस्टीट्यूट आफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरो साइंस) बैंगलूरू से मनोरोग पर प्रशिक्षण प्राप्त सहयोगी प्रशिक्षण दे रहे है ।
इस अवसर पर बोलते हुए ज्वाइंट डायरेक्टर (मानसिक स्वास्थ्य) डॉ.प्रशांत श्रीवास्तव ने प्रतिभागियों से कहा:‘’ प्रशिक्षण का उद्देश्य आपके कौशल को निखारना है ।आपके द्वारा प्रशिक्षण प्राप्त करने के उपरांत नीचे तक प्रशिक्षण को पहुंचाना और प्रशिक्षण में मिली जानकारी को हुनर के रूप में इस्तेमाल करना है । समाज के सभी वर्गों के लोग जुड़कर आत्महत्या करने वाले नागरिकों की रोकथाम के लिये गेट कीपर का काम करें ।‘’
उप संचालक,राज्य मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम के नोडल अधिकारी डॉ. महेंद्र सिंह ने कहा मानसिक रोग छुआछूत से नहीं फैलता। यह बीमारी किसी को भी हो सकती है, यहां तक की बच्चे भी इससे अछूते नहीं है। लोगों में बढ़ रही आत्महत्या की प्रवृति चिंतन का विषय है।‘’
उन्होंने कहा इसके रोकथाम के लियें शासन ने पहल की है। प्रत्येक स्तर से आत्महत्या की प्रवृत्ति को रोकने का प्रयास किया जा रहा हैं। आत्महत्या की प्रवृत्ति को रोकने के लिए जीवन कौशल के विषय को गहराई से समझना होगा । ’
निमहंस बैगलूरु से प्रशिक्षण प्राप्त राज्य मानसिक चिकित्सालय सेन्द्री बिलासपुर से आए प्रशिक्षक प्रशांत रंजन पांडे ने बताया इस प्रशिक्षण का उद्देश्य नए साथियों को जीवन कौशल के साथ साथ आत्महत्या को रोके साथ ही आत्महत्या के पूर्व किये जाने वाले संकेतों को पहचानना और जीवन कौशल के साथ जीवन को नई दिशा दिये जाने पर प्रतिभागियों को गतिविधि आधारित समूह चर्चाकरके समझाया गया।
वहीं निमहंस बैगलूरु से प्रशिक्षण प्राप्त स्पर्श क्लीनिक ज़िला अस्पताल रायगढ़ से आए प्रशिक्षक अतित राव ने कहा ‘’यह प्रशिक्षण प्रदेश में अपने आप में एक नई पहल है जिसमें गतिविधि आधारित के साथ-साथ खेल खेल के माध्यम से प्रतिभागियों को मानसिक बीमारियों के बारे में बताया जा रहा है ।‘’ - नयातालाब आंगनवाड़ी केन्द्र पर तैनात 38 वर्षीय आंगनवाड़ी कार्यकर्ता अर्चना अपने काम के साथ ही अपने परिवार की जिम्मेदारी भी बखूबी निभाई है इस लिए महिला दिवस के मौके पर उनका जिक्र करना भी जरूरी हैअर्चना ने अपने जीवन में कई उतार-चढ़ाव देखे हैं 15 वर्षों से आंगनवाड़ी में कार्यरत हैं अर्चना कहती है कि खुशी का वह पल आज तक नही भूल पाती हूँ , जब दिल्ली से आई हुई टीम ने कहा अर्चना तुम्हारा केंद्र लाजवाब है उस दिन लगा कि मेरे काम की सही पहचान मिली है ।
अर्चना बताती हैं “मेरे पिता गाडी चालक है । मैं अपने भाई बहनों में सबसे बडी हूँ ।अचानक एक दिन पिताजी की आंख को लकवा मार गया। इलाजकरवाया पर ठीक नही हुए वह एक आंख से बिल्कुल नहीं देख पाते हैं ।उन्होंने कहा कि वह समय ऐसा था जब घर की सारी जिम्मेदारी मेरे कंधों पर आ गई थी लेकिन मैंने हिम्मत नहीं हारी और मैंने आंगनवाड़ी कार्यकर्ता के रूप में अपने जीवन की नयी शुरुआत की और इसी कार्य को करते हुए अपनी तीन छोटी बहनों की शादी भी करवाई और छोटे भाई को पढ़ाया भी ।
काम के प्रति इनकी मेहनत और लगन का ही नतीजा था कि विभाग ने बचपन की देखभाल और शिक्षा (ईसीसीई ) (Early childhood care & Education) की गतिविधि का शुभारंभ आंगनवाड़ी केंद्र नयातालाब गुढ़ियारी से प्रारंभ किया।
अर्चना कहती है,“मुख्यमंत्री सुपोषण अभियान के तहत लक्ष्य सुपोषण में मेरे क्षेत्र के दो बच्चे गंभीर कुपोषित आये थे । लॉक डाउन के कठिन समय में दोनो गंभीर कुपोषित बच्चों का ध्यान रखना एक बड़ी चुनौती थी लेकिन मैंने निरंतर उन दोनो बच्चों की अच्छे से देखभाल की और उनके माता पिता को पौष्टिक आहार की जानकारी दी ।लॉक डाउन के समय में उनके घर जाकर अपने सामने दूध अंडा केला प्रतिदिन एवं पौष्टिक गरमा-गरम भोजन देकर उनको मध्यम श्रेणी में लाई। अब वह बच्चे पूर्णता स्वस्थ हैं ।
अर्चना ने समाज सेवा के साथ परिवार के लिए भी बखूबी समय दिया है उनकी छोटी बहन जो शादी के 2 साल बाद ही विधवा हो गई थी । उसकी 3 माह की बच्ची जो जन्म से ही शारीरिक दिव्यांगता की परेशानी से लड रही है उसके लिएअर्चना ने रात-दिन एक कर दिया और आज वह बच्ची सहारे से खड़ी हो जाती है ।अर्चना कहती है कि इस बच्ची ने मुझे समाज सेवा और लोगों की समस्याओं को समझने का हुनर दिया है । पूरे समाज को,पूरे परिवार को साथ लेकर चलना,उनकी छोटी बडी समस्याओं को समझना,उचित मार्गदर्शन देकर,उनका हौसला बढ़ाना ।
अर्चना कहतीं हैं, “अब तो बच्चों के साथ ई.सी.सी.ई की गतिविधियों के द्वारा बच्चों को शिक्षा देना,जैसे जीवन का लक्ष्य हो गया है।मेरी बहन के ससुराल में उसे गर्भावस्था के समय उचित देखभाल व सही खानपान न मिलने के परिणाम स्वरूपही उसकी बच्ची जन्म से कमजोर और जन्म से ही उसको झटके आने की समस्या होने लगी जो आज भी जारी है ,उसकी ऐसी हालत देखते हुए ही मैंने संकल्प लिया कि क्षेत्र की जितनी भी गर्भवती माताएं होंगी मैं उनके जीवन में,मेरे बहन के जैसी परिस्थिति नहीं आने दूँगी इसके लिए मुझे जो भी करना पड़े मैं वह कार्य करूंगी ।
उनको हर प्रकार से सही देखभाल,खानपान,और मानसिक रूप से मजबूत बनाने के लिए भरसक प्रयासरत करुँगी। यही मेरे जीवन का एक मात्र लक्ष्य है। ताकि कोई भी नवजात शिशु अपना बचपन न खोऐ और मां अपने बच्चे को हसते खेलते हुए बड़ा होता देख सके”।
अर्चना कहती हैं,“ कार्य करने के दौरान बहुत सी चुनौतियाँ आतीं ऐसे ही एक वाकया का जिक्र करते हुए वह बोलीं कि एक बार बीएलओ ड्यूटी के दौरान एक घर पर जब जानकारी लेने के लिए पहुँचीं तो घर से निकले व्यक्ति ने बहुत ही गलत भाषा का प्रयोग करते हुए मुझे अपने घर से भगा दियाउस दिन लगा कहां नौकरी कर रहे हैं लेकिन ऐसी तमाम समस्याओं के बाद भी मैंने हार नहीं मानी ।
आज भी हम लोगों की समस्या को समझने और उसे दूर करने की पूरी कोशिश करते हैं ।असली सेवा लोगों का प्यार और गुस्सा दोनों ही है बस हम उसे समझकर उसे दो पल की खुशी दें यही असली समाज सेवा है”। -
जिले में अब बच्चों को सुपोषण थाली के भोजन की महक घर से आंगनबाड़ी केंद्रों खींच कर ला रही है । आंगनवाड़ी केंद्रों पर दीदी बच्चों को हाथ धुलवा कर पोषण थाली देती है जिससे बच्चे खूब मजे लेकर खाते है|
पर्यवेक्षक रीता चौधरी बताती है:“आंगनबाड़ी केंद्रों पर शासन द्वारा जारी कोविड-19 दिशा निर्देशों का पालन करते हुए कार्य किया जा रहा है । बच्चों और गर्भवती महिलाओं को पोषण थाली देने से पूर्व हाथों को अच्छे से धुलवाया और सैनिटाइज करवाया जाता है । साथ ही गर्भवती महिलाओं और शिशुवती माताओं का वज़न भी नियमित लिया जा रहा है ।पोषण थाली में दाल, चावल, रोटी रासेवाली मिक्स सब्जी, हरी भाजी, आचार, पापड़, सलाद में खीरा मूली, टमाटर, गाजर, हरी धनिया, नीबू , अंकुरित अनाज आदि में प्रोटीन के स्रोत प्रचुर मात्रा में रहता है।आंगनबाड़ी केंद्र से छह माह से तीन वर्ष, तीन वर्ष से छह वर्ष, गर्भवती,धात्री और किशोरियों के स्वास्थ्य और पोषण का ध्यान रखा जाता है ।वही गर्भवती को महतारी जतन के तहत गर्म भोजन में संपूर्ण थाली परोसी जाती है , जिसमें दाल, चावल, रोटी, हरी सब्जी,रासेदार सब्जी,अचार,पापड़,सलाद अंकुरित दालें, आंगनबाड़ी में खिलाया जाता है और घर पर भी सभी सम्पूर्ण आहार को खाने को कहा जाता है ।उन्होंने बताया “भोजन में ऐसे तत्वों को शामिल किया जाना चाहिए जिनमें पर्याप्त मात्रा में प्रोटीन, विटामिन आदि मिल सके। टेक होम राशन (टीएचआर) को विविध रूपों में खाने का तरीका भी है ।घर पर बच्चों को खाना अलग प्लेट या थाली में दे, जिससे पता चलता रहेगा आपके बच्चे ने कितना खाना खाया है।बच्चों को स्कूल पूर्व शिक्षा के लिए आंगनबाड़ी केंद्रों पर प्रतिदिन सारणी के अनुसार भेजें, साथ ही पढ लिखकर और पौष्टिक आहार खाकर वह कुपोषण से बच सकेंगे”।सुपोषित भोजन क्यों जरुरी
शरीर को स्वस्थ्य रखने में पोषक तत्व का अहम रोल होता है। जब कोई महिला गर्भवती होती है तो पोषण बच्चे के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता है।गर्भ में पल रहा बच्चा अपनी माता से गर्भ नाला द्वारा पोषण प्राप्त करता है। गर्भवस्था के दौरान महिलाओं का खान पान सही होना बहुत जरूरी है।अगर माता में पोषण की कमी या संक्रमण हुआ तो इसका सीधा असर बच्चे के मस्तिष्क और उसके शरीर के विकास पर पड़ सकता है। - स्वास्थ्य विभाग के विशेषज्ञों ने कार्यशाला के दौरान दिए उपयोगी टिप्स
बच्चों की परेशानियों को समझने और उनको नशा सेवन से दूर रखने की अपील
बलौदाबाजार : बच्चों में मानिसक बीमारियां होना आम है लेकिन इसकी समय से पहचान कर पाना एक चुनौति से कम नहीं है। बच्चों में मानसिक बीमारियों का कारण सिर्फ तनाव नहीं है बल्कि कई अन्य समस्याएं, नशा सेवन भी हैं। हालांकि दूसरी बीमारियों की तरह ही बच्चों में मानसिक बीमारियां भी ठीक की जा सकती हैं।
इसके लिए सबसे पहले बच्चों में मानसिक बीमारियां क्यों होती है, यह जानना जरूरी हैं, जिससे बच्चों की समय से मदद की जा सके। उक्त जानकारी चाइल्ड लाइन कार्यालय बलौदाबाजार में स्वास्थ्य एवं मनोवैज्ञानिक सहयोग व नशा मुक्ति विषय पर एक दिवसीय कार्यशाला के दौरान विशेषज्ञों ने दी।
स्वास्थ्य विभाग एवं सामाजिक संस्था गृहणी ( महिला एवं बाल विकास विभाग की चाइल्ड लाइन 1098 परियोजना अंतर्गत) द्वारा बच्चों के बेहतर स्वास्थ्य के लिए मानसिक स्वास्थ्य तथा नशा मुक्ति विषय पर एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया।जिसमें जिले के जिला नोडल अधिकारी डॉ. राकेश कुमार प्रेमी एवं जिला कार्यक्रम सलाहकार डॉ. सुजाता पांडेय ने मास्टर ट्रेनर के रूप में बच्चों की मानसिक बीमारियां और उन्हें दूर करने के उपायों पर विस्तार से चर्चा की।
साथ ही स्वास्थ्यगत एवं अन्य समस्याओं की वजह से बच्चों में नशाखोरी की आदत पर भी प्रकाश डाला गया। वहीं मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को पहचानने और उपचार शुरू करने के संबंध में भी जानकारी दी गई। सीएमएचओ डॉ. खेमराज सोनवानी के मार्गदर्शन में आयोजित कार्यशाला में गृहणी संस्था की रेखा शर्मा एवं विभिन्न विभागों के अधिकारी एवं कर्मचारी मौजूद रहे।
बच्चों में मानसिक अस्वस्थता - विशेषज्ञों ने बताया बच्चों में मानसिक अस्वस्थता कई तरह के हो सकते हैं। लेकिन कुछ सामान्य लक्षण होते हैं जिनके जरिए बच्चों की मानसिक बीमारियों की पहचान की जा सकती है।
जैसे - किसी बात को लेकर तनाव में रहते हुए नशीली दवाओं या एल्कोहल लेने की वजह से सामान्य व्यवहार का नहीं करना, दैनिक समस्याओं और गतिविधियों से निबटने में असमर्थता, नींद या खाने की आदतों में परिवर्तन होना, शारीरिक बीमारियों की अत्यधिक शिकायते, शारीरिक विकास का रूक जाना, बुरी आदतों का शिकार होना, स्कूल न जाना, चोरी करना या कीमती सामान को नुकसान पहुंचाना, नकारात्मक सोच का हावी होना, अत्याधिक गुस्सा करना, चिड़चिड़ाहट, स्कूल में बेहतर प्रदर्शन का दबाव,अच्छा प्रदर्शन करने पर कम अंक प्राप्त होना, दोस्तों का अमानवीय व्यवहार करना, ज्यादातर समय अकेला बिताना आदि। ऐसी समस्याओं को पहचान कर फौरन चिकित्सकीय परामर्श लें तो काफी हद तक बच्चों को मानसिक विकारों और नशा सेवन से बचाया जा सकता है।
खुलकर करें बात- डॉ. राकेश एवं डॉ. सुजाता ने संयुक्त रूप से बताया बच्चों में मानसिक बीमारियां होना एक आम समस्या है, जिसपर अपने परिवार और अपने डॉक्टर से खुल कर बात करनी चाहिए। कई मानसिक विकारों का प्रभावी ढंग से दवा, मनोचिकित्सा या दोनों के सयोंजन के साथ इनका इलाज किया जा सकता है। क्योंकि बच्चे जब मानसिक रूप से व्यथित होते हैं तभी वे असामान्य व्यवहार प्रदर्शित करते हैं और ऐसे में गलत संगत की वजह से वह नशे का सेवन करने के आदि हो जाते हैं।
साथ ही कई तरह के असामाजिक कार्य भी करने लगते हैं। हालांकि बच्चों में मानसिक बीमारियों को पहचानना माता-पिता और अन्य के लिए आसान नहीं हैं लेकिन कुछ जरूरी बातों को ध्यान में रखकर बच्चों की मदद कर सकते हैं। बच्चों में मानसिक बीमारियां होने पर तुरंत अपने डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए और डॉक्टर द्वारा बताए गए तरीकों के अनुसार ही बच्चों के साथ व्यवहार करना चाहिए। - · सीएससी पर आयुष्मान कार्ड बनाने के 30 रुपये नहीं देने होंगे शुल्क
· नेशनल हेल्थ ऑथोरिटी और सीएससी ई गर्वेनेंस ने किया एमओयू पर हस्ताक्षर
· देश के 10 प्रदेशों में योजना प्रारंभ, बिहार में भी किया गया लागू
रायपुर : नेशनल हेल्थ ऑथोरिटी तथा कॉमन सर्विस सेंटर के बीच 18 फ़रवरी, 2021 को एमओयू पर हुए हस्ताक्षर के बाद अब बिहार सहित देश के 10 राज्यों में आयुष्मान कार्ड नि:शुल्क बनाया जा सकेगा. भारत सरकार द्वारा जारी विज्ञप्ति में कहा गया है कि यह सुविधा 1 मार्च से प्रारंभ होगी. आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना के तहत इन रज्यों के लाभुकों को पीवीसी (पोलिविनाइल क्लोराइड) आयुष्मान कार्ड निःशुल्क दिए जाएंगे. इसको लेकर यह प्रक्रिया पहले चरण में 10 राज्यों व संघ शासित प्रदेशों में शुरू की जा रही है, जिसमें बिहार सहित मणिपुर, उत्तरप्रदेश, हरियाणा, त्रिपुरा, नागालैंड, चंडीगढ़, पुदूचेरी, छत्तीसगढ़ तथा मध्यप्रदेश आदि शामिल हैं. अन्य प्रदेशों में भी नि:शुल्क पीवीसी आयुष्मान कार्ड वितरण की तिथि जल्द ही घोषित की जायेगी.
सीएससी पर नहीं देने होंगे 30 रुपये शुल्क :
नेशनल हेल्थऑथोरिटी तथा कॉमन सर्विस सेंटर—ई गर्वेंनेंस द्वारा आपसी सहमति के बाद हुए करार के बाद लाभुकों के लिए पीवीसी आयुष्मान कार्ड नि:शुल्क बनाया जाना है. पूर्व में आयुष्मान कार्ड बनवाने के लिए कॉमन सर्विस सेंटर पर 30 रुपये का शुल्क देना पड़ता था. आयुष्मान योजना के तहत सूचीबद्ध किये गये अस्पतालों में इलाज के लिए बनाये जाने वाले आयुष्मान कार्ड को अब बिना किसी शुल्क के जेनेरेट किया जाना है.
लाभुकों को मिलेगा पीवीसी प्रिंट किया कार्ड :
इस नई व्यवस्था के तहत आयुष्मान भारत के लाभुकों को पहले पेपर आधारित कार्ड दिया जायेगा. फिर इसके बाद एक पीवीसी प्रिंट किया हुआ कार्ड दिया जायेगा. पीवीसी आयुष्मान कार्ड किसी भी कॉमन सर्विस सेंटर से प्राप्त किया जा सकेगा. आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जनआरोग्य योजना के तहत स्वास्थ्य सुविधाएं प्राप्त करने व इलाज आदि के लिए आयुष्मान कार्ड आवश्यक रूप से हो ऐसा नहीं है, बल्कि यह लाभुकों को चिन्हित करने की प्रक्रिया है. साथ ही इसकी मदद से स्वास्थ्य सेवाओं के मुहैया कराने में होने वाली गड़बड़िया व धोखेबाजी को रोकना है.
5 लाख रुपये तक इलाज की है व्यवस्था :
भारत सरकार द्वारा स्वास्थ्य सेवा मुहैया कराये जाने की दिशा में आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जनआरोग्य योजना एक मुख्य कार्यक्रम है. इस योजना के तहत सालाना प्रति परिवार प्रति 5 लाख रुपये का इलाज की सुविधा दी गयी है, जिसमें 10.74 करोड़ लाभुकों यानी लगभग 53 लाख परिवारों को दूसरे एवं तीसरे स्तर की चिकित्सकीय सुविधा उपलब्ध कराने के लिए चिन्हित किया गया है. आयुष्मान भारत योजना के लाभुक को स्वास्थ्य सेवा प्राप्त करने के लिए कैश या पेपर आदि नहीं होने के बावजूद सुविधाएं मुहैया कराती है. के इलाज की सभी सुविधाएं मुहैया कराता है. इस योजना के तहत 937 हेल्थ पैकेज हैं. योजना के तहत देश के 32 प्रदेशों के 24000 से अधिक सरकारी व गैरसरकारी अस्पतालों को सूचीबद्ध किया गया है. आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जनआरोग्य योजना की शुरुआत 23 सितंबर 2018 को हुयी थी. इस योजना के तहत अब तक 20911 करोड़ रुपये मूल्य के 1.67 करोड़ हॉस्पीटल ट्रीटमेंट दिए जा चुके हैं. पूरे देश में इस योजना के तहत 14 करोड़ आयुष्मान कार्ड लाभुकों को निर्गत किया जा चुके हैं.
एनएचए भारत सरकार की संस्था :
नेशनल हेल्थ ऑथोरिटी भारत सरकार की संस्था है जिसके द्वारा आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जनआरोग्य योजना की पूरी प्रक्रिया तथा प्रबंधन का डिजाइन किया गया है. नेशनल हेल्थ ऑथोरिटी केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय से संबंधित हैं और यह राज्य सरकार के साथ समन्वय स्थापित कर कार्य करती है. -
18,965 लोगों की स्क्रीनिंग में से 100 संभावितों की हुई विशेष जांच
बालोद : प्रदेश के सभी जिलों को वर्ष -2023 तक क्षय रोग मुक्त करने को`टीबी हारेगा देश जीतेगा’ के संकल्प के साथ एक्टीव केस फाइंडिंग अभियान शुरु किया गया था। अभियान के दौरान5 नए क्षय रोगी मिले हैं।जिले के ग्रामीण और शहरीक्षेत्र के हाई रिस्क एरिया में मलिन बस्तियों, श्रमिकों, वृद्वाआश्रम, रैन बसेरा व जेल के कैदियों को लक्षित करते हुए यह अभियान चलाया गया था ।
इस दौरान स्वास्थ्य विभाग की टीम ने 18,965 लोगों की स्क्रीनिंग की थी। जिसमें से 100 संभावितों की सेम्पल जांच सीबीनॉट लैब में कराने पर 5 लोगों में टीबी पॉजिटिव की पुष्टी हुई है । इन नए टीबी के मरीजों का पंजीकरण कर इलाज शुरू कर दिया गया है ।
जिला क्षय रोग अधिकारी डॉ. संजीव ग्लेड ने बताया ‘‘ज़िले में सघन क्षय रोगी खोज अभियान विशेष रुप से शहरी और ग्रामीण मलिन बस्ती, खदान क्षेत्र, प्लांट क्षेत्र, अनाथ आश्रम एवं वृद्ध आश्रम, हाई रिस्क क्षेत्र, जेल (महिला एवं पुरुष), गिट्टी खदान क्षेत्र, राईस मिल क्षेत्र में 11 जनवरी से 12 फरवरी तक चलाया गया था। ।
उन्होंने बताया, जिले के उच्च जोखिम में 7,077 लोगों की स्क्रीनिंग की गई उनमें से 43 संभावितों की विशेष जांच में 4 लोगों की रिपोर्ट टीबी पॉजिटिव मिली ।इसी तरह माइंस एरिया में 985 श्रमिक की स्क्रीनिंग की गई उनमें से 27 संभावित की विशेष जांच में एक की रिपोर्ट टीबी पॉजिटिव रहा । इसके अलावा शहरी और ग्रामीण मलिन बस्ती क्षेत्र में 10,350 लोगों की स्क्रीनिंग की गई उनमें से 10 संभावित की विशेष जांच की गई ।
वहीं जेल में 215 कैदियों की स्क्रीनिंग की गई उनमें से 17 संभावित की विशेष जांच की गई। वृद्वा आश्रम में 29 लोगों की स्क्रीनिंग की गई जिसमें से 3 संभावित की विशेष जांच की गई। जबकि स्वास्थ्य कार्यकर्ता में से 309 लोगों की स्क्रीनिंग की गई जिसमें किसी तरह का लक्षण नहीं मिला। इन समूहों में सभी संभावितों की रिपोर्ट निगेटिव रही”।
16 टीमों के द्वारा चलाया गया सर्वे अभियान
मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. जेपी मेश्राम ने बताया,“ 11 जनवरी से 12 फरवरी तक ‘’ इस विशेष टीबी रोगी खोज अभियान के लिए स्वास्थ्य विभाग ने 16 टीमें बना थीं। प्रथम चरण टीबी रोगी की खोज के लिए प्रत्येक टीम में 4 सदस्य थे।
पंजीकरण और इलाज पर जोर
क्षय रोगी खोजी अभियान में लोगों को यह भी बताया गया कि अगर उनके यहां किसी का क्षय रोग का इलाज चल रहा है तो उनको क्षय रोग कार्यालय में पंजीकृत कराएं। ताकि उन्हें बेहतर दवाएं निशुल्क मिलें और उनका इलाज करने के साथ ही उन्हें पोषण भत्ता दिलाया जा सके।जिले में वर्ष-2020 में शासकीय अस्पताल से 786 हितग्राही को 10.50 लाख रुपए व निजी अस्पताल के 113 हितग्राही को 1.90 लाख रुपए सहित कुल 899 टीबी मरीजों को निक्षय पोषण योजना के तहत 500 रुपए की राशि 6 माह तक हर महिने हितग्राही के खाते में आन लाइन जमा करायी गयी है।
यहाँ कराएं जांच
जिले के डीएमसी में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, 6 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, 2 निजी अस्पताल में टीबी जांच की सुविधा उपलब्ध है। इसके अलावा उच्च स्तरीय जांच के लिए जिला क्षय नियंत्रण केंद्र में सीबीनॉट मशीन से जांच की सुविधा उपलब्ध है। वर्ष 2020 में शासकीय संस्था से 524 टीबी के नये मामले सामने आये थे । वहीं प्राइवेट संस्था से 216 नये टीबी के केश खोजे गयेथे।
ऐसे लक्षण दिखे तो जांच जरूरी
दो सप्ताह या उससे अधिक समय से खांसी का आना। खांसी के साथ बलगम और बलगम के साथ खून आना। वजन घटना। बुखार, सीने में दर्द, शाम के समय हल्का बुखार, रात में बेवजह पसीना आना। कम भूख लगने जैसी जैसी शिकायत है तो एक बार अपनी जांच जरुर करा लें। समय पर इलाज हो जाने से टीबी ठीक हो सकता है।टीबी खोजी दल में जिला कार्यक्रम प्रबंधक डॉ. भूमिका वर्मा, जिला कार्यक्रम समन्वयक सत्येन्द्र कुमार साहू व सायरा खान, सीनियर लैब सुपरवाईजर सुप्रिया मिंज, सीनियर ट्रीटमेंट सुपरवाईजर अल्पना कलिहारी, लोकेश ध्रुव , मनेश निर्मलकर, लीना मंडावी, पुखराज चांहदे, टीबी चैम्पियन यामिनी मेश्राम व हिरामन साहू शामिल रहे ।
- ईएनटी स्पेशलिस्ट डॉ नेहा गंगेश्वरी ने दिया सीएचओ को प्रशिक्षण
बेमेतरा : राष्ट्रीय बधिरता रोकथाम एवं नियंत्रण कार्यक्रम के अंतर्गत जिले के हेल्थ एंड वेलनेस सेन्टर में कार्यरत कम्युनिटी हेल्थ ऑफिसरको एक दिवसीय प्रशिक्षण दिया गया।हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर के 26 सीएचओ का प्रशिक्षण सीएमएचओ कार्यालय स्थित हॉल में आयोजित किया गया। मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ एस के शर्मा के निर्देशानुसार प्रशिक्षण कार्यक्रम बलौदाबाजार जिला अस्पताल की ईएनटी स्पेशलिस्ट डॉ नेहा गंगेश्वरी के द्वारा दिया गया।
प्रशिक्षण देते हुए ईएनटी स्पेशलिस्ट डॉ नेहा गंगेश्वरी ने बताया, स्वास्थ्य विभाग द्वारा चलायाजा रहाबधिरता रोकथाम कार्यक्रम आने वाले समय में सभी के लिए बहुत ही उपयोगी साबित होगा। इसके जरिये जन्म के समय में ही कुछ सावधानी बरतने से बहुत हद तक इस तरह की दिव्यांगता से बचा जा सकता है”।
प्रशिक्षण में मुख्य रूप से हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर में आने वाले मरीजों को बधिरता कार्यक्रम के प्रति जागरूकता लाने के दृष्टि कोण एवं कान की देखभाल एवं बचाव के लिए आवश्यक उपायो को लेकर जानकारी दी गयी । डॉ नेहा गंगेश्वरी ने बताया, “जन्म के समय ही बच्चों में कान सुनाई नहीं देने जैसे लक्षणों को देखते हुए उनका तुरंत समुचित इलाज किये जाने से बधिरता और गूंगेपन जैसी समस्याओं को जल्द से जल्द ठीक किया जा सकता है”।
ऑडियोलॉजिस्ट गुलनाज खान ने बताया, “बच्चों के तुतलाने पर स्पीच थेरपी दिया जाता हैं। बुजुर्गों में उम्र बढ़ने के साथ हियरिंग लॉस होने पर मशीन वितरण किया जाता है। 6 साल से कम उम्र के बच्चों को सुनाई नही देने पर सर्जरी के लिए मेकाहारा में रेफर किया जाता है।
प्रशिक्षण में सीएचओ को बताया गया कि सुनाई नहीं देने की समस्या वाले मरीजों को हेल्थ एवं वेलनेससेंटर से चिन्हांकित कर जिला अस्पताल रेफर किया जाए। उन्होंने बताया आगामी 3 से 10 मार्च तक विश्व कर्ण सप्ताह मनाया जाएगा। उक्त प्रशिक्षण में नोडल अधिकारी डॉ बुद्धेश्वर वर्मा, जिला कार्यक्रम प्रबंधक अनुपमा तिवारी, ऑडियोलॉजिस्ट गुलनाज खान व जिला प्रशिक्षण अधिकारी सागर शर्मा उपस्थित रहें। -
दुर्ग : नेशनल रिफरेंस लेबोरेटरी (एनआरएल) की 6 सदस्यीय टीम एवं स्टेट टीबी सेल ने राष्ट्रीय क्षय उन्मूलन कार्यक्रम के अंतर्गत चलाये जाने वाले कार्यक्रमों का जायजा लिया । इस दौरान उन्होने टीबी मरीजों की शीघ्र जांच के लिए स्थापित किये गए सीबीनॉट लैब केंद्रों में जाकर कर्मचारियों से जानकारी हासिल की।
टीम द्वारा जिले के सीबीनाट भिलाई, सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र धमधा व जिला क्षय अस्पताल दुर्ग का भ्रमण किया गया । टीम द्वारा भ्रमण के दौरान सीबीनॉट रजिस्टर व लैब रजिस्टर कानिरीक्षण किया गया साथ ही मरीज से सम्बंधित सभी जानकारियों को खाली कालम में भरने के निर्देश दिए ।
टीम द्वारा रायपुर के लालपुर स्थित आईआरएल लैब में कम्यूनिटी वालेंटियर यानी टीबी मितान के माध्यम से 48 घंटे के भीतर सेक्टर -9 अस्पताल और जिला अस्पताल से मरीजों का सेम्पल स्पुटम भेजने के निर्देश दिये गये ।साथ ही टीम द्वारा जिले के पदों को तत्काल भरने का निर्देश दिया गया । साथ ही टीम द्वारा टीबी रोग उन्मूलन के लिए किये जा रहे कार्यों की सराहना भी की गई ।
देश भर में वर्ष - 2025 तक टीबी मिटाने के उद्देश्य से "टीबी हारेगा देश जीतेगा अभियान" के अंतर्गत समय समय पर सभी जिलों में सक्रिय टीबी रोगी खोज अभियान चलाया जा रहा है।इसके अंतर्गत दुर्ग जिले के हाई रिस्क एरिया में ग्रामीण और शहरी मलिन बस्तियों को लक्षित कर के श्रमिकों, वृद्वाआश्रम, रैन बसेरा व जेल के कैदियों के बीच जाकर स्वास्थ्य विभाग की टीम ने 14 जनवरी से 15 फरवरी तक 2.33 लाख से अधिक लोगों की स्क्रीनिंग की थी। इनमें 2,383 संभावितों की सेम्पल जांच में से 53 लोगों में क्षय रोग की पुष्टी हुई है।
टीम में राज्य स्तर के माइक्रो बायोलॉजिस्ट निशान्त मेश्राम, डब्लूएचओ कंसल्टेंट रोचक सक्सेना, एनआरएस ( नेशनल रिफरेंस लेबोरेटरी ) टीम के अरुण कुमार, पूजा कुमारी व जिला टीवी कार्यक्रम के मेडिकल ऑफिसर विनायक मेश्राम, विमल वर्मा, टीबीएचबी सुदेश बाबर, लैब सुपरवाइजर भूषण साहू , लैब टेक्नीशियन मधु तिवारी, डॉट प्लस सुपरवाइजर टीकम जाटवर व अन्य कर्मचारी उपस्थित थे। - कोविड टीकाकरण में महिलाएं पुरुषों से आगे
रायपुर : राज्य में कोरोना वैक्सीनेशन का दूसरा चरण चल रहा है जिसमें फ्रंटलाइन वर्कर्स का टीकाकरण किया जा रहा है| इस चरण के सोमवार तक के आंकड़ों पर गौर करें तो बेमेतरा जिले के फ्रंटलाइन वर्कर्स ने सबसे अधिक वैक्सीनेशन कराया है|यहाँ पर 2,904 लक्षित फ्रंटलाइन वर्कर्स के सापेक्ष 2,133 फ्रंटलाइन वर्कर्स का वैक्सीनेशन कराया गया है यानि कुल 73 प्रतिशत ने यहाँ पर कोरोना की वैक्सीन लगवाई है जो प्रदेश के सभी जिलों में सबसे अधिक है|
वहीँ बालोद इस मामले में दूसरे स्थान पर, रायगढ़ तीसरे पर, महासमुंद चौथे एवं कवर्धा पांचवे स्थान पर है | बालोद में कुल लक्ष्य 4,754 के सापेक्ष 3,378 लोगों ने कोविड की वैक्सीन लगवायी है अतः यहाँ पर 71 प्रतिशत लोगों को कवर किया गया है वहीँ रायगढ़ में 67 प्रतिशत, महासमुंद 62 प्रतिशत एवं कवर्धा में 58 प्रतिशत फ्रंटलाइन वर्कर्स का वैक्सीनेशन किया जा चुका है |
राज्य टीकाकरण अधिकारी डॉ अमर सिंह ठाकुर ने बताया, “दूसरे चरण में राज्य में लगभग 2.11 लाख फ्रंटलाइन वर्कर्स के वैक्सीनेशन का लक्ष्य रखा गया है इसके सापेक्ष सोमवार तक 67,798 लोगों को कोविड वैक्सीन दी जा चुकी है यानि कि लगभग 32 प्रतिशत लोगों को अब तक कवर किया जा चुका है और अभी तक किसी में भी इसका प्रतिकूल प्रभाव देखने को नहीं मिला है।कोविड-19 टीकाकरण पूर्णता सुरक्षित है इससे किसी को भी घबराने की जरूरत नहीं है। फिलहाल फ्रंट लाइन वर्कर्स और छूटे हुए स्वास्थ्यकर्मियों को टीका लग रहा है। टीकाकरण को लेकर किसी भी प्रकार की अफवाह पर ध्यान न दें। स्वास्थ्य विभाग द्वारा लोगों को टीके के बारे में निरंतर सही जानकारी उपलब्ध कराई जा रही है”।
कोविन डैशबोर्ड के मुताबिक राज्य की है यह स्थिति
कोविन डैशबोर्ड के आंकड़ों के मुताबिक राज्य में कुल 1,074 सेशन साईट बनायीं गयीं हैं जिनपर अब तक 9,286 सेशन आयोजित किये जा चुके हैं| वहीँ अब तक कुल 4.88 लाख लाभार्थियों को पंजीकृत किया जा चुका है जिसके सापेक्ष 2.84 लाख लाभार्थियों का वैक्सीनेशन किया जा चुका है |
कोविड वैक्सीनेशन के मामले में महिलाएं पुरुषों से आगे
कोविन डैशबोर्ड के अनुसार कोविड वैक्सीनेशन कराने के मामले में महिलाएं पुरुषों से काफी आगे हैं| अब तक कुल 1.71 लाख महिलाओं द्वारा वैक्सीनेशन कराया गया है वहीँ 1.13 लाख पुरुषों के द्वारा कोविड वैक्सीनेशन कराया गया है यानि कि पुरुषों की अपेक्षा लगभग 20 प्रतिशत अधिक महिलाओं ने कोविड वैक्सीनेशन कराया है | - द न्यूज़ इंडिया समाचार सेवादुर्ग : राष्ट्रीय कुष्ठ उन्नमूलन कार्यक्रम के अंतर्गत नगर निगम क्षेत्र में कुष्ठ मरीजों की खोज के लिए हेल्दी कांटेक्ट अभियान आज से शुरुकिया गया है।कुष्ठ रोगी विशेष खोज “आगाज-2021”के तहत आज से नगर निगम क्षेत्र के वार्डों में जहां एमबी के प्रभावित कुष्ठ रोगियों के संपर्क में आने वाले 20-20 घरों में हेल्दी कांटेक्ट अभियान शुरु किया गया है।
“हेल्दी कांटैक्ट अभियान’’में पिछले तीन सालों में दुर्ग शहरी क्षेत्रों में मिले एमबी के 90 कुष्ठ मरीजों के आसपास के 1,800 घरों में एनएमए व मितानिनों द्वारा जांच की जा रही है।“हेल्दी कांटैक्ट अभियान’’में नॉन मेडिकल अस्सिटेंट (एनएमए) की 3 टीमें हर दिन परिवार के मुखिया से संपर्क करेंगे। “आगाज-2021” को सफल बनाने के लिए मुखिया द्वारा ही परिवार के प्रत्येक सदस्य के शरीर में दाग व धब्बों की पहचान कर पीईपी की दवाईयां खिलाई जाएगी।इससे पहले नगर निगम की16 घनी बस्तियों में चर्म रोग निदान शिविर आयोजित कर 10 नए कुष्ठ मरीज चिंहाकित किए गए थे । शहरी क्षेत्र में 5 से 13 फरवरी तक चले इस अभियान में बघेरा, पुलगांव, उरला, कंडरापारा, बोरसीभांठा, कुंदरापारा, करहीडीह, शक्ति नगर, सिकोला बस्ती, तितुरडीह, रायपुरनाका, डिपरापारा, राजीवनगर, उत्कलनगर, चांदमारी आजादपारा व उरला बाम्बे आवास में आयोजित शिविर में 3 एमबी व 7 पीबी के मरीज खोजे गए थे।
शिविर में चमड़ी पर सुन्न दाग, धब्बे जिसमें जलन, चुभन व पीड़ा का एहसास न होता हो, ऐसे दाग, धब्बों की जांच एवं परामर्श कर लगभग 996 मरीजों को निशुल्क इलाज का लाभ मिला। शिविर में जिला अस्पताल की चर्म रोग विशेषज्ञ डॉ मोनिका जैन द्वारा हाथ पैर में झुनझुनी, सुखापन, दाद, खाज, खुजली, बेमची, अपरस, झीला सहित चर्म रोगों के मरीजों का शिविर में इलाज किया गया।
इस बारे में जिला कुष्ठ अधिकारी डॉ अनिल कुमार शुक्ला ने बताया, “हेल्दी कांटैक्ट अभियान’’के पहले दिन आज दो टीमों द्वारा लगभग 100 घरों में संपर्क किया गया। प्रत्येक टीम द्वारा एक दिन में 50 घरों में सर्वे किया जाएगा। टीम में एनएमए सीएल मैत्री, एसडी बंजारे, पीआर बंजारे, आरपी उपाध्याय, एके पांडेय, शारदा साहू, अजय देवांगन , एमके साहू व जाकीर खान सहित रिटायर्ड एनएमए को भी टीम में शामिल किया गया”।
डॉ शुक्ला ने बताया, “जिले में मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. गंभीर सिंह ठाकुर के मार्गदर्शन में कुष्ठ के प्रति जनजागरुकता लाने व त्वरित निदान व उपचार के लिए मरीजों को चिन्हांकित किया जा रहा है।ताकि संक्रमण के लक्षण में ही रोग की पहचान कर शरीर को विकृत होने से बचाया जा सके इसके लिए और इसके लिए सुरक्षित चर्म रोग निदान शिविर आयोजित कियाजा सके।मितानिन द्वारा गृहभ्रमण कर चिंहांकित लोगों की स्क्रीनिंग स्वास्थ्य विभाग की टीम द्वारा की जा रही है।“मेरा शहर कुष्ठ मुक्त शहर” की परिकल्पना को साकार करने को शहर में “हेल्दी कांटैक्ट’’कर कुष्ठ की नए मरीजों की खोज की जा रही है”।